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Sunday.. इतवार ..रविवार

 इतवार (Sunday)


"आज रांस्ता बना लिया है,
तो कल मंजिल भी मिल जाएगी.
हौसलों से भरी यह कोशिश एक दिन
जरूर रंग लाएगी.. ❤"

जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें
अरुण-पंख तरुण-किरण
खड़ी खोलती है द्वार
जागो फिर एक बार

आँखे अलियों-सी
किस मधु की गलियों में फँसी
बन्द कर पाँखें
पी रही हैं मधु मौन
अथवा सोयी कमल-कोरकों में?
बन्द हो रहा गुंजार
जागो फिर एक बार

अस्ताचल चले रवि
शशि-छवि विभावरी में
चित्रित हुई है देख
यामिनीगन्धा जगी
एकटक चकोर-कोर दर्शन-प्रिय
आशाओं भरी मौन भाषा बहु भावमयी

घेर रहा चन्द्र को चाव से
शिशिर-भार-व्याकुल कुल
खुले फूल झूके हुए
आया कलियों में मधुर
मद-उर-यौवन उभार
जागो फिर एक बार

पिउ-रव पपीहे प्रिय बोल रहे
सेज पर विरह-विदग्धा वधू
याद कर बीती बातें
रातें मन-मिलन की
मूँद रही पलकें चारु
नयन जल ढल गये
लघुतर कर व्यथा-भार
जागो फिर एक बार

सहृदय समीर जैसे
पोछों प्रिय, नयन-नीर
शयन-शिथिल बाहें
भर स्वप्निल आवेश में
आतुर उर वसन-मुक्त कर दो
सब सुप्ति सुखोन्माद हो
छूट-छूट अलस
फैल जाने दो पीठ पर
कल्पना से कोमन
ऋतु-कुटिल प्रसार-कामी केश-गुच्छ

तन-मन थक जायें
मृदु सरभि-सी समीर में
बुद्धि बुद्धि में हो लीन
मन में मन, जी जी में
एक अनुभव बहता रहे
उभय आत्माओं मे
कब से मैं रही पुकार
जागो फिर एक बार

उगे अरुणाचल में रवि
आयी भारती-रति कवि-कण्ठ में
क्षण-क्षण में परिवर्तित
होते रहे प्रृकति-पट
गया दिन, आयी रात
गयी रात, खुला दिन
ऐसे ही संसार के बीते दिन, पक्ष, मास
वर्ष कितने ही हजार
जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार कविता की व्याख्या 

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की यह कविता "परिमल" नामक संग्रह से ली गई है। वैसे तो कविता में कहीं भी अंग्रेजों की गुलामी का या भारत देश का नाम नहीं लिया गया है, परंतु इस कविता की जितनी भी व्याख्या किताबों से लेकर इंटरनेट तक उपलब्ध है, उसमें सब जगह देशवासियों को भारत की आजादी के लिए जगाने के संदर्भ में इस कविता की व्याख्या है। 

निराला जी कह रहे हैं कि - ओ प्यारे! सब तारे तुम्हें जगा जगा कर थक गए, हार गए। सूर्य की नवोदित किरण तुम्हारे दर पर खड़ी है, तुम्हारा द्वार खोल रही है, जागो, उठो। 

जो सो रहा है उसकी आंखें भंवरों की तरह हैं। आंखों के फंस जाने का मतलब उलझ जाना है। आंख का उलझ जाना दृष्टि का उलझ जाना है। कवि कह रहे हैं कि किस मधु की गली में क्या चल रहा है चुपचाप? पखना बंद है। आखें मधुपान कर रही हैं या सोई है कमल के फूल में? बाहर गुंजार बंद हो रहा है, उठो, जागो। 

सूर्य अस्त हो चुका है। तारों से भरी हुई चांदनी रात है। रात रानी महकने लगी है। चकोर अपने प्रिय की एक झलक पाने के लिए एकटक निहार रहा है। उसका मौन बहुत से भाव से भरा हुआ है। प्रिय के दरस की आशा घेरती जा रही है। फूलों का कुनबा शीत के भार से व्याकुल हो रहा है। खिले हुए फूल झुके जा रहे हैं। कलियों में यौवन का मद आ गया है। ऐसे में तुम उठो, जागो। 

पपीहा पिउ पिउ बुला रहा है। समीर की तरह तुम वधू के आंसू पोंछ दो। सोने से शिथिल पड़ी हुई उसकी बांह धरकर तुम उसे अपनी गोद में भर लो। उसके ह्रदय की आतुरता का शमन कर दो। सुप्ति को सुख के उन्माद से भर दो। कल्पना की तरह कोमल घुंघराले बालों को पीठ पर इस तरह फैल जाने दो कि सारा आलस्य दूर हो जाए। तन को मन को थंका दो। सुगंधित वायु चल रही है। सूर्य की नवोदित किरण कह रही है कि मैं तुम्हें कब से पुकार रही हूं। बुद्धि को, मन को, प्राण को तृप्ति तोष के सूत्र में बांधने के लिए सब को भय से मुक्त करने के लिए एक बार फिर जागो। 

भारत की जो भारती है, वह हिंदी है। वह अलसुबह के ललमुंहे सूर्य की तरह कवि कंठ में उतर आई है। प्रकृति अपना रूप बदलती रहती है, लेकिन प्रिय का संसार वही एक है। यानी वह नहीं बदला, जबकि उसे समय के साथ बदलना था। दिन, पखवारा, महीना क्या, तुम्हारे उठने की प्रतीक्षा में कितने हजार वर्ष बीत गए। जागो, एक बार फिर उठो।

Sunday.. इतवार ..रविवार
"हौसले के तरकश में
कोशिश का वो तीर जिंदा रखो
हार जाओ चाहे जिन्दगी में सब कुछ,
मगर फिर से जीतने की
उम्मीद जिन्दा रखो.. ❤"

14 comments:

  1. Quite perfect words selection, excellent thoughts, perfect article written on the subject.

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  2. Beautiful pic with lovely poem
    Happy Sunday 👍

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  3. प्रेरक कविता.. सुंदर छवि

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  4. प्रेरक कविता..आज तो अर्थ भी पढ़ने को मिला, जिससे कविता समझ आ गई 😍
    अच्छी तस्वीर के साथ शुभ रविवार 💐💐

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  5. Bahut hi sundar kavita hay...👌👌🌹

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  6. Happy Sunday.. I Mean Happy Monday..
    Belated 😜

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  7. सूर्य कांत त्रिपाठी की प्रकृति संबंधी अनूप रचना। शुभ रविवार।

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