जैसे को तैसा : पंचतंत्र

जैसे को तैसा

तुलां  लोहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषिकाः 
राजन्स्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः 

जहां मन भर लोहे की तराजू को चूहे खा जाएं 
वहां की चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।

जैसे को तैसा : पंचतंत्र 

एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिया का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेस जाने का विचार किया। उसके घर में विशेष संपत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन भर लोहे की तराजू थी। उसे एक महाजन के पास धरोहर रख कर वह विदेश चला गया। विदेश से वापस आने के बाद उसने महाजन से अपनी धरोहर वापस मांगी। महाजन ने कहा - वह लोहे की तराजू तो चूहों ने खा ली। 

बनिए का लड़का समझ गया कि वह उसे तराजू देना नहीं चाहता, किंतु अब उपाय कोई नहीं था। कुछ देर सोचकर उसने कहा कोई चिंता नहीं चूहों ने खा डाली, तो चूहों का दोष है, तुम्हारा नहीं। तुम उसकी चिंता ना करो। 

थोड़ी देर बाद बनिए ने उस महाजन से  कहा - मित्र! नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूं। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आएगा। 

जैसे को तैसा : पंचतंत्र

महाजन बनिए की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने तत्काल अपने पुत्र को उसके साथ नदी स्थान के लिए भेज दिया। बनिए ने महाजन के पुत्र को वहां से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बंद कर दिया। गुफा के द्वार पर बड़ी शिला रख दी, जिससे वह निकल कर भाग ना पाए। फिर जब वह महाजन के घर आया, तो महाजन ने पूछा मेरा लड़का भी तो तेरे साथ स्नान के लिए गया था, वह कहां है? 

बनिए ने कहा -"उसे चीज उठाकर ले गई।"

महाजन - यह कैसे हो सकता है। कभी चील भी इतने बड़े बच्चे को उठाकर ले जा सकती है? 

बनिया - भले आदमी! यदि चील बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती, तो चूहे भी मन भर भारी लोहे की तराजू को नहीं खा सकते। तुझे बच्चा चाहिए तो तराजू निकाल कर दे दे। 

इसी तरह विवाद करते हुए दोनों राजमहल में पहुंचे। वहां न्याय अधिकारी के सामने महाजन ने अपनी दुख कथा सुनाते हुए कहा कि इस बनिए ने मेरा लड़का चुरा लिया है। 

धर्माधिकारी ने बनिए से कहा - उसका लड़का इसे दे दो। 

बनिया बोला - महाराज! उसे तो चील उठा ले गई है। 

धर्माधिकारी - क्या कभी चील भी बच्चे को उठा ले जा सकती है? 

बनिया - प्रभु! यदि मन भर भारी तराजू को चूहे खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है। 

धर्माधिकारी के प्रश्न पर बनिए ने सब वृतांत कह सुनाया। 

कहानी कहने के बाद दमनक को पर करटक ने फिर कहा - "तूने भी असंभव को संभव बनाने का यत्न किया है। तूने स्वामी का हित चिंतक होकर अहित कर दिया है। ऐसे हित चिंतक मूर्ख मित्रों की अपेक्षा, अहित चिंतक वैरी अच्छे होते हैं। हित चिंतक मूर्ख बंदर से हितसंपादन करते-करते राजा का खून ही कर दिया था।"

दमनक ने पूछा - कैसे?

कटक ने तब बंदर और राजा की यह कहानी सुनाई। 

मूर्ख मित्र

To be continued ...

बेला || jasmine

 बेला (Jasmine)

आज यहां एक ऐसे पुष्प की चर्चा करेंगे सभी जिसकी खुशबू के दीवाने हैं। इस फूल का प्रयोग माला बनाने में किया जाता है जो कि भगवान को अर्पित करते हैं। इसके साथ ही इस फूल का गजला बनता है जो महिलाएं अपने बालों में लगाती हैं। इसकी खुशबू जितनी मनमोहक होती है पुष्प भी उतना ही खूबसूरत होते हैं। बेला के फूल देखने में और सुगंध से मन को तो शांति देते ही हैं साथ ही इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। हां जी हां इसके औषधीय गुणों की चर्चा करते हैं।

बेला || jasmine

बेला क्या है?

बेला एक जालीदार पौधा है जिस की लताएं होती हैं और सहारा पाकर ऊपर की तरफ बढ़ती हैं। इसमें सफेद रंग के पुष्प खिलते हैं, जो बहुत सुगंधित होते हैं। यह संपूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है।

जानते हैं बेला के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में 

सिर दर्द की समस्या 

बेला के फूलों को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द में आराम होता है।

आँख संबंधी समस्या 

  • रात्रि में मालती तथा मल्लिका के फूलों को आँखों पर बांधकर सोने से नेत्र विकारों में लाभ होता है।
  • बेला पत्र एवं मूल का क्वाथ बनाकर ठंडा करके आंखों को धोने से नेत्र विकारों का शमन होता है।
बेला || jasmine

नकसीर की समस्या  

बेला के पुष्पों को तिल तेल में पकाकर, छानकर 1-2 बूँद तेल का नस्य लेने से लाभ होता है।

कर्ण विकार 

बेला पुष्प से तिल तेल का पाक करके 1-2 बूँद तेल को कान में डालने से कर्णविकारों का शमन होता है।

मुखरोग

बेला पत्र का क्वाथ बनाकर गरारा करने से मुख रोगों का शमन होता है।

रक्तातिसार की समस्या

बेला के 2-4 कोमल पत्रों को पानी में पीसकर, छानकर, मिश्री मिलाकर सेवन कराने से रक्तज अतिसार में लाभ होता है।

मासिक विकार (आर्तव विकार)

बेला की मूल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से आर्तव विकारों में लाभ होता है।

बेला || jasmine

मोच लगने पर

बेला मूल को पीसकर लेप करने से मोच में लाभ होता है।

त्वचा रोग में

बेला के पत्र को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी विकारों, क्षत व व्रण में लाभ होता है तथा घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।

व्रण

बेला के शुष्क पत्रों को जल में भिगोकर, इसको पीसकर लेप बनाकर वेदनारहित व्रण पर लगाने से लाभ होता है।

पित्तोन्माद

बेला के पुष्पों का शर्बत बनाकर पिलाने से पित्तोन्माद में लाभ होता है।

बुखार होने पर

  • बेला की नवीन कोमल मूल को दिन में अनेक बार चबाकर उसका रस चूसने से आंत्रिकज्वर में लाभ होता है।
  • बेला पत्र-स्वरस (5-10 मिली) अथवा क्वाथ (10-15 मिली) का सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।

रक्तपित्त

10-15 मिली बेला मूल क्वाथ में खांड व शहद मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

शरीर में जलन की समस्या

पत्र में कर्पूर तथा चन्दन मिलाकर, कल्क बनाकर लेप करने से दाह का शमन होता है।

बेला || jasmine

विभिन्न भाषाओं में बेला का नाम 

वानस्पतिक नाम : Jasminum sambac (जेसमिनम सैमबॅक) अंग्रेज़ी नाम : Arabian jasmine

संस्कृत-भद्रावलि, दलकोषका, दंतपत्र, देवलता, गंधराजा, गौरी, कौशिक, मल्लिका, शीतभीरु, भूपदी, तृणशून्य, वार्षिकी, नवमल्लिका; 

हिन्दी-वनमल्लिका, चम्बा, मुगरा, मोगरा, मोतिया, बेला; 

उर्दू- आजाद (Ajad), सोसन (Sosan); उड़िया-बेलोफुलो (Belophulo), बोन्दुमल्ली (Bondumalli); कोंकणी-मोगोरिम (Mogorim) कन्नड़-चांदमलिगे (Chandmalige), दुन्दुमलिगे (Dundumalige); 

गुजराती-डोलर (Dolar), मोगरो (Mogro); 

तमिल-अडुक्कु मल्लि (Adakku malli), अनांनगम (Anangam), इरूवची (Iruvachi); 

तैलुगु-बोद्दुमल्ले (Boddumalle), बोन्दुमल्ले (Bondumalle);

 बंगाली-वनमल्लिका (Banmallika), बेल (Bel); 

नेपाली-बेलिफूल (Beliphool), मल्लिका (Mallika); 

पंजाबी-चम्बा (Chamba), चाम्बेली (Chambeli); 

मराठी-मोगरा (Mogra), मल्लिका (Mallika), मोगरो (Mogro); मलयालम-चेरूपिचाकम (Cherupichakam), चिराकमुल्ला (Chirakamulla)।

अंग्रेजी-लिली जसमिन (Lily jasmine), सैमबैक जसमिन (Sambac jasmine), तसकन जसमिन (Tuscan jasmine); 

अरबी-समान (Saman), सोसन (Sosan); 

