अपने बिगड़े हुए मूड को ठीक करें- बीके शिवानी
आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम बाहर कमाने में कितना टाइम लेते हैं 12, 14 या 16 घंटे और अंदर के बारे में कुछ नहीं सोचते। हमें बाहर के साथ अंदर का भी ध्यान रखना है। 24 घंटे में 2 घंटे हम अंदर कमाने के लिए आज से देंगे। हमें अपने आप को समय देना चाहिए, जिससे कि हम अपनी अंदरूनी शक्ति का विकास कर सके। हमारे पास अपने स्वयं के लिए समय नहीं है। हमने क्या कभी अपने से पूछा कि हम कैसे हैं ?
हम सुबह से शाम तक दूसरों से ही पूछते रहते हैं कि कैसे हो? क्या हाल है? अपना हाल कभी हमने लिया! हमें फुर्सत नहीं है अपना हाल लेने की। मान लीजिए कि अगर कोई बच्चा स्कूल से आता है और उसका मुंह लटका हुआ है, तो उसकी मम्मी सबसे पहले अपना सब काम छोड़ कर उसका मूड ठीक करने का प्रयास करेगी। उस समय उसकी मम्मी किचन का, ऑफिस का ,कोई भी काम होगा तो वह छोड़ देगी और बच्चे की काउंसलिंग करेगी। जब भी हम 10 मिनट तक किसी के साथ बात करते हैं, तो यह निश्चित समझिए कि हम उसका मूड ठीक कर सकते हैं। इसका मतलब हुआ कि हम एक शक्तिशाली आत्मा है। और यदि उस आत्मा के पास यह पावर है कि वह दूसरे के मूड को ठीक कर सकती है तो वह अपने मूड को तो अवश्य ठीक कर पाएगी। लेकिन उस आत्मा ने कभी अपने से यह पूछा ही नहीं कि उसका क्या हाल है?
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यदि किसी ने कह दिया कि मैं अंदर से बहुत उदास हूं या मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है, तो हम कह देते हैं की उदास रहना, गुस्सा रहना यह सब नेचुरल है। धीरे-धीरे यह उसकी आदत में शुमार हो जाता है। हम 2 मिनट का समय निकालकर के उसके मूड को ठीक कर सकते हैं। लेकिन हम समय नहीं निकाल पाते और धीरे धीरे वह आत्मा यह समझने लगती है कि कोई उसे प्यार नहीं करता, कोई उसे इज्जत नहीं करता, और उसके सारे विचार नेगेटिव हो जाते हैं। धीरे धीरे यह विचार हमारे शरीर पर असर डालने लगता है और शरीर रोगी हो जाता है। फिर हम यह कहने लगते हैं कि आजकल कोई भी पूरा स्वस्थ नहीं है और हम रोग को ही नेचुरल मानने लगते हैं।
रिश्तो में भी हम हमेशा यही कहते हैं कि मेरा बेटा ध्यान नहीं देता मेरी बहु ध्यान नहीं देती और इसे भी हम नेचुरल मान लेते हैं। वास्तव में हम नेचुरल चीजों को छोड़ रहे हैं और उसकी जगह पर अननेचुरल चीजों को अपना रहे हैं। फिर हम खुशी चाहते हैं। अंदर से खुशी चाहना एक गलत शब्द है। हमें खुशी को चाहना नहीं, बल्कि क्रिएट करना है। जीवन में हर दिन हमें खुशी क्रिएट करनी है। अगर कोई इंसान यह निर्णय लेता है कि कुछ भी हो जाए वह एक दिन अपना पूरा दिमाग संतुलित रखेगा। अगर कोई झूठ बोलेगा तो उसे शांति से समझाएगा। अगर कोई क्रोध करता है तो भी उसको प्यार से समझाएगा। सुबह उसको उठकर यह विचार करना है कि आज कुछ लोग उसे प्रेम से बात करेंगे, कुछ नाराजगी से बात करेंगे, कुछ उससे बात ही नहीं करेंगे ,कुछ उसको वैल्यू नहीं देंगे, लेकिन वह हमेशा हर परिस्थिति के लिए वह सही विचार क्रिएट करेगा तो यही उसकी खुशी का मूल कारण है। धीरे-धीरे खुशी स्वतः उत्पन्न होने लगेगी।
प्रायः हम यह सोचते हैं कि अगर वह हमारे साथ प्यार से बात करेंगे तो मुझे खुशी मिलेगी, वह मेरे साथ अच्छे से पेश आएंगे तो मुझे खुशी मिलेगी, लेकिन यहां पर हमें यह सोचना है कि अगर हम प्यार से बात करेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अगर किसी इंसान से सब लोग अच्छे ढंग से बात करें, सब लोग उसको मोटिवेट करने की कोशिश करें फिर भी वह डिमोटिवेटेड रहे तो वह इंसान कभी खुश नहीं रह सकता। दूसरे शब्दों में अगर सब लोगों से अच्छी एनर्जी मिले लेकिन वह आत्मा खुद अच्छी एनर्जी ना क्रिएट कर पाए तो वह कभी खुश नहीं रह सकती। इसके विपरीत सभी लोगों की डिमोटिवेशन मिलाकर भी किसी को डिमोटिवेट नहीं कर सकती जब तक कि वह खुद डेमोटिवेट न हो। हमें अपने जीवन में सिर्फ यह ध्यान रखना है कि जो भी बात होगी हम उस परिस्थिति के लिए ऐसा विचार उत्पन्न करेंगे जो एकदम सही हो। धीरे-धीरे वह हमारा संस्कार बन जाएगा। हममें से सभी को कभी न कभी गुस्सा आता है । क्यों आता है? यदि सामने कोई गलत बात करता है, हमारी बात कोई नहीं मानता, कोई झूठ बोलता है,किसी से हमारी आशाएं पूरी नहीं होती आदि आदि। इन सब कारणों से इंसान को गुस्सा आता है।
