त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर "

स्थानीय नाम: लंगूर/फायरे लंगूर
वैज्ञानिक नाम: ट्राक्यपिथेकस फेयरेई

बंदर तो आप लोगों ने भी बहुत देखे होंगे और मैंने भी बहुत देखे हैं, पर आज जिस बंदर की चर्चा इस पोस्ट में करने जा  रही हूं, उसे मैंने तो नहीं देखा आपका पता नहीं। खैर आज बात करते हैं त्रिपुरा के राज्य पशु की।

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

त्रिपुरा के राज्य पशु का नाम "फेयरे लंगूर (Phayre’s langur, Phayre’s leaf monkey, spectacled leaf monkey)" है। फेयरे लंगूर, फेयरे पत्ती बंदर, चश्माधारी पत्ती बंदर, फेयरे के पत्तेदार बंदर को उसके शर्मीले स्वभाव के कारण पहचानना मुश्किल है। वे बांग्लादेश के पूर्वी भागों, चीन के दक्षिण-पश्चिमी भागों, म्यांमार के कुछ हिस्सों और पूर्वोत्तर भारत में पाए जाते हैं। कभी पूर्वोत्तर भारत के कई जंगलों में व्यापक रूप से देखे जाने वाले फेयरे के पत्तेदार बंदर अब त्रिपुरा, असम और मिजोरम में छोटे-छोटे खंडित क्षेत्रों तक ही सीमित रह गए हैं।  ये बंदर सामान्य रूप से पेड़ की ऊंचाई पर ही रहते हैं और बहुत कम ही पानी पीने के लिए नीचे उतरते हैं।

गहरे भूरे रंग के इस लंगूर का चेहरा काला होता है और आंखों और होठों के आसपास एक अलग सफेद धब्बा होता है। निचले हिस्से हल्के सफ़ेद रंग के होते हैं। उनके पंजे लंबे और मज़बूत होते हैं और उंगलियाँ भी लंबी और मज़बूत होती हैं। चेहरे की त्वचा गहरे भूरे से काले रंग की होती है, सिवाय मुंह और आँखों के आस-पास हल्के भूरे रंग के सफ़ेद धब्बे के।

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

नरों में, आँखों के चारों ओर सफ़ेद नेत्र वलय नाक के किनारे के समानांतर होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप चौड़ाई में एक समान काली पट्टी बनती है। मादाओं में आँखों के चारों ओर सफ़ेद नेत्र वलय नाक की ओर अंदर की ओर मुड़ जाते हैं, जिससे काले रंग का त्रिकोणीय आकार बनता है। पूंछ, पैर और सिर के सिरे शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में गहरे होते हैं। आँखों का रंग गहरा भूरा या काला होता है। नाक चपटी और गहरे रंग की होती है। इनके पंजे लंबे और मजबूत होते हैं। मादाओं की जांघों पर एक हल्का धब्बा होता है। मादा एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है, जो लगभग एक साल तक दूध पीता है। गर्भधारण अवधि 200 से 208 दिनों के बीच होती है। फेयर लीफ बंदरों का औसत जीवनकाल 20 वर्ष है। 

यह वृक्षीय प्रजाति मुख्य रूप से कई पौधों, फूलों, विभिन्न फलों और बांस की टहनियों की पत्तियों पर भोजन करती है। यह देखा गया है कि फेयरे का पत्ता बंदर त्रिपुरा में सिपाहीजाला वन्यजीव अभयारण्य और उसके आसपास के रबर के बागानों में भी भोजन करता है। अध्ययनों से पता चला है कि फेयरे के पत्ते बंदर की इतनी बड़ी किस्म के पौधों के फलों और पत्तियों को पचाने की क्षमता के कारण, वे बीज फैलाव और वन पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

खास बात है कि इन बंदरों की प्रजातियों में जन्म ले रहे बंदर भी बदल रहे हैं। केवल कुछ ही चुने हुए ही चश्मे जैसे दिखने वाले चेहरे के साथ जन्म ले रहे हैं। चश्मा बंदरों की प्रजाति शर्मीले और फुर्तीले होती है। लीफ मंकी की आंख के चारों तरफ बड़े गोल सफेद रंग का पैच सा होता है। यह देखने में किसी चश्मे जैसा लगता है, इसलिए इस बंदर को चश्मा बंदर भी कहा जाता है।

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

चश्मा बंदरों का का नाम ब्रिटिश भारतीय सेना के एक अधिकारी सर आर्थर पूर्वस फेयर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस प्रजाति की खोज की थी। वे ओस और बारिश से भीगी हुई पत्तियों को हिलाकर निकले पानी को पीना पसंद करते हैं। इसके अलावा खाने में सिर्फ फल, फूल और पत्तियां ही खाकर जीवित रहते हैं। इनकी चीख अलग तरह की होती है।

फेयरे के पत्तेदार बंदर को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह बताया गया है कि पिछले तीन पीढ़ियों में इस प्रजाति की आबादी में 50% से अधिक की गिरावट आई है, जो आवास की हानि, आवास विखंडन, झूम खेती और शिकार के संयोजन के कारण है। भारत में, फेयरे के पत्तेदार बंदर को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में अनुसूची I, भाग I के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसे CITES के परिशिष्ट II में भी शामिल किया गया है।

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State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"


Local name: Langur/Phayre Langur
Scientific name: Trachypithecus Phayrei

You must have seen many monkeys and I have also seen many, but I don't know if I have seen the monkey that I am going to discuss in this post today. Well, today let's talk about the state animal of Tripura.

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

The name of the state animal of Tripura is "Phayre's langur (Phayre's langur, Phayre's leaf monkey, spectacled leaf monkey)". Phayre's langur, Phayre leaf monkey, spectacled leaf monkey, Phayre's leaf monkey is difficult to identify due to its shy nature. They are found in eastern parts of Bangladesh, southwestern parts of China, parts of Myanmar and northeastern India. Phayre's leaf monkeys, once widely seen in many forests of northeastern India, are now restricted to small fragmented areas in Tripura, Assam and Mizoram. These monkeys normally stay high up in the trees and rarely come down to drink water.

The dark brown coloured langur has a black face with a distinct white patch around the eyes and lips. The lower parts are pale white in colour. Their claws are long and strong and the fingers are also long and strong. The skin of the face is dark brown to black, except for a light brown white patch around the mouth and eyes.

In males, the white eye rings around the eyes are parallel to the edge of the nose, resulting in a uniform black stripe in width. In females, the white eye rings around the eyes turn inwards towards the nose, forming a black triangular shape. The tip of the tail, feet and head are darker than the rest of the body. The colour of the eyes is dark brown or black. The nose is flat and dark in colour. Their claws are long and strong. Females have a light spot on their thighs. The female gives birth to one baby at a time, which drinks milk for about a year. The gestation period is between 200 and 208 days. The average lifespan of Fairy Leaf Monkeys is 20 years.

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

This arboreal species feeds mainly on leaves of many plants, flowers, various fruits and bamboo shoots. It has been observed that Fairy's leaf monkey also feeds in rubber plantations in and around Sipahijala Wildlife Sanctuary in Tripura. Studies have shown that due to the ability of Fairy's leaf monkey to digest the fruits and leaves of such a large variety of plants, they play a very important role in seed dispersal and maintaining the health of the forest ecosystem.

