कुछ पल...

 कुछ पल...

Rupa Oos ki ek Boond

"ख़त्म होती मेरी सज़ा ही नहीं,
जबकि मेरी कोई ख़ता भी नहीं..❣️"

जीवन से विदा लेना, एक अटल सत्य 

उसमें जो खोया, वो हमारे वश में नहीं था।


मगर हमने खोया... 

वह वक्त जो हमें मिला था, 

प्रेम करने के लिये, प्रेम पाने के लिये। 

खूबसूरत एहसासों को जीने के लिये, 

जी भर कर मुस्कुराने के लिये।


हम नहीं सुन सके वह गीत, 

जो झरनों ने गाया, बस हमारे लिये, 

शोर-शराबों के उत्सव होते ही रहे 

छत पर रोज राह तकता रहा 

चाँद तारों का शामियाना।


फूलों की पंखुड़ियाँ, चटक कर खिली 

फिर उदास हो झर गई आंगन में। 

इंतज़ार करती रही एक कविता 

काग़ज़ों के बोझ तले, 

कि इक दिन तुम उसे जरुर गुनगुनाओगे।


मगर.. वक्त फिसलता रहा 

हाथों से रेत की मानिन्द

हमने खोया.... 

किसी का विश्वास, 

किसी का निश्छल प्रेम, 

दुआएं पाने के पल, बस बनाते रहे, 

कुछ आभासी शीशमहल।


आ जाओ ना!

सब कुछ खो जाने से पहले, 

थोड़ा-सा ही सही, 

कुछ पा लें जो हमारे वश में है...

Rupa Oos ki ek Boond

"लम्हों की खताएं,
लफ्जों में क्या बताएं..❣️"

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 || International Women's Day 2025

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ( International Women's Day) पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं......

अपनी माताओं, बहनों और बेटियों का उचित सम्मान कर, अपनी प्राचीन संस्कृति को विश्व में  पुनः गौरवान्वित करें।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 || International Women's Day 2025

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से जुड़ी कुछ खास बातें

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत कब हुई?

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1960 में हुई थी जब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में करीब 15000 महिलाएं सड़कों पर उतरी थी यह महिलाएं काम के घंटों को कम करने बेहतर तनख्वाह और वोटिंग के अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन कर रही थी महिलाओं के इस प्रदर्शन के बाद अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहले राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने की घोषणा की थी महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार एक महिला क्लारा जेटकिन का था क्लारा जेटकिन ने वर्ष 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1975 में मिली जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाना शुरू किया।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 || International Women's Day 2025

8 मार्च को ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाते हैं ?

पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। जब अमेरिकी महिला अधिकार कार्यकर्ता क्लारा जेटकिन ने इंटरनेशनल विमेंस डे मनाने का प्रस्ताव रखा था तो उनके जेहन में कोई तारीख कोई 1 तारीख नहीं थी इसे औपचारिक जामा भी वर्ष 1917 में तब पहनाया गया जब रूस में महिलाओं ने ब्रेड एंड पीस की मांग करते हुए 4 दिनों तक हड़ताल की इसके बाद रूस में बनी अस्थाई सरकार ने महिलाओं को वोट करने का अधिकार दिया जब रूस में यह हड़ताल हुई थी तो वहां जूलियन कैलेंडर चलता था जिसके अनुसार उस दिन 23 फरवरी की तारीख थी वही दुनिया के बाकी देशों में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर में वह तारीख 8 मार्च थी इसीलिए तब से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को 8 मार्च को मनाया जाने लगा।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का थीम

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का थीम है " सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार। समानता। सशक्तिकरण।" इस वर्ष का थीम सभी के लिए समान अधिकार, शक्ति और अवसर तथा एक समावेशी भविष्य के लिए कार्रवाई का आह्वान करता है, जहां कोई भी पीछे न छूटे।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 || International Women's Day 2025

चंद पंक्तियों के साथ एक बार पुनः अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। 

मां है जो,

बेटी है जो,

कभी बहन है ,

तो कभी पत्नी है जो,

जीवन के हर सुख दुःख में शामिल है जो 

शक्ति है जो

प्रेरणा है जो

नमन करो उन समस्त महिलाओं को 

जीवन के हर मोड़ पर सदा साथ देती है जो। 

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

ओड़िशा का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  अशोक
स्थानीय नाम: सीता अशोक
वैज्ञानिक नाम: जोनेशिया अशोका (Jonasia Ashoka) अथवा सराका-इंडिका (Saraca Indica)

