श्री अंजनेय मंदिर बैंगलोर || Sri Anjaneya Temple Bangalore ||

श्री अंजनेय मंदिर बैंगलोर

भगवान हनुमान को पूरे भारत में अंजनेय, हनुमानजी, मारुति, बजरंग बली, महावीर, पवन कुमार जैसे विभिन्न नामों से पूजा जाता है। उनका जन्म पवन देवता और अंजना देवी से हुआ था। वह सात चिरंजीवियों (अमर) में से एक हैं। सूर्य देव को इनका गुरु माना जाता है। बैंगलोर में भगवान अंजनेय (हनुमान) को समर्पित कई मंदिर हैं।

श्री अंजनेय मंदिर बैंगलोर || Sri Anjaneya Temple Bangalore ||

उन्ही मंदिरों में आज हम चर्चा करेंगे "श्री अंजनेय मंदिर बैंगलोर" की 

यह प्राचीन मंदिर 150 वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है और विजयनगर साम्राज्य के राजगुरु, व्यासराजा द्वारा भगवान अंजनेय स्वामी की मूर्ति स्थापित की गई है। इसे उडुपी से कुंडापुरा के रास्ते पर स्थित एक छोटे से शहर 'सालिग्राम' में उकेरा गया था। यह स्थान बेंगलुरु के उत्तर पूर्व में लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्रसिद्ध व्यस्त इलाका है। हालाँकि इस मंदिर के बारे में एक अल्पज्ञात तथ्य यह है कि हनुमान जयंती के अवसर पर अंजनेय मूर्ति आँसू बहाती है। दोपहर की पूजा के बाद उस दिन आंखों से आंसू बहते हैं।

यह मंदिर डोड्डा बनासवाड़ी बैंगलोर में श्री अंजनेय मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर से जुड़ी हुई किवदंती है कि प्रभु श्री राम हर साल इसी दिन अपने अनंतपरम भक्त श्री हनुमानजी को दर्शन देते हैं। ये उनके प्रभु को देखकर खुशी के आंसू हैं। यह शायद इस मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है। वास्तव में ऐसा न किसी मंदिर की घटना के बारे में सुना गया है, ना देखा गया है। कलयुग में भी प्रभु श्रीराम अपने परम् भक्त वीर बजरंगबली को प्रतिवर्ष उनके जन्मोत्सव के दिन उनको अपने दर्शन देते है। 

सनातन धर्म को मानने वाले लोगों का विश्वास है कि कलयुग में भी पृथ्वी पर श्री वीर बजरंगबली एवम श्री शनिदेव साक्षात रूप से निवास करते हैं। शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्म से हिसाब से यही दंड प्रदान करते हैं तो बजरंगबली अपने भक्तों को अभय प्रदान करते हैं।

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Sri Anjaneya Temple Bangalore

Lord Hanuman is worshiped by different names like Anjaneya, Hanumanji, Maruti, Bajrang Bali, Mahavir, Pawan Kumar all over India. He was born to Pawan Devta and Anjana Devi. He is one of the seven Chiranjeevis (immortals). Surya Dev is considered his guru. There are many temples dedicated to Lord Anjaneya (Hanuman) in Bangalore.

श्री अंजनेय मंदिर बैंगलोर || Sri Anjaneya Temple Bangalore ||

In those temples, today we will discuss "Shri Anjaneya Temple Bangalore".

This ancient temple is said to be more than 150 years old and the idol of Lord Anjaneya Swamy was installed by Vyasaraja, the Rajaguru of the Vijayanagara Empire. It was carved in 'Saligram', a small town on the way from Udupi to Kundapura. This place is a well-known busy locality located about 6 kilometers to the North East of Bangalore. However, a little known fact about this temple is that the Anjaneya idol sheds tears on the occasion of Hanuman Jayanti. Tears flow from the eyes on that day after the afternoon worship.

This temple is popularly known as Sri Anjaneya Temple in Dodda Banaswadi Bangalore. The legend associated with this temple is that every year on this day Lord Shri Ram gives darshan to his eternal devotee Shri Hanumanji. These are tears of joy on seeing their Lord. This is perhaps the most unique feature of this temple. In fact, such an incident in any temple has neither been heard nor seen. Even in Kalyug, Lord Shriram gives his darshan to his supreme devotee Veer Bajrangbali every year on the day of his birth anniversary.

People who believe in Sanatan Dharma believe that Shri Veer Bajrangbali and Shri Shani Dev reside on earth in Kalyug as well. Shanidev gives the same punishment to a person according to his deeds, then Bajrangbali gives fearlessness to his devotees.

तिमूर या टिमरू (Winged prickly)/Timru

तिमूर या टिमरू (Winged prickly)

उत्तराखंड को देव भूमि का दर्जा प्राप्त है। इस देवभूमि को प्रकृति ने भी कई चमत्कारिक औषधियों से नवाजा है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ऐसी ढेरों महत्‍वपूर्ण वनस्‍पतियां मौजूद है जो औषधीय गुणों से युक्‍त हैं। उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जाने वाली इन वनस्पतियों के इस्तेमाल के बारे में लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी से अवगत हैं। तिमुर को यहां के स्थानीय लोग पहाड़ी नीम कहते हैं। 

तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

जिस तरह मैदानी इलाकों के लोग नीम की दातून प्रयोग में लाते हैं उसी तरह उत्तराखण्ड के पहाड़ों में तिमूर/टिमरू या अखरोट के दातुन इस्तेमाल किए जाते थे। पहाड़ों में दूर-दराज इलाकों में लोग रोजमर्रा के जीवन में इन वनस्‍पतियों का इस्‍तेमाल कर खुद को सेहतमंद रखते हैं।  

तिमुर क्या है?

तिमूर/टिमरू रूटेसी (Rutaceae) फैमिली का काटेंदार पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम जेंथेजाइलम अरमेटम (Zanthoxylum armatum) हैं। तिमोर के वृक्ष की लंबाई 10 से 12 मीटर होती है, जिसका हर हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है। तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक दिव्य गुणों से भरपूर है। घने और अधिक ऊँचाइयों पर, अक्सर खुली ढलानों और चट्टान के मैदानों पर, 2,400 मीटर तक की ऊँचाई पर विस्तृत पर्यावरणीय सहिष्णुता वाला पौधा, जो समशीतोष्ण से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक पाया जाता है। पुरानी लकड़ी पर फूल बनते हैं। तिमूर/टिमरू भारत, नेपाल, भूटान व उत्तरी अमेरिका व अन्य देशों में पाया जाता है। 

जानते हैं तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

बुखार, अपच और हैजा के उपचार में इनका उपयोग एक खुशबूदार टॉनिक के रूप में किया जाता है। 7 - 14 बीजों का काढ़ा फोड़े-फुंसियों, गठिया, घाव, जठरशोथ, सूजन आदि के उपचार में प्रयोग किया जाता है। दांत दर्द से राहत पाने के लिए बीजों का पेस्ट दांतों के बीच लगभग 10 मिनट तक लगाया जाता है। पत्तियों को एक मसाला के रूप में उपयोग किया जाता है। पत्तियों का एक पेस्ट घाव के लिए बाहरी रूप से लगाया जाता है। फल, शाखाएँ और काँटे मादक और रूखे माने जाते हैं। वे दांत दर्द के लिए एक उपाय के रूप में उपयोग किए जाते हैं। छाल में निहित राल, और विशेष रूप से जड़ों में, शक्तिशाली रूप से उत्तेजक और टॉनिक है। जड़ को पानी में लगभग 20 मिनट तक उबाला जाता है और छना हुआ पानी एक कृमिनाशक के रूप में पिया जाता है। पेट के दर्द से राहत पाने के लिए पत्तियों का आसव पिया जाता है। पत्तियों के पेस्ट को ल्यूकोडर्मा के इलाज के लिए बाहरी रूप से लगाया जाता है।