The special thing is that the monkeys being born in the species of these monkeys are also changing. Only a few selected ones are being born with a face that looks like glasses. The species of spectacled monkeys are shy and agile. There is a large round white patch around the eye of the leaf monkey. It looks like a pair of glasses, so this monkey is also called the spectacled monkey.

The spectacled monkeys are named after Sir Arthur Purves Phayre, an officer of the British Indian Army, who discovered this species. They like to drink water obtained by shaking dew and rain-soaked leaves. Apart from this, they survive by eating only fruits, flowers and leaves. Their scream is different.

त्रिपुरा का राज्य पशु " लंगूर/फायरे लंगूर " || State animal of Tripura "Langur/Phayre Langur"

Phayre's leaf monkey is listed as endangered in the International Union for Conservation of Nature (IUCN) Red List. It has been reported that the population of this species has declined by more than 50% in the last three generations, due to a combination of habitat loss, habitat fragmentation, shifting cultivation and hunting. In India, Phayre's leaf monkey is listed as Schedule I, Part I in the Wildlife Protection Act, 1972. It is also included in Appendix II of CITES.

भारतीय राज्य के राजकीय पशुओं की सूची || List of State Animals of India ||

भारतीय राज्य के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..गुल्ली डंडा

 मानसरोवर-1 ..गुल्ली डंडा

गुल्ली-डंडा - मुंशी प्रेमचंद | Gulli Danda by Munshi Premchand

1

हमारे अँग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूँगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ। न लान की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मजे से किसी पेड़ से एक टहनी काट ली, गुल्ली बना ली, और दो आदमी भी आ जाए, तो खेल शुरू हो गया।

गुल्ली-डंडा - मुंशी प्रेमचंद | Gulli Danda by Munshi Premchand

विलायती खेलों में सबसे बड़ा ऐब है कि उसके सामान महँगे होते हैं। जब तक कम-से-कम एक सैकड़ा न खर्च कीजिए, खिलाड़ियों में शुमार ही नहीं हो पाता। यहाँ गुल्ली-डंडा है कि बना हर्र-फिटकरी के चोखा रंग देता है; पर हम अँगरेजी चीजों के पीछे ऐसे दीवाने हो रहे हैं कि अपनी सभी चीजों से अरूचि हो गई। स्कूलों में हरेक लड़के से तीन-चार रूपये सालाना केवल खेलने की फीस ली जाती है। किसी को यह नहीं सूझता कि भारतीय खेल खिलाएँ, जो बिना दाम-कौड़ी के खेले जाते हैं। अँगरेजी खेल उनके लिए हैं, जिनके पास धन है। गरीब लड़कों के सिर क्यों यह व्यसन मढ़ते हो? ठीक है, गुल्ली से आँख फूट जाने का भय रहता है, तो क्या क्रिकेट से सिर फूट जाने, तिल्ली फट जाने, टाँग टूट जाने का भय नहीं रहता! अगर हमारे माथे में गुल्ली का दाग आज तक बना हुआ है, तो हमारे कई दोस्त ऐसे भी हैं, जो थापी को बैसाखी से बदल बैठे। यह अपनी-अपनी रूचि है। मुझे गुल्ली ही सब खेलों से अच्छी लगती है और बचपन की मीठी स्मृतियों में गुल्ली ही सबसे मीठी है।

वह प्रात:काल घर से निकल जाना, वह पेड़ पर चढ़कर टहनियाँ काटना और गुल्ली-डंडे बनाना, वह उत्साह, वह खिलाड़ियों के जमघटे, वह पदना और पदाना, वह लड़ाई-झगड़े, वह सरल स्वभाव, जिससे छूत्-अछूत, अमीर-गरीब का बिल्कुल भेद न रहता था, जिसमें अमीराना चोचलों की, प्रदर्शन की, अभिमान की गुंजाइश ही न थी, यह उसी वक्त भूलेगा जब .... जब ...। घरवाले बिगड़ रहे हैं, पिताजी चौके पर बैठे वेग से रोटियों पर अपना क्रोध उतार रहे हैं, अम्माँ की दौड़ केवल द्वार तक है, लेकिन उनकी विचार-धारा में मेरा अंधकारमय भविष्य टूटी हुई नौका की तरह डगमगा रहा है; और मैं हूँ कि पदाने में मस्त हूँ, न नहाने की सुधि है, न खाने की। गुल्ली है तो जरा-सी, पर उसमें दुनिया-भर की मिठाइयों की मिठास और तमाशों का आनंद भरा हुआ है।

मेरे हमजोलियों में एक लड़का गया नाम का था। मुझसे दो-तीन साल बड़ा होगा। दुबला, बंदरों की-सी लम्बी-लम्बी, पतली-पतली उँगलियाँ, बंदरों की-सी चपलता, वही झल्लाहट। गुल्ली कैसी ही हो, पर इस तरह लपकता था, जैसे छिपकली कीड़ों पर लपकती है। मालूम नहीं, उसके माँ-बाप थे या नहीं, कहाँ रहता था, क्या खाता था; पर था हमारे गुल्ली-क्लब का चैम्पियन। जिसकी तरफ वह आ जाए, उसकी जीत निश्चित थी। हम सब उसे दूर से आते देख, उसका दौड़कर स्वागत करते थे और अपना गोइयाँ बना लेते थे।

एक दिन मैं और गया दो ही खेल रहे थे। वह पदा रहा था। मैं पद रहा था, मगर कुछ विचित्र बात है कि पदाने में हम दिन-भर मस्त रह सकते है; पदना एक मिनट का भी अखरता है। मैंने गला छुड़ाने के लिए सब चालें चलीं, जो ऐसे अवसर पर शास्त्र-विहित न होने पर भी क्षम्य हैं, लेकिन गया अपना दाँव लिए बगैर मेरा पिंड न छोड़ता था।

मैं घर की ओर भागा। अनुनय-विनय का कोई असर न हुआ था।

गया ने मुझे दौड़कर पकड़ लिया और डंडा तानकर बोला-मेरा दाँव देकर जाओ। पदाया तो बड़े बहादुर बनके, पदने के बेर क्यों भागे जाते हो।

'तुम दिन-भर पदाओ तो मैं दिन-भर पदता रहूँ?'

'हाँ, तुम्हें दिन-भर पदना पड़ेगा।'

'न खाने जाऊँ, न पीने जाऊँ?'

'हाँ! मेरा दाँव दिये बिना कहीं नहीं जा सकते।'

'मैं तुम्हारा गुलाम हूँ?'

'हाँ, मेरे गुलाम हो।'

'मैं घर जाता हूँ, देखूँ मेरा क्या कर लेते हो!'

'घर कैसे जाओगे; कोई दिल्लगी है। दाँव दिया है, दाँव लेंगे।'

'अच्छा, कल मैंने अमरूद खिलाया था। वह लौटा दो।

'वह तो पेट में चला गया।'

'निकालो पेट से। तुमने क्यों खाया मेरा अमरूद?'

