आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

आनंदीबाई जोशी

Born: 31 March 1865, Kalyan
Died: 26 February 1887 (age 21 years), Pune

आनंदीबाई जोशी (31 मार्च 1865-01 फ़रवरी 1887) पहली भारतीय महिला थी, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। 31 मार्च 1865 में जन्मी आनंदीबाई जोशी उस दौर में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल कीं। जिस समय में महिलाओं की प्रारंभिक शिक्षा ही बहुत मुश्किल थी, उस समय में आनंदीबाई डॉक्टर की पढ़ाई कीं और प्रथम भारतीय महिला डॉक्टर बनीं। उनकी यह उपलब्धि उस समय महिलाओं के लिए एक मिसाल थी।

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

आनंदीबाई जोशी का विवाह 9 साल की उम्र में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से कर दी गई। 14 साल की उम्र में वह मां बन गई और उनकी एकमात्र संतान की मृत्यु 10 दिनों बाद ही जरुरी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण हो गई। इस बात से उन्हें बहुत आघात लगा और तभी उन्होंने प्रण लिया कि वह एक दिन डॉक्टर बनेंगी और जरुरी स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराएंगी। इस कार्य में उनके पति गोपाल राव ने भी उनका भरपूर सहयोग दिया और उनका हौसला बढ़ाया।

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

आनंदीबाई जोशी की 21 वर्षीय जीवन यात्रा

आनंदीबाई जोशी का जन्म पुणे के एक जमींदार परिवार में 31 मार्च 1865 को हुआ। बचपन में उनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा था। शादी के बाद ससुराल वाले उन्हें आनंदी बुलाने लगे। ब्रिटिश शासकों ने महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा को खत्म कर दिया था, जिसके बाद आनंदी के परिवार की वित्तीय स्थिति खराब हो गई। ऐसे में उनके पिता ने आनंदी की शादी मात्र 9 साल की उम्र में उनसे उम्र में 20 साल बड़े गोपालराव से कर दी, जिनके पहले पत्नी की मौत हो चुकी थी। 14 वर्ष की आयु में मां बनकर बच्चे को खो देने का दर्द आनंदीबाई ने सहा परंतु इसी घटना के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का दृढ़ निश्चय किया। 

1880 में गोपाल राव ने एक मशहूर अमेरिकी मिशनरी को पत्र लिखकर अमेरिका में चिकित्सा की पढ़ाई करने की पूरी जानकारी एकत्र की। उस वक्त पर उनके पति के अलावा घरवाले और समाज उनके इस निर्णय से सहमत नहीं थे। लोगों ने उन पर अवांछित टिप्पणियां की, उनके घर पर पत्थर और गोबर फेंके। यहां तक ​​कि उस डाकघर पर भी हंगामा किया, जहां गोपालराव काम करते थे, लेकिन वह अपने निर्णय पर दृढ़ता के साथ खड़ी रहीं। आनंदीबाई की जिद और पति के साथ ने उनको लक्ष्य तक पहुंचने में मदद की। 

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

परंतु आनंदीबाई के इस कदम के प्रति हिंदू समाज में बहुत विरोध की भावना थी। वे नहीं चाहतें थे कि उनके देश का कोई व्यक्ति विदेश जाकर पढ़े, कुछ इसाई समाज ने उनका समर्थन किया परंतु उनकी इच्छा इनका धर्म परिवर्तित करवाने की थी। अपने फैसले को लेकर हिंदू समाज में विरोध को देखते हुए आनंदीबाई ने श्रीरामपुर कॉलेज में अपना पक्ष अन्य लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने कहा - "मैं अमेरिका जा रही हूं, क्योंकि मैं चिकित्सा की पढ़ाई करना चाहती हूं। स्थानीय और यूरोपीय महिलाएं, पुरुष डॉक्टर से आपात स्थिति में भी इलाज कराने में झिझकती हैं। मेरा विनम्र विचार यही है कि मैं भारत में महिला डॉक्टर की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए, खुद को इस क्षेत्र के योग्य बनाकर उनकी सेवा करूं।"

उन्होनें अपने अमेरिका जाने और मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के संकल्प को लोगो के मध्य खुलकर रखा और लोगो को महिला डॉक्टर की जरुरत के बारे में समझाया। अपने इस संबोधन में उन्होंने यह भी पक्ष रखा कि वे और उनका परिवार भविष्य में कभी भी इसाई धर्म स्वीकार नहीं करेगा और वापस आकर भारत में भी महिलाओं के लिए मेडिकल कॉलेज खोलेंगी। 

उनके इस प्रयास से लोग प्रभावित हुए और देश भर से लोग उनके समर्थन में आगे आये। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने सारे गहने बेच दिए। कुछ लोगों ने आनंदीबाई के इस कदम में उनका साथ देते हुए सहायता के लिए 200 रुपये की मदद की। 1883 में पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में आनंदी ने दाखिला लिया। उन्होनें मात्र 18 वर्ष की उम्र में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और 11 मार्च 1886 में अपनी शिक्षा पूर्ण कर एम डी (डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन) की उपाधि हासिल की। वह पहली भारतीय महिला थीं, जिसे यह उपाधि मिली। उनकी इस सफलता पर क्वीन विक्टोरिया ने भी उन्हें बधाई दी। 

डिग्री पूरी होने के बाद अपने लक्ष्य अनुसार आनंदीबाई भारत वापस आईं और सर्वप्रथम कोल्हापुर में अपनी सेवाएं दी। वहां उन्होंने अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला विभाग का काम संभाला। यह भारत में महिलाओं के लिए पहला अवसर था, जब उनके इलाज के लिए कोई महिला चिकित्सक उपलब्ध थी, परंतु यहां उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। डाॅक्टरी की प्रैक्टिस के दौरान वह टीबी की बीमारी की शिकार हो गईं। 26 फरवरी 1887 में महज 22 साल की उम्र में ट्यूबरकुलोसिस की चपेट में आने के कारण आनंदीबाई का निधन हो गया।

आनंदीबाई के जीवन पर आधारित किताबें 

इनकी मृत्यु के तुरंत बाद अमेरिका के राइटर कैरलाइन वेल्स हेअले डाल ने इनके जीवन पर एक किताब लिखी और इनके जीवन और उपलब्धियों से अन्य लोगों को परिचित करवाया। 

इसके बाद मराठी लेखक डॉ अंजली कीर्तने ने डॉ आनंदिबाई जोशी के जीवन पर रिसर्च की और डॉ  आनंदीबाई जोशी काल अणि कर्तुत्व (डॉ आनंदीबाई जोशी, उनके समय और उपलब्धियां) नामक एक मराठी पुस्तक लिखी।  इस पुस्तक में डॉ आनंदिबाई जोशी की दुर्लभ तस्वीरों को शामिल किया गया। 

English Translate 

Anandibai Joshi

Anandibai Joshi was the first Indian woman to obtain a doctorate degree. Born on March 31, 1865, Anandibai Joshi went abroad to obtain a doctorate degree. At a time when women's primary education was very difficult, Anandibai studied for a doctor and became the first Indian woman doctor. Her achievement was an example for women at that time.

