यादों का पिटारा || Yaadon ka Pitara ||

यादों का पिटारा

Rupa Oos ki ek Boond

"तेरी यादों का एक पिटारा रखा है 
अभी तक मेरे दिल के खजाने में ..
ना कोई अहसास उसमे पुराना हुआ है 
ना अब तक उनकी चमक बदली..❣️"

आज फिर खोल दिया मैंने 

अपने यादों के

पिटारे को...

देखा जो इसमें तो,

बहुत कुछ मिला..

कुछ अधूरे से वादे मिले,

कुछ टूटे हुए से ख्वाब मिले..

कुछ लफ्ज मिले,

तो कुछ अनकहे 

अल्फाज मिले...

कुछ खुशनुमा पल मिले, 

तो कुछ

बीते हुए कल मिले...

कुछ अनसुनी कहांनियां मिली,

तो कुछ 

अनदेखी जवानियां मिली...

कुछ कड़वे शब्द मिले, 

कुछ मीठे बोल मिले...

कुछ बचपन की 

बातें मिली 

कुछ प्यारी सी मुलाकातें मिली...

कुछ मुरझाई कलियाँ मिली, 

तो कुछ कुछ खिले गुलाब मिले...

कुछ महसुस हुआ, कुछ अफसोस हुआ...

बस युँ ही!

कोई जुड़ता गया, 

तो कोई बिछड़ता गया

उफ्फ!

ये यादों का पिटारा भी अलग ही रंग दिखाता है...

कुछ सुलझता है, 

तो कुछ उलझता सा चला जाता है...

Rupa Oos ki ek Boond

"बहुत अलग सा है
मेरे दिल का हाल
एक तेरी खामोशी
और मेरे कई सवाल
..❣️"

मिलकर काम करो : पंचतंत्र || Milkar Kaam Karo : Panchtantra ||

मिलकर काम करो

असंहता विनश्यन्ति

परस्पर मिल-जुलकर काम न करने वाले नष्ट हो जाते हैं।

 मिलकर काम करो : पंचतंत्र || Milkar Kaam Karo : Panchtantra ||

एक तालाब में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था। इसके मुख दो थे, किन्तु पेट एक ही था। एक दिन समुद्र के किनारे घूमते हुए उसे एक अमृत समान मधुर फल मिला। यह फल समुद्र की लहरों ने किनारे पर फेंक दिया गया था। उसे खाते हुए एक मुख बोला-ओह, कितना मीठा है, यह फल! आज तक मैंने अनेक फल खाए, लेकिन इतना स्वादु कोई नहीं था। न जाने किस अमृत बेल का यह फल है।

पंचतंत्र - दो सिर वाला पक्षी (The Bird with Two Heads : Panchtantra)

दूसरा मुख उससे वंचित रह गया था। उसने भी जब उसकी महिमा सुनी तो पहले मुख से कहा-मुझे भी थोड़ा-सा चखने को दे दे। पहला मुख हँसकर बोला- तुझे क्या करना है? हमारा पेट तो एक ही है, उसमें वह चला ही गया है। तृप्ति तो हो ही गई है।

यह कहने के बाद उसने शेष फल अपनी प्रिया को दे दिया। उसे खाकर उसकी प्रेयसी बहुत प्रसन्न हुई। दूसरा मुख उसी दिन विरक्त हो गया और इस तिरस्कार का बदला लेने के उपाय सोचने लगा। अन्त में, एक दिन उसे उपाय सूझ गया। वह कहीं से एक विषफल ले आया। प्रथम मुख को दिखाते हुए उसने कहा- देख! यह विषफल मुझे मिला है। मैं इसे खाने लगा हूँ। प्रथम मुख ने रोकते हुए आग्रह किया मूर्ख! ऐसा मत कर, इसके खाने से हम दोनों मर जाएँगे। द्वितीय मुख ने प्रथम मुख के निषेध करते-करते, अपने अपमान का बदला लेने के लिए विषफल खा लिया। परिणाम यह हुआ कि दोनों मुखोंवाला पक्षी मर गया।

चक्रधर इस कहानी का अभिप्राय समझकर स्वर्ण-सिद्धि से बोला- अच्छी बात है। मेरे पापों का फल तुझे नहीं भोगना चाहिए, तू अपने घर लौट जा। किन्तु, अकेले मत जाना। संसार में कुछ काम ऐसे हैं, जो एकाकी नहीं करने चाहिए। अकेले स्वादु भोजन नहीं खाना चाहिए, सोनेवालों के बीच अकेले जागना ठीक नहीं, मार्ग पर अकेले चलना संकटापन्न है; जटिल विषयों पर अकेले सोचना नहीं चाहिए। मार्ग में कोई सहायक हो तो वह जीवन रक्षा कर सकता है; जैसे कर्कट ने साँप को मारकर ब्राह्मण की प्राण-रक्षा की थी। स्वर्ण-सिद्धि ने कहा- कैसे?

चक्रधर ने यह कहानी कही-

मार्ग का साथी

To be Continued...

असम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Assam ||

असम का राजकीय/राज्य पक्षी

हमारे भारत देश का उत्तर पूर्वी राज्य है असम जो कि चाय के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। परंतु आज यहां असम के चाय की नहीं अपितु असम के राजकीय पक्षी की चर्चा करेंगे। असम का राजकीय पक्षी "सफेद पंखों वाला लकड़ी का बत्तख (White-winged duck (वाइट-विंगड़ डक)" है। असम के राज्य पक्षी को असमिया में 'देवहंस' / ' देवहान' /'देव-हाह' के नाम से जाना जाता है।

असम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Assam ||

IUCN रेड लिस्ट के अनुसार, सफेद पंखों वाली बतख एक लुप्तप्राय प्रजाति है, क्योंकि इसकी बहुत छोटी और खंडित आबादी है जो नदी के आवासों के नुकसान और अशांति के परिणामस्वरूप बहुत तेजी से और निरंतर गिरावट के दौर से गुजर रही है। भारत में, सफेद पंख वाली बत्तख मुख्य रूप से पूर्वी असम और अरुणाचल प्रदेश के आस-पास के इलाकों में पाई जाती है।

