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Ayurveda The Synthesis of Yoga and Natural Remedies-29- Waat,Pitt Aur Cough

वात, पित्त और कफ 
वात, पित और कफ को आसान भाषा में समझिए ...

         इस कोरोना के दौर में ज्यादातर लोग काढ़े का सेवन कर रहे हैं। हमारी भारतीय परंपरा भी चाय न होकर काढ़ा ही है। काढ़ा ही हमारे लिए उपयुक्त भी है, चाय की तुलना में, सिर्फ थोड़ा सा ध्यान अपने शरीर की प्रकृति पर देना है। संपूर्ण आयुर्वेद तीन दोषों पर आधारित है - वात, पित्त और कफ।  इसी को त्रिदोष भी कहते हैं। 
वात, पित्त और कफ क्या है - vat pit aur kaf kya ...
        किसी भी मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए उसके शरीर में वात,पित्त और कफ का संतुलन होना अत्यवश्यक है। हर इंसान मूलतः वात,पित्त अथवा कफ में किसी एक प्रवृत्ति का होता है। कोरोना काल में  काढ़ा सभी के लिए लाभदायक है, लेकिन पित्त और वात प्रकृति के लोगों को काढ़ा एक दिन में 20-40 ml से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। कफ प्रकृति वालों को काढ़ा ज्यादा मात्रा में भी फ़ायदा करेगा। वात प्रकृति वालों को एसिडिक चीज़ों से परहेज करना चाहिए। वही पित्त प्रकृति वालों को काली मिर्च और दालचीनी  का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। कफ प्रकृति वालों को ठण्डी चीजों से परहेज करना चाहिए।
            आयुर्वेद के अनुसार हर महीने में पथ्य और अपथ्य का भी विचार करना चाहिए।
वात, पित्त और कफ क्या है - vat pit aur kaf kya ...

, चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, वैशाख (अप्रैल-मई) में तेल, जेठ (मई-जून) में यात्रा, आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, सावन (जौलाई-अगस्त) में हरे साग, भादों (अगस्त-सितम्बर) में दही, क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में मट्ठा, अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा, पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां, माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री, फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है।
वात, पित्त और कफ क्या है - vat pit aur kaf kya ...


            आज का यह ब्लॉग मुख्यतः इस पेपर कटिंग पर आधारित है। इसको पढ़कर लग रहा कि पुराने समय में बुजुर्ग खेल- खेल में कहावतों के माध्यम से कितनी ही ज्ञानप्रद बातें सीखा देते थे, जो ज्यादातर लोगों को ज्ञात थी। आज के इस विज्ञान के युग में हम इन जानकारियों से दूर होते जा रहे। अतः हमें इन कहावतों से सीख लेकर अपने खान - पान की आदतों में सुधार करना चाहिए।
 कब क्या नहीं खाना चाहिए 
चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढे बेल। 
सावन साग, भादो मही, कुवार करेला, कार्तिक दही। 
अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना। 
जो कोई इतने परिहरै, ता घर वैद, पैर नहिं धरै।।

कब क्या खाना चाहिए 
चैत चना, वैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढे खेल, सावन हररे, भादो तिल। 
कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल। 
माघ मास घी - खिचड़ी खाये, फाल्गुन उठ नित प्रातः नहाय।। 

18 comments:

  1. आज का ब्लॉग अद्भुत है।निःसंदेह यदि हम पथ्य और अपथ्य का विचार करके ऋतु अनुसार खाएं तो हम सहज ही स्वस्थ रहेंगे। पुरानी कहावतें प्रायः वैज्ञानिक आधार सम्मत होती हैं।इस ब्लॉग के लिए साधुवाद।

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    1. हां सर, पर आजकल कहां इतना पता होता है, और ना ही जानने की कोशिश करते। लाइफ स्टाइल ही बिल्कुल उल्टा हो रखा है। देर से सोना, देर से जगना,कभी भी कुछ भी खाना....

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  2. Ab Carona khatam.... Good information

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    1. Corona khatam kha hua ha, cases badhte ja rahe hain, be careful.

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  3. रूपा जी प्रणाम, लोगों से सुना हूँ कि रात में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध पीना चाहिए, क्या ये सही है यदि हाँ, तो सितम्बर अक्टूबर में रात को दूध न पिया जाय।

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    1. बिल्कुल सही सुने हैं सर। रात को गर्म दूध पी कर सोने से अच्छी नींद आती। दूध कैल्शियम का अच्छा स्रोत है,परन्तु भादो में दूध पीने से पित्त भड़कता है। तो ये एक महीना दही खाइए।

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    2. अगर फिर भी आदत है और पीना है तो हल्दी डाल कर पिएं।

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  4. Hamare bujurgon ne jo bhi kaha hai uska vaigyanik aadhar hai. Isliye hum sabko uska palan karna chahiye. Bahut sundar jankari, will definitely follow it.

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    1. Purani baatein jo kisse kahaniyon k madhyam se pracharit kiye gye hain,aur bhartiya samaj k teej tyohaar sab scientific hain.

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  5. सुधा पाण्डेयJuly 6, 2020 at 3:45 PM

    समसामयिक बहुत ही बढ़िया ब्लॉग, बिना अपनी शारिरिक प्रकृति जाने कोरोना के भय से ज्यादातर लोग काढ़े का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग कर रहे हैं जो वात पित्त प्रकृति वाले लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है

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    1. हां, इस बात का ख्याल रखना होगा। सारी चीजें सबको फायदा या नुकसान नहीं करती।

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  6. ऐसा करने से कुछ परेशानियों से तो बच ही सकते हैं।

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