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

Anandibai Joshi was married at the age of 9 to Gopalrao, about 20 years older than her. She became a mother at the age of 14 and her only child died after 10 days due to lack of necessary health facilities. She was very shocked by this and only then she took a vow that she would one day become a doctor and provide necessary health facilities. In this work, her husband Gopal Rao also gave her full support and encouraged her.

Anandibai Joshi's 21 year life journey

Anandibai Joshi was born on 31 March 1865 in a zamindar family in Pune. In childhood, her parents named her Yamuna. After marriage, the in-laws started calling her Anandi. The British rulers had abolished the zamindari system in Maharashtra, after which the financial condition of Anandi's family worsened. In such a situation, her father got Anandi married at the age of 9 only to Gopalrao, 20 years older than her, whose first wife had died. Anandibai suffered the pain of losing her child as a mother at the age of 14, but after this incident, she determined to become a doctor.

आनंदीबाई जोशी || Anandibai Joshi ||

In 1880, Gopal Rao wrote a letter to a famous American missionary and collected complete information about studying medicine in America. At that time, apart from her husband, the family members and the society did not agree with her decision. People made unwanted comments on him, threw stones and cow dung at his house. There was even a ruckus at the post office where Gopalrao worked, but she stood firm on her decision. Anandibai's persistence and her husband's support helped her reach her goal.

But there was a lot of opposition in the Hindu society towards this step of Anandibai. They did not want any person from their country to study abroad, some Christian community supported them but their wish was to convert them. Seeing the opposition in the Hindu society regarding her decision, Anandibai presented her side in front of others in Shrirampur College. She said - "I am going to America because I want to study medicine. Local and European women are hesitant to seek treatment from male doctors even in emergencies. My humble opinion is that I am happy to see the growing number of female doctors in India. Looking at the needs, make myself fit for this area and serve them."

He openly kept his resolution to go to America and get a medical degree among the people and explained to the people about the need of female doctors. In this address, she also stated that she and her family will never accept Christianity in future and will come back and open a medical college for women in India as well.

People were impressed by his effort and people from all over the country came forward in his support. For this work, he sold all his jewelry. Some people supported Anandibai in this step and helped her with 200 rupees. In 1883, Anandi enrolled in the Women's Medical College of Pennsylvania. He enrolled in the Medical College at the age of just 18 and completed his education on 11 March 1886 and obtained the title of MD (Doctor of Medicine). She was the first Indian woman to receive this title. Queen Victoria also congratulated him on his success.

After completing her degree, Anandibai came back to India according to her goal and first served in Kolhapur. There she took charge of the Women's Department at Albert Edward Hospital. This was the first opportunity for women in India, when a female doctor was available for their treatment, but here their health continued to deteriorate. During the practice of medicine, she became a victim of TB disease. Anandibai died on 26 February 1887 at the age of just 22 due to tuberculosis.

Books based on the life of Anandibai

Soon after his death, American writer Caroline Wells Healey Dahl wrote a book on his life and introduced others to his life and achievements.

After this Marathi writer Dr. Anjali Kirtane researched the life of Dr. Anandibai Joshi and wrote a Marathi book titled Dr. Anandibai Joshi Kaal Ani Kartutva (Dr. Anandibai Joshi, her times and achievements). Rare photographs of Dr. Anandibai Joshi were included in this book.

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

राजस्थान दिवस 2023

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

"आज भी चिखतें है दरो दिवार महलों के 
भरते सिसकियाँ कंगूरे आज भी झरोखों के
बहुत करीब से देखी आहूतियाँ बलिदान की
तब बचा पाए रणबांकुरे शीश इन दुर्गों के.."

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

प्रतिवर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस अथवा राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष आज के दिन राजस्थान का 74 वा स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान सङ्घ' बना था।

इस दिन राजस्थान के लोगों की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा बलिदान को नमन किया जाता है। यहाँ की लोक कलाएँ, समृद्ध संस्कृति, महल, व्यञ्जन आदि एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। इस
दिन कई उत्सव और आयोजन होते हैं जिनमें राजस्थान की अनूठी संस्कृति का दर्शन होता है। 
राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

राजस्थान दो शब्दों 'राज' और 'स्थान' से बना है, जिसका अर्थ है 'स्थानों का राजा.' राजस्थान गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से घिरा हुआ है। क्षेत्रफल के लिहाज से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। उदयपुर, नागौर, माउंट आबू, कोटा, जोधपुर, झालावाड़, जैसलमेर, जयपुर, बीकानेर और अजमैर जैसे स्थान लोकप्रिय मंदिरों, दरगाहों के कारण पर्यटन के लिहाज से काफी अहमियत रखते हैं।

राज्य में स्थित थार रेगिस्तान को ग्रेट इंडियन डेजर्ट के तौर पर भी जाना जाता है। राज्य रेत के टीलों और रेगिस्तानों की भूमि है। राजस्थान की राजधानी जयपुर है, जो राज्य का सबसे बड़ा शहर भी है। यह खूबसूरत राज्य भव्य महलों, किलों, रंगों और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। 

राजस्थान राज्य आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति, स्वादिष्ट व्यंजनों, सुंदर नृत्यों और संगीत से जीवंत है. यही वजह है कि यह राज्य सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख शहरों का संबंध किसी न किसी विशिष्ट रंग से संबंधित है। जैसे जयपुर का गुलाबी रंग, उदयपुर का सफेद, जोधपुर का नीला रंग और झालावाड़ का बैंगनी रंग।

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

राजस्थान दिवस मनाने का उद्देश्य

राजस्थान शौर्य व साहस का दूसरा नाम है। यहां की धरती रणबांकुरों और वीरांगनाओं की धरती है। राजस्थान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को राजस्थान की विरासत के बारे में जागरूक करना तथा इसके महत्व को बताना है साथ ही इसकी विरासत को बचाना है। देश की आजादी के बाद राजस्थान के बाशिंदों के लिए सही मायनों में आजादी आज ही के दिन मतलब 30 मार्च को सन 1949 में मिली थी।

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

English Translate

rajasthan day 2023

Rajasthan Day or Rajasthan Foundation Day is celebrated every year on 30 March. This year, on this day, the 74th Foundation Day of Rajasthan is being celebrated. On March 30, 1949, the princely states of Jodhpur, Jaipur, Jaisalmer and Bikaner were merged to form the 'Greater Rajasthan Union'.

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

On this day, the bravery, strong will and sacrifice of the people of Rajasthan are saluted. Folk arts, rich culture, palaces, cuisine etc. have a unique identity here. This

There are many festivals and events on the day which reflect the unique culture of Rajasthan.

Rajasthan is derived from two words 'Raj' and 'Sthan', which means 'king of places.' Rajasthan is surrounded by Gujarat, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana and Punjab. Rajasthan is the largest state of India in terms of area. Places like Udaipur, Nagaur, Mount Abu, Kota, Jodhpur, Jhalawar, Jaisalmer, Jaipur, Bikaner and Ajmer are of great importance from the point of view of tourism due to popular temples, dargahs.

