ओशो – मौन का महत्व

ओशो – मौन का महत्व

 मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है।

मौन सबसे अच्छा उत्तर है, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके शब्दों को महत्व नहीं देता - "भागवत गीता"

मौन सबसे अच्छा उत्तर है किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके शब्दों का महत्व नहीं देता  भागवत गीता

ओशो – कुछ मित्र जो तीनों दिन मौन रख सकें, बहुत अच्छा है, वे बिलकुल ही चुप हो जाएं। और कोई भी चुप होता हो, मौन रखता हो, तो दूसरे लोग उसे बाधा न दें, सहयोगी बनें। जितने लोग मौन रहें, उतना अच्छा। कोई तीन दिन पूरा मौन रखे, सबसे बेहतर। उससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा। अगर इतना न कर सकते हों तो कम से कम बोलें—इतना कम, जितना जरूरी हो— टेलीग्रैफिक। जैसे तारघर में टेलीग्राम करने जाते हैं तो देख लेते हैं कि अब दस अक्षर से ज्यादा नहीं। अब तो आठ से भी ज्यादा नहीं। तो एक दो अक्षर और काट देते हैं, आठ पर बिठा देते हैं। तो टेलीग्रैफिक! खयाल रखें कि एक—एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसलिए एक—एक शब्द बहुत महंगा है; सच में महंगा है। इसलिए कम से कम शब्द का उपयोग करें; जो बिलकुल मौन न रह सकें वे कम से कम शब्द का उपयोग करें।

साथ ही इंद्रियों का भी कम से कम उपयोग करें। जैसे आंख का कम उपयोग करें, नीचे देखें। सागर को देखें, आकाश को देखें, लोगों को कम देखें। क्योंकि हमारे मन में सारे संबंध, एसोसिएशस लोगों के चेहरों से होते हैं—वृक्षों, बादलों, समुद्रों से नहीं। वहां देखें, वहां से कोई विचार नहीं उठता। लोगों के चेहरे तत्काल विचार उठाना शुरू कर देते हैं। नीचे देखें, चार फीट पर नजर रखें— चलते, घूमते, फिरते। आधी आंख खुली रहे, नाक का अगला हिस्सा दिखाई पड़े, इतना देखें। और दूसरों को भी सहयोग दें कि लोग कम देखें, कम सुनें। रेडियो, ट्रांजिस्टर सब बंद करके रख दें, उनका कोई उपयोग न करें। अखबार बिलकुल कैंपस में मत आने दें।

जितना ज्यादा से ज्यादा इंद्रियों को विश्राम दें, उतना शुभ है, उतनी शक्ति इकट्ठी होगी; और उतनी शक्ति ध्यान में लगाई जा सकेगी। अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं। हम करीब—करीब एग्झास्ट हुए लोग हैं, जो चुक गए हैं बिलकुल, चली हुई कारतूस जैसे हो गए हैं। कुछ बचता नहीं, चौबीस घंटे में सब खर्च कर डालते हैं। रात भर में सोकर थोड़ा—बहुत बचता है, तो सुबह उठकर ही अखबार पढना, रेडियो और शुरू हो गया उसे खर्च करना। कंजरवेशन ऑफ एनर्जी का हमें कोई खयाल ही नहीं है कि कितनी शक्ति बचाई जा सकती है। और ध्यान में बड़ी शक्ति लगानी पड़ेगी। अगर आप बचाएंगे नहीं तो आप थक जाएंगे।

कबीर ने कहा है:-

कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।

अर्थात, 

अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई है। 

जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है - रवींद्रनाथ टैगोर

चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता और वह मौन रहती है - फ्रैंकलीन

एकांत आत्मा का सर्वोत्तम मित्र हैं - बिनोवा भावे

मौन की भाषा वाणी की भाषा की अपेक्षा अधिक बलवती होती है - अथर्ववेद

मौन की भाषा वाणी की भाषा की अपेक्षा अधिक बलवती होती है  अथर्ववेद

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी (State Bird of Puducherry) || एशियाई कोयल (Eudynamys scolopaceus)/ Asian Koel

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी

शायद ही कोई ऐसा भी व्यक्ति होगा जिसे कोयल की आवाज लुभाती नहीं होगी। बच्चे तो कोयल की आवाज के पीछे कू कू की आवाज भी निकालते हैं। कोयल के बारे में इस ब्लॉग में पहले भी पोस्ट डाला जा चुका है। आज इस पक्षी को पुडुचेरी के राष्ट्रीय पक्षी के रूप में जानेंगे। तो चलिए आज चर्चा करते हैं, पुदुच्चेरी के राजकीय पक्षी के बारे में, जिसका नाम है- "एशियाई कोयल (Asian Koel)"

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी (State Bird of Puducherry) || एशियाई कोयल (Eudynamys scolopaceus)/ Asian Koel

कोयल (Cuckoo) का वैज्ञानिक नाम "यूडाइनेमिस स्कोलोपेकस (eudainemis scolopecus)" है। यह सर्वाहारी जीवों की श्रेणी वाला पक्षी है। बसंत ऋतू के समय कोयल कूकती है। इस कोयल की एक बहुत ही विचित्र विशेषता है कि यह अपना अंडा कौए के घोसले में देती है, और खुद का घोसला कभी नहीं बनाती।

  "कूक कूक कर बोले कोयल
                         मीठी मीठी इसकी तान,
  सबसे मीठा मीठा बोलो,
                 सदा मिलेगा यश, सम्मान "

कोयल इस बात का उदाहरण है कि कोई रूप से कैसा भी हो वाणी का मधुर है, तो किसी को भी आकर्षित कर सकता है। अपनी मधुर वाणी से किसी का भी मन मोह लेता है।

कोयल प्रकृति की बेटियां हैं। हर साल वसंत ऋतु में पूरी तन्मयता, ईमानदारी और समयबद्धता के साथ अपनी मीठी तान छेड़कर सम्पूर्ण वातावरण को और भी अधिक मोहक और हसीन बनाती हैं। हालांकि प्रकृति ने कोयल को सुरीली आवाज से नवाजा है, लेकिन इसके बावजूद यह पक्षी स्वभाव से बेहद चालाक पक्षी की श्रेणी में आने वाला जीव है। 

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी (State Bird of Puducherry) || एशियाई कोयल (Eudynamys scolopaceus)/ Asian Koel

कोयल की मधुर आवाज़ के कारण कोएल पक्षी को भारत में नाइटिंगेल भी कहा जाता है। एशियाई कोयल एक बड़ी-लंबी पूंछ वाली कोयल है, जिसकी लंबाई पैंतालीस सेंटीमीटर है। नर एक हरे हरे बिल, अमीर लाल आँखें और भूरे रंग के पैर और पैरों के साथ काले रंग का नीला है। 

मादा के शरीर का ऊपरी हिस्सा भूरे रंग का होता है और निचले हिस्से सफेद रंग के होते हैं। मादाओं में एक जैतून या हरी चोंच और लाल आँखें होती हैं। यह एक ब्रूड परजीवी है, जो विभिन्न प्रकार के पक्षियों के घोंसले में अपना एकल अंडा देता है।

एशियाई कोयल सर्वाहारी है, जो विभिन्न प्रकार के कीड़े, कैटरपिलर, अंडे और छोटे कशेरुक का सेवन करता है। वयस्क कोयल बड़े पैमाने पर फलों का सेवन करता है। यह कभी-कभी छोटे पक्षियों के अंडे का सेवन भी करता है।

English Translate

State Bird of Puducherry

There would hardly be any person who would not be attracted by the sound of the cuckoo. Children even make coo-coo sounds after the sound of the cuckoo. A post about Cuckoo has already been posted in this blog. Today this bird will be known as the national bird of Puducherry. So let us discuss today about the state bird of Puducherry, whose name is- "Asian Koel".

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी (State Bird of Puducherry) || एशियाई कोयल (Eudynamys scolopaceus)/ Asian Koel

The scientific name of Cuckoo is "Eudainemis scolopecus". This is a bird belonging to the category of omnivores. The cuckoo croaks during the spring season. A very strange feature of this cuckoo is that it lays its egg in the crow's nest, and never makes its own nest.

  The cuckoo is an example of the fact that no matter what one's appearance is, if one's speech is sweet, one can attract anyone. He captivates anyone's heart with his sweet voice.