सफेद पंखों वाली लकड़ी की बत्तख अपनी भूतिया आवाज के कारण असम राज्य में लोकप्रिय रूप से देव-हाह के नाम से जानी जाती है। 2003 में 'देव हंस' को असम राज्य का राजकीय पक्षी के घोषित किया गया था। दुख की बात है कि हाल के वर्षों में इसके संरक्षण की स्थिति में कोई सुधार नहीं होने के कारण यह विलुप्त होने के कगार पर है। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) ने 1994 से लुप्तप्राय के रूप में सफेद पंखों वाली लकड़ी की बत्तख ( Asarcornis scutulata ) को सूचीबद्ध किया है। माना जाता है कि इस प्रजाति के केवल 800 पक्षी  को जंगल में छोड़ दिया गया है, जिनमें से 450 भारत में मौजूद हैं। यह प्रजाति केवल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पाई जाती है।

कुछ आंकड़ों के मुताबिक नामेरी और देहिंग पटकाई और नामदाफा के आसपास के इलाकों में कुछ ही पक्षी देखे गए थे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो अगले 50 सालों में असमिया राज्य पक्षी का आवास गायब हो सकता है। पक्षी की आबादी में गिरावट मुख्य रूप से वन आवरण के नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, विशेष रूप से जल स्रोतों को। 

असम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Assam ||

2050 और 2070 के लिए भारतीय पूर्वी हिमालय (IEH) क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और सफेद पंखों वाले लकड़ी के बत्तख के संभावित वितरण का आकलन करने के लिए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि प्रजातियां 2070 तक 436.61 वर्ग किलोमीटर अत्यधिक संभावित निवास स्थान खो देंगी। .

भविष्य के जलवायु परिदृश्यों के तहत, अध्ययन में अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में संभावित निवास स्थान में गिरावट की भविष्यवाणी की गई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सबसे गर्म महीनों (जून से सितंबर) के दौरान वर्षा के पैटर्न में बदलाव, सबसे गर्म तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर) के दौरान वर्षा में कमी के साथ संयुक्त रूप से निवास स्थान का नुकसान होगा। इसके अलावा, 2070 तक, तापमान वृद्धि के परिणामस्वरूप त्रिपुरा और नागालैंड में इन पक्षियों के कई संभावित निवास स्थान विलुप्त हो जाएंगे।

English Translate

state bird of assam

Assam is the north eastern state of our country India which is famous for tea plantations. But today here we will not discuss the tea of Assam but the state bird of Assam. The state bird of Assam is the "White-winged wood duck". goes.

According to the IUCN Red List, the white-winged duck is an endangered species because of its very small and fragmented population that is undergoing a very rapid and sustained decline as a result of riverine habitat loss and disturbance. In India, the white-winged duck is mainly found in eastern Assam and adjoining areas of Arunachal Pradesh.

असम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Assam ||

The white-winged wood duck is popularly known as Dev-hah in the state of Assam because of its haunting call. In 2003, 'Dev Hans' was declared as the state bird of the state of Assam. Sadly, it is on the verge of extinction with no improvement in its conservation status in recent years. The International Union for Conservation of Nature (IUCN) has listed the white-winged wood duck (Asarcornis scutulata) as Endangered since 1994. Only 800 birds of this species are believed to be left in the wild, of which 450 are known to exist in India. This species is found only in the northeastern states of India.

According to some reports, only a few birds were seen in the areas around Nameri and Dehing Patkai and Namdapha. If this continues, the habitat of the Assamese state bird may disappear in the next 50 years. The decline in the bird's population has been mainly attributed to the loss of forest cover, particularly to water sources.

A recent study to assess the impacts of climate change and the potential distribution of white-winged wood ducks in the Indian Eastern Himalaya (IEH) region for 2050 and 2070 showed that the species would lose 436.61 square kilometers of highly potential habitat by 2070. Will lose ,

असम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Assam ||

Under future climate scenarios, the study predicts potential habitat declines in Arunachal Pradesh, Assam, Nagaland, Meghalaya and Tripura. The researchers found that a change in rainfall patterns during the wettest months (June to September), combined with a decrease in rainfall during the warmest quarter (October to December), would result in habitat loss. In addition, by 2070, many potential habitats of these birds in Tripura and Nagaland will become extinct as a result of temperature rise.

भारत के सभी राज्यों के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय नौवाँ- राजविद्याराजगुह्य योग || अनुच्छेद 11-19 ||

श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय नौवाँराजविद्याराजगुह्य योग ||

नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग

अध्याय नौ के अनुच्छेद 11-19

अनुच्छेद 11-15 में भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का वर्णन है। 

संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता || Sampurn Shrimad Bhagwat Geeta ||

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्‌।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्‌ ॥9.11॥
भावार्थ : 
मेरे परमभाव को (गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में देखना चाहिए) न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान्‌ ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात्‌ अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं॥11॥

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥9.12॥

भावार्थ : 
वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं॥12॥

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥9.13॥

भावार्थ : 
परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के (इसका विस्तारपूर्वक वर्णन गीता अध्याय 16 श्लोक 1 से 3 तक में देखना चाहिए) आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं॥13॥

सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥9.14॥

भावार्थ : 
वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं॥14॥

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्॥9.15॥

भावार्थ : 
दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

अनुच्छेद 11-15 में सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन है। 

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥9.16॥

भावार्थ : 
क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ॥16॥

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥9.17॥

भावार्थ : 
इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ॥17॥

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌॥9.18॥

भावार्थ : 
प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम 'निधान' है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥18॥

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥9.19॥

भावार्थ : 
मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ॥19॥


डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी


मुस्कुराता हुआ फूल और मुस्कुराता चेहरा किसे नहीं भाता? फूलों की खूबसूरती और खुशबू हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इस दुनिया में कई ऐसे फूल भी जिसकी अपनी अलग अलग विशेषता है। मिलते हैं फूलों के अजीबो गरीब दुनिया के एक और फूल से, जिसका नाम है "डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी"
डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||
क्यूबा और फ्लोरिडा के जंगलों में "डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी" नाम का एक फूल पाया जाता है। इसको भूतहा ऑर्किड या घोस्ट ऑर्किड भी कहा जाता है। इस फूल को लगभग 20 साल पहले ही विलुप्त घोषित कर दिया गया था। इसमें पत्तियां नहीं पाई जाती हैं। इसकी जड़ें फोटोसिंथेसिस करके फूलों का पोषण करती हैं। इस फूल का पॉलीनेशन सिर्फ जायंट स्फिंक्स नाम की एक तितली ही कर सकती है। 
डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