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

ओड़िशा (Odisha) जिसे पहले उड़ीसा के नाम से जाना जाता और प्राचीन समय में 'कलिंग' के नाम से विख्यात था, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक राज्य है। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर है, जो कि श्री जगन्नाथ जी के भव्य मंदिर एवं उनके बार्षिक रथयाञा के लिए जाना जाता है। ओडीशा राज्य का क्षेञफल 155707 वर्ग किमी है। हर राज्य की तरह ओडिसा का भी अपना राज्य प्रतीक है। राज्य का प्रतीक राज्य की गुणवत्ता को दर्शाता है। यह प्रतीक राज्य की छवि प्रस्तुत करता है। आज हम ओडिसा के राजकीय पुष्प की चर्चा करेंगे। 

ओडिशा का राजकीय फूल अशोक है। अशोक के पेड़ से निकलने वाला यह फूल है, इसलिए इसका नाम अशोक पड़ा। वैज्ञानिक भाषा में इसे सरका असोका कहते हैं।

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

ओड़िशा के राजकीय प्रतीक

राज्य पशु – सांभर 
राज्य पक्षी – इंडियन राेलर
राज्य वृक्ष – एल्डर वृक्ष
राजकीय पुष्प – रोडोडेंड्रोन (बुरांस)
राजकीय भाषा  – उडिया
राजकीय फूल  – अशोक 
ओडिशा की प्रमुख नदियां – वैतरणी, महानदी, ब्राह्मणी

अशोक का पेड़ आम के पेड़ के समान 25 से 30 फुट तक ऊंचा, बहुशाकीय, घना व छायादार होता है। इसका तना कुछ लालिमा लिए हुए भूरे रंग का होता है। यह वृक्ष सारे भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके पल्लव 9 इंच लंबे, गोल,व नोकदार होते हैं। यह साधारण डंठल के व दोनों ओर से 5 से 6 जोड़ों में लगे होते हैं। इसकी पत्तियां 8 से 10 इंच लम्बी तथा 1 से 2 इंच चौड़ी होती हैं। अशोक के पेड़ के फूल नारंगी रंग के होते हैं, जो बाद में लाल रंग में बदल जाते हैं। ये घने गुच्छों में आते हैं और सुगंधित होते हैं। अशोक के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता है। 

English Translate

State flower of Odisha

Common name: Ashoka
Local name: Sita Ashoka
Scientific name: Jonasiya Ashoka or Saraca Indica

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

Odisha, formerly known as Orissa and in ancient times known as 'Kalinga', is a state located on the east coast of India. The capital of Odisha is Bhubaneswar, which is known for the grand temple of Shri Jagannath ji and his annual Rath Yatra. The area of ​​​​the state of Odisha is 155707 square km. Like every state, Odisha also has its own state emblem. The state emblem reflects the quality of the state. This emblem presents the image of the state. Today we will discuss the state flower of Odisha.

The state flower of Odisha is Ashoka. This flower comes out of the Ashoka tree, hence its name is Ashoka. In scientific language it is called Saraca Ashoka.

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

State symbols of Odisha

State animal – Sambhar
State bird – Indian Roller
State tree – Elder tree
State flower – Rhododendron (Burans)
State language – Oriya
State flower – Ashoka
Major rivers of Odisha – Vaitarni, Mahanadi, Brahmani

Ashoka tree is 25 to 30 feet tall, multi-vegetable, dense and shady like a mango tree. Its stem is brown in colour with some redness. This tree is found all over India. Its leaves are 9 inches long, round and pointed. They are attached to a simple stalk and in 5 to 6 pairs on both sides. Its leaves are 8 to 10 inches long and 1 to 2 inches wide. The flowers of Ashoka tree are orange in colour, which later turn red. They come in dense clusters and are fragrant. Ashoka flowers are used in medicines as well as cosmetics.

