सावन के अमरूद
मेरी लिखी कहानी "सावन के अमरूद" ,प्रतिष्ठित समाचार पत्र "शहर समता" में दिनाँक 19 जुलाई को प्रकाशित हुई है। संपादक मण्डल, शहर समता का हार्दिक आभार।
प्रस्तुत कहानी में दो युवा दिलों की नोक झोंक तथा उमड़ रहे जज्बातों को प्रदर्शित किया गया है। कहानी अखबार के पेज संख्या 4 पर प्रकाशित हुई है।
आप सभी इसे पढ़ें और अपनी राय से मुझे अवश्य अवगत कराएं।
"जिंदगी में जब तक कुछ हसीन न हो, कुछ खूबसूरत न हो तो जीने का आनंद ही नहीं आता। दो पल की जिंदगी मिली है, खुशियों को मिल- बांटकर ही जीना चाहिए।"
प्रिया के मन में उमड़ रहे इन्हीं विचारों की श्रृंखला को उसके मोबाइल की कर्कश घंटी ने तोड़ा। "हलो"
" हां प्रिया,सुनील बोल रहा हूँ।"
"नाम बताने की जरूरत नहीं है जनाब, आपकी आवाज ही काफी है।" प्रिया उत्साह से बोली।
"यार, गांव से पंजाब जा रहा हूं। लखनऊ में ट्रेन आने का और दूसरी ट्रेन के बीच तीन घंटे का अंतराल है। मैं क्या करूंगा?"
"तो मुझसे क्या चाहते हो?"
"तुम हमेशा ही हमको सजेशन देती हो और इतिहास गवाह है तुम्हारे सजेशन मैं हमेशा मानता हूँ।"
"अच्छा जी, तो ये बात है। मेरा सजेशन चाहिए। ऐसा करो स्टेशन पर बैठकर कोई मूवी निपटा लो।"
" मूवी तो मैं ट्रेन में भी निपटा लूंगा। यहां का कुछ बताओ। आ सको तो स्टेशन पर आ जाओ। घंटे बातें करेंगे। तीन घंटे कॉल पर बात तो करोगी नहीं। सामने बैठी रहोगी तो तुम्हें देखते हुए ही तीन घंटे कब बीत जाएंगे पता भी नहीं लगेगा।"
"वाह जी वाह, बटरिंग करना तो कोई तुमसे सीखे। अब अगर तुम यह सोच रहे हो कि तुम बोलोगे तो मैं दौड़ती हुई आ जाऊंगी तो तुम गलत सोच रहे हो।"
"सोच तो ऐसा ही रहा हूं और मैं गलत भी नहीं सोच रहा हूँ। बहुत दिन बीत गए तुम्हारा दीदार किये। ऑफिस से मेरे लिए एक दिन की छुट्टी ले लो और इसमें बुराई ही क्या है?"
"लेकिन घर पर मम्मी....."
"किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है। तुम रोज़ ऑफिस जाती हो, आज ऑफिस के बजाय इधर आ जाओ। अब और बातें ना बनाओ, आधे घंटे में पहुंच जाऊंगा चुपचाप चली आओ।"
"अच्छा ठीक है देखती हूं।"
"देखना - वेखना कुछ नहीं है। बस तुम आ रही हो। इसे मेरी रिक्वेस्ट समझो या आर्डर,तुम्हे आना है।"
"अच्छा बाबा आ जाऊंगी स्टेशन पहुंचने के दस मिनट पहले बता देना। मुझे घर से स्टेशन आने में दस मिनट ही लगते हैं। और हां सुनो, ज्यादा पहले ही मत बता देना ताकि मैं स्टेशन पहुंचकर भटकती रहूं और तुम्हारी ट्रेन लेट हो। हां, कुछ खाना हो तो वह भी बता दो साथ में लेती आऊंगी।"
"नहीं खाने के लिए कुछ लाने की जरूरत नहीं, बस तुम आ जाना इतना ही काफी है।"
सुनील ने फोन रख दिया था। फोन रखने के बाद, प्रिया सुनील के ख्यालों में खो गयी। अभी चंद महीने पहले ही की ही तो बात है, वह अपने ऑफिस की तरफ से एक ट्रेनिंग के सिलसिले में पंजाब गयी थी। वहां सुनील से उसकी मुलाकात हुई। वह, वहां पर ट्रेनिंग देता था। पहली मुलाकात के बाद ही उसे सुनील की आंखों में अपने लिए कुछ विशेष दिखा। पहले दिन ही इंट्रोडक्शन में यह पता चल गया था कि सुनील और प्रिया के गांव अगल- बगल हैं। परदेश में अगर कोई अपने गांव का मिल जाय तो बहुत खुशी मिलती है। यहां पर भी दोनों का खुश होना