मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...बालक

मानसरोवर-2 ...बालक (Balak)

बालक - मुंशीप्रेमचंद | Balak - Munshi Premchand

गंगू को लोग ब्राह्मण कहते हैं औऱ वह अपने को ब्राह्मण समझता भी हैं। मेरे सईस और खिदमतगार मुझे दूर से सलाम करते हैं। गंगू मुझे कभी सलाम नहीं करता। वह शायद मुझसे पागलपन की आशा करता है। मेरा जूठा गिलास कभी हाथ से नहीं छूता और न मेरी हिम्मत हुई कि उससे पंखा झलने को कहूँ । जब पसीने से तर होता हूँ और वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं होता, तो गंगू आप-ही-आप पंखा उठा लेता है; लेकिन उसकी मुद्रा से यह भाव स्पष्ट प्रकट होता हैं कि मुझ पर कोई एहसान कर रहा है और मैं भी न-जाने क्यों फौरन ही उसके हाथ से पंखा छीन लेता हूँ। उग्र स्वभाव का मनुष्य है। किसी की बात नहीं सह सकता। ऐसे बहुत कम आदमी होंगे, जिनसे उसकी मित्रता हो; पर सईस और खिदमतगार के साथ बैठना शायद वह अपमानजनक समझता है। मैने उसे किसी से मिलते- जुलते नहीं देखा। आश्चर्य है कि उसे भंग-बूटी से प्रेम नहीं, जो इस श्रेणी के मनुष्यों में एक असाधारण गुण है। मैने उसे कभी पूजा-पाठ करते या नदी में स्नान करते नहीं देखा। बिल्कुल निरक्षर है; लेकिन ब्राह्मण है और चाहता है कि दुनिया उसकी प्रतिष्ठा और सेवा करे और क्यों न चाहे? जब पुरुखों की पैदा की हुई सम्पत्ति पर आज भी लोभ जमाये हुए है औऱ उसी शान से, मानो खुद पैदा किये हो, तो वह क्यों उस प्रतिष्ठा औऱ सम्मान को त्याग दे, जो उसके पुरुखाओं ने संचय किया था? यह उसकी बपौती है।

बालक - मुंशीप्रेमचंद | Balak - Munshi Premchand

मेरा स्वभाव कुछ इस तरह का है कि अपने नौकरों से बहुत कम बोलता हूँ । मैं चाहता हूँ, जब तक न बुलाऊँ, कोई मेरे पास न आये। मुझे यह अच्छा नहीं लगता कि जरा-सी बातों के लिए नौकरों को आबाज देता फिरूँ। मुझे अपने हाथ से सुराही से पानी उँडेल लेना, अपना लैम्प जला लेना, अपने जूते पहन लेगा या आलमारी से कोई किताब निकाल लेना, इससे कहीं ज्यादा सरल मालूम होता हैं कि हींगन औऱ मैकू को पुकारूँ। इससे मुझे अपनी स्वेच्छा और आत्म विश्वास का बोध होता हैं। नौकर मेरे स्वभाव से परिचित हो गये और बिना जरूरत के मेरे पास बहुत कम आते थे। इसलिए एक दिन जब प्रातःकाल गंगू मेरे सामने आकर खड़ा हो गया तो मुझे बहुत बुरा लगा। ये लोग जब आते हैं, तो पेशगी हिसाब में कुछ माँगने के लिए या किसी दूसरे नौकर की शिकायत करने के लिए। मुझे ये दोनों ही बाते अत्यंत अप्रिय हैं। मैं पहली तारीख को हर एक का वेतन चुका देता हूँ और बीच में जब कोई कोई माँगता हैं, तो क्रोध आ जाता हैं; कौन दो-दो, चार-चार रुपये का हिसाब रखता फिरे। फिर जब किसी को महीने-भर की पूरी मजूरी मिल गयी, तो उसे क्या हक हैं कि उसे पन्द्रह दिन में खर्च कर दे और ऋण या पेशगी की शरण ले, और शिकायतों से तो मुझे घृणा हैं। मैं शिकायतों को दुर्बलता का प्रमाण समझता हूँ, या ठुकरसुहाती की क्षुद्र चेष्ठा।


मैंने माथा सिकोड़ कर कहा- क्या बात हैं, मैंने तो तुम्हें बुलाया नहीं?