ओड़िशा का राजकीय फूल - सीता अशोक || State Flower of Odisha - Ashoka Flower

अशोक वृक्ष के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ....न्याय (Nyay)

मानसरोवर-2 ....न्याय (Nyay)

न्याय - मुंशी प्रेमचंद | Nyay by Munshi Premchand

हजरत मुहम्मद को इलहाम हुए थोड़े ही दिन हुए थे। दस-पाँच पड़ोसियों तथा निकट सम्बन्धियों के सिवा और कोई उनके दीन पर ईमान न लाया था, यहाँ तक कि उनकी लड़की जैनब और दामाद अबुलआस भी जिनका विवाह इलहाम के पहले ही हो चुका था, अभी दीक्षित न हुए थे। जैनब कई बार अपने मायके गयी थी और अपने पूज्य पिता की ज्ञानमय वाणी सुन चुकी थी। वह दिल से इस्लाम पर ईमान ला चुकी थी; लेकिन अबुलआस धार्मिक मनोवृत्ति का आदमी न था। वह कुशल व्यापारी था। मक्के के खजूर, मेवे आदि लेकर बन्दरगाहों को चालान किया करता था। बहुत ही ईमानदार, लेन-देन का खरा, मेहनती आदमी था, जिसे इहलोक से इतनी फुरसत न थी कि परलोक की फिक्र करे।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ....न्याय (Nyay)

जैनब के सामने कठिन समस्या थी। आत्मा धर्म की ओर थी, हृदय पति की ओर। न धर्म को छोड़ सकती थी; न पति को। उसके घर के सभी आदमी मूर्तिपूजक थे। इस नये सम्प्रदाय से सारे नगर में हलचल मची हुई थी। जैनब सबसे अपनी लगन को छिपाती, यहाँ तक कि पति से भी न कह सकती थी। वे धार्मिक सहिष्णुता के दिन न थे, बात-बात पर खून की नदी बह जाती थी, खानदान-के -खानदान मिट जाते थे। उन दिनों अरब की वीरता पारस्परिक कलहों में प्रकट होती थी। राजनैतिक संगठन का जमाना न था। खून का बदला खून, धन-हानि का बदला खून, अपमान का बदला खून- मानव-रक्त ही से सभी झगडों का निपटारा होता था। ऐसी अवस्था में अपने धर्मानुराग को प्रकट करना अबुलआास के शक्तिशाली परिवार और मुहम्मद तथा इनके इने-गिने अनुयायियों में देवासुरों का संग्राम छेड़ना था। उधर प्रेम का बन्धन पैरो को जकड़े हुए था। नये धर्म में दीक्षित होना अपने प्राणप्रिय पति से सदा के लिए बिछुड जाना था। कुरैश-जाति के ऐसे लोग मिश्रित विवाहों को परिवार के लिए कलंक समझते थे। माया और धर्म की दुविधा में पड़ी हुई जैनब कुढ़ती रहती थी।

धर्म का अनुराग एक दुर्बल वस्तु हैं; किन्तु जब उसका वेग होता है; तो हृदय के रोके नहीं रुकता। दोपहर का समय था, धूप इतनी तेज थी कि उसकी ओर ताकते आँखों से चिनगारियाँ निकलती थी। हजरत मुहम्मद चिन्ता में डूबे हुए बैठे हैं। निराशा चारों ओर अन्धकार के रूप में दिखायी देती थी। खुजैदा भी सिर झुकाये पास ही बैठी हई एक फटा कुरता सी रही थी। धन-सम्पत्ति सब कुछ इस लगन की भेंट हो चुकी थी। शत्रुओं का दुराग्रह दिनोंदिन बढ़ता जाता था। उसके मतानुयायियों को भाँति-भाँति की यन्त्रणाएं दी जा रही थी। स्वयं हजरत का घर से निकलना मुश्किल था। यह खौफ होता था कि कहीं लोग उनपर ईट- पत्थर न फेंकने लगें। खबर आती थी, आज फलाँ मुस्लिम का घर लुट गया, आज फलाँ को लोगों ने आहत किया। हजरत ये खबरे सुन कर विकल हो जाते थे और बार-बार खुदा से धैर्य और क्षमा की याचना करते थे।

हजरत ने फरमाया- मुझे ये लोग अब यहाँ न रहने देंगे। मैं खुद सब कुछ झेल सकता हूँ, लेकिन अपने दोस्तों की तकलीफें नहीं देखी जाती।

