किसी के दिल में ही सही..

किसी के दिल में ही सही..

Rupa Oos ki ek Boond

एक परिंदा रोज़ खटखटाने आता हैं दरवाज़ा मेरे घर का.. 
ज़रूर लकड़ी उसी पेड की है, जिस पर कभी आशियाना था उसका..

सुबह कुछ टक-टक की 

आवाज़ आ रही थी

दरवाज़ा खोलकर देखा

कोई दिखाई नहीं दिया...

आवाज़ की दिशा में देखा

खिड़की पर एक पक्षी दिखाई दिया

अपनी चोंच से खिड़की पर

उकेर रहा था नक्काशी...

मैंने पूछा -

"भई क्या बात है"

बोला- क्या किराये पर मिलेगा

कोई पेड़, घोंसला बनाने के लिए?


अकेला तो कहीं भी रह लेता,

परन्तु घर चाहिए, चूज़ों के लिए


तुम्हारे ही बंधुओं ने उजाड़ दिया है,

पूरा का पूरा जंगल, 

नहीं छोड़ा है, हमारे लिए कोई बसेरा,

बेघर तो कर ही दिया है, 

दाने-पानी के लिए भी तरसा दिया है.. 


पुण्य कमाने के लिए रख देते हैं ,

छत पर थोड़ा दाना, थोड़ा पानी,

पर सिर ढकने के लिए,

 छत भी तो चाहिए

यह तो कोई सोचता ही नहीं.. 


पेट तो भरना ही है,

भीख ही सही, थोड़ा खा-पी लेते हैं 

थोड़ा बच्चों के लिए भी ले जाते हैं  

भले ही सिर पर छत न हो,

पेट में भूख तो लगती है ना?


कभी-कभी सोचता हूँ 

आत्मघात कर लूँ ,

बिजली के तारों पर बैठ जाऊँ,

या पटक दूँ सिर,

मोबाइल के ऊँचे टावर पर.. 


जैसे सरकार दे देती है मकान,

फाँसी लगाने वाले इंसान को,

वैसे ही मिल जाएगा कोई पेड़

मेरे चूज़ों के घोंसले के लिए..


सुनकर मैं सुन्न हो गया, 

इतना कुछ तो सोचा भी न था?

जंगल काटकर, घर उजाड़ दिये

इन बेचारों के, बिना विचारे..


मैंने हाथ जोड़कर उससे कहा

सबकी ओर से, मैं माफी माँगता हूँ,

आत्मघात का विचार त्याग दो

यह दिल से विनय है मेरा आपसे..


अभी तो इस गमले के पौधे पर,

अपना वन रूम का घर बसा लो,

थोड़ी अड़चन तो होगी, परंतु 

अभी इसी से काम चला लो..


उसने कहा - 

"बड़ा उपकार होगा, 

परंतु किराया क्या होगा? 

और कैसे चुकाऊँगा "

मैंने कहा-

"तीनों पहर मंगल कलरव सुनुँगा,

और कुछ नही माँगूँगा.. 


वह बोला "मुझे तो आप मिल गए,

पर मेरे भाई बंधुओ का क्या?

उन्हें भी तो घर चाहिए, 

कहाँ रहेंगे वो सब?"


मैंने कहा "अरे! अब लोग जाग रहे हैं,

बड़, पीपल, नीम, गूलर लगा रहे हैं

कोरोना ने झटका देकर, 

सबको डराया है,

आपको आत्मघात करने की,

अब आवश्यकता नहीं पड़ेगी"


सुनकर पक्षी उड़ गया,

घोंसले का सामान लाने के लिए

और मैंने मोबाइल उठाया

आपको यह बताने के लिए!


पक्षी की टक-टक से, 

मेरे मन का द्वार खुल गया

आप भी एक पेड़ तो लगाओगे 

अपने लिए या अपनों के लिए

कहीं सार्वजनिक स्थानों 

या फिर आंगन में या फिर

किसी के दिल में ही सही..

Rupa Oos ki ek Boond

दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय हमारा मन है

दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय हमारा मन है

कर्म शब्द 'कृ' धातु से निकला है; 'कृ' धातु का अर्थ है- करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञानलाभ है। मनुष्य का अंतिम ध्येय सुख नहीं बल्कि ज्ञान है, क्योंकि सुख और आनंद का तो एक न एक दिन अंत हो ही जाता है। संसार में सब दुःखों का मूल भी यही है कि मनुष्य अज्ञानवश यह समझ बैठता है कि सुख ही उसका चरम लक्ष्य है।

दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय हमारा मन है

ज्ञान मनुष्य में अंतर्निहित है। कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब अंदर ही है। हम जो कहते हैं कि मनुष्य 'जानता' है, उसे ठीक-ठीक मनोवैज्ञानिक भाषा में व्यक्त करने पर हमें कहना चाहिए कि वह 'आविष्कार' करता है। मनुष्य जो कुछ सीखता है, वह वास्तव में 'आविष्कार करना' ही है। 'आविष्कार' का अर्थ है - मनुष्य का अपनी अनंत ज्ञानस्वरूप आत्मा के ऊपर से आवरण को हटा लेना। विश्व का असीम पुस्तकालय हमारे मन में ही विद्यमान है। बाह्य जगत् तो अपने मन को अध्ययन में लगाने के लिए उद्दीपक तथा सहायक मात्र है; परंतु हर समय अध्ययन का विषय मन ही है। जब आवरण धीरे-धीरे हटता जाता है, तो हम कहते हैं कि 'हमें ज्ञान हो रहा है।' ज्यों-ज्यों इस आविष्करण की क्रिया बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों हमारे ज्ञान की वृद्धि होती जाती है।

कर्म जैसा होगा, इच्छाशक्ति का विकास भी वैसा ही होगा। संसार में प्रबल इच्छाशक्ति संपन्न जितने महापुरुष हुए हैं, वे सभी धुरंधर कर्मी थे। यह सनातन नियम है कि जब तक कोई मनुष्य किसी वस्तु का उपार्जन न करे, तब तक वह उसे प्राप्त नहीं हो सकती। हम अपने भौतिक सुखों के लिए भिन्न-भिन्न चीजों को भले ही इकट्ठा करते जाएं, परंतु वास्तव में जिसका उपार्जन हम अपने कर्मों द्वारा करते हैं, वही हमारा होता है। कोई संसार भर की सारी पुस्तकें मोल लेकर रख ले, परंतु वह केवल उन्हीं को पढ़ सकेगा, जिनको पढ़ने का वह अधिकारी होगा, और यह अधिकार कर्म द्वारा ही प्राप्त होता है। हम किसके अधिकारी हैं, हम अपने भीतर क्या-क्या ग्रहण कर सकते हैं, इस सबका निर्णय कर्म द्वारा ही होता है।

दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय हमारा मन है

अपनी वर्तमान अवस्था के जिम्मेदार हम ही हैं; और जो कुछ हम होना चाहें, उसकी शक्ति भी हम ही में है। हमें यह जान लेना आवश्यक है कि कर्म किस प्रकार किए जाएं। संभव है, आप कहें, 'कर्म करने की शैली जानने से क्या लाभ?' संसार में प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी प्रकार से तो काम करता ही रहता है। परंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शक्तियों का निरर्थक क्षय भी कोई चीज होती है। गीता का कथन है, कर्मयोग का अर्थ है- कुशलता से अर्थात् वैज्ञानिक प्रणाली से कर्म करना। कर्मानुष्ठान की विधि ठीक-ठीक जानने से मनुष्य को श्रेष्ठ फल प्राप्त हो सकता है। यह स्मरण रखना चाहिए कि समस्त कर्मों का उद्देश्य है मन के भीतर पहले से ही स्थित शक्ति को प्रकट कर देना, आत्मा को जाग्रत कर देना। प्रत्येक मनुष्य के भीतर पूर्ण शक्ति और पूर्ण ज्ञान विद्यमान है। भिन्न-भिन्न कर्म इन महान् शक्तियों को जाग्रत करने तथा बाहर प्रकट कर देने में साधन मात्र हैं। 

आत्मसंयम से महान् इच्छाशक्ति पैदा होती है। हमें कर्म करने का ही अधिकार है, कर्मफल में हमारा कोई अधिकार नहीं। कर्मफलों को एक ओर रहने दो, उनकी चिंता हमें क्यों हो? यदि तुम किसी मनुष्य की सहायता करना चाहते हो, तो इस बात की कभी चिंता न करो कि उस आदमी का व्यवहार तुम्हारे प्रति कैसा रहता है। यदि तुम एक श्रेष्ठ एवं भला कार्य करना चाहते हो, तो यह सोचने का कष्ट मत करो कि उसका फल क्या होगा। कर्मयोगी के लिए सतत कर्मशील होना आवश्यक है; हमें सदैव कर्म करते रहना चाहिए। 

- स्वामी विवेकानंद की किताब 'कर्मयोग से साभार

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण" || State Animal of Punjab "Blackbuck"

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण

स्थानीय नाम: "काला हिरण"
वैज्ञानिक नाम: एंटिलोप सर्विकापरा 

काला हिरण तब सबसे ज्यादा सुर्खियों में था जब फिल्म "हम साथ-साथ हैं" की शूटिंग के दौरान सलमान खान ने काले हिरण का शिकार किया था। फिल्म बहुत अच्छा था, फिल्म के माध्यम से समाज में अच्छा संदेश दिया गया था। उस दौर के बाद इस तरह की फिल्में बनना लगभग बंद ही हो गयी। काले हिरण के शिकार केस में दोषी करार दिए गए सलमान खान को 5 साल की सजा सुनाई गई थी। कुछ तो खास बात है, इस काले हिरण में जिसका शिकार करने पर सलमान खान को जेल जाना पड़ गया। खैर लौटते हैं अपने मुख्य पोस्ट पर और जानते हैं पंजाब के राज्य पशु के बारे में। यह काला हिरण (Blackbuck) ही पंजाब का राज्य पशु है।