'अमरूद तुमने दिया, तब मैंने खाया। मैं तुमसे माँगने न गया था।'

'जब तक मेरा अमरूद न दोगे, मैं दाँव न दूँगा।'

मैं समझता था, न्याय मेरी ओर है। आखिर मैंने किसी स्वार्थ से ही उसे अमरूद खिलाया होगा। कौन नि:स्वार्थ किसी के साथ सलूक करता है। भिक्षा तक तो स्वार्थ के लिए देते हैं। जब गया ने अमरूद खाया, तो फिर उसे मुझसे दाँव लेने का क्या अधिकार है? रिश्वत देकर तो लोग खून पचा जाते हैं, यह मेरा अमरूद यों ही हजम कर जाएगा? अमरूद पैसे के पाँचवाले थे, जो गया के बाप को भी नसीब न होंगे। यह सरासर अन्याय था।

गया ने मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा-मेरा दाँव देकर जाओ, अमरूद-समरूद मैं नहीं जानता।

मुझे न्याय का बल था। वह अन्याय पर डटा हुआ था। मैं हाथ छुड़ाकर भागना चाहता था। वह मुझे जाने न देता! मैंने उसे गाली दी, उसने उससे कड़ी गाली दी, और गाली-ही नहीं, एक चाँटा जमा दिया। मैंने उसे दाँत काट लिया। उसने मेरी पीठ पर डंडा जमा दिया। मैं रोने लगा! गया मेरे इस अस्त्र का मुकाबला न कर सका। मैंने तुरन्त आँसू पोंछ डाले, डंडे की चोट भूल गया और हँसता हुआ घर जा पहुँचा! मैं थानेदार का लड़का एक नीच जात के लौंडे के हाथों पिट गया, यह मुझे उस समय भी अपमानजनक मालूम हआ; लेकिन घर में किसी से शिकायत न की।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

2

उन्हीं दिनों पिताजी का वहाँ से तबादला हो गया। नई दुनिया देखने की खुशी में ऐसा फूला कि अपने हमजोलियों से बिछुड़ जाने का बिलकुल दु:ख न हुआ। पिताजी दु:खी थे। वह बड़ी आमदनी की जगह थी। अम्माँजी भी दु:खी थीं यहाँ सब चीज सस्ती थीं, और मुहल्ले की स्त्रियों से घराव-सा हो गया था, लेकिन मैं सारे खुशी के फूला न समाता था। लड़कों में जीट उड़ा रहा था, वहाँ ऐसे घर थोड़े ही होते हैं। ऐसे-ऐसे ऊँचे घर हैं कि आसमान से बातें करते हैं। वहाँ के अँगरेजी स्कूल में कोई मास्टर लड़कों को पीटे, तो उसे जेहल हो जाए। मेरे मित्रों की फैली हुई आँखें और चकित मुद्रा बतला रही थी कि मुझसे उनकी निगाह में कितनी स्पर्द्घा हो रही थी! मानो कह रहे थे-तू भागवान हो भाई, जाओ। हमें तो इसी ऊजड़ ग्राम में जीना भी है और मरना भी।

बीस साल गुजर गए। मैंने इंजीनियरी पास की और उसी जिले का दौरा करता हुआ उसी कस्बे में पहुँचा और डाकबँगले में ठहरा। उस स्थान को देखते ही इतनी मधुर बाल-स्मृतियाँ हृदय में जाग उठीं कि मैंने छड़ी उठाई और कस्बे की सैर करने निकला। आँखें किसी प्यासे पथिक की भाँति बचपन के उन क्रीड़ा-स्थलों को देखने के लिए व्याकुल हो रही थीं; पर उस परिचित नाम के सिवा वहाँ और कुछ परिचित न था। जहाँ खँडहर था, वहाँ पक्के मकान खड़े थे। जहाँ बरगद का पुराना पेड़ था, वहाँ अब एक सुन्दर बगीचा था। स्थान की काया पलट हो गई थी। अगर उसके नाम और स्थिति का ज्ञान न होता, तो मैं उसे पहचान भी न सकता। बचपन की संचित और अमर स्मृतियाँ बाँहें खोले अपने उन पुराने मित्रों से गले मिलने को अधीर हो रही थीं; मगर वह दुनिया बदल गई थी। ऐसा जी होता था कि उस धरती से लिपटकर रोऊँ और कहूँ, तुम मुझे भूल गई! मैं तो अब भी तुम्हारा वही रूप देखना चाहता हूँ।

सहसा एक खुली जगह में मैंने दो-तीन लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखा। एक क्षण के लिए मैं अपने को बिल्कुल भूल गया। भूल गया कि मैं एक ऊँचा अफसर हूँ, साहबी ठाठ में, रौब और अधिकार के आवरण में।

जाकर एक लड़के से पूछा-क्यों बेटे, यहाँ कोई गया नाम का आदमी रहता है?

एक लड़के ने गुल्ली-डंडा समेटकर सहमे हुए स्वर में कहा-कौन गया? गया चमार?

मैंने यों ही कहा-हाँ-हाँ वही। गया नाम का कोई आदमी है तो? शायद वही हो।

'हाँ, है तो।'

'जरा उसे बुला सकते हो?'

लड़का दौड़ता हुआ गया और एक क्षण में एक पाँच हाथ के काले देव को साथ लिए आता दिखाई दिया। मैं दूर से ही पहचान गया। उसकी ओर लपकना चाहता था कि उसके गले लिपट जाऊँ, पर कुछ सोचकर रह गया। बोला-कहो गया, मुझे पहचानते हो?

गया ने झुककर सलाम किया-हाँ मालिक, भला पहचानूँगा क्यों नहीं! आप मजे में हो?

'बहुत मजे में। तुम अपनी कहो।'

'डिप्टी साहब का साईस हूँ।'

'मतई, मोहन, दुर्गा सब कहाँ हैं? कुछ खबर है?

'मतई तो मर गया, दुर्गा और मोहन दोनों डाकिया हो गए हैं। आप?'

'मैं तो जिले का इंजीनियर हूँ।'

'सरकार तो पहले ही बड़े जहीन थे?

'अब कभी गुल्ली-डंडा खेलते हो?'

गया ने मेरी ओर प्रश्न-भरी ऑंखों से देखा-अब गुल्ली-डंडा क्या खेलूँगा सरकार, अब तो धंधे से छुट्टी नहीं मिलती।

'आओ, आज हम-तुम खेलें। तुम पदाना, हम पदेंगे। तुम्हारा एक दाँव हमारे ऊपर है। वह आज ले लो।'

गया बड़ी मुश्किल से राजी हुआ। वह ठहरा टके का मजदूर, मैं एक बड़ा अफसर। हमारा और उसका क्या जोड़? बेचारा झेंप रहा था। लेकिन मुझे भी कुछ कम झेंप न थी; इसलिए नहीं कि मैं गया के साथ खेलने जा रहा था, बल्कि इसलिए कि लोग इस खेल को अजूबा समझकर इसका तमाशा बना लेंगे और अच्छी-खासी भीड़ लग जाएगी। उस भीड़ में वह आनंद कहाँ रहेगा, पर खेले बगैर तो रहा नहीं जाता। आखिर निश्चय हुआ कि दोनों जने बस्ती से बहुत दूर खेलेंगे और बचपन की उस मिठाई को खूब रस ले-लेकर खाऍंगे। मैं गया को लेकर डाकबँगले पर आया और मोटर में बैठकर दोनों मैदान की ओर चले। साथ में एक कुल्हाड़ी ले ली। मैं गंभीर भाव धारण किए हुए था, लेकिन गया इसे अभी तक मजाक ही समझ रहा था। फिर भी उसके मुख पर उत्सुकता या आनंद का कोई चिह्न न था। शायद वह हम दोनों में जो अंतर हो गया था, यही सोचने में मगन था।

मैंने पूछा-तुम्हें कभी हमारी याद आती थी गया? सच कहना।

गया झेंपता हुआ बोला-मैं आपको याद करता हजूर, किस लायक हूँ। भाग में आपके साथ कुछ दिन खेलना बदा था; नहीं मेरी क्या गिनती?

