महान वानर की कथा
हिमवंत के निर्जन वन में एक महान वानर रहा करता था। वह शीलवान, दयावान और एकांतप्रिय था। वह सदा ही फल - फूल और सात्विक आहार के साथ अपना जीवन यापन करता था।एक दिन एक चरवाहा अपने जानवरों की खोज में रास्ता भूल उसी वन में भटक गया। भूख - प्यास से व्याकुल जब उसने एक पेड़ की छांव में विश्राम करना आरंभ किया, तभी उसकी नजर फलों से लदे एक तिन्दुक के पेड़ पर पड़ी। पलक झपकते ही वह उस पेड़ पर जा चढ़ा। भूख की तड़प में उसने यह भी नहीं देखा कि उस पेड़ की एक जड़ पथरीली पहाड़ी की एक पतली दरार से निकली थी और उसके निकट एक झरना बह रहा था। शीघ्र ही वह फलों से लदी एक शाखा पर पहुंच गया। मगर वह शाखा उसके भार को संभाल ना सकी और टूटकर बहते झरने में जा गिरी। चरवाहा भी उसी प्रताप में जा गिरा। बहते पानी के साथ फिर वह एक ऐसे गड्ढे में जा फंसा जहां की चिकनी चट्टानों को पकड़ कर उसका या किसी भी आदमी का बाहर आ पाना असंभव था।
मृत्यु के भय से निकलती उस आदमी की चीखें उस निर्जन वन में गूंजने लगी। आदमी तो वहां कोई था भी नहीं जो उसकी पुकार सुन सके।
हां, उसी वन में रहने वाले उस वानर ने उसकी क्रंदन को सुना और दौड़ता हुआ वह शीघ्र ही वहां पहुंचा और आनन-फानन में कूदता हुआ उस खड्डे में पहुंचकर उस आदमी को खींचता हुआ बड़ी मुश्किल से झरने के बाहर ले आया। आदमी के बोझ से उसके अंग प्रत्यंग में असहनीय पीड़ा हो रही थी। वह बेहोशी की हालत में था और विश्राम के लिए सोना चाहता था। इसी उद्देश्य से उसने आदमी को अपने पास बैठ रखवाली करने को कहा, क्योंकि उस वन में अनेक हिंसक पशु भी विचरते थे।
जैसे ही वानर गहरी नींद में सोया, वह आदमी उठकर एक बड़ा सा पत्थर उठा लाया क्योंकि वह सोच रहा था कि उस वानर के मांस से ही वह अपना निर्वाह कर सकेगा। ऐसा सोचकर उसने उस पत्थर को वानर के ऊपर पटक दिया। पत्थर वानर पर गिरा तो जरूर मगर इतनी क्षति नहीं पहुंचा सका कि तत्काल ही उसकी मृत्यु हो सके। असह्य पीड़ा से कराहते वानर ने जब अपनी आंखें खोली और अपने ऊपर गिरे पत्थर और उस आदमी की भंगिमा को देखा तो उसने क्षण में ही सारी बातें जान ली। आवाज में उसने उस आदमी को यह कहते हुए धिक्कारा -
"हे मानव तू मर कर दूसरी दुनिया में जाने वाला था। तुझे काल के मुंह से मैंने एक गहरी खाई से तो निकाल दिया लेकिन तू दूसरी खाई में जा गिरा जो और अधिक भयंकर है (यहां वानर का मतलब है पाप रूपी खाई)।धिक्कार है तुम्हारे उस अज्ञानता को जिसने तुम्हें यह क्रूरता और पाप भरा मार्ग दिखलाया है। इस रास्ते पर तुम्हें सिर्फ झूठी आशाओं के छलावे ही मिलेंगे। मुझे इस बात की जरा भी तकलीफ नहीं है कि तुम्हारे इस चोट ने मुझे इतनी पीड़ा पहुंचाई है, लेकिन इस बात का दर्द अत्यंत है कि मेरे ही कारण तुम इस गंदे खाई में गिरे हो, जहां से तुम्हें कोई बाहर नहीं निकाल सकता।"
घायल वानर ने फिर भी उस व्यक्ति को उस वन से बाहर निकाल दिया और सदा के लिए आंखें बंद कर ली।
कालांतर में वह चरवाहा कुष्ठ रोग का शिकार हुआ। तब उसके सगे संबंधी व गांव वाले, घर वाले सभी उसको घर और गांव से निर्वासित कर दिए। कहीं और शरण ना मिलने पर वह फिर से उसी वन में निवास करने लगा। उसके कर्मों की परिणति कुष्ठ रोग में हो चुकी थी, जिससे उसका शरीर गर् रहा था और पश्चाताप की अग्नि में उसका मन। काश उसने वह कुकर्म ना किया होता।
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Legend of the great apes
There used to be a great monkey in the uninhabited forest of Himavant. He was affectionate, compassionate and reclusive. He always lived his life with fruits and flowers and satvic food.
