गिलहरी (Squirrels, Gilhari) और मेरी बालकनी
मेरे टेरिस की और मेरे ब्लॉग की गिलहरी आज दो वर्ष की हो गयी।
आजकल के इस शहरी वातावरण में हम पर्यावरण संरक्षण के लिए चाहे जितनी बातें कर लें, परंतु विकास की अंधी दौड़ में ज्यादातर स्थानों पर सिर्फ ईंट और कंकरीट की इमारतें देखने को मिलती हैं। बचपन से ही मैं प्रकृति के सामीप्य में प्रसन्न महसूस करती हूँ और अपने को खुशकिस्मत समझती हूं कि अब भी हरे - भरे पेड़ - पौधों के बीच अपने सरकारी आवास में रह रही हूं। यहां का परिसर हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित है। परिसर में प्रवेश करते ही कुछ अलग एहसास होता है।
मेंरी बालकनी से लगा एक इमली का पेड़ मुझे बहुत पसंद है। प्रातः काल जब चिड़ियां मधुर स्वर में चहचहाते हुए जब इसकी डालियों पर फुदकती हैं तो इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर मन आह्लादित हो जाता है। इस पेड़ पर हल्के पीले रंग के फूल खिलते हैं । सुबह के समय चिड़ियों के झुंड में जाने कहां से छोटी छोटी लगभग 2 इंच की कुछ चिड़ियां रोज इन फूलों का रस पीने आती हैं और फिर न जाने कहा उड़ जाती हैं। झुंड की कुछ चिड़ियां हैं जो इमली की डाल पर बैठती हैं और भूख तथा प्यास लगने पर मेरी बालकनी में रखे दाने खाती हैं और पानी पीती हैं। मैंने कई बार इस मोहक दृश्य को अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने की असफल कोशिश की है। मोबाइल देखते ही ये फुर्र हो जाती हैं।
इसी इमली के पेड़ पर कुछ गिलहरियों का भी डेरा है, जिनकी चर्चा करते यह तीसरा साल है। ये गिलहरियां भी पूरे दिन इमली की एक डाल से दूसरी, दूसरी से तीसरी डाल पर फुदकती रहती हैं। वैसे तो समयाभाव के कारण सप्ताह के छः दिन मैं सिर्फ दाना -पानी डाल कर कार्यालय चली जाती हूं, परंतु रविवार के दिन का कुछ वक्त मेरा इनकी प्यारी- प्यारी हरकतें देखने में जरूर व्यतीत होता। इन चिड़ियों और गिलहरियों का इमली के पेड़ पर अटखेलियां करते देखकर मुझे अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं।
बचपन में पूजा के फूल के लिए कभी कनेर की पेड़ पर तो कभी किसी की बाउंड्री पर चढ़ा करते थे और इससे पहले कि कोई हमारी चोरी पकड़े, दो चार फूल तोड़ के भाग जाया करते थे। एक बार चोरी करते पकड़े गए और चोरी की सजा भी इतनी मजेदार मिली कि पूछिये मत। अपने मोहल्ले के सुखपाल चाचा की 4 फिट ऊंची बाउंड्री पर दबे कदमों से चढ़कर मैं विनम्रता से झुकी कनेर की डालियों को प्रणाम करके फूल तोड़ने लगी। फूल तोड़कर जैसे ही मैं नीचे उतरी कि सामने से छड़ी लिए सुखपाल चाचा को खड़ा पाया। मुझे लगा कि आज मेरी पीठ चाचा जी के कोपभाजन का शिकार बनेगी लेकिन, मुस्कुराते हुए चाचा जी बोले:
फूल चुरा कर भाग रही थी। इसकी सजा तो तुझे मिलेगी। चल अब फिर से दीवाल पर चढ़ और वो ऊपर वाली डाली के फूल तोड़ और देख दाहिने तरफ की दो चार डालियों से भी तोड़ ले।"
इस तरह सारे फूल तुड़वा कर चाचा जीने ने,दो- चार फूल रहम कर मुझे दे दिया और बाकी खुद रख लिया।
वे लोग, वह दौर ही कुछ और था, जब चोरी की सजा भी अच्छी ही हुआ करती थी । अब तो शायद इज्जत की ही वाट लग जाए। वैसे बड़े होने के बाद ऐसी चोरियों का मजा भी नहीं ले सकते।
खैर छोड़िए ,इस इमली के पेड़ ने कहां से हमें बचपन की मधुर यादों में लौटा दिया।
आप भी शायद इसे पढ़कर कुछ देर ही सही, अपना बचपन फिर से जी लें।
बेहतरीन
ReplyDeleteकितनी सौभाग्य की बात है कि प्रकृति के साथ
ReplyDeleteजीने का मौका परमात्मा ने आपको प्रदान की
है । चिड़ियों का कलरव वो गिलहरियों का इधर
उधर कूदना इस डाल से उस डाल पर भाग दौड़
देखना अपने आप को प्रकृति के सानिध्य में
पाना कितना मनोरम लगता है।
परमात्मा आपको सदैव इसी तरह अपना
सानिध्य प्रदान करते रहें।
🙏जय परम् पिता परमात्मा🙏
हार्दिक आभार 🙏🙏
Delete🙏🙏🙏
Deleteमनुष्य के लिए प्रकृति का सामीप्य हमेशा से ही सुखदायक होता है।
ReplyDeleteआज की पोस्ट सचमुच पठनीय है।
Very Nice रूपा जी 👌🏻👌🏻
ReplyDeleteभगवान का ही एक रूप है प्रकृति भी 👍🏻