फारसी-गुलेसुफेद (Gulesufed), जम्बाक (Jambak)।

बेला || jasmine

बेला से नुकसान 

अभी तक बेला से विषय में किसी भी नुकसान का पता नहीं चला है।

तेनालीराम: सोने के आम || Tenaliram: Sone ke Aam

 सोने के आम 

ये उन दिनों की बात है जब राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वृद्ध हो गई थीं। एक बार वे बहुत बीमार पड़ गईं। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। मरने की आशंका से उन्होंने राजा कृष्णदेव राय से अपनी इच्छा प्रकट की। उन्हें आम बहुत पसंद थे, इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं। उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आम दान करने की इच्छा प्रकट की। 

तेनालीराम: सोने के आम || Tenaliram: Sone ke Aam

उन्हें ऐसा लगता था कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। दुर्भाग्यवश कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गईं। उनकी मृत्यु के बाद राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी मां की अंतिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया। 

कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्मण बोले- "यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अंतिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शांति का उपाय करना चाहिए।" 

तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्मण बोले - "उनकी आत्मा की शांति के लिए आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना चाहिए।" अतः ब्राह्मणों की बात मानते हुए राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए। 

जब तेनालीराम को यह पता चली तो वह तुरंत समझ गए कि ब्राह्मण लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठा रहे हैं। तेनालीराम को यह बात गवारा नहीं गुजरा और उन्होंने उन ब्राह्मणों को पाठ पढ़ाने की एक योजना बनाई। 

अगले दिन तेनालीराम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहते हैं, क्योंकि मेरी माता भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर इस दुनिया से चली गई थीं। जबसे उन्हें यह बात पता चली है कि उनकी मां की अंतिम इच्छा पूरी न होने के कारण वे प्रेत-योनि में भटक रही होंगी, वह बहुत ही दुखी हैं और चाहते हैं कि जल्दी ही उसकी माता की आत्मा को शांति मिले। 

ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनालीराम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा, क्योंकि वह शाही विदूषक हैं। सभी ब्राह्मण निश्चित दिन तेनालीराम के घर पहुंच गए। ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के पश्चात सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनालीराम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहे हैं। पूछने पर तेनालीराम बोले - "मेरी मां फोड़ों के दर्द से परेशान थीं। मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिंकाई करता, वह मर चुकी थीं। अब उनकी आत्मा की शांति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पड़ेगा, जैसी कि उनकी अंतिम इच्छा थी।" 

यह सुनकर ब्राह्मण बौखला गए। वे वहां से तुरंत चले जाना चाहते थे। वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को कैसे शांति मिलेगी? 

तेनालीराम बोले - "महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शांति मिल सकती है, जो कि उनकी अंतिम इच्छा थी तो मैं अपनी मां की अंतिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?" 

यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम क्या कहना चाहते हैं? वे बोले - "तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।" 

तेनालीराम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, परंतु एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को बुलाया। 

महाराज तेनाली रमन से बोले - "तेनालीराम यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए? 

तेनालीराम ने कहा - "महाराज! मैं लालची नहीं हूं, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था। यदि वे आपकी मां की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?" 

राजा तेनालीराम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भविष्य में  इस तरह लालच में आकर दूसरों को गुमराह करने से शख्त मना किया।

English Translate 

gold mango

 It is a matter of those days when the mother of King Krishna Deva Raya had become very old. Once she fell very ill. They thought that she would soon die. Fearing death, he expressed his wish to King Krishna Deva Raya. She loved mangoes, so she wanted to donate mangoes in the last days of her life. He expressed his desire to donate mangoes to the Brahmins from the king.

तेनालीराम: सोने के आम || Tenaliram: Sone ke Aam

 They felt that by donating in this way they would attain heaven. Unfortunately, a few days later, the king's mother died without fulfilling her last wish. After her death the king called all the learned brahmins and told about his mother's last unfulfilled wish.

 After remaining silent for some time, the brahmin said - "It is very bad sir, in case of non-fulfilment of last wish, they cannot get salvation. They will keep wandering in the phantom vagina. Maharaj wish you the peace of their soul." Measures should be taken."

 Then the Maharaj asked him a way to fulfill his mother's last wish. The Brahmin said - "For the peace of his soul, you should donate gold mangoes on his death anniversary." Therefore, following the advice of the brahmins, the king called some brahmins for food on the death anniversary of his mother and gave each one a mango made of gold.

 When Tenaliram came to know about this, he immediately understood that the brahmins were taking advantage of the king's simplicity and innocence. This did not go down well with Tenaliram and he made a plan to teach lessons to those brahmins.

 The next day Tenaliram sent invitation letters to the brahmins. It was written in it that Tenali Ram also wants to donate on the death anniversary of his mother, because my mother too had left this world with an unfulfilled wish. Ever since he comes to know that he must be wandering in a phantom-vagina as his mother's last wish is not fulfilled, he is very sad and wants his mother's soul to rest in peace soon.

 The Brahmins thought that even from Tenaliram's house, he would get a lot of donations, because he is a royal clown. All the brahmins reached Tenaliram's house on a certain day. Delicious food was served to the Brahmins. After having food, everyone waited for the donation. Then he saw Tenaliram heating iron bars in the fire. On being asked, Tenaliram said - "My mother was troubled by the pain of boils. At the time of her death she was in severe pain. She was dead before I could douse her with hot bars. Now I pray for her soul to rest in peace. You will have to do it as his last wish."

 Hearing this, the brahmins were shocked. They wanted to leave immediately. He angrily said to Tenaliram that how will your mother's soul find peace if we are fired with hot bars?

 Tenaliram said - "Sir, I am not lying. Can?"

 Hearing this, all the brahmins understood what Tenaliram wanted to say. He said - "Tenaliram, forgive us. We give you those golden mangoes. You just let us go."

 Tenaliram let the brahmins go with the gold mangoes, but a greedy brahmin went and told the whole thing to the king. Hearing this, the king became furious and called Tenaliram.

 Maharaj said to Tenali Raman - "Tenaliram if you wanted gold mangoes, you would have asked me. How did you become so greedy that you took gold mangoes from Brahmins?

 Tenaliram said - "Maharaj! I am not greedy, but I was stopping their greedy tendencies. If they can accept gold mangoes on your mother's death anniversary, then why hot iron bars on my mother's death anniversary. Can't bear it?"

 King understood the meaning of Tenaliram's words. He called the brahmins and strictly forbade them to mislead others by getting greedy like this in future.


प्राचीन शिक्षा व्यवस्था Vs आधुनिक शिक्षा व्यवस्था

प्राचीन शिक्षा व्यवस्था Vs आधुनिक शिक्षा व्यवस्था 

शिक्षा किसी भी मनुष्य के जीवन की वह सबसे अनमोल वस्तु होती है, जिसे अन्य व्यक्ति उससे छीन नहीं सकता है, ना ही उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त कर सकता है और ना ही उसे खरीद सकता है। इस धरती पर शिक्षा के सिवा ज्ञान के सिवा अन्य सभी चीजें खरीदी व बेची जा सकती हैं। इसी से हम लोग अनुभव कर सकते हैं कि एक मनुष्य के जीवन में शिक्षा का क्या महत्व है।

प्राचीन शिक्षा व्यवस्था Vs आधुनिक शिक्षा व्यवस्था

प्राचीन काल में लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने घर से सालों साल दूर ऋषि मुनियों के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। फिर धीरे-धीरे समाज का विकास होने लगा। आश्रम के बाद गुरुकुल का चलन इस समाज में देखा जाने लगा आज। 2022 में भी हमारे देश में गुरुकुल अस्तित्व में है। आज भी बच्चे अपने घर परिवार से दूर गुरुकुल में पूर्ण शिष्टाचार के साथ सादा जीवन व्यतीत करते हुए शिक्षा ग्रहण करते हैं। गुरुकुल के पहनावे रहन - सहन को देखकर आज सभी लोगों को ऐसा प्रतीत होगा कि ना जाने यह बच्चे किस दुनिया में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं होता है कि वह बच्चे जो गुरुकुल में पढ़ रहे हैं, जो गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, आज के आधुनिक स्कूलों की तुलना में कहीं पीछे हैं। 

