लोद्रवा: एक ऐतिहासिक स्थान
लोद्रवा राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिला का एक गांव है। लोद्रवा जैसलमेर से 15 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित है।
लोदरवा या लोध्रुवा या लोद्रवा भाटी राजपूत साम्राज्य था। प्रारंभिक भाटी शासकों ने आधुनिक समय के अफगानिस्तान में गजनी से लेकर आधुनिक पाकिस्तान में सियालकोट, लाहौर और रावलपिंडी से लेकर आधुनिक भारत में भटिंडा, मुक्तसर और हनुमानगढ़ तक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, लेकिन मध्य एशिया से लगातार आक्रमण के कारण साम्राज्य समय के साथ चरमरा गया।
भाटी वंश के रावल देवराज ने आठवीं शताब्दी में लोदूर्वा को राजधानी के रूप में स्थापित किया था। यह शहर थार मरुस्थल से होते हुए एक प्राचीन व्यापार मार्ग पर था, जिससे यहां बार-बार हमले होने लगे और इस शहर को लूट लिया जाता था। गजनी के महमूद ने 1025 ईसवी में शहर की घेरा बंदी की। 1178 में मुहम्मद गोरी द्वारा इसे फिर से तोड़ दिया गया था, जिस कारण इस शहर का परित्याग कर दिया गया। 1156 सी.ई. में रावल जैसल द्वारा जैसलमेर की नई गढ़वाली राजधानी की स्थापना की गई। जैसलमेर 16 किलोमीटर दूर त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित था जहां आज का किला खड़ा है।
लोद्रवा एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो अपने वास्तुशिल्प खंडहरों और आसपास के रेत के टीलों के लिए जाना जाता है। लोद्रवा 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित जैन मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है।इस मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त हर पत्थर की तराश में स्थापत्य के सौंदर्य को देखा जा सकता है। भवन में पत्थरों की जटिल नक्काशी है, और विशाल भीतरी भाग है जिसे खुशनुमा और आरामदायक समय बिताने के लिए बनाया गया है।पत्थरों को काटकर खूबसूरत जाली का रूप दिया गया है जो हमें आश्चर्य में डाल देता है।मंदिर के गर्भ गृह के छत पर भी बढ़िया कारीगरी की गई है काफी प्राचीन होने के बावजूद समय-समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है इसलिए यह आज भी बढ़िया स्थिति में है।मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही चौक में 25 फीट ऊंचा भव्य द्वार (तोरण) बना हुआ है इस पर बारीक कारीगरी करके सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं।मूल मंदिर 1178 सीई में नष्ट कर दिया गया था, जब मोहम्मद गोरी ने शहर पर हमला किया था।लेकिन 1615 में सेठ थारू शाह द्वारा 1675 और 1687 में इसे और जोड़ने के साथ पुनर्निर्मित किया गया था।
लोदरवा एक इच्छा पूर्ति करने वाले पेड़ के लिए भी मशहूर है, जिसे कल्पवृक्ष कहा जाता है। कल्प वृक्ष जैन धर्म के अनुयायियों के लिए समृद्धि और शांति का द्योतक है।
इसके अलावा लोद्रवा स्थित काक नदी के किनारे रेत में दबी भगवान शिव की एक अनोखी मूर्ति है, जिसके 4 सिर हैं।
कहा जाता है कि लोद्रवा में राजकुमारी मूमल और अमरकोट के राजकुमार महेंद्र की नाकाम प्रेम की दास्तान ए छुपी हुई हैं, जो पूरे क्षेत्र की लोक कथाओं और लोक गाथाओं में सुनाई जाती है।
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Lodrava: A Historical Place
Lodrava is a Village in Jaisalmer District of Rajasthan State. Lodrava is located 15 km north west of Jaisalmer.
Lodarwa or Lodhruva or Lodrava Bhati was a Rajput kingdom. The early Bhati rulers ruled large empires from Ghazni in modern-day Afghanistan to Sialkot, Lahore and Rawalpindi in modern-day Pakistan to Bhatinda, Muktsar and Hanumangarh in modern-day India, but due to frequent invasions from Central Asia, the empire grew over time. Crashed.
Rawal Devraj of Bhati dynasty established Lodurva as the capital in the eighth century. The city was on an ancient trade route through the Thar Desert, due to which the city was repeatedly attacked and plundered. Mahmud of Ghazni laid siege to the city in 1025 AD. It was again demolished by Muhammad Ghori in 1178, leading to the abandonment of the city. 1156 CE The new Garhwali capital of Jaisalmer was established by Rawal Jaisal in AD. Jaisalmer was located 16 km away on the Trikuta hill where the fort stands today.
Lodrava is a popular tourist destination, known for its architectural ruins and the surrounding sand dunes. Lodrava is also famous for the Jain temple dedicated to the 23rd Jain Tirthankara Parshvanath. The architectural beauty can be seen in the carvings of every stone used in the construction of this temple. The building has intricate stone carvings, and a spacious interior designed to make for a pleasant and relaxing time. Good workmanship has also been done, despite being quite ancient, this temple has been renovated from time to time, so it is still in good condition. On entering the temple premises, there is a 25 feet high grand gate (pylon) in the square. It has finely crafted beautiful figures. The original temple was destroyed in 1178 CE, when Mohammad Ghori attacked the city. But it was rebuilt in 1615 by Seth Tharu Shah with further additions in 1675 and 1687. went.
Lodarwa is also famous for a wish fulfilling tree called Kalpavriksha. The Kalpa tree is a symbol of prosperity and peace for the followers of Jainism.
Apart from this, there is a unique idol of Lord Shiva buried in the sand on the banks of Kak river located in Lodrava, which has 4 heads.
Lodrava is said to have hidden the story of a failed love between Princess Mumal and Prince Mahendra of Amarkot, which is narrated in the folk tales and folk tales of the entire region.
Great information
ReplyDeleteGood information... Gaya hua hu yaha
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteएक्सीलेंट। बहुत बारीकी से एक विस्तृत जानकारी दी गई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और आकर्षक जानकारी👏🏻
ReplyDeleteअद्वितीय वास्तुकला, इतनी बारीक नक्काशी, देखकर आंखों को यकीन नहीं होता कि इतनी बारीक नक्काशी बिना किसी मशीन के हाथों से की गई है।
ReplyDeleteभव्य ऐतिहासिक स्थल,अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteVery Nice Information रूपा जी ☺️🙏🏻
ReplyDeleteधन्यवाद। हम दूर रहने वाले भाटी यो के लिए हमारे इतिहास की अच्छी जानकारी। 😊
ReplyDeleteअविनाश जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है। कहां रहते हैं आप
Deleteभाटी वंश के साम्राज्य के बारे में पढ़ कर ऐसा
ReplyDeleteलग रहा है कि यदि आक्रमणकारियों द्वारा बार बार ऐसे साम्राज्य पर आक्रमण नही किया जाता तो आज का भारत कितना सुंदर और समृद्ध होता।
इतिहास के पन्नो से ऐसे ऐसे अद्भुत जानकारी
प्रदान करने के लिये आपका आभार।
🙏🙏🙏
Bhartiya sanskriti ke prachar prasar ka aapka prayas sarahniya hai...
ReplyDeleteBeautiful temple
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteExtraordinary News.
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