Cuckoos are daughters of nature. Every year in the spring season, she makes the entire atmosphere even more attractive and beautiful by playing her sweet tune with full devotion, honesty and punctuality. Although nature has blessed the cuckoo with a melodious voice, yet this bird is a very clever bird by nature.

पुदुच्चेरी का राज्य पक्षी (State Bird of Puducherry) || एशियाई कोयल (Eudynamys scolopaceus)/ Asian Koel

Due to the melodious voice of the cuckoo, the Koel bird is also called Nightingale in India. The Asian cuckoo is a large long-tailed cuckoo, reaching forty-five centimeters in length. The male is blackish blue with a pale green bill, rich red eyes and brown legs and feet.

The upper part of the female's body is brown and the lower parts are white. Females have an olive or green bill and red eyes. It is a brood parasite, laying its single egg in the nest of a variety of birds.

The Asian cuckoo is omnivorous, consuming a variety of insects, caterpillars, eggs, and small vertebrates. The adult cuckoo consumes fruits extensively. It also occasionally consumes eggs of small birds.

भारत के सभी राज्यों के राजकीय पक्षियों की सूची |(List of State Birds of India)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय- 14 (05 - 18)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग 

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

सत्‌, रज, तम- तीनों गुणों का विषय

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्‌ || 14.05 ||

भावार्थ : 

हे महाबाहु अर्जुन! सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण यह तीनों गुण भौतिक प्रकृति से ही उत्पन्न होते हैं, प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुणों के कारण ही अविनाशी जीवात्मा शरीर में बँध जाती हैं। 

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्‌ ।
सुखसङ्‍गेन बध्नाति ज्ञानसङ्‍गेन चानघ || 14.06 ||

भावार्थ : 

हे निष्पाप अर्जुन! सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण पाप-कर्मों से जीव को मुक्त करके आत्मा को प्रकाशित करने वाला होता है, जिससे जीव सुख और ज्ञान के अहंकार में बँध जाता है। 

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्‍गसमुद्भवम्‌ ।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्‍गेन देहिनम्‌ || 14.07 ||

भावार्थ : 

हे कुन्तीपुत्र! रजोगुण को कामनाओं और लोभ के कारण उत्पन्न हुआ समझ, जिसके कारण शरीरधारी जीव सकाम-कर्मों (फल की आसक्ति) में बँध जाता है।

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्‌ ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत || 14.08 ||

भावार्थ : 

हे भरतवंशी! तमोगुण को शरीर के प्रति मोह के कारण अज्ञान से उत्पन्न हुआ समझ, जिसके कारण जीव प्रमाद (पागलपन में व्यर्थ के कार्य करने की प्रवृत्ति), आलस्य (आज के कार्य को कल पर टालने की प्रवृत्ति) और निद्रा (अचेत अवस्था में न करने योग्य कार्य करने की प्रवृत्ति) द्वारा बँध जाता है।

सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत || 14.09 ||

भावार्थ : 

हे अर्जुन! सतोगुण मनुष्य को सुख में बाँधता है, रजोगुण मनुष्य को सकाम कर्म में बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँक कर प्रमाद में बाँधता है।

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत ।
रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा || 14.10 ||

भावार्थ : 

हे भरतवंशी अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण के घटने पर सतोगुण बढ़ता है, सतोगुण और रजोगुण के घटने पर तमोगुण बढ़ता है, इसी प्रकार तमोगुण और सतोगुण के घटने पर तमोगुण बढ़ता है।

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत || 14.11 ||

भावार्थ : 

जिस समय इस के शरीर सभी नौ द्वारों (दो आँखे, दो कान, दो नथुने, मुख, गुदा और उपस्थ) में ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न होता है, उस समय सतोगुण विशेष बृद्धि को प्राप्त होता है। 

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ || 14.12 ||

भावार्थ : 

हे भरतवंशीयों में श्रेष्ठ! जब रजोगुण विशेष बृद्धि को प्राप्त होता है तब लोभ के उत्पन्न होने कारण फल की इच्छा से कार्यों को करने की प्रवृत्ति और मन की चंचलता के कारण विषय-भोगों को भोगने की अनियन्त्रित इच्छा बढ़ने लगती है। 

अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन || 14.13 ||

भावार्थ : 

हे कुरुवंशी अर्जुन! जब तमोगुण विशेष बृद्धि को प्राप्त होता है तब अज्ञान रूपी अन्धकार, कर्तव्य-कर्मों को न करने की प्रवृत्ति, पागलपन की अवस्था और मोह के कारण न करने योग्य कार्य करने की प्रवृत्ति बढने लगती हैं।

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्‌ ।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते || 14.14 ||

भावार्थ : 

जब कोई मनुष्य सतोगुण की वृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वह उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल स्वर्ग लोकों को प्राप्त होता है। 

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्‍गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते || 14.15 ||

भावार्थ : 

जब कोई मनुष्य रजोगुण की बृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त होता है तब वह सकाम कर्म करने वाले मनुष्यों में जन्म लेता है और उसी प्रकार तमोगुण की बृद्धि होने पर मृत्यु को प्राप्त मनुष्य पशु-पक्षियों आदि निम्न योनियों में जन्म लेता है। 

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्‌ ।
रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌ || 14.16 ||

भावार्थ : 

सतोगुण में किये गये कर्म का फल सुख और ज्ञान युक्त निर्मल फल कहा गया है, रजोगुण में किये गये कर्म का फल दुःख कहा गया है और तमोगुण में किये गये कर्म का फल अज्ञान कहा गया है।

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च || 14.17 ||

भावार्थ : 

सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से निश्चित रूप से लोभ ही उत्पन्न होता है और तमोगुण से निश्चित रूप से प्रमाद, मोह, अज्ञान ही उत्पन्न होता हैं। 

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः || 14.18 ||

भावार्थ : सतोगुण में स्थित जीव स्वर्ग के उच्च लोकों को जाता हैं, रजोगुण में स्थित जीव मध्य में पृथ्वी-लोक में ही रह जाते हैं और तमोगुण में स्थित जीव पशु आदि नीच योनियों में नरक को जाते हैं। 

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

चूहे तो आप सभी ने बहुत देखे होंगे, परंतु आज यहां जिस चूहे की बात हो होने जा रही है, वह शायद ही किसी ने देखा होगा। तो चलिए अजब गजब जीव जंतुओं की इस दुनिया में चलते हैं नेकेड मोल रैट की तरफ और जानते हैं इस अजीब से दिखने वाले चूहे के बारे में। 

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

नग्न तिल चूहा, (हेटरोसेफालस ग्लैबर), कृंतक परिवार बाथयार्चिडे का बिल खोदने वाला सदस्य, जिसका नाम इसकी झुर्रीदार गुलाबी त्वचा और बाल रहित शारीरिक संरचना को देखते हुए रखा गया है। उनके चौड़े सिर में मजबूत, मांसल जबड़े होते हैं जो खुदाई के लिए उपयोग किए जाने वाले चार कृंतक दांतों को सहारा देते हैं। वे अपने लंबे जीवन काल, कम कैंसर दर और औपनिवेशिक आदत के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके नाम से पता चलता है के विपरीत, नग्न तिल चूहों की त्वचा पर लगभग 100 बारीक बाल होते हैं जो मूंछ की तरह काम करते हैं और उन्हें अपने परिवेश को समझने में मदद करते हैं।

नग्न तिल-चूहा(Naked Mole Rat)( हेटेरोसेफालस ग्लैबर), जिसे रेत पिल्ला के रूप में भी जाना जाता है। नग्न तिल चूहे आमतौर पर 7.5 सेमी (3 इंच) लंबे होते हैं और साधारणतया उनका वजन लगभग 28-42 ग्राम (1-1.5 औंस) होता हैं। उनके शरीर ने कई अनुकूलन विकसित होते हैं जो उन्हें भूमिगत आवास में रहने के अनुकूल बनाते हैं। 

इनकी आंखें छोटी होती हैं, जिससे वे व्यावहारिक रूप से अंधे हो जाते हैं। उनके पास बाहरी कान नहीं होते हैं, और उनके आंतरिक कानों में ऐसी संरचनाओं का अभाव होता है जो कर्णावत प्रवर्धन (एक प्रक्रिया जो मस्तिष्क तक पहुंचने से पहले ध्वनि को बढ़ाती है) की अनुमति देती है, जो खराब सुनवाई में योगदान करती है। अर्थात उनके देखने और सुनने की क्षमता बहुत कम होती है। अतः नग्न तिल चूहे सुरंगों में नेविगेट करने के लिए अपनी अन्य इंद्रियों, विशेष रूप से स्पर्श और गंध पर भरोसा करते हैं। उनके शरीर पर बारीक बाल चोंच में कंपन और वायु धाराओं को महसूस करने के लिए मूंछों के रूप में कार्य करते हैं और उनके छोटे पैर उन्हें सुरंगों में आसानी से नेविगेट करने में मदद करते हैं। 