यह आर्किड (फूल) असाधारण है, क्योंकि इसमें बहुत कम तना होता है। चपटी नाल जैसी हरी जड़ें, परिपक्व पौधे के अधिकांश भाग का निर्माण करती हैं। वे विशिष्ट सफेद "ट्रैक मार्क्स" धारण करते हैं, जिसके लिए तकनीकी शब्द न्यूमेटोड्स है। माना जाता है कि ये न्यूमेटोड्स आंशिक रूप से रंध्र की तरह कार्य करते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषक जड़ें श्वसन और प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक गैस विनिमय करने में सक्षम होती हैं। इन चपटी जड़ों में क्लोरोप्लास्ट पौधे के लगभग सभी प्रकाश संश्लेषण करते हैं। 
डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

यह आर्किड दक्षिण-पश्चिमी फ्लोरिडा में नम, दलदली जंगल और क्यूबा जैसे कैरिबियाई द्वीप में पाया जाता है।डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी जून और अगस्त के बीच खिलता है। यह ऑर्किड एक से दस सुगंधित फूल आते हैं, जो एक समय में एक को खोलते हैं। फूल सफेद, 3-4 सेमी चौड़े और 7–9 सेमी लंबे होते हैं। वे रूट नेटवर्क से उत्पन्न होने वाले स्पाइक्स पर पैदा होते हैं। उनकी सबसे तीव्र सुगंध सुबह के समय होती है। इस आर्किड में सुगंधित फल होता है, जो एक सेब जैसा होता है। निचली पंखुड़ी, लेबेलम में दो लंबी, पार्श्व प्रवृत्तियां होती हैं, जो थोड़ा नीचे की ओर मुड़ जाती हैं, जो एक कूदते हुए मेंढक के पिछले पैरों के समान होती हैं। इसके खंड डरावने होते हैं - पतले और कागजी । इस आर्किड की जड़ें पेड़ पर इतनी अच्छी तरह से छिपी हुई हैं कि फूल हवा में तैरता हुआ प्रतीत हो सकता है, इसलिए इसका नाम "भूत आर्किड" है।

English Translate

Dendrophylax Lindenii

Who doesn't like a smiling flower and a smiling face? The beauty and fragrance of flowers attract everyone towards them. There are many such flowers in this world which have their own individuality. Let's meet another flower from the strange world of flowers, whose name is "Dendrophylax lindeni".

डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

A flower named "Dendrophylax lindenii" is found in the forests of Cuba and Florida. It is also called ghost orchid or ghost orchid. This flower was declared extinct about 20 years ago. Leaves are not found in it. Its roots nourish the flowers by photosynthesis. Only a butterfly named Giant Sphinx can pollinate this flower.

This orchid is unusual in that it has a very short stem. The flat cord-like green roots make up the majority of the mature plant. They bear the distinctive white "track marks", for which the technical term is pneumatodes. These nematodes are thought to act partly like stomata, enabling photosynthetic roots to carry out the gas exchange necessary for respiration and photosynthesis. The chloroplasts in these flattened roots do almost all of the plant's photosynthesis.

डेंड्रोफिलैक्स लिंडेनी || Dendrophylax Lindenii ||

This orchid is found in moist, swampy forests in southwestern Florida and on Caribbean islands such as Cuba. Dendrophylax lindenii blooms between June and August. This orchid bears one to ten fragrant flowers, which open one at a time. The flowers are white, 3–4 cm wide and 7–9 cm long. They are borne on spikes arising from the root network. Their most intense fragrance is in the morning. This orchid has a fragrant fruit, which is similar to an apple. The lower petal, the labellum, has two long, lateral tendrils that turn slightly downward, similar to the hind legs of a jumping frog. Its sections are scary - thin and papery. The roots of this orchid are so well hidden on the tree that the flower can appear to float in the air, hence the name "ghost orchid".

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

Good morning Quotes

A new dawn brings a new ray of hope in the lives of us and our loved ones. Morning time gives us an opportunity and inspiration to forget our problems and move forward in life. At this time our energy level and our positive thinking is high, so if you decide to do any work, then the expectation of its completion increases a lot, that is why today we have brought for you some of the best Inspirational Good Morning Quotes.

Respect is like mirror more you see yourself more it will get reflected by others.

👍🏻Good Morning 🙏🏻

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages
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The worst battle is when we feel differently than what we know

☝🏻Good morning 🌞

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Stick to your roots and you will grow better always

🙏🏻Good Morning 🌄

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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A lamp doesn’t speak.....It Introduces itself through it’s Light.

☝🏻Good Morning☝🏻

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Life is not a dress rehearsal.

The curtain is up and You are on,

So Get out there and give it your best shot

👍🏻GOOD MORNING✌🏻

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Relax and unwind

may your dreams be kind.

👍🏻Good-Morning😊

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Next time someone tries to bring you down,..

remember this

confidence is quiet, insecurity is loud. 

✌🏻GooD-MorninG 👌🏻

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Helping someone with expectations is business not a kind act.

👍🏻Good Morning 👌🏻

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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The more we learn more we see

🙏🏻Good morning 😊

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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Whatever we speak is reflection of our image in someone listening.

☝🏻Good Morning ☀️

10 Beautiful & Positive Inspirational Good morning Quotes, Wishes and Messages

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नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर

साल में केवल एक दिन खुलने वाला मंदिर !!

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। 

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 17वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फ फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। 

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्पराज तक्षक ने घोर तपस्या की थी। सर्पराज की तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए और फिर उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को वरदान के रूप में अमरत्व दिया। उसके बाद से ही तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो इस वजह से सिर्फ नागपंचमी के दिन ही उनके मंदिर को खोला जाता है।

English Translate

Nagchandreshwar Temple, Ujjain

The temple which opens only one day in a year!!