खुजैदा- हमारे चले जाने से इन बेचारों की और भी कोई शरण न रहेगी। अभी कम-से-कम तुम्हारे पास आकर रो तो लेते हैं। मुसीबत में रोने का सहारा ही बहुत होता हैं।

हजरत- तो मैं अकेले थोडे ही जाना चाहता हूँ । मैं सब दोस्तों को साथ लेकर जाने का इरादा रखता हूँ । अभी हम लोग यहाँ बिखरे हुए हैं; कोई किसी की मदद को नहीं पहुँच सकता। हम सब एक ही जगह एक कुटुम्ब की तरह रहेंगे, तो किसी को हमारे ऊपर हमला करने का साहस न होगा। हम अपनी मिली हुई शक्ति से बालू को ढेर तो हो ही सकते हैं, जिसपर चढने का किसी को हिम्मत न होगी।

सहजा जैनब घर में दाखिल हई। उसके साथ न कोई आदमी था, न आदमजात। मालूम होता था, कहीं से भागी चली आ रही हैं। खुजैदा ने उसे गले लगाकर पूछा- क्या हुआ जैनब, खैरियत तो हैं?

जैनब ने अपने अन्तर-संग्राम की कथा कह सुनायी और पिता से दीक्षा की याचना की।

हजरत मुहम्मद आँखों में आँसू भरकर बोले- बेटी, मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की और कोई बात नहीं हो सकती; लेकिन जानता हूँ, तुम्हारा क्या हाल होगा।

जैनब- या हजरत! खुदा की राह में सब कुछ त्याग देने का निश्चय कर लिया हैं। दुनिया के लिए अपना नजात को नहीं खोना चाहती।

हजरत- जैनब, खुदा की राहों में काँटे हैं।

जैनब- अब्बाजान, लगन को काँटों की परवा नहीं होती!

हजरत- ससुराल से नाता टूट जायेगा।

जैनब- खुदा से नाता जुड़ जायेगा?

हजरत- और अबुलआस?

जैनब की आँखों में आँसू डबडबा आये। क्षीण स्वर में बोली- अब्बाजान, उन्होंने इतने दिनों मुझे बाँध रखा था, नहीं तो मैं कब की आपकी शरण आ चुकी होती। मैं जानती हूँ उनसे जुदा होकर मैं जिन्दा न रहूँगी और शायद उनसे भी मेरा वियोग न सहा जाय; पर मुझे विश्वास हैं कि वह किसी-न-किसी दिन खुदा पर ईमान लायेंगे और फिर मुझे उनकी सेवा का अवसर मिलेगा।

हजरत- बेटी, अबुलआस ईमानदार हैं, दयाशील हैं, सदवक्ता हैं, किन्तु अहंकार शायद अन्त तक उसे ईश्वर से विमुख रखे। वह तकदीर को नहीं मानता। रूह को नहीं मानता, स्वर्ग और नरक को नहीं मानता। कहता हैं, खुदा की जरूरत ही क्या हैं? हम उससे क्यों डरें? विवेक और बुद्धि की हिदायत हमारे लिए काफी हैं। ऐसा आदमी खुदा पर ईमान नहीं ला सकता। कुफ्र को तोड़ना आसान हैं; लेकिन वह जब दर्शन की सूरत पकड़ लेता हैं, तो उस पर किसी का जोर नहीं चलता।

जैनब ने ढृढ होकर कहा- या हजरत, आत्मा का उपकार जिसमें हो, मुझे वही चाहिए। मैं किसी इन्सान को अपने और खुदा के बीच में न आने दूँगी।

हजरत ने कहा- खुदा तुझ पर दया करे बेटी! तेरी बातों ने दिल खुश कर दिया।

यह कहकर उन्होंने जैनब को गले लगा लिया।

दूसरे दिन जैनब को यथाविधि आम मस्जिद में कलमा पढ़ाया गया।

कुरेशियों ने जब यह खबर पायी, तो जल उठे। गजब खुदा का। इस्लाम ने तो बड़े-बड़े घरों पर भी हाथ साफ करना शुरू किया ! अगर यही हाल रहा, तो धीरे- धीरे उसकी शक्ति इतनी बढ़ जायगी कि हमारे लिए उसका सामना करना कठिन हो जायगा। अबुलआस के घर पर एक बड़ी मजलिस हुई।

