विरुपाक्ष शिव मंदिर (Virupaksha Shiva Temple)
अपने प्राचीन भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से अवगत कराता आज का लेख।
आज बात करते हैं 500 साल से भी ज्यादा पुरानी विरुपाक्ष शिव मंदिर की। यह भारत की प्राचीन एवं अद्भुत मंदिरों में से एक है। यह भारत में सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक है। इसलिए यह मंदिर देखने पर्यटक लाखों की तादाद में आते हैं।
विरुपाक्ष शिव मंदिर उड़ीसा के कंधमाल जिला के मुख्यालय फूलबाड़ी से 60 किलोमीटर दूर चाकपाड़ा में स्थित है। यह मंदिर भगवान विरुपाक्ष तथा उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित है। विरुपाक्ष मंदिर को पंपापटी नाम से भी जाना जाता है। विरुपाक्ष, भगवान शिव का ही एक रूप है। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यहां का शिवलिंग है, जो दक्षिण की ओर झुका हुआ है। इसी प्रकार यहां के पेड़ों की प्रकृति भी दक्षिण की ओर झुकने की है।
विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य 2 ने करवाया था। विक्रमादित्य2 इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इसने सिंहासन पर बैठते ही चोल, होयसल और वनवासी के राजाओं को परास्त कर दिया था।
तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर बने इस मंदिर का गोपुरम 50 मीटर ऊंचा है। भगवान शिव जी के अलावा इस मंदिर में भुवनेश्वरी और पंपा की मूर्तियां भी बनी हुई है। इस मंदिर के पास छोटे-छोटे और मंदिर हैं जो कि अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। द्रविड़ स्थापत्य शैली में यह मंदिर ईंट और चूने से बना है। यह यूनेस्को की घोषित राष्ट्रीय धरोहरों में शामिल है।
विरुपाक्ष मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण जब शिव जी द्वारा दिए हुए शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो वह यहां पर रुका था। भगवान शिव ने कहा था कि घर पहुंचने से पहले कहीं पर भी इस शिवलिंग को रखना नहीं है। रास्ते में रावण ने एक वृद्ध व्यक्ति से इसे पकड़ने को कहा। पर उन्होंने कमजोरी के कारण इसे जमीन पर रख दिया। तब से वह शिवलिंग यहीं जम गया और लाख कोशिशों के बाद भी हिलाया नहीं जा सका। ना ही दक्षिण की ओर उसके झुकाव को ठीक किया जा सका।
मंदिर की दीवारों पर उस प्रसंग के चित्र बने हुए हैं, जिसमें रावण शिव से पुनः शिवलिंग को उठाने की प्रार्थना कर रहे हैं। और भगवान शिव इनकार कर देते हैं। इन चित्रों के माध्यम से वह पूरा प्रसंग जीवंत हो उठता है। इस दृश्य में ब्रह्मा और विष्णु भी दर्शाए गए हैं। यहां अर्ध शिव और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नृसिंह की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति है। किवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और क्षीरसागर वापस लौट गए।
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Today's article tells about its ancient Indian religious and cultural heritage.
Today let's talk about Virupaksha Shiva temple, more than 500 years old temple. It is one of the ancient and wonderful temples of India. It is one of the most popular historical and religious tourist destinations in India. That's why millions of tourists visit this temple.
Virupaksha Shiva Temple is located in Chakpada, 60 km from Phulbari, the headquarters of Kandhamal district in Odisha. The temple is dedicated to Lord Virupaksha and his consort Devi Pampa. Virupaksha Temple is also known as Pampapati. Virupaksha is a form of Lord Shiva. The main feature of this temple is the Shivling here, which is tilted towards the south. Similarly, the nature of the trees here is also bending towards the south.
Virupaksha Temple was built by the Chalukya ruler Vikramaditya 2 of Kalyani. Vikramaditya 2 was the most powerful ruler of this dynasty. He defeated the kings of Chola, Hoysala and Vanvasi as soon as he sat on the throne.
The gopuram of this temple built on the southern bank of the Tungabhadra River is 50 meters high. Apart from Lord Shiva, idols of Bhuvaneshwari and Pampa are also built in this temple. Near this temple are small temples dedicated to other deities. This temple is made of brick and lime in the Dravidian architectural style. It is included in the declared national heritage of UNESCO.
Virupaksha is a belief associated with the temple. According to the mythology, when Ravana was going to Lanka with the Shiva lingam given by Shiva, he stopped here. Lord Shiva had said that this Shivling is not to be kept anywhere before reaching home. On the way, Ravana asked an old man to hold it. But they put it on the ground due to weakness. Since then the Shivling has settled here and could not be moved even after lakhs of attempts. Nor could his inclination towards the south be corrected.
The walls of the temple have pictures of the incident in which Ravana is praying to Shiva to lift the Shiva lingam again. And Lord Shiva refuses. Through these pictures, the whole episode comes to life. Brahma and Vishnu are also depicted in this scene. There is a 6.7 meter high idol of Narsingh holding the body of half Shiva and half human. Legend has it that Lord Vishnu considered this place too big for his stay and returned to Kshirsagar.
Amazing...must visit place
ReplyDeleteNice knowledge
ReplyDeleteNice one
ReplyDeleteदार्शनिक स्थल है।
ReplyDeleteHamari Prachin Bhartiya Mandir...Sanskritik Virasat....
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteहमारी प्राचीन धार्मिक ओर सांस्कृतिक धरोहर बहुत ही समृद्ध रही है और ऐसे बहुत से मंदिर, महल और भवन विश्व धरोहर घोषित किए गए हैं लेकिन हममें से अधिकतर लोग इससे अनजान हैं। तुम्हारे ब्लॉग के माध्यम से इनके विषय में जानने का मौका मिल रहा है।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteगौरवशाली
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ReplyDeleteNice
ReplyDeleteApni sanskritik dharohar se awgat krane ka achaa prayaas....keep it up..
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteभारतीय प्राचीन विरासत अनमोल है।
ReplyDeleteEpic Information and highly useful
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति अनमोल है, 👍👍👌👌
ReplyDeleteभगवान को भी भारत में ही रहना पसंद था 😆
Beautiful temple...Nice information 👌👌👌
ReplyDeleteParachin bhartiya dharohar se awgat krata post...
ReplyDeleteGazab....jai ho 🙏🙏
ReplyDeletehamari prachin dharmik aur aitihasik dhariharon ke bare me bahut kam logon ko hi pta ha...aapke madhyam se yah ek achi shuruwaat...keep it up
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteAmazing India...
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