नग्न तिल चूहे इथियोपिया, केन्या, सोमालिया और जिबूती सहित पूर्वी अफ्रीका के घास वाले और अर्धशुष्क क्षेत्रों में भूमिगत पाए जा सकते हैं। वे सुरंगों के एक व्यापक नेटवर्क द्वारा निर्मित भूमिगत बिलों में रहते हैं जो 2 मीटर (6.5 फीट) तक गहरे और 4 किमी (2.5 मील) लंबे हो सकते हैं। वे अपने बड़े दांतों से गंदगी कुतरकर और इसे असेंबली-लाइन फैशन में सतह पर फैलाकर, लगभग 4 सेमी (1.5 इंच) व्यास वाली ये सुरंगें बनाते हैं। सुरंगें घोंसला बनाने, देखभाल करने, भोजन भंडारण और अन्य कार्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले कक्षों को जोड़ती हैं। 

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

नग्न तिल चूहे शाकाहारी होते हैं, और वे सतह के नीचे उगने वाले पौधों के हिस्सों जैसे जड़ों और कंदों को खाते हैं। यदि एक बड़ा कंद पाया जाता है, तो नग्न तिल चूहे आंतरिक भाग को खा सकते हैं और बाहरी हिस्से को ज्यादातर छोड़ देते हैं, जिससे यह वापस बढ़ सकता है और एक सुसंगत भोजन स्रोत बन सकता है। वे पीने के लिए पानी की तलाश में नहीं भटकते, क्योंकि उनका आहार पर्याप्त नमी प्रदान करता है। वे अपने भोजन से अवशोषित पोषक तत्वों की मात्रा को अधिकतम करने के लिए अपने स्वयं के मल को पुन: उत्पन्न करते हैं।

नग्न तिल चूहे वास्तव में एकमात्र यूकोसियल स्तनधारियों में से एक हैं - अर्थात, वे एक पदानुक्रमित सामाजिक संरचना द्वारा परिभाषित बड़ी कॉलोनियों में रहते हैं जिसमें लगभग सभीसदस्य अपेक्षाकृत कुछ सदस्यों को प्रजनन में मदद करने के लिए सहयोग करते हैं। कालोनियों का नेतृत्व एक मादा नग्न तिल चूहे द्वारा किया जाता है जिसे रानी कहा जाता है, जो प्रजनन करने वाली एकमात्र मादा है। रानी साल में चार या पांच बार संतान पैदा करती है। यह एक बार में लगभग 12 बच्चों को जन्म देती है। यह संख्या काफी परिवर्तनशील है और कभी कभी यह संख्या लगभग 30 तक पहुँच सकती है। 

कॉलोनी में अन्य नग्न चतुर चूहे या तो श्रमिकों या सैनिकों के रूप में कार्य करते हैं। श्रमिक लगभग 7.5 सेमी लंबे और वजन 35 ग्राम (1.25 औंस) होते हैं; वे सुरंग खोदते हैं, भोजन इकट्ठा करते हैं और पिल्लों की देखभाल करते हैं। इसके विपरीत, रानी और कॉलोनी को सांपों और अन्य शिकारियों से बचाने के लिए सैनिक अपने तुलनात्मक रूप से बड़े आकार का उपयोग करते हैं, जिसका वजन लगभग 55 ग्राम (2 औंस) होता है। 

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

ये चूहे असाधारण रूप से लंबा जीवन जी सकते हैं, अनुमानित जीवनकाल 10-30 वर्ष, जो अन्य छोटे कृंतकों की तुलना में बहुत अधिक है। ब्रिटिश गणितज्ञ बेंजामिन गोम्पर्ट्ज़ द्वारा विकसित एक गणितीय समीकरण जिसमें कहा गया है कि उम्र के साथ मरने का जोखिम तेजी से बढ़ता है। जबकि मनुष्यों में मृत्यु का यह जोखिम 30 वर्ष की आयु के बाद हर आठ साल में दोगुना हो जाता है, एक नग्न तिल चूहे के मरने की संभावना जीवन भर स्थिर रहती है। प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने हेटेरोसेफालस ग्लैबर को कम से कम चिंता की प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है।

English Translate 

Naked Mole Rat

All of you must have seen many rats, but hardly anyone would have seen the rat which is going to be talked about here today. So let's go into this world of amazing creatures towards the Naked Mole Rat and know about this strange looking rat.

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

Naked mole rat, (Heterocephalus glaber), a burrowing member of the rodent family Bathyarchidae, named for its wrinkled pink skin and hairless body structure. Their broad heads have strong, muscular jaws that support four incisor teeth used for digging. They are renowned for their long life span, low cancer rates and colonial habit. Contrary to what their name suggests, naked mole rats have about 100 fine hairs on their skin that act like whiskers and help them sense their surroundings.

Naked Mole Rat (Heterocephalus glaber), also known as the sand pup. Naked mole rats are typically 7.5 cm (3 in) long and typically weigh about 28–42 g (1–1.5 oz). Their bodies have developed many adaptations that make them suitable for living in underground habitats.

Their eyes are small, making them practically blind. They do not have external ears, and their inner ears lack structures that allow cochlear amplification (a process that amplifies sound before it reaches the brain), which contributes to poor hearing. That means their ability to see and hear is very less. So naked mole rats rely on their other senses, especially touch and smell, to navigate tunnels. The fine hairs on their bodies act as whiskers to sense vibrations and air currents in the beak and their short legs help them navigate easily in tunnels.


Naked mole rats can be found underground in grassy and semiarid areas of East Africa, including Ethiopia, Kenya, Somalia and Djibouti. They live in underground burrows formed by an extensive network of tunnels that can be up to 2 m (6.5 ft) deep and 4 km (2.5 mi) long. They make these tunnels, about 4 cm (1.5 in) in diameter, by gnawing dirt with their large teeth and spreading it over the surface in assembly-line fashion. Tunnels connect chambers used for nesting, caregiving, food storage, and other functions.

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

Naked mole rats are herbivores, and they eat plant parts growing below the surface, such as roots and tubers. If a large tuber is found, naked mole rats may eat the interior and leave most of the exterior, allowing it to grow back and become a consistent food source. They do not wander in search of water to drink, as their diet provides sufficient moisture. They regurgitate their own feces to maximize the amount of nutrients absorbed from their food.

Naked mole rats are actually one of the only eusocial mammals – that is, they live in large colonies defined by a hierarchical social structure in which nearly all members cooperate to help a relatively few members reproduce. Colonies are led by a female naked mole rat called a queen, who is the only female to reproduce. The queen produces offspring four or five times a year. She gives birth to about 12 babies at a time. This number is quite variable and can sometimes reach as high as 30.


Other naked shrew rats in the colony act as either workers or soldiers. Workers are about 7.5 cm long and weigh 35 g (1.25 oz); They dig tunnels, gather food, and care for the pups. In contrast, soldiers use their comparatively large size, weighing about 55 grams (2 ounces), to protect the queen and colony from snakes and other predators.

नेकेड मोल रैट (Naked Mole Rat)

These rats can live exceptionally long lives, with an estimated lifespan of 10–30 years, which is much longer than other small rodents. A mathematical equation developed by British mathematician Benjamin Gompertz that states that the risk of dying increases exponentially with age. Whereas in humans this risk of death doubles every eight years after age 30, a naked mole rat's chance of dying remains constant throughout its life. The International Union for Conservation of Nature and Natural Resources has classified Heterocephalus glaber as a species of least concern.

कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

पुराणों के अनुसार सभी नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नि कद्रू की कोख से हुई है, कद्रू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया था जिसमें प्रमुख नाम अनंत(शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक थे।

कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

कद्रू दक्ष प्रजापति की कन्या थीं,

अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था, यह सभी कश्यप वंशी थे एवम इन्ही से नागवंश चला।

पुराणों के शोधानुसार नाग वंशावलियों में ‘शेष नाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला, वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्ति होना स्वीकार किया।

वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था।उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं। शेषनाग (अनंत) को भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिला।

एक पुराणिक लेख अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे कश्मीर का ‘अनंतनाग’ इलाका इनका गढ़ माना जाता था, कांगड़ा,कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ( सर्प ) ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था, ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए,कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी, अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘नागभाषा’ कहते हैं।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित,असति,तगात,अमोक और तवस्तु आदि।

‘नागा आदिवासी’ का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन,सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।

पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे, उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है, इन नाग वंशियों में ब्राह्मण,क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।

नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था इसी कारण भारत के कई शहर और गांव ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा, नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी। इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में ‘नागदाह’ नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं, नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।

🚩हर हर महादेव🚩

मणिपुर में अफीम की खेती हिंसा का मुख्य कारण

मणिपुर में अफीम की खेती भी हिंसा का मुख्य कारण

मई महीने में राज्य और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा की शुरुआत अफीम की खेती पर कार्रवाई की वजह से हुई, जिसमें म्यांमार के अवैध प्रवासी और पहाड़ी ज़िलों में नशीली दवाओं का कारोबार भी जुड़ा हुआ था।

मणिपुर में अफीम की खेती हिंसा का मुख्य कारण

मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नस्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को वर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आश्चर्य की बात यह है कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे।

अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें वर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। अब भी कुकी अवैध तरीके से वर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है।

आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं। इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? 

सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, "तो क्या हुआ? हम करेंगे।" कोर्ट ने कहा, "मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।" ये कहते हैं, "कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं।

मैती, मैतेई या मैतई... ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 30% है, पर जमीन 90% है।

90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं। 

अब मैतेई भाई बहनों की दशा ये है कि जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। 

यह बात तो हुई मणिपुर में हुए हिंसा की। अब बात करते हैं अफीम की।  क्या वाकई में अफीम सिर्फ एक नशा है?

पोस्ता दाना का प्रयोग लगभग हर घर में मसाले के रूप में होता है और अफीम (Afeem) पोस्त के डोडों से प्राप्त की जाती है। एक तरफ तो इसके फायदों के लिए इसका उपयोग मसाले के तौर पर होता तो वहीं दूसरी तरफ नशे के लिए। नशे से बचिए, फायदे के तरफ चलते हैं। 

जानते हैं अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

पोस्त के बीजों में हल्के पीले रंग का मीठा स्थिर तेल होता है, जिसे रोगन खसखस कहते हैं। अफीम में मार्फिन, नर्कोटीन एवं कोडीईन आदि एलकेलाइट्स पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें अनेक प्राथमिक तथा द्वितीयक एलकेलाइट्स, कार्बनिक अम्ल, लेक्टिक एसिड एवं मेकोनिक एसिड आदि ऑर्गेनिक अम्ल, जल, ग्लूकोज, वसा, उड़नसील तेल आदि तत्व पाए जाते हैं।

अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

सिर दर्द में

1 ग्राम अफीम और दो लौंग पीसकर मस्तक पर लेप करने से वादी तथा सर्दी की वजह से होने वाले सिर दर्द में आराम होता है।

नेत्र रोग में

आंख के दुखने और आंख के दूसरे रोगों में इसका लेप बहुत लाभकारी होता है।

नकसीर की समस्या

अफीम तथा कुंदरू गोंद दोनों बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर सूंघने से नकसीर बंद होती है।

बालों के लिए

पोस्ट के बीजों को दूध में पीसकर सिर पर लगाने से, सर में होने वाले फोड़े फुंसी एवं रूसी साफ हो जाते हैं।

दांत दर्द में

16 मिलीग्राम अफीम और 125 मिलीग्राम नौसादर, दोनों को दाढ़ में रखने से दाढ़ की पीड़ा मिटती है और दांत के छेद में रखने से  दंत शूल मिटता है।

खुजली की समस्या

अफीम को तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से खुजली मिटती है।

जोंक का डंक 

जोंक का डंक अगर पक जाए तो, उस पर इसके दानों को पीसकर लेप करने से आराम मिलता है।

बुखार में

अफीम के 1 डोडे और 7 काली मिर्च को औटाकर दोनों समय पिलाने से बुखार मिटता है।

अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

स्वरभंग की समस्या 

अफीम के डोडे और अजवाइन को औंटकर गरारा करने से बैठी हुई आवाज़ खुल जाती है। 

खांसी की समस्या 

बीजों सहित इसके 60 ग्राम डोडे का क्वाथ बनाकर 50 ग्राम बुरा मिलाकर शर्बत बनाकर पिलाने से खांसी मिटती है। 

गर्भाशय की पीड़ा 

प्रसव के बाद अफीम के डोडों का क्वाथ पिलाने से गर्भाशय की पीड़ा मिटती है। 

अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अफीम के नुकसान (Side Effects of Opium)

  • अफीम का अधिक मात्रा में सेवन उपद्रवकारी है और इससे मृत्यु तक हो जाती है।
  • अफीम का लगातार सेवन से नपुंसकता हो सकती है।
English Translate

Opium

You all know the use of opium for intoxication, but today here we will discuss about the medicinal properties of opium. Opium (Afeem) is obtained from poppy shoots, which are grown on cultivated plants. Poppy is cultivated in Bihar, eastern Uttar Pradesh, central and western India and Malwa in India. When poppy buds are fully developed, but are in raw state, then a condensed milk or latex comes out by making an incision in them. It is collected and dried. This is the commercial and medicinal opium. Poppy seeds are cool, mild, receptive, bitter, astringent, phlegmatic, phlegmatic and dry, drying metals, seductive and generating interest.

What is opium?

Poppy is a semi-annual plant from one and a half feet to four feet, in which the leaves are 4 inches long - wide, sessile, heart-shaped and the trunk is attached. The flower is single, blueish white, the underside is purple. The fruits are round oval like pomegranate. It has a griva at the bottom and a fringed peak at the top. When the fruit is ripe, small small holes are formed at the bottom of the kangoor for dehiscence.

Mainly according to the color of flowers it is of three types-

  • Powdered white (poppy white)
  • Red (Poppy Mansoor)
  • black or blue (poppy seed)
अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

Know about the benefits, harms, uses and medicinal properties of opium

Poppy seeds contain a sweet, stable oil of light yellow color, which is called rogan poppy seed. Alkalites are found in opium like morphine, narcotine and codeine. Apart from this, many primary and secondary alkalites, organic acids, lactic acid and meconic acid etc., organic acids, water, glucose, fat, flaxseed oil etc. are found in it.

in headache

Grind one gram opium and two cloves and apply it on the head, it provides relief in headache and headache due to cold.

in eye disease

Its paste is very beneficial in eye pain and other eye diseases.

nosebleeds problem

Grind both opium and kundru gum with equal quantity of water and sniff it, it stops nosebleeds.

अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

for hair

Grinding the seeds of post in milk and applying it on the head, boils and dandruff are cleared on the head.

in toothache

Putting both 16 mg opium and 125 mg Nausadar in the molar ends the pain of the molar and keeping it in the hole of the tooth cures colic.

itching problem

Mixing opium with sesame oil and massaging it ends itching.

leech sting

If the sting of a leech is cooked, then grinding its grains on it and applying it provides relief.

in fever

Fever is cured by taking 1 ball of opium and 7 black peppercorns and giving it both times.

hoarseness problem

By gargling opium balls and carom seeds, the sitting voice is opened.

cough problem

Make a quart of 60 grams of lozenges along with seeds, mix 50 grams of bad and take it after making sherbet, it ends cough.

uterine pain

The pain of the uterus ends by taking opium bales after delivery.

अफीम के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

Side Effects of Opium

  • Consumption of opium in excessive quantity is nuisance and it leads to death.
  • Continuous consumption of opium can cause impotence.

अफीम (Afeem/Opium)

Lessons for a good life

Lessons for a good life

जिंदगी की जद्दोजहत में भागते भागते एक वक्त पर हमें एहसास होता है कि सबके लिए बहुत कर लिया अब कुछ अपने लिए किया जाए.... चंद पंक्तियाँ खुद के लिए 

Rupa Oos ki ek Boond

मेरे माता-पिता, मेरे भाई-बहनों, हमसफ़र , बच्चों और दोस्तों से प्यार करने के बाद, अब मैं खुद से प्यार करने लगा हूं।

After loving my parents, my siblings, my spouse, my children, my friends, now I have started loving myself. 


मुझे बस एहसास हुआ कि मैं "एटलस" नहीं हूं। दुनिया मेरे कंधों पर टिकी नहीं है।

I just realized that I am not “Atlas”. The world does not rest on my shoulders. 