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

Hinduism has had a tradition of worshiping snakes for centuries. In Hindu tradition, snakes have also been considered as ornaments of God. There are many temples of snakes in India, one of them is the temple of Nagchandreshwar located in Ujjain, which is situated on the third floor of the famous Mahakal temple of Ujjain. Its special thing is that this temple is opened for darshan only one day in a year on Nagpanchami (Shravan Shukla Panchami).

It is believed that Nagraj Takshak himself resides in the temple. The Nagchandreshwar temple has a wonderful statue of 17th century, in which Shiva-Parvati are sitting on the seat of a snake with spread wings. It is said that this statue was brought here from Nepal. There is no such statue anywhere in the world except Ujjain. This is the only temple in the whole world, in which Lord Bholenath is sitting on a snake bed instead of Lord Vishnu. In the ancient idol installed in the temple, Shivji, Ganeshji and Maa Parvati along with Dashmukhi snake are sitting on the bed. Bhujang is wrapped around Shivshambhu's neck and arms.

नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन || Nagchandreshwar Temple, Ujjain ||

According to mythological beliefs, Sarpraj Takshak had done severe penance to please Lord Bholenath. Lord Shankar was pleased with the penance of Sarpraj and then he gave immortality as a boon to Takshak Nag, the king of snakes. From then on, Takshak Raja started living in the presence of the Lord. But before living in the Mahakal forest, he had the same intention that his solitude should not be disturbed, because of this his temple is opened only on the day of Nagpanchami.

बचपन, सच में प्यारा सा

बचपन, सच में प्यारा सा


Rupa Oos ki ek Boond

अपने हौसलों को ये मत बताओ कि तुम्हारी परेशानी कितनी बड़ी है , 
बल्कि अपनी परेशानी को ये बताओ कि तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है।



आज कुछ बातें फिर याद आ गईं...

काश लौट आता वो बचपन हमारा 

भुलाये ना भुले वो दिन था सुहाना

होती गरमी की छुट्टी, 

बस नानी के घर जाना

नाना से बतियाना, 

किस्से कहानियां सुनना और सुनाना

भुलाये ना भुले वो दिन था सुहाना

वो यादें पुरानी, वो बचपन हमारा 

गलबहियां डाले, टीलों की गीटे सजाना

और खो खो कबड्डी में दिन भर बिताना

भुलाये ना भुले वो बचपन की यादें 

वो सरसों की खेतों में तितलियाँ पकडना

और खेतों की मेडों पर चढ़ना उतरना

गिरना फिर गिरकर संभलना

भुलाये ना भुले वो बचपन की शरारतें 

वो सरफुल्ली की ड़डी से धुंये के छल्ले बनाना

और कौडें की आग में आलू का पकाना

भुलाये ना भुले वो बचपन की बातें 

वो गोबर का गोवर्धन बनाना 

सखियों के सगं पिडियां लगाना

और ताल तलैया नहरों में नहाना

भुलाये ना भुले वो बचपन की बातें 

मां, दादी, चाची और बूआ का साथ मे हंसना बतियाना

गन्ने के रस से मीठे पकवान बनाना

वो मिट्टी का चूल्हा, वो लकड़ी का बरतन  

जमीन पर बैठकर पंक्ति में खाना 

भुलाये ना भुले वो बचपन सुहाना 

न था मखमली बिस्तर, ना रेशमी तकिया

ना AC ना COOLER, ना बिजली की चिंता 

खुले आसमान तले बातें करना 

और फिर सब लोगों का इकट्ठे ही,

चैन से हर रोज सो जाना 

भुलाये ना भुले वो दिन था सुहाना

काश लौट आता वो बचपन हमारा 

Rupa Oos ki ek Boond

गिरकर उठना जिसके अंदर यह ताकत है..
उस इंसान के अंदर हर चीज की काबिलियत है..!!

जिज्ञासु बनो : पंचतंत्र || Zigyasu Bano : Panchtantra ||

जिज्ञासु बनो

पृच्छकेन सदा भाव्यं पुरुषेण विजानता।

मनुष्य को सदा प्रश्नशील, जिज्ञासु रहना चाहिए।

 जिज्ञासु बनो : पंचतंत्र || Zigyasu Bano : Panchtantra ||

एक जंगल में चंडकर्मा नाम का राक्षस रहता था। जंगल में घूमते-घूमते उसके साथ एक दिन एक ब्राह्मण आ गया। वह राक्षस ब्राह्मण के कन्धे पर बैठ गया। ब्राह्मण के प्रश्न पर वह बोला- ब्राह्मण मैंने व्रत लिया है। गीले पैरों से मैं जमीन को नहीं छू सकता। इसलिए तेरे कन्धों पर बैठा हूँ।

थोड़ी दूर पर जलाशय था। जलाशय में स्नान के लिए जाते हुए राक्षस ने ब्राह्मण को सावधान कर दिया कि जब तक मैं स्नान करता हूँ, तू यहीं बैठकर मेरी प्रतीक्षा कर राक्षस की इच्छा थी कि वह स्नान के बाद ब्राह्मण का वध करके उसे खा जाएगा। ब्राह्मण को भी इसका सन्देह हो गया था। अतः ब्राह्मण अवसर पाकर वहाँ से भाग निकला। उसे मालूम हो चुका था कि राक्षस गीले पैरों से ज़मीन नहीं छू सकता, इसलिए वह उसका पीछा नहीं कर सकेगा।

चतुर ब्राम्हण और राक्षस की कहानी : पंचतन्त्र | Chatur Bramhan Aur Rakshas Ki Kahanai : Panchtantra

ब्राह्मण यदि राक्षस से प्रश्न न करता तो उसे यह भेद कभी मालूम न होता। अतः मनुष्य को प्रश्न करने से कभी चुकना नहीं चाहिए। प्रश्न करने की आदत अनेक बार उसकी जीवन रक्षा कर देती है।

स्वर्ण-सिद्धि ने कहानी सुनकर कहा-यह तो ठीक ही है। दैव अनुकूल हो तो सब काम स्वयं सिद्ध हो जाते है। फिर भी पुरुष को श्रेष्ठ मित्रों के वचनों का पालन करना ही चाहिए। स्वेच्छाचार बुरा है। मित्रों की सलाह से मिल-जुलकर और एक-दूसरे का भला चाहते हुए ही सब काम करने चाहिए। जो लोग एक-दूसरे का भला नहीं चाहते और स्वेच्छया सब काम करते हैं, उनकी दुर्गति वैसी हो होती है। जैसी स्वेच्छाचारी भारण्ड पक्षी की हुई थी।

चक्रधर ने पूछा- वह कैसे?