हमारे हम अपने सारे संस्कारों को परिवर्तन कर सकते हैं। इस आधार पर हम अपने गुस्से के संस्कार को भी परिवर्तित कर सकते हैं। हम रोने का, उदासी का,ईर्ष्या करने का,निंदा करने का,डरने का, रिजेक्टेड फील करने का, डिप्रेस्ड फील करने का, यह सारे संस्कार हम परिवर्तित कर सकते हैं। कोई भी आत्मा कभी न कभी शांत रहती हैं। अतः हमारे पास शांति का भी संस्कार है। अगर कोई गुस्सा करता है तो हमें शांति के संस्कार का उपयोग करना चाहिए। हमने अपने मस्तिष्क में यह बात बैठा दी है कि अगर कोई गुस्सा करेगा या फिर अगर कोई झूठ बोलेगा तो मुझे गुस्सा आएगा तो फिर ऐसा ही होगा। अतः हमें अपने मस्तिष्क में यह बात भी बिठानी है कि कि यदि कोई भी झूठ बोलेगा या मेरे मुताबिक काम नहीं करेगा तो हम उसे शांति के साथ समझाएंगे। कभी-कभी कई जन्मो तक हमारे यह संस्कार साथ चलते। हमें अपने मस्तिष्क से कहना है कि हमें हर परिस्थिति में शांत रहना है तब वह समझेगा। सुबह मेडिटेशन अवश्य करना चाहिए जिससे कि हमारे मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग बदले और हम हर परिस्थिति में शांत रहना सीख जाए ।
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Heal Your Upset Mind: BK Shivani
In today's hectic life, how much time do we take to earn outside 12, 14 or 16 hours and don't think anything about inside. We have to take care of the outside as well as the inside. We will give 2 hours in 24 hours from today to earn inside. We should give time to ourselves, so that we can develop our inner strength. We don't have time for ourselves. Have we ever asked ourselves how are we?
From morning till evening, we keep asking others, how are you? How are you? Have we ever had our condition! We don't have time to take care of ourselves. Suppose if a child comes from school and his face is hanging, then his mother will first try to fix his mood by leaving all his work. At that time his mother will leave the kitchen, office, any work, then she will leave and counsel the child. Whenever we talk with someone for 10 minutes, be sure that we can fix his mood. It means that we are a powerful soul. And if that soul has the power that it can fix the mood of another, then it will definitely be able to fix its own mood. But that soul has never asked itself that what is its condition? If someone says that I am very sad from inside or I am getting very angry then we say that it is all natural to be sad, to be angry. Gradually it becomes a habit of his. We can fix his mood by taking 2 minutes. But we do not take time out and slowly that soul starts to understand that no one loves him, no one respects him, and all his thoughts become negative. Slowly this thought starts affecting our body and the body becomes sick. Then we start saying that no one is completely healthy nowadays and we start considering disease as natural. Even in relationships, we always say that my son does not pay attention, my daughter-in-law does not pay attention and we also consider this as natural. In fact, we are giving up the natural things and adopting the unnatural things in its place. Then we want happiness. Seeking happiness from within is a wrong word. We do not want happiness but create it. We have to create happiness every day in life. If a person decides that whatever happens, he will one day keep his whole mind in balance. If someone tells a lie, he will calmly explain it. Even if someone gets angry, he will explain to him with love. He wakes up in the morning and thinks that today some people will talk to him with love, some will talk to him with displeasure, some will not talk to him at all, some will not give him value, but he will always create the right idea for every situation, so that's it. The root cause of his happiness. Gradually, happiness will start arising automatically.
