रंगा सियार
अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने वाला ...आत्मीयों को छोड़कर परकीयों में रहने वाला नष्ट हो जाता है।
एक दिन जंगल में रहने वाला चण्डरव नाम का गीदड़ भूख से तड़पता हुआ लोभवश नगर में भूख मिटाने के लिए आ पहुंचा।
उसके नगर में प्रवेश करते ही नगर के कुत्तों ने भौंकते - भौंकते उसे घेर लिया और नोचकर खाने लगे। कुत्तों से किसी तरह जान बचाकर चण्डरव भागते भागते जो भी दरवाजा पहले मिला उसी में घुस गया। वह एक धोबी के मकान का दरवाजा था। मकान के अंदर एक बड़ी कड़ाही में धोबी ने नील घोलकर नीला पानी बनाया हुआ था। कड़ाही नीले पानी से भरी थी। गीदड़ जब डरा हुआ अंदर घुसा तो अचानक उस कड़ाही में जा गिरा। जब सियार वहां से निकला, तो उसका रंग बदला हुआ था। अब वह बिल्कुल नीले रंग का हो गया। नीले रंग में रंगा हुआ चण्डरव जब वन में पहुंचा तो सभी पशु उसको देखकर चकित रह गए। वैसे रंग का जानवर उन्होंने आज तक नहीं देखा था।
उसे विचित्र जीव समझकर शेर, बाघ, चीते भी डरकर जंगल से भागने लगे। सब ने सोचा ना जाने इस विचित्र पशु में कितना सामर्थ्य हो। इस से डरना ही अच्छा है।
चण्डरव ने जब सब पशुओं को डरकर भागते देखा, तो उन्हें बुलाकर बोला - "पशुओं !मुझसे डरते क्यों हो? मैं तुम्हारी रक्षा के लिए यहां आया हूं। त्रिलोक के राजा ब्रह्मा ने मुझे आज ही बुला कर कहा था कि आजकल चौपाइयों का कोई राजा नहीं है। सिंह मृगादि सब राजाहीन हैं। आज मैं तुझे उन सबका राजा बना कर भेजता हूं। तुम वहां जाकर सब की रक्षा कर। इसलिए मैं यहां आया हूं। मेरी छत्रछाया में पशु आनंद से रहेंगे। मेरा नाम ककुद्रुम राजा है।"
यह सुनकर शेर बाघ आदि पशुओं ने चण्डरव को राजा मान लिया और बोले - "स्वामी! हम आपके दास हैं। आज्ञा पालक हैं। आगे से आपकी आज्ञा का पालन करेंगे।"
चण्डरव ने राजा बनने के बाद शेर को अपना प्रधानमंत्री बनाया। बाघ को नगर रक्षक और भेड़िए को संतरी बनाया। अपने आत्मीय गीदड़ों को जंगल से बाहर निकाल दिया। उनसे बात भी नहीं की।
उसके राज्य में शेरा आदि जीव छोटे-छोटे जानवरों को मारकर चण्डरव को भेंट करते थे। चण्डरव उनमें से कुछ भाग खाकर शेष अपने नौकर चाकरों को बांट देता था। कुछ दिन तो उसका राज्य बड़ी शांति से चलता रहा। किंतु एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया।
उस दिन चण्डरव को दूर से गीदड़ों की किलकारियां सुनाई दीं। उन्हें सुनकर चण्डरव का रोम-रोम खिल उठा। खुशी में पागल होकर वह भी किलकारियां मारने लगा।
शेर बाघ आदि पशुओं ने जब उसकी किलकारियां सुनी तो वे समझ गए कि वह चण्डरव ब्रह्मा का दूत नहीं बल्कि मामूली गीदड़ है। अपनी मूर्खता पर लज्जा से सिर झुकाकर वे आपस में सलाह करने लगे। इस गीदड़ ने तो हमें खूब मूर्ख बनाया। इसे इसका दंड दो। इसे मार डालो।
चण्डरव ने शेर - बाघ आदि की बात सुन ली। वह भी समझ गया कि अब उसकी पोल खुल गई है। अब जान बचाना कठिन है। इसलिए वह वहां से भागा। किंतु शेर के पंजे से भाग कर कहां जाता? एक ही छलांग में शेर ने उसे दबोच कर खंड खंड कर दिया।
इसीलिए मैं कहता हूं कि जो आत्मीयों को दुत्कार कर परायों को अपनाता है, उसका नाश हो जाता है।
दमनक की बात सुनकर पिंगलक ने कहा - "दमनक! अपनी बात को तुम्हें प्रमाणित करना होगा। इसका क्या प्रमाण है कि संजीवक मुझे द्वेष भाव से देखता है?"