स्वर्ण-सिद्धि ने तब यह कथा सुनाई

मिलकर काम करो

To be Continued...

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी

चिलमे (Ithaginis cruentus) (चिल्मिआ/ Chilmiya) 

जैसा कि हम सभी जानते हैं, सिक्किम भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है, जो कि भारत के पूर्वी हिमालय क्षेत्र में स्थित है। सिक्किम अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगा हुआ राज्य है, जो उत्तर पूर्व में तिब्बत, दक्षिण पूर्व में भूटान और पश्चिम में नेपाल से लगती है। इस ब्लॉग के पिछले कुछ अंकों में अलग अलग राज्य के राजकीय पक्षियों की चर्चा हुई है। आज हम सिक्किम के राजकीय पक्षी के बारे में जानेंगे। 

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

हर राज्यों की तरह सिक्किम द्वारा भी राज्य का राजकीय पक्षी चुना गया है, जो देखने में बेहद सुंदर है और अपने कुल की एकमात्र प्रजाति है, जिसका नाम है ‘चिल्मिआ’। ‘चिल्मिआ’ को अंग्रेजी में या ‘ब्लड फिजेंट’ (Blood Pheasant) कहा जाता है। इसे एक अन्य नाम ‘Blood Partridge’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम इथेजिनिस क्रुएंट्स (Ithaginis Cruentus) है। 

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

फिजेंट कुल का यह पक्षी अपनी प्रजाति का एकमात्र पक्षी है। इसका नेपाली भाषा में नाम चिल्मिआ, चिल्मे, स्क्रीमन तथा सेलमुंग है। सिक्किम में यह समे, सेमो और सूमोंग फ़ो कहा जाता है। इसका कोई हिंदी नाम नहीं है, क्योंकि यह हिंदी भाषी क्षेत्रों में नहीं पाया जाता। अंग्रेजी भाषा में इसके नाम ‘ब्लड फिजेंट‘ का कारण इसकी आँखों के चारों ओर सुर्ख लाल रंग की चौड़ी पट्टी का होना है। 

इसका आकार 19 सेंटीमीटर से 22 सेंटीमीटर और वजन 500 ग्राम से 650 ग्राम होता है। यह दिखने में मध्यम आकार के जंगली मुर्ग जैसा दिखता है।

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

‘चिल्मिआ’ के पंखों में कई रंग देखने को मिलते हैं, जैसे सफ़ेद, स्लेटी, भूरा और लाल। मादा ‘चिल्मिआ’ एक समान रंग की होती है, जिसमें अधिकतर भूरा रंग देखने को मिलता है। इनके सिर पर विभिन्न रंगों के पंखों की एक छोटी कलगी होती है। आँखों के आसपास नग्न त्वचा की लाल रंग की रिंग होती हैं। कुछ प्रजातियों में यह नारंगी रंग की होती है। चोच का रंग काला होता है, जो काफ़ी मजबूत होता है। मादा और नर दोनों के पैर लाल रंग के होते हैं। यह देखने पर थोड़ा बहुत तीतर से मिलता जुलता है। ब्लड फ़ीज़ॅन्ट पेड़ों के कोंपल, फल, बीज और कीड़े मकोड़े खाता है।

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

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State bird of Sikkim

As we all know, Sikkim is one of the smallest states in India, located in the Eastern Himalayan region of India. Sikkim is a state with international borders, bordered by Tibet in the northeast, Bhutan in the southeast, and Nepal in the west. In the last few issues of this blog, the state birds of different states have been discussed. Today we will learn about the state bird of Sikkim.

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

Like every state, Sikkim has also chosen the state bird of the state, which is very beautiful to look at and is the only species of its family, named 'Chilmiya'. 'Chilmiya' is called in English or 'Blood Pheasant'. It is also known by another name 'Blood Partridge'. Its scientific name is Ithaginis cruentus.

This bird of pheasant clan is the only bird of its species. Its name in Nepali language is Chilmiya, Chilme, Skriman and Selmung. In Sikkim it is called Same, Semo and Sumong Pho. It does not have a Hindi name, as it is not found in Hindi speaking areas. The reason for its name 'blood pheasant' in English language is due to the wide strip of ruddy red color around its eyes.

Its size is 19 cm to 22 cm and weight is 500 grams to 650 grams. It looks like a medium sized wild fowl.

सिक्किम का राजकीय/राज्य पक्षी || State Bird Of Sikkim ||

Many colors are seen in the feathers of 'Chilmiya', such as white, gray, brown and red. The female 'Chilmiya' is of uniform colour, in which mostly brown color is seen. There is a small crest of feathers of different colors on their heads. There are red colored rings of naked skin around the eyes. In some species it is orange in colour. The color of the beak is black, which is very strong. The legs of both the female and the male are red. It looks a bit like a pheasant. The blood pheasant eats tree shoots, fruits, seeds and insects.

भारत के सभी राज्यों के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय नौवाँ- राजविद्याराजगुह्य योग || अनुच्छेद 01-10 ||

 श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता प्रकाशित कर रहे हैं, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे। 

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1,2,3,4,5, 6, 7  और 8 के पूरे होने के बाद आज प्रस्तुत है, अध्याय 9 के सभी अनुच्छेद। 

श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय नौवाँराजविद्याराजगुह्य योग ||

नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग

अध्याय नौ के अनुच्छेद 01 -06

अध्याय नौ के अनुच्छेद 01-06 में  परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार बताया गया है।   

श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta ||

श्रीभगवानुवाच

इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌| | 9.1 || 
भावार्थ : 
श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा॥1॥

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्‌ ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्‌ || 9.2 ||

भावार्थ : 
यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है॥2॥

अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि || 9.3 ||

भावार्थ : 
हे परंतप! इस उपयुक्त धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं॥3॥

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः || 9.4 ||

भावार्थ : 
मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्‌ जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ॥4॥

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः || 9.5 ||

भावार्थ :
वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है॥5॥

यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्‌ ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय || 9.6 ||