दातों और मसूड़ों के लिए

  • यह दांतों के लिए विशेष रूप से दंत मंजन, दंत लोशन और और दातुन के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। यह एक कांटेदार पेड़ है जिस पर छोटे-छोटे फल लगते हैं तथा इन फलों को चबाने पर झाग बनता है या दाद की अचूक औषधि है दांत से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या इस की टहनी से दातुन करने से और दानों को चबाने से ठीक होती है।
  • पायरिया की समस्या के लिए भी इसे बेहतरीन औषधि के रूप में जाना जाता है।
तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

बुखार होने पर

तिमूर बुखार में उपयोगी है। इसके तेल में ‘लीनानूल’ नाम का कैमिकल होता है, जो ‘एंटीसेप्टिक’ का काम करता है। अस्थमा, ब्रोकाइटिस, बुखार, स्किन डिजीज़, कोलेरा जैसी बीमारियों में ये लाभदायक होता है। 

कब्ज की समस्या

तिमुर के बीजों को गर्म कपाने क साथ सेवन करने से कब्ज में लाभ होता है साथ ही यह बीज अपच एसिडिटी और खट्टी डकार ओं के लिए भी फायदेमंद है। इसका उपयोग बीजों की चटनी बनाकर भी किया जा सकता है।

मुंह की बदबू

यदि कोई मुंह से दुर्गंध आने की समस्या से परेशान है तो तिमुर के बीजों को पिपरमिंट की तरह चबाने से लाभ होता है इससे मुंह के बदबू कम होती है तथा प्रतिदिन इसके बीजों का उपयोग करने से मसूड़ों और मुंह से आने वाली दुर्गंध में लाभ होता है।

चोट के निशान तथा घाव पर

चोट के निशान को कम करने के लिए तिमोर के बीजों का प्रयोग किया जाता है इसमें एंटीसेप्टिक गुण होता है जो घाव को बढ़ने से रोकता है तथा इसका प्रयोग करने से घाव जल्दी भर जाता है तथा चोट के निशान कम होते हैं। इसके लिए तिमुर के बीजों को पीसकर इसका पाउडर बनाकर प्रभावित हिस्से पर लेप लगाने से लाभ होता है।

एक्‍यूप्रेशर के लिए 

इसकी सूखी टहनी शरीर में जोड़ों पर अच्‍छा दबाव बनता है। इस वजह से ये एक्‍यूप्रेशर के काम में ली जाती है।

तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

अन्य भाषाओँ में तिमूर का नाम 

गढ़वाल - टिमरू 

कुमाऊँ - तिमुर

हिंदी में तेजबल, 

संस्कृत - तुम्वरु, तेजोवटी

जापानी - किनोमे

नेपाली - टिमूर 

यूनानी - कबाब.ए.खंडा 

नेपाली - धनिया 

तिमूर के बारे में कुछ अन्य बातें 

उत्तराखंड के गाँव में आज भी कई लोग इसकी शाखाओं से टूथपेस्ट करते हैं। तिमूर/टिमरू औषधीय गुणों से युक्त है, साथ ही साथ इसका धार्मिक और घरेलू महत्व भी है। यही नहीं, गाँव में लोंगो की बुरी नजर से बचने के लिए वे तने को काटकर अपने घरों में रखते हैं। गाँव के लोग इसकी पत्तियाँ गेहूँ के बर्तनों में डालते हैं, जिससे इससे गेहूँ में कीड़े नहीं लगते हैं। गांवों में कोई शादी हों तो दूल्हे को हल्दी लगाने, नहाने और आरती उतारने के बाद उसे पीले कपड़ो में भिक्षा मांगने को भेजा जाता है। एक झोली और एक लकड़ी का डंडा उसके पास होता है, ये तिमूर/टिमरू की लकड़ी का डंडा होता है। इसका उपयोग इतने तक ही सीमित नही होता है, बल्कि यह और भी बहुत से कार्यो में काम आता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ मंदिर में प्रसाद के रूप में टिमरू (इसकी टहनी) चढ़ाया जाता है। 

तिमूर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि जौनपुर का लोकप्रिय और परम्परागत त्योहार मौण मेला में मछली पकड़ने के लिए हजारों लोग नदी में जब कूद जाते हैं, तो इसमें तिमूर का पाउडर डालने का सिलसिला है। तिमूर का पाउडर मछलियों को बेहोश कर देता है, जिसके कारण मछलियां आसानी से पकड़ी जा सकती हैं। वहीं बड़ी संख्या में देसी- परदेसी पर्यटक भी इस मेले को देखने पहुंच रहे हैं।

ग्रामीणों की मानें तो इस मेले का उद्देश्य नदी व पर्यावरण को संरक्षित करना है, ताकि नदी की सफाई हो सके व मछलियों के प्रजजन में मदद मिल सके। जल वैज्ञानिकों की राय एवं कहना है कितिमूर/टिमरू का पावडर जल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है, मात्र कुछ समय के लिए मछलियां बेहोश हो जाती हैं और इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं। जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। वहीं हजारों की संख्या में जब लोग नदी की धारा में चलते हैं तो नदी के तल में जमी काई और गंदगी भी साफ होकर पानी में बह जाती है और मौण मेला होने के बाद नदी बिल्कुल साफ नजर आती है।

इसकी सूखी टहनी शरीर में जोड़ों पर अच्‍छा दबाव बनता है। इस वजह से ये एक्‍यूप्रेशर के काम में ली जाती है।

तिमूर के बीज अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू की वजह से मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किये जाते हैं।  उत्तराखण्ड में  भले ही तिमूर से सिर्फ चटनी बनायी जाती हो लेकिन यह चाइनीज, थाई और कोरियन व्यंजन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है। 

तिमुर के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

शेजवान पेप्पर (Sichuan pepper,) चाइनीज पेप्पर के नाम से जाना जाने वाला यह मसाला चीन के शेजवान प्रान्त की विश्वविख्यात शेजवान डिशेज का जरूरी मसाला है। मिर्च की लाल-काली प्रजातियों से अलग इसका स्वाद अलग ही स्वाद और गंध लिए होता है। इसका ख़ास तरह का खट्टा-मिंट फ्लेवर जुबान को हलकी झनझनाहट के साथ अलग ही जायका देता है।   

चीन के अलावा, थाईलेंड, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी तिमूर का इस्तेमाल मसाले और दवा के रूप में किया जाता है. इन देशों में कई व्यंजनों को शेजवान सॉस के साथ परोसा भी जाता है। 

उत्तराखण्ड में तिमूर की लकड़ी को अध्यात्मिक कामों में भी बहुत महत्त्व दिया जाता है, तिमूर की लकड़ी को शुभ माना जाता है। जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है।  तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है। 

ऊँची उड़ान

ऊँची उड़ान

आज जनवरी का अंतिम इतवार। खुशनुमा मौसम है, ना बहुत ज्यादा सर्दी का कहर है ना कहीं गर्मी का कोई एहसास। सामान्यतया फरवरी माह में पड़ने वाला बसंत पंचमी का त्यौहार भी इस साल जनवरी में ही हो गया। पतझड़ के बाद बसंत ने भी दस्तक दे दी। तो प्रस्तुत है मौसम और दिल के जज्बातों के बीच तालमेल बैठाती कुछ पंक्तियाँ !! 

Rupa Oos ki ek Boond
"ज़िद्दी बनना सीखो, 
क्योकि कोई भी इंसान एक रात में सफल नहीं होता..❣️"

माह जनवरी, मौसम शांत और

सर्द है,

सुबह और शाम यहां धुंध भी

बहुत है..

सफर जिंदगी का भाग रहा है

अपने वेग से,

चेहरे पर इस हँसी के पीछे दर्द

बहुत है..

यहां हौसलों ने जिद की है

ऊंची उड़ानों की,

ऊंचे नीचे रास्तों में फिसलन

बहुत है..

बढ़ाये हैं कदम मैंने इस सफर में

तन्हा ही,

जमाने को मेरी हार की तलब

 बहुत है..

भरोसे का थामा है मैंने हाथ

 इस सफर में,

मंजिलों तक पहुँचने की जिद

बहुत है..

