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राजा का उत्तराधिकारी: ईमानदारी का फल

राजा का उत्तराधिकारी

एक बार की बात है। नयासर राज्य में नंदाराम नाम का एक राजा हुआ करता था। वह बहुत ईमानदार और साहसी था। उसे अपनी प्रजा से बहुत प्यार था। उसके राज्य में सभी लोग खुशी से एक साथ रहते थे। राजा को एक बात हमेशा परेशान किया करती थी कि उसके जाने के बाद उसके राज्य को कौन संभालेगा? क्योंकि उसकी कोई औलाद नहीं थी। एक दिन राजा ने अपने राज्य से ही किसी युवक को अपना उत्तराधिकारी चुनने का फैसला किया। वह अपनी ही तरह किसी ईमानदार लड़के को सत्ता सौंपना चाहता था, जो प्रजा का ख्याल रखे।

उपदेशात्मक कहानियां

राजा ने काफी सोच विचार करके राज्य के सभी होनहार बच्चों को दरबार में बुलाया और घोषणा करते हुए कहा - मैं आप सब में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूं। इसके लिए आप सबको एक परीक्षा दी जाएगी, जो इसमें पास होगा वही मेरा उत्तराधिकारी बनेगा। इसके बाद राजा ने वहां मौजूद सभी बच्चों को एक-एक बीज दिया और बोला - कि घर जाकर इस बीज को गमले में लगाना है। 4 महीने बाद सभी अपने पौधे के साथ यहां पर फिर से एकत्रित होंगे। उस समय मैं आप में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी बनाऊंगा।

सभी बच्चे सोच रहे थे कि राजा अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए कोई कठिन परीक्षा लेने वाले हैं, लेकिन गमले में बीज बोने की बात सुनकर सभी इस परीक्षा को आसान समझकर खुशी-खुशी घर लौट गए। वक्त बीतने लगा, सभी बच्चों के गमले से बीज की उपज दिखने लगी थी, लेकिन तन्विक नाम का एक बच्चा था, जिसके गमले में पौधे का नामोंनिशान नहीं था।

तन्विक के साथ के दूसरे बच्चों के पौधे बड़े होने लगे थे, यह देखकर वह बहुत परेशान रहने लगा। वह मन ही मन यह सोचता रहता था कि सब के गमले में पौधे आ गए, लेकिन उसके गमले से पौधा क्यों नहीं आ रहा है। उसने सोचा कि हो सोकता है उसका पौधा उगने में अधिक समय ले, इसलिए उसने हार नहीं मानी और वह पूरी मेहनत और लगन के साथ गमले की और ज्यादा देखभाल करता।

धीरे-धीरे 4 महीने बीत गए, लेकिन तन्विक के गमले से कोई पौधा नहीं आया। वहीं, ज्यादातर सभी बच्चों के गमले में पौधे निकल आए। कुछ बच्चों के पौधों में तो फूल और फल भी दिखने लगे। राजा के पास जाने का समय आ गया। तन्विक ने सोचा कि वह राजा के पास जाएगा, तो उसका गमला देखकर सब उसका मजाक बनाएंगे। कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करेंगे कि वह हर दिन गमले में पानी देता था व उसकी देखभाल करता था।

तन्विक की मां ने उसे समझाया और कहा - कि नतीजा कुछ भी आया हो, लेकिन तुम्हें राजमहल उनका बीज लौटाने जाना चाहिए, जो होगा देखा जाएगा। मां के समझाने पर तन्विक मान गया और खाली गमला लेकर राजमहल पहुंचा। वहां उसने देखा कि सभी के गमले में सुंदर-सुंदर पौधे दिखाई दे रहे थे और सभी बहुत खुश थे। उसका गमला देखकर सभी हंसने लगे और अपनी मेहनत का बखान करने लगे। वह चुपचाप आंखें नीचे किए शर्म से बैठ गया।

इतने में राजा आए और सभी के गमलों को ध्यान से देखने लगे। जब वह तन्विक के गमले के पास पहुंचे तो उन्होंने पूछा - यह किसका गमला है? तन्विक - जी मेरा…राजा - तुम्हारा गमला खाली क्यों है?

तन्विक - मैं रोजाना इसको पानी देता था। मैंने इसकी बहुत देखभाल की, लेकिन इसमें से पौधा नहीं निकला।

राजा - आओ मेरे साथ। तन्विक राजा द्वारा बुलाने पर डर गया, लेकिन उसे राजा की आज्ञा माननी ही थी। वह धीरे-धीरे राजा की तरफ आगे बढ़ा। राजा उसे सिंहासन के पास ले गए और बोले - तुम ही इस राज्य के असली उत्तराधिकारी हो। राजा के इस फैसले से वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया।

राजा ने कहा - मैंने जो बीज दिया था वह नकली था। उससे पौधा आ ही नहीं सकता था। आप सब ने बीज बदल दिया, लेकिन तन्विक ने ईमानदारी के साथ 4 महीने मेहनत की और अपनी असफला स्वीकार करते हुए मेरे सामने खाली गमला लाने का साहस दिखाया। तन्विक में वह सारे गुण हैं, जो एक राजा में होने चाहिए। इसलिए इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी मैं तन्विक को बनाता हूं।

सभी युवकों का सिर शर्म से झुक गया। वह चुपचाप दरबार से बाहर निकल गये। इस तरह तन्विक ने ईमानदारी की बदौलत राज्य का सिंहासन पा लिया।

शिक्षा: हमें किसी भी परिस्थिति में ईमानदारी नहीं छोड़नी चाहिए। इंसान को उसकी सच्चाई और ईमानदारी का फल जरूर मिलता है।


12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 31 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. "पांच लिंकों के आनन्द में" इस रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

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  2. बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी

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  3. अच्छी जानकारी

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  4. अच्छी जानकारी

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  5. जाने कितनी परीक्षा दी दिलवाई ।
    पास वही हुआ जिसने ईमानदारी दिखाई।
    🥀🙏👌🙏🥀

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