अबूसिफियान ने जो इस्लाम के दुश्मनों में सबसे प्रतिष्ठित मनुष्य था, अबुलआस से कहा- तुम्हें अपनी बीवी को तलाक देना पड़ेगा।

अबुलआस ने कहा- हरगिज नहीं।

अबूसिफियन- तो क्या तुम भी मुसलमान हो जाओगे।

अबुलआस – हरगिज नहीं।

अबूसिफियन – तो उसे मुहम्मद ही के घर रहना पड़ेगा।

अबुलआस – हरगिज नहीं। आप लोग मुझे आज्ञा दीजिये कि उसे अपने घर लाऊँ।

अबूसिफियन – हरगिज नहीं।

अबुलआस – क्या यह नहीं हो सकता कि वह मेरे घर में रहकर अपने इच्छानुसार खुदा की बन्दगी करे?

अबूसिफियन – हरगिज नहीं।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

अबुलआस – मेरी कौम मेरे साथ इतनी सहानुभूति भी न करेगी? तो फिर आप लोग मुझे समाज से पतित कर दीजिए। मुझे पतित होना मंजूर हैं। आप लोग और जो सजा चाहें दे, वह सब मंजूर हैं। मगर मैं अपनी बीवी को नहीं छोड़ सकता। मैं किसी की धार्मिक स्वाधीनता का अपहरण नहीं करना चाहता और वह भी अपनी बीवी की।

अबूसिफियन – कुरैश में क्या और लड़कियाँ नहीं हैं?

अबुलआस – जैनब की-सी कोई नहीं।

अबूसिफियन – हम ऐसी लड़कियाँ बता सकते हैं, जो चाँद को लज्जित कर दें।

अबुलआस – मैं सौन्दर्य का उपासक नहीं।

अबूसिफियन – ऐसी लड़कियाँ दे सकता हूँ, जो गृह-प्रबन्ध में निपुण हों, बातें ऐसी करें कि मुँह से फूल झंडे, खाना ऐसा पकायें कि बीमार को भी रुचिकर हो, सीने-पिरोने में इतनी कुशल कि पुराने कपड़े को नया कर दें।

अबुलआस – मैं इन गुणों में से किसी गुण का भी उपासक नहीं। मैं प्रेम और केवल प्रेम का उपासक हूँ और मुझे विश्वास हैं कि जैनब का-सा प्रेम मुझे सारी दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता।

अबूसिफियन – प्रेम होता, तो तुम्हें छोड़कर यह बेवफाई करती?

अबुलआस – मैं नहीं चाहता कि मेरे लिए वह अपने आत्म-स्वातंत्र्य त्याग करे।

अबूसिफियन – इसका आशय यह है कि तुम समाज में समाज के विरोधी बनकर रहना चाहते हो। आँखो की कसम! समाज तुम्हें अपने ऊपर यह अत्याचार न करने देना! मैं कहे देता हूँ इसके लिए तुम रोओगे।

अबूसिफियान और उनकी टोली के लोग तो धमकियाँ देकर उधर गये, इधर अबुलआस ने लकड़ी सँभाली और हजरत मुहम्मद के घर जा पहुँचे। शाम हो गयी थी। हजरत दरवाजे पर अपनी मुरीदों के साथ मगरिब की नमाज पढ़ रहे थे। अब अबुलआस ने उन्हें सलाम किया औऱ जब तक नमाज होती रही, गौर से देखते रहे। जमाअत का एक साथ उठना-बैठना और झुकना देखकर उनके मन में श्रद्धा की तरंगें उठने लगी। उन्हें मालूम न होता था कि मैं क्या कर रहा हूँ ; पर अज्ञात भाव से वह जमाअत के साथ बैठते, झुकते और खड़े हो जाते थे। वहाँ एक-एक परमाणु इस समय ईश्वरमय हो रहा था। एक क्षण के लिए अबुलआस भी उसी अन्तर-प्रवाह में बह गये।

जब नमाज खतम हुई और लोग सिधारे, अबुलआस में हजरत के पास जाकर सलाम किया और कहा- मैं जैनब को विदा कराने आया हूँ ।

हजरत ने विस्मित होकर पूछा- तुम्हें मालूम नहीं कि वह खुदा और उसके रसूल पर ईमान ला चुकी हैं?

