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भारतीय सांस्कृतिक धरोहर (Bhartiya Sanskritik Dharohar)- 12 - सांची का बौद्ध स्तूप (Sanchi Stupa of Buddha)

सांची का बौद्ध स्तूप (Sanchi Stupa of Buddha)

 सांची का बौद्ध विहार महान स्तूप के लिए प्रसिद्ध है। सांची का स्तूप भारत की सबसे प्राचीन संरचनाओं में से एक है। सांची का स्तूप शांति, पवित्रता, धर्म और साहस के प्रतीक माने जाते हैं। सांची का स्तूप बौद्ध धर्म के लोगों के लिए एक पावन तीर्थ के समान है। यहां का मुख्य आकर्षण बौद्ध धर्म और भगवान गौतम बुद्ध से जुड़ी चीजें हैं।

भारत अपनी विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। किसी भी देश की पहचान उस देश के सांस्कृतिक और पुरातात्विक विकास से होती है। भारत में वैदिक काल से लेकर वर्तमान तक अनेक शहरों, मंदिरों और स्थलों की खोज की जा चुकी है, जिसने इस देश के महत्व को विश्व स्तर पर कई गुना बढ़ाया है। 

भारतीय स्मारक अपनी सुंदरता के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय हैं। हमारा प्रत्येक स्मारक अपने अद्भुत वास्तुशिल्प डिजाइन के लिए जाना जाता है। आज इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए जानते हैं "सांची के बौद्ध स्मारक" के बारे में। 

सांची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से 46 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है।यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व से बारहवीं शताब्दी के बीच के काल के हैं। यहां छोटे-बड़े अनेकों स्तूप हैं, जिनमें स्तूप संख्या दो सबसे बड़ा है। यहां चारों ओर की हरियाली अद्भुत है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं।यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। सांची का महान मुख्य स्तूप मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी सदी ईस्वी पूर्व में बनवाया था। इसके केंद्र में एक अर्ध गोलाकार ईट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इस के शिखर पर स्मारक को दिए गए उनके सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। स्तूप यद्यपि पाषाण निर्मित है किंतु काष्ठ की शैली में गढ़े हुए तोरण वर्णनात्मक शिल्पों से परिपूर्ण हैं। इसमें बुद्ध की जीवन की घटनाएं दैनिक जीवन शैली से जोड़कर दिखाई गई हैं। इस प्रकार देखने वालों को बुद्ध का जीवन और उनकी वाणी भली प्रकार से समझ में आता है। इन पाषाण नक्काशिओं में बुद्ध को कभी भी मानव आकृति में नहीं दर्शाया गया है, बल्कि कारीगरों ने उन्हें कहीं घोड़ा (जिस पर वह अपने पिता के घर का त्याग करके गए थे) तो कहीं उनके पद चिन्ह, कहीं बोधि वृक्ष के नीचे का चबूतरा जहां उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी, दर्शाया गया है। बुद्ध के लिए मानव शरीर अति तुच्छ माना गया था।

सांची ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक महत्व वाला एक धार्मिक स्थान है ,जो कि अपने स्तूप, एक चट्टान से बने अशोक स्तंभ, मंदिरों, मठों तथा तीसरी शताब्दी बी.सी. से बारहवीं शताब्दी ए.बी. के बीच लिखे गए शिलालेखों की संपदा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।

सांची के स्तूप अपने प्रवेश द्वार के लिए उल्लेखनीय हैं। इनमें बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्म की बातों को सजावटी चित्रण द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जातक कथा में इन्हें बोधिसत्व के नाम से वर्णित किया गया है, यहां गौतम बुद्ध को संकेतों द्वारा निरूपित किया गया है। जैसे कि पहिया जो उनकी शिक्षाओं को दर्शाता है। सांची की दीवारों के बॉर्डर पर बने चित्रों में यूनानी पहनावा भी दर्शाया गया है। इसमें यूनानी वस्त्र, मुद्रा और वाद्य हैं, जो कि स्तूप के अलंकरण रूप में प्रस्तुत हुए हैं।

 

असंवैधानिक व्यवसाय, पुरातत्ववेत्ताओं और खजाने के शिकारियों ने इस स्थल को खूब ध्वंस किया, जब तक कि सन 1818 में उचित जीर्णोद्धार कार्य नहीं आरंभ हुआ। 1912 से 1919 के बीच ढांचे को वर्तमान स्थिति में लाया गया। आज लगभग 50 स्मारक स्थल सांची के टीले पर ज्ञात हैं जिनमें तीन स्तूप और कई मंदिर भी हैं। यह स्मारक 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित हुआ है।

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Sanchi Stupa of Buddha

 The Buddhist monastery of Sanchi is famous for the great stupa. Sanchi's stupa is one of the oldest structures in India. Sanchi Stupa is considered a symbol of peace, purity, religion and courage. The Stupa at Sanchi is like a holy shrine for Buddhist people. The main attraction here is Buddhism and things related to Lord Gautama Buddha.