प्राचीन काल में शिक्षा व्यवस्था 

जबकि हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा में शुल्क प्रदान करने का कोई निश्चित नियम नहीं था प्रायर शिक्षा निशुल्क होती थी शिक्षा प्रदान करना विद्वानों एवं आचार्य का पुनीत कर्तव्य माना जाता था जो लोग शुल्क पाने की लालसा से शिक्षा प्रदान करते थे समाज में उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता था कालिदास ने ऐसे विद्वान को ज्ञान का व्यवसाय कहां है इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था कि निर्धन का बालक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह जाए तथापि शिक्षा का कर्तव्य था कि वह ज्ञानदाता आचार्य को कुछ न कुछ धन दक्षिणा के रूप में अवश्य प्रदान करें ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई ताकि आचार्य के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न ना हो सके धनी व्यक्ति अपने बालकों के प्रवेश के समय ही गुरु को संपूर्ण धनराशि प्रदान कर देते थे जातक कथाओं में कुछ बातों का उल्लेख मिलता है जिसमें की श्रेष्ठी पुत्र तथा राजकुमार तक्षशिला में शिक्षा के लिए प्रवेश के समय ही संपूर्ण शिक्षण शुल्क दे देते थे महाभारत से पता चलता है कि भीष्म ने गुरु द्रोणाचार्य को कौरव राजकुमारों की शिक्षा के निमित्त प्रारंभ में ही शुल्क प्रदान कर दिया था यदि कोई व्यक्ति समर्थ होते हुए भी आचार्य को शुल्क प्रदान नहीं करता था तो समाज में उसकी निंदा की जाती थी जिन छात्रों के अभिभावक निर्धन थे वे स्वयं गुरु की सेवा द्वारा शुल्क की क्षतिपूर्ति करते थे अध्ययन समाप्ति के बाद ऐसे विद्यार्थी भिक्षा मांगकर गुरु दक्षिणा चुकाते थे ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जहां आचार्यों ने दक्षिणा लेने से इनकार कर दिया कर दिया। कभी-कभी गुरु शिष्य की सेवा से प्रसन्न होकर उसे यह दक्षिणा मांग लेते थे।

प्राचीन शिक्षा व्यवस्था Vs आधुनिक शिक्षा व्यवस्था

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था 

प्राचीन काल में शिक्षा को दान के रूप में देखा जाता था। यह दान कब व्यापार में परिवर्तित हो गया, यह बता पाना बहुत ही मुश्किल है। आज शिक्षा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ व्यापार होता है। आज शिक्षा के नाम पर धन और संपत्ति का दोहन होता है। कहने के लिए तो हमारा समाज समानता को मान्यता देता है, परंतु प्राथमिक विद्यालय से लेकर के माध्यमिक विद्यालय तक हर जगह असमानता है और यह असमानता हमारे समाज में किस प्रकार से पनप रहा है, इसका वर्णन कर पाना अत्यंत ही कठिन है। यदि कोई गरीब का बच्चा है, तो उस  विद्यालय में पढ़ने जाएगा, जहां पर नाही कोई बिल्डिंग है, ना बैठने की कोई व्यवस्था है, ना ही कोई संसाधन है।  इसके अलावा इस प्रकार के विद्यालयों में अध्यापक भी अपनी मनमानी अनुसार आते जाते हैं। वहीं दूसरी ओर यदि कोई व्यापारी, अधिकारी या नेता या कोई अन्य पैसे वाले का बच्चा है, वह किसी सीबीएससी कान्वेंट स्कूल में पढेगा, जहां पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग है, हर आधुनिक साजो सामान, शिक्षा प्रदान करने के लिए अति योग्य अध्यापक रखे जाते हैं। इससे भी मजे की बात तो यह है कि मां-बाप का मन इन सब चीजों से भी नहीं भरता है, तो वह अपने बच्चों को स्कूल के अतिरिक्त और विद्वान बनाने के लिए और ज्ञानवान बनाने के लिए ट्यूशन लगवाते हैं। यह ट्यूशन शब्द इतना भयावह है कि जो मां - बाप अपने बच्चों को अतिरिक्त शिक्षा नहीं दिला सकते हैं, उनको ऐसा प्रतीत होता है की यदि उन्होंने अपने बच्चों को ट्यूशन नहीं कराया तो कहीं उनका बच्चा पीछे न छूट जाए। ऐसी मानसिकता लेकर के आज हमारे समाज के मां-बाप सुबह से लेकर शाम तक परिश्रम करते हैं। 


अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

 अंबा मंदिर गुजरात

गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले के दांता तालुका में यह मां अंबे का भव्य मंदिर बना हुआ है। अंबाजी का मंदिर गुजरात- राजस्थान सीमा पर अरावली श्रृंखला के अरासुर पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है, और पवित्र शक्ति तीर्थ स्थानों में से एक है। 

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है और इस पर 358 स्वर्ण कलश स्थापित हैं, जो इसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं। यह शक्ति की देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है। 

सालों से जल रही अखंड ज्योति कभी नहीं बुझी-

कहने को तो यह मंदिर शक्तिपीठ है, पर यह मंदिर अन्य मंदिरों से कुछ अलग हटकर है। अरासुरी अंबाजी मंदिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है।इस मंदिर में मां अंबा की पूजा श्री यंत्र की आराधना से होती है, जिसे सीधे आंखों से देखा नहीं जा सकता है। पुजारी इस श्री यंत्र का श्रृंगार इतना अद्भुत ढंग से करते हैं कि श्रद्धालुओं को लगता है कि मां अंबे जी यहां साक्षात विराजमान है। इसके पास ही पवित्र अखंड ज्योति जलती है, जिसके बारे में कहते हैं कि यह कभी नहीं बुझी।

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

गब्बर पहाड़ की महिमा

गब्बर पर्वत गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित है। यहां पर पवित्र गुप्त नदी सरस्वती का उद्गम स्थल है। अरासुर पहाड़ी पर प्राचीन पर्वत माला अरावली के दक्षिण-पश्चिम में समुद्र सतह से 1600 फीट की ऊंचाई पर 8 किलोमीटर क्षेत्रफल में अंबाजी शक्तिपीठ स्थित है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां सती का हृदय गिरा था। इसका उल्लेख 'तंत्र चूड़ामणि' में भी मिलता है।

माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। अंबाजी के मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ मां अंबे के पद चिन्हों और रथ चिन्हों के लिए विख्यात है। अंबे मां के दर्शन करने वाले भक्त गब्बर पर्वत पर पत्थर पर बने मां के पैरों के चिन्ह और मां के रथ के चिन्ह को देखने जरूर आते हैं। हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं।प्रत्येक माह की पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यहां फोटोग्राफी निषेध है। अंबाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्री कृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वही भगवान राम की शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं। नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में माता के दर्शन के लिए आते हैं।

इसके अलावा गब्बर पर्वत पर अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं- जैसे सनसेट पॉइंट, गुफाएं, माता जी के झूले और रज्जू मार्ग का रास्ता। हाल ही की खोज से ज्ञात हुआ कि अंबाजी के इस मंदिर का निर्माण वल्लभी शासक सूर्यवंशी सम्राट अरुण सेन ने चौथी शताब्दी में करवाया था।

इस मंदिर का जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है।

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

English Translate 

Amba Temple Gujarat

 This grand temple of Maa Ambe is built in Danta Taluka of Banaskantha district on the border of Gujarat and Rajasthan.  The temple of Ambaji is situated on the Arasur mountain of the Aravalli range on the Gujarat-Rajasthan border.  This temple is about 1200 years old, and is one of the holy Shakti pilgrimage places.  This temple made of white marble is very grand.  The shikhara of the temple is 103 feet high and has 358 golden vases installed on it, which add to its beauty.  It is one of the 51 Shaktipeeths dedicated to Sati, the goddess of power.

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

 The eternal flame burning for years never extinguished-

 To say this temple is a Shaktipeeth, but this temple is different from other temples.  There is no idol installed in the Arasuri Ambaji temple. In this temple Mother Amba is worshiped with the worship of Shri Yantra, which cannot be seen directly with the eyes.  The priests adorn this Shri Yantra in such a wonderful way that the devotees feel that Mother Ambe ji is present here.  The holy eternal flame burns near it, about which it is said that it has never been extinguished.

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

 glory of gabbar mountain

 Gabbar mountain is situated on the border of Gujarat and Rajasthan.  Here is the origin of the sacred secret river Saraswati.  Ambaji Shaktipeeth is situated in an area of ​​8 km at an altitude of 1600 feet above sea level in the south-west of the ancient mountain range Aravali on Arasur hill.  It is one of the 51 Shaktipeeths, where the heart of Mother Sati fell.  It is also mentioned in 'Tantra Chudamani'.

 It is believed that this temple is about 1200 years old.  Gabbar Pahar, 3 km from Ambaji's temple, is famous for the footprints and chariot signs of Mother Ambe.  Devotees who visit Ambe Maa definitely come to Gabbar mountain to see the footprints of the mother made on the stone and the sign of the chariot of the mother.  A large number of devotees gather here every year on the occasion of Bhadrapada Purnima. Special worship of the mother is offered here on the full moon and Ashtami tithi of every month.  Photography is prohibited here.  It is said about Ambaji temple that the shaving ceremony of Lord Shri Krishna was performed here.  He has come here to worship the power of Lord Rama.  Devotees come in large numbers during Navratri festival to have darshan of the mother.

अंबा मंदिर, गुजरात ||Ambaji, Gujraat ||

 Apart from this, there are other places of interest on Gabbar Parvat like Sunset Point, Caves, Mata Ji's Jhoola and Rojju Marg route.  It is known from the recent discovery that this temple of Ambaji was built by Vallabhi ruler Suryavanshi Emperor Arun Sen in the fourth century.

