A blog with multi colour from natural remedies to interesting and amazing things of world. Short stories to educate and entertain. The feel of nature with home remedies for different ailments . Also the twist of comedy and brilliance of Birbal. All in one place. Miles to go more to come...stay connected..India❤️
आशावान राजा की कहानी - जातक कथा
गूलर | Gular
गूलर | Gular
आज एक और औषधीय वृक्ष की बात करते हैं, जिसका नाम है "गूलर(Gular)"। गूलर(Gular) से संबंधित कई किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। कहावत है कि जिसने गूलर(Gular) का फूल देख लिया, उसका भाग्य चमक जाता है। यह भी कहा जाता है कि गूलर का सेवन करने वाले वृद्ध युवा हो जाते हैं। आप सभी ने भी गूलर(Gular) से संबंधित ऐसी कई कहानियां सुनी होंगी। हम यहां गूलर(Gular) के औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे। गुलर का पेड़ या गूलर का फूल कोई साधारण पेड़ या फूल नहीं है, बल्कि यह एक बहुत ही उत्तम जड़ी बूटी भी हैं।
गूलर क्या है?
गूलर का पेड़ विशाल और घना होता है। इसकी ऊंचाई लगभग 10 से 15 मीटर तक हो सकती है। इसके फल अंजीर के समान दिखाई देते हैं। कच्चा होने पर यह हल्के हरे रंग के और पकने के बाद लाल रंग के हो जाते हैं। पके हुए फल चमकदार होते हैं तथा फलों को काटने से उसमें कीड़े पाए जाते हैं। गूलर का फूल, गूलर के फल के अंदर होता है। इसके तने या डाल में किसी भी स्थान पर चीरा लगाने से सफेद दूध निकलता है। दूध को थोड़ी देर रखने पर वह पीला हो जाता है, इसलिए इसे हेमदुग्धक कहा जाता है। गूलर के फलों में ढेर सारे कीड़े होने के कारण इसे जंतु फल कहा जाता है तथा 12 महीने फल देने के कारण इसे सदाफल भी कहते हैं।
जानते हैं गूलर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में
आयुर्वेद के अनुसार गूलर रक्तस्राव रोकने में, मूत्र रोग, डायबिटीज तथा शरीर की जलन में, सूजन की समस्या तथा दर्द में, पुराने घाव को ठीक करने में तथा ऐसी कई तरह की बीमारियों में गूलर फायदेमंद है। विभिन्न रोगों में इसके अलग-अलग भाग का प्रयोग होता है।
पेट दर्द में
गूलर का फल खाने से पेट का दर्द और गैस की समस्या ठीक होती है।
मूत्र रोग में
प्रतिदिन गूलर के दो - दो पके फल खाने से मूत्र रोग में आराम मिलता है, पेशाब की समस्या ठीक होती है और पेशाब खुलकर आने लगता है।
मधुमेह में
गूलर के फलों के सूखे छिलकों को (बीज निकालकर) महीन पीस लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
ल्यूकोरिया में
5 से 10 ग्राम गूलर के रस को मिश्री के साथ मिलाकर सुबह-शाम पीने से ल्यूकोरिया की समस्या में लाभ होता है।
घाव होने पर
- गूलर में पुराने से पुराने घाव को ठीक करने की क्षमता होती है। गूलर के दूध में रुई का फाहा भिगोकर घाव पर रखने से घाव ठीक हो जाते हैं।
- गूलर की छाल की राख को घी के साथ मिलाकर लगाने से विवाइयाँ, मुंहासे, बालतोड़ तथा डायबिटीज के कारण हुई फुंसियां ठीक होती है।
रक्त विकार में
- शरीर के किसी भी अंग से खून बहने की स्थिति में या सूजन हो तो ऐसे में गूलर का प्रयोग एक उत्तम औषधि है। नाक से खून बहना, पेशाब के साथ खून आना, मासिक धर्म में रक्तस्राव अधिक होना या गर्भपात आदि रोगों में गूलर का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इसके 2-3 पके फलों को खांड या मिश्री के साथ दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
- 5 मिलीलीटर गूलर के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से उल्टी में खून आना बंद होता है।
बुखार में
1 ग्राम गूलर की गोंद तथा 3 ग्राम चीनी को मिलाकर सेवन करने से पित्त दोष के कारण होने वाले बुखार और जलन में आराम मिलता है।
पाचन में
गूलर के कच्चे फल में दीपन गुण होता है, जिसके कारण यह सुपाच्य होता है। साथ ही इसका पका हुआ फल भूख को नियंत्रित करने में मदद करता है।
बवासीर में
गूलर के दूध की 10-20 बूंदों को पानी में मिलाकर पिलाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
गूलर का नुकसान
गूलर के इस्तेमाल से कुछ नुकसान भी हो सकते हैं-
- गूलर के अधिक मात्रा में सेवन से बुखार हो सकता है
- पके हुए फलों को अधिक मात्रा में लेने से आंतों में कीड़े हो सकते हैं
- गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सक के परामर्श के इसका सेवन नहीं करना चाहिए
विभिन्न भाषाओं में गूलर का नाम
बांग्ला - डुमुर
मराठी - उदुम्बर
अरबी - जमीझ
पंजाबी – बटबर
गुजराती – उम्बरो
तेलगु – अत्थि चेट्टु
तमिल – अत्तिमरम्
बंगाली - दुमुर
लैटिन - फाइकस रेसीमोसा
English Translate
Sycamore | Gular
Today let's talk about another medicinal tree, whose name is "Gular". There are many famous legends related to Gular. There is a saying that the one who sees the Gular flower, his luck shines. It is also said that old people who consume sycamore become young. All of you must have also heard many such stories related to Gular. We will discuss the medicinal properties of Gular here. Gular tree or sycamore flower is not an ordinary tree or flower, but it is also a very good herb.
What is a sycamore?
The sycamore tree is huge and dense. Its height can range from about 10 to 15 meters. Its fruits look like figs. It is light green when raw and turns red when cooked. Ripe fruits are shiny and insects are found in the fruits by cutting them. The flower of the sycamore is inside the fruit of the sycamore. White milk comes out by making an incision at any place in its stem or branch. Milk turns yellow after keeping it for a while, hence it is called Hemadugdhak. Due to the presence of many insects in the fruits of sycamore, it is called animal fruit and because of giving 12 months of fruit, it is also called Sadaphal.