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

काला हिरण मूलतः भारत, पाकिस्तान और नेपाल में पाया जाता है। इसकी प्रजातियां बांग्लादेश में पाई जाती थीं, लेकिन अब वहां यह विलुप्त हो गया है। भारत में भी इसकी स्थिति ठीक नहीं है और अब यह संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित हो गया है। 

अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने काला हिरण को Near Threatened या NT कैटेगरी में रखा है। वास्तव में 20 वीं शताब्दी में अत्यधिक शिकार से इनकी संख्या में भारी कमी दर्ज की गई। इसका मुख्य कारण वनों की कटाई रही, जिससे ये रहवासी इलाकों की ओर जाने को मजबूर हुए और इनका शिकार आसान हो गया और इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई। बाद में भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत काले हिरण का शिकार निषिद्ध कर दिया गया। 

 पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

काले हिरण में नर और मादा का विशिष्ट रंग होता है। नर काला हिरन गहरे भूरे, काले और सफेद रंग के होते हैं और लंबे, मुड़ सींग होते हैं, जबकि मादा बिना सींगों के सफ़ेद रंग की होती है। काले हिरण दुबले-पतले होते हैं और इनके सिर से लेकर शरीर तक की लंबाई लगभग 110 सेमी होती है। वयस्क नर के बाल काले और सफ़ेद होते हैं। शरीर का ऊपरी हिस्सा काला होता है, जबकि निचला हिस्सा और आँखों के चारों ओर एक घेरा सफ़ेद रंग का होता है। इनके शरीर की लंबाई: 100-140 सेमी (3.3-4.6 फीट), कंधे की ऊंचाई: 64-84 सेमी (2.10–2.76 फीट) और पूंछ की लंबाई: 10-17 सेमी (3.9–6.7 इंच) तक होती है। 

 पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

वयस्क नर का वजन 20 से 50 किलोग्राम और मादा का वजन 20 से 35 किलोग्राम के बीच होता है। काला हिरन के सींग एक से चार सर्पिल मोड़ के साथ बजते हैं, शायद ही कभी चार से अधिक मोड़ के साथ; वे 79 सेमी (31 इंच) तक लंबे हो सकते हैं।  

नर जन्म से ही हल्के रंग के होते हैं, लेकिन वयस्क होने पर गहरे रंग के हो जाते हैं। मादा का रंग सिर और पीठ पर पीला-भूरा होता है। दोनों लिंगों के पैरों के नीचे और अंदर का भाग सफ़ेद होता है। बूढ़े हिरन पीठ, बगल और गर्दन के सामने काले भूरे रंग के होते हैं। उम्र के साथ वे लगभग काले हो जाते हैं। केवल गर्दन का पिछला भाग भूरा-लाल रहता है, और पीला पार्श्व बैंड गायब हो जाता है। ब्लैकबक की आंखों के छल्ले, ठोड़ी का पैच, छाती, पेट और अंदरूनी पैर सफ़ेद होते हैं।

भारतीय वन संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार जीवों को अलग-अलग अनुसूची में रखा गया है, जिनमें से काला हिरण अनुसूची-1 में आता है, जिसमें वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के प्रवाधान हैं और इसके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड (3 से 7 साल तक की जेल) निर्धारित हैं. इसी वजह से सलमान का मामला गंभीर हो गया। 

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

English Translate

State animal of Punjab "Black Buck"


Local name: "Black Buck"
Scientific name: Antilope cervicapra

Black Buck was in the news when Salman Khan hunted it during the shooting of the film "Hum Saath Saath Hain". The film was very good, a good message was given to the society through the film. After that period, such films almost stopped being made. Salman Khan, who was convicted in the blackbuck hunting case, was sentenced to 5 years in prison. There is something special about this blackbuck, for hunting which Salman Khan had to go to jail. Well, let's return to our main post and know about the state animal of Punjab. This blackbuck is the state animal of Punjab.

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

Blackbuck is originally found in India, Pakistan and Nepal. Its species were found in Bangladesh, but now it has become extinct there. Its condition is not good in India either and now it is limited to protected areas.

The International Union for Conservation of Nature (IUCN) has placed the blackbuck in the Near Threatened or NT category. In fact, in the 20th century, their numbers declined drastically due to excessive hunting. The main reason for this was deforestation, which forced them to move towards residential areas and their hunting became easy and their numbers declined rapidly. Later, hunting of blackbuck was prohibited in India under Schedule-1 of the Wildlife Protection Act, 1972.

The male and female blackbuck have distinctive coloring. Male blackbucks are dark brown, black and white and have long, twisted horns, while the female is white without horns. Blackbucks are slender and their head to body length is about 110 cm. The adult male has black and white hair. The upper part of the body is black, while the lower part and a circle around the eyes are white. They have a body length of 100–140 cm (3.3–4.6 ft), shoulder height of 64–84 cm (2.10–2.76 ft) and tail length of 10–17 cm (3.9–6.7 in).

Adult males weigh between 20 and 50 kg and females between 20 and 35 kg. Blackbuck horns are ringed with one to four spiral turns, rarely with more than four turns; they can be up to 79 cm (31 in) long.

Males are light-colored at birth, but darken as adults. Females are yellowish-brown on the head and back. Both sexes have white undersides and insides of the legs. Older bucks are dark brown on the back, sides and front of the neck. With age they become almost black. Only the back of the neck remains brownish-red, and the yellow lateral band disappears. The blackbuck's eye rings, chin patch, chest, belly and inner legs are white.

पंजाब का राज्य पशु "काला हिरण"  || State Animal of Punjab "Blackbuck"

According to the Indian Forest Protection Act, 1972, animals are placed in different schedules, of which the blackbuck comes under Schedule-1, which provides complete protection to wildlife and the highest penalties (3 to 7 years imprisonment) are prescribed for crimes under it. This is why Salman's case became serious.

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..झांकी

मानसरोवर-1 ..झांकी

झाँकी - मुंशी प्रेमचंद | Jhanki by Munshi Premchand

1

कई दिनों से घर में कलह मचा हुआ था। माँ अलग मुँह फुलाये बैठी थी, स्त्री अलग। घर की वायु में जैसे विष भरा हुआ था। रात को भोजन नहीं बना, दिन को मैंने स्टोव पर खिचड़ी डाली, पर खाया किसी ने नहीं। बच्चों को भी आज भूख न थी। छोटी लड़की कभी मेरे पास आकर खड़ी हो जाती, कभी माता के पास, कभी दादी के पास; पर कहीं उसके लिए प्यार की बातें न थीं। कोई उसे गोद में न उठाता था, मानों उसने भी अपराध किया हो। लड़का शाम को स्कूल से आया। किसी ने उसे कुछ खाने को न दिया, न उससे बोला, न कुछ पूछा। दोनों बरामदे में मन मारे बैठे हुए थे और शायद सोच रहे थे- घर में आज क्यों लोगों के हृदय उनसे इतने फिर गये हैं। भाई-बहिन दिन में कितनी बार लड़ते हैं, रोना-पीटना भी कई बार हो जाता है; पर ऐसा कभी नहीं होता कि घर में खाना न पके या कोई किसी से बोले नहीं। यह कैसा झगड़ा है कि चौबीस घंटे गुजर जाने पर भी शांत नहीं होता, यह शायद उनकी समझ में न आता था।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..झांकि

झगड़े की जड़ कुछ न थी। अम्माँ ने मेरी बहन के घर तीजा भेजन के लिए जिन सामानों की सूची लिखायी, वह पत्नी जी को घर की स्थिति देखते हुए अधिक मालूम हुई। अम्माँ खुद समझदार हैं। उन्होंने थोड़ी-बहुत काट-छाँट कर दी थी; लेकिन पत्नी जी के विचार से और काट-छाँट होनी चाहिए थी। पाँच साड़ियों की जगह तीन रहें, तो क्या बुराई है। खिलौने इतने क्या होंगे, इतनी मिठाई की क्या जरुरत! उनका कहना था- जब रोजगार में कुछ मिलता नही; दैनिक कार्यो में खींचतान करनी पड़ती है, दूध-घी के बजट में तख़लीफ हो गयी, तो फिर तीजे में क्यों इतनी उदारता की जाय? पहले घर में दिया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं। यह नहीं कि मस्जिद में तो दिया जला दें और घर अंधेरा पड़ा रहे। इसी बात पर सास-बहू में तकरार हो गयी, फिर शाखें फूट निकलीं। बात कहाँ से कहाँ जा पहुँची, गड़े हुए मुर्दे उखाड़े गये। अन्योक्तियों की बारी आई, व्यंग्य का दौर शुरु हुआ और मौनालंकार पर समाप्त हो गया।

मैं बड़े संकट में था। अगर अम्माँ की तरफ से कुछ कहता हूँ, तो पत्नी जी रोना-धोना शुरु करती हैं, अपने नसीबों को कोसने लगती हैं; पत्नी की-सी कहता हूँ तो जन-मुरीद की उपाधि मिलती है। इसलिए बारी-बारी से दोनों पक्षों का समर्थन करता जाता था; पर स्वार्थवश मेरी सहानुभूति पत्नी के साथ ही थी। खुल कर अम्माँ से कुछ न कहा सकता था; पर दिल में समझ रहा था कि ज्यादती इन्हीं की है। दुकान का यह हाल है कि कभी-कभी बोहनी भी नहीं होती। असामियों से टका वसूल नहीं होता, तो इन पुरानी लकीरों को पीटकर क्यों अपनी जान संकट में डाली जाय!