 India is famous for its heritage and historical monuments. Any country is identified by the cultural and archaeological development of that country. Many cities, temples and sites have been discovered in India from the Vedic period to the present, which has increased the importance of this country manifold globally.

 Indian monuments are popular worldwide for their beauty. Each of our monuments is known for its amazing architectural design. Today, advancing this sequence, we know about the Buddhist monument of Sanchi.

 Sanchi is a small village situated on the banks of the Betwa River in the raisen district of Madhya Pradesh state, India. It is located 46 km northeast of Bhopal. There are several Buddhist monuments that date from the third century BC to the twelfth century. There are many small and large stupas, of which the number two is the largest. The greenery around here is amazing. Many pylons have also been built around this stupa. These are symbols of love, peace, faith and courage. The great main stupa of Sanchi was originally built by Emperor Ashoka the Great in the third century BC. At its center was a semi-circular brick-built structure, in which some relics of Lord Buddha were kept. On its summit was a parasol symbolizing his honor given to the monument. Although the stupa is stone-built, the pylon arch is complete with descriptive crafts. In it, the life events of the Buddha are shown related to the daily lifestyle. In this way, the viewer can understand the life of Buddha and his speech well. In these stone carvings, Buddha is never depicted in a human figure, but rather by the artisans who gave him a horse on which he had abandoned his father's house, somewhere his footprint, somewhere a platform under the Bodhi tree (where He had attained enlightenment.) It is shown that the human body was considered very insignificant for Buddha.

 Sanchi is a religious place of historical and archaeological importance which is surrounded by its stupas, a rock-cut Ashoka pillar, temples, monasteries and the third century B.C. From the twelfth century A.B. Famous for its wealth of inscriptions written between.

 The stupas at Sanchi are notable for their entrance. These include events taken from the life of Buddha and his past birth through decorative illustrations. In the Jataka Katha he is described as Bodhisattva, here Gautama Buddha is represented by signs. Such as the wheel that reflects their teachings. The pictures on the border of the walls of Sanchi also show the Greek dress. It has Greek textiles, currency and instruments, which are presented in the ornamentation of the stupa.

 Non-commercial archaeologists and treasure hunters demolished the site until proper renovation work started in 1818. Between 1912 and 1919, the structure was brought to its present state. Today about 50 memorial sites are known on the mound of Sanchi, which also has three stupas and several temples. This monument has been declared a World Heritage Site by UNESCO in 1989.

23 comments:

  1. सांची स्तूप के विषय में कॉलेज में पढ़ा था और हमलोग कुशीनगर के बौद्ध स्थल, तोरण द्वार और रामकोला का मंदिर घूमने (history tour)गए थे।
    प्राचीन भारतीय इतिहास को ब्लॉग के माध्यम से प्रचारित प्रसारित करने का सराहनीय प्रयास 👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻

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  2. गौतम बुद्ध के उपदेशों का अनुसरण करती हूं खास तौर पर उनके द्वारा बताए गए मध्यम मार्ग का !! यह स्तंभ क्या कहते हैं ... इसके बारे में जानकारी तुम्हारे ब्लाग के द्वारा मिली ..बहुत-बहुत धन्यवाद👍👍

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  3. aisi jankariyon se awgat krane ke liye dhanywaad...

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  4. Sarahniya prayaas...apne prachin sabhytaon se awgat karane ki...Keep it up..

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  5. सांची के स्तूप के विषय में इतनी विस्तृत जानकारी और वर्णन के साथ ब्लॉग का ये अंश हमें हमारे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राचीन सभ्यता का ज्ञान देता है जो बहुत ही सराहनीय है।
    साधुवाद

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  6. Bharat ki sabse Prachintam Sabhayta...

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  7. अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति से जोड़ने का सराहनीय प्रयास..keep it up

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  8. This comment has been removed by a blog administrator.

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