Know about the benefits, harms, uses and medicinal properties of Gular
According to Ayurveda, Gular is beneficial in stopping bleeding, in urinary diseases, diabetes and body burns, in inflammation and pain, in healing old wounds and in many such diseases. Different parts of it are used in different diseases.
In Stomachache
Consuming sycamore fruit ends stomachache and gas problem.
In Urinary Tract
Eating two or two ripe fruits of sycamore daily provides relief in urinary disease, the problem of urination is cured and urine starts coming freely.
Diabetes
Grind the dried peels (removing the seeds) of the sycamore fruit into a fine paste. Add equal quantity of sugar candy to it. Taking 6 grams of this with cow's milk in the morning and evening is beneficial in diabetes.
In Leucorrhoea
Mixing 5 to 10 grams juice of sycamore with sugar candy and drinking it twice a day is beneficial in the problem of leukorrhea.
In Case of Wound
- Sycamore has the ability to heal old wounds. Soak a cotton swab in the milk of sycamore and keep it on the wound, wounds are cured.
- Applying ash of sycamore bark with ghee, it cures pimples, acne, hair break and pimples caused by diabetes.
In Blood Disorder
In case of bleeding or swelling from any part of the body, then the use of sycamore is a good medicine. The use of sycamore is beneficial in diseases such as bleeding from the nose, bleeding with urine, excessive menstrual bleeding or abortion. Taking 2-3 ripe fruits with Khand or sugar candy thrice a day provides relief.
Mix equal quantity of sugar candy in 5 ml juice of sycamore leaves and take it in the morning and evening, it stops bleeding in vomiting.
In Fever
Taking one gram of sycamore gum and 3 grams of sugar together provides relief in fever and burning sensation due to pitta dosha.
In Digestion
The unripe fruit of sycamore has deepening properties, due to which it is digestible. Also, its ripe fruit helps in controlling appetite.
In Hemorrhoids
Mix 10-20 drops of sycamore milk with water and take, it provides relief in bloody piles.
Side Effects of Sycamore
Some disadvantages can also occur from the use of sycamore-
- Excessive consumption of sycamore can cause fever
- Consuming ripe fruits in excess can cause intestinal worms
- Pregnant women should not consume it without consulting a doctor
Sycamore name in different languages
Sanskrit - Udumbar
bangla - dumur
Marathi - Udumbar
Arabic - Jameez
Punjabi - Batbar
Gujarati - Umbro
Telugu - Atthi Chettu
Tamil - Attimaram
Bengali - Dumur
Latin - Ficus racemosa
तेनालीराम - हीरों का सच | Tenaliram - Heeron ka Sach
हीरों का सच (Heeron ka Sach)
एक समय में राजा कृष्णदेव राय दरबार में बैठे मंत्रियों के साथ विचार विमर्श कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति उनके समक्ष आकर कहने लगा - महाराज! मेरे साथ न्याय करें। मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया है। इतना सुनते ही महाराज ने उससे पूछा, तुम कौन हो और तुम्हारे साथ क्या हुआ है?
व्यक्ति ने कहा - "अन्नदाता मेरा नाम नामदेव है। कल मैं अपने मालिक के साथ किसी काम से एक गांव में जा रहा था। गर्मी की वजह से चलते - चलते हम थक गए और पास ही के एक मंदिर की छाया में बैठकर विश्राम करने लगे। तभी मेरी नजर एक लाल रंग की थैली पर पड़ी, जो कि मंदिर के एक कोने में पड़ी हुई थी। मालिक की आज्ञा लेकर मैंने वह थैली उठा ली। उसको खोलने पर पता चला कि उसके अंदर बेर के आकार के दो हीरे चमक रहे थे। हीरे मंदिर में पाए गए थे, इसलिए उन पर राज्य का अधिकार था। परंतु मेरे मालिक ने मुझसे यह बात किसी को भी बताने से मना किया और कहा कि हम दोनों इसमें से एक - एक हीरे रख लेंगे। मैं अपने मालिक की गुलामी से परेशान था। इसलिए मैं अपना काम करना चाहता था, जिसके कारण मेरे मन में लालच आ गया। हवेली पर आते ही मालिक ने हीरे देने से साफ इनकर कर दिया। यही कारण है कि मुझे इंसाफ चाहिए। "
महाराज ने तुरंत कोतवाल को भेजकर नामदेव के मालिक को महल में पेश होने का आदेश दिया। नामदेव के मालिक को जल्दी राजा के सामने उपस्थित किया गया। राजा ने उससे हीरों के बारे में पूछा, तो वह बोला - महाराज! यह बात सच है कि मंदिर में हीरे मिले थे, लेकिन मैंने वे हीरे नामदेव को देकर उन्हें राजकोष में जमा करने को कहा था। उसके वापस लौटने पर जब मैंने उससे राजकोष की रसीद मांगी, तो वह आनाकानी करने लगा। मैंने जब उसे धमकाया तो यह आपके पास आकर मनगढ़ंत कहानी सुनाने लगा।
अच्छा तो यह बात है। महाराज ने कुछ सोचते हुए कहा - क्या तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत है कि तुम सच बोल रहे हो?