बार-बार इस गृहस्थी के जंजाल पर तबीयत झुँझलाती थी। घर में तीन तो प्राणी हैं और उनमें भी प्रेम भाव नहीं! ऐसी गृहस्थी में तो आग लगा देनी चाहिए। कभी-कभी ऐसी सनक सवार हो जाती थी कि सबको छोड़-छाड़कर कहीं भाग जाऊँ। जब अपने सिर पड़ेगा, तब इनको होश आयेगा; तब मालूम होगा कि गृहस्थी कैसे चलती है? क्या जानता था कि यह विपत्ति झेलनी पड़ेगी? नहीं विवाह का नाम ही न लेता। तरह-तरह के कुत्सित भाव मन में आ रहे थे। कोई बात नहीं, अम्माँ मुझे परेशान करना चाहती हैं। बहू उनके पाँव नहीं दबाती, उनके सिर में तेल नहीं डालती, तो इसमें मेरा क्या दोष? मैंने उसे मना तो नहीं कर दिया है! मुझे तो सच्चा आनंद होगा, यदि सास-बहू में इतना प्रेम हो जाय; लेकिन यह मेरे वश की बात नहीं कि दोनों में प्रेम डाल दूँ। अगर अम्माँ ने अपनी सास की साड़ी धोयी है, उनके पाँव दबाये हैं, उनकी घुड़कियाँ खायी हैं, तो आज वह पुराना हिसाब बहू से क्यों चुकाना चाहती हैं? उन्हें क्यों नहीं दिखाई देता कि अब समय बदल गया है? बहुएँ अब भयवश सास की गुलामी नहीं करतीं। प्रेम से चाहे उनके सिर के बाल नोच लो, लेकिन जो रोब दिखाकर उन पर शासन करना चाहो, तो वह दिन लद गये।

सारे शहर में जन्माष्टमी का उत्सव हो रहा था। मेरे घर में संग्राम छिड़ा हुआ था। संध्या हो गयी थी; पर घर अंधेरा पड़ा था। मनहूसियत छायी हुई थी। मुझे अपनी पत्नी पर क्रोध आया। लड़ती हो, लड़ो; लेकिन घर में अंधेरा क्यों रखा है? जाकर कहा- क्या आज घर में चिराग न जलेंगे?

पत्नी ने मुँह फुलाकर कहा- जला क्यों नहीं लेते। तुम्हारे हाथ नहीं हैं?

मेरी देह में आग लग गयी। बोला- तो क्या जब तुम्हारे चरण नहीं आये थे, तब घर में चिराग न जलते थे?

अम्माँ ने आग को हवा दी- नहीं, तब सब लोग अंधेरे ही में पड़े रहते थे।

पत्नी जी को अम्माँ की इस टिप्पणी ने जामे के बाहर कर दिया। बोलीं- जलाते होंगे मिट्टी की कुप्पी! लालटेन तो मैंने नहीं देखी। मुझे इस घर में आये दस साल हो गये।

मैंने डाँटा- अच्छा चुप रहो, बहुत बढ़ो नहीं।

'ओहो! तुम तो ऐसा डाँट रहे हो, जैसे मुझे मोल लाये हो?'

'मैं कहता हूँ, चुप रहो!'

'क्यों चुप रहूँ? अगर एक कहोगे, तो दो सुनोगे।'

'इसी का नाम पतिव्रत है?'

'जैसा मुँह होता है, वैसे ही बीड़े मिलते हैं !'

मैं परास्त होकर बाहर चला आया, और अंधेरी कोठरी में बैठा हुआ, उस मनहूस घड़ी को कोसने लगा। जब इस कुलच्छनी से मेरा विवाह हुआ था। इस अंधकार में भी दस साल का जीवन सिनेमा-चित्रों की भाँति मेरे नेत्रों के सामने दौड़ गया। उसमें कहीं प्रकाश की झलक न थी, कहीं स्नेह की मृदुता न थी।

2

सहसा मेरे मित्र पंडित जयदेवजी ने द्वार पर पुकारा- अरे, आज यह अंधेरा क्यों कर रखा है जी? कुछ सूझता ही नहीं। कहाँ हो?

मैंने कोई जवाब न दिया। सोचा, यह आज कहाँ से आकर सिर पर सवार हो गये।

जयदेव ने फिर पुकारा- अरे, कहाँ हो भाई? बोलते क्यों नहीं? कोई घर में है या नहीं?

कहीं से कोई जवाब न मिला।

जयदेव ने द्वार को इतनी जोर से झँझोड़ा कि मुझे भय हुआ, कहीं दरवाजा चौखट-बाजू समेत गिर न पड़े। फिर भी मैं बोला नहीं। उनका आना खल रहा था।

जयदेव चले गये। मैंने आराम की साँस ली। बारे शैतान टला, नहीं घंटों सिर खाता।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

मगर पाँच ही मिनट में फिर किसी के पैरों की आहट मिली और अबकी टार्च के तीव्र प्रकाश से मेरा सारा कमरा भर उठा। जयदेव ने मुझे बैठे देखकर कुतूहल से पूछा- तुम कहाँ गये थे जी? घंटों चीखा, किसी ने जवाब तक न दिया। यह आज क्या मामला है? चिराग क्यों नहीं जले?

मैंने बहाना किया- क्या जाने, मेरे सिर में दर्द था, दुकान से आकर लेटे, तो नींद आ गयी

'और सोये तो घोड़ा बेचकर, मुर्दों से शर्त लगाकर?'

'हाँ यार, नींद आ गयी।'

'मगर घर में चिराग तो जलाना चाहिए था या उसका रिट्रेंचमेंट कर दिया?'

'आज घर में लोग व्रत से हैं । हाथ न खाली होगा।'

'खैर चलो, कहीं झाँकी देखने चलते हो? सेठ घूरेमल के मंदिर में ऐसी झाँकी बनी है कि देखते ही बनता है। ऐसे-ऐसे शीशे और बिजली के सामान सजाये हैं कि आँखें झपक उठती हैं। सिंहासन के ठीक सामने ऐसा फौवारा लगाया है कि उसमें से गुलाबजल की फुहारें निकलती हैं। मेरा तो चोला मस्त हो गया। सीधे तुम्हारे पास दौड़ा चला आ रहा हूँ। बहुत झाँकियाँ देखी होंगी तुमने, लेकिन यह और ही चीज है। आलम फटा पड़ता है। सुनते हैं दिल्ली से कोई चतुर कारीगर आया है। उसी की यह करामात है।'

मैंने उदासीन भाव से कहा- मेरी तो जाने की इच्छा नहीं है भाई! सिर में जोर का दर्द है।

'तब तो जरुर चलो। दर्द भाग न जाय तो कहना।'

'तुम तो यार, बहुत दिक करते हो। इसी मारे मैं चुपचाप पड़ा था कि किसी तरह यह बला टले; लेकिन तुम सिर पर सवार हो गये। कह दिया- मैं न जाऊँगा।

'और मैंने कह दिया- मैं जरुर ले जाऊँगा।'

मुझ पर विजय पाने का मेरे मित्रों को बहुत आसान नुस्खा याद है। यों हाथा-पायी, धींगा-मुश्ती, धौल-धप्पे में किसी से पीछे रहने वाला नहीं हूँ लेकिन किसी ने मुझे गुदगुदाया और परास्त हुआ। फिर मेरी कुछ नहीं चलती। मैं हाथ जोड़ने लगता हूँ घिघियाने लगता हूँ और कभी-कभी रोने भी लगता हूँ। जयदेव ने वही नुस्खा आजमाया और उसकी जीत हो गयी। संधि की वही शर्त ठहरी कि मैं चुपके से झाँकी देखने चला चलूँ। 

3

सेठ घूरेलाल उन आदमियों में हैं, जिनका प्रात: को नाम ले लो, तो दिन-भर भोजन न मिले। उनके मक्खीचूसपने की सैकड़ों ही दंतकथाएँ नगर में प्रचलित हैं। कहते हैं, एक बार मारवाड़ का एक भिखारी उनके द्वार पर डट गया कि भिक्षा लेकर ही जाऊँगा। सेठ जी भी अड़ गये कि भिक्षा न दूँगा, चाहे कुछ हो। मारवाड़ी उन्हीं के देश का था। कुछ देर तो उनके पूर्वजों का बखान करता रहा, फिर उनकी निंदा करने लगा, अंत में द्वार पर लेट रहा। सेठ जी ने रत्ती-भर परवाह न की। भिक्षुक भी अपनी धुन का पक्का था। सारा दिन द्वार पर बे-दाना-पानी पड़ा रहा और अंत में वहीं मर गया। तब सेठ जी पसीजे और उसकी क्रिया इतनी धूम-धाम से की कि बहुत कम किसी ने की होगी। भिक्षुक का सत्याग्रह सेठ जी के लिए वरदान हो गया। उनके अन्त:करण में भक्ति का जैसे स्रोत खुल गया। अपनी सारी संपत्ति धर्मार्थ अर्पण कर दी।

हम लोग ठाकुरदारे में पहुँचे, तो दर्शकों की भीड़ लगी हुई थी। कंधे से कंधा छिलता था। आने और जाने के मार्ग अलग थे, फिर भी हमें आध घंटे के बाद भीतर जाने का अवसर मिला। जयदेव सजावट देख-देखकर लोट-पोट हुए जाते थे, पर मुझे ऐसा मालूम होता था कि इस बनावट और सजावट के मेले में कृष्ण की आत्मा कहीं खो गयी है। उनकी वह रत्नजटित, बिजली से जगमगाती मूर्ति देखकर मेरे मन में ग्लानि उत्पन्न हुई। इस रुप में भी प्रेम का निवास हो सकता है? मैंने तो रत्नों में दर्प और अहंकार ही भरा देखा है। मुझे उस वक्त यही याद न रही, कि यह एक करोड़पति सेठ का मंदिर है और धनी मनुष्य धन में लोटने वाले ईश्वर की ही कल्पना कर सकता है। धनी ईश्वर में ही उसकी श्रद्धा हो सकती है। जिसके पास धन नहीं, वह उसकी दया का पात्र हो सकता है, श्रद्धा का कदापि नहीं।