मैंने अब सब्जियों और फलों के विक्रेताओं के साथ सौदेबाजी बंद कर दी। आखिरकार, कुछ रुपए अधिक देने से मेरी जेब में कोई छेद नहीं होगा, लेकिन इससे इस गरीब को अपनी बेटी की स्कूल फीस बचाने में मदद मिल सकती है।

I now stopped bargaining with vegetables & fruits vendors. After all, a few Rupees more is not going to burn a hole in my pocket but it might help the poor fellow save for his daughter’s school fees. 


मैं बची चिल्लर का इंतजार किए बिना टैक्सी चालक को भुगतान करता हूं। अतिरिक्त धन उसके चेहरे पर एक मुस्कान ला सकता है। आखिर वह मेरे मुकाबले जीने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है। 

I pay the taxi driver without waiting for the change. The extra money might bring a smile on his face. After all he is toiling much harder for a living than me. 


मैंने बुजुर्गों को यह बताना बंद कर दिया कि वे पहले ही कई बार उस कहानी को सुना चुके हैं। आखिर वह कहानी उनकी अतीत की यादें ताज़ा करती है और जिंदगी जीने का होंसला बढाती है। 

I stopped telling the elderly that they've already narrated that story many times. After all, the story makes them walk down the memory lane & relive the past. 


कोई इंसान अगर गलत भी हो तो मैंने उसको सुधारना बंद किया है । आखिर सबको परफेक्ट बनाने का बोझ मुझ पर नहीं है। ऐसे परफेक्शन से शांति अधिक कीमती है।

I have learnt not to correct people even when I know they are wrong. After all, the onus of making everyone perfect is not on me. Peace is more precious than perfection. 


मैं अब सबकी तारीफ बड़ी उदारता से करता हूं। यह न केवल तारीफ प्राप्तकर्ता की मनोदशा को उल्हासित करता है, बल्कि यह मेरी मनोदशा को भी ऊर्जा देता है। 

I give compliments freely & generously. After all it's a mood enhancer not only for the recipient, but also for me.  


अब मैंने अपनी शर्ट पर क्रीज या स्पॉट के बारे में सोचना और परेशान होना बंद कर दिया है। मेरा अब मानना है की दिखावे के अपेक्षा व्यक्तित्व ज्यादा मालूम पड़ता है।

I have learnt not to bother about a crease or a spot on my shirt. After all, personality speaks louder than appearances. 


मैं उन लोगों से दूर ही रहता हूं जो मुझे महत्व नहीं देते। आखिरकार, वे मेरी कीमत नहीं जान सकते, लेकिन मैं वह बखूबी जनता हूँ।

I walk away from people who don't value me. After all, they might not know my worth, but I do. 


मैं तब शांत रहता हूं जब कोई मुझे "चूहे की दौड़" से बाहर निकालने के लिए गंदी राजनीति करता है। आखिरकार, मैं कोई चूहा नहीं हूं और न ही मैं किसी दौड़ में शामिल हूं।

I remain cool when someone plays dirty politics to outrun me in the rat race. After all, I am not a rat & neither am I in any race. 


मैं अपनी भावनाओं से शर्मिंदा ना होना सीख रहा हूं। आखिरकार, यह मेरी भावनाएं ही हैं जो मुझे मानव बनाती हैं।

I am learning not to be embarrassed by my emotions. After all, it's my emotions that make me human. 


मैंने सीखा है कि किसी रिश्ते को तोड़ने की तुलना में अहंकार को छोड़ना बेहतर है। आखिरकार, मेरा अहंकार मुझे सबसे अलग रखेगा जबकि रिश्तों के साथ मैं कभी अकेला नहीं रहूंगा।

I have learnt that it’s better to drop the ego than to break a relationship. After all, my ego will keep me aloof whereas with relationships I will never be alone. 


मैंने प्रत्येक दिन ऐसे जीना सीख लिया है जैसे कि यह आखिरी हो। क्या पता, आज का दिन आखिरी हो। 

I have learnt to live each day as if it's the last. After all, it might be the last. 

Rupa Oos ki ek Boond

*सबसे महत्वपूर्ण*– 

MOST IMPORTANT 

मैं वही काम करता हूं जो मुझे खुश करता है। आखिरकार, मैं अपनी खुशी के लिए जिम्मेदार हूं और मैं उसका हक़दार भी हूँ।

I am doing what makes me happy. After all, I am responsible for my happiness, and I owe it to me. 

राधा रानी राधिकाकुंज मंदिर विदिशा मध्यप्रदेश || मंदिर के पट वर्ष में एक बार राधा अष्टमी के दिन खुलते हैं

राधा रानी राधिका कुंज मंदिर

भगवान श्री कृष्ण का नाम हमेशा राधा रानी के साथ लिया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन के बाद राधा अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल राधा अष्टमी 23 सितंबर, शनिवार अर्थात आज के दिन मनाई जा रही है। मान्यता है कि राधा रानी के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा अधूरी होती है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण के नाम के साथ राधा रानी का नाम लिया जाता है। अब बात करते हैं एक ऐसे मंदिर की जिसका पट वर्ष में एक बार सिर्फ राधा अष्टमी के दिन ही खुलता है।

विदिशा शहर के नंदवाना गली में राधा रानी का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर के पट वर्ष में एक बार राधा अष्टमी के दिन खुलते हैं। मंदिर के सेवक का कहना है कि जब तक ठकुराइन (राधा रानी) की हवेली नहीं बनती तब तक वर्षभर मंदिर के पट नहीं खुल सकते। परंपरा के चलते इस बार भी मंदिर के पट सिर्फ राधा अष्टमी के दिन एक दिन के लिए खुले। फिर 1 साल के लिए मंदिर के पट बंद हो गए। मंदिर में गुप्त रूप से पूजा होती रहेगी। सन् 1669 से यह परंपरा चली आ रही है।

राधा रानी राधिकाकुंज मंदिर विदिशा मध्यप्रदेश ||  मंदिर के पट वर्ष में एक बार राधा अष्टमी के दिन खुलते हैं

मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा बताते हैं कि जो प्रतिमाएं नंदवाना स्थित मंदिर में विराजमान हैं, वह औरंगजेब के अत्याचारों के दौरान 353 वर्ष पहले सन् 1669 में गुप्तरुप से विदिशा लाई गई थीं। इन प्रतिमाओं को स्वामी परिवार लेकर आया था। इससे पहले यह प्रतिमाएं वृंदावन में जमुना जी के किनारे राधा रंगीराय मंदिर में विराजमान थीं। वर्तमान में उनकी 12वीं पीढ़ी गुप्त रुप से सेवा करती आ रही है। बताया जाता है कि शुरूआती दौर में ठकुराइन को 21 तोपों की सलामी दी जाती थी।

मंदिर के सेवक मनमोहन शर्मा का कहना है कि उनकी भी इच्छा है कि साल भर मंदिर के पट खुलना चाहिए, लेकिन जब उन्होंने राधावल्लभ मंदिर वृंदावन पीठ के प्रधान पीठाधीश्वर गोस्वामी राधेश्लाल महाराज से आग्रह किया तो उन्होंने पहले हवेली बनाने की बात कही। उनका कहना था कि यदि ठकुराइन के लिए हवेली बन जाए तो नित्य पट खोलने पर विचार किया जा सकता है। मंदिर बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि प्रशासन को आगे आकर पहल करनी चाहिए।

राधारानी मंदिर यहां साल में एक दिन होते हैं दर्शन

देश में सिर्फ दो राधा रानी का मंदिर है, एक बरसाने में दूसरा विदिशा में 

 देश में राधा रानी के प्राचीन मात्र दो ही मंदिर बताये जाते हैं, जिनमें एक मंदिर वृदावन के बरसाना और दूसरा मंदिर शहर के नंदवाना में स्थित है। बरसाना में तो राधारानी की हवेली बनी हुई है, जहां ठकुराइन के श्रद्धालुओं को रोज दर्शन होते हैं, लेकिन विदिशा में पिछले 333 साल से राधा रानी एक छोटे से गर्भग्रह में विराजमान हैं। जहां साल भर गुप्त रूप से उनकी सेवा की जाती है, और राधा अष्टमी के मौके पर आम श्रद्धालुओं के लिए पट खोले जाते हैं। 7 इंच की अष्टधातु की ठकुराइन की प्रतिमा के साथ ही उनकी सहेलियां भी यहां विराजमान हैं।

राधा अष्टमी के दिन शाम को संध्या आरती और रात 7 से 10 बजे तक पालना दर्शन, हवेली संगीत से राधारानी का दरबार गूंज उठा। पूरे समय दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में लोग आते रहे। इस दौरान मंदिर की वृन्दावन गली का नजारा देखते ही बन रहा था।

विदिशा के इस 332 साल पुराने मंदिर में हाथ से बनी हुई पोशाक पहनती हैं राधारानी

English Translate

Radha Rani Radhika Kunj Temple 

The ancient temple of Radha Rani is situated in Nandwana street of Vidisha city. The doors of this temple are opened once a year on the day of Radha Ashtami. The servant of the temple says that until the mansion of Thakuraine (Radha Rani) is not built, the doors of the temple cannot be opened throughout the year. Due to tradition, this time also the doors of the temple were opened for one day only on the day of Radha Ashtami. Then the doors of the temple were closed for 1 year. Puja will continue in secret in the temple. This tradition is going on since 1669.

