शिव मंगल सिंह 'सुमन'
उपनाम : 'सुमन'
जन्म : 5 अगस्त 1915 | उन्नाव, उत्तर प्रदेश
निधन :27 नवंबर 2002 | उज्जैन, मध्य प्रदेश
आधुनिक हिंदी साहित्य में शिवमंगल सिंह 'सुमन' एक बहुचर्चित नाम है। वे मुख्यतः एक प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद् थे। कवि-लेखक शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के झगरपुर गाँव में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अपना शोध कार्य पूरा किया।
एक कवि-लेखक होने के साथ ही वह ‘विक्रम विश्वविद्यालय’, उज्जैन के कुलपति, ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’, लखनऊ के उपाध्यक्ष और ‘भारतीय विश्वविद्यालय संघ’, नई दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। देशप्रेम, स्वतंत्रता, अन्याय के प्रति विद्रोह और निराशा के प्रति आक्रामकता उनकी कविताओं के मुख्य विषय रहे हैं।
भारत सरकार ने शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए शिवमंगल सिंह 'सुमन' को पहले वर्ष 1974 में ‘पद्म श्री’ और वर्ष 1999 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। इसके साथ ही उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘भारत भारती पुरस्कार’ से भी पुरस्कृत किया जा चुका है। उनकी कुछ रचनाओं को बीए और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए भी शिवमंगल सिंह 'सुमन' का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
प्रसिद्धनारायण चौबे के अनुसार, ‘‘अदम्य साहस, ओज और तेजस्विता एक ओर, दूसरी ओर प्रेम, करुणा और रागमयता, तीसरी ओर प्रकृति का निर्मल दृश्यावलोकन, चौथी ओर दलित वर्ग की विकृति और व्यंग्यधर्मी स्वर यानी प्रगतिशील लता की प्रवृत्ति-शिवमंगल सिंह ‘सुमन की कविताओं की यही मुख्य विशेषताएँ हैं।’’ उनका प्रधान स्वर मानवतावादी था। शिल्प की दृष्टि से उनकी कविताओं में दुरुहता नहीं है, भाव अत्यंत सरल हैं। राजनीतिक कविताओं में व्यंग्य को लक्षित किया जा सकता है। वह अच्छे वक्ता और कवि-सम्मेलनों के सफल गायक कवि रहे।
उनका पहला कविता-संग्रह ‘हिल्लोल’ 1939 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद ‘जीवन के गान’, ‘युग का मोल’, ‘प्रलय-सृजन’, ‘विश्वास बढ़ता ही गया’, ‘पर आँखें नहीं भरीं’, ‘विंध्य-हिमालय’, ‘मिट्टी की बारात’, ‘वाणी की व्यथा’, ‘कटे अँगूठों की बंदनवारें’ संग्रह आए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ‘प्रकृति पुरुष कालिदास’ नाटक, ‘महादेवी की काव्य साधना’ और ‘गीति काव्य: उद्यम और विकास’ समीक्षा ग्रंथ भी लिखे हैं। ‘सुमन समग्र’ में उनकी कृतियों को संकलित किया गया है।
उन्हें ‘मिट्टी की बारात’ संग्रह के लिए 1974 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 1974 में पद्मश्री और 1999 में पद्मभूषण से नवाज़ा।
डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण वह था जब उनकी आँखों पर पट्टी बांधकर उन्हे एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। जब आँख की पट्टी खोली गई तो वह हतप्रभ थे। उनके समक्ष स्वतंत्रता संग्राम के महायोद्धा चंद्रशेखर आज़ाद खड़े थे। आज़ाद ने उनसे प्रश्न किया था, क्या यह रिवाल्वर दिल्ली ले जा सकते हो। सुमन जी ने बेहिचक प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। आज़ादी के दीवानों के लिए काम करने के आरोप में उनके विरुद्ध वारंट ज़ारी हुआ। सरल स्वभाव के सुमन जी सदैव अपने प्रशंसकों से कहा करते थे, मैं विद्वान नहीं बन पाया। विद्वता की देहरी भर छू पाया हूँ। प्राध्यापक होने के साथ प्रशासनिक कार्यों के दबाव ने मुझे विद्वान बनने से रोक दिया।
प्रमुख कृतियाँ, काव्य संग्रह
जीवन के गान
प्रलय-सृजन
विश्वास बढ़ता ही गया
पर आँखें नहीं भरीं
विंध्य हिमालय
मिट्टी की बारात
वाणी की व्यथा
कटे अगूठों की वंदनवारें
गद्य रचनाएँ
महादेवी की काव्य साधना
गीति काव्य: उद्यम और विकास
नाटक
प्रकृति पुरुष कालिदास
सम्मान और पुरस्कार
1993 में 'मिट्टी की बारात' के लिए 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित।
1974 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित।
1999 में पद्म भूषण
1958 में देवा पुरस्कार
1974 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
