बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी
यूं तो राजपूत कूल का जब जिक्र होता है, तो गौरवशाली इतिहास नज़रों में यकायक अपनी छवि स्वयम बना लेता है। राजपूतों के शौर्य और बलिदानों की अमर गाथाओं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं, परंतु आज हम बात करने जा रहे हैं, बीकानेर की विरांगना राजरानी किरण देवी की।
भारतीय नारी की सहन क्षमता उसके दृढ़ संकल्प विश्वास से दुनिया में सभी भली भाती बाकिफ हैं। अपने सतीत्व एवं पतिव्रता धर्म के मार्ग पर चलते हुए उसकी रक्षा करना ही भारतीय नारी की पहचान है। उनके जीवन का आदर्श है। उनके सतीत्व से कितने बड़े बड़े साम्राज्य तिनके की तरह बिखर गए, ऐसी थी राजरानी किरण देवी, जिनकी लोक गाथा को इतिहासकारों ने अपने अपने हिसाब से वर्णित किये हैं।
सर्वप्रथम जान लेते हैं कौन हैं राजरानी किरण देवी
राजरानी किरण देवी मेवाड़ सूर्य महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या थीं, जिनका विवाह बीकानेर नरेश के भाई महाराज पृथ्वी सिंह से हुआ था। ये वही किरण देवी हैं, जिनकी कविता ने राणा प्रताप में पुन: राजपूतानों का जोश ला दिया था और फिर उनहोंने किसी भी हालत में अकबर से संधि की बातचीत स्वीकार नहीं की थी।
आप सभी बेहतर जानते हैं अकबर और राणा प्रताप की हट तथा राणा प्रताप का मातृभूमि प्रेम। एक समय अकबर जहाँ अपनी कूटनीति छल कपट से सारे राज्यों पर अधिकार जमाता रहा था, बड़े-बड़े राजपूत-घरानों ने अपनी सांस्कृतिक परम्परा और मान-सम्मान की उपेक्षा करना आरंभ कर दिया था, मेवाड़ छोडकर अन्य राजपूत रियासतों ने अकबर का लोहा मान लिया था, वहीँ पृथ्वीराज अपनी इस वीर रानी के साथ दिल्ली में ही रहते थे। किरण देवी परम सुन्दरी और सुशीला थीं। अकबर उसे अपनी वासना का शिकार बनाना चाहता था। अकबर शक्तिशाली सम्राट अवश्य था, किंतु कुछ गलत आदतें उसके हृदय में रात-दिन धधका करती थी। वहीँ दिल्ली के शक्तिशाली सम्राट की अभिलाषाओं की पूर्ति के लिये काफी शक्ति और साधन सम्पन्नता की आवश्यकता थी।
सभी जानते है अपनी गलत इच्छाओं की तृप्ति करने के लिये ही अकबर हर साल दिल्ली में ‘नौरोज’ का मेला लगवाता था, जिसमें राजपूतों की तथा दिल्ली की अन्य स्त्रियाँ मेले के बाजार में आया करती थीं। जहाँ से अपहरण कर स्त्रियों को अकबर के आरामगाह में छोड़ा जाता था। इस मेले में पुरुषों को जाने की आज्ञा नहीं दी जाती थी। अकबर स्त्री के वेश में इस मेले में घुमा करता था। जिन सुन्दरी पर अकबर मुग्ध हो जाता था, उसी स्त्री को उठवा लिया जाता था और अकबर के महल में ले था।
इन्हीं सब के बीच अकबर की आँखे बहुत दिनों से किरण देवी पर लगी हुई थी, परन्तु वो इस बात को भूल बैठा था कि ये उसी सिसोदिया राजघराने की सिंहनी है, जिस घराने के पुत्र राणा से जीतने का कोई स्वप्न में भी न सोंच सका था। वो रानी किरण देवी की वीरता से अनजान था। यही उसकी जीवन की बड़ी भूल साबित हुई। वह नहीं जानता था कि भारतीय नारियों ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिये अपने प्राणों तक की चिंता नहीं की और आग में जल-जलकर खुद को बलिदान कर दिया है। महारानी पद्मिनी की चिता की जलती राख का दर्शन उसकी पापी आँखों ने नहीं किया था। एक रोज जब मेले में मीना बाजार की सजावट देखने रानी किरण देवी आयीं तो अकबर के आदमियों ने अकबर के संकेत से राजरानी किरण देवी को धोखे से उठाकर महल पर पहुँचा दिया, जहाँ अकबर ने उसे घेर लिया और नाना प्रकार के प्रलोभन दिये।