Often we think that if he talks to us with love, then I will be happy, if he treats me well, then I will be happy, but here we have to think that if we talk with love, then I will like it. Sometimes it also happens that if everyone talks to a person well, everyone tries to motivate him, yet he remains demotivated, then that person can never be happy. In other words, if everyone gets good energy from people, but that soul cannot create good energy itself, then it can never be happy. On the contrary, by mixing the demotivation of all the people, one cannot demotivate anyone unless he himself is demotivated. We just have to keep in mind in our life that whatever happens, we will generate such an idea for that situation which is perfect. Gradually it will become our culture. All of us get angry at some point. Why does it come? If someone talks wrong in front, no one listens to us, someone tells lies, our hopes are not fulfilled from someone etc. All these reasons make a person angry.
We can change all our values. On this basis we can also change our temper tantrums. We can change all these sanskars of crying, of sadness, of jealousy, of condemning, of feeling afraid, of feeling rejected, of feeling depressed. Every soul remains calm at some point or the other. So we also have the sacrament of peace. If someone gets angry then we should use the sanskar of peace. We have inculcated this thing in our mind that if someone will get angry or if someone tells a lie then I will get angry then it will happen. Therefore, we also have to inculcate this thing in our mind that if anyone will tell a lie or will not act according to me, then we will explain it calmly. Sometimes our sanskars go with us for many births. We have to tell our mind that we have to remain calm in every situation then it will understand. Morning meditation must be done so that the programming of our brain changes and we learn to remain calm in every situation.
बी के शिवानी को सुनना एक सुखद अनुभूति है। इनकी आवाज में जादू है। उनके द्वारा कही गई बातें मन को सुकून देती हैं, पर समस्या ये है कि इनकी बातों का अनुशरण करना बहुत मुश्किल होता। जबतक इनको सुनते रहिए तबतक लगता के सही है अब ऐसे ही करेंगे और कुछ समय बाद उसी पुराने ढर्रे पर आ जाना होता है।
ReplyDeleteहां, इसके लिए संकल्प शक्ति होनी चाहिए। वैसे कोई भी बात कहने में और दूसरों को सुझाव देना आसान होता और खुद को अमल करना मुश्किल।
Deleteवीडियो दिखा नही रहा
ReplyDeleteवीडियो मोबाइल वर्जन में नहीं दिखा रहा, पोस्ट के अंत में Home key के नीचे 'view web version' में वीडियो दिखाता है..
Deleteमैं बीके शिवानी को सुनती हूं, और प्रोग्रामिंग फीड करती हूं कि प्रेक्टिकली चीज़ों को फेस करना है, लेकिन समय आते ही इमोशन्स हावी हो जाते हैं.. 😄😄 फिर भी इनको सुनने से बहुत राहत मिलती है।
ReplyDeleteThanks to sharing this video👍👍
Nice
ReplyDeleteमूड अभी तो सही है 😂😂
ReplyDeletenice post..
ReplyDeleteएक शानदार आलेख। ब्रह्म कुमारी शिवानी विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं और निःसंदेह उन्हें ईश्वरीय दूत कहा जा सकता है जिनका उद्देश्य प्राणिमात्र का भला करना ही है।
ReplyDeleteMera mood to aapko dekh kar theek ho jata..
ReplyDeleteशिवानी जी बडी दार्शनिक है
ReplyDeleteNice knowledge
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteMem excellent.your selection.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteमानसिक शांति का उत्कृष्ट प्रयास।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteSuperbbb ji
ReplyDeleteMind relaxing
ReplyDeleteA very difficult topic ... The simplest things are sometimes the most complicated. What is best for us is the most difficult. How to find the so-called "golden mean" in life?
ReplyDeleteEverything is within itself. We just can't reach it. BK Shivani says that we do not want happiness from outside, but we have to create happiness.
DeleteIt would have been easy to say, difficult to do it myself..
Very nice
ReplyDeleteNice post
ReplyDeleteGood post
ReplyDeleteVery useful...
ReplyDeleteom shanti
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