मैंने कुछ उदास होकर कहा-लेकिन मुझे तो बराबर, तुम्हारी याद आती थी। तुम्हारा वह डंडा, जो तुमने तानकर जमाया था, याद है न?

गया ने पछताते हुए कहा-वह लड़कपन था सरकार, उसकी याद न दिलाओ।

'वाह! वह मेरे बाल-जीवन की सबसे रसीली याद है। तुम्हारे उस डंडे में जो रस था, वह तो अब न आदर-सम्मान में पाता हूँ, न धन में।'

इतनी देर में हम बस्ती से कोई तीन मील निकल आये। चारों तरफ सन्नाटा है। पश्चिम ओर कोसों तक भीमताल फैला हुआ है, जहाँ आकर हम किसी समय कमल पुष्प तोड़ ले जाते थे और उसके झूमक बनाकर कानों में डाल लेते थे। जेठ की संध्या केसर में डूबी चली आ रही है। मैं लपककर एक पेड़ पर चढ़ गया और एक टहनी काट लाया। चटपट गुल्ली-डंडा बन गया।

खेल शुरू हो गया। मैंने गुच्ची में गुल्ली रखकर उछाली। गुल्ली गया के सामने से निकल गई। उसने हाथ लपकाया, जैसे मछली पकड़ रहा हो। गुल्ली उसके पीछे जाकर गिरी। यह वही गया है, जिसके हाथों में गुल्ली जैसे आप ही आकर बैठ जाती थी। वह दाहिने-बाएँ कहीं हो, गुल्ली उसकी हथेली में ही पहुँचती थी। जैसे गुल्लियों पर वशीकरण डाल देता हो। नयी गुल्ली, पुरानी गुल्ली, छोटी गुल्ली, बड़ी गुल्ली, नोकदार गुल्ली, सपाट गुल्ली सभी उससे मिल जाती थी। जैसे उसके हाथों में कोई चुम्बक हो, गुल्लियों को खींच लेता हो; लेकिन आज गुल्ली को उससे वह प्रेम नहीं रहा। फिर तो मैंने पदाना शुरू किया। मैं तरह-तरह की धाँधलियाँ कर रहा था। अभ्यास की कसर बेईमानी से पूरी कर रहा था। हुच जाने पर भी डंडा खेले जाता था। हालाँकि शास्त्र के अनुसार गया की बारी आनी चाहिए थी। गुल्ली पर ओछी चोट पड़ती और वह जरा दूर पर गिर पड़ती, तो मैं झपटकर उसे खुद उठा लेता और दोबारा टाँड़ लगाता। गया यह सारी बे-कायदगियाँ देख रहा था; पर कुछ न बोलता था, जैसे उसे वह सब कायदे-कानून भूल गए। उसका निशाना कितना अचूक था। गुल्ली उसके हाथ से निकलकर टन से डंडे से आकर लगती थी। उसके हाथ से छूटकर उसका काम था डंडे से टकरा जाना, लेकिन आज वह गुल्ली डंडे में लगती ही नहीं! कभी दाहिने जाती है, कभी बाएँ, कभी आगे, कभी पीछे।

आध घंटे पदाने के बाद एक गुल्ली डंडे में आ लगी। मैंने धाँधली की-गुल्ली डंडे में नहीं लगी। बिल्कुल पास से गई; लेकिन लगी नहीं।

गया ने किसी प्रकार का असंतोष प्रकट नहीं किया।

'न लगी होगी।'

'डंडे में लगती तो क्या मैं बेईमानी करता?'

'नहीं भैया, तुम भला बेईमानी करोगे?'

बचपन में मजाल था कि मैं ऐसा घपला करके जीता बचता! यही गया गर्दन पर चढ़ बैठता, लेकिन आज मैं उसे कितनी आसानी से धोखा दिए चला जाता था। गधा है! सारी बातें भूल गया।

सहसा गुल्ली फिर डंडे से लगी और इतनी जोर से लगी, जैसे बन्दूक छूटी हो। इस प्रमाण के सामने अब किसी तरह की धाँधली करने का साहस मुझे इस वक्त भी न हो सका, लेकिन क्यों न एक बार सबको झूठ बताने की चेष्टा करूँ? मेरा हरज की क्या है। मान गया तो वाह-वाह, नहीं दो-चार हाथ पदना ही तो पड़ेगा। अँधेरा का बहाना करके जल्दी से छुड़ा लूँगा। फिर कौन दाँव देने आता है।

गया ने विजय के उल्लास में कहा-लग गई, लग गई। टन से बोली।

मैंने अनजान बनने की चेष्टा करके कहा-तुमने लगते देखा? मैंने तो नहीं देखा।

'टन से बोली है सरकार!'

'और जो किसी ईंट से टकरा गई हो?

मेरे मुख से यह वाक्य उस समय कैसे निकला, इसका मुझे खुद आश्चर्य है। इस सत्य को झुठलाना वैसा ही था, जैसे दिन को रात बताना। हम दोनों ने गुल्ली को डंडे में जोर से लगते देखा था; लेकिन गया ने मेरा कथन स्वीकार कर लिया।

'हाँ, किसी ईंट में ही लगी होगी। डंडे में लगती तो इतनी आवाज न आती।'

मैंने फिर पदाना शुरू कर दिया; लेकिन इतनी प्रत्यक्ष धाँधली कर लेने के बाद गया की सरलता पर मुझे दया आने लगी; इसीलिए जब तीसरी बार गुल्ली डंडे में लगी, तो मैंने बड़ी उदारता से दाँव देना तय कर लिया।

गया ने कहा-अब तो अँधेरा हो गया है भैया, कल पर रखो।

मैंने सोचा, कल बहुत-सा समय होगा, यह न जाने कितनी देर पदाए, इसलिए इसी वक्त मुआमला साफ कर लेना अच्छा होगा।

'नहीं, नहीं। अभी बहुत उजाला है। तुम अपना दाँव ले लो।'

'गुल्ली सूझेगी नहीं।'

'कुछ परवाह नहीं।'

गया ने पदाना शुरू किया; पर उसे अब बिलकुल अभ्यास न था। उसने दो बार टाँड लगाने का इरादा किया; पर दोनों ही बार हुच गया। एक मिनिट से कम में वह दाँव खो बैठा। मैंने अपनी हृदय की विशालता का परिचय दिया।

'एक दाँव और खेल लो। तुम तो पहले ही हाथ में हुच गए।'

'नहीं भैया, अब अँधेरा हो गया।'

'तुम्हारा अभ्यास छूट गया। कभी खेलते नहीं?'

'खेलने का समय कहाँ मिलता है भैया!'