1993 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्मान
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Shiv Mangal Singh 'Suman'
Nickname: 'Suman'
Born: 5 August 1915 | Unnao, Uttar Pradesh
Died: 27 November 2002 | Ujjain, Madhya Pradesh
Shiv Mangal Singh 'Suman' is a well-known name in modern Hindi literature. He was mainly a famous poet and educationist. Poet-writer Shiv Mangal Singh 'Suman' was born on 5 August 1915 in Jhagarpur village of Unnao district of Uttar Pradesh. He completed his research work from Banaras Hindu University. Apart from being a poet-writer, he has served as the Vice Chancellor of 'Vikram University', Ujjain, Vice President of 'Uttar Pradesh Hindi Institute', Lucknow and President of 'Association of Indian Universities', New Delhi. Patriotism, freedom, rebellion against injustice and aggression against despair have been the main themes of his poems.
The Government of India honoured Shivmangal Singh 'Suman' with 'Padma Shri' in 1974 and 'Padma Bhushan' in 1999 for his special contribution in the field of education and literature. Along with this, he has also been awarded with 'Soviet Land Nehru Award', 'Sahitya Akademi Award' and 'Bharat Bharti Award'. Some of his works are taught in various universities in the syllabus of BA and MA. Many research papers have been written on his works. At the same time, many researchers have obtained PhD degree on his literature.
Along with this, it becomes necessary for the students appearing for the UGC/NET examination in Hindi subject to study the biography of Shivmangal Singh 'Suman' and his works.
According to Prasiddhanarayan Choubey, “Indomitable courage, vigour and brilliance on one hand, love, compassion and melody on the other, pure visualization of nature on the third, distortion of the Dalit class on the fourth and satirical voice i.e. the tendency of progressive Lata – these are the main characteristics of Shivmangal Singh Suman’s poems.” His main tone was humanist. From the point of view of craft, there is no complexity in his poems, the feelings are very simple. Satire can be targeted in political poems. He was a good speaker and a successful singer poet in poet-conferences.
His first poetry collection ‘Hillol’ was published in 1939. After that came the collections ‘Jeevan ke Gaan’, ‘Yug ka Mol’, ‘Pralaya-Srujan’, ‘Vishwas Badhta Hi Gaya’, ‘Par Aankhon Nahin Bhari’, ‘Vindhya-Himalaya’, ‘Mitti ki Baraat’, ‘Vaani ki Vyatha’, ‘Kate Angootho ki Bandanwaare’. Apart from this, he has also written the play 'Prakriti Purush Kalidas', 'Mahadevi Ki Kavya Sadhna' and 'Geeti Kavya: Udyam Aur Vikas' review books. His works have been compiled in 'Suman Samagra'.
He was awarded the 1974 Sahitya Akademi Award for the collection 'Mitti Ki Baraat'. The Government of India awarded him the Padma Shri in 1974 and the Padma Bhushan in 1999.
The most important moment in Dr. Shivmangal Singh 'Suman's' life was when he was blindfolded and taken to an unknown place. When the blindfold was removed, he was stunned. Freedom fighter Chandrashekhar Azad was standing in front of him. Azad had asked him, can you take this revolver to Delhi. Suman ji accepted the proposal without hesitation. A warrant was issued against him on the charge of working for freedom fighters. Simple-natured Suman ji always used to tell his fans, I could not become a scholar. I could only touch the threshold of scholarship. Being a professor and the pressure of administrative work prevented me from becoming a scholar. Major works, poetry collections.
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