भावार्थ : 
जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान्‌ वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान॥6॥

अध्याय नौ के अनुच्छेद 07-10

अध्याय नौ के अनुच्छेद 07-10 में  जगत की उत्पत्ति के विषय में बताया गया है।   

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ || 9.7 ||

भावार्थ : 
हे अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ॥7॥

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्‌ || 9.8 ||

भावार्थ : 
अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ॥8॥

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु || 9.9 ||

भावार्थ : 
हे अर्जुन! उन कर्मों में आसक्तिरहित और उदासीन के सदृश (जिसके संपूर्ण कार्य कर्तृत्व भाव के बिना अपने आप सत्ता मात्र ही होते हैं उसका नाम 'उदासीन के सदृश' है।) स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बाँधते॥9॥

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते || 9.10 ||

भावार्थ : 
हे अर्जुन! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्वजगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है॥10॥

हिबिस्कस कोकियो फूल || Hibiscus kokio || Hibisco ||

हिबिस्कस कोकियो फूल

यह कोई साधारण गुड़हल नहीं है। शू फ्लॉवर की प्रजाति वाला हिबिस्कस कोकियो फूल, सिर्फ हवाई आइलैंड में मिलते हैं। 1950 में यह विलुप्त हो चुके थे, फिर 20 साल बाद कोकियो का एक पेड़ मिला। लाल से नारंगी रंग के फूलों वाला ये पौधा एक आगजनी में खत्म हो जाता, लेकिन इसकी एक डाली बचा ली गई और इसे 23 अन्य पौधों में ग्राफ्ट किया गया। 

हिबिस्कस कोकियो फूल || Hibiscus kokio || Hibisco ||

हिबिस्कस कोकियो सेंट जॉनियनस (वैज्ञानिक नाम: हिबिस्कस कोकियो एसएसपी. सेंटजोहनियानस) काउई द्वीप की एक स्थानिक प्रजाति की सदाबहार झाड़ी है। यह एक दुर्लभ प्रजाति है, जो काउई द्वीप में मकावाओ की मूल निवासी है। यह एक उष्णकटिबंधीय हिबिस्कस प्रजाति है, जिससे पीले या नारंगी रंग के फूल खिलते हैं। 

इसके पेड़ की ऊँचाई: 3 से 7 मीटर, पेड़ की चौड़ाई: 0.9 से 1.2 मीटर होती है। इसकी पत्ती आकार में अंडाकार तथा चमकदार हरे रंग की होती है। इसके फूल का रंग पीला और नारंगी होता है। कुछ स्थान पर लाल रंग के फूल भी दिखते हैं। इस झाड़ी में फूल जून से सितंबर माह में आता है। 

हिबिस्कस कोकियो फूल || Hibiscus kokio || Hibisco ||

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Hibiscus Kokio Flower


This is not an ordinary hibiscus. Hibiscus kokio flowers, a species of shoe flower, are found only in the Hawaiian Islands. It was extinct in 1950, then 20 years later a Kokio tree was found. The plant, with red to orange flowers, would have perished in a fire, but one scion was saved and grafted onto 23 other plants.

हिबिस्कस कोकियो फूल || Hibiscus kokio || Hibisco ||

Hibiscus kokio St. johnianus (scientific name: Hibiscus kokio ssp. st.johnianus) is an evergreen shrub endemic to the island of Kauai. It is a rare species, native to Makawao in the island of Kauai. It is a tropical hibiscus species that produces yellow or orange flowers.

हिबिस्कस कोकियो फूल || Hibiscus kokio || Hibisco ||

Its tree height: 3 to 7 meters, tree width: 0.9 to 1.2 meters. Its leaves are oval in shape and shiny green. Its flower color is yellow and orange. Red colored flowers are also seen at some places. The flowers of this shrub come in the month of June to September.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर

आज बात करते हैं, ग्वालियर में स्थित सास बहू मंदिर की। सास बहू मंदिर जिसे सास बहू मंदिर, सहस्त्रबाहु मंदिर या हरि सदनम मंदिर भी कहा जाता है। 

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

सहस्रबाहु मंदिर (अपभ्रंश नाम - सास बहू मंदिर) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर क्षेत्र में स्थित एक 11वीं शताब्दी में निर्मित हिन्दू मंदिर है। यह विष्णु के पद्मनाभ रूप को समर्पित है और ग्वालियर के किले के समीप स्थित है। यहाँ मिले शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण कच्छपघात राजवंश के राजा महिपाल ने सन् 1093 में किया था। बाद में हुई हिन्दू-मुस्लिम झड़पों में मंदिर को क्षति पहुँची और अब इसके खंडहर हैं।

असल में सास-बहु मंदिर दो अलग-अलग मंदिर है, जिसमें बहु मन्दिर एक खँडहर की भांति खड़ा है, वहीं सास मंदिर कुछ आमूलचूल परिवर्तन के साथ विभिन्न हालत के बीच अपना सामंजस्य बनाये हुए है।

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

ग्वालियर स्थित सास-बहु मन्दिर के बारे में एक रोचक कथा है

कहते हैं कि महाराजा महिपाल जी की पत्नी भगवान विष्णु जी की परम भक्त थीं। इसलिए राजा महिपाल ने भगवन विष्णु जी के सम्मान में मंदिर का निर्माण करवाया। वक्त बीतने के साथ-साथ जब महाराजा महिपाल का पुत्र विवाह योग्य हुआ। तब राजा महिपाल ने राकुमार के विवाह के लिए योग्य वधु की तलाश में लग गये और जल्द ही राजकुमार का विवाह हो गया।

भावी राजकुमार की पत्नी शिव जी की भक्त थीं। इसलिए उन्होंने विष्णु मंदिर के पास ही में शिव मंदिर का भी निर्मित करवाया। पूर्ण रूप से विकसित मंदिर का निर्माण पंक्तिबद्ध रूप से उत्तर दक्षिण दिशा में हुआ, जिसमें गर्भगृह अंतराल, महा मंडप तथा अर्ध मंडप दक्षिण से उत्तर की ओर हैं। मंदिर की दीवारों, खंबों तथा छत पर नक्काशीदार आकृतियां बनाई गई हैं जो देखते ही मन मोह लेती है। समृद्ध नक्काशीदार स्तंभ तथा केंद्रीय सभागार की छत तीन ओर से ड्योढ़ी द्वारा घिरे हुए हैं तथा बाह्य दीवारें ज्यामितीय, पुष्पाकृतियों, पशु पक्षियों, गज, नर्तक, संगीतकार और कृष्ण लीला के सुंदर दृश्यों से परिपूर्ण है। छोटे मंदिर की बाह्य दीवारें भी इसी प्रकार चित्रित हैं। इस मंदिर में एक लघु केंद्रीय सभागार प्रकोष्ठ भी है।