स्वाभाविक ही था, लेकिन अगल- बगल के गांव के निवासी होने के अलावा भी कुछ दूसरी खुशी थी जिसे सुनील के अतिरिक्त प्रिया ने भी महसूस किया था। एक महीने के सघन प्रशिक्षण की अवधि कब समाप्त हो गयी, प्रिया को पता ही न चला। उस एक महीने में सुनील ने प्रिया की सारी आवश्यकताओं का ध्यान रखा। प्रायः शाम के समय वे दोनों कही टहलने निकल जाते थे और रात में खाना खाकर ही लौटते थे। लौटने के बाद भी दोनों देर रात तक फोन पर बातें करते रहते थे। सुनील और प्रिया इस एक महीने में इतने ज्यादा घुल- मिल गए थे कि लगता था उनकी पहचान बरसों पुरानी है। प्रिया याद कर रही थी कि सुनील को उसके खुले बाल बहुत पसंद थे और वह हमेशा उसके बालों की तारीफ करते हुए गुनगुनाता था
इक शाम मुझको दे दो,
जो उम्र भर न भूले
सौगात हमको दे दो।"
तभी मोबाइल की घंटी से उसकी तंद्रा टूटी;
"सुनो, मेरी ट्रेन दस मिनट में पहुंच जाएगी, आ जाओ।"
प्रिया ने 'हां' कहते हुए मोबाइल रखा और शीघ्रता से अपने बालों को संवारकर,स्कूटी निकालकर स्टेशन की तरफ चल दी। स्टेशन पहुँचकर प्रिया ने सुनील को फोन करके यह बताया कि वह स्टेशन पहुँच गयी है।
सुनील हंसते हुए बोला,
-"मुझे पता था ऐसा ही कुछ होने वाला है। मेरी ट्रेन बस पहुंचने वाली है। मिलने के लिए बेचैन रहती हो और जताती नहीं हो।"
" ज्यादा खुश मत हो ऐसी कोई बात नहीं, बस जल्दी से आ जाओ।"
सुनील के आते ही प्रिया उसे जी भर निहारती है। लंबा कद,सुदर्शन चेहरा,आंखों में वही कशिश,सब कुछ वैसा ही था। सुनील में कुछ भी नही बदला था।
सुनील ने उसके सामने आकर हाथ हिलाते हुए कहा
"क्या हुआ मैडम,कहाँ खोई हैं आप?"
"हम कितने दिनों बाद मिल रहे हैं सुनील?"
प्रश्न के जवाब में प्रिया ने भी प्रश्न पूछा
" यही कोई 6- 7 महीने हुए होंगे।"
" तुम्हारी गणित कमज़ोर है। पूरे 8 महीने 9 दिन बाद मिल रहे हो वह भी इस ट्रेन की वजह से
चलो कोई नहीं, कहीं जगह देख कर बैठते हैं।
हां,कहीं चलकर बैठते हैं।मैं आज तुम्हारे लिए गांव से खास सावन के अमरूद लाया हूँ।
"सच! सावन के अमरूद!
मुझे अमरूद बहुत पसंद हैं और सावन के अमरूदों की बात ही अलग है। लेकिन बरसात में तो गरमागरम पकौड़ी के साथ मसालेदार चाय का मजा ही अलग होता है।"
"तुम एक बार मेरे गाँव के अमरूद खाओगी तो चाय-पकौड़ी सब भूल जाओगी। ऐसे दिलकश स्वाद वाले अमरूद कहीं मिलते नही हैं।"
"अच्छा जी, इतनी तारीफ! तब तो खाना पड़ेगा। मुँह में पानी आ रहा है।"
लेकिन यहां पर तो प्लेटफॉर्म के अलावा बैठने की कोई जगह ही नहीं है।" प्रिया अधीरता से बोली।
"कैसे आई हो?" सुनील ने प्रश्न किया।
"और कैसे आऊंगी। स्कूटी से ही।"
"अरे वाह! फिर इस सुहाने मौसम में इस स्टेशन पर कौन बैठेगा? चलो आज़ाद पार्क चलते हैं। वहीं बैठकर अमरूद खाएंगे।
" नहीं नहीं, यहीं रुकते हैं और प्लेटफॉर्म पर ही अमरूद खा लेते हैं। अगर बारिश हो गई तो तुम भीग जाओगे फिर ट्रेन के सफर में मुश्किल होगी। "
" तुम्हारे साथ के लिए तो कोई भी मुश्किल सह लूंगा। मुझे यहां नहीं बैठना हैं। मुझे तुम्हारे साथ स्कूटी पर पीछे बैठ के घूमना है, अब चलो।"
प्रिया को पता था कि सुनील मानने वाला नहीं। वह मुस्कुराते हुए बोली
"अब तुम मानोगे तो हो नहीं। चलो, लेकिन यदि बारिश आ गई तो....