किरण देवी की तेजस्विता की प्रखर किरणों से अकबर की इच्छाएं भभकती जा रही थी और जैसे ही अकबर ने उस राजपूत रमणिका को स्पर्श करने के लिये अपने हाथ बढ़ाये, उसी पल ही उस रणचण्डी ने कमर से तेज कटार निकाली और शुंभ-निशुम्भ की तरह उसे धरती पर पटककर छाती पर पैर रखकर कहा – ‘नीच! नराधम! भारत का सम्राट होते हुए भी तूने इतना बड़ा पाप करने की कुचेष्टा की। भगवान ने सती साध्वियों की रक्षा के लिये तुझे बादशाह बनाया है और तू उनपर जोर जबरदस्ती करता है। दुष्ट! अधम! तू बादशाह नहीं, नीच है, पिचाश है; तुझे पता नहीं कि मैं किस कुल की कन्या हूँ। सारा भारत तेरे पाँवों पर सिर झुकाता है, परंतु मेवाड़ का सिसोदिया-वंश का अभी भी सिर ऊँचा खड़ा है।
मैं उसी पवित्र राजवंश की कन्या हूँ। मेरी धमनियों में बप्पा रावल और साँगा का रक्त है। मेरे अंग-अंग में पावन क्षत्रिय वीरांगनाओं के चरित्र की पवित्रता है। तू बचना चाहता है, तो मन में सच्चा पश्चाताप करके अपनी माता की शपथ खाकर प्रतिज्ञा कर कि अब से ‘नौरोजी’ का मेला नहीं होगा और किसी भी नारी पर तू अपनी गन्दी दृष्टी नहीं डालेगा। नहीं तो, आज इसी तेज धार कटार से तेरा काम तमाम करती हूँ।
अकबर के शरीर का खून सूख गया। उसके दोनों हाथ थरथर काँपने लगे उसने करुण स्वर में बड़ा पश्चात्ताप करते हुए हाथ जोडकर कहा, ‘माँ ! क्षमा कर दो, मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में है, पुत्र प्राणों की भीख चाहता है। उसने प्रण किया कि अब नौरोज का मेला और मीना बाजार नहीं सजेगा। यह अकबर के चरित्र के बड़े कलंक हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।
किरण देवी सतीत्व की प्रखर किरण थीं, जिसके आलोक ने सारे देश को पतिव्रत्य की आभा से जगमगा दिया। शत शत नमन है ऐसी विरंगना के श्री चरणों में जिन्होने इतने बड़े सम्राट बादशाह अकबर को भी अपनी जान की भीख मांगने एवं अपने चरणों पर झुकने को मजबूर कर दिया ।
कुछ इतिहासकरों का मत है कि किरण देवी का नाम जयावती (या जोशीबाई) था। नाम कुछ भी हो, काम से ही लोगों की प्रसिद्धि होती है एवम राजरानी किरण देवी ने दिखा दिया कि नारी सिर्फ कहलाने को अबला होती है। नारी से बलवान कोई राजा महाराजा सम्राट बादशाह कोई नहीं। नारी कभी माँ, बहन, बेटी हर रूप में वंदनीय है।
नमन ऐसी वीरांगना को
ReplyDeleteहमारा देश वीरांगनाओं की वीर गाथा से भरा हुआ है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई होलकर, सावित्रीबाई फुले ऐसे जाने कितनी वीरांगनाएं हैं जिनको तो देश जानता है, परंतु कुछ वीरांगना ऐसी भी हैं, जो इतिहास के पन्नों में दब के रह गई। ब्लॉक का यह पार्ट भी अत्यंत महत्वपूर्ण है जो ऐसी वीरांगनाओं को समाज के सामने लाता है।
ReplyDeleteउम्मीद है इतिहास के पन्नों से ऐसी और भी वीरांगना को चुन कर अपने ब्लॉग का हिस्सा बनाएंगी और हम लोगों को आगे भी इस तरह की जानकारी से अवगत कराती रहेंगी।
सादर!!
वीरांगनाओं को कोटि कोटि नमन!!
जय राजपूताना 🙏🏻 शत शत नमन
ReplyDeleteNaman🙏
ReplyDeleteVery good information...
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteसुंदरियों ने जहां देश हित जौहर व्रत करना सीखा।
ReplyDeleteस्वतंत्रता के लिए जहां बच्चों ने मरना सीखा।।
वहीं जा रहा पूजा करने लेने सतियों की पद धूल।
वहीं हमारा दीप जलेगा,वहीं चढ़ेगा माला फूल।।
जय राजपूताना 🙏🏻 शत शत नमन
ReplyDeleteअच्छा ज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteNice information
ReplyDeleteउसी time मार देना चाहिए था
ReplyDeleteSahi kaha 🙏🏻
DeleteShat shat Naman 🙏
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