वेस्सन्तर का त्याग
कहा जाता है कि मात्र आठ वर्ष की अवस्था में वेस्सन्तर ने महान् दान की जब प्रतिज्ञा ली थी तभी पृथ्वी प्रकंपित हो उठी थी। सोलह वर्ष की आयु में वेस्सन्तर का विवाह मद्दी से हुआ। वेस्सन्तर के जालि नामक पुत्र और कण्हजिना नामक पुत्री थी। राजा हरिश्चन्द्र की कथा जेतुन्तर के राजा संजय और रानी फुसती के पुत्र वेस्सन्तर के त्याग की कहानी से संभवत: नकल होने का प्रतीत होती है । इस कहानी से झूठ, अंधविश्वास, अतिरंजित वर्णन और वैदिक चरित्रों की प्रचार को निकालदें तो कहानी का असली सार आप को बौद्धिक ज्ञानसम्पदा का अंस विशेष लगेगा क्योंकि कलिंग बौद्ध सभ्यता की भूखंड रहा और उनकी मातृभाषा ही पाली भाषा है, जिसको अब ओड़िआ कहा जाता है ।
उन्हीं दिनों कलिंग राज्य में भयंकर सूखे का प्रकोप हुआ। लोग अन्न और जल के लिए त्राहि-त्राहि कर उठे। जब वहाँ के लोगों को यह ज्ञात हुआ कि जेतुन्तर राज्य में एक ऐसा सफेद हाथी था जिसकी उपस्थिति मात्र से इच्छानुसार बारिश होती है। इसे कलिंग राज्य के आठ ब्राह्मण जेतुन्तर पहुँचे । जब उन्हें उस हाथी के स्वामी वेस्सन्तर की दान वीरता का ज्ञान हुआ तो वे वेस्सन्तर के पास जा पहुँचे और उन्होंने वेस्सन्तर से हाथी मांगा। दानवीर वेस्सन्तर ने उनकी याचना सहर्ष स्वीकार की। उसने हाथी को कलिंग के ब्राह्मणों को सौंप दिया।
उस शुभ हाथी के दान दिये जाने की खबर से जेतुन्तर की प्रजा अत्यंत खिन्न और क्रुध हुई। लोग दौड़ते हुए राजा के पास पहुँचे। वेस्सन्तर को दण्डित करने को कहा, तब राजा संजय ने वेस्सन्तर को वनवास का आदेश दिया।
वेस्सन्तर के लाख मना करने के बावजूद भी उसकी पत्नी मद्दी भी पति का साथ देने के लिए वनवास को तैयार हुई। अंतत: वेस्सन्तर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ चार घोड़ों के एक रथ पर सवार वन को प्रस्थान कर गया।
मार्ग में उसे चार लोभी ब्राह्मण मिले । उन्होंने वेस्सन्तर से उनके चारों घोड़ों को मांग लिया। वेस्सन्तर ने उन्हें भी अपने घोड़े सहर्ष दे दिये। जब वह स्वयं ही रथ खींचन की तैयारी करने लगा तब उसकी सहायता के लिए चार यक्ष लाल हिरणों के रुप में वहाँ पहुँचे और वेस्सन्तर के रथ को खींचते हुए जंगल की ओर बढ़े। तभी मार्ग में एक ब्राह्मण भिक्षु प्रकट हुआ । उसने वेस्सन्तर से उसका रथ मांग लिया। दान में रथ देकर वेस्सन्तर और मद्दी गोद में बच्चों को लिए पैदल ही वन की ओर बढ़ते रहे। कहा जाता है कि धूप की तपिश से उन्हें बचाने के लिए बादल उनके ऊपर छत्र बन कर चलता रहा । जब उन्हें भूख लगती तो फलों से लदे पेड़ झुक-झुक कर उन्हें फल प्रदान करते । जब उन्हें प्यास लगती तो कमल के जलाशय उनके सामने स्वत: प्रकट हो उनकी प्यास बुझाते । अंतत: उनकी यात्रा की परिसमाप्ति बंकगिरी के वन पहुँच कर हुई जहाँ विश्वकर्मा ने उनके लिए एक कुटिया का निर्माण कर रखा था।
वेस्सन्तर का प्रताप इतना महान् था कि कोई भी जंगली या हिंस्त्र जानवर उनकी कुटिया के आस-पास भटकता भी नहीं था। इस तरह वन में विहार करते, उनके चार महीने खुशी-खुशी निकल गये।