"बारिश आएगी, तब की तब देखेंगे।"
प्रिया और सुनील स्कूटी पर बैठकर आज़ाद पार्क की तरफ चल पड़े। सावन का महीना था। आसमान में छाई घनघोर घटाएं उन दोनों जवां दिलों की धड़कन बढ़ा रही थीं। स्टेशन के बाहर आकर वो दोनों सड़क पर चले जा रहे थे। सड़क के दोनों तरफ हरियाली की चादर बिछी थी। प्रकृति भी श्रृंगार करके उन्हें रिझा रही थी। बीच बीच में मोर के बोलने की आवाज उनके दिलों में सनसनी पैदा कर रही थी। हवा के झोकों के साथ प्रिया के खुले बाल लहराकर पीछे बैठे सुनील के चेहरे पर स्पर्श कर रहे थे। प्रिया के पास से आती भीनी खुशबू सुनील को दीवाना बना रही थी। अचानक एक स्पीड ब्रेकर पर स्कूटी उछली और सुनील अपनी जगह से आगे छिटककर, प्रिया से जा सटा। तुरंत ही उसने अपने को पीछे किया लेकिन चंद सेकंड की यह क्रिया सुनील के साथ प्रिया को भी उद्देलित कर गयी।
थोड़ी देर बाद बरसात होने लगी। रिमझिम वर्षा की भीनी फुहारे
दोनों के तन और मन को भिगोने लगीं। थोड़ी देर में वे दोनों पानी से तरबतर हो गए। प्रिया भी काफी धीमी स्कूटी चला रही थी। पानी मे भीगे हुए प्रिया के बालों से ओस की बूंद के समान टपकती हुई बूंदे सुनील के मन मे सिहरन पैदा कर रही थीं। उसकी चांदी के समान चमकती हुई पीठ से टपकती हुई पानी की बूंदे सुनील को रोमांचित कर रही थीं। वर्षा के कारण सड़क भी सुनसान थी। प्रिया की धवल पीठ पर गिरती हुई बूंदों पर सुनील ने हौले से अंग्रेज़ी का पी और एस अक्षर बनाया। प्रिया सिहर उठी उसने कुछ बोलना चाहा, लेकिन उसके दिल ने उसे चुप रहने को कहा। वर्षा की तीव्रता बढ़ गयी थी। पानी के वेग के कारण स्कूटी चलाना मुश्किल हो रहा था। इस घनघोर वृष्टि में आज़ाद पार्क में जाना मूर्खता थी। उस बारिश में खड़े होकर अमरूद खाना संभव नही था। वर्षा की तीव्रता और बढ़ गयी थी। बिजली की चमक के साथ मेघों की गड़गड़ाहट दहशत पैदा कर रही थी। किसी वृक्ष के नीचे भी नही खड़ा हुआ जा सकता था।प्रिया के लिए स्कूटी चलाना लगभग असंभव हो रहा था। तभी उन्हें सड़क के पास एक निर्माणाधीन मकान दिखाई पड़ा। प्रिया ने आनन-फानन में स्कूटी रोकी और वे दोनों द्रुत गति से उस मकान के अंदर आ गए। उस मकान में एक कमरे की अस्थाई छत के नीचे उन्होंने शरण ली। भारी वर्षा के कारण वहां कार्य कर रहे मजदूर भी पलायन कर गए थे।
सुनील ने अपने बैग से अमरूद निकाला और अपने हाथों से प्रिया को खिलाने लगा। प्रिया इसके लिए तैयार थी। प्रिया ने भी सुनील के बैग से एक अमरूद निकाला और सुनील को दिया।। सुनील अपने दांतों से अमरूद को हल्के से काटते हुए प्रिया की ओर देखकर शरारत से मुस्कुराया। फिर वे दोनों ही वहीं फर्श पर बैठकर बिना कुछ बोले अमरूद खाने लगे। अमरूद की मिठास उन लोगों को विभोर कर रही थी। अचानक प्रिया ने मोबाइल पर समय देखकर कहा कि डेढ़ घंटे बीत गए और अब उन्हें जल्द ही स्टेशन पहुँचना होगा। सुनील को स्टेशन पर छोड़कर उसे घर भी पहुँचना होगा लेकिन सुनील ने कुछ नही सुना। उसकी ट्रेन आने में अभी भी डेढ़ घंटा था और इसीलिए वह निश्चिन्त था। अमरूद खाकर, अति अधिकार पूर्वक प्रिया के कुर्ते से अपना हाथ पोंछते हुए उसने अपनी आंखें प्रिया पर गड़ा दीं।