अन्नदाता अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो आप मेरे दूसरे तीनों नौकरों से पूछ सकते हैं। वह उस वक्त वहीं मौजूद थे।
उसके बाद तीनों नौकरों को राजा के सामने लाया गया। तीनों ने नामदेव के खिलाफ गवाही दे दी। महाराज तीनों नौकरों और मालिक को वही बिठाकर अपने विश्राम कक्ष में चले गए और सेनापति, तेनालीराम और महामंत्री को भी इस विषय में बात करने के लिए वहां बुलवा लिया।
उनके पहुंचने पर महाराज ने महामंत्री से पूछा - "आपको क्या लगता है ?क्या नामदेव झूठ बोल रहा है? जी महाराज नामदेव ही झूठा है। उसके मन में लालच आ गया होगा और उसने हीरे अपने पास ही रख लिए होंगे। सेनापति ने गवाहों को झूठा बताया। उसके हिसाब से नामदेव सच बोल रहा था। तेनालीराम चुपचाप खड़े सबकी बातें सुन रहे थे।
तब महाराज ने उनकी ओर देखते हुए उनकी राय मांगी। तेनालीराम बोले महाराज कौन झूठा है और कौन सच्चा इस बात का अभी पता लग जाएगा, परंतु आप लोगों को कुछ समय के लिए पर्दे के पीछे जाना होगा। महाराज इस बात से सहमत हो गए, क्योंकि वह जल्द ही इस मसले को सुलझाना चाहते थे। इसीलिए पर्दे के पीछे जाकर छुप गए। महामंत्री और सेनापति भी मुंह सिकोड़ते हुए पर्दे के पीछे चले गए।
अब विश्राम कक्ष में केवल तेनालीराम ही दिखाई दे रहे थे। अब उन्होंने सेवक से कह कर पहले गवाह को बुलवाया। गवाह के आने पर तेनालीराम ने पूछा - "क्या तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे सामने नामदेव को हीर दिए थे?"
जी हां, गवाह ने कहा।
फिर तो तुम्हें हीरे के रंग और आकार के बारे में भी पता होगा। तेनालीराम ने एक कागज और कलम गवाह के सामने करते हुए उससे कहा, "यह लो मुझे इस पर हीरे का चित्र बनाकर दिखाओ।"
इतना सुनते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुल हो गई और वह बोल पड़ा - "मैंने हीरे नहीं देखे, क्योंकि वह लाल रंग की थैली में थे।"
अच्छा अब चुपचाप वहां जाकर खड़े हो जाओ। अब दूसरे गवाह को बुलाकर उससे भी यही प्रश्न पूछा गया। उसने हीरो के रंग के बारे में बता कर कागज पर दो गोल गोल आकृतियां बनाकर अपनी बात साबित की। फिर उससे भी पहले गवाह के पास खड़ा कर दिया गया।
अब तीसरे गवाह को बुलाया गया। उसने बताया कि हीरे भोजपत्र की थैली में थे, इस वजह से वह उन्हें देख नहीं पाया। इतना सुनते ही महाराज पर्दे के पीछे से सामने आ गए। महाराज को देखते ही तीनों घबरा गए और समझ गए कि अब सच बोलने में ही उनकी भलाई है। तीनों महाराज के पैरों को पकड़कर माफी मांगने लगे और बोले, "हमें झूठ बोलने के लिए हमारे मालिक ने धमकाया था और नौकरी से निकालने की धमकी दी थी। इसलिए हमें झूठ बोलना पड़ा।"
महाराज ने तुरंत मालिक के घर की तलाशी के आदेश दिए। तलाशी में दोनों हीरे बरामद हुए। सजा के तौर पर मालिक को 10000 स्वर्ण मुद्राएं नामदेव को देनी पड़ी और 20000 स्वर्ण मुद्राएं जुर्माने के तौर पर भरनी पड़ी, जबकि बरामद हुए दोनों हीरे राजकोष में जमा कर दिए गए। इस प्रकार तेनालीराम की मदद से महाराज ने नामदेव के हक में फैसला सुनाया।
English Translate
Truth of Diamonds
At one time King Krishnadeva Raya was discussing with the ministers sitting in the court. Then a person came in front of him and started saying - Maharaj! Do justice to me My boss has cheated me. On hearing this, Maharaj asked him, who are you and what has happened to you?
The person said - "Annadata my name is Namdev. Yesterday I was going with my master to a village for some work. We got tired of walking because of the heat and started resting in the shade of a nearby temple. Then my eyes fell on a red colored bag, which was lying in a corner of the temple. With the permission of the owner, I picked up the bag. On opening it, I found that two plum-shaped diamonds were shining inside it. The diamonds were found in the temple, so they belonged to the state. But my master forbade me to tell this to anyone and said that both of us will keep one diamond from it. I am from my master's slavery. Was upset. So I wanted to do my job, due to which I got greedy. On coming to the mansion, the owner flatly refused to give the diamonds. That's why I want justice."
Maharaj immediately sent the Kotwal and ordered the owner of Namdev to appear in the palace. Namdev's master was quickly presented before the king. When the king asked him about diamonds, he said - Maharaj! It is true that diamonds were found in the temple, but I gave those diamonds to Namdev and asked him to deposit them in the treasury. On his return, when I asked him for the receipt of the treasury, he refused. When I threatened him, he came to you and started telling a concocted story.
Well that's it. Thinking something, Maharaj said - Do you have any proof that you are telling the truth?
Annadata If you don't believe me, you can ask my other three servants. He was present there at that time.
After that the three servants were brought before the king. All three testified against Namdev. The Maharaja made the three servants and the master sit there and went to his rest room and called the commander, Tenaliram and the general secretary there to talk about this matter.
On their arrival, Maharaj asked the General Secretary - "What do you think? Is Namdev lying? Ji Maharaj Namdev is a liar. Greed must have come in his mind and he must have kept the diamonds with him. The commander took the witnesses. Told a liar. According to him, Namdev was telling the truth. Tenaliram was standing silently listening to everyone.
Then the Maharaj, looking at him, asked for his opinion. Tenaliram said, who is a liar and who is true, it will be known now, but you people will have to go behind the scenes for some time. Maharaj agreed to this, as he wanted to settle the matter soon. That's why he hid behind the curtain. The General Secretary and the Commander also went behind the curtain shrinking their faces.
Now only Tenaliram was visible in the rest room. Now he called the first witness after asking the servant. On the arrival of the witness, Tenaliram asked - "Did your master give diamonds to Namdev in front of you?"
Yes, said the witness.
Then you will also know about the color and shape of the diamond. Tenalirama put a paper and a pen in front of the witness and said to him, "Take this and show me a picture of a diamond on it."
Upon hearing this, his whistle blew and he said - "I did not see the diamonds, because they were in a red bag."
Well now go and stand there quietly. Now another witness was called and the same question was asked to him. He proved his point by telling about the color of the hero by drawing two round circular figures on the paper. Then even before that he was made to stand before the witness.
