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सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" : पंचतंत्र / Sabse bada bal: "Buddhibal" : Panchtantra

5. सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" (शेर और खरगोश की कथा)

यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् 

बली वही है, जिसके पास बुद्धि बल है। 

आज की कहानी बिल्कुल बच्चों वाली है, फिर भी इसको छोड़ नहीं सकती हूँ। क्यूंकि यहाँ श्री विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र पुस्तक की कहानियाँ शिलशिलेवार रूप से प्रस्तुत की जा रही हैं।  

सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" : पंचतंत्र / Sabse bada bal: "Buddhibal" : Panchtantra

एक जंगल में भासुरक नाम का शेर रहता था। बहुत बलशाली होने के कारण वह प्रतिदिन जंगल के मृग, खरगोश, हिरण, रिछ, चीता आदि पशुओं को मारा करता था। 

एक दिन जंगल के सभी जानवरों ने मिलकर सभा की और निश्चय किया कि भासुरक से प्रार्थना की जाएगी कि वह अपने भोजन के लिए प्रतिदिन एक पशु से अधिक की हत्या ना किया करे। इस निश्चय को शेर तक पहुंचाने के लिए पशुओं के प्रतिनिधि शेर से मिले। उन्होंने शेर से निवेदन किया कि उसे रोज एक पशु शिकार के लिए मिल जाया करेगा। इसलिए वह अनगिनत पशुओं का शिकार ना किया करे। शेर यह बात मान गया। दोनों ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने वचनों का पालन करेंगे। 

उस दिन के बाद से वन के सभी पशु वन में निर्भय होकर घूमने लगे। उन्हें शेर का भय नहीं रहा। शेर को घर बैठे एक पशु मिलता रहा। शेर ने यह धमकी दे दी थी कि जिस दिन उसे कोई पशु नहीं मिलेगा, उस दिन वह फिर से अपने शिकार पर निकल जाएगा और मनमाने पशुओं की हत्या कर देगा। इस डर से भी सब पशु यथाक्रम एक- एक पशु के पास भेजते रहे। 

इसी क्रम से एक दिन खरगोश की बारी आ गई। खरगोश शेर की मांद की ओर चल पड़ा, किंतु मृत्यु के भय से उसके पैर नहीं उठते थे। मौत की घड़ियों को कुछ देर और टालने के लिए वह जंगल में इधर-उधर भटकता रहा। एक स्थान पर उसे एक कुआं दिखाई दिया। कुएं में झांक कर देखा तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी। उसे देखकर उसके मन में एक विचार उठा। क्यों ना भासुरक को उसके वन में दूसरे शेर के नाम से उसकी परछाई दिखाकर इस कुएं में गिरा दिया जाए? 

सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" : पंचतंत्र / Sabse bada bal: "Buddhibal" : Panchtantra

यही उपाय सोचता- सोचता वह शेर के पास बहुत समय बाद पहुंचा। शेर उस समय तक भूखा प्यासा होंठ चाटता बैठा था। उसके भोजन की घड़ियां बीत रही थी। वह सोच ही रहा था कि कुछ देर और कोई पशु ना आया तो वह अपने शिकार पर चल पड़ेगा और पशुओं के खून से सारे जंगल को सींच देगा। इसी बीच वह खरगोश उसके पास पहुंच गया और प्रणाम करके बैठ गया। खरगोश को देखकर शेर ने क्रोध से लाल- लाल आंखें करते हुए गरजकर कहा- नीच खरगोश! एक तो तू इतना छोटा है और फिर इतनी देर लगा कर आया है। आज तुझे मार कर कल मैं जंगल के सारे पशुओं की जान ले लूंगा। वंश नाश कर दूंगा। 

खरगोश ने सिर झुका कर उत्तर दिया - स्वामी! आप विरोध करते हैं, इसमें ना मेरा अपराध है और ना ही अन्य पशुओं का। कुछ भी फैसला करने से पहले देरी का कारण तो सुन लीजिए। 

शेर - जो कुछ कहना है, जल्दी कह। मैं बहुत भूखा हूं। कहीं तेरे कुछ कहने से पहले ही तुझे अपनी दाढ़ों में ना चबा लूं।

खरगोश - बात यह है कि सभी पशुओं ने आज सभा करके और यह सोच कर कि मैं बहुत छोटा हूं, मुझे तथा अन्य चार खरगोशों को आपके भोजन के लिए भेजा था। हम पांचों आपके पास आ रहे थे कि मार्ग में कोई दूसरा शेर अपनी गुफा से निकल कर आया और बोला अरे किधर जा रहे हो तुम सब। अपने देवता का अंतिम स्मरण कर लो। मैं तुम्हें मारने आया हूं। मैंने उससे कहा हम सब अपने स्वामी भासुरक शेर के पास आहार के लिए जा रहे हैं। तब वह बोला भासुरक कौन होता है ? यह जंगल तो मेरा है। मैं ही तुम्हारा राजा हूं। तुम्हें जो बात करनी है, मुझसे कहो। भासुरक चोर है। तुम में से चार खरगोश यही रह जाएं। एक खरगोश भासुरक के पास जाकर उसे बुला लाए। मैं उससे स्वयं निपट लूंगा। हममें से जो शेर अधिक बली होगा, वही इस जंगल का राजा होगा। अब मैं किसी तरह उसे जान छुड़ाकर आपके पास आया हूं। इसीलिए मुझे देर हो गई।आगे स्वामी की जो इच्छा हो करें। 

