तख्त श्री दमदमा साहिब भटिंडा (पंजाब)
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हर गुरुद्वारा साहिब के पीछे एक ऐसी घटना या कथा जरूर जुड़ी हुई है, जो उसे दुनिया में अत्यधिक पूज्यनीय बना देती है। ठीक उसी तरह तख्त श्री दमदमा साहिब का इतिहास भी बेहद गौरवान्वित करने वाला है।
तख्त श्री दमदमा साहिब पंजाब के भटिंडा में स्थित है जिसे लोग तलवंडी साबो के नाम से भी जानते हैं। सिख समुदाय के धर्मगुरु बताते हैं कि इसी स्थान पर दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब जी का पूर्ण संस्करण तैयार किया था।
यह दौर सन 1704 का है, जब क्रूर मुगल सेना ने अपने बादशाह के हुक्म से श्री आनंदपुर साहिब पर आक्रमण करके गुरु गोविंद सिंह जी को पकड़ना चाहा। तब मुगलों ने अपनी कुरान की कसमें तोड़ कर गुरु जी को धोखा दिया तो गुरु साहिब जी भी उनकी आंखों में धूल झोंकते हुए माता गुजरी, साहेबजादे व अन्य सिख सेवादारों के साथ वहां से निकल गए, लेकिन विधि का विधान ऐसा था कि वे उफनती हुई सरसा नदी को पार करते हुए माता गुजरी और दो छोटे साहिबजादे व अन्य सीखों से बिछड़ गए।
जानकार बताते हैं कि गुरु साहिब जी से बिछड़ने के बाद माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों की मुलाकात गुरु गोविंद सिंह जी के पुराने सेवादार गंगू से हुई जिसने माता जी को अपने घर आने को कहा लेकिन उसने माता गुजरी और छोटे साहबजादे के साथ विश्वासघात किया और उन्हें सुबह सरहद वजीर खान के हवाले कर दिया।
वजीर खान ने उन पर कहर ढाते हुए साहिबजादों को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने को कहा। मना करने पर उसने उन साहिबजादों को जिंदा दीवाल में चुनवा दिया, इस घटना से माता गुजरी भी अचेत होकर गिर गईं और दम तोड़ दीं।
दूसरी ओर, गुरु साहिब जी अपने दोनों बड़े साहिबजादों और कुछ सीखों के साथ चमकौर साहिब पहुंचे। वहां भी मुगलों ने अपना छल जारी रखते हुए उन पर हमला कर दिया। इस हमले में सिखों और मुगलों के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ, जिसमें दोनों बड़े साहिबज़ादे सहित कई अन्य सिख शहीदी पा गए। इस युद्ध के बाद गुरु गोविंद सिंह जी माछीवाड़ा, दिनागढ़, मुक्तसर साहिब, लखी जंगल, पक्का पथराला को पार करते हुए साल 1705 में तलवंडी साबो पहुंचे।
जानकारों के मुताबिक, जब श्री गुरु गोविंद सिंह जी युद्ध और मुश्किल हालातों से लड़ते हुए तलवंडी साबो पहुंचे तब यहां आकर उन्होंने अपने कमर पर बसें कमरकसे को खोलते हुए एक लंबी सांस (दम) लेते हुए आराम फरमाया, जिसके कारण इस जगह का नाम दमदमा साहिब पड़ गया।
कहा जाता है कि इस स्थान पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी लगभग 15 महीने से ज्यादा समय तक रहे और उन्होंने आदि ग्रंथ 'श्री गुरु ग्रंथ साहिब' जी का पूर्ण संस्करण तैयार किया। इस आदि ग्रंथ को भाई मनी सिंह के हाथों से लिखा गया। भाई मनी सिंह जी महान शहीदों में से एक हैं।
जब श्री गुरु गोविंद सिंह जी 15 हफ्ते यहां रहने के बाद आगे बढ़ने के लिए इस जगह को छोड़ रहे थे तब उन्होंने इस जगह को आशीर्वाद दिया कि जो भी सीख यहां सच्चे मन से आएगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। यह धरती पावन और पवित्र हो गई तथा गुरु की काशी तख्त श्री दमदमा साहिब के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुई।
श्री गुरु गोविंद सिंह जी इस संस्थान से जब हजूर साहिब की ओर चले तब इस स्थान का मुख्य प्रबंधक बाबा दीप सिंह जी को बनाया गया था बाबा दीप सिंह जी ने बहुत लंबे समय तक इस स्थान की सेवा की। इस सेवा के दौरान ही बाबा जी ने श्री गुरु साहिब जी के पावन स्वरूप अपनी देखरेख में लिखवाए और उसे अन्य चार तख्त में पहुंचवाया, जिससे दमदमा साहिब सिख लेखों तथा ज्ञानियों की टकसाल की पहचान के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