Manmohan Sharma, the servant of the temple, tells that the idols which are situated in the temple at Nandwana were secretly brought to Vidisha in 1669, 353 years ago during the atrocities of Aurangzeb. These idols were brought by the Swami family. Earlier these idols were sitting in the Radha Rangirai temple on the banks of Jamuna ji in Vrindavan. At present, his 12th generation has been serving in secret. It is said that in the initial phase, Thakurain was given a 21-gun salute.

देश में सिर्फ दो राधा रानी का मंदिर एक बरसाने में दूसरा विदिशा में स्थित हैं। यहां दर्शन के लिए देशभर से पहुंचते हैं भक्त।

Manmohan Sharma, the servant of the temple, says that he also wishes that the doors of the temple should be opened throughout the year, but when he requested the head of Radhavallabh temple Vrindavan Peeth, Peethadheeshwar Goswami Radheshlal Maharaj said that he should first build a haveli. He said that if a mansion is built for Thakurain, then opening of Nitya Patt can be considered. The members of the temple board say that the administration should come forward and take the initiative.

 There are only two ancient temples of Radha Rani in the country, in which one temple is located in Barsana of Vridavan and the other temple is located in Nandwana of the city. In Barsana, Radharani's haveli is built, where the devotees of Thakurain have daily darshan, but in Vidisha for the last 333 years, Radha Rani is sitting in a small sanctum. Where she is served secretly throughout the year, and on the occasion of Radha Ashtami, the doors are opened to the common devotees. Along with the 7-inch Ashtadhatu Thakurain statue, her friends are also seated here.

विदिशा में भी है राधा रानी का ऐतिहासिक मंदिर, औरंगजेब के डर से बनने वाले इस मंदिर का बड़ा ही रोचक है इतिहास!

On the day of Radha Ashtami, the evening aarti and cradle darshan from 7 to 10 pm, Radharani's court reverberated with haveli music. Throughout the time, a large number of people kept coming for darshan. During this, the view of the Vrindavan street of the temple was being made.

चंडीगढ़ का राज्य पक्षी (State Bird of Chandigarh) || "भारतीय धूसर धनेश (Indian Grey Hornbill)"

चंडीगढ़ का राज्य पक्षी (State Bird of Chandigarh)

जब भी पक्षियों के बारे में लिखती हूं, तो सोचती हूं काश मेरे पास भी पंख होते और मैं भी इन पक्षियों की तरह स्वच्छंद आसमान में उड़ान भरती। खैर यह कल्पना की उड़ान है कहीं तक भी जाती है। आज चर्चा करते हैं, चंडीगढ़ के राजकीय पक्षी के बारे में, जिसका नाम है "भारतीय धूसर धनेश (Indian Grey Hornbill)"। 

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इसका वैज्ञानिक नाम Ocyceros birostris (ऑकीसेरॉस बिरोस्ट्रिस) है। यह सर्वाधिक वानस्पतिक पक्षी है और आमतौर पर जोड़े में दिखायी पड़ती है। इनमे पूरे शरीर पर ग्रे रंग के रोयें होते हैं और इनके पेट का हिस्से हल्का ग्रे या फीके सफ़ेद रंग का होता है। इनके सिर का उभार काले या गहरे ग्रे रंग का होता है। यह लगभग 24 इंच लम्बी होती है। इनके शरीर का ऊपरी हिस्सा मिश्रित ग्रे और भूरे रंग का होता है और फीके पीले रंग की आंख की भौहों के भी कुछ हल्के निशान देखे जा सकते हैं। कान का आवृत भाग गहरे रंग का होता है। पंख के उड़ान भरने वाले पर गहरे भूरे रंग के होते हैं और इनका सिरा सफ़ेद रंग का होता है। इनकी पूंछ का अग्रसिरा सफ़ेद होता है और गहरे रंग की उपांत धारी होती है। इनकी आंख की पुतली लाल रंग की होती है और पलक पर बाल होते हैं। 

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इस पक्षी की नर और मादा प्रजातियों के बीच कुछ बुनियादी अंतर पाए जाते हैं:-
नर के पास एक गहरे रंग की चोंच पर एक बड़ा आवरण होता है और एक पीले रंग का कलमेन होता है और निचला जबड़ा कम होता है। वयस्क नर में आंखों के आसपास की नग्न त्वचा गहरे रंग की होती है, जबकिमादाओं में यह हल्के लाल रंग की होती है। मादा की खेप पीले रंग की होती है, जिसका निचला भाग काला होता है।       

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इनकी आवाज़ कूकने जैसी जो कुछ-कुछ काली चील के समान होती है। इनकी उड़ान थोड़ी मुश्किल होती है और ये हवा में तैरने के साथ अपने फैले हुए पंखों को फड़फड़ाते हैं। ये छोटे समूहों या जोड़ों के रूप में पाए जाते हैं। इनका प्रजनन काल अप्रैल से जून तक होता है और ये एक बार ऐ से पांच तक बिलकुल एक ही आकार एवम रूप के अंडे देती हैं। 

भारतीय ग्रे हॉर्नबिल आमतौर पर लम्बे पेड़ की कोटरों में अपना घोंसला बनाती है। अपनी आवश्यकतानुसार ये एक पहले से मौजूद कोटर या गड्ढे को और भी गहरा कर सकती हैं। यहाँ एक बात बहुत हैरान करने वाली है कि मादा पक्षी पेड़ के कोटर में प्रवेश करती है और घोंसले के छेड़ को बंद कर देती है, मात्र एक छोटी से लम्बवत दरार छोड़ती है, जिसका प्रयोग नर पक्षी उसे भोजन देने के लिए करता है। मादा पक्षी घोंसले के प्रवेश द्वार को अपने मलोत्सर्ग द्वारा बंद करती है। 

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घोंसले के अन्दर आने पर मादा पक्षी अपने उड़न पंखों का निर्मोचन कर देती है और अण्डों को सेती है। जब मादा पक्षी के पंख पुनः विकसित होते हैं, तो ठीक इसी समय उसके चूजे भी अंडे से बाहर आने की अवस्था में होते हैं और अंडा टूटकर खुल जाता है। यह प्रजाति लगभग पूर्णतया वानस्पतिक होती है और बहुत ही कम अवसरों पर भूमि पर आती है। 

English Translate

 Indian Gray Dhanesh (Ocyceros birostris)


Whenever I write about birds, I wish I too had wings and could fly freely in the sky like these birds. Well, this flight of imagination can go anywhere. Today let's discuss about the state bird of Chandigarh, whose name is "Indian Gray Hornbill".

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Its scientific name is Ocyceros birostris. It is the most arboreal bird and is usually seen in pairs. They have gray colored hair all over their body and their abdominal part is light gray or pale white. The bulge of their head is black or dark grey. It is approximately 24 inches long. The upper part of their body is of mixed gray and brown color and some light marks of pale yellow eye eyebrows can also be seen. The covering part of the ear is dark in colour. The flight feathers are dark brown with a white tip. The tip of their tail is white and has a dark colored marginal stripe. The pupils of their eyes are red in color and there are hairs on the eyelids.

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Some basic differences are found between the male and female species of this bird:-
The male has a larger covert on a darker bill and a yellow culmen and a shorter lower jaw. The naked skin around the eyes is dark in adult males, while in females it is pale red. The female's rump is yellow in colour, with its lower part being black.