 The restoration work of this temple started in 1975 and has been going on since then.


कमल || Lotus or Kamal ||

कमल (Lotus or Kamal)

राष्ट्रीय फूल के लिए कमल (Lotus) को तो सभी जानते हैं। आखिर कुछ तो बात होगी कमल (Lotus) के फूल में जो यह हमारा राष्ट्रीय फूल है। कमल एक इकलौता ऐसा पुष्प है, जो कीचड़ में खिलता है। यह शुद्धता, सुंदरता, ऐश्वर्य, कृपा, समृद्धि, ज्ञान आदि का प्रतीक है। इसके अनगिनत महत्व और लोकप्रियता के कारण ही इसे भारत का राष्ट्रीय फूल कहां जाता है। आज के इस अंक में कमल की सुंदरता कि नहीं अपितु कमल के फूल के औषधीय गुणों के बारे में कुछ जानकारियां अर्जित करते हैं।

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

कमल (Lotus) क्या है?

कमल एक पुष्प है, जो पानी में या कह सकते हैं कीचड़ में होने वाली वनस्पति है। इस की 3 प्रजातियां होती हैं।  कमल, कुमुद और उत्पल। 

कमल (Kamal) के पत्ते चौड़े होते हैं, जो थाली की तरह पानी में तैरते हुए दिखाई देते हैं। इसके फूल अत्यंत सुंदर व बड़े होते हैं। रंगभेद के अनुसार कमल कई प्रकार के होते हैं।

कुमुद (Kumud) का रूप कमल के जैसा ही होता है, लेकिन इसके पत्ते कमल के पत्तों की तुलना में छोटे, चमकीले, चिकने जल की स्तर पर तैरने वाले होते हैं इसके फूल सफेद होते हैं।

उत्पल(Utpal) के पत्ते पानी की सतह पर तैरते हैं और इसका फूल नीले रंग का होता है। अतः इसे नीलकमल भी कहते हैं।

जानते हैं कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

आयुर्वेद के अनुसार कमल का फूल एक नहीं बल्कि अनेक रोगों के इलाज में फायदेमंद होता है।

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

रूसी की समस्या 

नीलकमल के फूल के केशर को तिल तथा आँवले के साथ पीस कर इसमें मुलेठी मिलाकर सिर में लेप करने से रूसी खत्म होती है। 

आधासीसी या माइग्रेन की समस्या

अनन्तमूल, कूठ, मुलेठी, वच, पिप्पली और नीलकमल इन सबको को कांजी में पीसकर, थोड़ा एरण्ड तेल मिला लें। इसका लेप करने से आधासीसी (अधकपारी) तथा सूर्य उगने के बाद होने वाले सिर के दर्द में लाभ मिलता है। 

उल्टी की समस्या

कमल के भुने हुए छिलके रहित बीजों को 1-2 ग्राम की मात्रा में मधु मिलाकर सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है। 

सिर दर्द होने पर

शतावरी, नीलकमल, दूब, काली तिल तथा पुनर्नवा इन 5 द्रव्यों को जल में पीसकर लेप करने से सभी तरह के सिर दर्द में लाभ मिलता है। 

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

गंजेपन की समस्या 

बराबर भाग में नीलकमल, बहेड़ा फल मज्जा, तिल, अश्वगंधा, अर्ध-भाग कमल के फूल तथा सुपारी त्वचा को पीस लें। इसे सिर में लेप करने से गंजेपन की समस्या में लाभ होता है। 

सफेद बालों की समस्या 

उत्पल तथा दूध को मिला लें। इसे मिट्टी के बर्तन में 1 महीने तक जमीन में दबाकर रखें। इसे निकालकर बालों में लगाने से बाल स्वस्थ होते हैं। इससे बालों का पकना कम होने लगता है।

आंखों की बीमारी

कमल के फूल से दूध निकालकर काजल की तरह आँखों में लगाने से आंखों के रोग ठीक होते हैं। 

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

खांसी की समस्या

1-2 ग्राम कमल की बीज के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करें। इससे पित्त दोष के कारण होने वाली खांसी ठीक हो जाती है। 

गुदाभ्रंश रोग

  • कमल के 1-2 ग्राम पत्तों के चूर्ण में चीनी मिलाकर खाने से गुदभ्रंश (गुदा का बाहर आना) में लाभ होता है।
  • सुबह-सुबह 2 ग्राम कमल की जड़ के पेस्ट को गाय के घी के साथ मिलाकर सेवन करने से गुदभ्रंश और इसकी वजह से होने वाले बुखार में लाभ मिलता है। 

पेशाब में दर्द-जलन की समस्या 

  • कमल एवं नीलकमल से बने 10-20 मिली शीतकषाय (रात भर ठंडे पानी में रखने के बाद तैयार पदार्थ) या काढ़ा में मधु एवं चीनी मिला कर पीने से पेशाब में दर्द और जलन की समस्या ठीक होती है।
  • तेल में पकाए हुए 2-4 ग्राम कमलकन्द को गाय के मूत्र के साथ सेवन करें। इससे पेशाब में दर्द की समस्या में लाभ होता है। 
कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

बुखार की समस्या

कमल का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।

पेचिश की समस्या

पित्तज दोष के कारण दस्त हो रही हो या पेचिश की समस्या हो तो बराबर भाग में कमल का फूल, नीलकमल, मंजिष्ठा तथा मोचरस लें। इन्हें 100 मिली बकरी के दूध में पका करें सेवन करें।

सफेद कमल केसर के पेस्ट में खाँड़, चीनी तथा मधु मिला लें। इसको चावल के धुले हुए पानी के साथ सेवन करने से पेचिश ठीक होता है। 

खूनी बवासीर में 

कमल का फूल लें। इससे केसर निकाल लें। चीनी तथा कमल के केसर को मिलाकर मक्खन के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।

दाद की समस्या

कमल की जड़ को पानी में पीसकर लेप करने से दाद, खुजली, कुष्ठ रोग और अन्य त्वचा रोगों में फायदा होता है। 

त्वचा रोग में 

कमल के पौधे के पत्ते तथा बरगद के पत्तों को जलाकर भस्म बना लें। इसे तेल में पका लें। इसे लगाने से त्वचा रोगों में लाभ होता है। 

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

नाक-कान से खून बहने (रक्तपित्त) की समस्या 

  • 65 मिग्रा कमल पंचांग के भस्म को पानी में घोल लें। इसे छानकर उसमें मधु मिलाकर पीने से रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की समस्या) में लाभ होता है।
  • कमल फूल का रस या काढ़ा को 1-2 बूंद नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहने की समस्या) में लाभ होता है।

शरीर में जलन की समस्या 

  • 1-2 ग्राम कमल के फूल के केशर को पीस लें। इसमें मधु मिलाकर खाने से शरीर की जलन खत्म हो जाती है।
  • सफेद कमल को पीसकर शरीर पर लेप करने से जलन से आराम मिलता है।

ह्रदय और मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाने में 

हृदय और मस्तिष्क की शक्ति के लिए कमल की प्रयोग फायदेमंद होता है, क्योंकि यह इन दोनों को स्वस्थ्य रखने में टॉनिक जैसा काम करता है। 

सांप का जहर उतारने के लिए

1-2 ग्राम कमल के फूल के केशर को बराबर भाग में काली मिर्च के साथ पीस लें। इसे पिएं। इसे सांप के काटे जाने वाले स्थान पर भी लगाएं। इससे सर्प के काटने से होने वाला दर्द, सूजन आदि में बहुत लाभ होता है।

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

विभिन्न भाषाओं में कमल के फूल का नाम

कमल का वानस्पतिक नाम Nelumbo nucifera Gaertn. (निलम्बो न्यूसीफेरा)

Hindi –     कमल (Kamal )
English – लोटस (lotus),Indian lotus, Chinese water lily, Pink water lily, Sacred lotus
Sanskrit – पद्मम्, नलिनम्, अरविन्दम्, सरसिज, कुशेशयम्, तामरसम्, पुष्करम्, अम्भोरुहम्, पुण्डरीकम्, कोकनदम्, कमलम्, राजीवम्
Urdu – नीलोफर (Nilophar)
Oriya – पदम (Padam)
Kannada – बिलिया तावरे (Biliya tawre)
Gujarati – सूरीयाकमल (Suriyakamal)
Telugu – कलावा (Kalava), तम्मिपुव्वु (Tammipuvvu), कलुंग (Kalung), एरट्टामरा (Ertamara)
Tamil – तामरई (Tamrai), अम्बल (Ambal)
Bengali – पद्म (Padam), कोमोल (Komol); नेपाली-कमल (Kamal)
Marathi – कमल (Kamal), पम्पोश (Pamposh); मलयालम-तमर (Tamara)
Arabic – निलोफर (Nilofar), उस्सुलनील्लोफर (Ussulnillofar)
Persian – बेखनीलोफर  (Bekhanilofar), नीलोफर (Nilofar)