मंदिर में जयदेव को सभी जानते हैं। उन्हें तो सभी जगह सभी जानते हैं। मंदिर के आँगन में संगीत-मंडली बैठी हुई थी। केलकर जी अपने गंधर्व-विद्यालय के शिष्यों के साथ तम्बूरा लिये बैठे थे। पखावज, सितार, सरोद, वीणा और जाने कौन-कौन बाजे, जिनके नाम भी मैं नहीं जानता, उनके शिष्यों के पास थे। कोई गीत बजाने की तैयारी हो रही थी। जयदेव को देखते ही केलकर जी ने पुकारा! मै भी तुफैल में जा बैठा। एक क्षण में गीत शुरु हुआ। समाँ बँध गया। जहाँ इतना शोर-गुल था कि तोप की आवाज भी न सुनायी देती, वहाँ जैसे माधुर्य के उस प्रवाह ने सब किसी को अपने में डुबा लिया। जो जहाँ था, वहीं मंत्र- मुग्ध-सा खड़ा था। मेरी कल्पना कभी इतनी सचित्र और सजीव न थी। मेरे सामने न वह बिजली की चकाचौंध थी, न वह रत्नों की जगमगाहट, न वह भौतिक विभूतियों का समारोह। मेरे सामने वही यमुना का तट था, गुल्म-लताओं का घूँघट मुँह पर डाले हुए। वही मोहिनी गउएँ थीं, वही गोपियों की जल-क्रीड़ा, वहीं वंशी की मधुर ध्वनि, वही शीतल चाँदनी और वहीं प्यारा नंदकिशोर! जिसकी मुख-छवि में प्रेम और वात्सल्य की ज्योति थी, जिसके दर्शनों ही से हृदय निर्मल हो जाते थे।

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मैं इसी आनंद-विस्मृति की दशा में था कि कंसर्ट बंद हो गया और आचार्य केलकर के एक किशोर शिष्य ने ध्रुपद अलापना शुरु किया। कलाकारों की आदत है कि शब्दों को कुछ इस तरह तोड़-मरोड़ देते हैं कि अधिकांश सुननेवालों की समझ में नहीं आता कि क्या गा रहे हैं। इस गीत का एक शब्द भी मेरी समझ में न आया; लेकिन कंठ-स्वर में कुछ ऐसा मादकता भरा लालित्य था कि प्रत्येक स्वर मुझे रोमांचित कर देता था। कंठ-स्वर में इतनी जादू-भरी शक्ति है, इसका मुझे आज कुछ अनुभव हुआ। मन में एक नये संसार की सृष्टि होने लगी, जहाँ आनंद-ही-आनंद है, प्रेम-ही-प्रेम, त्याग-ही-त्याग। ऐसा जान पड़ा, दु:ख केवल चित्त की एक वृत्ति है, सत्य है केवल आनंद। एक स्वच्छ, करुणा-भरी कोमलता, जैसे मन को मसोसने लगी। ऐसी भावना मन में उठी कि वहाँ जितने सज्जन बैठे हुए थे, सब मेरे अपने हैं, अभिन्न हैं। फिर अतीत के गर्भ से मेरे भाई की स्मृति-मूर्ति निकल आयी।

मेरा छोटा भाई बहुत दिन हुए, मुझसे लड़कर, घर की जमा-जथा लेकर रंगून भाग गया था, और वहीं उसका देहांत हो गया था। उसके पाशविक व्यवहारों को याद करके मैं उन्मत्त हो उठता था। उसे जीता पा जाता तो शायद उसका खून पी जाता, पर इस समय स्मृति-मूर्ति को देखकर मेरा मन जैसे मुखरित हो उठा। उसे आलिंगन करने के लिए व्याकुल हो गया। उसने मेरे साथ, मेरी स्त्री के साथ, माता के साथ, मेरे बच्चे के साथ, जो-जो कटु, नीच और घृणास्पद व्यवहार किये थे, वह सब मुझे भूल गये। मन में केवल यही भावना थी- मेरा भैया कितना दु:खी है। मुझे इस भाई के प्रति कभी इतनी ममता न हुई थी, फिर तो मन की वह दशा हो गयी, जिसे विह्वलता कह सकते हैं! शत्रु-भाव जैसे मन से मिट गया था। जिन-जिन प्राणियों से मेरा बैर-भाव था, जिनसे गाली-गलौज, मार-पीट मुकदमाबाजी सब कुछ हो चुकी थी, वह सभी जैसे मेरे गले में लिपट-लिपटकर हँस रहे थे। फिर विद्या (पत्नी) की मूर्ति मेरे सामने आ खड़ी हुई- वह मूर्ति जिसे दस साल पहले मैंने देखा था- उन आँखों में वही विकल कंपन था, वहीं संदिग्ध विश्वास, कपोलों पर वही लज्जा- लालिमा, जैसे प्रेम सरोवर से निकला हुआ कोई कमल पुष्प हो। वही अनुराग, वही आवेश, वही याचना-भरी उत्सुकता, जिसमें मैंने उस न भूलने वाली रात को उसका स्वागत किया था, एक बार फिर मेरे हृदय में जाग उठी। मधुर स्मृतियों का जैसे स्रोत-सा खुल गया। जी ऐसा तड़पा कि इसी समय जाकर विद्या के चरणों पर सिर रगड़कर रोऊँ और रोते-रोते बेसुध हो जाऊँ। मेरी आँखें सजल हो गयीं। मेरे मुँह से जो कटु शब्द निकले थे, वह सब जैसे मेरे ही हृदय में गड़ने लगे। इसी दशा में, जैसे ममतामयी माता ने आकर मुझे गोद में उठा लिया। बालपन में जिस वात्सल्य का आनंद उठाने की मुझमें शक्ति न थी, वह आनंद आज मैंने उठाया।

गाना बंद हो गया। सब लोग उठ-उठकर जाने लगे। मैं कल्पना-सागर में ही डूबा रहा।

सहसा जयदेव ने पुकारा- चलते हो, या बैठे ही रहोगे?

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

हम भारतवासियों के सभी घरों में दही जमाया जाता है। दही जमाने की एक साधारण सी प्रक्रिया है। हम लोग दूध में जोरन डाल देते हैं, 4 से 6 घंटे में यह दूध दही में बदल जाता है। दूध से दही बनने की प्रक्रिया को किण्वन कहते हैं। किण्वन एक जैव रासायनिक क्रिया है, जिसमें जटिल कार्बनिक यौगिक सूक्ष्मजीवों की सहायता से सरल कार्बनिक यौगिक में विघटित हो जाते हैं। दूध से दही बनना एक रासायनिक अभिक्रिया है। लैक्टोबैसिलस जीवाणु के कारण दूध से दही बनता है।

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

वैसे आज हम दूध से दही बनने की प्रक्रिया पर चर्चा नहीं करेंगे, अपितु एक ऐसे पत्थर की चर्चा करेंगे जिसके दूध में डालने से दूध दही में बदल जाता है। साधारणतया हम दूध में थोड़ा सा दही एक चम्मच या दो चम्मच दही जिसको कुछ जगहों पर जोरन तो कहीं जामन कहा जाता है, डालते हैं और दूध जम के दही बनता है, परंतु बिना जामन के भी दही जम सकता है, यह बात आश्चर्यजनक है। राजस्थान के जैसलमेर जिले में एक पत्थर मिलता है जिसे हासिल कहते हैं, यह पत्थर दूध को दही में बदल देता है।

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

जैसलमेर जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर स्थित हाबूर गांव में लोग पत्थर से दही जमाते हैं। यह एक ऐसा अनोखा पत्थर है जो कि दूध को जमाकर दही में बदल देता है। यहां के लोग सैकड़ों सालों से इस चमत्कारी पत्थर का उपयोग करते आ रहे हैं। दूध में इस पत्थर को डालने के 14 घंटे बाद दूध, दही में बदल जाता है। हाबूर गांव अब पूनमनगर के नाम से पहचाना जाता है। यहां के इस पत्थर को स्थानीय भाषा में 'हाबूरिया भाटा' भी कहा जाता है। इस पत्थर के संपर्क में आते ही दूध जम जाता है। यह पत्थर अपनी इस विशेष खूबी के कारण देश-विदेश में काफी लोकप्रिय है। यहां आने वाले सैलानी हाबूर पत्थर के बने बर्तन भी ले जाते हैं। इस पत्थर से बने बर्तनों की डिमांड हमेशा ही बनी रहती है।

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

शोधकर्ताओं ने भी इसे प्रमाणित किया है। शोध में साबित हुआ है की इस पत्थर में दही जमाने वाले रासायनिक गुण मौजूद हैं। इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं जो कि दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। इन बर्तनों में जमा दही और उससे बनने वाली लस्सी के देश-विदेश के पर्यटक दीवाने हैं। आपको बस हाबूर पत्थर के बर्तनों में दूध रखकर छोड़ दीजिए, सुबह तक शानदार दही तैयार हो जाता है जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुश्बू वाला होता है। इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है जो इसे चमत्कारी बनाते हैं।

दूध को दही बनाने वाला अद्भुत पत्थर

यह पत्थर हल्का सुनहरा और पीले रंग का होता है। गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हजारों साल पहले जहां पर आज जैसलमेर है, वहां पहले विशाल समुद्र हुआ करता था। धीरे-धीरे समुद्र सूख जाने के कारण यहां मौजूद समुद्री जीवाश्म में बदल गए। फिर यहां पहाड़ों का निर्माण होने लगा। फिर पत्थरों से खनिजों का निर्माण भी शुरू होने लगा। धरती की उथल-पुथल में समुद्र व समुद्री जीव जमीन में दब गए, जो आज पत्थर बन गए हैं और उसमें विशिष्ट गुण आ गए हैं, जिससे इसमें रखा दूध बिना किसी सहायक विलायक की‌ मदद से दही में परिवर्तित हो जाता है। इन पत्थर के बर्तनों के उपयोग करने व इसमें बना खाना खाने से कई असाध्य बिमारियों से राहत मिलती है. इस फॉसिल पत्थर को जीवाश्म पत्थर भी कहा जाता है। 