Now the third witness was called. He told that the diamonds were in the bag of bhojpatra, due to which he could not see them. On hearing this, Maharaj came in front from behind the curtain. On seeing the Maharaj, all three got scared and understood that now it is better for them to speak the truth. The trio grabbed Maharaj's feet and apologized and said, "We were threatened by our boss for lying and threatened to be fired. That's why we had to lie."
Maharaj immediately ordered a search of the owner's house. During the search both the diamonds were recovered. As punishment, the owner had to pay 10000 gold coins to Namdev and 20000 gold coins as fine, while both the diamonds recovered were deposited in the treasury. Thus, with the help of Tenaliram, the Maharaja pronounced the verdict in favor of Namdev.
दुर्लभ ऑक्टोपस : ग्लास ऑक्टोपस (Glass Octopus)
दुर्लभ ऑक्टोपस : ग्लास ऑक्टोपस
वैज्ञानिकों को किरिबाती के पास प्रशांत महासागर की गहराई में एक दुर्लभ पारदर्शी ऑक्टोपस मिला है, इसे "ग्लास ऑक्टोपस (Glass Octopus)" का नाम दिया गया है। खास बात यह है कि इस ऑक्टोपस की स्किन इतनी पारदर्शी है कि इसमें मौजूद सभी अंग आंखों से देखे जा सकते हैं। ऑक्टोपस के शरीर के अंदर के अंग और पाचन तंत्र साफ दिखाई देता है। हर कोई इस "ग्लास ऑक्टोपस (Glass Octopus)" के बारे में जानकर हैरान है। इसे फिनिक्स आइलैंड के पास देखा गया है। वैज्ञानिक भाषा में इसे विट्रेलेडोनेल्ला रिकॉर्डी कहते हैं।
इस प्रजाति तक पहुंचना है मुश्किल
वैज्ञानिकों का कहना है आक्टोपस की इस प्रजाति तक पहुंचना मुश्किल होता है, क्योंकि यह बेहद गहराई में तैरते हुए नजर आते हैं। इसे तब देखा गया जब कोई दूसरा जीव इसे अपना शिकार बना रहा था। फिनिक्स आइलैंड में रिसर्चर्स ने स्टडी के लिए 34 दिन बिताए।
शेमिडीट आशियन इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर डॉ ज्योतिका विरमानी कहती हैं वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के साथ विज्ञान से जुड़ी कई चीजों को खोजा और देखा जा सकता है। ग्लास आक्टोपस भी पानी के अंदर लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान देखा गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्लास आक्टोपस पर अब तक कोई बहुत ज्यादा रिसर्च नहीं किया गया है। इसलिए इसके बारे में कुछ ही बातें सामने आई हैं।
इसका शरीर 45 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। ग्लास अक्टोपस के शरीर पर पाए जाने वाले गोल सकर छोटे होते हैैं। आंखें चौकोर होती हैं, और अंडों के अंदर इनका भ्रूण तब तक विकसित होता है जब ये बाहर आने लायक ना हो जाए।
डॉक्टर विरमानी और उनकी टीम फिनिक्स आईलैंड देखने के लिए निकली थी। फिनिक्स आइलैंड दुनिया का सबसे बड़ा कोरल इको सिस्टम है। यहां वैज्ञानिकों ने कोरल की नई प्रजातियां ढूंढ़ी हैं। इनमें गोल्डन कोरल भी शामिल है। समुद्र यात्रा के दौरान समुद्री जीवों को देखने वाले रोबोट ने व्हेल शार्क भी देखें और इसे कैमरे में कैद किया। व्हेल शार्क की लंबाई करीब 40 फीट थी। द वुड्स होल ओशियनोग्राफिक इंस्टीट्यूट के बायो लॉजिस्ट डॉक्टर टिम शैन्क करते हैं समुद्र को गहराई से देखने पर पता चलता हैं कि इन जीवों ने अपने जीने का तरीका बदल दिया है। यहां कई ऐसी चीजें मिलती हैं जो कभी खोजी ही नहीं गयीं।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक इस आक्टोपस की खोज 1918 में हुई थी। इस जीव के बारे में अब तक बहुत कम जानकारी ही वैज्ञानिकों के पास है। यह आमतौर पर मिसो- पिलेजिक (mesopelagic) यानी ट्विलाइट जोन में रहता है। यह जोन 656 से 3280 फीट की गहराई को कहा जाता है, लेकिन कई ग्लास आक्टोपस 3280 से 9800 फीट की गहराई में रहते हैं। इसे बैथीपिलेजिक (baithypelagic) यानी मिडनाइट जोन कहते हैं। अभी जो ग्लास ऑक्टोपस खोजा गया है, वह मिडनाइट जोन में ही तैर रहा था।
English Translate
Rare Octopus : Glass Octopus
Scientists have found a rare transparent octopus in the depths of the Pacific Ocean near Kiribati, nicknamed it the "Glass Octopus". The special thing is that the skin of this octopus is so transparent that all the organs present in it can be seen with the eyes. The organs and digestive system inside the body of the octopus are clearly visible. Everyone is surprised to know about this "Glass Octopus". It has been seen near Phoenix Island. In scientific language it is called Vitreladonella recordi.
Difficult to reach this species
Scientists say that it is difficult to reach this species of octopus, because it is seen swimming in very deep depths. It was seen when some other creature was making its prey. In Phoenix Island, the researchers spent 34 days for the study.
Dr Jyotika Virmani, Director, Schmidt Asian Institute, says that many things related to science can be discovered and seen with scientists and researchers. Glass octopus was also seen during live streaming under water.
Researchers say that not much research has been done on the glass octopus so far. So only a few things have come to light about it.
Its body can grow up to 45 centimeters. The round suckers found on the body of the glass octopus are small. The eyes are square, and the embryo develops inside the egg until it is no longer able to come out.
Dr. Virmani and his team went out to see Phoenix Island. Phoenix Island is the largest coral ecosystem in the world. Here scientists have discovered new species of coral. These include the Golden Coral. During the sea voyage, the sea creature watching robot also saw the whale shark and captured it on camera. The whale shark was about 40 feet in length. Dr Tim Shank, a biologist at The Woods Hole Oceanographic Institute, says that a deep look at the ocean reveals that these creatures have changed their way of living. Many such things are found here that have never been discovered.