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

The Thar Desert located in the state is also known as the Great Indian Desert. The state is a land of sand dunes and deserts. The capital of Rajasthan is Jaipur, which is also the largest city of the state. This beautiful state is famous for grand palaces, forts, colors and festivals.

The state of Rajasthan is still alive with its ancient culture, delicious cuisine, beautiful dances and music. This is the reason that this state attracts not only the country but also foreign tourists. Almost all the major cities of Rajasthan are related to one or the other specific colour. Like pink color of Jaipur, white color of Udaipur, blue color of Jodhpur and purple color of Jhalawar.

Purpose of celebrating Rajasthan Day

राजस्थान दिवस 2023 || Rajasthan Day 30 March ||

Rajasthan is another name for bravery and courage. The land here is the land of warriors and heroines. The main purpose of celebrating Rajasthan Day is to make people aware about the heritage of Rajasthan and to tell its importance as well as to save its heritage. After the independence of the country, the people of Rajasthan got freedom in true sense on this day i.e. on March 30, 1949.

अरुणाचल प्रदेश और केरल का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh and Kerala ||

अरुणाचल प्रदेश  और केरल का राजकीय/ राज्य पक्षी 

"धनेश ( HornBill )"

भारत के 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के अपने अलग-अलग राजकीय पशु, पक्षी, फूल, पेड़ और अपनी अलग-अलग रोचक जानकारियां हैं। पिछले कुछ अंकों में कई राज्य के राजकीय पक्षियों के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा की गई है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज जानते हैं 'अरुणाचल प्रदेश और केरल ' के राजकीय पक्षी के बारे में।
अरुणाचल प्रदेश  और केरल का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh and Kerala ||
पक्षी और फूल प्रकृति की एक ऐसी रचना है, जिन्हें देखकर मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठता है। फूलों में जहां खुशबू मन को मोह लेती है, वही पक्षियों की चहचहाहट मन को सुकून देती है। एक ऐसा ही पक्षी है धनेश। यह दुनिया के सबसे आकर्षक पक्षियों में से एक है। गाय के सिंह के समान इसकी अदभुत रंग बिरंगी चोंच और उस पर हड्डियों से बना हुआ, हेलमेट इसकी विशेषता है।

अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पक्षी "धनेश" है जिसे अंग्रेजी में "ग्रेट हॉर्नबिल" के नाम से जाना जाता है। इसकी चोंच लंबी और नीचे की ओर घूमी हुई होती है और ऊपर वाली चोंच के ऊपर लंबा उभार होता है, जिसकी वजह से इसका अंग्रेजी नाम हॉर्नबिल (Horn - सींग, bill - चोंच) पड़ा है। भारत में इसकी 9 जातियां पाई जाती हैं। इनमें से चार प्रजातियां पश्चिम घाट पर पाई जाती हैं - भारतीय ग्रे हॉर्नबिल, मालाबार ग्रे हॉर्नबिल, मालाबार पाइड हॉर्नबिल और व्यापाक रूप से पाई जाने वाली ग्रेट हॉर्नबिल जो अरुणाचल प्रदेश और केरल राज्य का राजकीय पक्षी है। 
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
हॉर्नबिल पेड़ के कोटर या चट्टान की दरार में अपना घोंसला बनाते हैं रंग रूप के अलावा इनका आकार भी अलग-अलग होता है काला बौना हार्नबिल मात्र 1.06 किलोग्राम का होता है वही सदर्न ग्राउंड हार्नबिल का वजन 6.2 किलो तक हो सकता है। नर आकार में मादा से बड़ा होता है। चोंच का आकार भी इन पक्षियों में अलग-अलग पाया जाता है।
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
हॉर्नबिल दिन में घूमने वाला पक्षी है। यह जोड़े में या समूह में रहता है। मादा एक बार में छह सफेद अंडे किसी पेड़ के कोटर या चट्टान की दरार में देती है। अंडे देने के बाद मादा अक्सर इस कोटर में अपने आप को कैद कर लेती है। नर व मादा कोटर के मुंह को मिट्टी की दीवार से बंद कर देते हैं। उसमें सिर्फ खाना पहुंचाने लायक ही छेद रह जाता है। इस दौरान नर फलों का गूदा मादा को भोजन के रूप में पहुंचाता रहता है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो नर और मादा मिट्टी की दीवार को हटा देते हैं। हॉर्नबिल सर्वभक्षी (सबकुछ खाने वाला) है। यह मुख्य रूप से फल-फूल और छोटे जीवों को खाता है।
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पक्षी धनेश (हॉर्नबिल) इस राज्य के निशि नामक जनजातीय समूह का सांस्कृतिक प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से निशि जनजाति के लोग सिर पर पहनी जाने वाली विशेष प्रकार की टोपी बनाने के लिए इस पक्षी का शिकार कर उसके पंख और चोंच का इस्तेमाल करते थे। भारी संख्या में शिकार के कारण इसकी आबादी ख़तरे में पड़ गई। 

पिछले कुछ सालों में राज्य द्वारा धनेश पक्षी के शिकार को रोकने के प्रयासों में इस जनजाति के लोगों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्हें अपनी टोपियों में धनेश की चोंच के बदले प्लास्टिक और फ़ाइबरग्लास के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया गया।

धनेश पक्षी से जुड़ी और भी बहुत सारी रोचक जानकारियां हैं, जिसको अगले पोस्ट में शेयर करूंगी।
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||

English Translate

State Bird of Arunachal Pradesh and Kerala

"Dhanesh (HornBill)"

India's 28 states and 8 union territories have their own different state animals, birds, flowers, trees and their own interesting information. The state birds of many states have been discussed in this blog in the last few issues. Taking this sequence forward, today we know about the state bird of 'Arunachal Pradesh and kerala'.

अरुणाचल प्रदेश  और केरल का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh and Kerala ||

Birds and flowers are such a creation of nature, seeing which the mind gets elated with happiness. Where the fragrance of flowers fascinates the mind, the chirping of birds gives peace to the mind. Dhanesh is one such bird. It is one of the most attractive birds in the world. It is characterized by its wonderful colorful beak and the helmet made of bones on it, similar to the cow's lion.

The state bird of Arunachal Pradesh is "Dhanesh" which is known as "Great Hornbill" in English. Its beak is long and curved downwards and has a long bulge on the upper beak, due to which it has got its English name hornbill (Horn - horn, bill - beak). Its 9 castes are found in India. Four of these species are found in the Western Ghats – the Indian gray hornbill, the Malabar gray hornbill, the Malabar pied hornbill and the widely distributed great hornbill, which is the state bird of Arunachal Pradesh and Kerala.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
Hornbills make their nests in tree hollows or rock crevices. Apart from color and form, their size also varies. The black dwarf hornbill weighs only 1.06 kg, while the southern ground hornbill can weigh up to 6.2 kg. The male is larger in size than the female. The shape of the beak is also found to be different in these birds.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||

Hornbill is a diurnal bird. It lives in pairs or in groups. The female lays six white eggs at a time in the hollow of a tree or in a crevice of a rock. After laying eggs, the female often confines herself in this cavity. Male and female close the mouth of the cavity with a wall of mud. Only a hole is left in it to deliver food. During this, the male continues to deliver the fruit pulp to the female as food. When the babies are grown, the male and female remove the mud wall. Hornbill is omnivore (eats everything). It mainly eats fruits and small animals.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
The Dhanesh (hornbill), the state bird of Arunachal Pradesh, is the cultural symbol of the Nishi tribal group of the state. Historically, the people of the Nishi tribe hunted this bird and used its feathers and beak to make a special type of headgear. Its population was endangered due to heavy hunting.