कमल के फूल के फायदे, नुकसान, उपयोग और औषधीय गुण

कमल फूल के नुकसान (Side Effects of Lotus Flower)

  • यदि आपको डायबिटीज है तो कमल के किसी भी हिस्से का उपयोग करने पर ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता है।   
  • कमल ब्लड शुगर लेवल में बदलाव ला सकता है इसलिए किसी तरह की सर्जरी से दो हफ्ते पहले कमल का सेवन बंद कर दें।

मुक्ति की आकांक्षा (Mukti ki Aakansha) || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

 इतवार (Sunday)

Rupa Os ki Boond
"जो लोग अपनी तुलना दूसरे व्यक्तियों से करते हैं
उन्हें याद रखना चाहिए         
सूर्य और चंद्रमा अपने-अपने समय पर चमकते हैं..❤"

मुक्ति की आकांक्षा (Mukti ki Aakansha)

चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं हवा में उन्‍हें
अपने जिस्‍म की गंध तक नहीं मिलेगी।

यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।

बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्‍गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्‍वर है।

फिर भी चिड़िया
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी। 

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)

Os ki Boond
"लोग गांव उजाड़ कर , शहर तलाश रहे हैं
एक हाथ कुल्हाड़ी , दूसरे हाथ छांव तलाश रहे हैं..❤"

करने से पहले सोचो : पंचतंत्र

करने से पहले सोचो

उपायं चिन्तयेत्प्रज्ञास्त्थाSपायं च चिन्तयेत्। 

उपाय की चिन्ता के साथ, तज्जन्य अपाय या 
दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए।

करने से पहले सोचो : पंचतंत्र

जंगल के एक बड़े वटवृक्ष की खोल में बहुत-से बगुले रहते थे। उसी वृक्ष की जड़ में एक सांप भी रहता था। वह बगुलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था।

एक बगुला सांप द्वारा बार-बार बच्चों के खाए जाने पर बहुत दु:खी और विरक्त-सा होकर नदी के किनारे आ बैठा। उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे। उसे इस प्रकार दु:खमग्न देखकर एक केकड़े ने पानी से निकालकर उसे कहा - मामा ,क्या बात है? आज रो क्यों रहे हो?

करने से पहले सोचो : पंचतंत्र

बगुले ने कहा - भैया! बात यह है कि मेरे बच्चों को सांप बार-बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता,किस प्रकार सांप का नाश किया जाए? तुम्हीं कोई उपाय बताओ।

केकड़ी ने मन में सोचा, यह बगुला मेरा जन्मबैरी है। इसे ऐसा उपाय बताऊंगा, जिससे सांप के नाश के साथ-साथ इसका भी नाश हो जाए। यह सोचकर वह बोला:

मामा , एक काम करो! मांस के कुछ टुकड़े लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो। इसके बाद बहुत से टुकडे उस बिल से शुरू करके सांप के बिल तक बिखेर दो। नेवला उन टुकड़ों को खाता - खाता सांप के बिल तक आ जाएगा और वहां सांप को भी देख कर उसे मार डालेगा। 

करने से पहले सोचो : पंचतंत्र

बगुले ने ऐसा ही किया। नेवले ने सांप को तो खा लिया, किंतु सांप के बाद उस वृक्ष पर रहने वाले बगुलों को भी खा डाला।

बगुले ने उपाय तो सोचा, किंतु उसने अन्य दुष्परिणाम नहीं सोचे। अपनी मूर्खता का फल उसे मिल गया। पाप बुद्धि ने भी उपाय तो सोचा, किंतु अपाय नहीं सोचा।

करटक ने कहा - इसी तरह दमनक तूने भी उपाय तो किया, किंतु अपाय की चिंता नहीं की। तू भी पापबुद्धि के समान ही मुर्ख है। तेरे जैसे पापबुद्धि के साथ रहना भी दोषपूर्ण है। आज से तू मेरे पास मत आना। जिस स्थान पर ऐसे - ऐसे अनर्थ हों वहां से दूर ही रहना चाहिए। जहां चूहे मन भर की तराजू को खा जाएं, वहां यह भी संभव है कि चील बच्चे को उठाकर ले जाए। 

दमक में पूछा - कैसे?          

करटक ने तब लोहे की तराजू की एक कहानी सुनाई। 

जैसे को तैसा 

To be continued ...

तोता: रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी

Rabindranath Tagore 

आज रविन्द्र नाथ टैगोर की एक कहानी पढ़ी "तोता", दिल को छू गई। आप सभी के साथ शेयर कर रही हूं। कहानी कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा...


एक था तोता 

एक था तोता। वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था। उछलता था, फुदकता था, उड़ता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं?

तोता: रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी

राजा बोले, “ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ तो कोई नहीं, हानि ज़रूर है। जंगल के फल खा जाता है, जिससे राजा-मंडी के फल-बाज़ार में टोटा पड़ जाता है।”

मंत्री को बुलाकर कहा, “इस तोते को शिक्षा दो।”

तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भांजे को मिला।

पंडितों की बैठक हुई। विषय था, “उक्त जीव की अविद्या का कारण क्या है?” बड़ा गहरा विचार हुआ।

सिद्धान्त ठहरा: तोता अपना घोंसला साधारण खर-पात से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती। इसलिए सबसे पहले तो यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाए।

राज-पंडितों को दक्षिणा मिली और वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घर गए।

सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट पड़ा। पिंजरा ऐसा अनोखा बना कि उसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग टूट पडे। कोई कहता, “शिक्षा की तो इति हो गयी।” कोई कहता, “शिक्षा न भी हो तो क्या, पिंजरा तो बना। इस तोते का भी क्या नसीब है?”

सुनार को थैलियां भर-भरकर इनाम मिला। वह उसी घड़ी अपने घर की ओर रवाना हो गया।

पंडितजी तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। नस लेकर बोले, “यह काम थोड़ी पोथियों का नहीं है।”

राजा के भांजे ने सुना। उन्होंने उसी समय पोथी लिखनेवालों को बुलवाया। पोथियों की नक़ल होने लगी। नक़लों के और नक़लों की नक़लों के पहाड़ लग गए। जिसने भी देखा, उसने यही कहा कि, “शाबाश! इतनी विद्या के धरने को जगह भी नहीं रहेगी।”

नक़लनवीसों को लद्दू बैलों पर लाद-लादकर इनाम दिए गए। वे अपने-अपने घर की ओर दौड़ पड़े। उनकी दुनिया में तंगी का नाम-निशान भी बाक़ी न रहा।

दामी पिंजरे की देख-रेख में राजा के भांजे बहुत व्यस्त रहने लगे। इतने व्यस्त कि व्यस्तता की कोई सीमा न रही। मरम्मत के काम भी लगे ही रहते। फिर झाडू-पोंछ और पालिश की धूम भी मची ही रहती थी। जो ही देखता, यही कहता कि “उन्नति हो रही है।”

इन कामों पर अनेक-अनेक लोग लगाये गये और उनके कामों की देख-रेख करने पर और भी अनेक-अनेक लोग लगे। सब महीने-महीने मोटे-मोटे वेतन ले-लेकर बड़े-बड़े सन्दूक भरने लगे ।

वे और उनके चचेरे-ममेरे-मौसेरे भाई-बंद बड़े प्रसन्न हुए और बड़े-बड़े कोठों-बालाखानों में मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर बैठ गये। 

संसार में और-और अभाव तो अनेक हैं, पर निन्दकों की कोई कमी नहीं है। एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं। वे बोले, “पिंजरे की तो उन्नति हो रही है, पर तोते की खोज़-ख़बर लेने वाला कोई नहीं है। 

बात राजा के कानों में पड़ी। उन्होंने भांजे को बुलाया और कहा, “क्यों भानजे साहब, यह कैसी बात सुनाई पड़ रही है? ”

भांजे ने कहा, “महाराज, अगर सच-सच बात सुनना चाहते हों तो सुनारों को बुलाइये, पण्डितों को बुलाइये, नक़लनवीसों को बुलाइये, मरम्मत करनेवालों को और मरम्मत की देखभाल करने वालों को बुलाइये। निन्दकों को हलवे में हिस्सा नहीं मिलता, इसलिए वे ऐसी ओछी बात करते हैं। 

जवाब सुनकर राजा नें पूरे मामले को भली-भांति और साफ़-साफ़ तौर से समझ लिया। भांजे के गले में तत्काल सोने के हार पहनाये गये। 

राजा का मन हुआ कि एक बार चलकर अपनी आंखों से यह देखें कि शिक्षा कैसे धूमधड़ाके से और कैसी बगटुट तेज़ी के साथ चल रही है। सो, एक दिन वह अपने मुसाहबों, मुंहलगों, मित्रों और मन्त्रियों के साथ आप ही शिक्षा-शाला में आ धमके। 

उनके पहुंचते ही ड्योढ़ी के पास शंख, घड़ियाल, ढोल, तासे, खुरदक, नगाड़े, तुरहियां, भेरियां, दमामें, कांसे, बांसुरिया, झाल, करताल, मृदंग, जगझम्प आदि-आदि आप ही आप बज उठे। 

पंडित गले फाड़-फाड़कर और बूटियां फड़का-फड़काकर मन्त्र-पाठ करने लगे। मिस्त्री, मजदूर, सुनार, नक़लनवीस, देख-भाल करने वाले और उन सभी के ममेरे, फुफेरे, चचेरे, मौसेरे भाई जय-जयकार करने लगे।

भांजा बोला, “महाराज, देख रहे हैं न?”