हम दोनों मोटर पर जा बैठे और चिराग जलते-जलते पड़ाव पर पहुँच गए। गया चलते-चलते बोला-कल यहाँ गुल्ली-डंडा होगा। सभी पुराने खिलाड़ी खेलेंगे। तुम भी आओगे? जब तुम्हें फुरसत हो, तभी खिलाड़ियों को बुलाऊँ।

मैंने शाम का समय दिया और दूसरे दिन मैच देखने गया। कोई दस-दस आदमियों की मंडली थी। कई मेरे लड़कपन के साथी निकले! अधिकांश युवक थे, जिन्हें मैं पहचान न सका। खेल शुरू हुआ। मैं मोटर पर बैठा-बैठा तमाशा देखने लगा। आज गया का खेल, उसका नैपुण्य देखकर मैं चकित हो गया। टाँड़ लगाता, तो गुल्ली आसमान से बातें करती। कल की-सी वह झिझक, वह हिचकिचाहट, वह बेदिली आज न थी। लड़कपन में जो बात थी, आज उसने प्रौढ़ता प्राप्त कर ली थी। कहीं कल इसने मुझे इस तरह पदाया होता, तो मैं जरूर रोने लगता। उसके डंडे की चोट खाकर गुल्ली दो सौ गज की खबर लाती थी।

पदने वालों में एक युवक ने कुछ धाँधली की। उसने अपने विचार में गुल्ली लपक ली थी। गया का कहना था-गुल्ली जमीन मे लगकर उछली थी। इस पर दोनों में ताल ठोकने की नौबत आई है। युवक दब गया। गया का तमतमाया हुआ चेहरा देखकर डर गया। अगर वह दब न जाता, तो जरूर मार-पीट हो जाती।

मैं खेल में न था; पर दूसरों के इस खेल में मुझे वही लड़कपन का आनन्द आ रहा था, जब हम सब कुछ भूलकर खेल में मस्त हो जाते थे। अब मुझे मालूम हुआ कि कल गया ने मेरे साथ खेला नहीं, केवल खेलने का बहाना किया। उसने मुझे दया का पात्र समझा। मैंने धाँधली की, बेईमानी की, पर उसे जरा भी क्रोध न आया। इसलिए कि वह खेल न रहा था, मुझे खेला रहा था, मेरा मन रख रहा था। वह मुझे पदाकर मेरा कचूमर नहीं निकालना चाहता था। मैं अब अफसर हूँ। यह अफसरी मेरे और उसके बीच में दीवार बन गई है। मैं अब उसका लिहाज पा सकता हूँ, अदब पा सकता हूँ, साहचर्य नहीं पा सकता। लड़कपन था, तब मैं उसका समकक्ष था। यह पद पाकर अब मैं केवल उसकी दया योग्य हूँ। वह मुझे अपना जोड़ नहीं समझता। वह बड़ा हो गया है, मैं छोटा हो गया हूँ।

समुद्र मंथन कहाँ हुआ था...??

समुद्र मंथन कहाँ हुआ था...??

हिंदू धर्म ग्रंथों (भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण) के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद त्रिदेव अर्थात- भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के निर्देशन में क्षीरसागर को मथा गया था। यह मंथन देवताओं और दानवों द्वारा किया गया था। वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन किया गया, जिसके एक छोर पर सभी देवता गण उपस्थित थे तो वहीं दूसरी ओर दानवों थे। इस समुंद्र मंथन के दौरान 14 प्रकार के रत्न उत्पन्न हुए थे। यह समुन्द्र मंथन हुआ कहाँ था?

समुद्र मंथन कहाँ हुआ था...??

यदि स्थूल दृष्टि से देखें तो शायद अरब सागर में कहीं, लेकिन ऐसा नहीं है। किसी भी घटना के सही स्थान का पता करने हेतु उस समय की भौगोलिक स्थिति का पता होना भी जरूरी है। ग्रंथों में गहरे घुसेंगे तो पता चलेगा कि बिहार, बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा आदि समुद्र मंथन के समय जलमग्न थे। उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से भी उस समय थे नहीं।

समुद्रमंथन का समय भागीरथी के प्रादुर्भाव से भी बहुत पहले का है। उस समय हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बहुत थोड़ी ही भूमि का निर्माण कर पाई थी। नदियाँ ही भूमि का निर्माण करती हैं। इस राष्ट्र के पिता पर्वत हैं तो माताएँ नदियाँ। अभी भी सबसे प्रसिद्ध डेल्टा सुंदरवन इसी निर्माण का प्रमाण है।

कथा है कि जब समुद्रमंथन की बात उठी तो मंदार पर्वत की मथानी तो बना ली गई। कूर्मावतार ने आधार भी दे दिया, लेकिन मथानी की रस्सी कहाँ से लाएँ। उस समय सर्वसम्मति बनी कि हिमालय की कंदराओं में आराम कर रहे नागराज वासुकि से ही यह काम करवाया जा सकता है। उनसे बड़ी रस्सी जैसी कोई वस्तु तीनों लोक और चौदहों भुवन में नहीं हैं।

अब समस्या थी कि उन्हें लाए कौन? वासुकि जितने बड़े थे उनको लाने की समस्या भी उतनी ही बड़ी थी। फिर क्या था कैलाशपति वासुकि को अपनी कलाई में लपेट कर ले आये। जब मंथन प्रारम्भ हुआ तो नागराज को पीड़ा होने लगी। इधर से देवता खींचें, उधर से असुर खींचें, बीच में मंदराचल चुभे। क्षुब्ध होकर नागराज ने फुफकारना शुरू कर दिया। अब सोचिये कि जिस नाग को एक पर्वत के चारों तरफ लपेट दिया गया, वह कितना बड़ा होगा। नागराज के फुफकारने से समस्त सृष्टि में जहर फैलने लगा। हाहाकार मच गया।

यह देखकर देवता और असुर भाग खड़े हुए। सभी देवता गण परेशान थे कि आखिर इस हलाहल को कौन पियेगा?विष्णु भगवान ने भोले बाबा की तरफ देखा कि बाबा आप ही पी सकते हैं। जो भोले होते हैं, उनके हिस्से ही जहर आता है। खैर भगवान भोले नाथ ने पहले जहर पिया और फिर वासुकि का उपचार किया। तब तक तो धन्वंतरि निकले भी नहीं थे। उनसे भी पुराने वैद्य हैं वैद्यनाथ। धन्वंतरि समुंद्र मंथन से ही प्रकट हुए थे। 

भगवान शिव ने हलाहल पी तो लिया, लेकिन उसका ताप असह्य हो गया। वहीँ एक स्थान देखकर बैठ गए। मंथन शुरू हो गया। मंथन से निकले चन्द्रमा के एक टुकड़े को तोड़ कर निकाला गया और उसे भगवान के सर के ठीक ऊपर स्थापित किया गया। उस टुकड़े से निरंतर शीतल जल महादेव के सिर पर गिरता रहता है।

यह क्षेत्र कहाँ है जहाँ मंथन हुआ था?