प्रिया उसकी आँखों की कशिश में खोकर रह गयी। बाहर वर्षा के साथ हवा भी मतवाली हो रही थी। बरसात की तेजी के साथ उनके दिलों की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं। तभी सुनील ने अपने हाथों से उसके नर्म, रेशमी जुल्फों को संवारना शुरू कर दिया। प्रिया कसमसाने लगी। प्रिया के बालों में अपनी ऊंगलियां फिराते हुए वह उनसे खेलने लगा। वह प्रिया की रेशमी जुल्फों को अपनी उंगलियों से गोल घेरा बनाता था और हटाता था। समय रुक सा गया था। प्रिया ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं। सुनील का मधुर स्पर्श उसे सुखकर लग रहा था। पहले उसने सोचा कि वह सुनील को ऐसा करने से मना करे लेकिन उसका दिल उसे ऐसा करने से रोक रहा था। सुनील, प्रिया के रूप यौवन की सरिता में बहने लगा था। पीले रंग के कुर्ते और सफेद लेगिंग में प्रिया, अप्रितम सुंदरी लग रही थी। उसके गले मे पहनी हुई सोने की चेन भी और ज्यादा दमक रही थी। दोनों की भावनाएं उफान पर थीं।
बाहर पानी का वेग कम हो रहा था। कुछ देर बाद बाहर वर्षा थम गई थी और उस मकान के अंदर का भी तूफान थम गया था।
सुनील की ट्रेन आने में मात्र चालीस मिनट का समय शेष बचा था अतः वे दोनों स्कूटी पर बैठकर स्टेशन की ओर चल दिये। स्टेशन पहुँचकर विदा के समय सुनील ने कहा -
थैंक्यू प्रिया, मेरे दिन को इतना हसीन बनाने के लिए।"
"तुम्हे भी थैंक्यू इस खूबसूरत दिन को मुझे देने के लिए।"
"जल्द ही फिर आऊंगा और फिर तुम्हारे साथ अमरूद खाऊंगा।" सुनील शरारत से बोला।
प्रिया ने उसे कनखियों से देखा और मुस्कुरा दी।
Bahut khubsurat Dil ko chune wale ahsas
ReplyDeleteबहुत बेह्तरीन बधाई हो 💐
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कहानी
ReplyDeleteखूबसूरत एवं दिलकश कहानी प्रकाशित होने की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअच्छी कहानी, बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteएक बार पढ़ो ...फिर पढ़ो ...फिर पढ़ो
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी।
बहुत बहुत बधाई।
#Thanks dear friend Rupa for Sharing your publication Story & many Congratulations to you and you will ever find me standing near to your shoulder to encourage you ...
ReplyDelete#It's a untold story of growing ,Love at a very young age..between a beautiful ,smart girl Priya and his earlier mentor Sunil,When she started finding herself in Love in his closeness & a tender touch ..The story is about finding excuses of meeting for short duration for the company of each other ,for dropping him at Railway Stn. while eating sweet Gwawa which was only the escape goat situation further enhanced by dizzling rain and ofcourse a bolder step by Sunil to play with her silky 💇 hairs ..any girl will be fond of, to listen about its beauty and depth of eyes not to mention ,God have blessed a woman 👩..Finally its a growing unknown tender Love of young age knowing no boundaries..it's the Nature. These are amazing movement of young age ,We all must have passed - enjoyed & recall 🙂 Thanks Rupa for putting your good memories and thoughts in this story of * Saawan ke Amrood* A beautiful attempt of your expression ,as an Author Kindly excuse me for any mistakes,if any, in understand the thoughts thru.story !
Thanks and regards .Hv a nice day .
#awasthi.ak.🤝🌹
बहुत ही हिर्दय स्पर्श कहानी
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteरूपा जी आज आपके ब्लॉग पर कहानी पड़ने को मिली बहुत ही बेहतरीन लिखा
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी कहानी 👌
ReplyDeleteआज आपके लेखन कला का नया रूप भी दिखा आपने अपने शव्दों के माध्यम से बहुत अच्छा वृतांत व्यख्या की
ReplyDeleteबहुत शानदार बधाई हो आपको
ReplyDeleteमुझे ये कहानी बहुत अच्छी लगी। दिल को छू लेने वाली
ReplyDeleteलाजबाब 👌👌
ReplyDeleteWow its amazing story. I really love it.