कोदंडरामा स्वामी मंदिर, आन्ध्र प्रदेश || Kondandaramanswami Temple, Andhra Pradesh

कोदंडरामा स्वामी मंदिर

भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य के कड़पा जिले में भगवान राम को समर्पित कोडंदरामा मंदिर (Kondandaramanswami Temple) एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है।  इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी के आसपास चोल और विजयनगर राजाओं के शासनकाल के दौरान किया गया था। मंदिर, विजयनगर स्थापत्य शैली का एक उदाहरण है। 

कोदंडरामा स्वामी मंदिर, आन्ध्र प्रदेश || Kondandaramanswami Temple, Andhra Pradesh

यह कडप्पा से 25 किलोमीटर (16 मील) की दूरी पर स्थित है और राजमपेट के पास है। मंदिर और उसके आसपास की इमारतें राष्ट्रीय महत्व के केंद्रीय संरक्षित स्मारकों में से एक हैं। यह मंदिर तिरुपति शहर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर का संचालन तिरूमला तिरूपति देवस्थानम ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री कोदंडरामा स्वामी वरू (श्री राम), देवी सीता अम्मावरू और श्री लक्ष्मण स्वामी वरू की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस मंदिर की शैली विजयनगर की वास्तु कला से प्रभावित है। विजयनगर राजवंश के चिह्न और मुद्रिकाएं इस मंदिर के बाहरी मंडप की दीवारों पर अंकित हैं।

यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से सुंदर और प्रभावशाली है। इसमें तीन अलंकृत गोपुरम (टॉवर) हैं, जिनमें से केंद्रीय मीनार, पूर्व की ओर, मंदिर का प्रवेश द्वार है; अन्य दो मीनारें उत्तर और दक्षिण की ओर उन्मुख हैं। इसे मध्यरंगदपम के नाम से जाना जाता है क्योंकि मंडप 32 स्तंभों पर टिका हुआ है। कोलोनेड परिचारक के मंडप में देवियों की नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं। दक्षिणी तरफ केंद्रीय समर्थन प्रणाली के खंभे भगवान कृष्ण और विष्णु की नक्काशी प्रदर्शित करते हैं।

प्रत्येक कोने पर खंभों में देवी - देवताओं की छवियों के साथ तीन परतें उकेरी गई हैं। मध्य भाग की छत का निर्माण कई सजावटी कोष्ठक या कॉर्बल्स के साथ किया गया है। मंडप के स्तंभों में से एक में राम और उनके भाई लक्ष्मण के चित्र उकेरे गए हैं। राम को यहां एक खड़ी स्थिति में दिखाया गया है, उनके दाहिने हाथ में धनुष और बाएं हाथ में एक तीर है। लक्ष्मण की मूर्ति त्रिभंग मुद्रा में गढ़ी गई है, उनका दाहिना हाथ नीचे की ओर है, जबकि बाएं हाथ में धनुष है। 

कोदंडरामा स्वामी मंदिर, आन्ध्र प्रदेश || Kondandaramanswami Temple, Andhra Pradesh
मंदिर का हवाई दृश्य

गर्भगृह में अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ राम के केंद्रीय प्रतीक को एक ही चट्टान से मिश्रित छवि के रूप में उकेरा गया है। यहां तीनो के साथ राम भक्त हनुमान जी इनके साथ नही पूजे जाते है। हनुमानजी  के लिये मंदिर परिसर में ही  अलग से मंदिर बनाया गया है। मंदिर परिसर में ही तो तीर्थ कुण्ड है, जिनका नाम राम तीर्थ कुण्ड और लक्ष्मण तीर्थ कुण्ड है। 

कोदंडरामा स्वामी मंदिर का इतिहास 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम, माता सीता और श्री लक्ष्मण, लंका से लौटते हुए विश्राम करने के लिए इस स्थान पर रुके थे, जिसके पश्चात् यहाँ इन्हीं को समर्पित मंदिर का निर्माण करवाया गया।

श्री कोदंडरामा स्वामी मंदिर का निर्माण 10वीं ईस्वी में चोला राजा नरसिंघा राजा मुदलियार द्वारा शुरू करवाया गया था। पंद्रहवीं शताब्दी में राजा श्री कृष्णा देव राय ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।

English Translate

Kodandarama Swamy Temple

Kondandaramanswami Temple is a Hindu temple dedicated to Lord Rama in Kadapa district of the Indian state of Andhra Pradesh. This temple is said to be the largest temple in the region. This temple was built around the 16th century during the reign of the Chola and Vijayanagara kings. The temple is an example of the Vijayanagara architectural style.

कोदंडरामा स्वामी मंदिर, आन्ध्र प्रदेश || Kondandaramanswami Temple, Andhra Pradesh

It is located 25 kilometres (16 mi) from Kadapa and near Rajampet. The temple and its surrounding buildings are one of the centrally protected monuments of national importance. This temple is one of the famous temples in Tirupati city. The temple is run by the Tirumala Tirupati Devasthanam Trust. Beautiful idols of Lord Sri Kodandarama Swamy Varu (Shri Rama), Goddess Sita Ammavaru and Sri Lakshmana Swamy Varu are installed in the sanctum sanctorum of the temple. The style of this temple is influenced by the architecture of Vijayanagara. The symbols and mudrikas of the Vijayanagara dynasty are inscribed on the walls of the outer mandapa of this temple.

The temple is architecturally beautiful and impressive. It has three ornate gopurams (towers), of which the central tower, facing east, is the entrance to the temple; the other two towers face north and south. It is known as the Madhyarangadapam because the mandapam rests on 32 pillars. The colonnaded attendant mandapam has carved idols of goddesses. The pillars of the central support system on the southern side display carvings of Lord Krishna and Vishnu.

The pillars at each corner have three layers carved with images of gods and goddesses. The ceiling of the central portion is constructed with numerous decorative brackets or corbels. One of the pillars of the mandapam has carved images of Rama and his brother Lakshmana. Rama is shown here in a standing position, holding a bow in his right hand and an arrow in his left hand. The idol of Lakshmana is sculpted in the tribhanga posture, with his right hand lowered, while the left hand holds a bow.

कोदंडरामा स्वामी मंदिर, आन्ध्र प्रदेश || Kondandaramanswami Temple, Andhra Pradesh

In the sanctum sanctorum, the central symbol of Rama with his wife Sita and brother Lakshmana is carved out of a single rock as a composite image. Here, Ram's devotee Hanuman ji is not worshipped along with the three. A separate temple has been built for Hanumanji in the temple premises itself. There are pilgrimage ponds in the temple premises itself, named Ram Tirtha Kund and Lakshman Tirtha Kund.

History of Kondandaramanswami Temple

According to mythological belief, Lord Shri Rama, Mother Sita and Shri Lakshmana stopped at this place to rest while returning from Lanka, after which a temple dedicated to them was built here.

The construction of Sri Kodandarama Swamy Temple was started in the 10th century AD by Chola King Narasimha Raja Mudaliar. In the fifteenth century, King Sri Krishna Deva Raya rebuilt this temple.

आम /Aam / Mango

आम /Aam / Mango

आजकल फल मंडी सब्जी मंडी सड़क किनारे ठेलों पर बस आम ही आम नज़र आ रहे। कहीं अचार का कच्चा आम है तो कही पके। भइया ये डाल का आम है या पाल का। डाल का तो समझ आता अब ये पाल का आम क्या होता?पूछा तो पता लगा जो बिना कार्बाइड पके हैं वो डाल के और जो कार्बाइड डाल के जबरन पकाये गए हैं वो पाल के। हम इसके डिटेल में ज्यादा नहीं जायेंगे, हाँ इतना जरूर कहेंगे कि जहाँ तक हो सके डाल का आम खाएँ, पाल का आम खाने से बचें, पाल के आम फायदा की जगह नुकसान करेंगे। अब जहाँ डाल का आम उपलब्ध ना हो, वहाँ आम लाकर पानी में डाल दें, कुछ घंटों बाद उसका सेवन करें। 

आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

आम (Mango) एक ऐसा फल जो कि एक छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सब को बेहद पसंद होता है। कहते हैं ना मीठी बोली और मीठा व्यवहार हर किसी का दिल जीत लेता है। वैसे ही आम (Mango) की मीठी खुशबू और मिठास इसे फलों के राजा की उपाधि देती है। आम (Mango) गुणों से भी राजा है। भारतीय आम (Mango) अपने स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। आम (Mango) को भारत का राष्ट्रीय फल कहा जाता है। यह एक सर्वसुलभ फल है। दुनिया भर में आम की 400 से ज्यादा किस्म है। आम जब कच्चा होता है, तो उसमें विटामिन सी की मात्रा ज्यादा होती है। वही जब वह पक जाता है, तो इसमें विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है।

जानते हैं आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुणों के बारे में

पका आम बहुत ही पौष्टिक होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन व खनिज पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट तथा शर्करा पर्याप्त मात्रा में होता है। आम में फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, कॉपर, फोलेट (विटामिन b9) और पोटेशियम भी होता है। यह फल एस्कार्बिक एसिड, कैरोटिनाइड और फेनोलिक यौगिकों जैसे आहार एंटीऑक्सीडेंट का एक बड़ा स्रोत है।

कोलेस्ट्रोल नियमित रखने में

आम में फाइबर और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। आम के नियमित सेवन से कोलेस्ट्रोल का स्तर नियंत्रित रहता है। आम में मौजूद विटामिन सी, पेक्टिन और फाइबर खराब(LDL) कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक है तथा अच्छा (HDL) कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने में भी मददगार है।

पाचन क्रिया को ठीक रखने में

 उच्च फाइबर सामग्री पाचन क्रिया को नियमित रखने में अत्यंत सहायक है। यह कब्ज और पेट के अल्सर में भी राहत पहुंचाने में सक्षम है। इसमें मौजूद एंजाइम कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के पाचन को बढ़ाते हैं, जिससे भोजन को ऊर्जा में बदलने में सहायता मिलती है। दोनों ही आम (कच्चे व पक्के) पाचन शक्ति में सुधार करने में सहायक है।
आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