बिहार के बाँका जिले में स्थित मंदार पर्वत के आसपास का क्षेत्र ही मंथन का स्थान है। आज भी झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा और बिहार की भूमि में खनिजों का प्रचुर भण्डार है। सबका केंद्र मंदार पर्वत ही है। मंदार में अब भी समुद्र मंथन से निकली निधियाँ छिपी हुई हैं।

भोलेनाथ नागराज को पहुँचाने के बाद जिस स्थान पर बैठे थे, वह स्थान है वासुकीनाथ। जिस स्थान पर नागराज का उपचार करने व विष ग्रहण करने के बाद बैठे थे, वह स्थान है वैद्यनाथ धाम, देवघर में। चाँद का वह टुकड़ा जो उनके सर पर लगाया गया था, आज भी लगा है और उससे निरंतर जल टपकता रहता है। वह टुकड़ा भोलेनाथ के ठीक ऊपर मंदिर के शिखर के नीचे लगा है - चंद्रकांत मणि...

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

बोरोबुदुर मंदिर

बोरोबुदुर मंदिर (Borobudur Temple) परिसर दुनिया के सबसे महान बौद्ध स्मारकों में से एक है। इंडोनेशिया के जावा में है विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर, करीब 1 हजार साल पहले 49 फीट ऊंची चट्टान पर इसे 8वीं और 9वीं शताब्दी ईस्वी में सियालेंद्र राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। यह स्मारक इंडोनेशिया के जावा द्वीप के केंद्र में, मध्य जावा के दक्षिणी भाग में केदु घाटी में स्थित है।

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

9 मंजिला है ये बौद्ध मंदिर

इसमें भगवान बुद्ध की 504 मूर्तियां हैं। बोरोबुदुर को एक बड़े स्तूप की तरह बनाया गया है। इसका स्वरूप पिरामिड से प्रेरित है। इसका मूल आधार वर्गाकार है, जिसकी हर भुजा करीब 118 मीटर की है। इसमें नौ मंजिलें हैं। निचली 6 मंजिलें चोकोर और ऊपरी तीन गोलाकार हैं। ऊपरी मंजिल के बीच में एक बड़े स्तूप के चारों ओर घंटी के आकार के 72 छोटे स्तूप हैं। जिनमें नक्काशी किए गए छोटे-छोटे छेद बने हैं। बुद्ध की मूर्तियां इन छोटे-छोटे छेद से बने पॉट के अंदर स्थापित हैं।

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

इसके स्तूप में जावा और उसके पड़ोस के द्वीपों पर शासन करने वाले भारत के राजाओं की वास्तुशिल्पीय परिकल्पना का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर घंटे के आकार का विशाल स्तूप है, इसके शिलापट्टों पर बुद्ध की अनेक मूर्तियां बनी हुई हैं। इसका निर्माण 9वीं सदी में शैलेन्द्र राजवंश के कार्यकाल में हुआ। स्मारक में बहुत सारी सीढ़ियां व्यवस्थित रूप से बनी हुई हैं। गलियारों में 1460 शिलाओं पर बुद्ध से जुड़ी कथाओं का वर्णन किया गया है।

सालों तक ज्वालामुखी की राख में दवा रहा था दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

इस मंदिर के बारे में सबसे खास बात यह है कि यह सालों तक ज्वालामुखी की राख और जंगलों के बीच ढका रहा था। इस मंदिर को 1970 के दशक में यूनेस्को की मदद से पुनर्स्थापित किया गया था। इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चण्डी के नाम से पुकारा जाता है, इसलिए बोरोबुदुर मंदिर को भी कई बार चण्डी बोरोबुदुर भी कहा जाता है। इस मंदिर को विश्व का सबसे बड़ा और महानतम बौद्ध मंदिर माना जाता है।

यह मंदिर खोजे जाने के पहले कई वर्षों तक ज्वालामुखी राख के नीचे दबा रहा था। सालों तक राख और जंगल के बीच छिपे हुए इस मंदिर की खोज एक अंग्रेज लेफ्टिनेंट गवर्नर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स ने सन 1814 में थी। रैफल्स उन दिनों सेमारंग के दौर पर गए हुए थे, तब उन्हें बुमिसेगोरो गांव के पास एक जंगल में एक बड़े स्मारक के बारे में जानकारी मिली। सन 1834 में इस मंदिर को जमीन से बाहर निकाला गया। रैफल्स ने डच इंजिनियर एचसी कॉर्नेलियस को इस मंदिर को जमीन से बाहर निकालने का काम सौंपा था। कॉर्नेलियस के बाद डच प्रशासक हार्टमान ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया और साल 1834 में इस मंदिर को पूरी तरह से जमीन से बाहर निकाल लिया गया और साल 1842 में इसके प्रमुख स्तूप को खोजा गया था।

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

पुनर्स्थापित करने में यूनेस्को ने की मदद

मंदिर में कुल 2672 पैनल और बुद्ध की 504 मूर्तियां मौजूद हैं। इस प्रमुख स्तूप की ऊंचाई 115 फीट है। बोरोबुदुर मंदिर के निर्माण में लगभग 20 लाख क्यूबिक फीट ग्रे ज्वालामुखी पत्थर का उपयोग किया गया था। साल 1973 में इस मंदिर के पुनर्स्थापना में यूनेस्को ने मदद की। यूनेस्को ने मंदिर के पुनर्स्थापना में वित्तीय मदद भी की थी, जिसके बाद बोरोबुदुर मंदिर का फिर से पूजा स्थल और तीर्थस्थल के रूप में उपयोग किया जाने लगा।

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

साल में एक बार होती है पूजा 

साल में एक बार मई या जून में पूर्णिमा को इंडोनेशिया के बौद्ध नागरिक यहां पूजा पाठ करते हैं। इस दिन को इंडोनेशिया में बौद्ध धर्मावलंबी गौतम के जन्म, निधन और बुद्ध शाक्यमुनि के रूप में ज्ञान प्राप्त करने के उपलक्ष में वैशाख के तौर पर मनाते हैं। यह दिन इंडोनेशिया में राष्ट्रीय छुट्टी के रूप में मनाया जाता है।

English Translate 

Borobudur Temple

The Borobudur temple complex is one of the greatest Buddhist monuments in the world. The world's largest Buddhist temple is in Java, Indonesia. It was built about 1 thousand years ago on a 49 feet high rock during the reign of the Siyalendra dynasty in the 8th and 9th centuries AD. This monument is located in the Kedu Valley in the southern part of Central Java, in the center of the island of Java, Indonesia.

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

This Buddhist temple is 9 storeys high

It has 504 statues of Lord Buddha. Borobudur is built like a large stupa. Its form is inspired by the pyramid. Its basic base is square, with each side being about 118 meters. It has nine floors. The lower 6 floors are square and the upper three are circular. There are 72 small bell-shaped stupas around a large stupa in the middle of the upper floor. In which small holes are made. The idols of Buddha are installed inside the pot made of these small holes.

Its stupa is an excellent example of the architectural imagination of the Indian kings who ruled Java and its neighboring islands. There is a huge bell-shaped stupa on its topmost part, many statues of Buddha are carved on its stone slabs. It was built in the 9th century during the reign of the Shailendra dynasty. There are many stairs built systematically in the monument. Stories related to Buddha have been described on 1460 stones in the corridors.

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

The world's largest Buddhist temple was buried in volcanic ash for years

The most special thing about this temple is that it was covered in volcanic ash and forests for years. This temple was restored with the help of UNESCO in the 1970s. Ancient temples in Indonesia are called Chandi, so Borobudur temple is also sometimes called Chandi Borobudur. This temple is considered to be the largest and greatest Buddhist temple in the world.

