रूद्र महालय (Rudra Mahalaya)
10 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गुजरात की राजधानी पाटन थी। महाराजा मूलराज सोलंकी प्रतापी राजा हुए थे। सिद्धपुर (श्री स्थल) प्राचीन सिद्धपीठ थी। महाराज मूलराज ने अपने मातुल (मामा) सामंत सिंह का वध कर पाटन की राजगद्दी प्राप्त की थी। संपूर्ण भारत के सर्वाधिक ऐश्वर्यशाली राज्य कायम किया। वृद्धावस्था में पश्चाताप वश रूद्र महालय (Rudra Mahalaya) जिसमें एक सहस्त्र शिवलिंगों वाला एक सहस्त्र मंदिरों का विशाल रूद्र महालय या रुद्र की माला के समान मंदिर बनवाने का विचार उनके मन में आया।
सिद्धपुर, पापनाशनी पुण्य सलिला सरस्वती नदी के पावन तट पर स्थित है। महर्षि कर्दम की तपोभूमि है, जगन्माता देवहूति का मुक्ति स्थान है, योगाचार्य कपिल मुनि का जन्म स्थान है, यहीं सरस्वती तट पर महर्षि दधीचि का आश्रम है,और इस स्थान पर महाराजा मूलराज ने तत्कालीन उत्तर भारत या उदित दिशा से 1037 अति उच्च विद्वान ब्राह्मणों को बुलवाकर सिद्धपुर में सरस्वती के तट पर रूद्र याग (रूद्र यज्ञ) करवाया और मंदिर निर्माण प्रारंभ किया था।
इस मंदिर का पुनर्निर्माण चौथी पीढ़ी में महाराज जय सिंह ने किया। इस समय महाराज जयसिंह द्वारा प्रजा का ऋण माफ किया गया और इसी अवसर पर नव संवत् चलवाया गया जो आज भी संपूर्ण गुजरात में चलता है।
इस रूद्र महालय में 1500 स्तंभ थे। माणिक्य मुक्ता युक्त 1000 मूर्तियां थीं। इस पर 30000 स्वर्ण कलश थे, जिन पर पताकाएं फहराती थीं। रूद्र महालय में पाषाण पर कलात्मक "गज" एवं "अश्व" उत्कीर्ण थे। अगणित जालियां पत्थरों पर खुदी हुईं थीं। कहा जाता है कि यहां 7000 धर्मशालाएं थीं, इनके रत्न जड़ित द्वारों की छटा निराली थी। मध्य में एकादश रुद्र के एकादश मंदिर थे। वर्ष 995 में मूलराज ने रूद्र महालय की स्थापना की थी। वर्ष 1150 (ईसवी संवत् 1094) में सिद्धराज ने रूद्र महालय का विस्तार करके "श्री स्थल" का "सिद्धपुर" नामकरण किया था।
महाराज मूलराज महान शिव भक्त थे, अपने परवर्ती जीवन में अपने पुत्र चावंड को राज्य सौंप कर श्री स्थल (सिद्धपुर) में तपस्या में व्यतीत किया और वहीं उनका स्वर्गवास हुआ।
आज इस भव्य और विशाल रूद्र महल को खंडहर के रूप में देखा जा सकता है। आततायी आक्रमणकारी लुटेरे बादशाहों अलाउद्दीन खिलजी और बाद में अहमद शाह प्रथम ने 1410 -44 के बीच तीन बार इसे तोड़ा और लूटा। यही नहीं, इसके एक भाग में मस्जिद बना दी इसके एक भाग को बाजार का रूप दिया। इस बारे में वहां फारसी और देवनागरी में शिलालेख हैं।
वर्तमान में रूद्रमहल के पूर्व भाग के तोरण द्वार 4 शिव मंदिर और ध्वस्त सिर्फ सूर्यकुंड है। यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।
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Rudra Mahalaya
The capital of Gujarat was Patan in the late 10th century. Maharaja Mulraj Solanki had become a majestic king. Siddhapur (Shri Sthal) was an ancient Siddhapeeth. Maharaj Mulraj had obtained the throne of Patan by killing his matul (uncle) Samant Singh. Established the most opulent state of the whole of India. Out of repentance in old age, the idea of building a huge Rudra Mahalaya or a temple of Rudra's garland came to his mind.
Siddhapur is situated on the holy bank of the Papanashani Punya Salila Saraswati River. Maharishi is the penance of Kardam, Jaganmata is the place of salvation of Devhuti, birth place of Yogacharya Kapil Muni, here is the ashram of Maharishi Dadhichi on the banks of Saraswati, and at this place Maharaja Mulraj had 1037 highly learned Brahmins from the then North India or Udit direction. He got Rudra Yag (Rudra Yagna) done on the banks of Saraswati in Sidhpur and started the temple construction.
This temple was rebuilt in the fourth generation by Maharaj Jai Singh. At this time, the debt of the subjects was waived by Maharaj Jai Singh and on this occasion a new era was started, which continues even today in the whole of Gujarat.