ReplyDeleteअच्छा लगा आज के ब्लॉग में कहानी पड़ कर
ReplyDeleteआपकी कहानी पढ़ी सच में आपने दिल को छू लिया... बेहतरीन 👌
ReplyDeleteशानदार लेखन
ReplyDeleteशानदार लेखन
ReplyDeleteबधाई हो रूपा जी आपको
ReplyDeleteI just learnt this story. It is awesome. Heart touching words.
ReplyDeleteशानदार लेखन
ReplyDeleteThis is heart touching story 🙏👌
ReplyDeleteSo sweet and lovely story 🙏👌
ReplyDeleteSo beautiful dear 😍👌
ReplyDeleteReally I'm so glad after reading this 👌👌
ReplyDeleteReally marvoulous story 👌
ReplyDeleteदिल छू लेने वाली कहानी बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन लेखन 👌👌 शानदार
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन लाजावाज रचना है
ReplyDeleteमुझे ये कहानी बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली कहानी है
Dio ko chhu gyi kahani 👌
ReplyDeleteमुझे ये बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteबढ़िया है ये मैं तो बहुत खुश हुआ इसे पढके बढ़िया है ये मैं तो बहुत खुश हुआ इसे पढके
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई 🥀💐🥀 परमात्मा की कृपा से आपकी लेखनी में हरेक पहलू का दर्शन है । कोई
ReplyDeleteअनायास ही खींचा चला आता है। ईश्वर आपको दीर्घायु बनाए जिससे हमलोग आपके लेखनी का
का लाभ उठाते रहे।🙏🙏🙏🙏
Very good dear
ReplyDeleteअहसास जगाती उत्कृष्ट रचना 👌🏼
ReplyDeleteदिल को ग्राह्य कहानी है। बहुत बढ़िया। मिलन - बिछुड़न और समर्पण के भाव लिये दिल को छू गया। कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें ताजा कर गया। बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteसरल शब्दों में दो दिलों के मनोभावों को प्रदर्शित करती बढ़िया कहानी।
ReplyDelete🙏🙏💐💐सुप्रभात 🕉️
ReplyDelete🙏जय श्री राम 🚩🚩🚩
🙏आप का दिन शुभ हो 🙏
🙏जय श्री शनिदेव 🚩🚩🚩
👏👏👏आप को बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें 💐💐
👌👌बहुत सुन्दर रचना और शानदार लेखन, आप का बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
Congrats Roopa ji nice story
ReplyDeleteनिछक सरल जीवन की उत्कट प्रेम कथा 👌🙏🚩🙌❣️
ReplyDelete👌🥰लाजवाब🥰👌💌इस कहानी का कोई जवाब नहीं💌
ReplyDelete🦚🍈सावन के अमरुद🍈🦚
ReplyDeleteकुछ दिन की मुलाकात-अच्छा लगा साथ
होने लगी थी आपस में एक दूजे की बात
किसी तरह मिलने का वो ढूंढते थे बहाना
मैं भी तन्हा-अकेला-जरा तुम भी आ जाना
अकेले में हम दोनों फिर से मुलाकात करेंगे
एक-दूजे से ढेर सारी हम दोनों बात करेंगे
मिल गए देखो फिर से वो जो दिल थे जवाँ
ऊपर से सावन का कितना खूबसूरत समां
होने लगी बरसात और चलने लगी जो हवा
दो दिलों का गुजरा वो देखो हसीन कारवां
हवाओं का चलना और दिलों का मचलना
बिजली कड़कना और दिलों का धड़कना
पास बैठकर वो उसको ऐसे निहारने लगा
अंगुलियों से वो उसके बाल संवारने लगा
उसके गोरे बदन को जैसे ही उसने छुआ
बंद आंखें बोल ना सकी कुछ ऐसा हुआ
बरसता पानी उस पर वो बहकती जवानी
मदहोशी में करते देखो दोनों कैसी नादानी
सावन के अमरूद खाकर हुए दोनों बेखुद
लड़कपन में भूला बैठे दोनों अपना वजूद
थम गई जब बरसात तो हो गई खामोशी
होश में आते ही खत्म हुई सारी मदहोशी
थम-सा गया दिलों में उमड़ता वो तुफान
रूकी जो बारिश हो गई फिर राहें आसान
इन हसीन पलों का शुक्रिया अदा किया
फिर से मिलेंगे कभी दोनों ने वादा किया
💌🙏नरेश"राजन"हिंदुस्तानी🙏💌