This temple was buried under volcanic ash for many years before it was discovered. This temple, hidden between ash and forest for years, was discovered by an English lieutenant governor Thomas Stamford Raffles in 1814. Raffles was on a tour of Semarang in those days, when he got information about a large monument in a forest near Bumisegoro village. This temple was taken out of the ground in 1834. Raffles had assigned the task of taking this temple out of the ground to Dutch engineer HC Cornelius. After Cornelius, Dutch administrator Hartmann took his work forward and in the year 1834 this temple was completely taken out of the ground and in the year 1842 its main stupa was discovered.

बोरोबुदुर मंदिर || Borobudur Temple || विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मंदिर

UNESCO helped in restoring it

There are a total of 2672 panels and 504 statues of Buddha in the temple. The height of this main stupa is 115 feet. About 20 lakh cubic feet of grey volcanic stone was used in the construction of Borobudur temple. UNESCO helped in the restoration of this temple in the year 1973. UNESCO also provided financial help in the restoration of the temple, after which Borobudur temple started being used again as a place of worship and pilgrimage.

Worship is done once a year

Once a year on the full moon in May or June, Buddhist citizens of Indonesia worship here. Buddhists in Indonesia celebrate this day as Vaisakha to commemorate Gautam's birth, death and attaining enlightenment as Buddha Shakyamuni. This day is celebrated as a national holiday in Indonesia.

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

कटहल / Kathal / JackFruit

हिन्दी बोलचाल का नाम - कटहल या फनस 
वानस्पतिक नाम : औनतिआरिस टोक्सिकारीआ (Antiaris Toxicaria)

कटहल (JackFruit) एक ऐसा फल है, जिसका उपयोग कच्चा होने पर सब्जी के रूप में और पका होने पर फल के रूप में किया जाता है। कटहल (JackFruit) के पकने पर उसका गुदा निकालकर खाया जाता है।

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

कटहल क्या है?

कटहल एक उष्णकटिबंधीय फल है, जो मुख्य रूप से दक्षिण पश्चिम भारत में होता है। इस फल का वैज्ञानिक नाम आर्टोकापर्स हेटेरोफाइल्स है। कटहल आकार में छोटे और बड़े दोनों प्रकार के होते हैं। इस फल की बाहरी परत नुकीली होती है। कटहल को दुनिया के चुनिंदा सबसे बड़े और भारी फलों में गिना जाता है। यह फल पकने पर बहुत ही मीठा और स्वादिष्ट लगता है। खासकर भारत में इस फल से सब्जी, अचार और कई तरह के जायकेदार व्यंजन बनाए जाते हैं। यह फल सिर्फ पेट भरने तक और सब्जी तक सीमित नहीं है, अपितु आपको यह जानकर हैरानी होगी की कटहल के औषधीय गुण शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होते हैं।

जानते हैं कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में

कटहल में छिपा है सेहत का भंडार दिल को रखे जवान और डायबिटीज को भी करे दूर। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ए, सी, बी6, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम आदि होते हैं। यह बात सभी जानते हैं कि कटहल (JackFruit) की सब्जी और फल का सेवन किया जाता है, परंतु यह कई बीमारियों के लिए भी फायदेमंद है, यह कुछ लोग ही जानते हैं।
कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में

कटहल के बीजों में जैकलीन नामक तत्व पाया जाता है, जो शरीर की इम्युनिटी को बेहतर करने में सहायक होता है। साथ ही इसमें विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होती है, जो रोग प्रतिरोधकता को बढ़ाती है।

  • सिर दर्द में

सिर दर्द को कम करने के लिए कटहल के जड़ को पीसकर छानकर उसका रस निकाल कर एक दो बूंद नाक में डालने से सिर के दर्द में आराम होता है।

  • नकसीर (नाक से खून निकलना) में

गर्मी में ठंड में नाक से खून निकलने पर 8-10 कटहल के बीज को काढ़ा बनाकर पीने से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है।

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

  • भूख बढ़ाने में

लंबी बीमारी के बाद जब भूख ना लगने की समस्या आती है, तब भूख को बढ़ाने के लिए 10 मिलीलीटर कटहल फल के रस में 125 मिलीग्राम काली मिर्च का चूर्ण तथा शर्करा मिलाकर सेवन करने से भूख अच्छी लगती है।

  • अतिसार या दस्त लगने पर

अगर मसालेदार और ज्यादा तला भुना खाना खाने के बाद दस्त की समस्या आती है, तो 10 से 20 मिलीलीटर कटहल के जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से दस्त ठीक हो जाते हैं।

  • हैजा की समस्या 

अक्सर खाने में संक्रमण हो जाने पर हैजा की बीमारी हो जाती है। ऐसे में 1-2 कटहल के फूलों को पानी में पीसकर पिलाने से विसूचिका या हैजा ठीक होने में सहायता मिलती है।

  • दर्द से आराम

भागदौड़ भरी जिंदगी में दर्द भी एक आम समस्या हो गई है। कटहल का फल दर्द निवारक जैसा काम करता है। इसके लिए कटहल के बीच के गूदे से काढ़ा बना लें और 10-20 मिलीलीटर मात्रा में सेवन करने से दर्द से आराम मिलता है।

  • खुजली से आराम

अक्सर किसी दवा के कारण या बीमारी के कारण लाल लाल दाने या रैशेज निकल जाते हैं। इससे राहत पाने के लिए कटहल के पत्ते का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोने से खुजली या रैशेज जैसे त्वचा संबंधी समस्याओं से आराम मिलता है।

  • फोड़ा सुखाने के लिए

फोड़ों के दर्द से राहत पाने या जल्दी सुखाने के लिए कटहल के पत्तों का रस का लेप करने से आराम मिलता है। यहां तक कि कटहल के पत्तों का रस सूजन और खुजली में भी फायदेमंद होता है।

  • त्वचा रोग (डर्माटाइटिस) में 

आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में तरह-तरह के त्वचा संबंधी रोग होते हैं। कटहल के पत्तों को तेल में भूनकर बचे हुए सरसों के तेल में मिलाकर लेप करने से त्वचा के रोगों को ठीक करने में सहायता मिलती है। 

  • सूजन कम करने में

सूजन को कम करने के लिए भी कटहल का इस्तेमाल किया जाता है तथा फल से जो दूध मिलता है, उसको सूजन वाले स्थान पर लगाने से तथा वर्ण पर लगाने से लाभ होता है। कटहल के फल तथा वृक्ष से प्राप्त दूध को सिरके में मिलाकर लेप करने से ग्रंथि के सूजन तथा घाव के फूट जाने पर लाभ मिलता है।

  • कमजोरी दूर करने में

कभी-कभी ज्यादा दिनों तक बीमार होने के कारण कमजोरी हो जाती है ऐसे में तीन-चार चम्मच कटहल के फल का रस आधा कप दूध में मिलाकर सेवन करने से थकावट महसूस होना कम होता है और कमजोरी दूर होती है।

  • एनीमिया दूर करने में

कटहल कषाय एवं पित्त शामक होने के कारण तथा इसमें प्रचुर मात्रा में आयरन होने के कारण यह एनीमिया को ठीक करने में मदद करता है। इसमें ज्यादातर इसकी पत्तियों और टहनी का उपयोग किया जाता है।