अबुलआस – जी हाँ, मालूम हैं।

हजरत- इस्लाम ऐसे सम्बन्धों का निषेध करता हैं, यह भी तुम्हें मालूम हैं?

अबुलआस – क्या इसका मतलब यह हैं कि जैनब ने मुझे तलाक दे दिया?

हजरत- अगर यही मतलब हो तो!

अबुलआस – तो कुछ नही। जैनब का अपने खुदा और रसूल की बन्दगी मुबारक हो। मैं एक बार उससे मिलकर घर चला जाऊँगा और फिर आपको अपनी सूरत न दिखाऊँगा; लेकिन उस दशा में अगर कुरैशी-जाति आपसे लड़ने को तैयार हो जाय, तो उसका इलजाम मुझ पर न होगा।

हजरत- कुरैश से इस वक़्त नहीं लडना चाहता।

अबुलआस – तो जैनब को मेरे साथ जाने दीजिए। उस हालत में कुरैश के क्रोध का भाजन मैं होऊँगा। आप और आपके मुरीदों पर कोई आफत नहीं होगी।

हजरत- तुम दबाव में आकर जैनब को खुदा की तरफ से फेरने का यत्न तो न करोगे?

अबुलआस – मैं किसी के धर्म में बाधा डालना सर्वथा अमानुषीय समझता हूँ ।

हजरत- तुम्हें लोग जैनब को तलाक देने पर तो मजबूर न करेंगे?

अबुलआस – मैं जैनब को तलाक देने के पहले जिन्दगी को तलाक दे दूँगा।

हजरत को अबुलआस की बातो से इतमीनान हो गया। वह आस की इज्जत करते थे। आस को हरम में जैनब से मिलने का मौका दिया।

अबुलआस ने पूछा- जैनब, मैं तुम्हें अपने साथ ले चलने आया हूँ ; धर्म के बदलने से कहीं मन तो नही बदल गया?

जैनब रोती हुई उनके पैरो पर गिर पड़ी और बोली- या मेरे आका! धर्म बार-बार मिलता हैं, हृदय केवल एक बार। मैं आपकी हूँ, चाहे जहाँ रहूँ, लेकिन समाज मुझे आपकी सेवा में रहने देगा?

अबुलआस - यदि समाज न रहने देगा, तो मै समाज से निकल जाऊँगा। दुनिया में आराम से जीवन व्यतीत करने के लिए बहुत से स्थान हैं। रहा मैं, तुम जानती हो, मैं धार्मिक स्वाधीनता का पक्षपाती हूँ । मैं तुम्हारे धार्मिक विषयों में कभी हस्तक्षेप न करूँगा।

जैनब चली, जो खुदैजा ने रोते हुए उसे यमन के लालों का एक बहुमूल्य हार विदाई में दिया।

इस्लाम पर विधर्मियों के अत्याचार दिनोंदिन बढ़ने लगे। अवहेलना की दशा से निकलकर उसने भय के क्षेत्र में प्रवेश किया । शत्रुओं ने उसे समूल नाश करने की आयोजना करनी शुरू की। दूर-दूर के कबीलों से मदद माँगी जाने लगी। इस्लाम में इतनी शक्ति न थी कि शस्त्र-बल से विरोधियों को दबा सके। हजरत मुहम्मद ने मक्का छोड़कर कहीं और चले जाने का निश्चिय किया। मक्के में मुस्लिमों के घर सारे शहर में बिखरे हुए थे। एक की मदद को दूसरे मुसलमान न पहुँच सकते थे! हजरत किसी ऐसा जगह आबाद होना चाहते थे, जहाँ सब मिले हुए रहें और शत्रुओं को संगठित शक्ति का प्रतिकार कर सकें। भक्तजन उनके साथ हुए और एक दिन मुस्लिमों ने मक्के से मदीने को प्रस्थान किया। यही हिजरत थी।

मदीने पहुँचकर मुसलमानों में एक नयी शक्ति, नयी स्फूर्ति का उदय हुआ। वे निश्शंक होकर अपने धर्म का पालन करने लगे। अब पड़ोसियों से दबने और छिपने की जरूरत न थी।

