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बचपन का वो ज़माना और था || इतवार (Sunday) ||

बचपन का वो ज़माना और था

बचपन का वो ज़माना और था
"नींद से इतना भी प्यार न करो, 
कि मंज़िल भी ख्वाब बन जाए..❤"

बचपन का वो ज़माना और था.. 

जब दरवाजों पे ताला नहीं भरोसा लटकता था 
जब पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर में होते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब पड़ोस के घर बेटी पीहर आती थी तो सारे मौहल्ले में रौनक होती थी
जब गेंहूँ साफ करना किटी पार्टी सा हुआ करता था 
जब ब्याह में मेहमानों को ठहराने के लिए होटल नहीं लिए जाते थे
पड़ोसियों के घर से बिस्तर लगाए जाते थे
बचपन का वो ज़माना और था..  
जब छतों पर किसके पापड़ और आलू चिप्स सूख रहें है बताना मुश्किल था
जब हर रोज़ दरवाजे पर लगा लेटर बॉक्स टटोला जाता था
जब डाकिये का अपने घर की तरफ रुख मन मे उत्सुकता भर देता था 
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब रिश्तेदारों का आना
घर को त्योहार सा कर जाता था
जब आठ मकान आगे रहने वाली माताजी हर तीसरे दिन तोरई भेज देती थीं
और हमारा बचपन कहता था, कुछ अच्छा नहीं उगा सकती थीं ये
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब मौहल्ले के सारे बच्चे हर शाम हमारे घर 'ॐ जय जगदीश हरे' गाते
और फिर हम उनके घर शिव मंत्र गाते थे 
जब बच्चे के हर जन्मदिन पर महिलाएं बधाईयाँ गाती थीं
और बच्चा गले मे फूलों की माला लटकाए अपने को शहंशाह समझता था
जब भुआ और मामा जाते समय जबरन हमारे हाथों में पैसे पकड़ाते थे
और बड़े आपस मे मना करने और देने की बहस में एक दूसरे को अपनी सौगन्ध दिया करते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब शादियों में स्कूल के लिए खरीदे काले नए चमचमाते जूते पहनना किसी शान से कम नहीं हुआ करता था
जब छुट्टियों में हिल स्टेशन नहीं मामा के घर जाया करते थे
और अगले साल तक के लिए यादों का पिटारा भर के लाते थे
जब स्कूलों में शिक्षक हमारे गुण नहीं हमारी कमियां बताया करते थे
और मन में आया तो कूट भी दिया करते थे 
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब शादी के निमंत्रण के साथ पीले चावल आया करते थे
जब बिना हाथ धोये मटकी छूने की इज़ाज़त नहीं थी
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब गर्मियों की शामों को छतों पर छिड़काव करना जरूरी हुआ करता था
और छोटे से लेकर बूढ़े सारे एक लाइन में साथ ही सो लिया करते थे 
जब सर्दियों की गुनगुनी धूप में स्वेटर बुने जाते थे 
और हर सलाई पर नया किस्सा सुनाया जाता था
साथ ही पड़ोस वाली चाची एक घर इधर और चार घर उधर करके स्वेटर का डिज़ाइन बताते बताते चार चक्कर आगे पीछे घुमा दिया करती थीं 
जब रात में नाख़ून काटना मना था
जब संध्या समय झाड़ू लगाना बुरा था
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब बच्चे की आँख में काजल और माथे पे नज़र का टीका जरूरी था
जब रातों को दादी नानी की कहानी हुआ करती थी
जब कजिन नहीं सभी भाई बहन हुआ करते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब डीजे नहीं , ढोलक पर थाप लगा करती थी
जब गले सुरीले होना जरूरी नहीं था, दिल खोल कर बन्ने बन्नी गाये जाते थे
जब शादी में एक दिन का महिला संगीत नहीं होता था आठ दस दिन तक गीत गाये जाते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब बिना AC रेल का लंबा सफर पूड़ी, आलू और अचार के साथ बेहद सुहाना लगता था
वो ज़माना और था.. 
जब चंद खट्टे बेरों के स्वाद के आगे कटीली झाड़ियों की चुभन भूल जाया करते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब सबके घर अपने लगते थे
बिना घंटी बजाए बेतकल्लुफी से किसी भी पड़ोसी के घर घुस जाया करते थे 
जब पेड़ों की शाखें हमारा बोझ उठाने को बैचेन हुआ करती थी
जब एक लकड़ी से पहिये को लंबी दूरी तक संतुलित करना विजयी मुस्कान देता था
जब गिल्ली डंडा, पोसम पा, सतोलिया, गोटी और कंचे खूब खेला करते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब हम डॉक्टर को दिखाने कम जाते थे डॉक्टर हमारे घर आते थे
डॉक्टर साहब का बैग उठाकर उन्हें छोड़ कर आना तहज़ीब हुआ करती थी
जब इमली और कैरी खट्टी नहीं मीठी लगा करती थी
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब बड़े भाई बहनों के छोटे हुए कपड़े ख़ज़ाने से लगते थे
जब लू भरी दोपहरी में नंगे पाँव गालियां नापा करते थे
जब कुल्फी वाले की घंटी पर मीलों की दौड़ मंज़ूर थी 
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब मोबाइल नहीं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता और कादम्बिनी के साथ दिन बिताया करते थे
जब TV नहीं प्रेमचंद के उपन्यास हमें कहानियाँ सुनाते थे
बचपन का वो ज़माना और था.. 
जब मुल्तानी मिट्टी से बालों को रेशमी बनाया जाता था 
जब दस पैसे की चूरन की गोलियां ज़िंदगी मे नया जायका घोला करती थी 
जब पीतल के बर्तनों में दाल उबाली जाती थी
जब चटनी सिल पर पीसी जाती थी
बचपन का वो ज़माना और था.. 
वो ज़माना वाकई कुछ और था..
बचपन का वो ज़माना और था
"Life Begins - the moment you realize you don't have to prove shit to anyone."
👍🏻Good Morning 👌🏻


