ओशो – मौन का महत्व

ओशो – मौन का महत्व

 मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है। मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है।

मौन सबसे अच्छा उत्तर है, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके शब्दों को महत्व नहीं देता - "भागवत गीता"

मौन सबसे अच्छा उत्तर है किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके शब्दों का महत्व नहीं देता  भागवत गीता

ओशो – कुछ मित्र जो तीनों दिन मौन रख सकें, बहुत अच्छा है, वे बिलकुल ही चुप हो जाएं। और कोई भी चुप होता हो, मौन रखता हो, तो दूसरे लोग उसे बाधा न दें, सहयोगी बनें। जितने लोग मौन रहें, उतना अच्छा। कोई तीन दिन पूरा मौन रखे, सबसे बेहतर। उससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा। अगर इतना न कर सकते हों तो कम से कम बोलें—इतना कम, जितना जरूरी हो— टेलीग्रैफिक। जैसे तारघर में टेलीग्राम करने जाते हैं तो देख लेते हैं कि अब दस अक्षर से ज्यादा नहीं। अब तो आठ से भी ज्यादा नहीं। तो एक दो अक्षर और काट देते हैं, आठ पर बिठा देते हैं। तो टेलीग्रैफिक! खयाल रखें कि एक—एक शब्द की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसलिए एक—एक शब्द बहुत महंगा है; सच में महंगा है। इसलिए कम से कम शब्द का उपयोग करें; जो बिलकुल मौन न रह सकें वे कम से कम शब्द का उपयोग करें।

साथ ही इंद्रियों का भी कम से कम उपयोग करें। जैसे आंख का कम उपयोग करें, नीचे देखें। सागर को देखें, आकाश को देखें, लोगों को कम देखें। क्योंकि हमारे मन में सारे संबंध, एसोसिएशस लोगों के चेहरों से होते हैं—वृक्षों, बादलों, समुद्रों से नहीं। वहां देखें, वहां से कोई विचार नहीं उठता। लोगों के चेहरे तत्काल विचार उठाना शुरू कर देते हैं। नीचे देखें, चार फीट पर नजर रखें— चलते, घूमते, फिरते। आधी आंख खुली रहे, नाक का अगला हिस्सा दिखाई पड़े, इतना देखें। और दूसरों को भी सहयोग दें कि लोग कम देखें, कम सुनें। रेडियो, ट्रांजिस्टर सब बंद करके रख दें, उनका कोई उपयोग न करें। अखबार बिलकुल कैंपस में मत आने दें।

जितना ज्यादा से ज्यादा इंद्रियों को विश्राम दें, उतना शुभ है, उतनी शक्ति इकट्ठी होगी; और उतनी शक्ति ध्यान में लगाई जा सकेगी। अन्यथा हम एग्झास्ट हो जाते हैं। हम करीब—करीब एग्झास्ट हुए लोग हैं, जो चुक गए हैं बिलकुल, चली हुई कारतूस जैसे हो गए हैं। कुछ बचता नहीं, चौबीस घंटे में सब खर्च कर डालते हैं। रात भर में सोकर थोड़ा—बहुत बचता है, तो सुबह उठकर ही अखबार पढना, रेडियो और शुरू हो गया उसे खर्च करना। कंजरवेशन ऑफ एनर्जी का हमें कोई खयाल ही नहीं है कि कितनी शक्ति बचाई जा सकती है। और ध्यान में बड़ी शक्ति लगानी पड़ेगी। अगर आप बचाएंगे नहीं तो आप थक जाएंगे।

कबीर ने कहा है:-

कबीरा यह गत अटपटी, चटपट लखि न जाए। जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय।

अर्थात, 

अधर मतलब होंठ। होंठ वास्तव में तभी ठहरेंगें, तभी शान्त होंगे, जब मन की खटपट मिट जायेगी। हमारे होंठ भी ज्यादा इसीलिए चलते हैं क्योंकि मन अशान्त है, और जब तक मन अशान्त है, तब तक होंठ चलें या न चलें कोई अन्तर नहीं क्योंकि मूल बात तो मन की अशान्ति है। वो बनी हुई है। 

जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है - रवींद्रनाथ टैगोर

चींटी से अच्छा कोई उपदेश नहीं देता और वह मौन रहती है - फ्रैंकलीन

एकांत आत्मा का सर्वोत्तम मित्र हैं - बिनोवा भावे

मौन की भाषा वाणी की भाषा की अपेक्षा अधिक बलवती होती है - अथर्ववेद

मौन की भाषा वाणी की भाषा की अपेक्षा अधिक बलवती होती है  अथर्ववेद

13 comments:

  1. Very nice 🙏🙏

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  2. सचमुच,मौन में बहुत ताकत है।

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  3. पवन कुमार ( pavan kumar)October 1, 2023 at 9:29 AM

    मौन रहना एक बहुत बड़ी साधना है । मौन रहकर इंसान बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है । अपने अंतर मन को सही मार्गदर्शन मौन व्रत से ही प्राप्त हो सकती है। बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी🙏🙏🙏

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  4. संजय कुमारOctober 1, 2023 at 11:21 PM

    🙏🙏💐💐शुभरात्रि 🕉️
    🙏जय जय सियाराम 🚩🚩🚩
    👌👌👌बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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