  • अस्थमा में 

अस्थमा जैसी बीमारियों में भी कटहल का उपयोग किया जाता है। अस्थमा में कटहल की जड़ का प्रयोग किया जाता है।

  • थायराइड में

कटहल में कॉपर नामक तत्व होता है, जो कि हारमोंस बनाने में सहयोगी होता है। इसकी उपस्थिति के कारण कटहल थायराइड जैसी गंभीर समस्याओं में भी लाभदायक होता है।

  • हड्डियों के लिए

हड्डियों की मजबूती के लिए कटहल बहुत फायदेमंद है। कटहल में कैल्शियम पाया जाता है, जो हड्डियों की मजबूती और विकास के लिए आवश्यक तत्व है। शरीर कैल्शियम नहीं बनाता है, तो इसकी आपूर्ति कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों द्वारा की जाती है। अतः स्वस्थ हड्डियों के लिए अपने आहार में कटहल का सेवन को शामिल करें।

  • आंखों के लिए गुणकारी

आंखों से संबंधित समस्या पित्त के बढ़ जाने के कारण होती है और कटहल में पित्त शामक गुण पाया जाता है। अतः इसके सेवन से आंखों में होने वाली समस्या को दूर रखने में मदद मिलता है।

  • वजन कम करने में

कटहल में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है इससे पाचन बेहतर होता है और वह वजन कम करने में सहायक होता है।

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

  • कब्ज की समस्या

कटहल में पाया जाने वाला फाइबर तत्व कब्ज को दूर करने में सहायक होता है। फाइबर तत्व पेट संबंधी समस्याओं जैसे कब्ज, डायरिया व गैस आदि को ठीक करते हैं।

कटहल का उपयोगी भाग कौन सा है?

आयुर्वेद में कटहल के बीज, फल, पत्ता, तना एवं छाल का औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

कटहल में पाए जाने वाले पोषक तत्व(Nutritional Value of JackFruit)


कटहल में पाए जाने वाले पोषक तत्व(Nutritional Value of JackFruit)

कटहल का नुकसान

  •  कटहल के फल का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। इसका अत्यधिक मात्रा में सेवन से अपच की समस्या हो सकती है
  •  खाली पेट कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • ऐसा कहा जाता है कि कटहल सेवन के बाद पान खाने से शरीर पर  विष जैसा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कटहल सेवन के बाद पान  बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए।

English Translate

 Kathal / JackFruit

Jackfruit is a fruit that is used as a vegetable when raw and as a fruit when ripe. When jackfruit is ripe, its anus is eaten, which is rich in vitamins A, C, B6, calcium, potassium, iron, folic acid, magnesium etc. Everyone knows that the vegetables and fruits of jackfruit are consumed, but it is also beneficial for many diseases, only few people know this.

What is Jackfruit?

Jackfruit is a tropical fruit that grows mainly in Southwest India. The scientific name of this fruit is Artocapres heterophiles. Jackfruits are both small and large in size. The outer layer of this fruit is sharp. Jackfruit is counted among the largest and heaviest fruits selected in the world. This fruit is very sweet and tasty when ripe. Especially in India, vegetables, pickles and many delicious dishes are made from this fruit. This fruit is not limited to just filling the stomach and vegetables, but you will be surprised to know that the medicinal properties of jackfruit are very beneficial for the body.


Know about the uses, advantages, disadvantages and medicinal properties of jackfruit

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

  • Boosting Immunity

Jackfruit seeds contain an element called Jacqueline, which is helpful in improving the immunity of the body. It is also rich in vitamin C, which increases immunity.

  • In Headache

To reduce headache, grind the root of jackfruit, filter it, extract its juice and put a couple of drops in the nose, it provides relief in headache.

  • In Nosebleeding

Taking 8-10 jackfruit seeds as a decoction stops bleeding from the nose.

  • To Increase Appetite

After a long illness, when there is a problem of loss of appetite, to increase appetite, take 125 mg black pepper powder and sugar in 10 ml jackfruit juice, it ends hunger.

  • Diarrhea

If the problem of diarrhea comes after eating spicy and fried food, then taking 10 to 20 ml decoction of jackfruit root and taking it, it cures diarrhea.

  • The Problem of Cholera

Cholera disease often occurs when there is an infection in the food. In such a situation, grinding 1-2 jackfruit flowers in water and drinking it helps in curing cholera.

  • Pain Relief

Pain has also become a common problem in the hectic life. Jackfruit fruit acts as a pain reliever. For this, make a decoction from the pulp between jackfruit and take 10-20 ml quantity, it provides relief from pain.

  • Relief from Itching

Often due to some medicine or disease, a red rash or rash comes out. To get relief from this, making a decoction of jackfruit leaves and washing the affected area provides relief from skin problems like itching or rashes.

  • Boils

To get relief from the pain of boils or to dry it quickly, applying juice of jackfruit leaves provides relief. Even the juice of jackfruit leaves is beneficial in inflammation and itching.

  • In Skin Disease (dermatitis)

Various types of skin diseases occur in today's polluted environment. Roasting jackfruit leaves in oil and applying it to the remaining mustard oil helps in curing skin diseases.

  • To Reduce Inflammation

Jackfruit is also used to reduce swelling and the milk obtained from the fruit is beneficial by applying it on the inflamed area and applying it on the complexion. Mixing the fruit of jackfruit and the milk obtained from the tree with vinegar and applying it provides relief in swelling of the gland and cracking of the wound.

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

  • Weakness

Sometimes weakness occurs due to being sick for a long time, in such a situation, taking three-four spoon juice of jackfruit fruit mixed with half a cup of milk, reduces the feeling of tiredness and removes weakness.

  • To cure Anemia

Jackfruit being astringent and bile sedative and being rich in iron, it helps in curing anemia. Its leaves and twigs are mostly used in this.

  • In Asthma

Jackfruit is also used in diseases like asthma. Jackfruit root is used in asthma.

  • In Thyroid

Jackfruit contains an element called copper, which is helpful in making hormones. Due to its presence, jackfruit is also beneficial in serious problems like thyroid.

  • For Bones

Jackfruit is very beneficial for the strength of bones. Calcium is found in jackfruit, which is an essential element for the strength and development of bones. The body does not make calcium, so it is supplied by calcium-rich foods. Therefore, include the consumption of jackfruit in your diet for healthy bones.

  • Good for Eyes

Problems related to eyes are due to the increase of pitta and jackfruit has sedative properties. Therefore, its consumption helps in keeping the problem of eyes away.

  • In Losing Weight

Jackfruit is rich in fiber, which improves digestion and helps in reducing weight.

  • Constipation Problem

The fiber element found in jackfruit is helpful in removing constipation. Fiber elements cure stomach related problems like constipation, diarrhea and gas etc.

कटहल के उपयोग, फायदे, नुकसान और औषधीय गुण

What is the useful part of jackfruit?

The seeds, fruit, leaves, stem and bark of jackfruit are used as medicine in Ayurveda.

Side Effects of Jackfruit

  •  Jackfruit fruit should not be consumed in excess. Consuming it in excessive amounts can cause indigestion.
  •   Jackfruit should not be consumed on an empty stomach.
  • It is said that consuming betel leaves after consuming jackfruit has a poison-like effect on the body. Therefore, after consuming jackfruit, paan should not be eaten at all.