According to the International Union for Conservation of Nature, this octopus was discovered in 1918. Scientists have very little information about this creature so far. It usually lives in the meso-pelagic ie twilight zone. This zone is said to have a depth of 656 to 3280 feet, but many glass octopuses live at depths of 3280 to 9800 feet. This is called bathypelagic or midnight zone. The glass octopus just discovered was swimming in the midnight zone.
विघ्नेश्वर गणपति मंदिर (Vigneshwara Vinayaka Temple Ozar)
विघ्नेश्वर गणपति मंदिर (Vigneshwara Vinayaka Temple Ozar)
विघ्नेश्वर गणपति मंदिर (Vigneshwara Vinayaka Temple) अष्टविनायक में सातवें गणपति हैं। विग्नेश्वर गणेश मंदिर पुणे- नासिक हाईवे पर ओझर जिले में जुन्नार क्षेत्र में स्थित है।ओझर में श्री विघ्नहर अष्टविनायकों में सबसे धनी गणपति हैं। ओझर कुकडी नदी के किनारे स्थित एक गांव है।
जुन्नार तालुका में यह मंदिर पुणे-नासिक रोड पर नारायणगांव से 8 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे है।'विघ्न' का अर्थ है कार्य में 'बाधा' और 'हर' का आता है 'हरण करने वाला'।
किवदंती
राजा अभिनंदन ने त्रिलोकधीश बनने के लिए यज्ञ शुरू किया, इससे भयभीत होकर इंद्र ने यज्ञ को बाधित करने के लिए राक्षस विघ्नसुर का निर्माण किया और उसे यज्ञ को बाधित करने के लिए कहा। वह एक कदम आगे चला गया और सभी यज्ञ को बाधित करना शुरू कर दिया। इस कारण ऋषियों ने गणपति से विघ्नसुर से रक्षा के लिए उसके वध का अनुरोध किया। गणपति ने ऋषियों की विनती स्वीकार कर ली। जब यह बात विघ्नसुर को पता चला तो वह डर गया और भगवान गणेश की शरण में पहुंच कर अपनी पराजय स्वीकार करते हुए उनसे अभयदान मांगा। गणेश जी ने उसको अभयदान प्रदान किया और उसी से वचन लिया कि जहां कहीं भी मेरी पूजा हो रही होगी वह वहां नहीं जाएगा।विघ्नेश्वर ने वचन दिया किंतु साथ ही एक आग्रह भी किया कि यहां जब आप की पूजा हो तो आपके साथ मेरा भी नाम लिया जाए। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहर के रूप में जाना जाता है।
इतिहास
1785 में बाजीराव पेशवा के भाई चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों से वसई किले को जप्त करने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार किया और शिखर को सोने से ढक दिया। गणेश भक्त अप्पा शास्त्री जोशी द्वारा भी 1967 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
सभी अष्टविनायक मंदिरों की तरह केंद्रीय गणेश छवि को स्वयंभू माना जाता है, जो प्राकृतिक रूप से हाथी के चेहरे वाले पत्थर के रूप में होता है। मंदिर चारों ओर से ऊंची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है और उसका शिखर सोने से निर्मित है। मंदिर का मुख पूरब की ओर है और वह पत्थर की मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर का बाहरी कक्ष 20 फुट लंबा और अंदर का कक्ष 10 फुट लंबा है।
यहां की मूर्ति पूर्व मुखी है साथ ही सिंदूर तथा तेल से संलेपित है। मंदिर में स्थापित मूर्ति की सुंड बाईं ओर है और इसकी आंखों और नाभि में हीरे जड़े हैं, जो एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है। रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियां गणेश जी के दोनों तरफ रखी हुई हैं। यहां एक दीपमाला भी है जिसके पास द्वार पालक हैं।
English Translate
Vigneshwara Vinayaka Temple Ozar
Vigneshwara Ganapati Temple is the seventh Ganapati in Ashtavinayaka. Vigneshwar Ganesh Temple is located on the Pune-Nashik Highway in the Junnar region in Ojhar district. Shri Vighnahar in Ojhar is the richest Ganapati among the Ashtavinayaks. Ojhar is a village situated on the banks of river Kukdi.
This temple in Junnar taluka is 8 km from Narayangaon on the Pune-Nashik road. The nearest railway station is Pune. 'Vighna' means 'obstacle' in work and 'Har' stands for 'destroyer'.
Legend
King Abhinandan started the yajna to become Trilokdhish, being frightened by this, Indra created the demon Vighnasura to disrupt the yagya and asked him to interrupt the yagya. He went a step ahead and started disrupting all the yagyas. For this reason the sages requested Ganapati to kill him to protect him from Vighnasur. Ganapati accepted my request of Shiva, whenever Bana came to know about the beginning, he got scared and reached the shelter of Lord Ganesha, accepting his defeat and asked him for protection. Ganesh ji gave him protection and took a promise from him that wherever I was being worshiped, he would not go there. Vigneshwar made a promise but at the same time made a request that when you are worshiped here, my name is also with you. To be taken Since then this temple is known as Vighneshwar, Vighnaharta and Vighnahar.
History
Chimaji Appa, brother of Bajirao Peshwa, renovated the temple after confiscating the Vasai Fort from the Portuguese in 1785 and covered the spire with gold. This temple was also renovated in 1967 by Ganesh Bhakta Appa Shastri Joshi.
Like all Ashtavinayak temples, the central Ganesha image is believed to be Swayambhu, which is naturally in the form of a stone with an elephant face. The temple is surrounded by high stone walls on all four five and its facade is made of gold. It faces east and is surrounded by a strong stone wall. The outer chamber of the temple is 20 feet long and the inner chamber is 10 feet long.
The idol here is facing east and is coated with vermilion and oil. The trunk of the idol installed in the temple is on the left side and its eyes and navel are studded with diamonds, which presents a beautiful sight. The idols of Riddhi and Siddhi are placed on both sides of Ganesha. There is also a Deepmala which has gatekeepers.
पीपल (Peepal)/ Pipal
पीपल (Peepal)
पीपल क्या है?