There were 1500 pillars in this Rudra Mahalaya. There were 1000 idols containing rubies. It had 30,000 gold urns on which flags were hoisted. In Rudra Mahalaya, artistic "Gaj" and "Horse" were engraved on the stone. Countless jaalis were carved on the stones. It is said that there were 7000 Dharamshalas here, the color of their gem-studded gates was unique. In the middle were the eleven temples of Ekadash Rudra. Rudra Mahalaya was established by Mulraj in the year 995. In the year 1150 (AD 1094), Siddharaj expanded the Rudra Mahalaya and renamed "Sri Sthal" as "Siddhapur".
Maharaj Moolraj was a great devotee of Shiva, handed over the kingdom to his son Chavand, spent his penance at Sri Sthal (Siddhapur) and died there.
Today this grand and huge Rudra Mahal can be seen in ruins. It was broken and plundered thrice between 1410-44 by the tyrannical invading robber emperors Alauddin Khilji and later Ahmad Shah I. Not only this, a part of it was made a mosque, a part of it was given the form of a market. There are inscriptions in Persian and Devanagari about this.
At present, the pylon gate of the east part of Rudramahal has 4 Shiva temples and only Suryakund is demolished. It is under the Department of Archeology.
tabhi hamara desh sone ki chidiya kahlata tha
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteAchhi jankari he msg by asha ver
ReplyDeleteGood One
ReplyDeleteItni baria jankari hme ek click m mil jati hai... very nice 👌
ReplyDeleteMem,Excellent.
ReplyDeleteरुद्रमहालय (अर्थ : रुद्र का विशाल घर) गुजरात के पाटण ज़िले के सिद्धपुर में स्थित एक ध्वस्त मन्दिर परिसर है
ReplyDeleteइसका निर्माण ९४३ ई में मूलराज ने आरम्भ कराया था तथा ११४० ई में जयसिंह सिद्धराज ने इसे पूरा कराया
इस मन्दिर को पहले अलाउद्दीन खिलजी ने तोड़ा तथा बाद में
Nice
ReplyDeleteहर हर महादेव 🙏 🔱 🙏
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteनमः शिवाय।
गुजरात के सिद्धपुर जिले महाराजा मूलराज सोलंकी द्वारा निर्मित भव्य महालय शिव मंदिर है।बाद में। बाद महराजा जय सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। यह मंदिर सरस्वती नदी के तट पर स्थित है।यह कर्दम ऋषि की तपो भूमि है।
ReplyDeleteथोड़े ही अवशेष में इस मंदिर की भव्यता का अनुमान लगाना कठिन हो रहा है जब बना होगा तब कैसा रहा होगा
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जानकारी
Nice
ReplyDeleteगुजरात के पाटन में था जिनका एकछत्र राज
ReplyDeleteविशाल राज्य के सम्राट थे महाराजा मूलराज
पश्चाताप की आग में जल रहे थे वो दिन-रात
मन ही मन में उन्होंने निश्चय की थी एक बात
सहस्त्र शिवलिंगों का बनाया विराट शिवालय
माणिक्य मुक्ता-स्वर्ण कलश युक्त था रुद्रालय
सिद्धपुर-श्रीस्थल स्थित सरस्वती नदी तट पर
खंडहरनुमा मौन खड़ा हंस रहा उस कपट पर
मुगल आक्रांताओं ने किया था इसे क्षिन्न-भिन्न
इसे तोड़ने वालों पर आती है क्रोध और घिन्न
विदेशी आतंकियों ने बिगाड़ दिया था स्वरूप
उन दरिंदों के कुत्सित इरादे थे कितने कुरुप
उनके नापाक इरादों पर आज मौन खड़ा है
बनाने वाला या मिटा देने वाला कौन बड़ा है
गौर करोगे अगर तो आज भी हालात वही है
कुछ लोगों की नजरों में आज भी वो सही है
आने वाले दौर में भी कुछ विध्वंसकारी होगा
चुपचाप खड़ा हर शख्स खुद अत्याचारी होगा
🙏⛳👁जय सनातन-धर्म संस्कृति👁⛳🙏
🙏नरेश"राजन"हिन्दुस्तानी🙏
बहुत खूब नरेश जी, आर्टिकल को शानदार तरीके से पद्य में पिरो दिया👏👏👏👏
Deleteकम से कम आजादी के बाद तो इन धरोहरों का पुनरुद्धार होना चाहिए था।
ReplyDeleteऐसे प्राचीन अवशेष को देखकर और जानकर मन क्षुब्ध हो जाता है।
This is a huge loss. Such a beautiful temple. There, each stone could tell something. You can feel the sanctity and magic of the place there. Your post made me sad.
ReplyDeleteVery nice information...
ReplyDeletehttp://dropvyaspoet.blogspot.com/2012/12/blog-post_6665.html?spref=bl
ReplyDeletehttps://dropvyaspoet.blogspot.com/2013/01/dropvyas-poet.html
JAI RUDRA MAHALYA MAHAKAVYAS KAVI DR. O. P . VYAS GUNA MP