One day a shepherd lost his way in search of his animals and wandered in the same forest. Distraught with hunger and thirst, when he started resting in the shade of a tree, then his eyes fell on a tree with fruit. In the blink of an eye, he climbed on that tree. In the yearning of hunger, he did not even see that a root of that tree had come out of a thin crack of a rocky hill and a waterfall was flowing near it. Soon he reached a branch laden with fruits. But that branch could not handle its load and broke and fell into the flowing waterfall. The shepherd also fell into the same glory. With the running water, he then got trapped in a pit where it was impossible for him or any man to come out by holding the smooth rocks.
The screams of the man emanating from the fear of death began to echo in that deserted forest. There was no man there who could hear his call.
Yes, the monkey living in the same forest heard his cry and running he soon reached there and jumped in a hurry and reached the pit and dragged the man and brought him out of the waterfall with great difficulty. The man's burden was causing unbearable pain in his limb. He was in a state of unconsciousness and wanted to sleep for rest. For this purpose, he asked the man to sit with him and guard, because in that forest many violent animals also wandered.
As the apes slept in deep sleep, the man got up and picked up a big stone because he was thinking that he would be able to sustain himself from the flesh of the monkey. Thinking like this, he slammed that stone on the apes. Surely the stone fell on the apes but could not cause so much damage that it could die instantly. When the monkey groaned with unbearable pain, he opened his eyes and saw the stone falling on him and the fragrance of the man, he knew all the things in a moment. In a voice, he shouted at the man saying -
"O man, you were going to die and go to another world. I threw you out of a deep ditch from the mouth of Kaal but you fell into another ditch which is more terrible ( Here the monkey means a sinful form). Damn your ignorance that has shown you this cruelty and sinful path. On this path, you will only get rid of false hopes. I do not have any trouble at all. This injury has caused me so much pain, but the pain is so great that because of me you have fallen into this dirty abyss from which no one can get you out. "
The injured monkey still drove the man out of the forest and closed his eyes forever.
Later, that shepherd became a victim of leprosy. Then his relatives and villagers, all the housemates, deported him from home and village. When he could not find shelter elsewhere, he again resided in the same forest. His deeds had resulted in leprosy, causing his body to fall and his mind in the fire of repentance. I wish he had not done that misdeed.
मनुष्य को हमेशा सुकर्म करते रहना चाहिए।कुकर्म से बचना चाहिए क्योंकि कुकर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है।बेहतरीन कथा।
ReplyDeleteऐसी कहानियां मानव जाति पर बड़ा ही गहरा आघात करती हैं, यह बात सत्य है कि दुनिया बहुत निर्दयी है पर उससे भी बड़ा सच यह है कि अभी भी बहुत सारे लोग मानवता को जिंदा रखे हुए हैं,#हृदयविदारक कहानी
ReplyDeleteBahut badhiya kahani...isse siksha milti ha k manusya ko hamesha sukarm karna chahiye
ReplyDeletenice
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteVery nice 👍👍
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी
ReplyDelete😔😔😔
ReplyDeletenice
ReplyDelete👍👍
ReplyDeleteघोर कलियुग चल रहा है, अपने कर्मों का फल इसी जीवन में मिलना है अतः अच्छे कर्म ही करना चाहिए| शिक्षाप्रद कहानी
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteसंवेदनशीलता का अभाव मनुष्य कठोर और लालची बना रहा है. यह प्रेरणादायक कहानी इस बात की घंटी है कि दुनिया का सबसे साहसी और बुद्धिमान जीव अब अपने वश में नहीं रहा।
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteHridaywidarak..
ReplyDeleteNice one
ReplyDeletePreranadayak kahani 👍🏻👍🏻
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