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मीलों जहां न पता खुशी का

मीलों जहां न पता खुशी का..

Rupa Oos ki ek Boond
होके मायूस ना यूं शाम से ढलते रहिए,
जिंदगी भोर है, सूरज से निकलते रहिए..

मैं पीड़ा का राजकुंवर हूं तुम शहज़ादी रूप नगर की

हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहां पर होगा ?


मीलों जहां न पता खुशी का

मैं उस आंगन का इकलौता,

तुम उस घर की कली जहां नित

होंठ करें गीतों का न्योता,

मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी

मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहां पर होगा ?


मैं पीड़ा का...

मेरा कुर्ता सिला दुखों ने

बदनामी ने काज निकाले

तुम जो आंचल ओढ़े उसमें

नभ ने सब तारे जड़ डाले

मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा

मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहां पर होगा ?


मैं पीड़ा का...

मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी

उम्र आंसुओं की बढ़ जाए

तुम आई इस हेतु कि मेंहदी

रोज़ नए कंगन जड़वाए,

तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी

जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहां पर होगा ?


मैं पीड़ा का...

इतना दानी नहीं समय जो

हर गमले में फूल खिला दे,

इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी

हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,

मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ

जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहां पर होगा ?

मैं पीड़ा का...


गोपालदास "नीरज"

Rupa Oos ki ek Boond
एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जाएंगे
धीर-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये...

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 15 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. पांच लिंकों के आनन्द में इस रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  2. अति सुन्दर

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  3. Sunday special for a reason

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  4. बहुत ही सुंदर लिखा है । धन्यवाद ।
    प्रिय हिन्दी

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  5. ये गीत मैंने नीरज जी से मंच पर कई बार सुना है । बहुत सुन्दर रचना है।

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  6. वाह! बहुत सुंदर सृजन।

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