जानते हैं पीपल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में
बुखार में
आंख दर्द में
दांत के रोग में
हकलाने की समस्या
दमा रोग में
भूख ना लगने में
शारीरिक कमजोरी में
कब्ज की समस्या
पेचिश रोग में
पीलिया रोग में
मधुमेह में
मूत्र रोग
हाथ पाव फटने की समस्या
त्वचा रोग
अनेक प्रकार के घावों में
रक्त विकार में
विभिन्न भाषाओं में पीपल के नाम
Peepal
What is Peepal
Know about the advantages, disadvantages, uses and medicinal properties of peepal
In Fever
In Eye Pain
In Dental Disease
Stammering Problem
In Asthma
Not Feeling Hungry
In Physical Weakness
Constipation Problem
In Dysentery
In Jaundice
In Diabetes
Urinary Disease
Exfoliation Problem
Skin Disease
In a Variety of Wounds
In Blood Disorder
Sunday.. इतवार ..रविवार
इतवार (Sunday)
कि, आपका चरित्र क्या है ना की उस व्यक्ति का..❤️
जिंदगी गुलामी में नहीं
सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।
माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।
हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।
राह में साथ नहीं मिलेगा किसी का अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।
महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।
जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।
खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।
लालची चोरों की कहानी - जातक कथा
लालची चोरों की कहानी
काशी राज्य में एक ब्राह्मण हुआ करते थे, जिन्हें वह धर्म मंत्र सिद्ध था, जिसके द्वारा वह ग्रह नक्षत्रों का विशेष योग पाने पर आकाश से रत्नों की वर्षा करा सकते थे। उस समय बोधिसत्व एक शिष्य के रूप में उनके पास विद्याभ्यास करते थे।
एक दिन वह अपने शिष्य को साथ ले किसी काम से अन्य राज्य की ओर जा रहे थे। जब घने जंगलों में होकर गुजर रहे थे, उस समय उन्हें 500 पेशेवर चोरों ने घेर लिया। यह चोर किसी का वध नहीं करते थे। वह लोगों को पकड़ लेते थे और निश्चित धन मिल जाने पर छोड़ देते थे।
उन्होंने गुरु को रोक लिया और शिष्य बोधिसत्व को धन लाने को भेजा। चलते समय बोधिसत्व ने कहा गुरुदेव डरियेगा नहीं, मैं धन लाकर शीघ्र ही आपको मुक्ति दिला दूंगा। शिष्य के चले जाने पर गुरु ने हिसाब लगा कर देखा तो रत्न वर्षा के लिए उपयुक्त योग उसी दिन था। उन्होंने सोचा क्यों ना रत्न वर्षा कर इन चोरों को संतुष्ट कर दूँ और स्वयं मुक्त हो जाऊं।
उन्होंने चोरों से कहा मेरा बंधन खोल दो मैं तुम्हें अपार रत्न राशि दिला सकता हूं। चोरों ने ब्राह्मण का आदेश मानकर उनके बंधन खोल दिए और उन्हें नहला धुला कर सुगंधित द्रव्यों का लेप कर उसे पुष्प माला पहनाया। आकाश की ओर देख समय का अनुमान कर ब्राहमण ने मंत्र का जाप आरंभ किया। थोड़ी ही देर में एक सुनहरा बादल आकाश ने प्रकट हुआ और पृथ्वी पर रत्न बरसने लगे।
चोरों ने धन समेट लिया और ब्राह्मण से क्षमा मांग कर उनका बड़ा सम्मान किया। इसके पश्चात वे सब एक ओर चल दिए। जंगल में थोड़ी दूर जाने पर उन्हें चोरों का एक दूसरा दल मिला, जिसने उन्हें पकड़ लिया। यह पूछने पर कि हमें क्यों पकड़ा है, उन्होंने कहा हमें धन चाहिए।
चोरों ने कहा यह हमारे साथ जो ब्राह्मण था वह आकाश से धन की वर्षा करता है। हमें भी यह धन उसी ब्राह्मण ने दिलाया है। तब उन चोरों ने जाकर तुरंत ब्राह्मण को पकड़ लिया और उनसे धन बरसाने को कहा। तब ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि धन की वर्षा विशेष योग आने पर ही हो सकती है। तुम्हें 1 वर्ष का इंतजार करना होगा।
चोरों को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा,"क्यों रे दुष्ट! उन चोरों के लिए तो अभी धन बरसा दिया और हमें 1 वर्ष इंतज़ार करने को कहता है।" ऐसा कहकर एक चोर ने तलवार से उसके दो खंड कर डालें।
अब दोनों चोर दलों में युद्ध प्रारंभ हुआ। पहले वाले सब चोर मारे गए। पीछे वाले चोर सब धन लेकर जंगल में चले गए। जंगल में धन के बंटवारे पर उन चोरों में भी झगड़ा हो गया। भयंकर युद्ध में वे सब मारे गए। केवल दो चोर बच गए। दोनों चोरों ने सब धन एक तालाब के पास गाड़ दिया। एक खड़क लेकर पहरा देने लगा और दूसरा चावल पकाने लगा, क्योंकि दोनों को खूब भूख लगी थी।
परंतु दोनों के मन में पाप बुरी तरह समाया हुआ था। प्रत्येक अपने साथी को मारकर समस्त धन स्वयं लेने की इच्छा कर रहा था। चावल पका लेने पर चोर ने स्वयं भोजन किया और शेष में विष मिलाकर अपने साथी के पास ले गया। इधर प्रहरी चोर ने सोचा इस कंटक को तुरंत ही नष्ट कर डालना चाहिए। अतः जब उसका साथी भोजन लेकर उसके निकट गया, उसी समय उसने तलवार से उस पर आक्रमण कर उसे मार डाला। प्रहरी भूखा था अतः उसने सपाटे से सारा चावल खा लिया और विष के प्रभाव से वह भी मर गया।
शिष्य के रूप में बोधिसत्व जब धन लेकर वापस लौटे उस समय उन्होंने वन में केवल शवों के ढेर ही पाए और उन्होंने यह गाथा कही कि,"जो अनुचित उपायों से धन पाना चाहते हैं, वह नष्ट हो जाते हैं।" जैसा लालची चोरों की कहानी बताती है।
English Translate
Story of Greedy Thieves
There used to be a brahmin in the kingdom of Kashi, to whom he had a dharma mantra, through which he could make gems rain from the sky after getting a special combination of planetary constellations. At that time the Bodhisattva used to study with him as a disciple.