In the past few years, efforts by the state to stop the hunting of the Dhanesh bird have focused on involving the people of this tribe. They were encouraged to use plastic and fiberglass in their hats instead of Dhanesh's beak.
अरुणाचल प्रदेश का राजकीय/ राज्य पक्षी || State Bird of Arunachal Pradesh ||
There are many more interesting information related to Dhanesh bird, which I will share in the next post.

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार

रामचरितमानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसकी रचना में २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था। इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है। 

श्रीरामचरितमानस के चमत्कार

  1. जिस घर में 1 माह में मात्र पूर्णिमा को प्रति माह रामायण का पाठ होता है उस घर में अकाल मृत्यु नहीं होती है।
  2. जिस घर में श्री रामचरितमानस रखी होती है वहां कभी भूत, पिशाच, प्रेतों का वास नहीं होता है।
  3. जिस घर में रामायण के पास शाम के समय दीपक जलाया जाता है उस घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है।
  4. जिस घर में श्री रामचरितमानस के पास सुबह शाम दीपक प्रतिदिन जलाया जाता है उस घर में आरोग्य बढ़ता है। बीमारियां कम होती हैं।
  5. जिस घर में यदि श्री रामचरितमानस की शाम के समय दीपक जलाकर श्री रामचरितमानस की आरती प्रतिदिन होती है उस घर पर श्रीराम जी की कृपा सदैव रहती है और घर में शांति का वातावरण रहता है। प्रभु की कृपा रहती है।
  6. जिस घर में प्रति सप्ताह रामायण का पाठ होता है उस घर पर श्रीराम जी व माता सीता जी की कृपा सदैव रहती है। उस घर में बच्चों की वृद्धि होती है।
  7. जिस घर में प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है। उस घर पर भगवान शिव, श्रीराम जी, सीता जी, श्री हनुमानजी, शनिदेव, नव ग्रह, 33 कोटि देवी देवताओं की सदैव कृपा रहती है।
  8. उस घर से दरिद्रता भाग जाती है, उस परिवार का यश बढ़ने लगता है, उस घर पर साक्षात माँ लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। बच्चों को कभी भय नहीे लगता है। भूत, प्रेत, पिशाच वहां प्रवेश नहीं कर सकते हैं । वह घर सुख, शान्ति, समृद्धि, धन, अन्न, संतान, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदारों आदि से परिपूर्ण होता है।
  9. रामायण की एक एक चौपाई लाखों मंत्रो के बराबर है और हर चौपाई कुछ न कुछ देने वाली है। हर भारतीय के घर में रामायण होनी चाहिये।
श्रीरामचरितमानस के चमत्कार

हर भारतीय के घर में रामायण होनी चाहिए। पारिवारिक प्रबंधन हमें रामायण सिखाती है रामायण हमें संसार में जीना सिखाती है।

सफेद तिल || White Sesame Seeds ||

सफेद तिल (White Sesame Seeds)

तिल से तो हम सभी परिचित ही हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है - सफेद तिल और काला तिल। शरद ऋतु में तिल के लड्डू हमारे भारतीय घरों में बनाए जाते हैं और बड़े ही शौक से खाए जाते हैं। आजकल विभिन्न प्रकार के पकवान में सफेद तिल का प्रयोग किया जा रहा है। आयुर्वेद में सफेद और कला तिल का बहुत महत्व है।

तिल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

तिल क्या है?

तिल एक शाकीय पौधा होता है, जो सीधा 30 से 60 सेंटीमीटर ऊंचा होता है। फूल 3 से 5 सेंटीमीटर तथा सफेद से बैंगनी रंग के होते हैं। तिल के बीज अधिकतर सफेद रंग के होते हैं, हालांकि वे रंग में काले, पीले, नीले और बैगनी रंग के भी हो सकते हैं। तिल प्रतिवर्ष बोया जाने वाला पौधा होता है, जिसकी खेती दुनिया भर के प्रायः सभी गर्म देशों में तेल के लिए की जाती है। इसकी पत्तियां 8 से 10 अंगुल तक लंबी और तीन से चार अंगुल तक चौड़ी होती हैं। इसके फूल गिलास के आकार के ऊपर चार दलों में विभक्त होते हैं। यह फूल सफेद रंग के होते हैं, जो मुंह पर भीतर की और बैंगनी धब्बे लिए हुए होते हैं।

तिल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

जानते हैं तिल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

ज्यादातर तिल की खेती तिल से प्राप्त होने वाले तेल के लिए की जाती है, परंतु इसमें कई औषधीय गुण भी विद्यमान है। सफेद तिल के बीज में विटामिन और मिनरल्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए सफेद तिल का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। तिल का सेवन विशेषकर सर्दियों के मौसम में किया जाना चाहिए, क्योंकि तिल की तासीर गर्म होती है, जो शरीर को गर्माहट देती है। तिल में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम, कॉपर, आयरन, विटामिन B6 और विटामिन ई जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो हमें कई रोगों से बचाने में मदद करते हैं।

हड्डियों के लिए

सफेद तिल में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और मैग्नीशियम पाए जाते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। तिल के सेवन से हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं, जिससे हड्डियों से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा कम होता है।

दांतो के लिए

  1. प्रतिदिन 20 ग्राम तिलों को चबा चबा कर खाने से दांत मजबूत होते हैं।
  2. मुंह में तिल को भरकर 5 से 10 मिनट तक रखने से पायरिया रोग में लाभ होता है तथा साथ ही दांत भी मजबूत होते हैं।

खांसी होने पर

  1. बदलते हुए मौसम में बार-बार तबीयत खराब होने से खांसी हो जाती है, तो तिल का सेवन लाभप्रद होता है। 30 से 40 मिलीलीटर तिल के काढ़े में दो चम्मच शहद मिलाकर पीने से खांसी में आराम होता है।
  2. तिल और मिश्री को उबालकर पिलाने से सुखी खांसी ठीक होती है।
तिल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में

सफेद तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जिससे हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और हम वायरस और अन्य वैक्टीरिया के चपेट में आने से बच सकते हैं।

मांसपेशियों के लिए

तिल में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जो मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। अतः सफेद तिल का सेवन करने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

पथरी की समस्या

छाया में सुखाएं गए तिल के कोमल कोपलों को 125 से 250 मिलीग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पथरी गल कर निकल जाती है।

जोड़ों में दर्द की समस्या

आजकल एसी का प्रयोग ज्यादा करने के कारण आर्थराइटिस जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं। किसी भी उम्र में यह समस्या बीमारी का रूप ले ले रही है। तिल तथा सोंठ चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन पांच 5 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन से चार बार सेवन करने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

तिल के नुकसान

कुष्ठ रोगियों को, सूजन वाले व्यक्ति को तथा डायबिटीज के रोगियों को भोजन में या किसी भी प्रकार से तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