बढ़ते कदमों से चल रहा इक द्वंद

 का है ज्वार,

डगर पर सपनो की मीनार बुलंद

बहुत है..

न रुकूँगी, थकूंगी न देखूंगी गुज़रा

लम्हा ऐ जिंदगी,

गुजरे लम्हों ने दिया दर्द 

बहुत है..

अब तो जिद है

आगे ही आगे बढ़ने की,

हाथों की लकीरों में कामयाबियां

बहुत हैं..

Rupa Oos ki ek Boond
"इस दुनिया में खुशी और मुस्कुराहट ही एकमात्र ऐसा खजाना है,
जिसे जितना बांटो वो और बढ़ता जाएगा..❣️"


कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र || Kutte ka bairi kutta : Panchtantra ||

कुत्ते का वैरी कुत्ता

एको दोषो विदेशस्य स्वजातिद्विरुध्यते

विदेशी का यही दोष है कि यहाँ स्वाजातीय ही विरोध में खड़े हो जाते हैं।

कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र || Kutte ka bairi kutta : Panchtantra ||

एक गाँव में चित्रांग नाम का कुत्ता रहता है। वहाँ दुर्भिक्षपड़ गया। अन्न के अभाव में कई कुत्तों का वंशनाश हो गया। चित्राँग ने भी दुर्भिक्ष से बचने के लिए दूसरे गाँव की राह ली। वहाँ पहुँचकर उसने एक घर में चोरी से जाकर भरपेट खाना खा लिया। जिसके घर खाना खाया था, उसने तो कुछ नहीं कहा लेकिन घर से बाहर निकला तो आस-पास के सब कुत्तों ने उसे घेर लिया। भयंकर लड़ाई हुई। चित्राँग के शरीर पर कई घाव लग गए चित्राँग ने सोचा, इससे तो अपना गाँव ही अच्छा है, जहाँ केवल दुर्भिक्ष है, जान के दुश्मन कुत्ते तो नहीं हैं।

यह सोचकर वह वापस आ गया। अपने गाँव आने पर उससे सद कुत्ते ने पूछा-चित्रांग दूसरे गाँव की बात सुना, वह गाँव कैसा है? वहाँ के लोग कैसे हैं? वहाँ खाने-पीने की चीजें कैसी हैं?

चित्राँग ने उत्तर दिया- मित्रों, उस गाँव से खाने-पीने की चीजें तो बहुत अच्छी हैं, और गृह-पलियाँ भी नरम स्वभाव की हैं; किन्तु दूसरे गाँव में एक ही दोष है, अपनी जाति के कुत्ते बड़े खूँखार हैं।

बन्दर का उपदेश सुनकर मगरमच्छ ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपने घर पर स्वामित्व जमाने वाले मगरमच्छ से युद्ध करेगा। अन्त में वह हुआ। युद्ध में मगरमच्छ ने उसे मार दिया और देर तक सुखपूर्वक उस घर में रहता रहा।

॥ चतुर्थ तन्त्र समाप्त ॥

पंचम तंत्र 

अपरिक्षित्कारकम् 

To be Continued...


मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब) (होशियारपुर का अज्ञात स्थान)

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब)

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब), इस किले का इतिहास 537 वर्ष से अधिक पुराना है। हालांकि इसके विषय में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है। "इंपीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया", 1908 तथा बाबरनामा से ली गयी कुछ जानकारियाँ सोशल साइट्स पर उपलब्ध हैं। किसी जमाने में जहाँ एशिया की सबसे बड़ी लायब्रेरी हुआ करती थी, होशियारपुर के जंगलों में बसा वह गांव जहाँ मलोट का किला है, वर्तमान में अपनी हालात पर आंसू बहा रहा है और जमीन में दफन होने की कगार पर पहुंच चुका है। 

जानते हैं इस किले के इतिहास जुड़ी कुछ बातें। 

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब) (होशियारपुर का अज्ञात स्थान)

यह किला होशियारपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर कंडी में बसा गांव मलोट है, जो इतिहास के पन्नों में मौजूद तो है, पर अब धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। यह किला बहलोल लोधी के समय में बनाया गया था, जो अब जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। 1500 इस्वी के करीब लाहौर के सुल्तान बहलोल शाह लोधी ने यहाँ एक बेहतरीन किला बनवाया था, जिसमें एशिया की सबसे बड़ी लायब्रेरी हुआ करती थी। अक्सर बहलोल शाह लोधी इस इलाके में जंगल होने के कारण शिकार खेलने के लिए अपने साथियो के साथ आ कर कई कई दिनों तक रहता था।

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब) (होशियारपुर का अज्ञात स्थान)

उसी समय पर बाबर ने एक शक्तिशाली फौज तैयार कर छोटी-छोटी रियासतों को लूटना और कब्जा करना शुरू कर दिया था। सन् 1520 के आस-पास बाबर अपनी फौज को लेकर गांव मलोट में बने इस किले को लूट की नियत से ढूंढ रहा था। मगर जंगल में किला होने के कारण उसे काफी कठनाईयों का सामना करना पड़ रहा था। इसीलिए उसने अपनी फौज के साथ ज़िला होशियारपुर के गांव हरयाणा के नजदीक गांव टक्की में डेरा डाला। वहीँ यहाँ पर पानी की कमी के चलते बाबर ने एक कुएं का निर्माण भी करवाया। 

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब) (होशियारपुर का अज्ञात स्थान)

1525-1530 के दौरान बाबर, दौलत खान लोदी और गोरी खान से आगे निकलने के लिए अनिच्छुक था, जो आतंक से घिरे हुए थे और खुद को होशियारपुर जिले में हरियाना के पास मलोट के किले में बंद किये थे। बाबर ने काहनुवान के सामने ब्यास नदी को पार किया और शिवालिक पहाड़ियों की घाटी के मुहाने पर पड़ाव डाला, जिसमें मलौत का किला है। बाबर ने किले पर कब्जा कर लिया और दौलत खान को बंदी बना लिया। बाबर ने दिल्ली के रास्ते बजवारा, रूपनगर, सरहिंद और सुनाम के रास्ते मार्च किया।

मलौट किला, होशियारपुर (पंजाब) (होशियारपुर का अज्ञात स्थान)

मलोट किले की बहुमूल्य पुस्तकें, बाबर ने किले पर कब्जा करने के बाद हमायूँ और कामरान को सौंप दिया था, उस समय शेर शाह सूर के शासनकाल में हामिद खान कक्कड़ मलोट के किले का प्रभारी था।

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Malout Fort, Hoshiarpur (Punjab)

Malout Fort, Hoshiarpur (Punjab), The history of this fort is more than 537 years old. Although there is not much information available about it. Some information taken from "Imperial Gazetteer of India", 1908 and Baburnama is available on social sites. Once home to Asia's largest library, the village situated in the forests of Hoshiarpur where the Malot fort is situated, is currently shedding tears for its condition and is on the verge of being buried in the ground.

Know some things related to the history of this fort.

This fort is only 20 kilometers away from Hoshiarpur, situated in Kandi village Malot, which is present in the pages of history, but now it has gradually reached the verge of extinction. This fort was built during the time of Bahlol Lodhi, which is now in a dilapidated condition. Around 1500 AD, Bahalol Shah Lodhi, the Sultan of Lahore, had built an excellent fort here, which used to have Asia's largest library. Often Bahlol Shah Lodhi used to stay in this area for many days with his companions to play hunting because of the forest.

At the same time, Babur had prepared a powerful army and started looting and capturing small princely states. Around the year 1520, Babur was looking for this fort built in village Malot with the intention of plundering it. But due to being a fort in the forest, he was facing a lot of difficulties. That's why he along with his army camped in village Takki near Haryana village of district Hoshiarpur. At the same time, due to lack of water here, Babar also got a well constructed.

During 1525–1530 Babur was reluctant to overrun Daulat Khan Lodi and Ghori Khan, who were terror-stricken and shut themselves up in the fort of Malot near Haryana in the Hoshiarpur district. Babur crossed the Beas river opposite Kahnuwan and encamped at the mouth of the valley of the Shivalik hills, which contains the fort of Malout. Babur captured the fort and made Daulat Khan a prisoner. Babur marched through Delhi via Bajwara, Rupnagar, Sirhind and Sunam.

