नकली साधु
आगरा के पास ही एक साधु अपनी कुटिया बनाकर रहता था। सभी लोग उसे दीन - दुनिया से बेखबर एक संत समझते थे, परंतु वास्तव में वह बहुत लालची था।
एक दिन एक बूढ़ी औरत उसके पास आई और बोली, "बाबा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूं। मेरे पास कुछ सिक्के हैं, जो मेरी जीवन भर की बचत है। यह सिक्के अपने पास रख लीजिए। मैं तीर्थयात्रा से लौट कर इन सिक्कों को वापस ले लूंगी।"
साधु बोला - "मैं तो सांसारिक मोह माया से संन्यास ले चुका हूं। धन से तो मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। तुम स्वयं इन सिक्कों को झोपड़ी के किसी कोने में गाड़ दो।" इतना कहकर साधु ने वापस आंखें ध्यान के लिए बंद कर ली। उस औरत ने सिक्के झोपड़ी के एक कोने में गाड़ दिए और तीर्थ यात्रा पर चली गई।
कुछ महीनों पश्चात जब वह औरत तीर्थयात्रा से आई तो साधु के पास पहुंचकर बोली, "बाबा मैं तीर्थयात्रा से लौट आई हूं। क्या मैं अपने सिक्के वापस ले लूं? मुझे उनके बूते ही तो अपना बुढ़ापा शांति से गुजारना है।"
पाखंडी साधु ने बोला, "तुमने उन सिक्कों को जहां गाड़ा हो वहीं से उन्हें निकाल लो। मैं तो सिक्कों को हाथ लगाता नहीं हूं।" बूढ़ी औरत अंदर जाकर उसी जगह खुदाई करने लगी, जहां उसने अपने सिक्के गाढ़े थे। लेकिन जब उसने अपने सिक्कों को वहां नहीं पाया तो वह भौचक्की रह गई। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन भर की कमाई इस तरह गायब हो जाएगी। उसने तो यह सोच कर उन पैसों को साधु के पास छोड़ा था कि वहां वे सुरक्षित रहेंगे। वह भागती हुई साधु के पास पहुंची और बोली, "साधु बाबा मेरे सिक्के वहां नहीं हैै, जहां मैंने उन्हें गाड़ा था।"
पाखंडी साधु ने झल्लाते हुए बोला, "तो मैं क्या करूं? तुमने खुद अपने सिक्कों को वहां रखा था। मैंने तो उन्हें छुआ तक नहीं।" वह औरत समझ गई कि वह लालची साधु का शिकार बन गई है। तभी उसके मन में बीरबल की मदद लेने का ख्याल आया। बीरबल बहुत ही बुद्धिमान और गरीबों की मदद के लिए जाने जाते थे। वह तुरंत दौड़ी भागी बीरबल के पास जा पहुंची और सारी व्यथा कह सुनाई।
बीरबल ने ध्यान से उसकी पूरी बातें सुनी। कुछ देर सोचकर वह बोले चिंता ना करो मैं तुम्हारे सिक्के दिलवा दूंगा। बस मैं जैसा कहता हूं तुम वैसा ही करते जाओ। फिर उन्होंने उस बुढ़िया को कुछ समझाया। पूरी योजना समझकर बुढ़िया की बांछें खिल गई। अगले दिन बीरबल उस साधु के पास पहुंचकर बोले, हे साधु महाराज! मैंने आपके विषय में बहुत कुछ सुन रखा है। लोगों ने मुझे बताया है कि आपका मोह माया से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। इसलिए मैं आपके पास आया हूं। बात ऐसी है कि मुझे अपने भाई से मिलने जाना है। वहां जाकर लौटने में मुझे 1 महीने का वक्त लगेगा। मैं चाहता हूं कि इतने समय के लिए आप मेरा यह थैला अपने पास रख लें। यह कहते हुए बीरबल ने एक थैला निकाला और उसे उस पाखंडी साधु के सामने ही खोल दिया। उस थैले में कीमती जवाहरात और मोती रखे हुए थे।
इतनी दौलत देखकर पाखंडी साधु की आंखें चमकने लगी। वह मन ही मन सोचने लगा कि बस थोड़ी ही देर में यह सारी दौलत मेरी हो जाएगी। फिर मुझे साधु के वेश में यहां रहने की जरूरत ही नहीं रहेगी। मैं कहीं दूर चला जाऊंगा और सारी जिंदगी मजे से काट लूंगा। तभी उसे वह औरत उसी और आती दिखाई दी। उसने घबराकर सोचा, अगर इस बुढ़िया ने इस आदमी के सामने कुछ बोल दिया तो फिर मेरे हाथ में फूटी कौड़ी भी नहीं आएगी। मुझे इस बुढ़िया के सिक्के देकर इसे भगा देना चाहिए।
उस बुढ़िया के पास पहुंचते ही साधु उसके कुछ कहने से पहले ही बोल उठा, अच्छा हुआ तुम आ गई। मैंने ध्यान करने पर पाया कि तुम्हारे सिक्के झोपड़ी के उत्तर वाले कोने में दबे हुए हैं। तुम जाओ और वहां खोद कर सिक्के निकाल लो। बुढ़िया अंदर जाकर उस जगह पर खोजने लगी। थोड़ी ही देर में उसे वहां सिक्के मिल गए। तभी बीरबल का एक नौकर वहां आ पहुंचा और बोला, मालिक! आपके भाई आए हुए हैं। वह आपसे मुलाकात करना चाहते हैं। वाह यह तो बहुत अच्छा हुआ। अब तो मेरे जाने की कोई जरूरत ही नहीं। यह कहते हुए बीरबल अपने महल की ओर लौट पड़े। इस तरह उस पाखंडी साधु को ना बुढ़िया के सिक्के मिल सके और ना ही बीरबल की दौलत।
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Fake monk
A monk lived near Agra by building his hut. Everyone considered him a saint oblivious to the oppressed world, but in reality he was very greedy.