तिल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

विभिन्न भाषाओं में तिल का नाम

Sanskrit–    तिल, स्नेहफल;
Hindi-        तिल, तील, तिली;
Urdu-        तिल (Til);
Oriya-        खसू (Khasu), रासी (Rasi);
Kannada–एल्लू (Ellu), येल्लु (Yellu);
Gujrati-    तल तिल (Tal til);
Telugu-    नुव्वुलु (Nuwulu);
Tamil-        एब्लु नूव्वूलु (Eblu nuvulu);
Bengali-    तिलगाछ तिल (Tilgach til);
Nepali-      तिल (Til);
Punjabi-    तिल (Til), तिलि (Tili);
Malayalam–एल्लू (Ellu), करुयेल्लू (Karuyellu);
Marathi-    तील तिल (Teel til)।
English-    तील ऑयल (Teel oil), तिलसीड (Tilseed);
Arbi-        सिमसिम (Simsim), सिमासिम (Simasim), शिराज (Shiraj);
Persian-    कुंजद (Kunjad), कुँजेड (Kunjed), रोगने शिरीन (Roghane-shirin)।

काला तिल ~ Sesame


महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||

महादेवी वर्मा

देखने में जितनी ही सादा सरल व्यक्तित्व, उतनी ही उच्च प्रतिभा। महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma), यह नाम किसी भी परिचय का मोहताज नहीं। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हिंदी भाषा की महान कवयित्री, महादेवी वर्मा जिन्हें हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्रीयों में से एक होने के गौरव प्राप्त है। आधुनिक हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्री होने के कारण उन्हें "आधुनिक मीराबाई" के नाम से भी जाना जाता है।

महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1906 को फर्रुखाबाद में हुआ था। 80 साल की उम्र में उनकी मृत्यु 11 सितंबर 1987 में प्रयागराज में हुई। महादेवी वर्मा जी का जन्म उस समय हुआ था जब भारत गुलामी के दौर से गुजर रहा था और महादेवी वर्मा एक ऐसी कवयित्री थीं, जिन्होंने भारत की गुलामी और आजदी दोनों ही देखी, जिसकी छाप उनके साहित्य में नजर आती है। ना केवल उनका काव्य अपितु उनके समाज सुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना से ओतप्रोत रचनाएं भी महादेवी वर्मा ने लिखे हैं।

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1906 को हुआ था। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या 7 पीढ़ियों के बाद पुत्री का जन्म हुआ था। इस कारण जब यह पैदा हुईं तब इनके बाबा बांके बिहारी जी खुशी से झूम उठे और इन्हें घर की देवी मानते हुए इनका नाम महादेवी रख दिया। 

महादेवी वर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर से की और उन्होंने चित्रकला, संस्कृत और अंग्रेजी की पढ़ाई घर पर अध्यापकों द्वारा पूरी की। 1916 में उनके बाबा श्री बांके बिहारी जी ने इनका विवाह बरेली के नवाबगंज कस्बे के एक निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दी। विवाह के कारण इनकी शिक्षा कुछ दिन तक स्थगित रही, परंतु विवाह उपरांत महादेवी जी ने 1919 में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। वह पढ़ाई में बहुत ही तेज थी, इसीलिए उन्होंने 1921 में आठवीं कक्षा में प्रांत भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था और यहीं से उनके काव्य जीवन की शुरुआत भी हुई। 

7 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था। 1925 में जब तक उन्होंने हाईस्कूल पास की तब तक वह बहुत ही सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। 1932 में इन्होंने प्रयागराज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया और इनकी दो कविता संग्रह रश्मि और विहार इस समय तक प्रकाशित हो चुकी थीं। 
महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||

वैवाहिक जीवन

सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बन्ध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। 

उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में रात 9 बजकर 30 मिनट पर उनका देहांत हो गया।

महादेवी वर्मा को मिली प्रमुख पुरस्कार और सम्मान

  1. महादेवी वर्मा को 1943 में मंगलाप्रसाद पारितोषिक भारत भारती के लिए मिला।
  2. महादेवी वर्मा को 1952 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए मनोनीत भी किया गया।
  3. 1956 में भारत सरकार ने साहित्य की सेवा के लिए इन्हें पद्म भूषण भी दिया।
  4. महादेवी वर्मा को मरणोपरांत 1988 में पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया।
  5. महादेवी वर्मा को 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इनको डी.लिट (डॉक्टर ऑफ लेटर्स) की उपाधि दी।
  6. महादेवी जी को 1934 में नीरजा के लिए सक्सेरिया पुरस्कार दिया गया।
  7. 1942 में स्मृति की रेखाएं के लिए द्विवेदी पदक दिया गया।
  8. यामा के लिए महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
EnglishTranslate 

mahadevi Verma

The simpler the personality, the higher the talent. Mahadevi Verma, this name does not need any introduction. Mahadevi Verma, one of the four major pillars of the Chhayavadi era, the great poetess of Hindi language, who has the distinction of being one of the most powerful poetesses of Hindi. Being the most powerful poetess of modern Hindi, she is also known as "modern Mirabai".
  महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||
Mahadevi Verma was born on 26 March 1906 in Farrukhabad. He died at the age of 80 on 11 September 1987 in Prayagraj. Mahadevi Verma ji was born at a time when India was going through a period of slavery and Mahadevi Verma was such a poetess who saw both India's slavery and freedom, whose impression is visible in her literature. Mahadevi Verma has written not only his poetry but also his works of social reform and compositions full of consciousness towards women.

Biography of Mahadevi Verma

Mahadevi Verma was born on 26 March 1906 in Farrukhabad, Uttar Pradesh. A daughter was born in their family after about 200 years or 7 generations. Because of this, when she was born, her Baba Banke Bihari ji was overjoyed and considering her as the goddess of the house, named her Mahadevi.

Mahadevi Verma did her early education from the Mission School, Indore and completed her painting, Sanskrit and English studies at home from teachers. In 1916, her Baba Shri Banke Bihari ji got her married to Shri Swaroop Narayan Verma, a resident of Nawabganj town of Bareilly. Due to marriage, her education was postponed for a few days, but after marriage, Mahadevi ji took admission in Crosthwaite College, Allahabad in 1919 and started living in the hostel of the college. She was very bright in studies, that's why in 1921, she got the first position in the eighth grade across the province and from here her poetic life also started.
महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||
At the age of 7, he started writing poetry. By the time she graduated high school in 1925, she had become a very successful poet. In 1932, he did his post graduation from Prayagraj University and his two poetry collections Rashmi and Vihar had been published by this time.

married life

In 1916, her father Mr. Banke Vihari got her married to Mr. Swaroop Narayan Verma, a resident of Nabavganj town near Bareilly, who was then a student of class X. Mr. Verma started living in the boarding house in Lucknow Medical College after entering. Mahadevi ji was at that time in the hostel of Crasthwaite College, Allahabad. Mrs. Mahadevi Verma was disenchanted with married life. Whatever may have been the reason, but there was no enmity with Shri Swaroop Narayan Verma. As a normal man and woman, their relationship remained sweet. Sometimes there was also correspondence between the two. Occasionally Mr. Verma used to come to meet him in Allahabad. Mr. Verma did not remarry even on the advice of Mahadevi ji. Mahadevi ji's life was the life of a sannyasini. He wore white clothes throughout his life, slept on a cot and never saw a mirror. After the death of her husband in 1966, she started living permanently in Allahabad.

