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Sunderkand -10

सुंदरकांड 
Hanuman Jayanti 2020: How To Worship Lord Hanuman At Home And Seek ...
हनुमानजी ने लंका जलाई
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
                                      देह बिसाल परम हरुआई।    
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥

यद्यपि हनुमानजीका शरीर बहुत बड़ा था परंतु शरीरमें बड़ी फुर्ती थी जिससे वह एक घरसे दूसरे घरपर चढ़ते चले जाते थे॥
जिससे तमाम नगर जल गया। लोग सब बेहाल हो गये और झपट कर बहुतसे विकराल कोटपर चढ़ गये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥
और सबलोग पुकारने लगे कि हे तात! हे माता! अब इस समयमें हमें कौन बचाएगा॥
हमने जो कहा था कि यह वानर नहीं है, कोई देव वानरका रूप धरकर आया है। सो देख लीजिये यह बात ऐसी ही है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥
और यह नगर जो अनाथके नगरके समान जला है सो तो साधुपुरुषोंका अपमान करनेंका फल ऐसाही हुआ करता है॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि हनुमानजीने एक क्षणभरमें तमाम नगरको जला दिया. केवल एक बिभीषणके घरको नहीं जलाया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! जिसने इस अग्रिको पैदा किया है उस परमेश्वरका बिभीषण भक्त था इस कारण से उसका घर नहीं जला॥ हनुमानजी ने उलट पलट कर (एक ओर से दूसरी ओर तक) तमाम लंकाको जला कर फिर समुद्रके अंदर कूद पडे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि 26
अपनी पूछको बुझाकर, श्रमको मिटाकर (थकावट दूर करके), फिरसे छोटा स्वरूप धारण करके हनुमानजी हाथ जोड़कर सीताजीके आगे खडे हुए 26
जय सियाराम जय जय सियाराम
हनुमानजी लंकासे लौटने से पहले सीताजी से मिले
Ramayan : Sita Hanuman milan Story(katha) in hindi – Page 2 ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ॥
और बोले कि हे माता! जैसे रामचन्द्रजीने मुझको पहचानके लिये मुद्रिकाका निशान दिया था, वैसे ही आपभी मुझको कुछ चिन्ह दो॥
तब सीताजीने अपने सिरसे उतार कर चूडामणि दिया। हनुमानजीने बड़े आनंदके साथ वह ले लिया॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ सम संकट भारी॥
सीताजीने हनुमानजीसे कहा कि हे पुत्र! मेरा प्रणाम कह कर प्रभुसे ऐसे कहना कि हे प्रभु! यद्यपि आप सर्व प्रकारसे पूर्णकाम हो (आपको किसी प्रकार की कामना नहीं है)
हे नाथ! आप दीनदयाल हो, इसलिये अपने विरदको सँभाल कर (दीन दुःखियों पर दया करना आपका विरद है, सो उस विरद को याद करके) मेरे इस महासंकटको दूर करो॥जय सियाराम जय जय सियाराम
तात सक्रसुत कथा सनाएहु।
बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
मास दिवस महुँ नाथु आवा।
तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥
हे पुत्र फिर इन्द्रके पुत्र जयंतकी कथा सुनाकर प्रभुकों बाणोंका प्रताप समझाकर याद दिलाना॥
और कहना कि हे नाथ! जो आप एक महीनेके अन्दर नहीं पधारोगे तो फिर आप मुझको जीती नहीं पाएँगे॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना।
तुम्हहू तात कहत अब जाना॥
तोहि देखि सीतलि भइ छाती।
पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥
हे तात! कहना, अब मैं अपने प्राणोंको किस प्रकार रखूँ? क्योंकि तुमभी अब जाने को कह रहे हो॥
तुमको देखकर मेरी छाती ठंढी हुई थी परंतु अब तो फिर मेरेलिए वही दिन हैं और वही रातें हैं॥जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह 27
हनुमानजीने सीताजीको (जानकी को) अनेक प्रकारसे समझाकर कई तरहसे धीरज दिया और फिर उनके चरणकमलोंमें सिर नमाकर वहांसे रामचन्द्रजीके पास रवाना हुए 27
हनुमानजीका लंका से वापिस लौटना
हनुमान जी लंका तैरकर गए थे या कि ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी।
गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा।
सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥
जाते समय हनुमानजीने ऐसी भारी गर्जना की, कि जिसको सुनकर राक्षसियोंके गर्भ गिर गये॥
सपुद्रको लांघकर हनुमानजी समुद्रके इस पार आए। और उस समय उन्होंने किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सब बन्दरोंको सुनाया॥जय सियाराम जय जय सियाराम
(राका दिन पहूँचेउ हनुमन्ता। धाय धाय कापी मिले तुरन्ता॥
हनुमानजीने लंकासे लौटकर कार्तिककी पूर्णिमाके दिन वहां पहुंचे। उस समय दौड़ दौड़ कर वानर बडी त्वराके साथ हनुमानजीसे मिले॥) जय सियाराम जय जय सियाराम
हरषे सब बिलोकि हनुमाना।
नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा।
कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥
हनुमानजीको देखकर सब वानर बहुत प्रसन्न हुए और उस समय वानरोंने अपना नया जन्म समझा॥
हुनमानजीका मुख अति प्रसन्न और शरीर तेजसे अत्यंत दैदीप्यमान देखकर वानरोंने जान लिया कि हनुमानजी रामचन्द्रजीका कार्य करके आए है॥जय सियाराम जय जय सियाराम
मिले सकल अति भए सुखारी।
तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा।
पूँछत कहत नवल इतिहासा॥
और इसीसे सब वानर परम प्रेमके साथ हनुमानजीसे मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए। वे कैसे प्रसन्न हुए सो कहते हैं कि मानो तड़पती हुई मछलीको पानी मिल गया॥
फिर वे सब सुन्दर इतिहास पूंछते हुए आर कहते हुए आनंदके साथ रामचन्द्रजीके पास चले॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तब मधुबन भीतर सब आए।
अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे।
मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥
फिर उन सबोंने मधुवनके अन्दर आकर युवराज अंगदके साथ वहां मीठे फल खाये॥
जब वहांके पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्कोसे ऐसा मारा कि वे सब वहांसे भाग गये॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज 28
वहांसे जो वानर भाग कर बचे थे उन सबोंने जाकर राजा सुग्रीवसे कहा कि हे राजा! युवराज अंगदने वनका सत्यानाश कर दिया है। यह समाचार सुनकर सुग्रीवको बड़ा आनंद आया कि वे लोग प्रभुका काम करके आए हैं 28 जय सियाराम जय जय सियाराम
Benefits of sundar kand | How to do Hanuman worship on Tuesday ...

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