महाराज ने कहा, “आश्चर्य! शब्द तो कोई कम नहीं हो रहा।

भांजा बोला, “शब्द ही क्यों, इसके पीछे अर्थ भी कोई कम नहीं।”

राजा प्रसन्न होकर लौट पड़े। ड्योड़ी को पार करके हाथी पर सवार होने ही वाले थे कि पास के झुरमुट में छिपा बैठा निन्दक बोल उठा, “महाराज आपने तोते को देखा भी है?”

राजा चौंके. बोले, ”अरे हां! यह तो मैं बिल्कुल भूल ही गया था! तोते को तो देखा ही नहीं। ”

लौटकर पंडित से बोले, “मुझे यह देखना है कि तोते को तुम पढ़ाते किस ढंग से हो।”

पढ़ाने का ढंग उन्हें दिखाया गया। देखकर उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। पढ़ाने का ढंग तोते की तुलना में इतना बड़ा था कि तोता दिखाई ही नहीं पड़ता था। राजा ने सोचा: अब तोते को देखने की ज़रूरत ही क्या है? उसे देखे बिना भी काम चल सकता है। राजा ने इतना तो अच्छी तरह समझ लिया कि बंदोबस्त में कहीं कोई भूल-चूक नहीं है। पिंजरे में दाना-पानी तो नहीं था, थी सिर्फ़ शिक्षा। यानी ढेर की ढेर पोथियों के ढेर के ढेर पन्ने फाड़-फाड़कर क़लम की नोंक से तोते के मुंह में घुसेड़े जाते थे। गाना तो बन्द हो ही गया था, चिखने-चिल्लाने के लिए भी कोई गुंजायश नहीं छोड़ी गयी थी। तोते का मुंह ठसाठस भरकर बिल्कुल बन्द हो गया था। देखनेवाले के रोंगटे खड़े हो जाते।

अब दुबारा जब राजा हाथी पर चढ़ने लगे तो उन्होंने कान-उमेठू सरदार को ताकीद कर दी कि “निन्दक के कान अच्छी तरह उमेठ देना।”

तोता दिन पर दिन भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफ़ी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही अन्याय-भरी रीति से अपने डैने फड़फड़ाने लगता था। इतना ही नहीं, किसी-किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोंचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है।

कोतवाल गरजा, “यह कैसी बेअदबी है।”

फ़ौरन लुहार हाजिर हुआ. आग, भाथी और हथौड़ा लेकर।

वह धम्माधम्म लोहा-पिटाई हुई कि कुछ न पूछिये। लोहे की सांकल तैयार की गई और तोते के डैने भी काट दिये गए।

राजा के सम्बन्धियों ने हांड़ी-जैसे मुंह लटका कर और सिर हिलाकर कहा, “इस राज्य के पक्षी सिर्फ़ बेवकूफ़ ही नहीं, नमक-हराम भी हैं।”

और तब, पण्डितों ने एक हाथ में क़लम और दूसरे हाथ मे बरछा ले-लेकर वह कांड रचाया, जिसे शिक्षा कहते हैं।

लुहार की लुहसार बेहद फैल गयी और लुहारिन के अंगों पर सोने के गहने शोभने लगे और कोतवाल की चतुराई देखकर राजा ने उसे सिरोपा अता किया।

तोता मर गया। कब मरा, इसका निश्चय कोई भी नहीं कर सकता।

कमबख़्त निन्दक ने अफ़वाह फैलायी कि “तोता मर गया।”

राजा ने भांजे को बुलवाया और कहा, “भानजे साहब यह कैसी बात सुनी जा रही है? ”

भांजे ने कहा, “महाराज, तोते की शिक्षा पूरी हो गई है।”

राजा ने पूछा, “अब भी वह उछलता-फुदकता है? ”

भांजा बोला, अजी, राम कहिये। ”

“अब भी उड़ता है?”

“ना:, क़तई नहीं।”

“अब भी गाता है?”

“नहीं तो। ”

“दाना न मिलने पर अब भी चिल्लाता है?”

“ना।

राजा ने कहा, “एक बार तोते को लाना तो सही, देखूंगा ज़रा।

तोता लाया गया। साथ में कोतवाल आये, प्यादे आये, घुड़सवार आये।

राजा ने तोते को चुटकी से दबाया। तोते ने न हां की, न हूं की। हां, उसके पेट में पोथियों के सूखे पत्ते खड़खड़ाने ज़रूर लगे।

तोता: रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी

तेनालीराम और नीलकेतु || Tenaliram aur Neelketu

तेनालीराम और नीलकेतु 

राजा कृष्णदेव राय अपने दरबार में बैठे हुए थे, तभी वहां एक नीलकेतु नाम का व्यक्ति आया। नीलकेतु काफी दुबला-पतला व्यक्ति था। वो दरबार में पहुंचा और राजा कृष्णदेव राय को बताया कि वो नीलदेश से आया है और अभी वो विश्व भ्रमर के मकसद से इस यात्रा पर निकला है। उसने राजा को यह भी बताया कि सभी जगह घूमने के बाद वो राजा के दरबार में पहुंचा है।   

तेनालीराम और नीलकेतु || Tenaliram aur Neelketu

इतना सब कुछ सुनता राजा कृष्णदेव राय काफी खुश हुए, फिर राजा ने उसका स्वागत विशेष मेहमान के रूप में किया। राजा द्वारा किए गए सम्मान और सत्कार को देखकर नीलकेतु काफी खुश हुआ। उसने राजा से बोला- "महाराज! मैं उस जगह के बारे में जानता हूं, जहां कई सारी परियां रहती हैं। मैं अपने जादू से उन्हें बुला भी सकता हूं।" 

यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय काफी खुश हुए और उत्सुक होते हुए बोले - "अच्छा, ऐसा भी हो सकता है क्या? चलो बताओ इसके लिए मुझे क्या करना होगा?"             

यह सुनकर नीलकेतु ने राजा को रात में तालाब के पास आने को कहा और बोला कि वो परियों को मनोरंजन और नृत्य के लिए बुला सकता है। यह सुनकर राजा ने नीलकेतु की बात मान ली। फिर जैसे ही रात हुई, राजा अपने घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर चल दिए। राजा जैसे ही तालाब के पास पहुंचे, तो वहां पास ही में एक किले के सामने नीलकेतु राजा का इंतजार कर रहा था। राजा उसके पास पहुंचे, तो नीलकेतु ने उनका स्वागत करते हुए कहा - "महाराज! मैंने सारा इंतजाम कर लिया है और सारी परियां किले के अंदर ही मौजूद हैं।"

राजा जैसे ही नीलकेतु के साथ किले के अंदर जाने लगे, तभी राजा के सैनिकों ने नीलकेतु को बंधक बना लिया। यह देख राजा हैरान रह गए।

महाराज ने पूछा - "यह सब क्या हो रहा है? तुम सब ने इसे बंधक क्यों बना लिया है?" तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर आए और उन्होंने कहा - "महाराज! मैं बताता हूं कि क्या हो रहा है?"     

तेनालीराम ने बताना शुरू किया -"महाराज! यह नीलकेतु कोई यात्रा करने वाला नहीं है, बल्कि नीलदेश का रक्षा मंत्री है और उसने धोखे से आपको यहां बुलाया है। किले के अंदर कोई परियां नहीं है। यह सिर्फ आपको यहां मारने के लिए लेकर आया था।" 

यह सुनकर राजा ने तेनालीराम को अपनी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया और पूछा - "तुम्हें इस बात का पता कैसे लगा तेनालीरामन?"          

तब तेनालीराम ने कहा - "महाराज, पहले दिन ही जब वो दरबार में आया था, उसी दिन मुझे इस पर शक हो गया था। उसके बाद मैंने इसके पीछे अपने साथियों को जासूसी के लिए लगा दिया था, जिससे मुझे पता चला कि यह आपको मारने की योजना बना रहा था।" तेनालीराम की सूझबूझ के लिए राजा कृष्णदेव राय ने उन्हें धन्यवाद दिया।

English Translate

Tenaliram and Neelketu

King Krishnadeva Raya was sitting in his court when a person named Neelketu came there. Neelketu was a very thin person. He reached the court and told King Krishnadev Raya that he had come from Nildesh and now he has gone on this journey for the purpose of world illusion. He also told the king that after roaming all over the place, he had reached the king's court.