He spent most of his life in Allahabad city of Uttar Pradesh. He died on September 11, 1987 in Allahabad at 9.30 pm.
महादेवी वर्मा || Mahadevi Verma ||

Mahadevi Verma received major awards and honors

  1. Mahadevi Varma received the Mangalaprasad Award in 1943 for Bharat Bharati.
  2. Mahadevi Verma was also nominated to the Uttar Pradesh Legislative Council in 1952.
  3. In 1956, the Government of India also gave him the Padma Bhushan for his service to literature.
  4. Mahadevi Verma was posthumously awarded the Padma Vibhushan in 1988.
  5. Vikram University in 1969, Kumaun University, Nainital in 1977, Delhi University in 1980 and Banaras Hindu University, Varanasi in 1984 conferred D.Lit (Doctor of Letters) on Mahadevi Verma.
  6. Mahadevi ji was given the Sakseria Award in 1934 for Neerja.
  7. In 1942, the Dwivedi Medal was given for the lines of memory.
  8. Jnanpith Award was given to Mahadevi Verma for Yama.

मित्र की शिक्षा मानो : पंचतंत्र || Mitra ki Shiksha Mano : Panchtantra ||

मित्र की शिक्षा मानो

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा मित्रोक्तं न करोति यः। 
एव निधनं याति यथा मन्चरकोलिकः।

 मित्र की बात सुनो, पत्नी की नहीं। मित्र की शिक्षा मानो : पंचतंत्र || Mitra ki Shiksha Mano : Panchtantra ||

एक बार मन्थरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए उपकरणों को फिर बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर यह समुद्र तट पर स्थित वन की ओर चल दिया। समुद्र के किनारे पहुँचकर उसने एक वृक्ष देखा और सोचा कि इसकी लकड़ी से उसके सब उपकरण बन जाएँगे। यह सोचकर वृक्ष के तने में वह कुल्हाड़ी मारने को ही था कि वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए एक देव ने उसे कहा- मैं वृक्ष पर सुख से रहता हूँ और समुद्र की शीतल हवा का आनन्द लेता हूँ। तुम्हारा इस वृक्ष को काटना उचित नहीं। दूसरे के सुख को छीनने वाला कभी सुखी नहीं होता।

जुलाहे ने कहा- मैं भी लाचार हूँ। लकड़ी के बिना मेरे उपकरण नहीं बनेंगे, कपड़ा नहीं बुना जाएगा, जिससे मेरे कुटुम्बी भूखे मर जाएँगे। इसलिए अच्छा यही है कि तुम किसी और वृक्ष का आश्रय लो, मैं इस वृक्ष की शाखाएँ काटने को विवश हूँ।

देव ने कहा- मन्थरक! मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी एक वर माँग लो, मैं उसे पूरा करूंगा, केवल इस वृक्ष को मत काटो। मन्थरक बोला- यदि यही बात है, तो मुझे कुछ देर का अवकाश दो। मैं अभी घर जाकर अपनी पत्नी से और मित्र से सलाह करके तुमसे वर मागूँगा। देव ने कहा- मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा। 

गाँव में पहुँचने के बाद मन्थरक की भेंट अपने एक मित्र नाई से हो गई। उसने उससे पूछा-मित्र! एक देव मुझे वरदान दे रहा है, मैं तुमसे पूछने आया हूँ कि कौन-सा वरदान माँगा जाए? नाई ने कहा - यदि ऐसा है तो राज्य माँग ले मैं तेरा मन्त्री बन जाऊँगा। हम सुख से रहेंगे।

तब, मन्थरक ने अपनी पत्नी से सलाह लेने के बाद वरदान का निश्चय लेने की बात नाई से कही। नाई ने स्त्रियों के साथ ऐसी मन्त्रणा करना नीति - विरुद्ध बतलाया। उसने सम्मति दी कि स्त्रियाँ प्रायः स्वार्थ-परायण होती हैं। अपने सुख-साधन के अतिरिक्त उन्हें कुछ भी सूझ नहीं सकता। अपने पुत्र को भी जब वे प्यार करती हैं, तो भविष्य में उसके द्वार सुख की कामनाओं से ही करती हैं।

मन्थरक ने फिर भी पत्नी से सलाह लिए बिना कुछ भी न करने का विचार प्रकट किया। घर पहुँचकर वह पत्नी से बोला- आज मुझे एक देव मिला है। वह एक वरदान देने को उद्यत है। नाई की सलाह है कि राज्य माँग लिया जाए तू बता कि कौन-सी चीज़ माँगी जाए?

पत्नी ने उत्तर दिया- राज्य शासन का काम बहुत कष्टप्रद है। सन्धि विग्रह आदि से ही राजा को अवकाश नहीं मिलता। राजमुकुट प्रायः काँटों का ताज होता है। ऐसे राज्य से क्या अभिप्राय जो सुख न दे?

मन्थरक ने कहा-प्रिय! तुम्हारी बात सच है, राजा राम को और राजा नल को भी राज्य प्राप्ति के बाद कोई सुख नहीं मिला था। हमें भी कैसे मिल सकता है? किन्तु प्रश्न यह है कि राज्य न माँगा जाए, तो फिर क्या माँगा जाये। 

मन्थर की पत्नी ने उत्तर दिया- तुम अकेले दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो उसमें भी हमारा व्यय पूरा हो जाता है। यदि तुम्हारे हाथ दो की जगह चार हों और सिर भी एक की जगह दो हों तो कितना अच्छा हो। तब हमारे पास आज की अपेक्षा दुगुना कपड़ा हो जाएगा। इससे समाज में हमारा मान बढ़ेगा।

मन्दरक को पत्नी की बात जंच गई। समुद्र-तट पर जाकर वह देव से बोला- यदि आप वर देना ही चाहते हैं तो यह वर दें कि मैं चार हाथ और दो सिर वाला हो जाऊँ।

मन्यस्क के कहने के साथ ही उसका मनोरथ पूरा हो गया। उसके दो सिर और चार हाथ हो गए। किन्तु इस बदली हालत में वह गाँव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया और राक्षस-राक्षस कहकर सब उस पर टूट पड़े।

चक्रधर ने कहा- बात तो सच है। पत्नी की सलाह न मानता, और मित्र की ही मानता, तो उसकी जान बच जाती। सभी लोग आशा-रूपी पिशाचिनों से दबे हुए ऐसे काम कर जाते हैं, जो जगत् में हास्यास्पद होते हैं; जैसे सोमशर्मा के पिता ने किया था। स्वर्णसिद्धि किस तरह?

तब चक्रधर ने यह कहानी सुनाई:

शेखचिल्ली न बनो

To be Continued...