आत्मविश्वास बढा। इधर भी विधर्मियों का स्वागत करने की तैयारियाँ होने लगीं। दोनो पक्ष सेना इकट्ठी करने लगे। विधर्मियों ने संकल्प किया कि संसार से इस्लाम का नाम ही मिटा देंगे। इस्लाम ने भी उनके दाँत खट्टे करने का निश्चय किया।

एक दिन अबुलआस ने आकर पत्नी से कहा- जैनब, हमारे नेताओं ने इस्लाम पर जिहाद करने की घोषणा कर दी हैं।

जैनब ने घबरा कर कहा- अब तो वे लोग यहाँ से चले गये! फिर इस जिहाद की क्या जरूरत?

अबुलआस – मक्के चले गये, अरब से तो नहीं चले गये! उन लोगों की ज्यातियाँ बढ़ती जा रही हैं। जिहाद के सिवा और कोई उपाय नहीं हैं! जिहाद मे मेरा शरीक होना जरूरी हैं।

जैनब- अगर तुम्हारा दिल तुम्हें मजबूर करता हैं, तो शौक से जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी।

अबुलआस - मेरे साथ?

जैनब- हाँ, वहाँ आहत मुसलमानो की सेवा-सुश्रुषा करूँगी।

अबुलआस - शौक से चलो।

घोर संग्राम हुआ। दोनो दलवालों ने खूब दिल के अरमान निकाले। भाई-भाई से, बाप बेटे से लड़ा। सिद्ध हो गया कि मजहब का बन्धन रक्त और वीर्य के बन्धन से सुढृढ हैं।

दोनो दलवाले वीर थे! अन्तर यह था कि मुसलमानों में नया धर्मानुराग था, मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग की आशा थी। दिलों में वह अटल विश्वास था, जो नवजात संप्रदायों का लक्षण हैं। विधर्मियों में ‘बलिदान’ का यह भाव लुप्त था।

कई दिनों तक लड़ाई होती रही। मुसलमानो की संख्या बहुत कम थी, पर अन्त मे उनके धर्मोत्साह मे मैदान मार लिया। विधर्मियों में कितने मारे गये, कितने ही घायल हुए और कितने ही कैद कर लिये गये। अबुलआस भी इन्हीं कैदियों में थे।

जैनब ने ज्योंही सुना कि अबुलआास पकड़ लिये गये, उसने तुरन्त हजरत मुहम्मद की सेवा में मुक्ति-धन भेजा। यह वही बहुमूल्य हार था, जो खुजैदा ने उसे दिया था। जैनब अपने पूज्य पिता को उस धर्म-संकट में एक क्षण के लिये भी न डालना चाहती थी, जो मुक्ति-धन के अभाव की दिशा में उनपर पड़ता, किन्तु अबुलआस को इच्छा होते हुए भी पक्षपात भय से न छोड़ सके।

सब कैदी हजरत के सामने पेश किये गये। कितने ही तो ईमान लाये, कितनों के घरों से मुक्ति-धन आ चुका था, वे मुक्त कर दिये गये। हजरत ने अबुलआस को देखा, सबसे अलग सिर झुकाये खड़े हैं। मुख पर लज्जा का भाव झलक रहा हैं।

हजरत ने कहा- अबुलआस, खुदा ने इस्माल की हिदायत की, वरना उसे यह विजय न प्राप्त होती।

अबुलआस- अगर आपके कथनानुसार संसार में एक खुदा हैं, तो वह अपने एक बन्दे को दूसरे का गला काटने में मदद नहीं दे सकता। मुसलमानों की विजय उनके रणोंत्साह से हुई।

एक सहाबी ने पूछा- तुम्हारा फिदिया (मुक्ति धन) कहाँ हैं?

हजरत ने फरमाया- अबुलआास का हार निहायत बेशकीमती हैं, इनके बारे में आप क्या फैसला करते हैं? आपको मालूम हैं, यह मेरे दामाद हैं?

अबूबकर- आज तुम्हारे घर में जैनब हैं, जिन पर ऐसे सैकड़ो हार कुर्बान किये जा सकते हैं।

अबुलआस- तो आपका मतलब यह है कि जैनब मेरी फिदिया हो?