तेनालीराम और नीलकेतु || Tenaliram aur Neelketu

Hearing all this, King Krishnadev Raya was very happy, then the king welcomed him as a special guest. Neelketu was overjoyed to see the respect and hospitality accorded to him by the king. He said to the king- "Maharaj! I know of a place where many fairies live. I can even summon them by my magic."

Hearing this, King Krishna Deva Raya was very happy and said being curious - "Well, can this also happen? Let's tell what I have to do for this?"

Hearing this, Neelketu asked the king to come near the pond at night and said that he could invite the fairies for entertainment and dance. Hearing this, the king agreed to Neelketu. Then as soon as the night came, the king sat on his horse and walked towards the pond. As soon as the king reached near the pond, Neelketu was waiting for the king in front of a fort nearby. When the king reached him, Neelketu welcomed him and said - "Maharaj! I have made all the arrangements and all the fairies are present inside the fort."

As soon as the king started going inside the fort with Neelketu, only then the king's soldiers took Neelketu hostage. The king was surprised to see this.

Maharaj asked - "What is all this happening? Why have you all taken it hostage?" Then Tenaliram came out from inside the fort and said - "Maharaj! I will tell what is happening?"

Tenaliram started telling - "Maharaj! This Nileketu is not a traveller, but the defense minister of Nildesh and he has called you here by deceit. There are no fairies inside the fort. It just brought you here to kill you." Was."

Hearing this, the king thanked Tenaliram for saving his life and asked - "How did you come to know about this, Tenaliraman?"

Then Tenaliram said - "Maharaj, on the very first day when he came to the court, I had doubts about it. After that I had put my comrades behind it for spying, from which I came to know that it was you. Was planning to kill." King Krishnadeva Raya thanked Tenalirama for his wisdom.

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति' || Increasing 'drug trend' among youth ||

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'

हमारा यह समाज आज बहुत ही तेजी से आधुनिक होता जा रहा है। दिन प्रतिदिन हमें नई- नई खोजें देखने को मिलती हैं। हमारा हिंदुस्तान युवाओं से भरा एक देश है। इन सबके बीच एक चिंता का विषय भी है, हमारे समाज के अधिकतर युवा पीढ़ी किसी ना किसी नशे की लत की आदी होती जा रही है, जो हमारी युवाओं के लिए आने वाले समय में बहुत ही घातक सिद्ध हो सकता है। 

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'  || Increasing 'drug trend' among youth ||

आज हर वर्ग का व्यक्ति हर वर्ग का युवा चाहे वह स्कूल में हो, कॉलेज में हो या किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा हो, किसी ना किसी नशे की लत उसको लगी हुई है। नशा एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो हमारे युवा पीढ़ी को दिन प्रतिदिन बर्बादी की खाई में ढकेलता जा रहा है, जिसके कारण मनुष्य बहुत सी बीमारियों से ग्रसित होता जा रहा है और मनुष्य की आयु दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। 

नशे की ओर आकर्षित होने के बहुत से कारण हैं, जिनमें मूल कारण कहीं ना कहीं पारिवारिक व्यस्तता भी है। मां- बाप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने एवं हर आधुनिक वस्तु अपने संतान को देना चाहते हैं। इसी कारण कई घरों में कई परिवारों में मां-बाप दोनों किसी का किसी प्रकार के काम में सम्मिलित होते हैं, जिसके कारण उनका पूरा ध्यान अपने बच्चों पर नहीं रहता। यही वजह है कि बच्चे गलत संगति में फंसकर इन नशे की वस्तुओं का उपयोग करने लगते हैं। हर मां बाप का कर्तव्य है कि अपने बच्चे की दिनचर्या पर पूर्ण ध्यान रखें। 

युवा वर्ग में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति वास्तव में चिंताजनक है। युवा उचित मार्गदर्शन के अभाव में नशा करते हैं। किशोरावस्था के बालकों पर खास ध्यान देना बहुत ही जरुरी है। उनकी संगत पर निगाह रखी जाए। संगत ठीक हो तो बच्चे नशे के जाल से बच जाते हैं।

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'  || Increasing 'drug trend' among youth ||

युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति के और भी अनेक कारण हैं। नशे की उपलब्धता एवं पहुंच आसान होने से भी नशे की प्रवृत्ति बढ़ी है। संयुक्त परिवार का विघटन होने से भी युवाओं को अधिक स्वतंत्रता मिली है। मीडिया ने भी नशे के कारोबार को प्रचारित किया है। वर्तमान में बढ़ती बेरोजगारी में मानसिक अवसाद दूर करने के लिए भी युवा नशे का सहारा लेते हैं। अत: इन सब पर ध्यान देकर हमें समस्या का निराकरण करना होगा।

बेरोजगारी, आधुनिक दिखने का भ्रम, प्रेम में हताशा, सद् शिक्षा का अभाव, भ्रामक विचारधाराओं में उलझना, सामाजिक एवं पारिवारिक अनुशासन के प्रति विद्रोह की भावना, हाईप्रोफाइल जीवनशैली की लालसा जैसे अनेक कारण अवसाद की वजह हैं। इससे युवाओं में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। युवा अपनी क्षमता को पहचानें, दूसरों से अपनी तुलना ना करें। नशे में खो जाना कायरता है। खेलों से जुड़ें। परोपकार के काम करें। इसी से अच्छे समाज का निर्माण होगा।

युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए सरकार को नशे से संबंधित सामानों पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाना चाहिए। सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया व सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए और युवाओं में जो नशे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, उसे पूर्णत: खत्म करने का प्रयास करना चाहिए।

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Increasing 'drug trend' among youth

Today our society is becoming very modern very fast. Every day we get to see new discoveries. Our India is a country full of youth. In the midst of all this, there is also a matter of concern, most of the young generation of our society is becoming addicted to some kind of drug addiction, which can prove to be very fatal for our youth in the coming times.

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'  || Increasing 'drug trend' among youth ||

Today, the youth of every class, whether it is in school, college or working in a multinational company, is addicted to some kind of drug addiction. Drug addiction is such a food item, which is pushing our young generation into the abyss of waste day by day, due to which man is suffering from many diseases and man's life is decreasing day by day.

There are many reasons for being attracted towards drugs, in which the root cause is also family busyness somewhere. Parents want to give good education to their children and give every modern thing to their children. For this reason, in many homes, in many families, both parents are involved in some kind of work, due to which their full attention is not given to their children. This is the reason why children get trapped in the wrong company and start using these intoxicants. It is the duty of every parent to take full care of their child's routine.

The increasing trend of drug addiction among the youth is really worrying. Youth indulge in drugs due to lack of proper guidance. It is very important to pay special attention to the children of adolescence. Keep an eye on their company. If the company is right, then the children are saved from the trap of intoxication.

There are many other reasons for the increasing trend of drug addiction among the youth. Due to the availability and ease of access to drugs, the tendency of drug addiction has also increased. The dissolution of the joint family has also given more freedom to the youth. The media has also publicized the drug business. In the current rising unemployment, youth also resort to drugs to overcome mental depression. So by paying attention to all these, we have to solve the problem.

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'  || Increasing 'drug trend' among youth ||

Unemployment, illusion of modern appearance, frustration in love, lack of good education, entanglement in deceptive ideologies, feeling of rebellion against social and family discipline, craving for high profile lifestyle are the reasons for depression. Due to this, the tendency of drug addiction is increasing among the youth. Know your potential, don't compare yourself to others. Getting drunk is cowardice. Join the Games. Do charity work. This will create a good society.

In order to stop the increasing trend of drug addiction among the youth, the government should completely ban the drug related goods. Awareness campaign should be conducted with the help of social media, print media and social organizations and efforts should be made to eliminate the drug addiction which is increasing in the youth.

युवा वर्ग में बढ़ती 'नशे की प्रवृत्ति'  || Increasing 'drug trend' among youth ||


मनसा देवी मंदिर हरिद्वार || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार (Manasa Devi Temple, Haridwar)

उत्तरांचल के हरिद्वार के पहाड़ियों में बसा माता मनसा देवी मंदिर का अधिक महत्व बताया गया है। मनसा देवी मंदिर का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यह देवी सर्प दोष दूर करती हैं। विष्णु पुराण के अनुसार मनसा देवी एक नागकन्या थीं। मनसा देवी की पूजा से धन संबंधी समस्या रोगों से मुक्ति और घर की समस्त बाधा दूर होती है।

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

मनसा देवी मां की उत्पत्ति

भगवान शिव और माता पार्वती की एक पुत्री थी जिसका नाम मनसा देवी था। यह मस्तक से उत्पन्न हुई थीं इसलिए उनका नाम मनसा देवी पड़ा। मनसा देवी को कश्यप ऋषि की पुत्री भी कहा गया है, क्योंकि कश्यप ऋषि के मन से उत्पन्न होने के कारण देवी का नाम मनसा रखा गया।मनसा देवी के दो बड़े भाई और दो छोटी बहनें हैं जिनका नाम क्रमशः कार्तिकेय, अय्यप्पा, देवी ज्योति और देवी अशोक सुंदरी है।

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

उनके छोटे भाई गणेश हैं। मनसा देवी का विवाह जरत्कारु के साथ किया गया था और उनसे उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम आस्तिक था

मनसा का अर्थ अभिलाषा से भी होता है। हरिद्वार की शिवालिक पहाडि़यों पर स्थित मनसा देवी का मन्दिर अत्यन्त प्राचीन और सिद्धपीठों में से एक है। मनसा देवी के मन्दिर में एक मूर्ति के पॉच मुख और दस भुजायें है और दूसरी मूर्ति की अठारह भुजायें व एक मुख है। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया।

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

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Manasa Devi Temple, Haridwar

The importance of Mata Mansa Devi temple, situated in the hills of Haridwar of Uttaranchal, has been told. The importance of Mansa Devi temple is also because this goddess removes snake defects. According to Vishnu Purana, Manasa Devi was a Nagakanya. Worshiping Mansa Devi removes money related problems, diseases and removes all obstacles in the house.