Their voice is like a cooing sound which is somewhat similar to that of a black eagle. Their flight is a bit difficult and they flap their spread wings while floating in the air. These are found in the form of small groups or pairs. Their breeding season is from April to June and they lay one to five eggs of exactly the same size and shape.

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The Indian gray hornbill usually builds its nest in hollows of tall trees. As per their need, they can deepen an already existing cavity or pit. One thing that is very surprising here is that the female bird enters the cavity of the tree and closes the nest hole, leaving only a small vertical crack, which the male bird uses to give it food. The female bird closes the entrance of the nest with her excrement.

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After coming inside the nest, the female bird releases her flight feathers and incubates the eggs. When the female bird's feathers regrow, at the same time her chicks are also in the process of coming out of the egg and the egg breaks open. This species is almost entirely vegetative and comes to the ground on very few occasions.

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) अध्याय- 14 (01 - 04)

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

इस ब्लॉग के माध्यम से हम सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता प्रकाशित कर रहे हैं, इसके तहत हम सभी 18 अध्यायों और उनके सभी श्लोकों का सरल अनुवाद हिंदी में प्रकाशित करेंगे। 

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के 18 अध्यायों में से अध्याय 1,2,3,4,5, 6, 7, 8,9, 10,11,12 और 13 के पूरे होने के बाद आज प्रस्तुत है, अध्याय 14 के सभी अनुच्छेद। 

 अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग

ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति

श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta)

श्रीभगवानुवाच

परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम्‌ ।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः || 14.01 ||

भावार्थ : 

श्री भगवान ने कहा - हे अर्जुन! समस्त ज्ञानों में भी सर्वश्रेष्ठ इस परम-ज्ञान को मैं तेरे लिये फिर से कहता हूँ, जिसे जानकर सभी संत-मुनियों ने इस संसार से मुक्त होकर परम-सिद्धि को प्राप्त किया हैं। 

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च || 14.02 ||

भावार्थ : 

इस ज्ञान में स्थिर होकर वह मनुष्य मेरे जैसे स्वभाव को ही प्राप्त होता है, वह जीव न तो सृष्टि के प्रारम्भ में फिर से उत्पन्न ही होता हैं और न ही प्रलय के समय कभी व्याकुल होता हैं।

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्‌ ।
सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत || 14.03 ||

भावार्थ : 

हे भरतवंशी! मेरी यह आठ तत्वों वाली जड़ प्रकृति (जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार) ही समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली योनि (माता) है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूप में चेतन-रूपी बीज को स्थापित करता हूँ, इस जड़-चेतन के संयोग से ही सभी चर-अचर प्राणीयों का जन्म सम्भव होता है। 

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता || 14.04 ||

भावार्थ : 

हे कुन्तीपुत्र! समस्त योनियों जो भी शरीर धारण करने वाले प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सभी को धारण करने वाली ही जड़ प्रकृति ही माता है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूपी बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ। 

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo) नाम का जीव देखने में किसी चूहे के जैसे लगता है। इसके शरीर के ऊपरी हिस्से को देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि इसपर कोई परत अलग से लगाई गई है। ये जीव खुदाई करने में माहिर होता है। ये जमीन को इतनी तेजी से खोदता है कि ऐसा लगता है कि वह पानी में तैर रहा है। 

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

गुलाबी परी आर्मडिलो 90-115 मिमी (3.5-4.5 इंच) लंबा होता है और आमतौर पर इसका वजन लगभग 120 ग्राम (4.2 औंस) होता है। यह प्रजाति सबसे छोटी जीवित आर्माडिलो है और सबसे कम ज्ञात प्रजातियों में से एक है।  गुलाबी परी आर्मडिलो ( क्लैमीफोरस ट्रंकैटस ) आर्मडिलो की सबसे छोटी प्रजाति है ( क्लैमीफोरिडे और डेसीपोडिडे परिवारों के स्तनधारी एक बोनी कवच ​​खोल द्वारा पहचाने जाते हैं)। वे मेंडोज़ा प्रांत के दक्षिण के साथ-साथ रियो नीग्रो के उत्तर और ब्यूनस आयर्स के दक्षिण में पाए गए हैं। इसका वर्णन सबसे पहले 1825 में रिचर्ड हार्लन ने किया था। 

यह एकान्त में रहने वाला रेगिस्तान-अनुकूलित जानवर है। मध्य अर्जेंटीना के लिए स्थानिक और रेतीले मैदानों, टीलों और झाड़ीदार घास के मैदानों में पाया जाता है, जहां वसंत और गर्मियों की अवधि के दौरान विभिन्न प्रकार की पतली लैरीया और पोर्टुलाका झाड़ियाँ दिखाई देती हैं। यह रेतीले मैदानों और टीलों में भी रहता है। गुलाबी परी आर्मडिलोस की छोटी आंखें, रेशमी पीला सफेद फर और एक लचीला पृष्ठीय खोल होता है, जो केवल एक पतली पृष्ठीय झिल्ली द्वारा इसके शरीर से जुड़ा होता है । इसके अलावा इसकी स्पैटुला के आकार की पूंछ इसके खोल के कुंद पिछले हिस्से में एक ऊर्ध्वाधर प्लेट से निकलती है।

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

यह प्राणी रात्रिचर और एकान्तवासी होता है और इसका आहार मुख्य रूप से कीड़े, घोंघे और विभिन्न पौधों के हिस्सों से बना होता है। भूमिगत रहते हुए चींटियाँ और लार्वा इसके मुख्य भोजन स्रोत हैं। गुलाबी परी आर्माडिलो के संरक्षण की स्थिति अभी भी अनिश्चित है और इसे आईयूसीएन की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में डेटा की कमी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 

इस प्रजाति की जनसंख्या में गिरावट का कारण आम तौर पर कृषि गतिविधियों और घरेलू कुत्तों और बिल्लियों सहित शिकारियों को माना गया है। गुलाबी परी आर्माडिलोस कुछ दशकों पहले की तुलना में कम पाए जाते हैं और मैदानी दृश्य दुर्लभ और आकस्मिक रहे हैं। 

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

2006 में, आर्मडिलो को IUCN रेड लिस्ट में निकट-खतरे की श्रेणी में रखा गया था । 2008 में इसकी जनसंख्या गतिशीलता और प्राकृतिक इतिहास पर वैज्ञानिक जानकारी की कमी के कारण इसे डेटा की कमी वाली श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया गया था । इस बात की पुष्टि की गई है कि मैदानी दृश्य दुर्लभ और पहले की तुलना में कम आम हैं, भले ही गुलाबी परी आर्माडिलो को उसकी रात्रिकालीन जीवाश्म जीवन शैली के कारण देखना पहले से ही मुश्किल है।

English Translate

Pink Fairy Armadillo

The creature named Pink Fairy Ramadillo looks like someone else. If we look at the upper parts of its body, it is so useless that nothing is clearly visible on it. These creatures are adept at digging. This land has risen so fast that it seems as if it is floating in water.

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

The pink fairy armadillo measures 90–115 mm (3.5–4.5 in) long and typically weighs around 120 g (4.2 in). It is the smallest living armadillo and one of the smallest living creatures. The pink fairy armadillo (Chlamyphorus cruetates) is the smallest branch of the armadillos (mammals of the families Chlamyphoridae and Dasypodidae distinguished by a bony carapace shell). They were found in the south of Mendoza province as well as north of the Río Negro and south of Buenos Aires. It was first described by Richard Harlan in 1825.

It is a solitary desert-adapted animal. The locality is found in sandy plains, dunes and ornamental grasslands throughout central Argentina, where a variety of layers of lyreia and portulaca shrubs appear in the spring and summer season. It also lives in sandy plains and dunes. Pink fairy armadillos have small eyes, silky pale white coats, and a flexible dorsal coat, with only a single flaky dorsal coat attached to its body. Apart from its spatula-shaped tail, the rear part of its shell is drooping from a substrate in the furrow.

This creature is nocturnal and solitary and its diet consists mainly of insects, snails and various wasps. Whole-life ants and insects are its main food sources. The conservation status of the pink fairy armadillo is still of concern and it is listed as data deficient on the IUCN Red List of Threatened Animals.

The decline in this portfolio has generally been attributed to agricultural factories and domesticated hunters and hunters. Pink fairy armadillos are less common than they were a few decades ago and plains sightings remain rare and unique.