एक दिन जब मद्दी भोजन इकट्ठा करने वन में कहीं दूर चली गयी थी और कुटिया के बाहर बच्चे खेल रहे थे तभी जूजका नाम का एक दरिद्र और वृद्ध ब्राह्मण वेस्सन्तर की कुटिया के पास पहुँचा।
उस वृद्ध को जवान पत्नी का घर के काम-काज आदि कराने के लिए दासों की आवश्यकता थी। अत: उसने वृद्ध जूजका को वेस्सन्तर के बच्चों को दान में लाने के लिए भेजा था; क्योंकि वेस्सन्तर के त्याग की चर्चा सर्वव्याप्त थी। जूजका ने वेस्सन्तर से उसके दोनों बच्चों को दान में मांग लिया और लताओं से उन बच्चों के हाथ-पैर बाँध बड़ी बेदर्दी से मारता-पीटता और घसीटता अपने मार्ग पर बढ़ गया।
देर शाम को जब मद्दी लौटी तब बच्चों को कुटिया में न पाकर रोती-पिटती उसने वेस्सन्तर से उनका पता पूछा किन्तु उत्तर में वेस्सन्तर मौन ही रहा। हाँ, दूसरे दिन वेस्सन्तर ने जूजका ब्राह्मण द्वारा बच्चों के ले जाने की सूचना दी क्योंकि उस समय तक मद्दी बच्चों के वियोग को सहन करने में सक्षम हो चुकी थी। मद्दी ने भी तब पति की दान-शीलता की प्रशंसा की।
वेस्सन्तर के इस महान् त्याग से पृथ्वी प्रकंपित हो उठी और साथ ही सिनेरु पर्वत भी हिल उठा जिससे सक्क (शक्र या इंद्र) भी चौंक उठे; और एक संयासी का भेष बना वेस्सन्तर की दान-परायणता की परीक्षा लेने उनकी कुटिया पर आ धमके। वहाँ उन्होंने वेस्सन्तर से उनकी पत्नी को दान में मांगा। वेस्सन्तर ने मद्दी को भी दान में दे दिया। मद्दी के हृदय से भी आह या क्रोध का कोई शब्द नहीं फूटा।
सक्क के लिए भी वेस्सन्तर का त्याग पूज्य था । उन्होंने तत्काल ही अपना असली रुप धारण कर, उनकी पारिवारिक खुशी लौटाने का वर प्रदान किया और दान-परायण पति-पत्नी से विदा ले अंतर्धान हो गये।
उस समय कलिंग को जाने वाला जूजका लहु-लुहान बच्चों को लेकर रास्ता भूल जेतुन्तर जा पहुँचा। जोतुन्तर के सिपाहियों ने जुजका को शंकित होकर देखा क्योंकि वह किसी भी तरह से बच्चों का अभिभावक या सम्बन्धी प्रतीत नहीं होता था। अत: वे उसे बन्दी बनाकर राजा के पास ले गये। राजा संजय ने तत्काल अपने खून को पहचान लिया और अपने पौत्रों को मुँह मांगे दामों में खरीद लिया। जूजका की किस्मत में आकस्मिक धनागमन का भोग नहीं लिखा था क्योंकि दूसरे दिन ही जरुरत से बहुत ज्यादा भोजन करने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
उसी दिन वह सफेद हाथी भी कलिंग छोड़ वापिस जेतुन्तर आ पहुँचा । राजा अपने सिपाहियों को साथ वंकगिरी जा युवराज वेस्सन्तर और मद्दी को वापिस अपने राज्य ले आया।
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The Sacrifice of Vessantara
The story of King Harishchandra appears to be copied from the story of the renunciation of King Sanjay of Jetuntar and Vesantar, the son of Queen Phusati. If you remove the lies, superstitions, exaggerated narratives and propagation of Vedic characters from this story, then the real essence of the story will make you feel special about the intellectual enlightenment as Kalinga remained the plot of Buddhist civilization and their mother tongue is the Pali language which is now called Odia. .