गंगू के तीखे अभिमानी मुख पर आज कुछ ऐसी नम्रता, कुछ ऐसी याचना, कुछ ऐसा संकोच था कि मैं चकित हो गया। ऐसा जान पड़ा, वह कुछ जवाब देना चाहता हैं; मगर शब्द नहीं मिल रहे हैं।

मैंने जरा नम्र होकर कहा- आखिर क्या बात हैं, कहते क्यों नहीं? तुम जानते हो, मेरे टहलने का समय हैं। मुझे देर हो रही हैं।

गंगू ने निराशा भरे स्वर में कहा- तो आप हवा खाने जायँ, मैं फिर आ जाऊँगा ।

यह अवस्था और भी चिन्ताजनक थी। इस जल्दी में तो वह एक क्षण में अपना वृत्तान्त कह सुनायेगा। वह जानता हैं कि मुझे ज्यादा अवकाश नहीं हैं। दूसरे अवसर पर तो दुष्ट घंटों रोयेगा। मेरे कुछ लिखने-पढ़ने को तो वह शायद कुछ काम समझता हो; लेकिन विचार को, जो मेरे लिए सबसे कठिन साधना हैं, वह मेरे विश्राम का समय समझता है। वह उसी वक्त आकर मेरे सिर पर सवार हो जायगा।

मैंने निर्दयता से उत्तर दिया- क्या कुछ पेशगी माँगने आये हो? मैं पेशगी नहीं देता।

‘जी नहीं सरकार, मैंने तो कभी पेशगी नहीं माँगा।‘

‘तो किसी की शिकायत करना चाहते हो? मुझे शिकायतों से घृणा हैं?‘

‘जी नहीं सरकार, मैंने तो कभी किसी की शिकायत नहीं की?‘

गंगू ने अपना दिल मजबूत किया। उनकी आकृति से स्पष्ट झलक रहा था, मानो वह कोई छलाँग मारने के लिए अपनी सारी शक्तियों को एकत्र कर रहा था और लड़खड़ाती हुई आवाज में बोला- मुझे आप छुट्टी दे दें। मैं आपकी नौकरी अब न कर सकूँगा ।

यह इस तरह का पहला प्रस्ताव था, जो मेरे कानों में पड़ा। मेरे आत्माभिमान को चोट लगी। मैं जब अपने को मनुष्यता का पुतला समझता हूँ, अपने नौकरों को कभी कटु -वचन नहीं कहता, अपने स्वामित्व को यथासाध्य म्यान में रखने की चेष्ठा करता हूँ, तब मैं इस प्रस्ताव पर क्यों न विस्मित हो जाता! कठोर स्वर में बोला- क्यों, क्या शिकायत हैं?

आपने तो हुजूर, जैसा अच्छा स्वभाव पाया है, वैसा क्या कोई पायेगा; लेकिन बात ऐसी आ पड़ी हैं कि अब मैं आपके यहाँ नहीं रह सकता। ऐसा ने हो कि पीछे से कोई बात हो जाय, तो आपकी बदनामी हो। मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से आपकी आबरू में बट्टा लगे।

मेरे दिल में उलझन पैदा हुई। जिज्ञासा की अग्नि प्रचंड हो गयी। आत्म-समर्पण के भाव से बरामदे में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठकर बोला- तुम तो पहेलियाँ बुझवा रहे हो। साफ-साफ क्यों नही कहते, क्या मामला हैं।

गंगू ने बड़ी नम्रता से कहा- बात यह है कि वह स्त्री, जो अभी विधवा आश्रम से निकाल दी गयी हैं, वह गोमती देवी…

वह चुप हो गया। मैंने अधीर होकर कहा- हाँ, निकाल दी गयी हैं, तो फिर? तुम्हारी नौकरी से उससे क्या सम्बन्ध?