The valuable books of Malot Fort, Babur handed over to Humayun and Kamran after capturing the fort, Hamid Khan Kakkar was in charge of the fort of Malot during the reign of Sher Shah Sur.

बसंत पंचमी 2023 || Basant Panchami ||

बसंत पंचमी

आज की तिथि ऐसी है कि बसंत पंचमी का पर्व और गणतंत्र दिवस एक ही दिन है। 

सर्वप्रथम आप सभी को बसंत पंचमी और गणतंत्र दिवस की बधाई।
भगवती सरस्वती सभी का कल्याण करें।

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,
   या शुभ्र वस्त्राविता
या वीणा वरदण्ड मन्दितकरा
    या श्वेत पद्मासना
बसंत पंचमी

इस साल बसंत पंचमी का पर्व आज यानि 26 जनवरी को मनाया जा रहा है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। आज से ही सर्दी के जाने की शुरुआत होती है। लोग बसंत पंचमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। 

बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के अवतरण दिवस में रूप में मनाया जाता है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी संसार के भ्रमण पर निकले हुए थे। उन्होंने जब सारा ब्रह्माण्ड देखे तो उन्हें सब मूक नजर आया। यानी हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। इसे देखने के बाद उन्हें लगा कि संसार की रचना में कुछ कमी रह गई है।

बसंत पंचमी

इसके बाद ब्रह्माजी एक जगह पर ठहर गए और उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा जल निकालकर छिड़क दिया। तो एक महान ज्योतिपुंज में से एक देवी प्रकट हुई। जिनके हाथों में वीणा थी और चेहरे पर बहुत ज्यादा तेज। यह देवी थी सरस्वती, उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम किया। 

मां सरस्वती ने पितामह ब्रह्मा जी की आज्ञा से अपनी वीणा के तारों से कुछ सुर निकाले। मां सरस्वती के वाणी की देवी मां सरस्वती केअवतरण दिवस के रूप में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है।

बसंत पंचमी

ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा कि इस संसार में सभी लोग मूक है। ये सभी लोग बस चल रहे हैं इनमें आपसी संवाद नहीं है। ये लोग आपस में बातचीत नहीं कर पाते हैं। इसपर देवी सरस्वती ने पूछा की प्रभु मेरे लिए क्या आज्ञा है? ब्रह्माजी ने कहा देवी आपको अपनी वीणा की मदद की इन्हें ध्वनि प्रदान करो। ताकि ये लोग आपस में बातचीत कर सकें। एक दूसरे की तकलीफ को समझ सकें। इसके बाद मां सरस्वती ने सभी को आवाज प्रदान करी।

इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन सभी लोग अपने घर, स्कूल, कॉलेज, कार्यस्थल पर मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते है।

बसंत पंचमी

भारत में छह मुख्य ऋतुएं हैं, जिनमें से बसंत ऋतू को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बसंत ऋतु को ऋतु राज भी कहा जाता है। इस समय मौसम न अधिक गर्म होता है और न अधिक ठंडा। इस विशेष दिन पर शिक्षा या संगीत से संबंधित चीजों की पूजा करने से भी व्यक्ति को लाभ मिलता है और उसे इन क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही इस दिन से पृथ्वी पर नवीनता का पुनः सृजन होता है। पेड़-पौधों में नए और सुन्दर पुष्प आने शुरू हो जाते हैं। 

बसंत पंचमी

बसंत पंचमी से मौसम में संतुलन बना रहता है। इसके साथ बसंत पंचमी पर्व के दिन पीले रंग का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। सनातन धर्म में इस रंग का महत्व बहुत अधिक है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस रंग को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस रंग को तनाव दूर करने में सबसे कारगर माना जाता है। साथ यह दिमाग को पूर्णतः सक्रिय रखने में मददगार साबित होता है। इस रंग से आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।

बसंत पंचमी

अंत में सभी को एक बार फिर बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना।

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum)

फूल हैं या कोई अजूबा

फूलों को देखकर कौन है, जिसका मन प्रफुल्लित ना हो उठे। रंग बिरंगे फूल प्रकृति की अद्भुत सुंदरता है जो हर किसी के मन को संतुष्ट और रोमांचित करती हैं। खिले फूलों को देखकर मन भी खिल उठता है। फूलों की खुशबू हवाओं में खुलकर जब हम तक पहुंचती है तो मन मयूर स्वतः ही मुस्कुरा उठता है, पर कुछ फूल ऐसे भी हैं जो इसके विपरीत हैं जिन से खुशबू नहीं बदबू आती है। आज जानते हैं दुनिया के एक ऐसे अजीबोगरीब फूल के बारे में जिससे किसी सड़े हुए मांस जैसी दुर्गंध आती है। 

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

जी हां अरे सिया प्रजाति का एक फूल जो बेहद बदबूदार होता है, इससे किसी सड़े हुए मांस जैसी गंध आती है जिसके कारण कोई भी उसके पास जाने से कतराते है या यूं कह लीजिए कि उसके पास जाना भी दुश्वार होता है इस फूल की पत्तियां 8 से 10 फीट ऊंची जाती हैं यह ना सिर्फ बदबूदार है बल्कि इस विशालकाय फूल को दुनिया का सबसे पुराना और सबसे अधिक ऊंचाई वाला फूल का दर्जा प्राप्त है।

तो फिर जानते हैं इस फूल का नाम। यह फूल देखने में तो बिल्कुल सीधा है, परंतु इसका नाम इतना सीधा नहीं। इस फूल का नाम है एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum)। इस फूल के बारे में सबसे पहले 1878 में इतालवी वनस्पति शास्त्री ओडोआर्डो बकारी ने व्याख्या की थी। 1889 में यह फूल पहली बार लंदन के रॉयल बोटैनिक गार्डन में लगाया गया था। इससे सड़े हुए मांस की जैसी बदबू आने के कारण "मृत फूल" भी कहा जाता है। 

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

यह एक शाखा रहित फूल है अतः इसे टाइटन एवं के रूप में भी जाना जाता है। एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) एक ऐसा पौधा है जो अपने 45 वर्ष के आयु काल में सिर्फ तीन से चार बार ही पूरी तरह खिलता है। यह फूल लगभग 9 साल में एक बार खिलता है। यह मुख्य रूप से इंडोनेशिया में पाया जाता है, जो सुमात्रा द्वीप का मूल निवासी है। यह समुद्र तट की ऊपरी सतह से सौ से डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर खिलता है। इस पुल की लंबाई 2 मीटर अर्थात 6 फुट होती है। कभी-कभी यह 3 मीटर तक भी खिल सकता है।

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

इंडोनेशिया और मलेशिया के अलावा या फूल सुमात्रा और फिलीपींस में आता है प्रारंभ में एक गांठ जैसी संरचना बनाता है जो बाद में बंद गोभी का आकार ले लेती है इसके कुछ समय बाद इसकी पंखुड़ियां खुलने लगती हैं इस पौधे में केवल फूल वाला हिस्सा ही जमीन के ऊपर दिखाई देता है बाकी हिस्सा जमीन के अंदर विकसित होता है।

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

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Amorphophallus titanium (Amorphophallus titanum)

are flowers or a wonder

Seeing flowers, who is there, whose mind cannot be elated. Colorful flowers are the wonderful beauty of nature which activates and romanticises everyone's mind. Seeing the blooming flowers, the mind also blossoms. When the fragrance of flowers reaches us in the air, our mind automatically smiles, but there are some flowers which, on the contrary, do not smell. Today, know about such a strange flower of the world, due to which any kind of tainted meat-like odor appears.

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

Yes, a flower of Asia species which is very stinky, it smells like rotten meat, due to which no one hesitates to go near it or saying that it is difficult to go near it. The leaves of this flower are 8. Less than 10 feet above sea level, not only is it stinky, but this strange flower has the status of the world's oldest and highest-altitude flower.