It is said that at the age of just eight years, Vesantar had made a great donation when the earth had started shaking. He was married to Maddi at the age of sixteen. He had a son named Jali and a daughter named Kanhajina.
In those days, there was an outbreak of severe drought in Kalinga state. People trialled for food and water. When the people there came to know that there was a white elephant in the state of Jettunar, the presence of which only rains at will. It reached Jetunar, the eight Brahmins of the Kalinga state. When he came to know about the heroism of Vesantar, the lord of the elephant, he went to Vesantar and asked Vesantar for an elephant. Danveer Vesantar accepted his plea with pleasure. He handed the elephant to the Brahmins of Kalinga.
The people of Jetuntar became extremely upset and angry with the news of the donation of that auspicious elephant. The people ran to the king. Asked to punish Vesantar, then King Sanjay ordered Vesantar to exile.
Despite Vesantar's refusal, his wife Maddi also agreed to go on exile to support her husband. Eventually Vesantar departed to the forest on a chariot of four horses with his wife and children.
On the way he found four greedy Brahmins. They demanded four of their horses from Vesantar. Vesantara gave him his horse gladly too. When he himself started preparing to pull the chariot, the four Yakshas came there to help him as red deer and pulled towards Vesantar's chariot and went towards the forest. Just then a Brahmin monk appeared on the way. He asks Vesantar for his chariot. By donating the chariot, Vesantar and Maddi continued to walk towards the forest with children on their laps. It is said that to protect them from the heat of the sun, the cloud used to be an umbrella over them. When they felt hungry, the trees laden with fruits would bend themselves fruitfully. When he felt thirsty, the lotus reservoir would automatically appear before him and quench his thirst. Eventually, his journey ended with a forest in Bankagiri where Vishwakarma had built a hut for him.
The brilliance of Vesantar was so great that no wild or limp animal wandered around his hut. Thus, while traveling in the forest, his four months of happiness came out.
One day when Maddi went somewhere far away in the forest to collect food and children were playing outside the hut, then a poor and old Brahmin named Jujka came to Vesantar's hut.
That old man needed slaves to get the young wife to do household chores etc. So he sent old Jujka to donate Vesantar's children; Because the discussion of Vesantar's renunciation was ubiquitous. Jujka asks Vesantar to donate both his children and binds them hands and feet with vines and goes on their way with great impunity.
When Maddi returned in the late evening, when she could not find the children in the hut, she cried and asked Vesantar his address, but Vesantar remained silent in the north. Yes, on the second day, Vesantar reported the child being taken away by the Jujka Brahmin because by that time Maddi had been able to tolerate the disconnection of the children. Maddi also praised her husband's charity.
The earth was shaken by this great sacrifice of Vesantara and at the same time the mountain of Cineru also rose, which also shocked Sakka (Shakra or Indra); And made a disguise as a recluse, to test Vesantar's charity of charity, came to his hut. There he asked Vesantar for a donation to his wife. Vesantar also donated to Maddi. There was no word of sigh or anger from Maddi's heart.
Vesantar was sacrificed for Sakka too. He immediately assumed his true form, provided him with the gift of returning his family happiness, and went into disarray after taking away from charity and husband and wife.
At that time, Jujka, who went to Kalinga, went to Jetunar, forgetting his way with blood and blood. The soldiers of Jotuntar looked at Jujka suspiciously because he did not appear to be the guardian or relative of the children in any way. So they took him captive and took him to the king. King Sanjay immediately recognized his blood and bought his grandchildren for the asking price. In the fate of Jujka, he did not write the enjoyment of casual money because he died on the second day due to too much food.
That same day, the white elephant also left Kalinga and returned to Jetunantar. The king brought his soldiers with them to Wankagiri, brought back the crown prince Vesantar and Maddi to his kingdom.
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ReplyDeletenice story...but ye greedy brahmin kyu hote ha inki stories me...
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ReplyDeleteअच्छी कथा
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