One day an old woman came to her and said, "Baba, I am going on a pilgrimage. I have some coins, which is my life's savings. Keep these coins with me. I will return these coins from the pilgrimage. Will take it back. "
The monk said - "I have retired from worldly fascination Maya. I have nothing to do with wealth. You should bury these coins in some corner of the hut." Saying so, the monk closed his eyes for meditation. The woman buried the coins in one corner of the hut and went on a pilgrimage.
A few months later, when the woman came from the pilgrimage, she approached the monk and said, "Baba, I have returned from the pilgrimage. Should I take my coins back? I have to pass my old age peacefully on their own."
The hypocritical monk said, "Take those coins from where you are buried. I do not touch the coins." The old woman went inside and started digging in the same place where she had buried her coins. But when she did not find her coins there she was aghast. He did not even think in the dream that the earnings of a lifetime would disappear in this way. He left those money to the monk thinking that he would be safe there. She rushed to the running monk and said, "Sadhu Baba my coins are not where I buried them."
The hypocritical monk said, "What shall I do? You yourself kept your coins there. I did not even touch them." The woman understood that she had become a victim of a greedy monk. Then he thought of taking Birbal's help. Birbal was very intelligent and known for helping the poor. She immediately ran and ran to Birbal and narrated the agony.
Birbal listened carefully to her. After thinking for a while, he said don't worry, I will get your coins. Just keep doing what I say. Then he explained something to the old lady. Understanding the whole plan, the old man's mustache blossomed. The next day Birbal reached to the monk and said, O Sadhu Maharaj! I have heard a lot about you. People have told me that you do not have any relationship with Maya. That's why I have come to you. It is such a thing that I have to visit my brother. It will take me 1 month to go back there. I want you to keep this bag of mine with you for so long. Saying this, Birbal took out a bag and opened it in front of the hypocritical monk. Precious gems and pearls were kept in that bag.
Seeing so much wealth, the hypocritical monk's eyes started shining. He started thinking in his mind that in a short time all this wealth will be mine. Then I will not have to stay here in disguise as a monk. I will go somewhere far away and cut my life with fun. Then he saw the woman coming in the same way. He thought with fear, if this old lady said something in front of this man, then I would not have a single penny in my hand. I should give it away by giving this old lady coins.
As soon as he reached that old lady, the monk said before he said anything, well you have come. After meditating, I found that your coins are buried in the north corner of the hut. You go and dig there and take out the coins. The old lady went inside and started searching at that place. He got coins there in a short time. Then a servant of Birbal came there and said, Master! Your brothers have come. He wants to meet you. Wow, that's very good. Now there is no need for me to go. Saying this, Birbal returned to his palace. In this way, that hypocritical monk could neither get old coins nor Birbal's wealth.
Birbal ki chaturai k kya kahne...
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteबिना दवा के ही इलाज, बीरबल लाजवाब
ReplyDeleteबीरबल का जबाब नहीं।
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteकंप्यूटर दिमाग है बीरबल का
ReplyDeleteबहुत समझदारी से भरी कहानी।
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteMajedaar....birbal k kya kahne..👏👏👏
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteMajedaar.. saap bhi mar jaye lathi bhi na tute..
ReplyDeleteyou are very good writer
ReplyDeleteThe Unlucky Servant Akbar and Birbal stories
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