यह सुनकर भासुरक बोला - ऐसा ही है तो, जल्दी से मुझे उस दूसरे शेर के पास ले चलो। आज मैं उसका रक्त पी कर अपनी भूख मिटा लूंगा। इस जंगल में मैं किसी दूसरे का हस्तक्षेप पसंद नहीं करूंगा। 

खरगोश - स्वामी! यह तो सच है कि अपने स्वत्व के लिए युद्ध करना आप जैसे सूर वीरों का धर्म है, किंतु दूसरा शेर अपने दुर्ग में बैठा है। दुर्ग से बाहर आकर ही उसने हमारा रास्ता रोका था। दुर्ग में रहने वाले शत्रु पर विजय पाना बड़ा कठिन होता है। दुर्ग में बैठा शत्रु, सौ शत्रुओं के बराबर माना जाता है। दुर्गहीन राजा दंतहीन सांप और मदहीन हाथी की तरह कमजोर हो जाता है। 

भासुरक - तेरी बात ठीक है, किंतु मैं उस शेर को भी मार डालूंगा। शत्रु को जितना जल्दी हो नष्ट कर देना चाहिए। मुझे अपने बल पर पूरा भरोसा है। शीघ्र ही उसका नाश ना किया गया तो, वह बाद में असाध्य रोग की तरह प्रबल हो जाएगा। 

खरगोश - यदि स्वामी का यही निर्णय है, तो आप मेरे साथ चलिए। यह कहकर खरगोश भासुरक को उसी कुएं के पास ले गया, जहां झुककर उसने अपनी परछाई देखी थी। वहां जाकर वह बोला - स्वामी! मैंने जो कहा था, वही हुआ। आपको दूर से ही देख कर वह अपने दुर्ग में घुस गया। आप आइए मैं आपको उसकी सूरत तो दिखा दूं। 

सबसे बड़ा बल : "बुद्धि बल" : पंचतंत्र / Sabse bada bal: "Buddhibal" : Panchtantra

भासुरक - जरूर उस नीच को देखकर मैं उसके दुर्ग में ही उस से लड़ लूंगा। खरगोश शेर को कुएं की मेड़ पर ले गया। भासुरक ने झुककर कुएं में अपनी परछाई देखी, तो समझा कि यही दूसरा शेर रहता है। वह जोर से गरजा। उसकी गरज के उत्तर में कुएं से दुगुनी गूंज पैदा हुई। उस गूंज को विपक्षी शेर की ललकार समझकर भासुरक उसी क्षण कुएं में कूद पड़ा और वहीं पानी में डूब कर मर गया। 

खरगोश ने अपनी बुद्धिमत्ता से शेर को हरा दिया। वहां से लौट कर वापस पशुओं की सभा में गया। उसकी चतुराई सुनकर और शेर की मौत का समाचार सुनकर सब जानवर खुशी से नाच उठे। 

इसीलिए मैं कहता हूं कि बलि वही है, जिसके पास बुद्धि का बल है। 

कहानी सुनाने के बाद दमनक ने करटक से कहा - तेरी सलाह हो तो मैं भी अपनी बुद्धि से उनमें फूट डलवा दूँ।अपनी प्रभुता बनाने का यही मार्ग है। मैत्री भेद किए बिना काम नहीं चलेगा। 

करटक - मेरी भी यही राय है। तू उनमें भेद कराने का यत्न कर, ईश्वर करे तुझे सफलता मिले। 

वहां से चलकर दमनक पिंगलक के पास गया। उस समय पिंगलक के पास संजीवक नहीं बैठा था। पिंगलक ने दमनक को बैठने का इशारा करते हुए कहा - कहो दमनक! बहुत दिन बाद दर्शन दिए। 

दमनक - स्वामी! आपको अब हमसे कुछ प्रयोजन ही ना रह गया, तो आपके पास आने का क्या लाभ। फिर भी आपके हित की बात कहने को आपके पास आ जाता हूं। हित की बात बिना पूछे ही कह देनी चाहिए। 

पिंगलक - जो कहना हो निर्भय होकर कहो। मैं अभय वचन देता हूं। 

दमनक - स्वामी! संजीवक आपका मित्र नहीं वैरी है। एक दिन उसने मुझे एकांत में कहा था। पिंगलक का बल मैंने देख लिया। उसने कोई विशेषता नहीं है। उसको मार कर मैं तुझे मंत्री बनाकर सब पशुओं पर राज्य करूंगा।

