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Sunderkand-6

सुंदरकांड 
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हनुमान ने सीताजीको रामचन्द्रजीका सन्देश दिया
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
कहेउ राम बियोग तव सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू॥
Ramayan : Sita Hanuman milan Story(katha) in hindi – Page 2 ...
हनुमानजी ने सीताजी से कहा कि हे माता! रामचन्द्रजी ने जो सन्देश भेजा है वह सुनो। रामचन्द्रजी ने कहा है कि तुम्हारे वियोगमें मेरे लिए सभी बाते विपरीत हो गयी है॥
नविन कोपलें तो मानो अग्निरूप हो गए है। रात्रि मानो कालरात्रि बन गयी है। चन्द्रमा सूरजके समान दिख पड़ता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥
कमलोका वन मानो भालोके समूहके समान हो गया है। मेघकी वृष्टि मानो तापे हुए तेलके समान लगती है॥
मै जिस वृक्षके तले बैठता हूं, वही वृक्ष मुझको पीड़ा देता है और शीतल, सुगंध, मंद पवन मुझको साँपके श्वासके समान प्रतीतहोता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
कहेहू तें कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान  कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥
और अधिक क्या कहूं? क्योंकि कहनेसे कोई दुःख घट थोडाहीजाता है? परन्तु यह बात किसको कहूं! कोई नहीं जानता॥
मेरे और आपके प्रेमके तत्वको कौन जानता है! कोई नहीं जानता। केवल एक मेरा मन तो उसको भलेही पहचानता है॥ जय सियाराम जय जय सियाराम
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही।
मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥
पर वह मन सदा आपके पास रहता है। इतने ही में जान लेना कि राम किस कदर प्रेमके वश है॥
रामचन्द्रजीके सन्देश सुनतेही सीताजी ऐसी प्रेममे मग्न हो गयीकि उन्हें अपने शरीरकी भी सुध  रही॥ जय सियाराम जय जय सियाराम

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता।
सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु ताई।रघुपति प्रभु
सुनि मम बचन तजहु कदराई॥
उस समय हनुमानजीने सीताजीसे कहा कि हे माताआप सेवकजनोंके सुख देनेवाले श्रीराम को याद करके मनमे धीरज धरो॥
श्रीरामचन्द्रजीकी प्रभुताको हृदयमें मानकर मेरे वचनोको सुनकर विकलताको तज दो (छोड़ दो)॥जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु 15
हे माता! रामचन्द्रजीके बानरूप अग्निके आगे इस राक्षस समूहकोआप पतंगके समान जानो और इन सब राक्षसोको जले हुए जानकर मनमे धीरज धरो 15
सीताजीके मन में संदेह
What did Sita Mata give Hanuman in Ashok Vatika? - Quora
चौपाई (Chaupai – Sunderkand)
जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
राम बान रबि उएँ जानकी।
तम बरुथ कहँ जातुधान की॥
हे माता! जो रामचन्द्रजीको आपकी खबर मिल जाती तो प्रभुकदापि विलम्ब नहीं करते॥
क्योंकि रामचन्द्रजी के बानरूप सूर्यके उदय होनेपर राक्षस समूहरूप अन्धकार पटलका पता कहाँ है? जय सियाराम जय जय सियाराम
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई।
प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥
हनुमानजी कहते है की हे माता! मै आपको अभी ले जाऊं, परंतु करूं क्यारामचन्द्रजीकी आपको ले आनेकी आज्ञा नहीं है। इसलिए मै कुछ कर नहीं सकता। यह बात मै रामचन्द्रजीकी शपथ खाकर कहता हूँ॥
इसलिए हे माता! आप कुछ दिन धीरज धरो। रामचन्द्रजी वानरोंकें साथ यहाँ आयेंगे जय सियाराम जय जय सियाराम
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना॥
और राक्षसोंको मारकर आपको ले जाएँगे। तब रामचन्द्रजीका यह सुयश तीनो लोकोमें नारदादि मुनि गाएँगे॥
हनुमानजी की यह बात सुनकर सीताजी ने कहा की हे पुत्र! सभी वानर तो तुम्हारे सामान है और राक्षस बड़े योद्धा और बलवान है। फिर यह बात कैसे बनेगी? जय सियाराम जय जय सियाराम
मोरें हृदय परम संदेहा।
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा।
समर भयंकर अतिबल बीरा॥
इसका मेरे मनमे बड़ा संदेह है। सीताजीका यह वचन सुनकरहनुमानजीने अपना शरीर प्रकट किया॥
की जो शरीर सुवर्ण के पर्वत के समान विशाल, युद्धके बिच बड़ा विकराल और रणके बीच बड़ा धीरजवाला था॥जय सियाराम जय जय सियाराम
सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥
हनुमानजीके उस शरीरको देखकर सीताजीके मनमें पक्का भरोसा गया। तब हनुमानजी ने अपना छोटा स्वरूप धर लिया॥जय सियाराम जय जय सियाराम
दोहा (Doha – Sunderkand)
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल 16
हनुमानजीने कहा कि हे माता! सुनो, वानरोंमे कोई विशाल बुद्धि का बल नहीं है। परंतु प्रभुका प्रताप ऐसा है की उसके बलसे छोटासा सांप गरूडको खा जाता है 16 जय सियाराम जय जय सियाराम
Celebrating the birth of Ram-bhakt Hanuman | India Beckons
जय श्री राम , जय जय हनुमान 

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