कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

पुराणों के अनुसार सभी नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नि कद्रू की कोख से हुई है, कद्रू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया था जिसमें प्रमुख नाम अनंत(शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक थे।

कैसे उत्पत्ति हुई नागों की

कद्रू दक्ष प्रजापति की कन्या थीं,

अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था, यह सभी कश्यप वंशी थे एवम इन्ही से नागवंश चला।

पुराणों के शोधानुसार नाग वंशावलियों में ‘शेष नाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला, वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्ति होना स्वीकार किया।

वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था।उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं। शेषनाग (अनंत) को भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिला।

एक पुराणिक लेख अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे कश्मीर का ‘अनंतनाग’ इलाका इनका गढ़ माना जाता था, कांगड़ा,कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ( सर्प ) ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था, ये लोग सर्प पूजक होने के कारण नागवंशी कहलाए,कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी, अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘नागभाषा’ कहते हैं।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था। अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित,असति,तगात,अमोक और तवस्तु आदि।

‘नागा आदिवासी’ का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन,सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।

पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे, उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं तक्षक, तनक और तुश्त नागाओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है, इन नाग वंशियों में ब्राह्मण,क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।

नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था इसी कारण भारत के कई शहर और गांव ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा, नागपुर के पास ही प्राचीन नागरधन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी। इसके अलावा हिंदीभाषी राज्यों में ‘नागदाह’ नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं, नगा या नागालैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।

🚩हर हर महादेव🚩

7 comments:

  1. पीड़ा सारी मिट गई, लिया जो तेरा नाम।
    गजब कृपा है आपकी, रघुनंदन श्री राम।

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  2. बहुत ही अच्छी जानकारी👌🏻🙏

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  3. Har har Mahadev 🙏🙏
    Achi jankari 👍👌

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