गंगू ने जैसे अपने सिर का भारी बोझ जमीन पर पटक दिया-

‘मैं उससे विवाह करना चाहता हूँ बाबूजी !‘

मैं विस्मय से उसका मुँह ताकने लगा। यह पुराने विचारों का पोंगा ब्राह्मण जिसे नयी सभ्यता की हवा तक न लगी, उस कुलटा से विवाह करने जा रहा हैं, जिसे कोई भला आदमी अपने घर में कदम भी न रखने देगा। गोमती ने इस मुहल्ले के शान्त वातावरण में थोड़ी-सी हलचल पैदा कर दी। कई साल पहले वह विधवाश्रम में आयी थी। तीन बार आश्रम के कर्मचारियों ने उसका विवाह कर दिया, पर हर बार वह महीने-पन्द्रह दिन के बाद भाग आयी थी। यहाँ तक कि आश्रम के मन्त्री ने अब की बार उसे आश्रम से निकाल दिया था। तब से वह इसी मुहल्ले में एक कोठरी लेकर रहती थी और सारे मुहल्ले के शोहदो के लिए मनोरंजन का केन्द्र बनी हुई थी।

मुझे गंगू की सरलता पर क्रोध भी आया और दया भी। इस गधे को सारी दुनिया में कोई स्त्री ही न मिलती थी, जो इससे ब्याह करने जा रहा हैं। जब वह तीन बार पतियों के पास से भाग आयी, तो इसके पास कितने दिन रहेगी? कोई गाँठ का पूरा आदमी होता, तो एक बात भी थी। शायद साल-छः महीने टिक जाती। यह तो निपट आँख का अन्धा हैं। एक सप्ताह भी तो निबाह न होगा।

मैंने चेतावनी के भाव से पूछा- तुम्हें इस स्त्री की जीवन-कथा मालूम हैं?

गंगू ने आँखो-देखी बात की तरह कहा- सब झूठ है सरकार, लोगों ने हकनाहक उसको बदनाम कर दिया हैं।

‘क्या कहते हो, वह तीन बार अपने पतियों के पास से नहीं भाग आयी?‘

‘उन लोगों ने उसे निकाल दिया, तो क्या करती?‘

‘कैसे बुद्धू आदमी हो! कोई इतनी दूर से आकर विवाह करके ले जाता हैं, हजारों रुपये खर्च करता हैं, इसलिए कि औरत को निकाल दें?‘

गंगू ने भावुकता से कहा- जहाँ प्रेम नहीं है हुजूर, वहाँ कोई स्त्री नहीं रह सकती। स्त्री केवल रोटी कपड़ा ही नहीं चाहती, कुछ प्रेम भी चाहती हैं। वे लोग समझते होंगे कि हमने एक विधवा से विवाह करके उसके ऊपर कोई बडा एहसान किया हैं। चाहते होंगे कि तन-मन से वह उसकी हो जाय, लेकिन दूसरे को अपना बनाने के लिए पहले आप उसका बन जाना पड़ता हैं हजूर। यह बात हैं। फिर उसे एक बीमारी भी हैं। उसे कोई भूत लगा हुआ हैं। यह कभी-कभी बक-झक करने लगती हैं और बेहोश हो जाती हैं।

‘और तुम ऐसी स्त्री से विवाह करोगे?‘ – मैने संदिग्ध भाव से सिर हिलाकर कहा- समझ लो, जीवन कड़वा हो जायगा।

गंगू ने शहीदों के -से आवेश से कहा- मैं तो समझता हूँ, मेरी जिन्दगी बन जायगी बाबूजी, आगे भगवान की मर्जी।

मैने जोर देकर पूछा- तो तुमने तय कर लिया हैं?

‘हाँ, हजूर‘

‘तो मैं तुम्हारा इस्तीफा मंजूर करता हूँ।‘

मैं निरर्थक रूढ़ियों औऱ व्यर्थ के बन्धनों का दास नही हूँ ; लेकिन जो आदमी एख दुष्टा से विवाह करे, उसे अपने यहाँ रखना वास्तव में जटिल समस्या थी। आये- दिन टंट-बखड़े होगे, नयी-नयी उलझनें पैदा होगी, कभी पुलिस दौड़ लेकर आयेगी, कभी मुकदमें खड़े होगे। सम्भव हैं, चोरी की वारदातें भी हों। इस दलदल से दूर रहना ही अच्छा। गंगू क्षूधा-पीड़ित प्राणी की भाँति रोटी का टुकड़ा देखकर उसकी ओर लपक रहा हैं। रोटी जूठी हैं, सूखी हैं, खाने योग्य नहीं हैं, इसकी उसे परवाह नहीं; उसको विचार-बुद्धि से काम लेना कठिन था। मैने उसे पृथक कर देने ही में अपनी कुशल समझी।