So then do you know the name of this flower. This flower is quite straightforward to look at, but its name is not so straightforward. The name of this flower is Amorphophallus titanium (Amorphophallus titanum). The flower was first described by the Italian botanist Odoardo Gotti in 1878. In 1889, this flower was first planted in the Royal Botanic Gardens of London. It is also called "dead flower" because of the foul smell of infected flesh.

एमार्फोफैलस टिटैनियम (Amorphophallus titanum) || दुनिया का सबसे अनोखा फूल ||

It is a branch useless flower so it is also known as Titan and. Amorphophallus titanium (Amorphophallus titanum) is a plant that is in full bloom only three to four times in your 45 years of age. This flower climaxes once in about 9 years. It is mainly found in Indonesia, being native to the island of Sumatra. It blooms at a distance of 100 meters from the upper surface of the beach. The width of this bridge is 2 meters i.e. 6 feet. Sometimes it can even bloom up to 3 meters.

Except Indonesia and Malaysia or the flower Sumatra and the Philippines, initially a kinky structure is formed which is later closed and shaped, after some time its petals join. In this respect only the flower part is visible above the ground. The rest develops underground.

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें ..क्यों?

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें ..क्यों?


हमारी भारतीय संस्कृति सदैव हमें मर्यादित और अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। इसी जीवन का परिणाम है कि हमारे यहां "जीवेत शरदः शतम" की अवधारणा की गई है। मनुष्य के शरीर के साथ मन का भी स्वस्थ होना आवश्यक है। बहुत से रोग हमारे मन मे उत्पन्न दूषित विचारों के द्वारा उत्पन्न होते हैं । 

 हमारी पुरातन संस्कृति में वस्त्रों का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। अवसर के अनुरूप,विभिन्न प्रकार के वस्त्र, भारतीय संस्कृति की ही देन है। जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है, ठीक उसी प्रकार किसी भी इंसान को (विशेषकर अगर वो महिला या लड़की है),ऐसे वस्त्र, जो उसके शरीर को बेपर्दा करते हों, उसे पहनने का अधिकार नहीं है। हम जिस समाज मे जीते हैं, उस समाज के नियमों को मानना हमारा धर्म भी है और कर्तव्य भी। सार्वजनिक जीवन में किसी लड़की को ऐसे वस्त्र नहीं पहनने चाहिए जो उसके शरीर को आंशिक रूप से अनावृत करते हों। कोई एकांत रोड में, अकेले स्पीड में गाड़ी चला सकते हैं, घर में या कहीं एकांत जगह में चाहे जैसे कपड़े पहन सकते हैं, कोई समस्या नहीं होगी। मगर सार्वजनिक जीवन में, सार्वजनिक स्थान में, सभी को समाज के नियम मानने हीचाहिए।

जिस प्रकार भोजन जब स्वयं के पेट में जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी। उसी प्रकार समाज में रहते हुए हमें सभी की रुचियों और भावनाओं का ख्याल भी रखना होगा। लड़कियों का उत्तेजक और भद्दे वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा। दोनों ही स्थितियों में एक्सीडेंट की संभावना बनी रहती है। अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा का, समाज के कानून का पालन सभी को करना चाहिए। 

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें ..क्यों?

घूंघट और बुर्का अगर गलत है, तो उतना ही गलत न्यून और उत्तेजक वस्त्र पहनना भी है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों सी फ़टी निक्कर पहनकर,छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है। जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र ही है, इसे ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील देना भी गलत है। आज आधुनिक समाज में सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है। गाड़ी के दोनों पहिये में संस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन अशांत और बाधित होगा।

कम कपडे पहनना यदि आधुनिक होने की निशानी है, तो सबसे आधुनिक जानवर है, जिनके संस्कृति में कपड़े ही नहीं हैं। अतः हमें जानवर से रेस न करके अपनी सम्रद्ध सभ्यता व संस्कृति को स्वीकार करना चाहिए। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी टांग उठाकर पेशाब कर सकता है,परंतु सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है बिना कपड़ों के घूमने का, लेकिन सभ्य इंसान को उचित वस्त्रों का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही चाहिए। ऐसे वस्त्र जो हमारी सभ्यता और सस्कृति को पोषित और पल्लवित कर सकें।

दूब घास || Durva (Doob) Grass ||

दूब घास / Durva (Doob) Grass

हिंदू घरों में पूजा पद्धति में प्रयोग होने वाले दूब घास के विषय में सभी जानते हैं। गणेश चतुर्थी की पूजा में दूब का प्रयोग किया जाता है और भी पूजा विधि में दूब का प्रयोग किया जाता है। भारतवर्ष में इसे पवित्र पौधा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि दूब घास 'अमृत' की उत्पत्ति है। जब राक्षस और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर भी गिर गई थी, जिससे दूब घास की उत्पत्ति हुई। धार्मिक समारोह में इस तू का प्रयोग किया जाता है, परंतु पूजा पद्धतियों के अलावा भी इस डूब के बहुत से फायदे हैं। आज हम यहां उन्हीं फायदों की चर्चा करेंगे।

दूब घास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

दूब घास क्या है?

दूब पूरे वर्ष भर उगने वाला आरोही, चिकना, बहु शाखाओं वाला घास होता है। दूब पूरे साल बढ़ने वाला पौधा होता है, जो भूमि पर चारों और फैलता है। नए-नए तने जमीन पर आगे-आगे प्रसरण करते हैं और पीछे-पीछे प्रत्येक पर्व से जड़ निकलकर भूमि में घुसती जाती है और बाह्यकांड से निकलकर नया पौधा जन्म ले लेता है। इसका कांड अनेक पर्व युक्त, जड़ निकलकर जमीन पर लगी हुई तथा शाखाएं छोटी जमीन से उठी हुई कोमल, सीधी, लगभग 30 सेंटीमीटर लंबी होती है। इसके पत्ते संकुचित 2 से 10 सेंटीमीटर लंबे तथा 1 से 3 सेंटीमीटर चौड़े, सुदृढ़ आवरण युक्त, नरम, रेखीय, भालाकार तथा आगे का भाग सुई की तरह नुकीला होता है।

दूब घास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

जानते हैं दूब घास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में 

दूब घास को आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक पारंपरिक जड़ी-बूटी के तरह प्रयोग में लाया जाता है। दूब घास में कैल्शियम, फास्फोरस, फाइबर, पोटैशयम और प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

सर दर्द होने पर

काम के तनाव और प्रदूषण और भागदौड़ भरी जिंदगी की वजह से अगर सिर दर्द की शिकायत है तो दूब घास तथा चुने की समान मात्रा लेकर पानी में पीसकर कपाल पर लेप करने से आराम मिलता है।

नकसीर (नाक से खून बहना) की समस्या 

अनार के फूल के रस को दूब के रस के साथ मिलाकर एक दो बूंद नाक में डालने से नकसीर की समस्या में लाभ होता है।

आंख दर्द में

अगर ज्यादा देर तक कंप्यूटर पर काम करने से या आंखों के थकने की वजह से आंखों में दर्द हो रहा है, तो दूब को पीसकर पलकों पर बांधने से आंख दर्द में आराम मिलता है तथा साथ ही आंखों से कीचड़ निकलने की समस्या से भी राहत मिलता है।

उल्टी की समस्या

फास्ट फूड के बढ़ते चलन में यदि ज्यादा मसालेदार या खाने पीने की अनियमितता के कारण उल्टी की समस्या है तो डूब के 5 मिलीलीटर रस को पिलाने से आराम मिलता है। 

दस्त लग जाने पर

जंक फूड या पैक्ड फूड या बाहर का खाना खाने के कारण दस्त की समस्या हो गई है तो दूब के ताजे पंचांग स्वरस का सेवन करने से लाभ होता है। 

दूब घास के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

पाइल्स की समस्या

  • दूब के पंचांग को पीसकर दही के साथ मिलाकर सेवन करने से तथा इसके पत्तों को पीसकर बवासीर पर लेप करने से लाभ होता है।
  • दूब का काढ़ा बनाकर 10 से 30 मिलीलीटर मात्रा में सेवन करने से रक्त वाले बवासीर तथा मूत्र संबंधी समस्या में लाभ होता है।

पथरी की समस्या

संतुलित आहार और अनियमित जीवनशैली के कारण किडनी स्टोन की समस्या बढ़ गई है डूब को 30 मिलीलीटर पानी में पीसकर मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है।

मुंह में छाले हो जाने पर

मुंह में छाले की समस्या होने पर दूब की पत्तियों को चबाने से लाभ होता है।

चोट से रक्तस्राव होने पर

किसी भी जगह चोट लगने पर यदि रक्तस्राव बंद नहीं हो रहा है तो डूब डूब को पीसकर लेप करने से फायदा होता है दूब में रक्त को बहने से रोकने का गुण पाया जाता है जिसके कारण चोट पर लगाते ही रक्तस्राव कम होने लगता है।

चेहरे पर झाइयों की समस्या 

दूब घास को पीसकर दूध के साथ लेप लगाने से चेहरे की झाइयों में तथा त्वचा संबंधी विकार में लाभ होता है।

दूब घास में मौजूद पोषक तत्व 

दूब घास में विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई भी होते हैं।
दूब घास में मौजूद पोषक तत्व

अन्य भाषाओं में डूब का नाम

दूर्वा घास का वानास्पतिक नाम Cynodon dactylon (साइनोडॉन् डैक्टाइलान) 

संस्कृत-शतपर्वा, गोलोमी, दूर्वा, नीलदूर्वा, रुहा, अनन्ता, भार्गवी, शतपर्विका, सहस्रवीर्या, शतवल्ली, सिता, हरित, शीतकुम्भी, शीतली, हरिता, शम्भवी, श्यामा, शतग्रंथि, अमृता, अनुवल्लिका, शिवा, सुभगा, भूतघ्नी, गौरी, शान्ता, रुहा, अमरी, महावरी, हस्सालिका, दुर्भरा, बहुवीर्या, हरिताली, कच्छरुहा;

Hindi-हरी दूब, नीली दूब, रामघास, दूब, दूर्वा;

Urdu-दूब (Dub);

Odia-फैइतुलनिम (Phaitualnim), दूबोघास (Dubboghas);

Kannada-कुडीगरकाई (Kudigarikai), गरिके (Gareike);

Gujrati-धोकड (Dhrokad), ध्रोह (Dhroh);

Tamil-अरुवमपिल्लु (Aruvampillu);

Telegu-दूलु (Dulu), गरीकगडडी (Garikaggaddi);

Bengali-नीलदुर्बा (Neeldurba), दुर्बा (Durba);

Nepali-दुबो (Dubo);  

Punjabi-दूबड़ा (Dubra);

Marathi-नीलीदूर्वा (Neelidoorva), हरियाली (Hariyaly)।

English-डेविल्स ग्रास (Devil”s grass), दूब ग्रास (Dub grass), काउच ग्रास (Couch Grass), फ्लोरिडा ग्रास (Florida grass), इण्डियन दूब ग्रास (Indian doob grass);

Arbi-नादिर (Nadir), नाजिल (Nagil);

Persian-मर्ग (Marg)।

दूब घास के नुकसान (Side Effects of Durva)

दूब घास के नुकसान के संबंध में किसी भी तरह का वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं है।


तबीयत से उछालो यारों

तबीयत से उछालो यारों

कथाकार और ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार त्यागी (01 सितंबर 1931-30 दिसंबर 1975) को कौन नहीं जानता। अपने छोटे से जीवनकाल में इन्होंने हिंदी साहित्य में ऊँचा मुकाम हासिल किया। इनकी 1975 में प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह "साये में धूप" प्रकाशित हुई थी। इसकी ग़ज़लों को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि उसके कई शेर कहावतों और मुहावरों के तौर पर लोगों द्वारा व्यवहृत होते हैं। प्रस्तुत है इनकी एक और कविता -   तबीयत से उछालो यारों ....
दुष्यंत कुमार त्यागी
"हर कोई आप को नहीं समझेगा,
यही जिंदगी हैं जनाब.."

तबीयत से उछालो यारों....

यह जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो,

अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो।


दर्दे दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा,

इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो।


लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,

आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।


आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे,

आज संदूक से वे ख़त तो निकालो यारो।


कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता,

एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।


लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,

तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो।

- दुष्यन्त कुमार 

Rupa Oos ki ek Boond
"इस दुनिया में खुशी और मुस्कुराहट ही एकमात्र ऐसा खजाना है,
जिसे जितना बांटो वो और बढ़ता जाएगा.."

तू मेरे ही तो पास है..

तू मेरे ही तो पास है..

तू मेरे ही तो पास है..

तू मेरे ही तो पास है

तू मेरे पास नहीं,

तेरा एहसास जो हर पल साथ है,

कह रहा ये चांद भी मुझसे,

तू मेरे ही तो पास है.. 


ढूंढ़ती हूँ मैं तुझे 

हर जगह हर डगर 

तेरे बिन जो न मिटेगी 

मुझे ऐसी प्यास है,

कह रही ये हवायें मुझसे 

तू मेरे ही तो पास है..


मिले है मंजर हसीन हर मोड़ पर,

इन आँखों को बस तेरी तलाश है,

कह रही है ये रागनी रात की मुझसे 

तू मेरे ही तो पास है..


तुझे मैं बांध के रख लूं,

बस एक यही बाकी आस है,

मेरे आँशुओं को पोंछ कर कह रहा ये समय मुझसे 

तू बैठा क्यों हताश है वो तेरे ही पास है..


कोई तो बताए,

फिर ये दिल क्यों उदास है 

जब तू मेरे पास है तू मेरे पास है..

राजनीतिज्ञ गीदड़: पंचतंत्र || Rajnitigy Gidar : Panchtantra ||

राजनीतिज्ञ गीदड़

उत्तमं प्रणिपातेन शूरं भेदेन योजयेत् । 
नीचमल्पप्रदानेन समशक्तिं पराक्रमैः ॥

उत्कृष्ट शत्रु को विनय से, बहादुर को भेद से, नीच को दान द्वारा और समशक्ति को पराक्रम से वश में लाना चाहिए।

राजनीतिज्ञ गीदड़: पंचतंत्र || Rajnitigy Gidar : Panchtantra ||

एक जंगल में महाचतुरक नाम का गीदड़ रहता था। उसकी दृष्टि में एक दिन अपनी मौत मरा हुआ हाथी पड़ गया। गीदड़ ने उसकी खाल में दाँत गड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कहीं से भी उसकी खाल उधेड़ने में उसे सफलता नहीं मिली। उसी समय वहाँ एक शेर आया। शेर को आता देखकर वह साष्टांग प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़कर बोला- स्वामी! मैं आपका दास हूँ। आपके लिए ही इस मृत हाथी की रखवाली कर रहा हूँ। आप अब इसका यथेष्ट भोजन कीजिए।

शेर ने कहा- गीदड़ ! मैं किसी और के हाथों मरे जीव का भोजन नहीं करता। भूखे रहकर भी मैं अपने इस धर्म का पालन करता हूँ । अतः तू ही इसका आस्वादन कर मैंने तुझे भेंट में दिया।

शेर के जाने के बाद वहाँ एक बाघ आया। गीदड़ ने सोचा, एक मुसीबत को तो हाथ जोड़कर टाला था, इसे कैसे टालूँ? इसके साथ भेदनीति का ही प्रयोग करना चाहिए। जहाँ साम-दाम की नीति न चले वहाँ भेद-नीति ही काम करती है। भेद-नीति ही ऐसी प्रबल है कि मोतियों को भी माला में बींध देती है। यह सोचकर वह बाघ के सामने ऊँची गर्दन करके गया और बोला : मामा! इस हाथी पर दाँत न गड़ाना। इसे शेर ने मारा है। अभी नदी पर नहाने गया है और मुझे रखवाली के लिए छोड़ गया है। यह भी कह गया है कि यदि कोई बाघ आए तो उसे बता दूँ, जिससे वह सारा जंगल बाघों से खाली कर दे।