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

Origin of Mansa Devi Maa

Lord Shiva and Mother Parvati had a daughter named Mansa Devi. She was born from the head, hence she was named Mansa Devi. Manasa Devi is also said to be the daughter of Kashyapa Rishi, as the goddess was named Manasa due to her origin from the mind of Kashyap Rishi. Manasa Devi has two elder brothers and two younger sisters named respectively Kartikeya, Ayyappa, Devi Jyoti and Goddess Ashok is Sundari.

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||

His younger brother is Ganesh. Manasa Devi was married to Jaratkaru and they had a son, Aastik.

Manasa also means desire. Situated on the Shivalik hills of Haridwar, the temple of Mansa Devi is one of the most ancient and Siddhapeeths. In the temple of Mansa Devi, one idol has five faces and ten arms and the other idol has eighteen arms and one face. Her husband is Jagatkaru and son is Aastik. She is worshiped as the sister of Nagraj Vasuki, the famous temple situated in Haridwar on a Shaktipeeth. Under the Brahmavaivarta Purana, there was a Nagakanya who was a devotee of Shiva and Krishna. He meditated for many ages and received the knowledge of Vedas and Krishna mantra from Shiva, which later became popular as Kalpataru Mantra. After doing penance in Pushkar, that girl had darshan of Krishna and got the boon of being worshiped from him forever.

मनसा देवी मंदिर हरिद्वार  || Manasa Devi Temple, Haridwar ||


जो कह दिया वह शब्द थे || Sunday.. इतवार ..रविवार ||

  इतवार (Sunday)

जो कह दिया वह शब्द थे || Sunday.. इतवार ..रविवार ||
"परिंदों को मंज़िल मिलेगी यक़ीनन,
ये फैले हुए उनके पंख बोलते हैं,
वो लोग रहते हैं खामोश अक्सर,
जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं..❤"

जो कह दिया वह शब्द थे

जो कह दिया वह शब्द थे ;
जो नहीं कह सके
वो अनुभूति थी..
और,
जो कहना है मगर ;
कह नहीं सकते,
वो मर्यादा है..

जिंदगी का क्या है ?
आ कर नहाया,
और,
नहाकर चल दिए..

बात पर गौर करना
पत्तों सी होती है
कई रिश्तों की उम्र,
आज हरे,
कल सूखे..

क्यों न हम,
जड़ों से;
रिश्ते निभाना सीखें 

रिश्तों को निभाने के लिए,
कभी अंधा,
कभी गूँगा,
और कभी बहरा,
होना ही पड़ता है 

बरसात गिरी
और कानों में इतना कह गई कि
'गर्मी' हमेशा किसी की भी नहीं रहती..

'नसीहत'
नर्म लहजे में ही
अच्छी लगती है..
क्योंकि,

'दस्तक' का मकसद,
दरवाजा खुलवाना होता है;
तोड़ना नहीं..

'घमंड'
किसी का भी नहीं रहा,
टूटने से पहले ,
गुल्लक को भी लगता है कि
सारे पैसे उसी के हैं..

जिस बात पर ,
कोई मुस्कुरा दे,
बात 
बस वही खूबसूरत है..

थमती नहीं,
जिंदगी कभी,
किसी के बिना..
मगर,
यह गुजरती भी नहीं,
अपनों के बिना 
जो कह दिया वह शब्द थे || Sunday.. इतवार ..रविवार ||
"समय बहुत ही कीमती है इसलिए
इसे अपने काम करने में लगाएं ना की
नेगेटिव लोगों की बातों को सुनने में..❤"

मित्र द्रोह का फल : पंचतंत्र

मित्र द्रोह का फल

किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् 

अयोग्य को मिले ज्ञान का फल विपरीत ही होता है। 

मित्र द्रोह का फल : पंचतंत्र

किसी स्थान पर धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे। एक दिन पापबुद्धि ने सोचा कि धर्मबुद्धि की सहायता से विदेश में जाकर धन पैदा किया जाए दोनों ने देश-देशान्तरों मैं घूमकर प्रचुर धन पैदा किया। जब वे वापस आ रहे थे, तो गांव के पास आकर पापबुद्धि ने सलाह दी की इतने धन के बंधु -बान्धवों के बीच नहीं ले जाना चाहिए। इसे देखकर ईर्ष्या होगी, लोभ होगा। किसी ने किसी बहाने वे बांटकर खाने का यत्न करेंगे। इसीलिए इस धन का ब‌ड़ा भाग ज़मीन में गाड़ देते हैं। जब जरूरत होगी लेते रहेंगे।

मित्र द्रोह का फल : पंचतंत्र

धर्मबुद्धि यह बात मान गया। ज़मीन में गड्ढा खोदकर दोनों ने अपना संचित धन वहां रख दिया और गांव में चले आए।

कुछ दिन बाद पापबुद्धि आधी रात को उसी स्थान पर जाकर सारा धन खोद लाया और ऊपर से मिट्टी डालकर गड्ढा भरकर चला आया।

दूसरे दिन वह धर्मबुद्धि के पास गया और बोला-मित्र! मेरा परिवार बड़ा है। मुझे फिर कुछ धन की ज़रूरत पड़ गई है। चलो, चलकर थोड़ा-थोड़ा और ले आएं।

धर्मबुद्धि मान गया। दोनों ने आकर जब ज़मीन खुदी और वह बर्तन निकाला जिसमें धन रखा था, तो देखा कि वह खाली है। पापबुद्धि सिर पीटकर रोने लगा-मैं लुट गया, धर्मबुद्धि ने मेरा धन चुरा लिया। मैं मर गाया, लुट गया।

दोनों अदालत में धर्माधिकारी के सामने पेश हुए। पाप बुद्धि ने कहा मैं गड्ढे के पास वाले वृक्ष के साक्षी मानने को तैयार‌ हूं। वे जिसे चोर कहेंगे, वह चोर माना जाएगा।

अदालत ने यह बात मान ली और निश्चय किया कि कल वृक्षों की साक्षी ली जाएगी और साक्षी पर ही निर्णय सुनाया जाएगा।

रात को पापबुद्धि ने अपने पिता से कहा-तुम अभी गड्ढे के पास वाले वृक्ष की खोखली जड़ में बैठ जाओ। जब धर्माधिकारी पूछे तो कह देना कि चोर धर्मबुद्धि है।

उसके पिता ने यह किया; वह सवेरे ही वहां जाकर बैठ गया धर्माधिकारी ने जब ऊंचे‌ स्वर।में पुकारा-हे वनदेवता! तुम्हीं साक्षी हो कि इन दोनों में चोर कौन है?

धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्रों की कहानी

तब वृक्ष की में बैठे हुए पापबुद्धि के पिता ने कहा:- धर्मबुद्धि चोर है, उसने ही धन चुराया है।

धर्माधिकारी तथा राजपुरुषों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे अभी अपने धर्मग्रन्थों को देखकर निर्णय देने की तैयारी ही कर रहे थे कि धर्मबुद्धि ने उस वृक्ष को आग लगा दी, जहां से वह आवाज़ आई थी।

थोड़ी देर में पापबुद्धि का पिता आग से झुलसा हुआ उस वृक्ष की जड़ में से निकला। उसने वनदेवता की साक्षी का सच्चा भेद प्रकट कर दिया।

तब राजपुरुष ने पापबुद्धि को उसी वृक्ष की शाखाओं पर लटकाते हुए कहा कि मनुष्य का यह धर्म है कि वह उपाय की चिन्ता के साथ अपाय की भी चिन्ता करे। अन्यथा उसकी वही दशा होती है जो उन बगुलों की हुई थी। जिन्हे नेवले ने मार दिया था।

धर्मबुद्धि ने पूछा-कैसे? राजपुरुषों ने कहा-सुनो:

करने से पहले सोंचो 

                                                                                                                                        To be continued ...