पाँच महीने गुजर गये। गंगू ने गोमती से विवाह कर लिया था और उसी मुहल्ले में एक खपरैल का मकान लेकर रहता था। वह अब चाट का खोंचा लगाकर गुजर-बसर करता था। मुझे जब कभी बाजार में मिल जाता, तो मैं उसका क्षेम- कुशल पूछता। मुझे उसके जीवन से विशेष अनुराग हो गया था। यह एक सामाजिक प्रश्न की परीक्षा थी- सामाजिक ही नहीं, मनोवैज्ञानिक भी। मैं देखना चाहता था, इसका परिणाम क्या होता हैं। मैं गंगू को सदैव प्रसन्न-मुख देखता। समृद्धि और निश्चिन्तता के मुख ख पर जो एक तेज और स्वभाव में जो एक आत्म-सम्मान पैदा हो जाता हैं, वह झे यहाँ प्रत्यक्ष दिखायी देता था। रुपये बीस आने की रोज बिक्री हो जाती थी। इसमें से लागत निकालकर आठ-दस आने बच जाते थे। यही उसकी जीविका थी; किन्तु इसमें किसी देवता का वरदान था; क्योंकि इस वर्ग के मनुष्यों में जो निर्लज्जता और विपन्नता पायी जाती हैं, इसका वहाँ चिह्न तक न था। उसके मुख पर आत्म-विश्वास और आनन्द की झलक थी, जो चित्त की शान्ति से ही आ सकती हैं।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

एक दिन मैंने सुना कि गोमती गंगू के घर से भाग गयी हैं! कह नहीं सकता क्यों! मुझे इस खबर से एक विचित्र आनन्द हुआ। मुझे गंगू के संतुष्ट और सुखी जीवन पर एक प्रकार की ईर्ष्या होती थी। मैं उसके विषय में किसी अनिष्ट की, किसी घातक अनर्थ की, किसी लज्जास्पद घटना की प्रतिक्षा करता था। इस खबर से इस ईर्ष्या को सान्त्वना मिली। आखिर वही बात हुई, जिसका मुझे विश्वास था। आखिर बचा को अपनी अदूरदर्शिता का दंड भोगना पड़ा। अब देखे, बचा कैसे मुँह दिखाते हैं। अब आँखें खुलेगी और मालूम होगा कि लोग, जो उन्हें इस विवाह से रोक रहे थे, उनके कैसे शुभ-चिन्तक थे। उस वक़्त तो ऐसा मालूम होता था, मानो आपको कोई दुर्लभ पदार्थ मिला जा रहा हो। मानो मुक्ति का द्वार खुल गया हैं। लोगों ने कितना कहा कि यह स्त्री विश्वास के योग्य नहीं है, कितनों को दगा गे चुकी हैं, तुम्हारे साथ भी दगा करेगी, लेकिन कानों पर जूँ तक न रेंगी। अब मिले, तो जरा उसके मिजाज पूछूँ । कहूँ – क्यों महाराज, देवीजी का यह वरदान पाकर प्रसन्न हुए या नहीं? तुम तो कहते थे, वह ऐसी हैं और वैसी हैं, लोग केवल दुर्भावना के कारण दोष आरोपित करते हैं। अब बतलाओ, किसकी भूल थी?

उसी दिन संयोगवश गंगू से बाजार में भेट हो गयी। घबराया हुआ था, बदहवास था, बिल्कुल खोया हुआ। मुझे देखते ही उसकी आँखों में आँसू भर आये, लज्जा से नहीं व्यथा से। मेरे पास आकर बोला- बाबूजी, गोमती ने मेरे साथ विश्वासघात किया। मैने कुटिल आनन्द से, लेकिन कृमित्र सहानुभूति दिखाकर कहा- तुमसे तो मैने पहले ही कहा था; लेकिन तुम माने ही नहीं, अब सब्र करो। इसके सिवा और क्या उपाय हैं। रूपये पैसे ले गयी या कुछ छोड़ गयी?