जैद- बेशक हमारा मतलब हैं।

अबुलआस- उससे तो कहीं बेहतर था कि आप मुझे कत्ल कर देते।

अबूबकर- हम रसूल के दामाद का कत्ल नही करेंगे, चाहे वह विधर्मी ही क्यों न हो। तुम्हारी यहाँ उतनी ही खातिर होगी, जितनी हम कर सकते हैं।

अबुलआस के सामने विषम समस्या थी। इधर यहाँ की मेहमानी में अपमान था, उधर जैनब के वियोग की दारुण वेदना था। उन्होंने निश्चय किया कि यह वेदना सहुँगा, किन्तु अपमान न सहूँगा। प्रेम, आत्मा की गौरव पर बलिदान कर दूँगा। बोले- मुझे आपका फैसला मंजूर हैं। जैनब मेरी फिदिया होगी।

मदीने में रसूल की बेटी की जितनी इज्जत होनी चाहिए, उतनी होती थी। सुख था, ऐश्वर्य था, धर्म था; पर प्रेम न था। अबुलआस के वियोग में रोया करती थी।

तीन वर्ष तीन युगों की भाँति बीते। अबुलआस के दर्शन न हुए।

उधर अबुलआस पर उसकी बिरादरी का दबाव पड़ रहा था कि विवाह कर लो; पर जैनब की मधुर स्मृतियाँ ही उसके प्रणय वंचित हृदय को तसकीन देने मे काफी थी, वह उत्तरोत्तर उत्साह के साथ अपने व्यवसाय में तल्लीन हो गया। महीनों घर न आता। धनोपार्जन ही अब उसके जीवन का मुख्य आधार था! लोगों को आश्चर्य होता था कि अब यह धन के पीछे क्यों प्राण दे रहा हैं। निराशा और चिन्ता बहुधा शराब के नशे से शान्त होती हैं; प्रेम उन्माद से। अबुलआस को धनोन्माद हो गया था। धन के आवरण में ढका हुआ यह प्रेम का नैराश्य था; माया के परदे में छिपा हुआ प्रेम-वैराग्य।

एक बार वह मक्के से माल लादकर ईराक की तरफ चला। काफिले में और भी कितने ही सौदागर थे। रक्षकों का एक दल भी साथ था। मुसलमानों के कई काफिले विधर्मियों के हाथों लुट चुके थे। उन्हें ज्योहि इस काफिले की खबर मिली, जैद ने कुछ चुने हुए आदमियों के साथ उनपर धावा कर दिया। काफिले के रक्षक लड़े और मारे गये। काफिले वाले भाग निकले। अतुल धन मुसलमानो के हाथ लगा। अबुलआस फिर कैद हो गये।

दूसरे दिन हजरत मुहम्मद के सामने अबुलआस की पेशी हुई। हजरत ने एक बार उसकी करुण-दृष्टि डाली और सिर झुका लिया। साहिबियों ने कहा- या हजरत, अबुलआस के बारे में आप क्या फैसला करते हैं?

मुहम्मद – इसके बारे में फैसला करना तुम्हारा काम हैं। यह मेरा दामाद हैं। सम्भव हैं कि मैं पक्षपात का दोषी हो जाऊँ!

यह कहकर वह मकान में चले गये। जैनब रोकर पैरो पर गिर पड़ी और बोली – अब्बाजान, आपने औरों को आजाद कर दिया। अबूलआस क्या उन सबसे गया बीता हैं?

हजरत- नहीं जैनब, न्याय के पद पर बैठने वाले आदमी को पक्षपात और द्वेष से मुक्त होना चाहिए। यद्यपि यह नीति मैने ही बनायी हैं। तो भी अब उसका स्वामी नहीं, दास हूँ। मुझे अबुलआस से प्रेम हैं। मैं न्याय को प्रेमकलंकित नहीं कर सकता।

सहाबी हजरत की इस नीति-भक्त पर मुग्ध हो गये। अबुलआस को सब माल- असबाब के साथ मुक्त कर दिया।

अबुलआस पर हजरत की न्याय-परायणता का गहरा असर पड़ा। मक्के आकर उन्होंने अपना हिसाब-किताब साफ किया, लोगो का माल लौटाया, कर्ज अदा किया और घर-बार त्याग तक हजरत मुहम्मद की सेवा में पहुँच गये। जैनब की मुराद पूरी हुई।