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Sunderkand-7


सुंदरकांड 
सुंदरकाण्ड का पाठ | sunderkand ka path
सीताजीने हनुमानको आशीर्वाद दिया
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
मन संतोष सुनत कपि बानी।
भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना।
होहु तात बल सील निधाना॥
भक्ति, प्रतापतेज और बलसे मिलीहुई हनुमानजी की वाणीसुनकर सीताजीके मनमें बड़ा संतोष हुआ॥
फिर सीताजीने हनुमान को श्री राम का प्रिय जानकर आशीर्वाददिया कि हे तात! तुम बल और शील के निधान होओ॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना।
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥
हे पुत्र! तुम अजर (जरारहितबुढ़ापे से रहित), अमर (मरणरहित) और गुणोंका भण्डार हो और रामचन्द्रजी तुमपर सदा कृपा करें॥
प्रभु रामचन्द्रजी कृपा करेंगेऐसे वचन सुनकर हनुमानजी प्रेमानन्दमें अत्यंत मग्न हुए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
बार बार नाएसि पद सीसा।
बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता।
आसिष तव अमोघ बिख्याता॥
और हनुमानजी ने वारंवार सीताजीके चरणोंमें शीश नवाकरहाथ जोड़कर, यह वचन बोले॥
हे माता! अब मै कृतार्थ हुआ हूँ, क्योंकि आपका आशीर्वाद सफल ही होता है, यह बात जगत् प्रसिद्ध है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
हनुमानजीने अशोकवनमें फल खाने की आज्ञा मांगी
Ep 211 रावण की बगिया में हनुमान जी फल खा ...
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी॥
हे मातासुनो, वृक्षोंके सुन्दर फल लगे देखकर मुझे अत्यंत भूखलग गयी है, सो मुझे आज्ञा दो॥
तब सीताजीने कहा कि हे पुत्र! सुनो, इस वनकी बड़े बड़े भारीयोद्धा राक्षस रक्षा करते है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं।
जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥
तब हनुमानजी ने कहा कि हे माता! जो आप मनमे सुख माने (प्रसन्न होकर आज्ञा दें), तो मुझको उनका कुछ भय नहीं है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु 17
तुलसीदासजी कहते है कि हनुमानजीका विलक्षण बुद्धिबलदेखकर सीताजीने कहा कि हे पुत्र! जाओ, रामचन्द्रजी के चरणोंको हृदयमे रख कर मधुर मधुर फल खाओ 17 जय सियाराम जय जय सियाराम
अशोक वाटिका विध्वंस और अक्षय कुमार का वध
Ramayan ! हनुमान ने उजाड़ी अशोक वाटिका ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥
सीताजी के वचन सुनकर उनको प्रणाम करके हनुमानजी बाग के अन्दर घुस गए। फल फल तो सब खा गए और वृक्षोंको तोड़ मरोड़दिया॥
जो वहां रक्षाके के लिए राक्षस रहते थे उनमेसे से कुछ मारे गए और कुछ रावणसे पुकारे (रावण के पास गए और कहा) जय सियाराम जय जय सियाराम
नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥
कि हे नाथ! एक बड़ा भारी वानर आया है उसने तमाम अशोकवनका सत्यानाश कर दिया है॥
उसने फल फल तो सारे खा लिए है, और वृक्षोंको उखड दिया है। और रखवारे राक्षसोंको पटक पटक कर मार गिराया है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥
यह बात सुनकर रावण ने बहुत सुभट पठाये (राक्षस योद्धा भेजे) उनको देखकर युद्धके उत्साहसे हनुमानजीने भारी गर्जना की॥
हनुमानजीने उसी समय तमाम राक्षसोंको मार डाला। जो कुछ अधमरे रह गए थे वे वहा से पुकारते हुए भागकर गए॥जय सियाराम जय जय सियाराम
Hanuman Akshay Kumar yudh!!रावण-पुत्र अक्षय ...
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा
फिर रावण ने मंदोदरिके पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। वह भी असंख्य योद्धाओं को संग लेकर गया।
उसे आते देखतेही हनुमानजीने हाथमें वृक्ष लेकर उसपर प्रहार किया और उसे मारकर फिर बड़े भारी शब्दसे (जोर से) गर्जना की॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि 18
हनुमानजीने कुछ राक्षसोंको मारा और कुछ को कुचल डाला और कुछ को धूल में मिला दिया। और जो बच गए थे वे जाकर रावण के आगे पुकारे कि हे नाथ! वानर बड़ा बलवान है। उसने अक्षयकुमारको मारकर सारे राक्षसोंका संहार कर डाला
हनुमानजी का मेघनाद से युद्ध
मेघनाथ ने छोड़ा ब्रम्हास्त्र हनुमान ...
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥
रावण राक्षसोंके मुखसे अपने पुत्रका वध सुनकर बड़ा गुस्सा हुआऔर महाबली मेघनादको भेजा॥
और मेघनादसे कहा कि हे पुत्र! उसे मारना मत किंतु बांधकर पकड़ लें आना, क्योंकि मैं भी उसे देखूं तो सही बह वानर कहाँ का है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
चला इंद्रजित अतुलित जोधा।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥
इन्द्रजीत (इंद्र को जीतनेवाला) असंख्य योद्धाओ को संग लेकर चला। भाई के वध का समाचार सुनकर उसे बड़ा गुस्सा आया॥
हनुमानजी ने उसे देखकर यह कोई दारुण भट (भयानक योद्धा) आता है ऐसे जानकार कटकटाके महाघोर गर्जना की और दौड़े॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
अति बिसाल तरु एक उपारा।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा।
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥
एक बड़ा भारी वृक्ष उखाड़ कर उससे मेघनादको विरथ अर्थात रथहीन कर दिया॥
उसके साथ जो बड़े बड़े महाबली योद्धा थे, उन सबको पकड़ पकड़कर हनुमानजी अपने शरीर से मसल डाला॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई।
ताहि एक छन मुरुछा आई॥
ऐसे उन राक्षसोंको मारकर हनुमानजी मेघनादके पास पहुँचे। फिर वे दोनों ऐसे भिड़े कि मानो दो गजराज आपस में भीड़ रहे है॥
हनुमान मेघनादको एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और मेघनादको उस प्रहार से एक क्षणभर के लिए मूर्च्छा गयी। जय सियाराम जय जय सियाराम
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया।
जीति जाइ प्रभंजन जाया॥
फिर मेघनादने सचेत होकर अनेक मायाये फैलायी पर हनुमानजी किसी प्रकार जीते नहीं गए॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
this works do only lord hanuman
जय श्री राम , जय जय हनुमान 

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