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है, जिस पर कमल की नक्काशियां की हुई हैं। इसकी संरचना पिरामिड के आकार की है, जिसमें कोई मेहराब नहीं है। यह मंदिर 32 मीटर लंबा तथा 22 मीटर चौड़ा है। मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दिशाओं में दरवाजे हैं। चौथी दिशा में एक दरवाजा बना हुआ तो है, पर वो वर्तमान में बंद है। मंदिर की छत से ग्वालियर शहर को देखना भी अपने आप में एक खास अनुभव देता है।

सास-बहु नाम से एक और मंदिर का उल्लेख हमें राजस्थान के नागदा गांव में मिलता है।

राजस्थान के इस प्रसिद्ध मंदिर को भी सहस्राबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भी भगवान् विष्णु जी को समर्पित है।

English Translate

Saas Bahu Ka Mandir, Gwalior

Today let's talk about Saas Bahu Temple located in Gwalior. Saas Bahu Temple also known as Saas Bahu Temple, Sahastrabahu Temple or Hari Sadanam Temple.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

Sahasrabahu Temple (Apabhramsh name - Saas Bahu Temple) is an 11th-century Hindu temple located in the Gwalior region of the Indian state of Madhya Pradesh. It is dedicated to the Padmanabha form of Vishnu and is located near the Gwalior Fort. According to the inscription found here, it was built by King Mahipala of the Kachchhapaghat dynasty in 1093. The temple was damaged in the subsequent Hindu-Muslim clashes and is now in ruins.

Actually the Saas-Bahu temple are two separate temples, in which the Bahu temple stands like a ruin, while the Saas temple with some radical changes is maintaining its harmony between different conditions.

There is an interesting story about the Saas-Bahu Temple in Gwalior.

It is said that the wife of Maharaja Mahipal ji was an ardent devotee of Lord Vishnu. That's why King Mahipal got the temple constructed in honor of Lord Vishnu. With the passage of time, when the son of Maharaja Mahipal became eligible for marriage. Then King Mahipal started looking for a suitable bride for Rakumar's marriage and soon the prince got married.

The future prince's wife was a devotee of Lord Shiva. That's why he also got the Shiva temple built near the Vishnu temple. The fully developed temple was built in a north-south direction in a row, in which the sanctum antarala, maha mandapa and ardha mandapa are from south to north. Carved figures have been made on the walls, pillars and ceiling of the temple, which fascinates the mind as soon as it is seen. The richly carved pillars and the ceiling of the central hall are surrounded by antechambers on three sides and the outer walls are full of geometrical, floral motifs, animals, birds, yards, dancers, musicians and beautiful scenes of Krishna Leela. The outer walls of the small temple are also painted in the same way. There is also a small central auditorium cell in this temple.

The temple is made of red sandstone with lotus carvings on it. Its structure is in the shape of a pyramid, with no arches. This temple is 32 meters long and 22 meters wide. There are doors in three directions to enter the temple. There is a door built in the fourth direction, but it is currently closed. Viewing the city of Gwalior from the roof of the temple also gives a special experience in itself.

सास बहू का मंदिर, ग्वालियर || Sasbahu Temple, Gwalior ||

We find mention of another temple named Saas-Bahu in Nagda village of Rajasthan.

This famous temple of Rajasthan is also known as Sahasrabahu Temple. This temple is also dedicated to Lord Vishnu.

काला ज़ीरा || Black Cumin ||

काला ज़ीरा

मसाले के तौर पर जीरा से तो सभी अवगत हैं। बिना जीरा के सब्जी में स्वाद नहीं आता। इसकी खुशबू और स्वाद दोनों ही भोजन को लजीज बना देते हैं। स्वाद बढ़ाने के साथ ही जीरा में विभिन्न औषधीय गुण भी होते हैं।

काला जीरा के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

जीरा क्या है?

जीरा एक मसाला है, जो भारतीय व्यंजन के स्वाद को बढ़ाता है। आयुर्वेद के अनुसार जीरा 3 तरह का होता है

  • काला जीरा 
  • सफेद जीरा 
  • अरण्य जीरा 

मसाले में प्रयोग होने के कारण सफेद जीरा से तो सभी अवगत हैं। श्यामली रंग का जीरा, काला जीरा या कृष्ण जीरा भी सफेद जीरा की तरह ही होता है। दोनों में इतनी समानता होती है कि भेद करना थोड़ा मुश्किल होता है।  श्यामले रंग का जीरा सफेद जीरा से महंगा होता है।

जानते हैं काला जीरा के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

काले जीरे को शाही जीरा भी कहते हैं। यह कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होता है। साथ ही सेहत के लिए कई रूपों में फायदेमंद है।

वजन कम करने में

3 महीने तक लगातार काले जीरे का सेवन किया जाए, तो शरीर में जमी अनावश्यक चर्बी कम होती है। काला जीरा चर्बी को गला कर अपशिष्ट पदार्थों के साथ शरीर से बाहर निकाल देता है।

याददाश्त बढ़ाने में

बढ़ती उम्र के साथ यदि किसी को बातें /चीजें याद रखने में परेशानी आ रही है, तो काले जीरे को पूदीने की पत्तियों के साथ मिलाकर सुबह खाली पेट सेवन करने से याददाश्त में सुधार होता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में

काले जीरे का निरंतर सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। शरीर में ऊर्जा का संचार करती है, जिससे जल्द थकान और कमजोरी महसूस नहीं होती।

पाचन क्रिया के लिए

पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी काले जीरे का सेवन किया जाता है। काले जीरे में मौजुद फाइबर पाचन संबंध समस्याओं को दूर करने में कारगर होता है, जिससे पेट की ऐंठन, गैस और सूजन की समस्या में लाभ होता है।

