श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय छः - आत्मसंयमयोग || अनुच्छेद 11 - 15 ||

 श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय छः आत्मसंयमयोग ||

अथ षष्ठोऽध्यायः  ~ आत्मसंयमयोग 

अध्याय छः के अनुच्छेद 11 - 15

अध्याय छः के अनुच्छेद 11-15 में आसन विधि, परमात्मा का ध्यान, योगी के चार प्रकार का वर्णन है। 

संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता || Sampurn Shrimad Bhagwat Geeta ||

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्‌ ॥

भावार्थ : 

शुद्ध भूमि में, जिसके ऊपर क्रमशः कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे अपने आसन को स्थिर स्थापन करके॥11॥

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥

भावार्थ : 

उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे॥12॥

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्‌ ॥

भावार्थ : 

काया, सिर और गले को समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर, अन्य दिशाओं को न देखता हुआ॥13॥

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥

भावार्थ :

 ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित, भयरहित तथा भलीभाँति शांत अन्तःकरण वाला सावधान योगी मन को रोककर मुझमें चित्तवाला और मेरे परायण होकर स्थित होए॥14॥

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥

भावार्थ : 

वश में किए हुए मनवाला योगी इस प्रकार आत्मा को निरंतर मुझ परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ मुझमें रहने वाली परमानन्द की पराकाष्ठारूप शान्ति को प्राप्त होता है॥15॥

12 comments:

  1. योग और ध्यान की महिमा गीता में भी भगवान कृष्ण के द्वारा बताई गई है।
    जय श्री कृष्ण।

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  2. योग और ध्यान की महत्ता आदि काल से ही बताई गई है।

    जय श्री कृष्णा

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  3. जय श्री राधे राधे

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  4. Karo yog raho nirog.. according to geeta..parmatma ko pane ka marg dhyaan..

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  5. 🙏🏻 राधे-राधे रूपा जी 🙏🏻
    🙏🏻🪷 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🪷🙏🏻

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  6. ॐ श्री वासुदेवाय नमः 🙏🏻

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  7. Jai shree krishna

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