ऊँची उड़ान

ऊँची उड़ान

आज जनवरी का अंतिम इतवार। खुशनुमा मौसम है, ना बहुत ज्यादा सर्दी का कहर है ना कहीं गर्मी का कोई एहसास। सामान्यतया फरवरी माह में पड़ने वाला बसंत पंचमी का त्यौहार भी इस साल जनवरी में ही हो गया। पतझड़ के बाद बसंत ने भी दस्तक दे दी। तो प्रस्तुत है मौसम और दिल के जज्बातों के बीच तालमेल बैठाती कुछ पंक्तियाँ !! 

Rupa Oos ki ek Boond
"ज़िद्दी बनना सीखो, 
क्योकि कोई भी इंसान एक रात में सफल नहीं होता..❣️"

माह जनवरी, मौसम शांत और

सर्द है,

सुबह और शाम यहां धुंध भी

बहुत है..

सफर जिंदगी का भाग रहा है

अपने वेग से,

चेहरे पर इस हँसी के पीछे दर्द

बहुत है..

यहां हौसलों ने जिद की है

ऊंची उड़ानों की,

ऊंचे नीचे रास्तों में फिसलन

बहुत है..

बढ़ाये हैं कदम मैंने इस सफर में

तन्हा ही,

जमाने को मेरी हार की तलब

 बहुत है..

भरोसे का थामा है मैंने हाथ

 इस सफर में,

मंजिलों तक पहुँचने की जिद

बहुत है..

बढ़ते कदमों से चल रहा इक द्वंद

 का है ज्वार,

डगर पर सपनो की मीनार बुलंद

बहुत है..

न रुकूँगी, थकूंगी न देखूंगी गुज़रा

लम्हा ऐ जिंदगी,

गुजरे लम्हों ने दिया दर्द 

बहुत है..

अब तो जिद है

आगे ही आगे बढ़ने की,

हाथों की लकीरों में कामयाबियां

बहुत हैं..

Rupa Oos ki ek Boond
"इस दुनिया में खुशी और मुस्कुराहट ही एकमात्र ऐसा खजाना है,
जिसे जितना बांटो वो और बढ़ता जाएगा..❣️"


28 comments:

  1. मंदिर में जाते सुकून की तलाश में,
    उन्हें ईश्वर पर भरोसा बहुत है।

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  2. Waah!! Badhaye hai jo kadam aapne
    Isko rukne Na Dena
    Aapke pankho me jaan bahut hai..

    Have a wonderful Sunday

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  3. रूपा सिंह !लेखनी में तुम्हारी हाथों की लकीरों में तुम्हारे पुरुषार्थ (प्रयत्न )में संभावनाएं बहुत है तुम उड़ो पंख खोल के ऊंचे और ऊंचे साझा कर रहा हूँ तुहारी ये अप्रतिम रचना अपने ब्लॉग पर जहां बस अब मैं ही अकेला रह गया हूँ सब छोड़के चले गए मैं ब्रांड एम्बेस्डर खुद को समझने का भरम पाले हुए हूँ ये ब्लॉग मेरा नहीं है मैं यहां निमंत्रित की हैसियत से ही आया था :

    ऊंची उड़ान ,अतिथि रचना :रूपा सिंह

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  4. रूपा सिंह !लेखनी में तुम्हारी हाथों की लकीरों में तुम्हारे पुरुषार्थ (प्रयत्न )में संभावनाएं बहुत है तुम उड़ो पंख खोल के ऊंचे और ऊंचे साझा कर रहा हूँ तुहारी ये अप्रतिम रचना अपने ब्लॉग पर जहां बस अब मैं ही अकेला रह गया हूँ सब छोड़के चले गए मैं ब्रांड एम्बेस्डर खुद को समझने का भरम पाले हुए हूँ ये ब्लॉग मेरा नहीं है मैं यहां निमंत्रित की हैसियत से ही आया था :

    ऊंची उड़ान ,अतिथि रचना :रूपा सिंह
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com

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  5. जिंदगी के प्रति उत्साह और जोश को प्रदर्शित करती बेजोड़ रचना।
    शुभ रविवार।

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  6. आपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    Replies
    1. संगीता जी,
      हार्दिक अभिवादन।
      पांच लिंकों के आनंद पर इस रचना को साझा करने के लिए आभार।

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  7. जिंदगी में उत्साह भरने वाली खूबसूरत कविता।

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  8. ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
    जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।

    वैसे ही न जाने अब मेरे को क्यों ऐसा लग रहा है कि अब आसमान में चांद निकलेगा नहीं रूपा जी
    क्योंकि आजकल धरती पर नजर आ रहा है 😄😄😄

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  9. महक उठती है हवाएं भी, सिर्फ उनकी यादों से,
    बता, इस जमीन को गुलाबों की जरूरत क्या है

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  10. बहुत खूबसूरत रचना

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  11. पवन कुमारJanuary 29, 2023 at 10:49 PM

    बहुत ही सुंदर कविता

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  12. भरोसे का थामा है मैंने हाथ
    इस सफर में,
    मंजिलों तक पहुँचने की जिद
    बहुत है..
    कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती सुंदर रचना.. सरसों के फूल जैसी हंसती मुस्कुराती बहुत अच्छी लग रही हैं आप।

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  13. वाह…बहुत सुन्दर रचना !

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  14. बढ़ाये हैं कदम मैंने इस सफर में

    तन्हा ही,

    जमाने को मेरी हार की तलब

    बहुत है..
    वाह!!!
    क्या बात...
    बहुत सुंदर सृजन।

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  15. आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी ! प्रणाम !
    यहां हौसलों ने जिद की है .... भरोसे का थामा है मैंने हाथ
    सभी के हौसलों को हाथ देती ऐसी हर सदा का बहुत बहुत अभिनन्दन , उत्तम भाव लिए सुन्दर सृजन
    भारत माता की जय !

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  16. सकारात्मक ऊर्जा में गूँथे शब्द मन में नवीन उत्साह का संचार कर रहे हैं।
    प्रेरक संदेशयुक्त सुंदर रचना रूपा जी।
    सस्नेह।

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  17. आत्म विश्वास जगाती कविता।

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  18. बाते आप ने बहुत ही हृदय को छू लेने वाली लिखी है आपने आप ऐसे ही सदैव लिखती हरे और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करती रहे ईश्वर से बस यही कामना है

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