पंचतंत्र की सभी कहानियां निति निपुण हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है, पर इन कहानियों में ये एक कहानी ऐसी है, जिससे मैं सहमत नहीं हूँ। वर्तमान में आज नारी हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कदम से कदम मिला के चल रहीं हैं, इसमें कहीं से यह निति निपुण नहीं है कि महिलाओं से सलाह ना ली जाये।  

विश्व तपेदिक दिवस || विश्व क्षयरोग दिवस || World Tuberculosis Day ||

विश्व तपेदिक दिवस

आज विश्व तपेदिक दिवस(world TB day) है।

दुनिया में तपेदिक के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है।  दुनिया में तपेदिक और इसके खतरनाक परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस मनाया जाता है। तपेदिक के घातक संक्रमण को रोकने और उपचार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व टीबी दिवस के दिन विभिन्न प्रकार के अभियानों और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

विश्व तपेदिक दिवस || विश्व क्षयरोग दिवस || World Tuberculosis Day ||

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, टीबी दुनिया के सबसे घातक संक्रामक रोगों में से एक है। हर दिन लगभग 4000 लोग टीबी से अपनी जान गंवाते हैं और करीब 28,000 लोग इस  बीमारी से बीमार पड़ते हैं। टीबी से निपटने के वैश्विक प्रयासों ने वर्ष 2000 से अनुमानित 63 मिलियन लोगों की जान बचाई है।

विश्व क्षय रोग दिवस पहली बार 24 मार्च 1982 को डॉ रॉबर्ट कोच की 100वीं वर्षगांठ पर मनाया गया था, जिन्होंने तपेदिक बैसिलस वायरस की खोज की थी।

विश्व तपेदिक दिवस || विश्व क्षयरोग दिवस || World Tuberculosis Day ||

प्रत्येक विश्व टीबी दिवस की थीम अलग होती है। विश्व टीबी दिवस 2023 की थीम है

"हां, हम टी बी को समाप्त कर सकते हैं।" 

 तपेदिक यबटीबी एक संक्रामक संक्रमण है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। आमतौर पर, टीबी के जीवाणु फेफड़ों पर हमला करते हैं, लेकिन वे शरीर के किसी भी हिस्से जैसे किडनी, रीढ़ और मस्तिष्क पर हमला कर सकते हैं। पहले, टीबी मौत का एक प्रमुख कारण था लेकिन आजकल ज्यादातर मामलों को एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक किया जाता है। बस आपको कम से कम 6 से 9 महीने तक दवा खानी है।

आज समाज मे जागरूकता बढ़ी है लेकिन अभी इसे उर बढ़ाने की आवश्यकता है।

English Translate

world tuberculosis day

Today is world TB day.

World TB Day is observed every year on 24 March to raise awareness about tuberculosis in the world. World Tuberculosis (TB) Day is observed every year on 24 March to raise awareness about tuberculosis and its dangerous consequences in the world. Various types of campaigns and health awareness programs are organized every year on World TB Day with the aim of preventing and treating the deadly infection of tuberculosis.

विश्व तपेदिक दिवस || विश्व क्षयरोग दिवस || World Tuberculosis Day ||

According to WHO, TB is one of the deadliest infectious diseases in the world. Every day about 4000 people lose their lives to TB and about 28,000 people fall ill with the disease. Global efforts to combat TB have saved an estimated 63 million lives since 2000.

World Tuberculosis Day was first observed on 24 March 1982 to mark the 100th anniversary of Dr. Robert Koch, who discovered the tuberculosis bacillus virus.

Each World TB Day has a different theme. The theme for World TB Day 2023 is

विश्व तपेदिक दिवस || विश्व क्षयरोग दिवस || World Tuberculosis Day ||

"Yes, we can eliminate T B."

  Tuberculosis (TB) is a contagious infection caused by a bacterium called Mycobacterium tuberculosis. Typically, TB bacteria attack the lungs, but they can attack any part of the body, such as the kidneys, spine, and brain. Earlier, TB was a major cause of death but nowadays most cases are cured with antibiotics. All you have to do is take the medicine for at least 6 to 9 months.

Today awareness has increased in the society but now it needs to be increased.

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद दिवस

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद दिवस


"लिख रहा हूँ मैं अंजाम जिसका कल आगाज़ आयेगा,
मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा,
मैं रहूँ या न रहूँ पर मेरा वादा हैं तुमसे कि,
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा"

आज शहीदी दिवस के मौके पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शहीद सूखदेव और शहीद राजगुरू के बलिदान को कोटिशः नमन 

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद दिवस

भारत देश में प्रतिवर्ष 7 शहीद दिवस मनाया जाते हैं। शहीदी दिवस शहीदों के सम्मान में मनाया जाता है। यह सात दिन 30 जनवरी, 23 मार्च, 19 मई, 21 अक्टूबर, 17 नवंबर, 19 नवंबर और 24 नवंबर है।

आज के दिन अर्थात 23 मार्च को भारत के सपूत शहीद भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु ने हंसते-हंसते फांसी की सजा को गले लगा लिया था। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने निर्धारित समय से पूर्व ही 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दे दी थी। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु ने बहुत ही कम उम्र में ही देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसीलिए 23 मार्च को प्रतिवर्ष भारत मां के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि देने के लिए शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद दिवस

भारत मां के तीनों वीर सपूतों को फांसी की सजा देने के लिए अंग्रेजों ने 24 मार्च 1931 की तारीख तय की थी, परंतु शहीद भगत सिंह के हद से ज्यादा युवा समर्थको द्वारा विद्रोह का अंदेशा था, इसलिए उन्होंने 24 मार्च 1931 की तय तारीख से पहले ही 23 मार्च को रात को फांसी की सजा दे दी थी।

भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई। 

23 मार्च : भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीद दिवस

शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगतसिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।

शहीद राजगुरु : 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ। शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे।

World Water Day

World Water Day

World Water Day

किसी का प्यास
तो सिर्फ पानी बुझा सकता है,
एक बूंद की किमत
सिर्फ प्यास बता सकता है ..!

हमारे देखते ही देखते निःशुल्क उपलब्ध होने वाला पानी बोतलों में बंद हो गया। "जल ही जीवन है" इस कथन की सत्यता बताने की आवश्यकता नहीं है। जिस जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, उस जल की समस्या ना सिर्फ भारत में अपितु दुनियाभर के लगभग सभी देशों में है। यही वजह है कि विश्व जल दिवस पर मनाने की पहल हुई। जल संरक्षण और रखरखाव को लेकर दुनिया भर के लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए विश्व जल दिवस मनाया जाता है यह दिन जल के महत्व को जानने समय रहते जल संरक्षण को लेकर सचेत होने और पानी को बचाने का संकल्प लेने का दिन है।

World Water Day 2023

विश्व जल दिवस मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 1992 में ब्राजील के रियो डे जेनरियो में आयोजित पर्यावरण और तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन यू एन सी ई डी में की गई थी। पहला विश्व जल दिवस 22 मार्च 1993 को मनाया गया था।

विश्व जल दिवस 2023 की थीम

 विश्व जल दिवस प्रतिवर्ष 1 टम के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व जल दिवस 2023 की थीम अक्षय रेटिंग चेंज अर्थात पानी में तेजी रखी गई है इस वर्ष 2023 में वाटर डे को बी द चेंज अभियान के तहत मनाया जा रहा है।