गीदड़ की बात सुनकर बाघ ने कहा- मित्र ! मेरी जीवन-रक्षा कर, प्राणों की भिक्षा दे। शेर से मेरे आने की चर्चा न करना-यह कहकर वह बाघ वहाँ से भाग गया।

बाघ के जाने के बाद वहाँ एक चीता आया। गीदड़ ने सोचा, चीते के दाँत तीखे होते हैं, इससे हाथी की खाल उधड़वा लेता हूँ। वह उसके पास जाकर बोला-भगिनीसुत! क्या बात है, बहुत दिनों में दिखाई दिए हो। कुछ भूख से सताए मालूम होते हो। आओ मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। यह हाथी शेर ने मारा है। मैं इसका रखवाला हूँ। तब तक शेर आए, इसका माँस खाकर जल्दी से भाग जाओ। उसके आने की खबर दूर से ही दे दूँगा।

गीदड़ थोड़ी दूर पर खड़ा हो गया और चीता हाथी की खाल उधेड़ने लग गया। जैसे ही चीते ने एक-दो जगहों से खाल उधेड़ी, गीदड़ चिल्ला पड़ा-शेर आ रहा है, भाग जा!-चीता यह सुनकर भाग खड़ा हुआ।

उसके जाने के बाद गीदड़ ने उधड़ी हुई जगहों से माँस खाना शुरू कर दिया। लेकिन अभी एक-दो ग्रास ही खाए थे कि एक गीदड़ आ गया। वह उसका समशक्ति ही था, इसलिए उस पर टूट पड़ा और उसे दूर तक भगा आया। इसके बाद बहुत दिनों तक वह उस हाथी का मांस खाता रहा। यह कहानी सुनकर बन्दर ने कहा-तभी तुझे भी कहता हूँ कि स्वजातीय से युद्ध करके अभी निपट ले, नहीं तो उसकी जड़ जग जाएगी। यही नष्ट कर देगा। स्वाजातियों का यही दोष है कि वही विरोध करते हैं, जैसे कुत्ते ने किया था। मगर ने कहा- कैसे?

बन्दर ने तब कुत्ते की कहानी सुनाई :

कुत्ते का वैरी कुत्ता

To be Continued...

जनवरी की एक सर्द सुबह

जनवरी की एक सर्द सुबह

जनवरी मास की एक सर्द सुबह। ठंड अपने शबाब पर है। मेरी घड़ी में 5 बजकर 20मिनट हो रहे हैं। मैं यहां पार्क की एक बेंच पर बैठी सामने के वृक्षों के पत्तों से टपकती ओस की बूंदों को निहार रही हूं।इतनी जबरदस्त ठंड में भी ओस की बूंदें मुस्कुरा रही हैं और पत्तों से टपककर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दे रही हैं। चूंकि सर्दी का सितम बहुत है, इसलिए पार्क में इक्का-दुक्का ही टहलने वाले लोग हैं। जब 5:15 पर मैं आई थी तब मात्र दो ही लोग पार्क में चहलकदमी कर रहे थे, जिसमें एक 45-46 वर्षीय अधेड़ पुरुष और एक 20-22 साल की तरुणी थी। वह तरुणी कुछ देर टहलती फिर कुछ देर अत्यंत वेग से पार्क की परिक्रमा करती है। 

Rupa Oos Ki Ek Boond

घड़ी अब 5.45 का समय बता रही है। सूरज भी इस ठिठुरन में मानो आलस्य की चादर ओढ़े लेटे हैं। उनके दर्शन अभी भी दुर्लभ हैं। वहीं पार्क में चहल-पहल बढ़ने लगी है। अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कुछ लोग एक तरफ बैठ के योग कर रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सभी 65-70 वर्षीय बुजुर्ग हैं। अपने जोश, उत्साह, जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया से ये युवाओं को भी मात दे रहे हैं। इन्हें देखकर सचमुच प्रतीत हो रहा है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है और कुछ नही। ऐसी सर्द सुबह में भी इनके साथ इनकी चटाई, व्यायाम और ध्यान के प्रति इनकी दीवानगी प्रकट करती है। इनमें से दो लोगों को पैर की शायद घुटनों की समस्या है तो वो कुर्सी पर बैठ के योग कर रहे हैं। ये एक आवश्यक संदेश भी हमें दे रहे हैं कि इंसान को अपना कर्म अंतिम सांस तक करना चाहिए। 

जैसे जैसे समय बढ़ रहा है वैसे वैसे पार्क में टहलने वाले बढ़ते जा रहे हैं और धीरे धीरे एक भीड़ की शक्ल लेते जा रहे हैं। मुझे यहाँ आये लगभग 30 मिनट हो गए हैं। इतनी देर में मेरे बालों पर इतनी ओस पड़ चुकी है कि वह बूंद का रूप लेकर मेरे कानों के ऊपर के केसुओं से होती हुई मेरे कांधे पर टपक रही है और मेरे कानों में हौले से मानो कह रही है कि तुम्हारी खुशी में लिए में अपनी जिंदगी कुर्बान कर रही हूँ। 

Rupa Oos Ki Ek Boond

यहां लगभग सभी ने अपने अपने सर को ठंड से बचाने का पूरा इंतज़ाम कर रखा है। कोई हिमाचली टोपी पहनकर मुस्कुरा रहा है तो कोई वानर टोपी लगाकर चिंंतित मुद्रा में खड़ा है। कुछ लोग सर के साथ अपनी नाक बचाने के लिए एक मफलर को सर के साथ नाक तक लपेटकर शान के साथ सर्दी को चुनौती देते हुए खड़े हैं। परंतु मुझे इन ओस की बूंदों से कुछ ज्यादा ही लगाव है। इनकी सुंदरता को देखने और इनसे बातें करने के लिए,अपने कानों से इनका मधुर संगीत सुनने के लिए कदाचित मैं टोपी नहीं लगाती।

आज यहीं विराम देती हूं, फिर मिलते हैं एक नई ओस की बूंद से, फिर एक नई सुबह। 

श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय छः - आत्मसंयमयोग || अनुच्छेद 11 - 15 ||

 श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय छः आत्मसंयमयोग ||

अथ षष्ठोऽध्यायः  ~ आत्मसंयमयोग 

अध्याय छः के अनुच्छेद 11 - 15

अध्याय छः के अनुच्छेद 11-15 में आसन विधि, परमात्मा का ध्यान, योगी के चार प्रकार का वर्णन है। 

संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता || Sampurn Shrimad Bhagwat Geeta ||

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्‌ ॥

भावार्थ : 

शुद्ध भूमि में, जिसके ऊपर क्रमशः कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसन को स्थिर स्थापन करके॥11॥

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥

भावार्थ : 

उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे॥12॥

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्‌ ॥

भावार्थ : 

काया, सिर और गले को समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर, अन्य दिशाओं को न देखता हुआ॥13॥

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥

भावार्थ :

 ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित, भयरहित तथा भलीभाँति शांत अन्तःकरण वाला सावधान योगी मन को रोककर मुझमें चित्तवाला और मेरे परायण होकर स्थित होए॥14॥

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥

भावार्थ : 

वश में किए हुए मनवाला योगी इस प्रकार आत्मा को निरंतर मुझ परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ मुझमें रहने वाली परमानन्द की पराकाष्ठारूप शान्ति को प्राप्त होता है॥15॥

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

उत्तर प्रदेश  का राजकीय/राज्य पक्षी

सारस (saras)/Crane

काश कि मैं भी चिड़िया होती, खुला आसमान ऊंची उड़ान। खैर आज उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी के बारे में जानते हैं। मैं भी उत्तर प्रदेश की निवासी हूं और मेरे ज्यादातर पाठक भी उत्तर प्रदेश से ही हैं। आज हम जानते हैं सारस के विषय में जो उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है और विश्व का सबसे लंबा उड़ने वाला पक्षी है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