इस पवित्र ऐतिहासिक स्थान को सिखों का पांचवां तख्त होने का मान और सत्कार हासिल है। तख्त दमदमा साहिब की मौजूदा आलीशान इमारत का निर्माण 1965-66 इस्वी में हुआ था।इस ऐतिहासिक स्थान का प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर के पास 1960 में आया।
तख्त श्री दमदमा साहिब का क्षेत्रफल 30-35 एकड़ में फैला हुआ है। तख्त श्री दमदमा साहिब में सुबह शाम ऐतिहासिक वस्तुओं के दर्शन संगत को करवाए जाते हैं,जिसमें गुरु तेग बहादुर जी की तलवार, गुरु साहिब जी की निशाने वाली बंदूक, बाबा दीप सिंह जी का तेगा (खंडा)। गुरुद्वारे में प्रवेश के लिए मुख्य मार्ग से तीन बड़े-बड़े प्रवेश द्वार पार करने के बाद मुख्य गुरुद्वारा दमदमा साहिब में पहुंचते हैं। यहां दरबार साहिब लगभग 100 फुट लंबा और 60 फुट चौड़ा है। दरबार साहिब 5 फुट ऊंची जगती पर विराजमान है। नीले रंग का कढ़ाईदार मखमल का चंदोरा अत्यंत शोभायमान है। दरबार के गोल खंभों पर सोने का पत्तर चढ़ा हुआ है। दरबार साहिब के बीचो-बीच श्री गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान है।
मुख्य ग्रंथि लगातार चंवर डुलाते रहते हैं। नीचे बैठे रागी वाद्य यंत्रों के साथ 24 घंटे गुरुवाणी का पाठ करते रहते हैं। परिक्रमा मार्ग में संगत बैठकर गुरुवाणी का पाठ सुनती है।संपूर्ण दरबार हाल पंखों एवं एसी से सुसज्जित है, दरबार हाल का बड़ा झूमर अत्यंत विशाल और आकर्षक है।
भूतल से 12 सीढियां चढ़ने के बाद मुख्य जगती पर पहुचते हैं। भूतल से 6 फुट ऊंची जगती पर लगभग 2.5 एकड का प्लेटफार्म बना है। प्लेटफार्म पर कीमती संगमरमर लगाया गया है, और प्लेटफार्म के चारों ओर सुंदर पुष्पों के पौधे है।
दमदमा साहिब में यात्रियों के ठहरने तथा लंगर आदि का प्रबंध बहुत ही अच्छा है। गुरू नानकदेव जी एवं गुरू गोविंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव, गुरू ग्रंथ साहिब जी का सम्मपूर्णता दिवस, तथा खालसे की साजना दिवस, वैशाखी बड़े स्तर और धूमधाम से मनाये जाते है, जिसमें हजारों श्रद्धालु तथा इसके अलावा प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं, और गुरू जी की चरण रज प्राप्त कर गुरूधाम की यात्रा करते हैं।
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Takht Sri Damdama Sahib Bathinda (Punjab)
As you all know that behind every Gurdwara Sahib there is an incident or legend attached to it, which makes it highly revered in the world. In the same way, the history of Takht Shri Damdama Sahib is also very proud.
Takht Shri Damdama Sahib is located in Bathinda, Punjab which is also known by the name of Talwandi Sabo. The religious leaders of the Sikh community tell that it was at this place that the tenth Guru, Sri Guru Gobind Singh, had prepared the full version of the Guru Granth Sahib.
This period dates back to 1704, when the brutal Mughal army attacked Sri Anandpur Sahib by order of its emperor and wanted to capture Guru Gobind Singh ji. Then the Mughals betrayed Guru ji by breaking their Quranic vows, then Guru Sahib ji also left there with Mata Gujri, Sahebzade and other Sikh sevadars throwing dust in their eyes, but the law of the law was such that they were booming. While crossing the river Sarsa, Mata Gujri and two younger Sahibzade and other Sikhs got separated.
The experts tell that after separation from Guru Sahib Ji, Mata Gujri ji and Chhote Sahibzade met Gangu, the old servitor of Guru Gobind Singh ji, who asked Mata ji to come to his house but he betrayed Mata Gujri and Chhote Sahibzade and He was handed over to Sarhad Wazir Khan in the morning.
Wazir Khan, wreaking havoc on them, asked the Sahibzadas to accept the Muslim religion. On refusing, he got those Sahibzadas elected in the wall alive, due to this incident Mata Gujri also fell unconscious and died.
On the other hand, Guru Sahib ji reached Chamkaur Sahib with both his elder sahibzadas and some lessons. There the Mughals continued their deceit and attacked them. In this attack there was a fierce battle between the Sikhs and the Mughals, in which many other Sikhs including both the elder Sahibzade were martyred. After this war, Guru Gobind Singh Ji reached Talwandi Sabo in the year 1705 by crossing Machiwada, Dinagarh, Muktsar Sahib, Lakhi Jungle, Pakka Pathrala.
According to the experts, when Shri Guru Gobind Singh ji reached Talwandi Sabo fighting the war and difficult conditions, after coming here he rested on his waist, taking a long breath (Dum) while opening the buses, due to which the name of this place was Dumdama. Sahib fell.
It is said that Sri Guru Gobind Singh ji stayed at this place for more than 15 months and he prepared the complete version of Adi Granth 'Sri Guru Granth Sahib'. This Adi Granth was written by the hands of Bhai Mani Singh. Bhai Mani Singh Ji is one of the great martyrs.
When Shri Guru Gobind Singh ji was leaving this place to move forward after staying here for 15 weeks, he blessed this place that whatever learning comes here with a sincere heart, every wish will be fulfilled. This earth became holy and holy and the Guru's Kashi Takht became world famous by the name of Shri Damdama Sahib.
When Shri Guru Gobind Singh ji moved from this institute towards Hazur Sahib, Baba Deep Singh ji was made the chief manager of this place. Baba Deep Singh ji served this place for a very long time. It was during this service that Baba ji got the holy form of Shri Guru Sahib ji written under his supervision and sent it to the other four Takhts, due to which Damdama Sahib became famous as the identity of the mint of Sikh writings and the wise.
This holy historical place has the honor and respect of being the fifth throne of the Sikhs. The present stately building of Takht Damdama Sahib was constructed in 1965-66 AD. The management of this historical place came to Shiromani Gurdwara Prabandhak Committee Amritsar in 1960.
The area of Takht Shri Damdama Sahib is spread over 30-35 acres. In the morning and evening at Takht Shri Damdama Sahib, historical objects are offered to the sangat, including the sword of Guru Tegh Bahadur Ji, the gun aimed at Guru Sahib, the Tega (Khanda) of Baba Deep Singh Ji. After crossing three big entrances from the main road to enter the Gurudwara, one reaches the main Gurdwara Damdama Sahib. The Darbar Sahib here is about 100 feet long and 60 feet wide. Darbar Sahib is seated on a 5 feet high Jagti. The blue embroidered velvet Chandora is very beautiful. The round pillars of the court are gilded. Sri Guru Granth Sahib sits in the middle of the Darbar Sahib.
The main gland is constantly moving the chanvar. Sitting downstairs, with ragi musical instruments, he keeps on reciting Guruvani for 24 hours. The Sangat sits on the parikrama road and listens to the Guruvani. The entire Durbar Hall is equipped with fans and ACs, the large chandelier of the Durbar Hall is very spacious and attractive.
After climbing 12 steps from the ground floor, reach the main Jagti. A platform of about 2.5 acres has been built on Jagti, 6 feet high from the ground floor. The platform is covered with precious marble, and the platform is surrounded by beautiful flower plants.
The arrangement of accommodation and langar etc. is very good in Damdama Sahib. The Festival of Lights of Guru Nanak Dev Ji and Guru Gobind Singh Ji, the Perfection Day of Guru Granth Sahib Ji, and the Sajna Day of Khalse, Vaishakhi are celebrated with great scale and pomp, in which thousands of devotees and apart from this, a large number of devotees come here every day, And after receiving the raj of the feet of Guru ji, they travel to the Gurudham.
Great historic message. Thank you.
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteबदल रहा वक्त
ReplyDeleteहर क्षेत्र में नारी हो रही सशक्त!
#अंतर्राष्ट्रीय_महिला_दिवस के अवसर देश की नारी शक्ति को हार्दिक शुभकामनाएं।
#BreakTheBias #NariShakti #IWD2022
नारी शक्ति का महान होना जरूरी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छे
ReplyDeleteभारत देश की नारी है सब पर भारी
नारी शक्ति का महान होना जरूरी है।
ReplyDeleteअंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी मिली तख्त श्री दमदमा साहिब के बारे में 👌👌
सतनाम वाहेगुरु 🙏🙏
तख्तवश्री दमदमा साहिब पंजाब के भटिंडा। में स्थित है।यह पांच तख्तों में एक है।
ReplyDeleteWahe guru ji da khalsa waheguru ji di fateh.. happy women's day
ReplyDeleteWaheguru ji ka khalsa waheguru ji ki Fateh very nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteBahut achi jankari sajha ki...waheguru ki kripa aap par sada bani rahe..aap din duni raat chauguni tarakki Karen..
ReplyDeleteWahe guru ji da khalsa waheguru ji di fateh
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