 दमनक के मुख से उन वज्र की तरह कठोर शब्दों को सुनकर पिंगलक कैसा चुप रह गया मानो मूर्छा आ गई हो। दमनक ने जब पिंगलक की यह अवस्था देखी तो सोचा पिंगलक का संजीवक से प्रगाढ़ स्नेह है, संजीवक ने इसे अपने वश में कर रखा है। जो राजा इस तरह मंत्री के वश में हो जाता है, वह नष्ट हो जाता है। यह सोचकर उसने पिंगलक के मन से संजीवक का जादू मिटाने का निश्चय और भी पक्का कर लिया। 

पिंगलक अपने थोड़ा होश में आकर किसी तरह धैर्य धारण करते हुए कहा - दमनक, संजीवक तो हमारा बहुत ही विश्वासपात्र नौकर है। उसके मन में मेरे लिए बैर भावना नहीं हो सकती। 

दमनक -स्वामी! आज जो विश्वासपात्र है, वही कल विश्वास घातक बन जाता है। राज्य का लोभ किसी के भी मन को चंचल बना सकता है। इसमें अनहोनी की कोई बात नहीं। 

पिंगलक - दमनक! फिर भी मेरे मन में संजीवक के लिए द्वेष भावना नहीं उठती। अनेक दोष होने पर भी प्रियजनों को छोड़ा नहीं जाता। जो प्रिय है वह प्रिय ही रहता है। 

दमनक - यही तो राज्य संचालन के लिए बुरा है। जिसे भी आप स्नेह का पात्र बनाएंगे वही आपका प्रिय हो जाएगा। इसमें संजीवक की कोई विशेषता नहीं। विशेषता तो आपकी है। आपने उसे अपना प्रिय बना लिया, तो वह बन गया। अन्यथा उसमें गुण ही कौन सा है? आप यह समझते हैं कि उसका शरीर बहुत भारी है और वह शत्रु संहार में सहायक होगा, तो यह आपकी भूल है। वह तो घास पात खाने वाला जीव है। आपके शत्रु तो सभी मांसाहारी हैं। अतः उसकी सहायता से शत्रु नाश नहीं हो सकता। आज वह आपको धोखे से मार कर राज्य करना चाहता है। अच्छा है कि उसका षड्यंत्र पकने से पहले ही आप उसको मार दें। 

पिंगलक - दमनक! जिसे हमने पहले गुणी मानकर अपनाया है, उसे राज्यसभा में आज निर्गुण कैसे कह सकते हैं? फिर तेरे कहने से ही तो मैंने उसे अभय वचन दिया था। मेरा मन करता है कि संजीवक मेरा मित्र है। मुझे उसके प्रति क्रोध नहीं है। यदि उसके मन में वैर आ गया है, तो भी मैं उसके प्रति वैर भावना नहीं रखता। अपने हाथों लगाया विष - वृक्ष भी अपने हाथों नहीं काटा जाता। 

दमनक - स्वामी! यह आपकी भावुकता है। राजधर्म इसका आदेश नहीं देता। वैर बुद्धि रखने वाले को छमा करना राजनीति की दृष्टि से मूर्खता है। आपने उसकी मित्रता के वश में आकर सारा राजधर्म भुला दिया है। आपके राजधर्म से च्युत होने के कारण ही जंगल के अन्य पशु आप से विरक्त हो गए हैं। सच तो यह है कि आप में और संजीवक में मैत्री होना स्वभाविक ही नहीं है। आप मांसाहारी हैं, वह निरामिष भोजी। यदि आप उस घास पात खाने वाले को अपना मित्र बनाएंगे, तो अन्य पशु आपसे सहयोग करना बंद कर देंगे। यह भी आपके राज्य के लिए बुरा होगा। उसके संग से आप की प्रकृति में भी यह दुर्गुण आ जाएंगे, जो शाकाहारी में होते हैं। शिकार से आपको अरुचि हो जाएगी। अपना साथ अपनी प्रकृति के पशुओं से होना चाहिए। इसलिए साधु लोग नीच का संग छोड़ देते हैं। संगदोष से ही खटमल की तीव्र गति के कारण मंदविसर्पिणी जूं को मरना पड़ताथा। 

पिंगलक ने पूछा - यह कथा कैसे है? 
दमनक ने कहा सुनिए :

6. कुसंग का फल
To be continued ...

16 comments:

  1. इसको कहते हैं राजनीति... Devide and rule policy 👍👍

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  2. बुद्धि से बड़ा कुछ भी नहीं।
    अच्छी कहानी

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  3. अच्छी कहानी

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  4. अच्छी कहानी

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  5. बली वहीं हैजिस्के पास बुद्धि बल है।

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  6. बार बार झूठ बोलने से वह सच सा प्रतीत होने लगता है… इस बात में कितनी सच्चाई है यह अगली कहानी में मालूम हो जाएगा.इंतजार में…

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  7. बहुत बढ़िया कथा।

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  8. बहुत ही रोचक कहानियां

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