स्मरण शक्ति तीव्र करने में

आम में उपस्थित ग्लूटामिन एसिड स्मृति को बढ़ाता है। आम में विटामिन बी6 की भरपूर मात्रा होती है, जो मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाएं रखता है और उसमें सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है।

इम्यूनिटी को बढ़ाने में

आम में मौजूद विटामिन सी और ए की उच्च एवं अच्छी मात्रा प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और मजबूत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें मौजूद विटामिन ए इम्युन सिस्टम की कार्य क्षमता को सुचारु रूप से  चलाने में सहायक है।

आंखों की स्वास्थ्य के लिए

आम में विटामिन ए भरपूर मात्रा में होता है, जो आंखों के लिए वरदान है। इससे आंखों की रोशनी बनी रहती है।

कैंसर से बचाव

आम में मौजूद एंटीकैंसर गुण को मैंगिफरिन का नाम दिया गया है, जो फलों में पाया जाने वाला यौगिक है। मैंगिफरिन पेट व लिवर में कैंसर कोशिकाओं और अन्य ट्यूमर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। आम के फल के गूदे में कैरॉटिनाइड, एस्कार्बिक एसिड और पॉलिफेनॉल्स होते हैं, जो कैंसर के खतरे को कम करने में सहायक होते हैं।

ह्रदय के लिए

आम के सेवन से हृदय की बीमारी का खतरा कम हो जाता है इसमें मौजूद पोषक तत्व दिल को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। 

खून की कमी दूर करे

सही खानपान ना होने से और शरीर को जरूरी पोषक तत्व ना मिलने पर खून की कमी की समस्या हो जाती है। आम में मौजूद विटामिन सी शरीर में आयरन के अवशोषण में सहायक होता है। आम का जूस पीने से शरीर में खून की कमी दूर होती है। यह एनीमिया रोग में लाभदायक है। आम के सेवन से खून बढ़ता है।
आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

बालों के लिए

आम के गुठली की गिरी को आंवला चूर्ण मिलाकर बालों में लगाने से बालों की सेहत अच्छी होती है। बालों झड़ना बंद होता है। इसको लगाने से बाल लंबे समय तक काले और घने रहते हैं और उनमें रूसी की समस्या नहीं होती। 

आम के नुकसान ( Side Effects of Mango)

आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण
* आम में प्राकृतिक शर्करा की भरपूर मात्रा होती है इसके अधिक सेवन से रक्त शर्करा स्तर में बढ़ोतरी हो सकती है इसलिए मधुमेह के रोगियों को आम खाने की सलाह नहीं दी जाती है।
* आम में फाइबर की भी अच्छी मात्रा निहित है जिसके अत्यधिक सेवन से दस्त की शिकायत हो सकती है।
* आम में कैलोरीज की अधिक मात्रा होती है जो कि हानिकारक तो बिल्कुल भी नहीं है परंतु जो लोग वजन कम करना चाहते हैं उनको कम मात्रा में उपयोग करना चाहिए इसके सेवन से वजन में बढ़ोतरी हो सकती है।
* आम का अधिक सेवन शरीर में गर्मी को बढ़ा सकता है इसलिए इसकी संतुलित मात्रा का सेवन करें।

आम के पोषक तत्व (Nutritional Value of Mango)

आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

English Translate

Mango

Today we will discuss about Mango, which everyone likes from a young child to an elderly person. It is said that sweet words and sweet treats win over everyone's heart. In the same way, the sweet aroma and sweetness of mango gives it the title of king of fruits. Mango is also king by virtue. Indian mango (Mango) is famous all over the world for its taste. Mango is called the national fruit of India. It is a universal fruit. There are over 400 varieties of mangoes worldwide. When mangoes are raw, then there is a high amount of vitamin C in it. When it is cooked, the amount of vitamin A is high in it.
आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

Know about the benefits and medicinal properties of the benefits of Mango .

Ripe mango is very nutritious. It contains sufficient amount of protein, vitamins and minerals, carbohydrates and sugars. Mango also contains fiber, vitamin A, vitamin C, vitamin E, copper, folate (vitamin b9) and potassium. This fruit is a great source of dietary antioxidants such as ascorbic acid, carotinide and phenolic compounds.

#  In keeping cholesterol regular

Mango is rich in fiber and vitamin C. Cholesterol levels are controlled by regular intake of mangoes. Vitamin C, pectin and fiber present in mangoes (LDL) are helpful in lowering cholesterol and also helps in increasing good (HDL) cholesterol.

#  Treating digestion

 High fiber content is very helpful in keeping the digestive system regular. It is also able to relieve constipation and stomach ulcers. The enzymes present in it increase digestion of carbohydrates and proteins, which helps in converting food into energy. Both mangoes (raw and cooked) are helpful in improving digestion power.

# To sharpen Memory

The glutamine acid present in mango enhances memory. Mango is rich in vitamin B6, which increases brain function and is an important element for improvement.

# Increasing Immunity

High and good amounts of vitamin C and A present in mangoes play an important role in keeping the immune system healthy and strong. The vitamin A present in it helps in the smooth functioning of the immune system.

# For Eye Health

Mango is rich in Vitamin A, which is a boon for the eyes. This keeps the eyesight on.

# Cancer Prevention

The anticancer property present in mango is named mangiferin, a compound found in fruits. Mangiferin inhibits the growth of cancer cells and other tumor cells in the stomach and liver. Mango fruit pulp contains carotenoids, ascorbic acid and polyphenols, which help reduce the risk of cancer.

# For the Heart

Consumption of mango reduces the risk of heart disease, the nutrients in it are helpful in keeping the heart healthy.

# Reduce Anemia

Due to lack of proper nutrition and lack of essential nutrients in the body, there is a problem of anemia. Vitamin C present in mango helps in the absorption of iron in the body. Drinking mango juice ends blood loss in the body. It is beneficial in anemia disease. Blood increases with the consumption of mangoes.

# For Hair

Mixing the kernel of mango kernel with Indian gooseberry powder and applying it to the hair improves the health of the hair. Hair loss stops. By applying this, the hair remains black and thick for a long time and there is no problem of dandruff in them.
आम के फायदे नुकसान उपयोग और औषधीय गुण

Side Effects of Mango

* Mango contains plenty of natural sugars, excess intake of it can lead to increase in blood sugar level, so diabetic patients are not advised to eat mangoes.
* Mango also contains good amount of fiber, due to which excessive intake can cause diarrhea.
* Mango contains high amount of calories, which is not harmful at all, but people who want to lose weight should use it in small amounts, due to which intake can lead to weight gain.
Excess intake of mango can increase the heat in the body, so consume its balanced amount.


जेठ की तपती दोपहर में

जेठ की तपती दोपहर में

Rupa Oos ki ek Boond
हर रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं ,
ऐ जिंदगी देख मेरे हौसले तुझ से भी बड़े है....❣️❣️

जेठ की तपती दोपहर में

बादलों का आना ही

राहत और सुकून देता है

और उनका बरस जाना 

ज्यों तन-मन को भिगोता देता है

तुम आना तो वैसे ही आना

रूह में बस जाने को आना

इम्तिहान लेने को ही सही

तुम आना, न जाने को आना

मेरी जिंदगी के साजों को

अपने मीठे संगीत से सजाना

तुम आना, चांद की तरह आना

भले रहो दूर मुझसे

अपनी चांदनी में समेट लेना

मैं सब्र करूँगी चांदनी संग जी लूंगी..

मगर तुम आना ..

Rupa Oos ki ek Boond

आती नहीं हैं आहटें अब उस पार से

 फिर भी हम हैं कि सरगोशियां करते जाते हैं..❣️

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

मन के जीते जीत

एक देश की सेना का सेनापति युद्ध में शत्रु से हार कर घर आ गया। वह बहुत उदास था, उसकी पत्नी ने उसकी उदासी का कारण पूछा, तब उसने युद्ध हारने की बात बतायी। यह सुनकर उसकी पत्नी क्रोधित होकर बोली - "'मैंने तो एक शूरवीर सेनापति से विवाह किया था, तुम तो भीरु निकले। तुम जीते जी मर गए। तुम मन का युद्ध हार गये।" 

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

यह सुनकर सेनापति को बड़ी चोट पहुंची। उसके आत्मसम्मान को आघात लगा। वह स्वयं को जैसे धिक्कारने लगा और उठकर वापस चला गया। सेना को एकत्रित करके शत्रु से युद्ध किया और जीत गया। यह सारी विजय उसके मन की विजय थी। मनुष्य के शरीर में लगभग सभी अंग स्थल भौतिक रूप में दिखायी देते हैं - जैसे- आंख, नाक, कान, हृदय आदि दृष्टिगत हैं, किंतु मन जो सभी को चलाता है, रोकता है, भटकाता है, पराजय-विजय दिलाता है, प्रेम-घृणा आदि अनेक मनोभावों व कार्यों का कारण बनता है। उसका अपना कोई दृश्य स्थूल अस्तित्व नहीं है। 

वैसे वेदों में अंतः करण को समझना जरूरी है। अंतः का अर्थ है शरीर के अंदर रहनेवाली इंद्रियां, इससे बाहरी वस्तुओं का सीधे ज्ञान नहीं होता, जबकि बाह्य ज्ञानेंद्रियों जैसे आंख, नाक, कान आदि से बाहरी वस्तुओं का ज्ञान होता है. अंतःकरण शरीर के अंदर की इंद्रियों को ग्रहण या अनुभव करता है, जैसे ज्ञान-अज्ञान, इच्छा, सुख-दुख, आशा-निराशा, पर्यटन आदि वृत्तियां। 

अंतःकरण चार हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। यह चारों वृत्तियां हैं। मन संकल्प-विकल्प करता है, बुद्धि निश्चय, सत्य-असत्य, ठीक- गलत बताती है, चिंतनरूपी वृत्ति का नाम चित्त है, जो विचारों, घटनाओं आदि को संभाल कर भी रखता है और स्फुरण या गर्वरूप वृत्ति का नाम है अहंकार। 

मन एक विचारों का, संकल्पों-विकल्पों का प्रवाह है। मन बड़ा चंचल है, बंदर की तरह नाचता रहता है। इसकी गति नकारात्मकता की ओर अधिक होती है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने मन को ईश्वर के चरणों से आबद्ध कर अपना उद्धार स्वयं ही करने की प्रेरणा दी है। 

मन के हारे हार है मन के जीते जीत
छोटे मन से कोई 
बड़ा नहीं होता.. 
टूटे मन से कोई 
खड़ा नहीं होता..

पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"

पश्चिम बंगाल का राज्य पशु

"फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" 

स्थानीय नाम: फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली
वैज्ञानिक नाम: प्राइनायलुरस विवरिनस

पश्चिम बंगाल के राज्य पशु का नाम फिशिंग कैट है। फिशिंग कैट को दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में मध्यम आकार की जंगली बिल्ली के रूप में जाना जाता है। वे घने वन क्षेत्रों और आर्द्रभूमि क्षेत्रों को पसंद करते हैं। वे झाड़ीदार क्षेत्रों, ईख की क्यारियों, ज्वारीय खाड़ी क्षेत्रों, पानी के पास वनस्पति क्षेत्रों, दलदल, मैंग्रोव, नदियों और झरनों में भी पाए जाते हैं। वे अपना अधिकांश जीवन जल निकायों के पास घने वनस्पतियों के क्षेत्रों में बिताती हैं और उत्कृष्ट तैराक होती हैं। फिशिंग कैट को हिमालय के जंगलों में 1500 मीटर की ऊँचाई पर देखा गया है। 
पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"
फिशिंग कैट लंबे, गठीले होते हैं और इनके शरीर का रंग जैतूनी भूरा होता है, जिस पर शरीर की लंबाई के साथ क्षैतिज धारियों में काले या भूरे रंग के धब्बे होते हैं। चेहरा धब्बेदार होता है, छोटे बाल होते हैं तथा नाक और कान स्पष्ट रूप से चपटे होते हैं। आँखों का रंग पीला-भूरा होता है, जिसमें हरे रंग की पुतली होती है। मछली पकड़ने वाली बिल्ली के दांत छोटे और कम विकसित होते हैं। कान छोटे और गोल होते हैं, जो पीछे की तरफ काली होती है और बीच में प्रमुख सफेद धब्बे होते हैं। कान के नीचे के सफेद या हल्के भूरे रंग के हिस्से में कुछ सफेद या गंदे सफेद बाल होते हैं। नीचे का फर लंबा होता है और अक्सर धब्बों से ढका होता है। गले के चारों ओर गहरे रंग की धारियाँ होती हैं। उनकी पूंछ छोटी होती है (उनके शरीर की लंबाई का लगभग एक तिहाई)। पूंछ पर काले अधूरे छल्ले मौजूद होते हैं। 
पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"
फिशिंग कैट्स रात्रिचर (रात में सक्रिय) होती है और मछली के अलावा मेंढक, क्रस्टेशियंस, साँप, पक्षी तथा बड़े जानवरों के शवों पर उपस्थित अपमार्जकों का भी शिकार करती है। 

यह घरेलू बिल्ली के आकार से दोगुनी है। प्रजनन काल जनवरी से अप्रैल के बीच होता है। यौन परिपक्वता की आयु 9 से 18 महीने के बीच होती है। प्रजनन काल जनवरी से अप्रैल के बीच होता है। वे "चकली" जैसी आवाज़ निकालते हैं। गर्भधारण अवधि 63 से 70 दिनों के बीच होती है। मादा 2 या 3 बिल्ली के बच्चे को जन्म देती है। उनकी आँखें 16 दिनों तक खुल जाती हैं। वे एक महीने की उम्र तक सक्रिय रूप से घूमने-फिरने में सक्षम हो जाते हैं।
पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"
फिशिंग कैट के लिये एक बड़ा खतरा आर्द्रभूमि का विनाश है, जो उनका पसंदीदा आवास है। वेटलैंड विनाश से फिशिंग कैट की आबादी खतरे में है और पिछले एक दशक में इसमें भारी गिरावट आई है। 2016 से, इसे IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इस अनोखी बिल्ली को माँस और त्वचा के लिये शिकार से संबंधित खतरों का भी सामना करना पड़ता है। जनजातीय शिकारी वर्ष भर आनुष्ठानिक शिकार प्रथाओं में लिप्त रहते हैं। इसकी त्वचा के लिये कभी-कभी इसका अवैध शिकार भी किया जाता है। इन्हीं सब कारणों से फिशिंग कैट की संख्या में गिरावट आई है। 

समय समय पर फिशिंग कैट के संरक्षण के प्रयास होते रहे हैं। वर्ष 2021 में फिशिंग कैट संरक्षण अलायंस ने आंध्र प्रदेश के पूर्वोत्तर घाटों के असुरक्षित और मानव-प्रधान परिदृश्य में फिशिंग कैट के जैव-भौगोलिक वितरण का एक अध्ययन की शुूरुआत की है। 
वर्ष 2010 में शुरू की गई फिशिंग कैट परियोजना ने पश्चिम बंगाल में फिशिंग कैट के बारे में जागरूकता बढ़ाने का कार्य शुरू किया। 
वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार ने आधिकारिक तौर पर फिशिंग कैट को राज्य पशु घोषित किया और कलकत्ता चिड़ियाघर में दो बड़े बाड़ों का निर्माण किया गया है। 
ओडिशा में कई गैर-सरकारी संगठन और वन्यजीव संरक्षण समितियाँ  फिशिंग कैट  अनुसंधान एवं संरक्षण कार्य में शामिल हैं।  

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State animal of West Bengal "Fishing Cat"

Local name: Fishing Cat
Scientific name: Prinailurus viverrinus

The state animal of West Bengal is fishing cat. Fishing cats are known as medium-sized wild cats in South and South-East Asia. They prefer dense forest areas and wetland areas. They are also found in scrubby areas, reed beds, tidal creek areas, vegetated areas near water, swamps, mangroves, rivers and streams. They spend most of their life in dense vegetation areas near water bodies and are excellent swimmers. Fishing cats have been seen in Himalayan forests at an altitude of 1500 m.
पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"
Fishing cats are tall, well-built and have an olive brown body colour with black or brown spots in horizontal stripes along the length of the body. The face is spotted, short-haired and the nose and ears are distinctly flattened. The eyes are yellowish-brown in colour with a green pupil. The teeth of the fishing cat are small and poorly developed. The ears are small and round, black at the back with a prominent white spot in the centre. The white or light brown portion below the ear has a few white or dirty white hairs. The fur underneath is long and often covered with spots. There are dark stripes around the throat. Their tail is short (about one-third of their body length). Black incomplete rings are present on the tail.

Fishing cats are nocturnal (active at night) and hunt fish as well as frogs, crustaceans, snakes, birds and scavengers present on the carcasses of large animals.

It is twice the size of a domestic cat. The breeding season is between January and April. The age of sexual maturity is between 9 and 18 months. The breeding season is between January and April. They make a sound like "chuckling". The gestation period ranges between 63 and 70 days. The female gives birth to 2 or 3 kittens. Their eyes open by 16 days. They are able to move around actively by one month of age.

A major threat to the fishing cat is the destruction of wetlands, which are their preferred habitat. Wetland destruction threatens the fishing cat population and has declined drastically over the past decade. Since 2016, it has been listed as endangered on the IUCN Red List. This unique cat also faces threats related to hunting for meat and skin. Tribal hunters engage in ritual hunting practices throughout the year. It is also sometimes poached for its skin. Due to all these reasons, the number of fishing cats has declined.
पश्चिम बंगाल का राज्य पशु "फिशिंग कैट/मत्सय बिल्ली" || State Animal of State animal of West Bengal "Fishing Cat"
Efforts have been made from time to time to conserve the fishing cat. In 2021, the Fishing Cat Conservation Alliance initiated a study of the biogeographical distribution of the fishing cat in the vulnerable and human-dominated landscape of the Northeast Ghats of Andhra Pradesh.
The Fishing Cat Project, launched in 2010, began to raise awareness about the fishing cat in West Bengal.
In 2012, the West Bengal government officially declared the fishing cat as the state animal and two large enclosures have been constructed in the Calcutta Zoo.
In Odisha, several NGOs and wildlife conservation societies are involved in fishing cat research and conservation work.                                                                                                                                                                              

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..पूस की रात

 मानसरोवर-1 ..पूस की रात

पूस की रात - मुंशी प्रेमचंद | Poos Ki Raat by Munshi Premchand

1

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे ।

मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं ।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..पूस की रात

हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा।

मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये न दूँगी, न दूँगी ।

हल्कू उदास होकर बोला- तो क्या गाली खाऊँ ?

मुन्नी ने तड़पकर कहा- गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है ?

मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गयीं । हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था ।

उसने जाकर आले पर से रुपये निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिये। फिर बोली- तुम छोड़ दो अबकी से खेती । मजूरी में सुख से एक रोटी तो खाने को मिलेगी । किसी की धौंस तो न रहेगी । अच्छी खेती है ! मजूरी करके लाओ, वह भी उसी में झोंक दो, उस पर धौंस ।

हल्कू ने रुपये लिये और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो । उसने मजूरी से एक-एक पैसा काट-कपटकर तीन रुपये कम्मल के लिए जमा किये थे । वह आज निकले जा रहे थे । एक-एक पग के साथ उसका मस्तक अपनी दीनता के भार से दबा जा रहा था ।

2

पूस की अंधेरी रात ! आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पतों की एक छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा काँप रहा था । खाट के नीचे उसका संगी कुत्ता जबरा पेट मे मुँह डाले सर्दी से कूँ-कूँ कर रहा था । दो में से एक को भी नींद न आती थी ।

हल्कू ने घुटनियों कों गरदन में चिपकाते हुए कहा- क्यों जबरा, जाड़ा लगता है? कहता तो था, घर में पुआल पर लेट रह, तो यहाँ क्या लेने आये थे ? अब खाओ ठंड, मैं क्या करूँ ? जानते थे, मै यहाँ हलुवा-पूरी खाने आ रहा हूँ, दौड़े-दौड़े आगे-आगे चले आये । अब रोओ नानी के नाम को ।

जबरा ने पड़े-पड़े दुम हिलायी और अपनी कूँ-कूँ को दीर्घ बनाता हुआ एक बार जम्हाई लेकर चुप हो गया। उसकी श्वान-बुध्दि ने शायद ताड़ लिया, स्वामी को मेरी कूँ-कूँ से नींद नहीं आ रही है।

हल्कू ने हाथ निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा- कल से मत आना मेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे । यह राँड पछुआ न जाने कहाँ से बरफ लिए आ रही है । उठूँ, फिर एक चिलम भरूँ । किसी तरह रात तो कटे ! आठ चिलम तो पी चुका । यह खेती का मजा है ! और एक-एक भगवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गरमी से घबड़ाकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ- कम्मल । मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय । तकदीर की खूबी ! मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें !

हल्कू उठा, गड्ढ़े में से जरा-सी आग निकालकर चिलम भरी । जबरा भी उठ बैठा ।

हल्कू ने चिलम पीते हुए कहा- पियेगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, जरा मन बदल जाता है।

जबरा ने उसके मुँह की ओर प्रेम से छलकती हुई आँखों से देखा ।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

हल्कू- आज और जाड़ा खा ले । कल से मैं यहाँ पुआल बिछा दूँगा । उसी में घुसकर बैठना, तब जाड़ा न लगेगा ।

जबरा ने अपने पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिये और उसके मुँह के पास अपना मुँह ले गया । हल्कू को उसकी गर्म साँस लगी ।

चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊँगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कम्पन होने लगा । कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट, पर जाड़ा किसी पिशाच की भाँति उसकी छाती को दबाये हुए था ।

जब किसी तरह न रहा गया तो उसने जबरा को धीरे से उठाया और उसक सिर को थपथपाकर उसे अपनी गोद में सुला लिया । कुत्ते की देह से जाने कैसी दुर्गंध आ रही थी, पर वह उसे अपनी गोद मे चिपटाये हुए ऐसे सुख का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था । जबरा शायद यह समझ रहा था कि स्वर्ग यहीं है, और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी । अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता । वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा को पहुँचा दिया । नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वा र खोल दिये थे और उनका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था ।

सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पायी । इस विशेष आत्मीयता ने उसमे एक नयी स्फूर्ति पैदा कर दी थी, जो हवा के ठंडें झोकों को तुच्छ समझती थी । वह झपटकर उठा और छपरी से बाहर आकर भूँकने लगा । हल्कू ने उसे कई बार चुमकारकर बुलाया, पर वह उसके पास न आया । हार में चारों तरफ दौड़-दौड़कर भूँकता रहा। एक क्षण के लिए आ भी जाता, तो तुरंत ही फिर दौड़ता । कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति ही उछल रहा था ।

3

एक घंटा और गुजर गया। रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरु किया। हल्कू उठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया, फिर भी ठंड कम न हुई | ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है, धमनियों मे रक्त की जगह हिम बह रहा है। उसने झुककर आकाश की ओर देखा, अभी कितनी रात बाकी है ! सप्तर्षि अभी आकाश में आधे भी नहीं चढ़े । ऊपर आ जायँगे तब कहीं सबेरा होगा । अभी पहर से ऊपर रात है ।

हल्कू के खेत से कोई एक गोली के टप्पे पर आमों का एक बाग था । पतझड़ शुरु हो गयी थी । बाग में पत्तियों को ढेर लगा हुआ था । हल्कू ने सोचा, चलकर पत्तियाँ बटोरूँ और उन्हें जलाकर खूब तापूँ । रात को कोई मुझे पत्तियाँ बटोरते देख तो समझे कोई भूत है । कौन जाने, कोई जानवर ही छिपा बैठा हो, मगर अब तो बैठे नहीं रहा जाता ।

उसने पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ लिए और उनका एक झाड़ू बनाकर हाथ में सुलगता हुआ उपला लिये बगीचे की तरफ चला । जबरा ने उसे आते देखा तो पास आया और दुम हिलाने लगा ।

हल्कू ने कहा- अब तो नहीं रहा जाता जबरू । चलो बगीचे में पत्तियाँ बटोरकर तापें । टाँठे हो जायेंगे, तो फिर आकर सोयेंगें । अभी तो बहुत रात है।

जबरा ने कूँ-कूँ करके सहमति प्रकट की और आगे-आगे बगीचे की ओर चला।

बगीचे में खूब अँधेरा छाया हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था । वृक्षों से ओस की बूँदे टप-टप नीचे टपक रही थीं ।

एकाएक एक झोंका मेहँदी के फूलों की खूशबू लिए हुए आया ।

हल्कू ने कहा- कैसी अच्छी महक आई जबरू ! तुम्हारी नाक में भी तो सुगंध आ रही है ?

जबरा को कहीं जमीन पर एक हडडी पड़ी मिल गयी थी । उसे चिंचोड़ रहा था ।

हल्कू ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियाँ बटोरने लगा । जरा देर में पत्तियों का ढेर लग गया। हाथ ठिठुरे जाते थे । नंगे पाँव गले जाते थे । और वह पत्तियों का पहाड़ खड़ा कर रहा था । इसी अलाव में वह ठंड को जलाकर भस्म कर देगा ।

थोड़ी देर में अलाव जल उठा । उसकी लौ ऊपर वाले वृक्ष की पत्तियों को छू-छूकर भागने लगी । उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर सँभाले हुए हों अंधकार के उस अनंत सागर मे यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था ।

हल्कू अलाव के सामने बैठा आग ताप रहा था । एक क्षण में उसने दोहर उताकर बगल में दबा ली, दोनों पाँव फैला दिए, मानों ठंड को ललकार रहा हो, तेरे जी में जो आये सो कर । ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय-गर्व को हृदय में छिपा न सकता था ।

उसने जबरा से कहा- क्यों जब्बर, अब ठंड नहीं लग रही है ?

जब्बर ने कूँ-कूँ करके मानो कहा- अब क्या ठंड लगती ही रहेगी ?

'पहले से यह उपाय न सूझा, नहीं इतनी ठंड क्यों खाते ।'

जब्बर ने पूँछ हिलायी ।

'अच्छा आओ, इस अलाव को कूदकर पार करें । देखें, कौन निकल जाता है। अगर जल गए बच्चा,

तो मैं दवा न करूँगा ।'

जब्बर ने उस अग्निराशि की ओर कातर नेत्रों से देखा !

मुन्नी से कल न कह देना, नहीं तो लड़ाई करेगी ।

यह कहता हुआ वह उछला और उस अलाव के ऊपर से साफ निकल गया । पैरों में जरा लपट लगी, पर वह कोई बात न थी । जबरा आग के गिर्द घूमकर उसके पास आ खड़ा हुआ ।

हल्कू ने कहा- चलो-चलो इसकी सही नहीं ! ऊपर से कूदकर आओ । वह फिर कूदा और अलाव के इस पार आ गया।

4

पत्तियाँ जल चुकी थीं । बगीचे में फिर अंधेरा छा गया था । राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी, पर एक क्षण में फिर आँखें बंद कर लेती थी !

हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा हुआ एक गीत गुनगुनाने लगा । उसके बदन में गर्मी आ गयी थी, पर ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाये लेता था।

जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा । हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुंड था । उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि खेत में चर रहीं हैं। उनके चबाने की आवाज चर-चर सुनाई देने लगी।

उसने दिल में कहा- नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। नोच ही डाले। मुझे भ्रम हो रहा है। कहाँ! अब तो कुछ नहीं सुनाई देता। मुझे भी कैसा धोखा हुआ।

उसने जोर से आवाज लगायी- जबरा, जबरा।

जबरा भूँकता रहा। उसके पास न आया।

फिर खेत के चरे जाने की आहट मिली। अब वह अपने को धोखा न दे सका। उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था। कैसा दंदाया हुआ था। इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना असह्य जान पड़ा। वह अपनी जगह से न हिला।

उसने जोर से आवाज लगायी- लिहो-लिहो !लिहो! !

जबरा फिर भूँक उठा। जानवर खेत चर रहे थे। फसल तैयार है। कैसी अच्छी खेती थी, पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किये डालते हैं।

हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन कदम चला, पर एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गर्माने लगा ।

जबरा अपना गला फाड़ डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था । अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाँति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था।

उसी राख के पास गर्म जमीन पर वह चादर ओढ़ कर सो गया।

सबेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ धूप फैल गयी थी और मुन्नी कह रही थी- क्या आज सोते ही रहोगे ? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया ।

हल्कू ने उठकर कहा- क्या तू खेत से होकर आ रही है?

मुन्नी बोली- हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया । भला, ऐसा भी कोई सोता है। तुम्हारे यहाँ मड़ैया डालने से क्या हुआ ?

हल्कू ने बहाना किया- मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। पेट में ऐसा दरद हुआ कि मै ही जानता हूँ !

दोनों फिर खेत के डाँड़ पर आये । देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है और जबरा मड़ैया के नीचे चित लेटा है, मानो प्राण ही न हों ।

दोनों खेत की दशा देख रहे थे । मुन्नी के मुख पर उदासी छायी थी, पर हल्कू प्रसन्न था।

मुन्नी ने चिंतित होकर कहा- अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी।

हल्कू ने प्रसन्न मुख से कहा- रात को ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा।