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मूर्ख दरबारी - Murkh darbari

मूर्ख दरबारी

एक बार बादशाह अकबर के कुछ दरबारी इकट्ठा होकर उनके पास जाकर बोले, “जहांपनाह, हम लोग इस बात से बहुत परेशान हैं कि बीरबल की तुलना में आप हम लोगों को कोई इज्जत नहीं देते।”  

“हाँ, इसमें शक की तो कोई बात ही नहीं है कि बीरबल हमारी हुकूमत के सभी मंत्रियों में सबसे तेज दिमाग वाला है। वह हुकूमत में आने वाली सभी मुश्किलों को बड़ी आसानी और होशियारी से निपटाता है।  

मूर्ख दरबारी - Murkh darbari

यही वजह है कि मैं बीरबल पर इतना भरोसा करता हूँ।” बादशाह ने पूरे विश्वास के साथ उत्तर दिया। “ऐसा कुछ भी तो नहीं है, जहांपनाह, ने बीरबल कर सकता है और हम नहीं।  

आप बस एक मौका हमें दें, जिससे हम अपनी काबिलियत साबित कर सकें।” “बहुत अच्छा,” बादशाह ने कहा। अकबर के हामी भरने के पीछे उनका यह विचार था कि इससे दरबारियों को पता चल जाएगा कि वे कितने पानी में हैं।  

उसी दिन अकबर ने अपने निजी कक्ष में सभी दरबारियों को बुलाया। उस समय वे बिस्तर पर कम्बल ओढ़कर लेटे थे। उन्होंने कहा, “मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन इस कम्बल से अपने आपको मैं सिर से पाँव तक पूरा नहीं कर पा रहा हूँ।  

अब तुम लोग कुछ ऐसा करो, जिससे न तो मेरा सिर और न ही मेरे पैर कम्बल के बाहर रहें। दरबारियों ने तुरंत अपनी बुद्धि का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया।

परंतु सब बेकार था! बुद्धि जब हो, तभी तो कोई हल निकले। एक ने आगे बढ़कर कम्बल को बादशाह के सिर तक खींचा। ऐसे में सिर तो कम्बल से ढक गया, परंतु पॉव कम्बल से बाहर हो गए।

दूसरे दरबारी ने कम्बल को पाँव तक खींच दिया, लेकिन ऐसे में बादशाह का सिर बाहर आ गया। अंतत: हार मानते हुए उन्होंने एक मत से निर्णय दिया कि इस कम्बल से बादशाह को पूरा-पूरा ढक पाना असम्भव है।

अकबर मंद-मंद मुस्कुराने लगे। उन्होंने अपने एक सेवक को बुलाकर बीरबल को ले आने को कहा। जब बीरबल उपस्थित हुए तो बादशाह ने वही समस्या उनके सामने भी रखी।

बीरबल ने भी निरीक्षण करके यही पाया कि कम्बल बादशाह के शरीर की लम्बाई से कुछ छोटा था। परन्तु बीरबल के पास तो सभी समस्याओं का समाधान पहले से ही मौजूद रहता था।

उन्होंने अकबर से अपने पैर कुछ मोड़ने को कहा। अब कम्बल ने बादशाह को पूरा ढक लिया था। “जहांपनाह, आप अपने पैरों को कम्बल के भीतर ही रखें।”

बीरबल ने बादशाह से निवेदन किया। इस प्रकार समस्या का समाधान हो चुका था। फिर बीरबल बादशाह से आज्ञा लेकर वहाँ से चले गए। बीरबल के जाने के बादशाह बिस्तर से उठते हुए दरबारियों से बोले, “अब तक तो तुम लोग समझ चुके होगे, या अब भी समझाने की जरूरत रह गई है कि मैंने बीरबल को इतना बड़ा पद क्यों दिया है?” बादशाह की बात सुनकर दरबारियों ने अपने सिर शर्म से झुका लिए।

Stupid courtier

Once some of the courtiers of Emperor Akbar gathered and said to him, "Jahanpanah, we are very upset that you do not give us any respect compared to Birbal."

 “Yes, there is no doubt that Birbal is the brightest mind among all the ministers of our government. He deals with all the difficulties in the government with great ease and intelligence.

 That's why I trust Birbal so much." The emperor replied with full confidence. “There is nothing that Jahanpanah, Ne Birbal can do and we cannot.

मूर्ख दरबारी - Murkh darbari

 You just give us a chance, so that we can prove our ability. "Very good," said the king. The idea behind Akbar's consent was that this would let the courtiers know how much water they were in.

 On the same day Akbar called all the courtiers to his private room. At that time he was lying on the bed with a blanket. He said, “I tried a lot, but I am not able to cover myself completely from head to toe with this blanket.

 Now you guys do something so that neither my head nor my feet remain outside the blanket. The courtiers immediately started using their intelligence.

 But it was all in vain! When there is intellect, only then can a solution come out. One stepped forward and pulled the blanket up to the king's head. In such a situation, the head was covered with a blanket, but the paws were out of the blanket.

 The second courtier pulled the blanket up to his feet, but the king's head came out. Finally, giving up, he decided with one vote that it is impossible to cover the emperor completely with this blanket.

 Akbar smiled softly. He called one of his servants and asked them to bring Birbal. When Birbal appeared, the emperor put the same problem in front of him.

 Birbal also inspected the same and found that the blanket was slightly shorter than the length of the emperor's body. But Birbal already had the solution to all the problems.

 He asked Akbar to bend his legs a little. Now the blanket had completely covered the emperor. “Jahanpanah, you keep your feet inside the blanket.”

 Birbal requested the emperor. Thus the problem was solved. Then Birbal left from there after taking permission from the emperor. After Birbal's departure, the king got up from the bed and said to the courtiers, "By now you must have understood, or is there still a need to explain why I have given such a high position to Birbal?" Hearing the king's words, the courtiers bowed their heads in shame.

16 comments:

  1. हमेशा की तरह एक और मनोरंजक कथा।

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  2. मजेदार.. बीरबल का कोई जवाब नही👏👏👏👏

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  3. अच्छी कहानी

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  4. अच्छी कहानी, दिमाग से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं

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  5. बीरबल की बुद्धिमत्ता का कोई जवाब नहीं।

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