विश्व जल दिवस के अवसर पर तरह तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है तथा नाटक कविताओं भाषण पोस्टर तस्वीरों और स्लोगन के जरिए लोगों को जल के महत्व और इसके संरक्षण के विषय में जानकारी दी जाती है।

World Water Day 2023

पृथ्वी का 71% हिस्सा पानी से ढका हुआ है शेष भाग पर जीवन जीते मानव जीव जंतु है जंगल मैदान पठार पर्वत मौजूद हैं। अधिकांश संस्कृतियों का विकास भी नदी के किनारे ही हुआ है हर प्राणी जल पर निर्भर रहता है और हम सभी जानते हैं कि जल का अनावश्यक उपयोग भी हो रहा है ऐसे में इसके संरक्षण की नितांत आवश्यकता है जल के संरक्षण का संरक्षण हर मनुष्य की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

English Translate

world water day

The water which was available free of cost got sealed in bottles as soon as we saw it. There is no need to tell the truth of this statement "Water is life". The problem of water, without which life cannot be imagined, has become a serious problem not only in India but in almost all the countries around the world. This is the reason why the initiative to celebrate World Water Day was taken. World Water Day is celebrated to spread awareness among people around the world about water conservation and maintenance. This day is a day to be conscious about water conservation and to take a pledge to save water while knowing the importance of water.

World Water Day 2023

The celebration of World Water Day was announced by the United Nations in 1992 at the United Nations Conference on Environment and Development (UNCED) held in Rio de Janeiro, Brazil. The first World Water Day was celebrated on 22 March 1993.

Theme of World Water Day 2023

  World Water Day is celebrated annually with 1 Tum. This year the theme of World Water Day 2023 has been Akshay Rating Change i.e. speeding up water. This year in 2023, Water Day is being celebrated under the Be the Change campaign.

Various programs are organized on the occasion of World Water Day and people are informed about the importance of water and its conservation through plays, poems, speeches, posters, pictures and slogans.

World Water Day 2023

71% of the earth is covered with water, on the remaining part, living human beings are animals, forests, plains, plateaus, mountains are present. Most of the cultures have also developed on the banks of the river, every living being depends on water and we all know that unnecessary use of water is also being done, in such a situation there is an urgent need for its conservation. Conservation of water is the first priority of every human being. Should be

सनातन नववर्ष संवत्सर २०८० || हिन्दू नववर्ष 2023 ||

सनातन नववर्ष संवत्सर २०८०

सनातन नववर्ष चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा (प्रथम) तिथि को मनाया जाता हैं। अंग्रेजी कैलेंडर 2023 के अनुसार २१ मार्च को रात्रि १० बजकर ५३ मिनट पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि आरंभ होगी तथा २२ मार्च को नववर्ष का प्रथम दिवस है। सनातन नववर्ष को नव संवत्सर, वर्ष प्रतिपदा, विक्रम संवत वर्षारंभ, युगादि आदि नामों से भी जाना जाता हैं। वैदिक पंचांग गणना के अनुसार नव संवत्सर २०८० का नाम पिंगल है, वर्ष के आरंभ में 'नल' नाम का संवत्सर रहेगा और पिंगल का प्रभाव २४ अप्रैल से आरंभ होगा। ज्योतिष गणना के अनुसार, सनातन नववर्ष का प्रथम दिन जिस वार पर पड़ता है पूरा वर्ष उस ग्रह का स्वामित्व माना जाता हैं। नववर्ष २०८० बुधवार से आरंभ हो रहा है, ऐसे में बुध ग्रह इस पूरे वर्ष के स्वामी मानें जाएंगे।

सनातन नववर्ष संवत्सर २०८० || हिन्दू नववर्ष 2023 ||

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व

१. ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना प्रारंभ
२. चारों युग सत, त्रेता, द्वापर, कलि का प्रथम दिन
३. चैत्र मास नवरात्रि का प्रथम दिन
४. रामायण काल में प्रभु श्री राम और महाभारत काल में पांडव युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ
५. महर्षि गौतम जंयती
६. सम्राट विक्रमादित्य ने अपने राज्य की स्थापना की तथा वर्ष ५७ ईसा पूर्व में विक्रम संवत (पंचांग) आरंभ किया था।
विक्रम संवत = ईस्वी वर्ष + ५७
७. सम्राट शालिवाहन या कुषाण शासक कनिष्क द्वारा वर्ष ७८ ईस्वी में शक संवत (पंचांग) आरंभ किया गया। अंग्रेजों से स्वतंत्रता पश्चात भारत सरकार ने शक संवत (पंचांग) को भारत का आधिकारिक राष्ट्रीय कैलेंडर स्वीकार किया।
शक संवत = ईस्वी वर्ष - ७८
८.सिखों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस
९. झूलेलाल जयंती / चेटीचंड

सिंध राज्य में इस्लामी आक्रांता मिरखशाह का शासन था और वह गैर मुस्लिमों पर बहुत अत्याचार करता था, एक दिन उसने गैर मुस्लिमों को इस्लाम में परिवर्तित होने का आदेश जारी किया। सिंध के गैर मुस्लिमों ने ४० दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी से जल देवता वरुण एक विशाल मत्स्य पर बैठे हुए झूलेलाल रुप में प्रकट हुए और जनता को आश्वस्त किया कि वह जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएंगे। 

१०. महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना

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सनातन नववर्ष का प्राकृतिक महत्व

१. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से होता हैं जो उल्लास, उमंग, प्रसन्नता से पूर्ण तथा चारों दिशाओं में पुष्पों की सुगंध भरी होती हैं।

२. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात किसी भी कार्य को आरंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त होता है।

३. वर्ष प्रतिपदा चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस है। जीवन के मुख्य आधार औषधियों और वनस्पतियों को रस चंद्रमा ही प्रदान करता है।

४. उपज पकने का समय अर्थात किसान के परिश्रम का फल मिलने का समय।

सनातन नववर्ष के अवसर पर लोग एक दूसरे को तथा परिचित संबंधियों को नववर्ष की शुभकामनाएं एवं बधाइयां देते हैं। इस दिन घरों, प्रतिष्ठानों, पूजा स्थलों पर रंगोली, ऐपण, पत्तों की वंदनवार से सजाया जाता है। घरों की छत पर  ध्वजारोहण होता है। इस दिन कुछह लोग पीले या भगवा वस्त्र धारण करते हैं। यह दिन ईश्वर का स्मरण करने का तथा माता पिता, गुरुजनों आदि का आशीर्वाद प्राप्त करने का है।

 इस दिन विभिन्न सांस्कृतिक, धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन समाज की भलाई के लिए भी कुछ अवश्य करना चाहिए।

सनातन नववर्ष संवत्सर २०८० || हिन्दू नववर्ष 2023 ||

 इस दिन धर्म रक्षा, जीवन को उत्तम बनाने तथा समाज में योगदान देने हेतु नवीन प्रवृत्तियों को अपनाने तथा हानिकारक प्रवृत्तियां छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए।

सभी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें..