स्त्री का विश्वास
...कः स्त्रीणां विश्वसेन्नरः ।
अतिशय कामिनी स्त्री का विश्वास न करें।
एक स्थान पर एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी बड़े प्रेम से रहते थे। किन्तु ब्राह्मणी का व्यवहार ब्राह्मण के कुटुम्बियों से अच्छा नहीं था। परिवार में कलह रहता था। प्रतिदिन की कलह से मुक्ति पाने के लिए ब्राह्मण ने माँ-बाप, भाई-बहिन का साथ छोड़कर पत्नी को लेकर दूर देश में जाकर अकेले घर बसाकर रहने का निश्चय किया।
यात्रा लम्बी थी। जंगल में पहुँचने पर ब्राह्मणी को बहुत प्यास लगी। ब्राह्मण पानी लेने गया। पानी दूर था, देर लग गई। पानी लेकर वापस आया तो ब्राह्मणी को मरी पाया। ब्राह्मण बहुत व्याकुल होकर भगवान् से प्रार्थना करने लगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि ब्राह्मण ! यदि तू अपने प्राणों का आधा भाग इसे देना स्वीकार करे तो ब्राह्मणी जीवित हो जाएगी। ब्राह्मण ने यह स्वीकार कर लिया। ब्राह्मणी फिर जीवित हो गई। दोनों ने यात्रा शुरू कर वहाँ से बहुत दूर एक नगर था, वहां पहुंचे। नगर के बाग में पहुँचकर ब्राह्मण ने कहा-प्रिय! तुम यहीं ठहरो, मैं अभी भोजन लेकर आता हूँ। ब्राह्मण भोजन लेने चला गया। ब्राह्मण के जाने के बाद ब्राह्मणी अकेली रह गई। उसी समय बाग के कुएँ पर एक लंगड़ा, किन्तु सुन्दर जवान टहल रहा था। ब्राह्मणी उससे हँसकर बोली। वह भी हँसकर बोला। धीरे धीरे बात बढ़ गई। दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे। दोनों ने जीवन-भर साथ रहने का प्रण कर लिया। ब्राह्मण जब भोजन लेकर नगर से लौटा तो ब्राह्मणी ने कहा-यह लंगड़ा व्यक्ति भी भूखा है, इसे भी अपने हिस्से में से दे दो।
भोजन करने के पश्चात जब दोनों वहाँ से आगे प्रस्थान करने लगे तो ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से अनुरोध किया कि इस लंगड़े व्यक्ति को भी साथ ले लो। रास्ता अच्छा कट जाएगा। तुम जब कहीं जाते हो तो मैं अकेली रह जाती हूँ। बात करने को भी कोई नहीं होता। इसके साथ रहने से कोई बात करने वाला तो रहेगा। ब्राह्मण ने कहा - हमें अपना भार उठाना ही कठिन हो रहा है, इस लंगड़े का भार कैसे उठाएंगे?
ब्राह्मणी ने कहा- हम इसे पिटारी में रख लेंगे। ब्राह्मण को पत्नी की बात माननी पड़ी। कुछ दूर जाकर ब्राह्मणी और लंगड़े ने मिलकर ब्राह्मण को धोखे से कुएँ में धकेल दिया। उसे मरा समझकर वे दोनों आगे बढ़े। नगर की सीमा पर राज्य-कर वसूल करने की चौकी थी। राजपुत्र ने ब्राह्मणी की पिटारी को ज़बर्दस्ती उसके हाथ से छीनकर खोला, तो उसमें वह लंगड़ा छिपा था। वह बात राजदरबार तक पहुँची। राजा के पूछने पर ब्राह्मणी ने कहा - यह मेरा पति है। अपने बन्धु-बान्धवों से परेशान होकर हमने देश छोड़ दिया है। राजा ने उसे अपने देश में बसने की आज्ञा दे दी।
कुछ दिन बाद, किसी साधु के हाथों कुएँ से निकल जाने के उपरान्त ब्राह्मण भी उसी राज्य में पहुँच गया। ब्राह्मणी ने जब उसे वहाँ देखा तो राजा से कहा कि यह मेरे पति का पुराना वैरी है, इसे यहाँ से निकाल दिया जाए या मरवा दिया जाए। राजा ने उसका वध करने की आज्ञा दे दी।
ब्राह्मण ने आज्ञा सुनकर कहा- देव! इस स्त्री ने मेरा कुछ लिया हुआ है। वह मुझे दिलवा दिया जाए। राजा ने ब्राह्मणी को कहा - देवी, तूने इसका कुछ लिया हुआ है, सब दे दे। - ब्राह्मणी बोली- मैंने कुछ भी नहीं लिया। ब्राह्मण ने याद दिलाया। तूने मेरे प्राणों का आधा भाग लिया हुआ है। सभी देवता इसके साक्षी हैं। ब्राह्मणी ने देवताओं के भय से वह भाग वापस करने का वचन दे दिया। किन्तु वचन देने के साथ ही वह मर गई। ब्राह्मण ने सारा वृत्तान्त राजा को सुना दिया।
ब्राह्मण ब्राह्मणी की कहानी सुनाने के बाद बन्दर ने फिर से कहा- तु भी स्त्री का उसी तरह दास बन गया है, जिस तरह वररुचि था।
मगर के पूछने पर बन्दर ने वररुचि की कहानी सुना
आपका भविष्य आपके कर्म ही तय करते हैं
ReplyDeleteकहानी में बताया गया है कि अंधविश्वास से बचो, चाहे वो आपकी पत्नी ही क्यूं ना हो। ये उन लोगों के लिए संदेश है जो पत्नी के अंधविश्वास में परिवार से दूर हो रहे हैं।
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteExcellent writing with a good story.
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteकिसी के साथ धोखा करने वाला खुद धोखा खाता है।
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कहानी
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteJwalant samasya
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