One day he was going to another state for some work with his disciple. While passing through the dense forests, he was surrounded by 500 professional thieves. These thieves did not kill anyone. He used to capture people and release them when they got a certain amount of money.
He stopped the master and sent the disciple Bodhisattva to fetch the money. While walking the Bodhisattva said that Gurudev will not be afraid, I will bring you money and get you free soon. After the departure of the disciple, the Guru looked at the calculations and found that the appropriate yoga for the rain of gems was on the same day. He thought why not satisfy these thieves by raining gems and get free myself.
He told the thieves, open my bond, I can get you a lot of gems. The thieves, obeying the orders of the Brahmin, untied their shackles and washed them after bathing them and smeared them with fragrant substances and garlanded them with flowers. Looking at the sky, anticipating the time, the Brahmin started chanting the mantra. In no time a golden cloud appeared in the sky and gems started raining on the earth.
The thieves collected the money and gave him great respect by asking for forgiveness from the Brahmin. After that they all went aside. After going a short distance in the forest, he found another group of thieves, who caught him. When asked why we have been arrested, he said, "We need money.
The thieves said that this brahmin who was with us rained wealth from the sky. The same Brahmin has given us this money too. Then those thieves immediately went and caught the Brahmin and asked him to shower money. Then the brahmin replied that the rain of wealth can happen only when a special yoga comes. You have to wait 1 year.
The thieves got angry. He said, "Why you wicked! He just rained money for those thieves and tells us to wait for 1 year." Saying this, a thief cut it into two sections with a sword.
Now the war started between both the thieves' parties. All the former thieves were killed. The thieves behind went into the forest with all the money. There was also a fight between those thieves over the distribution of money in the forest. They were all killed in a fierce battle. Only two thieves survived. Both the thieves buried all the money near a pond. One stood guard and the other started cooking rice, because both were very hungry.
But sin was deeply entrenched in both of their minds. Each was wishing to kill his companion and take all the wealth himself. After cooking the rice, the thief himself ate the food and mixed the poison with the rest and took it to his companion. Here the guard thief thought that this thorn should be destroyed immediately. So when his companion went near him with food, at that very moment he attacked him with a sword and killed him. The watchman was hungry, so he ate all the rice flat and died due to the effect of the poison.
When the Bodhisattva returned with money as a disciple, he found only heaps of dead bodies in the forest, and he told the story that "Those who seek wealth by unfair means perish." As the story of greedy thieves tells.
बड़ / बरगद / वट / Bargad / Banyan
बरगद (Banyan)
बरगद(Banyan) के पेड़ को वटवृक्ष या बड़ का पेड़ भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम "फाइकस बेंगालेंसिस" है। सामान्यता घर के आसपास या ज्यादातर मंदिरों में दिखाई देता है। बरगद(Banyan) का पेड़ बहुत विशाल और बड़े-बड़े पत्तों वाला होता है। यह हमें अत्यधिक मात्रा में ऑक्सीजन देता है तथा साथ ही इसकी विशालकाय छवि हम लोगों को छाया भी देती है। आयुर्वेद के अनुसार बरगद(Banyan) का पेड़ एक उत्तम औषधि भी है और बरगद के पेड़ से कई बीमारियों का इलाज भी होता है। वैसे तो हर पेड़ का अपना - अपना महत्व होता है, परंतु बरगद(Banyan) का पेड़ कुछ अलग है। यह पेड़ लंबे समय तक रहता है। सूखा और पतझड़ आने पर भी यह हरा-भरा बना रहता है और सदैव बढ़ता रहता है। यही कारण है कि इसे "राष्ट्रीय वृक्ष" का दर्जा प्राप्त है। यह पेड़ पूजनीय भी है। हिंदू धर्म में इस वृक्ष की पूजा की जाती है।
बरगद क्या है?
बरगद एक विशाल तना और शाखा वाला वृक्ष है। यह बहुत ही छायादार और लंबे समय तक जीवित रहने वाला वृक्ष है। यहां इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि अकाल के समय भी यह जीवित रहता है, अर्थात सूखा, पतझड़ और किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा में भी यह जीवित रहता है। मनुष्य बरगद के पेड़ के फल खाते हैं तो जानवर इसके पत्ते खाते हैं। बरगद का पेड़ सीधा बड़ा होता है और फैलता जाता है। इसकी जड़ें तने से निकलकर नीचे की तरफ बढ़ती हैं, जो बढ़ते हुए धरती के अंदर घुस जाती हैं और एक तने की तरह बन जाती हैं। इसके इन जड़ों को बरोह या प्राप जड़ भी कहा जाता है। बरगद का फल गोलाकार, छोटा और लाल रंग का होता है। इसके फल के अंदर बीज होता है, जो बहुत ही छोटा होता है। बरगद की पत्तियां चौड़ी होती हैं। इसकी ताजी पत्तियां, तना और छाल को तोड़ने पर उनमें से सफेद रंग का तरल पदार्थ निकलता है, जिसे लेटेक्स अम्ल कहा जाता है।
जानते हैं बरगद के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में
बरगद का औषधीय गुण वात, पित्त और कफ दोष को ठीक करने की क्षमता रखता है। यह पेड़ अपने विभिन्न औषधीय गुणों से महिला, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग सभी के लिए अत्यंत फायदेमंद है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में