दमनक - इसका प्रमाण आप स्वयं अपनी आंखों से देख लेना। आज सुबह ही उसने मुझे यह भेद प्रकट किया है कि वह कल आपका वध करेगा। यदि कल आप उसे अपने दरबार में लड़ाई के लिए तैयार देखें, उसकी आंखें लाल हो, होंठ फड़कते हों, एक ओर बैठ कर आपको क्रूर वक्र दृष्टि से देख रहा हो, तब आपको मेरी बात पर स्वयं विश्वास हो जाएगा।
शेर पिंगलक को संजीवक बैल के विरुद्ध उकसाने के बाद दमनक संजीवक के पास गया। संजीवक ने जब उसे घबराए हुए आते देखा, तो पूछा मित्र स्वागत है। क्या बात है? बहुत दिन बाद आए कुशल तो है?
दमनक - राज सेवकों के कुशल का क्या पूछना? उनका चित्त सदा अशांत बना रहता है। स्वेच्छा से वह कुछ भी नहीं कर सकते। निःशंक होकर एक शब्द भी बोल नहीं सकते। इसलिए सेवावृत्ति को सब वृत्तियों से अधम कहा जाता है।
संजीवक - मित्र! आज तुम्हारे मन में कोई विशेष बात करने को है। वह निश्चिंत होकर कहो। साधारणतया राज सचिवों को सब कुछ गुप्त रखना चाहिए, किंतु मेरे तुम्हारे बीच कोई पर्दा नहीं है। तुम बेखटके अपने दिल की बात मुझसे कह सकते हो।
दमनक - आपने अभय वचन दिया है, इसलिए मैं कह देता हूं। बात यह है कि इनके मन में आपके प्रति पाप भावना आ गई है। आज उसने मुझे बिल्कुल एकांत में बुलाकर कहा है कि कल सुबह सुबह ही वह आपको मारकर अन्य मांसाहारी जीवो की भूख मिटाएगा।
दमनक की बात सुनकर संजीवक देर तक हतप्रभ सा रहा। मूर्छा सी छा गई उसके शरीर में। कुछ चेतना आने के बाद तीव्र वैराग्य भरे शब्दों में बोला - राज सेवा सचमुच बड़ा धोखे का काम है। राजाओं के दिल होता ही नहीं। मैंने भी शेर से मैत्री करके मूर्खता की। समान बल शील वालों से ही मैत्री होती है। समान शील व्यसन वाले ही सखा बन सकते हैं। अब यदि मैं उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करूंगा, तो भी व्यर्थ है। क्योंकि जो किसी कारणवश क्रोध करे, उसका क्रोध उस कारण के दूर होने पर दूर किया जा सकता है, लेकिन जो अकारण ही कुपित हो, उसका कोई उपाय नहीं है। निश्चय ही पिंगलक के पास रहने वाले जीवों ने ईर्ष्याबस उसे मेरे विरुद्ध उकसा दिया। सेवकों में प्रभु की प्रसन्नता पाने की होड़ लगी रहती है। वह एक दूसरे की वृद्धि सहन नहीं करते।
दमनक - मित्रवर! यदि यही बात है तो मीठी बातों से अब राजा पिंगलक को प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं उपाय करो।
संजीवक - नहीं दमनक! यह उपाय सच्चा उपाय नहीं है। एक बार तो मैं राजा को प्रसन्न कर लूंगा, किंतु उसके पास वाले कूट-कपटी लोग फिर किन्हीं दूसरे झूठे बहानों से उसके मन में मेरे लिए जहर भर देंगे और मेरे वध का उपाय करेंगे, जिस तरह गीदड़ और कौवे ने मिलकर ऊंट को शेर के हाथों मरवा दिया था।
दमनक ने पूछा - किस तरह?
संजीवक ने तब ऊंट, कौवों और शेर की यह कहानी सुनाई।
फूँक - फूँक कर पग धरो
To be continued ...
Good story
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteSuper super
ReplyDeleteNice story 👍
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteचरित्र के विरुद्ध व्यवहार बहुत देर तक नहीं किया जा सकता और भेद खुल ही जाता है।
ReplyDeleteअच्छी कहानी
Nice
ReplyDelete👍 Nice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteकब तक कोई अपनी पहचान छुपाएगा। एक न एक दिन पकड़ा ही जायेगा
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी एक बहुतही उत्प्रेरक संदेश के साथ।
ReplyDeleteएक संदेश के साथ बहुत अच्छी कहानी 👍
ReplyDelete🦊रंगा सियार बनकर जो
ReplyDelete🙋♂️तुझमें गुमान आ गया
👫अपनों को अनदेखाकर
🤔जो तुझमें आज जो
🤲ये अभिमान आ गया
🙄एक दिन इस घमंड का
🤩ये घड़ा जरूर फुटेगा
👐परायो के भरोसे रहोगे
🤢तो एक दिन भरम टूटेगा
😘अपनों पर विश्वास करो
👺घमंड का नाश करो
😞कोई भी नाराज ना हो
👣इतना-सा प्रयास करो
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
अच्छी कहानी 👌👌
ReplyDeleteआगे के इंतजार में…
जो अपनी जाति का तिरस्कार तिरस्कार करता है उसका नाश हो जाता है।
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVery nice story..
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