ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule )
"महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले" एक भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रांतिकारी व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। ज्योतिबा राव फुले नारी को गुलामी की जंजीरों से आजाद करवाने वाले तथा लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था और विधवाओं की शादी, बाल विवाह पर रोक, औरतों की आजादी के लिए काम करने वाले भारत में सबसे पहले व्यक्ति थे।महिलाओं व पिछडे और अछूतो के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे। इनका मूल उद्देश्य स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना रहा है।
ज्योतिबा फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया। इन्होंने अपनी पत्नी आदरणीय सावित्रीबाई फुले जी को शिक्षित करके देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनाकर नारी का गौरव बढ़ाया।
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोन्हे, ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। उनके पिता का नाम गोविंदराव तथा उनकी माता का नाम चिमणा बाई था। जब वे 1 साल के हुए तो उनकी माता का देहांत हो गया। इसके बाद उनका पालन – पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया। उनका विवाह 1840 में सावित्री बाई फुले से हुया था। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था | यह बच्चा बड़ा होकर एक डॉक्टर बना और इसने भी अपने माता पिता के समाज सेवा के कार्यों को आगे बढ़ाया।
निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' 1873 मे स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हेंमहात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी।
ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि: 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" कहकर गौरव प्रदान किया।
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Jyotiba Phule
Mahatma Jyotirao Govindrao Phule was an Indian social reformer, social enlightener, thinker, social worker, writer, philosopher and revolutionary person, who dedicated his whole life for the upliftment of women and Dalits. Jyotiba Rao Phule was the first person in India to liberate women from the chains of slavery and work for the education system of girls and marriage of widows, ban on child marriage, freedom of women.
He did many works for the upliftment of women and backward and untouchables. He was a strong advocate of providing education to all sections of the society. He was against caste-based division and discrimination prevailing in the Indian society. Their basic objective has been to provide the right to education to women, oppose child marriage, support widow marriage.
Jyotiba Phule wanted to free the society from the evil practice and the trap of superstition. He spent his entire life in providing education to women, making women aware of their rights. He raised the pride of women by educating his wife respected Savitribai Phule ji and making her the country's first female teacher.
Jyotiba Phule was born on 11 April 1827 in Katgun, Satara district of Maharashtra. His full name was Jyotirao Govindrao Gonhe, Jyotirao Govindrao Phule. His father's name was Govindrao and his mother's name was Chimna Bai. When he turned 1 year old, his mother died. After this he was brought up by a midwife named Sagunabai. He was married to Savitri Bai Phule in 1840. Jyotiba Phule and Savitri Bai Phule had no children, so they adopted the child of a widow. This child grew up to become a doctor and also carried forward the social service work of his parents.
Jyotiba established 'Satyashodhak Samaj' in 1873 to provide justice to the poor and weak. Seeing his social service, in 1888 he was given the title of 'Mahatma' in a huge meeting in Mumbai. Jyotiba started the marriage rituals without the Brahmin-priest and it was also recognized by the Bombay High Court. He was against child marriage and was a supporter of widow remarriage. During his lifetime, he also wrote many books – Gulamgiri, Tritiya Ratna, Chhatrapati Shivaji, Raja Bhosla Ka Pakhda, Kisan Ka Koda, Untouchables Ki Kaifiyat. Due to the struggle of Mahatma Jyotiba and his organization, the government passed the 'Agriculture Act'. He also wrote many books to bring out the truth of religion, society and traditions.
Title by the British Government: In 1883, for the great work of providing education to women, she was honored by the then British Government of India by calling her "the father of women's education".
Shat shat Naman 🙏
ReplyDeleteशत शत नमन 🙏
ReplyDeleteमहान ज्योतिबा फुले को शत शत नमन
ReplyDeleteज्योतिबा फुले को नमन
ReplyDeleteNice information....
ReplyDeleteज्योतिबाफुले जी को शत शत नमन
ReplyDeleteमहान् समाज सुधारक
ReplyDeleteदलितों के उत्थान के लिये हमेसा कार्य करने वाले महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले जी को शत शत नमन🙏
ReplyDeleteVery Nice Information रूपा जी 😊🙏🏻
ReplyDeleteNice information
ReplyDeletenaman 🙏
ReplyDeleteShat shat 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteमहात्मा ज्योति बा फुले को उनके महान सराहनीय कार्यों के लिए शत शत नमन।
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteNaman
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