बरगद के पेड़ की पत्तियों में कुछ खास तत्व पाए जाते हैं, जैसे कि हेक्सेन, ब्यूटेनाल, क्लोरोफॉर्म और पानी यह सभी तत्व संयुक्त रूप से प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इस कारण बरगद के पेड़ की पत्तियों का सेवन करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
दांत और मसूड़ों के लिए
बरगद में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटीमाइक्रोबियल्स प्रभाव दांतों को सड़ने और मसूड़ों में सूजन की समस्या से आराम दिलाता है। इसकी जड़ को चबाकर नरम कर उससे दातुन करने से भी दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं।
बालों की समस्या
बरगद की पत्तियों का भस्म बना लें। 20 से 25 ग्राम भस्म को 100 मिलीग्राम अलसी के तेल में मिलाकर सिर पर लगाने से बालों की समस्या दूर होती है।
त्वचा के लिए
वटवृक्ष के 5-6 कोमल पत्तों को 10-20 ग्राम मसूर के साथ पीसकर त्वचा पर लेप करने से मुंहासे और झाइयां दूर होती हैं।
पेचिश रोग में
दस्त के साथ अगर खून आता है, तो वटवृक्ष की 20 ग्राम कोमल पत्तियों को पीस लें। इसे रात में पानी में भिगोकर सुबह छान लें। अब इस पानी में 100 ग्राम घी मिलाकर पकाएं। इसमें केवल घी बच जाने पर उतार लें। इस घी से 5 - 10 ग्राम घी में दो चम्मच शहद और चीनी मिलाकर सेवन करने से खूनी दस्त या पेचिश में लाभ होता है।
दस्त में
वटवृक्ष के 8-10 कोपलों को दही के साथ सेवन करने से दस्त में लाभ होता है।
मधुमेह में
- 20 ग्राम बरगद के फल के चूर्ण को आधा लीटर पानी में पकाएं। जब इस का आठवां भाग शेष रह जाए, तब उतार कर ठंडा होने दें। ठंडा होने पर छानकर इसका सेवन करें। ऐसा एक महीने तक सुबह और शाम करने से डायबिटीज में बहुत लाभ होता है।
- 4 ग्राम की मात्रा में बरगद की जटा के चूर्ण को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से भी मधुमेह में लाभ होता है।
याददाश्त बढ़ाने में
छाया में सुखाएं गए वट वृक्ष की छाल का महीन चूर्ण बना लें। इसमें दोगुनी मात्रा में खांड या मिश्री मिला लें। इस चूर्ण को 6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से याददाश्त बढ़ती है। इस दौरान खट्टे चीजों के सेवन से परहेज रखें।
घाव होने पर
- बरगद के दूध की कुछ बूंद दिन में तीन - चार बार घाव पर लगाने से घाव के कीड़े मर जाते हैं और घाव ठीक हो जाता है।
- वर्षा ऋतु में पानी में अधिक रहने से उंगलियों के बीच में जख्म हो जाते हैं। ऐसी जगह पर बड़ का दूध लगाने से जल्दी आराम मिलता है।
आग से जलने पर
आग से जले हुए स्थान पर वटवृक्ष के कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से लाभ होता है।
खुजली में
बरगद के पेड़ के आधा किलो पत्तों को कूट लें। अब इसको 4 लीटर पानी में रात भर भिगोकर रख दें तथा सुबह होने पर इसे पकाकर 1 लीटर बचने पर इसमें आधा लीटर सरसों का तेल डालकर फिर पकाएं। जब केवल तेल रह जाए, तो छानकर इस तेल की मालिश से गीली और सुखी दोनों प्रकार की खुजली में आराम होता है।
कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का कारण कफ दोष का असंतुलित होना माना गया है और बरगद में कफ शामक गुण होने के कारण यह कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करता है।
बरगद पेड़ के नुकसान
बरगद के पेड़ का कोई भी नुकसान नहीं होता है। बस औषधि के रूप में इसके सेवन के लिए इसकी नियंत्रित मात्रा लेनी चाहिए।
पीपल, बरगद,पकड़ी और नीम, पर्यावरण के लिए और स्वास्थ्य के लिए
तेनालीरामा (TenaliRama)
तेनालीरामा (TenaliRama)
तेनालीरामा (TenaliRama) नाम से तो आप सभी वाकिफ ही होंगे। आज चर्चा करते हैं, इनके विषय में। तेनालीरामा (TenaliRama)/ तेनालीराम/ तेनाली रमन का जन्म सोलहवीं शताब्दी में भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के गुंटूर जिले के एक गांव में हुआ था। तेनालीराम एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। वह पेशे से कवि थे व तेलुगु साहित्य के महान ज्ञानी थे।
तेनाली रामा जब युवा थे तभी उनके पिता गरालपति की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी माता उनको लेकर अपने भाई के पास तेनाली चली गई। तेनालीराम शिव भक्त भी थे, अतः उन्हें तेनालीराम मलिंगा के नाम से भी पुकारा जाता था।
तेनाली रामा अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से राजा कृष्णदेव राय को बहुत प्रभावित किए थे। अतः राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को अपने दरबार में आठवें मंडल के हास्य कवि के पद पर शामिल किया था। तेनालीराम उनके दरबार में एक हास्य कवि और मंत्री सहायक की भूमिका में उपस्थित हुआ करते थे। तेनाली रामा हास्य कवि होने के साथ-साथ ज्ञानी और चतुर व्यक्तित्व के धनी भी थे। राज्य से जुड़ी विकट परिस्थितियों से उबरने के लिए कई बार महाराजा कृष्ण देव राय तेनाली रामा की मदद लिया करते थे। उनकी बुद्धि चातुर्य और ज्ञान बोध से जुड़ी कई कहानियां हैं इन कहानियों की सत्यता को लेकर संदेह कर सकते हैं परंतु इनके गुणों पर बिल्कुल भी नहीं।
तेनाली रामा के किस्से तब भी बहुत प्रसिद्ध थे और आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं। वैसे तो दादी नानी के किस्से कहानियों के प्रचलन खत्म हो चले हैं, परंतु उसमें भी बच्चों के मानसिक विकास के लिए तेनालीराम की कहानियों को हमेशा से एक अच्छा जरिया माना जाता रहा है। यही नहीं तेनालीराम से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जो ना सिर्फ हर किसी को गुदगुदाते हैं, हंसाते हैं बल्कि एक अच्छी शिक्षा भी दे जाते हैं। कहानियों के इस वर्ग में आपको तेनालीराम से जुड़े कई मजेदार किस्से पढ़ने को मिलेंगे, जिससे उनकी चतुराई और बौद्धिक कौशल से किसी भी समस्या का समाधान सरलता से निकाला जा सकता है।
तो फिर तैयार हो जाइए ... अकबर बीरबल के किस्सों के बाद तेनालीरामा के किस्सों के लिए... तो हर गुरुवार तेनालीरामा के किस्सों के साथ मिलेंगे।