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteआज कल मेरी पोस्टिंग घर के पास है,प्रकृति का इतना सुंदर नजारा देखने को मिलता की मन करता है की घर पर ही रहे।
ReplyDeleteशहरों में आजकल लोग थोड़े थोड़े हरियाली के लिए तरस जाते, वहीं गांव में इसका भरपूर आनंद उठाया जा सकता है, पर शहरों की चकाचौंध भरी जिंदगी में लोग इस तरह से रच बस गए हैं गांव छोड़ शहर में बसते जा रहे हैं। अब लोगों को प्रकृति नहीं बल्कि सुख सुविधा से पूर्ण लाइफ चाहिए।
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteरूपा जी, इतनी अच्छी हिंदी आप लिखती हैं,यह मुझे पता नहीं था, हालांकि आपने हिंदी पखवाड़ा के हिंदी निबंध प्रतियोगिता में पुरस्कार प्राप्त किया था,ब्लाग लिखने के दो वर्ष पूरे होने को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteथोड़ी कोशिश कर लेती हूं सर, बाकी तो आपको सब पता ही है..😊
DeleteVery Nice रूपा जी 👌🏻👌🏻
ReplyDelete2 साल पहले आपके इस गिलहरी वाले ब्लॉग पर लिखी मेरी दोनों कविताएं दोबारा कॉपी पेस्ट कर रहा हूं
ReplyDeleteचिड़ियाँ-चींटी-कबूतर
कौआ-कोयल-गिलहरी
घूमते रहते हैं वो बेबस
बेजुबान भरी दोपहरी
गांव की छांव में मिल
जाते हैं सारे सब सुखी
नहीं जमता थोड़ा भी
जो माहौल है शहरी
उनके कलरव शौर से
तो प्रकृति में है जान
नहीं करते हैं वो तो
कभी भी हमें परेशान
क्यों ना हम मिलकर
हम रखे उनका ध्यान
वो भी हम पर होते
आए हैं सदा मेहरबान
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
चिड़ियाँ-चींटी-कबूतर
ReplyDeleteकौआ-कोयल-गिलहरी
घूमते रहते हैं वो बेबस
बेजुबान भरी दोपहरी
गांव की छांव में मिल
जाते हैं सारे सब सुखी
नहीं जमता थोड़ा भी
जो माहौल है शहरी
उनके कलरव शौर से
तो प्रकृति में है जान
नहीं करते हैं वो तो
कभी भी हमें परेशान
क्यों ना हम मिलकर
हम रखे उनका ध्यान
वो भी हम पर होते
आए हैं सदा मेहरबान
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
थोड़ी घर के बाहर-थोड़ी घर के भीतर
ReplyDeleteरखनी ही चाहिए हमें थोड़ी हरियाली
आनंद उत्साह से परिपूर्ण होगी रोज
सुबह-दोपहर-शाम चाय कि वो प्याली
बिना हरियाली के जीवन भी है खाली
दिल से करों पेड़-पौधों कि रखवाली
चिड़ियों की चहक भी सुनोगे निराली
गिलहरी भी उतरेगी-चढ़ेगी हर डाली
डालना कुछ दानें-परेंडी में भरना पानी
फिर देखना इस प्रकृति कि मेहरबानी
काटना नहीं हमें पेड़-पौधों को उगाना
पशु-पक्षियों को ना समझना बेगाना
इनसे भी है ये मौसम बड़ा ही सुहाना
🌄🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏🌄
एक दिन अचानक से
ReplyDeleteदौड़ती-फुदकती आई
एक नन्हीं-सी गिलहरी
हो गई आज दो वर्ष की
उस चुलबुली की शरारतें
देख सीमा कहाँ रहती है
मेरे अंतर्मन के हर्ष की
मेरे घर की बगिया में दिन
भर वो उछल-कूद करती
कभी पेड़ पर चढ़ जाती
कभी कोई दाना कुतरती
मन को सुकून मिलता है
वो जब-कभी कुछ करती
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
बहुत खूब 👌
Deleteप्रकृति के स्वामीप्य से ही
ReplyDeleteजीवन में निखार आता है
रूपा जी का मुस्कुराता
चेहरा यह बात बताता है
प्रकृति से संपर्क मन को
तो आल्हादित करता है
प्रकृति का यह आलिंगन
जीवन आनंदित करता है
प्यारे-प्यारे पक्षी जब-जब
कलरव का शोर मचाते हैं
जीवन के कष्ट भूल हम
आनंद-विभोर हो जाते हैं
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
💐💐
Deleteवाह बहुत खूब... पहले हमारे भी बगीचा था घर के पीछे पर उसको हटा के flat बना दिए... ओर घर के आगे दुकाने बना दी... 😔
ReplyDeleteथोड़ी जगह तो बागीचे के लिए छोड़नी चाहिए थी
Deleteबहुत सुंदर लेखन। अद्भुद लेखन शैली। एक उकरिष्ठ लेखन क्षमता।
ReplyDeleteविशिष्ट लेखन👌👌👍👍😍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteAapka prakriti prem shukhdai hai
ReplyDeleteAapko jitna samajhne ka prayas kar lo, aap usse do kadam aage nikal jati hain..thode se samay me jane kya kya karti hain aap..aapka prakriti ke prati rujhan hi aapki takat hai..
ReplyDeleteHaste rahiye muskurate rahiye...sada khush rahiye
Kya baat 👌🏻👌🏻👍🏻👍🏻
ReplyDeleteVery good
ReplyDelete