सर्दी, जुकाम और कफ में

सर्दी, जुकाम कफ में काला जीरा फायदेमंद होता है। काले जीरे को भूनकर रुमाल में बांधकर सूंघने से आराम मिलता है।

सिर दर्द हुआ दांत दर्द में

काले जीरे के तेल को सिर और माथे पर लगाने से सर दर्द में लाभ होता है। गर्म पानी में काले जीरे के तेल की कुछ बूंदे डाल कर कुल्ला करने से दांत दर्द में भी आराम मिलता है।

एंटीसेप्टिक की तरह

काले जीरे में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है, जिसके कारण काला जीरा संक्रमण को फैलने से रोकता है। काले जीरे के पाउडर का लेप घाव, फोड़े, फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है, घाव आसानी से भर जाते हैं।

काले जीरे का नुकसान

  • काले जीरे की तासीर गर्म होती है अतः इसका सेवन 1 दिन में 3 ग्राम से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
  • हाई ब्लड प्रेशर, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को या फिर जिसे ज्यादा गर्मी लगती हो, ऐसे लोगों को डॉक्टर के सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए।
काला जीरा के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

किस प्रकार करें काले जीरे का सेवन

  • काले जीरे को गर्म पानी के साथ सीधा ही आधा चम्मच निगल कर खा सकते हैं या आधा चम्मच काले जीरे के बीज को रात भर पानी में भिगोकर छोड़ दें और सुबह बीज निकालकर इसका पानी पी जाए।
  • नींबू और काला जीरा एक साथ मिलाकर अधिक प्रभावी होता है। एक कटोरी में लगभग एक चम्मच काला जीरा और आधा चम्मच आधा नींबू का रस डालकर धूप में सुखा दें। इस दानों को दिन में दो बार सेवन कर सकते हैं या फिर हल्का सा काले जीरे को भूनकर पाउडर बनाकर रख लें। अब इस पाउडर को कप पानी में डालकर तथा नींबू के रस को पानी में मिलाकर ले सकते हैं।
  • काले जीरे के कुछ दानों को लेकर हल्का भुनकर बारीक पीस लें। अब एक गिलास गर्म पानी में पिसा हुआ काला जीरा और नींबू निचोड़ कर तथा उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन कर सकते हैं।

English Translate 

black cumin

Everyone is aware of cumin as a spice. Without cumin, there is no taste in the vegetable. Its aroma and taste both make the food delicious. Apart from enhancing the taste, cumin also has various medicinal properties.

काला जीरा के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

What is cumin?

Cumin is a spice that enhances the flavor of Indian cuisine. According to Ayurveda there are 3 types of cumin

  • black cumin
  • white cumin
  • Aranya Jeera

Everyone is aware of white cumin because of its use in spices. Shyamli colored cumin, black cumin or Krishna cumin is also similar to white cumin. There is so much similarity between the two that it is a bit difficult to differentiate. Brown colored cumin is costlier than white cumin.

Know about the benefits, disadvantages, uses and medicinal properties of black cumin

Black cumin is also known as Shahi Jeera. It is rich in many important nutrients. Also, it is beneficial for health in many ways.

in reducing weight

If black cumin is consumed continuously for 3 months, then the unnecessary fat stored in the body is reduced. Black cumin dissolves fat and removes it from the body along with waste products.

to enhance memory

With increasing age, if one is having trouble remembering things, then consuming black cumin mixed with mint leaves on an empty stomach in the morning improves memory.

in boosting immunity

Continuous consumption of black cumin increases immunity. Communicates energy in the body, due to which fatigue and weakness are not felt soon.

for digestion

Black cumin is also used to remove digestive problems. The fiber present in black cumin is effective in relieving digestive related problems, which is beneficial in the problem of abdominal cramps, gas and bloating.

In cold, flu and cough

Black cumin is beneficial in cold and cough. Frying black cumin and tying it in a handkerchief and smelling it gives relief.

headache in toothache

Applying black cumin oil on the head and forehead provides relief in headache. Putting a few drops of black cumin oil in warm water and gargling it also provides relief in toothache.

like an antiseptic

Antibacterial properties are found in black cumin, due to which black cumin prevents the spread of infection. Applying paste of black cumin powder on wounds, boils, pimples is beneficial, wounds heal easily.

काला जीरा के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

Side Effects of  of Black Cumin

  • The effect of black cumin is hot, so it should not be consumed more than 3 grams in a day.
  • People with high blood pressure, pregnant women and small children or those who feel very hot, should consume it only after consulting a doctor.

How to consume black cumin

  • You can eat black cumin directly by swallowing half a spoon with warm water or leave half a spoon of black cumin seeds soaked in water overnight and take out the seeds in the morning and drink its water.
  • Lemon and black cumin mixed together is more effective. Put about one teaspoon black cumin and half teaspoon juice of half lemon in a bowl and dry it in the sun. You can consume these seeds twice a day or you can make a powder by roasting some black cumin seeds. Now you can take this powder by adding it to a cup of water and adding lemon juice to the water.
  • Take some seeds of black cumin and roast it lightly and grind it finely. Now, after squeezing ground black cumin and lemon in a glass of hot water and mixing one spoon of honey in it, you can consume it.

विभिन्न भाषाओं में कला जीरा का नाम

Hindi - काला जीरा, स्या जीरा, स्याह जीरा,
Urdu- जीराह (Jirah)
English- Black caraway seed 
Sanskrit- कृष्णजीरा, जरणा, भेदिनी, बहुगन्धा
Kannada- जिरिगे (Jirige)
Kashmir- गुन्यान (Gunyan)
Gujarati- जीराउत्मी (Jirautmi), जीरू (Jiru), शाहजीरू (Shahjiru)
Tamil (jeera in tamil)- शिरागम (Shiragam), शिरूगम (Seerugam)
Telugu (jeera in telugu)- जिलाकाररा (Jilakarra), जीराा (Jiraka)
Bengali- जीरा (jeera)
Punjabi- जीरासीयाह (Jirasiyah)
Marathi (cumin seeds in marathi)- जीरोगिरे (Jiregire), जीरे (Jire)
Nepali- जीरा (Jira)
Arabic- कमुना (Kamuna), कामुत (Kamuth)
Persian- जीरा (Zira)