पिंक फेयरी आर्माडिलो (Pink Fairy Armadillo)

In 2006, the armadillo was classified as near-threatened on the IUCN Red List. Its data deficient category was changed in 2008 due to lack of scientific information. This has confirmed that plains sightings are rare and less common than previously thought, even though the pink fairy armadillo has previously been very difficult to see due to its nocturnal sculptural lifestyle.

अरारोट पाउडर (Arrowroot Powder)

अरारोट पाउडर (Arrowroot Powder)

विश्वभर में कई प्रकार के कंद पाए जाते हैं, जिनमें औषधीय गुण होते हैं। उन्हीं में से एक अरारोट भी है। इससे बनने वाले अरारोट पाउडर का उपयोग कई प्रकार के पकवानों में किया जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इसे स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी फायदेमंद माना जाता है। कैरेबियन द्वीप में इसका प्रयोग जहरीले तीर (Arrow) से होने वाले घाव के इलाज में किया जाता था। इसी कारण इसे ऐरोरूट कहते हैं। ऐरोरूट से ही इसका नाम अरारोट पड़ा।

अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अरारोट पाउडर क्या है?

अरारोट पाउडर, अरारोट नामक पौधे के जड़ से बनाई जाती है। जब यह पौधा बड़ा होता है, तब इसके जड़ भी भूमि के अंदर समान रूप से बड़े होते हैं। तब इसके जड़ों को बाहर निकालकर इसे कड़ी धूप में सुखाने के बाद पीसकर अरारोट पाउडर बनाया जाता है। अरारोट एक प्रकार का श्वेतसार (starch) है, जो इस पौधे की जड़ों से निकलता है। अरारोट का पौधा लगभग 90-180 सेमी ऊँचा, और सीधा होता है। यह पौधा मांसल और अनेक वर्ष तक जीवित रहता है। इसके पत्ते अण्डाकार-भालाकार होते हैं। पत्ते 25 सेमी लम्बे और 11.3 सेमी चौड़े होते हैं। ये हल्के हरे रंग के होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के गुच्छों में होते हैं। अरारोट के पौधे में फूल सितम्बर से फरवरी तक होता है।

अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

जानते हैं अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

आयुर्वेद के अनुसार, अरारोट (Ararot or Ararut) बहुत ही उत्तम जड़ी-बूटी है, और अरारोट के कई सारे औषधीय गुण हैं, जिससे शरीर को बहुत लाभ होता है।

सिर दर्द होने पर 

1-2 ग्राम अरारोट के चूर्ण में 200 मिली जल मिलाकर पकाएं। इसमें 250 मिली दूध और 50 ग्राम मिश्री डालकर फिर पकाएं। जब केवल दूध बाकी रह जाए तो उतार लें। इसे गुनगुना होने पर सेवन करें। इससे सिर दर्द से आराम मिलता है। 

खुजली की समस्या 

अरारोट के महीन चूर्ण को गुलाबजल में मिलाकर खुजली वाले जगह पर लगाएं। इससे खुजली की बीमारी ठीक होती है। 

खूनी बवासीर में   

1-2 ग्राम अरारोट के चूर्ण में 200 मिली जल मिलाकर पकाएं। उसमें 250 मिली दूध और 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाएं। जब सिर्फ दूध शेष रहे तो गुनगुना अवस्था में पिएं। इससे खूनी बवासीर में लाभ होता है।  

मूत्र रोग   

1-2 ग्राम अरारोट के चूर्ण को 200 मिली पानी में पकाकर ठंडा कर लें। इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब में जलन, और पेशाब रुक-रुक कर आने की समस्या में लाभ होता है।  

घाव हो जाने पर 

अरारोट को थोड़े से जल में घोलकर गुनगुना कर लें। इसे घाव पर लेप के रूप में लगाएं। इससे पस वाले घाव और दुर्गन्ध वाले घाव ठीक होते हैं।     

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए

अरारोट के उपयोग से इम्यून सिस्टम को बढ़ाया जा सकता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, अरारोट पाउडर में मौजूद स्टार्च शरीर में फाइबर की तरह कार्य करता है। इस वजह से यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करता है। 

वजन कम करने के लिए

अरारोट के उपयोग से बढ़ती चर्बी और मोटापे की समस्या को भी कम किया जा सकता है। दरअसल, इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है, जिसे मोटापे कम करने में सहायक माना जाता है। इसके अलावा, अरारोट में प्रोटीन की भी अच्छी मात्रा होती है। प्रोटीन और फाइबर दोनों पोषक तत्व भूख को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे वजन को बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है। 

अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अरारोट के नुकसान (Side-Effects of Arrowroot)

अरारोट के फायदे तो अनेक है, लेकिन अत्यधिक मात्रा में उपयोग करने से कुछ नकारात्मक परिणाम हो सकते है। 

अगर कोई भी व्यक्ति किसी विशेष प्रकार की दवा का सेवन कर रहा है, तो अरारोट का सेवन करने से पहले अपने चिकिस्तक की सलाह अवश्य ले। 

जिन लोगो को अरारोट के सेवन से एलर्जी में खांसी, उल्टी, मलती की समस्या होती है, उनको इसके सेवन से बचाव करना चाहिए।

अरारोट के साथ फलो के रस का सेवन करने से बचाव करना चाहिए।     

अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

अन्य भाषाओं में अरारोट के नाम

Hindi-         तीखुर भेद

English-     West Indian arrowroot, Bermuda arrowroot, Obedience plant

Bengali-     अरारोट (Araroot); 

Kannada-     कुवेहिट्टू (Kuvehittu); 

Gujarati-     तपखीर (Tapkhir), तवखीर (Tavkhir); 

Tamil-         अरारोट्टुककिलंगु (Araruttukkilangu), कुकाई नीरु (Kukai niru); 

Telugu–     पलागुंडा (Palagunda), पालागुन्टा (Palagunta) 

Malayalam- कुव्वा (Kuwa)

अरारोट के पौष्टिक तत्व (Nutritional Value of Arrowroot )

अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण


English Translate

Arrowroot Powder

Many types of tubers are found all over the world, which have medicinal properties. Arrowroot is also one of them. Arrowroot powder made from it is used in many types of dishes. Being rich in nutrients, it is also considered very beneficial for health. In the Caribbean islands it was used to treat wounds caused by poisoned arrows. For this reason it is called arrowroot. It got its name arrowroot from arrowroot.

What is arrowroot powder?

Arrowroot powder is made from the root of a plant called arrowroot. When this plant grows, its roots also grow equally big inside the soil. Then after taking out its roots, drying it in the hot sun, it is ground and made into arrowroot powder. Arrowroot is a type of starch, which comes from the roots of this plant. The arrowroot plant is approximately 90-180 cm high, and erect. This plant is fleshy and lives for many years. Its leaves are elliptical-lanceolate. The leaves are 25 cm long and 11.3 cm wide. These are light green in colour. Its flowers are in white colored clusters. Arrowroot plant flowers from September to February.
अरारोट पाउडर के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

Know about the benefits, disadvantages, uses and medicinal properties of arrowroot powder.

According to Ayurveda, Ararot or Ararut is a very good herb, and Arrowroot has many medicinal properties, which are very beneficial for the body.

in case of headache

Mix 1-2 grams of arrowroot powder with 200 ml of water and cook. Add 250 ml milk and 50 grams of sugar candy and then cook. When only milk remains, take it out. Consume it when it is lukewarm. This provides relief from headache.

itching problem

Mix fine powder of arrowroot in rose water and apply it on the itchy area. This cures itching.

in bloody piles

Mix 1-2 grams of arrowroot powder with 200 ml of water and cook. Add 250 ml milk and 50 grams of sugar candy and cook. When only milk is left, drink it lukewarm. It is beneficial in bloody piles.

urinary disease

Cook 1-2 grams arrowroot powder in 200 ml water and cool it. Drinking sugar candy mixed with it provides relief in burning sensation during urination and intermittent urination.

when injured

Dissolve arrowroot in some water and make it lukewarm. Apply it as a paste on the wound. It cures wounds with pus and bad smell.

To increase immunity

The immune system can be boosted by the use of arrowroot. According to a research published on the website of NCBI (National Center for Biotechnology Information), the starch present in arrowroot powder acts like fiber in the body. Because of this it helps in boosting the body's immune system.

to lose weight

The problem of increasing fat and obesity can also be reduced by the use of arrowroot. Actually, it contains abundant amount of fiber, which is considered helpful in reducing obesity. Apart from this, arrowroot also contains a good amount of protein. Both protein and fiber nutrients help control appetite, which can help prevent weight gain.