23 comments:

  1. सच में वो बचपन का जमाना और था। बहुत ही सुंदर रचना, दिल को छू गई।

    हमनें तो वो समय भी देखा है जब पहली बार रामायण का प्रसारण था, TV सिर्फ मेरे घर में थी और उस वक्त पर मेरे घर का छोटा सा कमरा पूरी तरीके से भर जाता था, बैठने की जगह नहीं होती थी और बरामदे तक में लोग बैठ जाते थे। सबसे अच्छी बात ये थी कि न मेरे घर में किसी को ये बुरा लगता था ना ही आने वाले को। TV की साइज छोटी थी, कमरे में जगह काम थी पर दिल बहुत बड़ा हुआ करता था। आजकल लोगों की प्राइवेसी भंग होती। एक घर में 2- 3 TV है। घर में जितने सदस्य उतने TV mobile. पहले मुहल्ले वाले भी पास हुआ करते थे अब परिवार वाले भी दूर हो गए।

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  2. आप ने आज बहुत कुछ याद दिला दिया बह टाइम अब कभी भी लौटकर नही आयेगा सही मै
    हम तो उन यादो मै खो गये

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  3. 💞💞💞🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  4. बारिश होने पर कागज की नाव बनाना, टीवी पर साफ नाआने पर दौड़ के एंटीना घुमाना, वगैरह वगैरह.. ये सब यादें बचपन की.. कभी ना वापस आने वाली.. वो जमाना वाकई में कुछ और था
    👏👏♥️♥️

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  5. क्या बात है बहुत सुंदर बचपन की याद मुझे भी दिला दी ❤️🥰🥰

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  6. वाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

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  7. अब तो मोबाइल, टीवी का जमाना है...

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  8. वाकई में वो जमाना ही कुछ और था और शायद वो कभी लौट के नहीं आने वाला है। वैसी समरसता, वैसे रिश्ते और आपस में प्रेम आज के समय में कल्पना करना भी मुश्किल है। रामायण और क्रिकेट मैच के लिए कई घरों की बैटरी इकट्ठा करके एक छोटी सी जगह में इतने सारे लोग जगह कम पड़ जाती थी, आज घरों में बड़े बड़े हाल हैं लेकिन साथ में बैठने वाला कोई नहीं। बड़ो का सम्मान छोटों से प्यार सब अपने ही लगते थे।
    आज फिर बचपन की यादें ताजा हो गई।
    शुभ रविवार

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  9. "नींद से इतना भी प्यार न करो,
    कि मंज़िल भी ख्वाब बन जाए..❤"

    Aap kitne der soti hain

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  10. बचपन की सुखद स्मृतियों में लौटाने के लिए आपका दिल से शुक्रिया।

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  11. Oh my God! Kithna sahi pharmaaya aapne. Mujhe meri Basheerbagh, Hyderabad ki din yaad aa gayi. Kareeb kareeb 50 saal pehle wale baath. Ham Marathi house owner ghar mein banthi chakli khaathe the. Jaam (Guava) phal ke ped chadkar jaam khaathe the. Strawberry ki phal neeche girke violet colour ki banthi thi floor. Yaadamma barthan dhone wali choti ladki aathi thi. Ham usey chedthe the " Deewana" kehkar Hindi cinema gaana gaake.

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    1. Aajkal ke bacche ped par chadh kar fal Tod kar nahi khate, pure time mobile me busy hote. Wo bachpan ka jmana aisa hi tha, ab to bacche ped par chadhna bhi nahi jante..

      Aapki baat yahan share karne ke liye bahut bahut dhanyawad.. 😊

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  12. Padho aur padhte jao...kho jao bachpan ki yaadon me...un dino ke kisse hi bade majedaar majedaar the...aur hamare teacher bhi bade majedaar hua karte the...kabhi kabhi to pitte pitte ghar tak bhi le k pahuch jate the...I miss those days very much ..waise to kahte hain umar ka har daur majedaar hai...par us bachpan ki to baat hi kuch aur hai


    Aapne dil k har taar chhed diye

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