सारस को संस्कृत में क्रौंच कहा जाता है। यह लंबी टांगों वाला और लंबे गले वाला एक पक्षी है। सारस कुल में तीन वंशों (ऐंटिगोनी, बेलैरिका, ग्रुस) में संगठित 15 ज्ञात जातियाँ हैं, जो अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका को छोड़कर हर महाद्वीप में पाए जाते हैं।

सारस भारत का एकमात्र गैर प्रवासी पक्षी है। इसकी कई खूबियां हैं, जो इन्हें दूसरे पक्षियों से अलग बनाती हैं। खड़े होने पर इसकी ऊंचाई तकरीबन 156 सेंटीमीटर अर्थात 5 फुट 2 इंच होती है। ये खुली भूमि और दलदली इलाकों में रहना पसंद करते हैं। यह सर्वाहारी पक्षी हैं, जो मेंढक, कीड़े-मकोड़े, सरीसृप, मछलियां, अंडे, छोटे फल, बीज, और पौधों की जड़ें सब कुछ खा लेते हैं। सारस की उड़ने की क्षमता अधिक होती है। यह 52 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ते देखे गए हैं, इनके बड़े आकार के कारण इन्हें आसानी से देखा जा सकता है। 

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं।

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

भारत में सारस को दांपत्य प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। नर और मादा युगल एक दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं। इसे 'साथी बर्ड' के रूप में भी जाना जाता है। यह आमतौर पर जोड़े में देखे जाते हैं और इनका समर्पण इतना अद्भुत है कि एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ रहते हैं। अगर किसी दुर्घटना में किसी एक साथी की मृत्यु हो जाए तो दूसरा अकेले ही रहता है या फिर एक की मौत पर दूसरा साथी भी अपने प्राण त्याग देता है। 

सारस से जुडी और भी रोचक जानकारियाँ हैं, जिसकी चर्चा अगले अंक में होगी। 

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

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state bird of uttar pradesh

I wish I was also a bird, flying high in the open sky. Well today we know about the state bird of Uttar Pradesh. I am also a resident of Uttar Pradesh and most of my readers are also from Uttar Pradesh. Today we know about the crane which is the state bird of Uttar Pradesh and the longest flying bird in the world.

The crane is called 'Krauncha' in Sanskrit. It is a bird with long legs and long neck. The crane family has 15 known species organized into three genera (Antigoni, Bellarica, Grus), found on every continent except Antarctica and South America.

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

The crane is the only non-migratory bird in India. It has many characteristics, which make it different from other birds. When standing, its height is about 156 centimeters i.e. 5 feet 2 inches. They like to live in open land and marshy areas. These are omnivorous birds, which eat frogs, insects, reptiles, fish, eggs, small fruits, seeds, and roots of plants. The flying ability of the crane is high. They have been seen flying at a speed of 52 kilometers per hour, due to their large size they can be easily seen.

Crane bird also has its own specific cultural significance. The credit for the first poem of the Ramayana, the world's first book, goes to the stork. The Ramayana begins with a description of a courting crane couple. Maharishi Valmiki is its seer in the early morning when one of the couple is murdered by a hunter. The other bird of the pair dies in its separation. The sage curses that hunter.

उत्तर प्रदेश का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Uttar Pradesh ||

In India, the crane is also considered a symbol of conjugal love. The male and female couple are completely devoted to each other. It is also known as 'companion bird'. They are usually seen in pairs and their devotion is so amazing that once they form a pair, they stay together for life. If one of the companions dies in an accident, then the other remains alone or on the death of one the other companion also sacrifices his life.

There are other interesting facts related to stork, which will be discussed in the next issue.

भारत के सभी राज्यों के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Bihar & Delhi ||

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

गौरैया (Sparrow)/Gauraiya

चिड़ियों की दुनिया भी कितनी निराली है, खुला आसमान ऊंची उड़ान। गौरैया पक्षी से तो सभी परिचित हैं, पर क्या आप जानते हैं कि बिहार का राजकीय अर्थात राज्य पक्षी गौरैया है? गौरैया बिहार के साथ ही भारत की राजधानी दिल्ली का भी राजकीय पक्षी है। जैसा की विदित है हर राज्य का राजकीय पक्षी होता है। अगले कुछ अंकों में अलग-अलग राज्यों के राजकीय पक्षियों की चर्चा करेंगे। 

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

पिछले कुछ वर्षों से लगातार गौरैया की संख्या में गिरावट के कारण गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता के लिए प्रति वर्ष 20 मार्च को "विश्व गौरैया दिवस" मनाया जाता है।

गौरैया एक छोटी चिड़िया है। इसके पंख हल्के भूरे होते हैं और पैर का रंग पीला होता है। घरेलू गौरैया की लंबाई सामान्यतः 14 से 18 सेंटीमीटर होती है तथा वजन 24 से 39 ग्राम तक होता है।

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

नर गौरैया को चिड़ा और मादा को चिड़ि या चिड़िया कहते हैं। आकार में नर गौरैया मादा से थोड़े बड़े होते हैं। नर में एक भूरे रंग का मुकुट, काली बिब तथा लाल भूरे रंग की पीठ पर काले और भूरे रंग के धब्बे होते हैं, जबकि मादा की भूरी धारीदार पीठ होती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, शरीर के नीचे का भाग और पेट के आसपास का रंग भूरा होता है। गले के पास काला धब्बा होता है। इसकी चोंच और आंखों का रंग काला होता है और पैर भूरे होते हैं। मादा गौरैया की भूरे रंग की धारीदार पीट होती है। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास के काले धब्बे से की जा सकती है।

गौरैया सामान्यतः यूरोप, भूमध्यसागरीय क्षेत्र और एशिया के अधिकांश भागों में पाए जाते हैं। यह अमेरिका के अधिकांश स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

गौरैया विविध आवासों और जलवायु में पाए जाते हैं। जहां - जहां मनुष्य रहते हैं, यह अपना बसेरा वहीं बना लेते हैं। शहरों, कस्बों, गांव, खेतों के आसपास यह ज्यादातर पाए जाते हैं तथा निर्जन पहाड़ी स्थानों, जंगलों, रेगिस्तान में इनकी संख्या कम ही पाई जाती है।

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State bird of Bihar and Delhi

The world of birds is also so unique, flying high in the open sky. Everyone is familiar with the sparrow bird, but do you know that the state bird of Bihar is the sparrow? Sparrow is the national bird of Bihar as well as Delhi, the capital of India. As it is known that every state has a state bird. In the next few points, we will discuss the state birds of different states.

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

Due to the continuous decline in the number of sparrows for the past few years, "World Sparrow Day" is celebrated every year on 20 March to create awareness among people about the conservation of sparrows.

Sparrow is a small bird. Its wings are light brown and the color of the leg is yellow. The length of the house sparrow is usually 14 to 18 cm and the weight ranges from 24 to 39 grams.

The male sparrow is called Chida and the female is called Chidiya or Chidiya. Male sparrows are slightly larger in size than females. The male has a brown crown, black bib and reddish brown back with black and brown spots, while the female has a brown striped back. The upper part of the head, lower part of the body and around the belly of the male sparrow are brown. There is a black spot near the throat. Its beak and eyes are black in color and legs are brown. The female sparrow has brown striped plumage. The male sparrow can be identified by the black spot near its throat.

बिहार और दिल्ली का राजकीय/राज्य पक्षी

Sparrows are commonly found in Europe, the Mediterranean region and most parts of Asia. It is also found in most of the Americas, some places in Africa, New Zealand and Australia.

Sparrows are found in a wide variety of habitats and climates. Wherever humans live, they make their abode there. They are mostly found around cities, towns, villages, farms and their numbers are rarely found in deserted hilly places, forests, deserts.

World Sparrow Day (विश्व गौरैया दिवस)

गौरैया (Gauraiya) के बारे में 14 रोचक तथ्य || 14 Interesting facts about Sparrow ||