गंगू ने छाती पर हाथ रखा। ऐसा जान पड़ा, मानो मेरे इस प्रश्न ने उसके हृदय को विदीर्ण कर दिया।

‘अरे बाबूजी, ऐसा न कहिए, उसने धेले की भी चीज नहीं छूई । अपना जो कुछ था, वह भी छोड़ गयी। न-जाने मुझमें क्या बुराई देखी। मैं उसके योग्य न था और क्या कहूँ । वह पढ़ी-लिखी थी, मैं करिया अक्षर भैंस बराबर। मेरे साथ इतने दिन रही, यहीं बहुत हैं। कुछ दिन औऱ उसके साथ रह जाता, तो आदमी बन जाता। उसका आपसे कहाँ तक बखान करूँ हजूर। औरों के लिए चाहे जो कुछ रही हो, मेरे लिए तो किसी देवता का आशीर्वाद थी। न-जाने मुझेस क्या खता हो गयी। मगर कसम ले लीजिए, जो उसके मुख पर मैल तक आया हो। मेरी औकात ही क्या हैं बाबूजी ! दस-बराबर आने का मजूर हूँ ; पर इसी में उसके हाथो इतनी बरक्कत थी कि कभी कमी नहीं पड़ी।’

मुझे इन शब्दों से घोर निराशा हुई। मैने समझा था, वह उसकी वेवफाई की कथा कहेगा और मैं उसकी अन्ध-भक्ति पर कुछ सहानुभूति प्रकट करूँगा; मगर उस मूर्ख की आँखें अब तक नहीं खुली। अब भी उसी का मंत्र पढ़ रहा हैं। अवश्य ही इसका चित्त कुछ अव्यवस्थित हैं।

मैने कुटिल परिहास किया- तो तुम्हारे घर से कुछ नहीं ले गयी?

‘कुछ भी नहीं बाबूजी, धेले की भी चीज नहीं।’

‘और तुमसे प्रेम भी बहुत करती थी?’

‘अब आपसे क्या कहूँ बाबूजी, वह प्रेम तो मरते दम तक याद रहेगा।’

‘फिर भी तुम्हें छोड़कर चली गयी?’

‘यहीं तो आश्चर्य हैं बाबूजी !’

‘त्रिया-चरित का नाम कभी सुना हैं?’

‘अरे बाबूजी जी, ऐसा न कहिए। मेरी गर्दन पर कोई छुरी रख दे, तो भी मैं उसका यश ही गाऊँगा ।’

‘तो फिर ढूँढ निकालो!’

‘हाँ, मालिक। जब तक उसे ढूँढ न लाऊँगा, मुझे चैन न आयेगा। मुझे इतना मालूम हो जाय कि वह कहाँ हैं, फिर तो मैं उसे ले ही आऊँगा ; और बाबूजी, मेरा दिल कहता हैं कि वह आयेगी जरूर। देख लीजिएगा। वह मुझसे रूठकर नही गयी; लेकिन दिल नहीं मानता। जाता हूँ, महीने-दो-महीने जंगल, पहाड़ की धूल छानूँगा। जीता रहा तो फिर आपके दर्शन करूँगा।’

यह कह कह वह उन्माद की दशा में एक तरफ चल दिया।

इसके बाद मुझे एक जरूरत से नैनीताल जाना पड़ा। सैर करने के लिए नहीं।

एक महीने बाद लौटा, और अभी कपड़े भी न उतारने पाया था कि देखता हूँ, गंगू एक नवजात शिशु को गोद में लिये खड़ा हैं। शायद कृष्ण को पाकर नन्द भी इतने पुलकित न हुए होंगे। मालूम होता था, उसके रोम-रोम से आनन्द फूटा पड़ता हैं। चेहरे और आँखों से कृतज्ञता और श्रद्धा के राग से निकल रहे थे। कुछ वही भाव था, जो किसी क्षुधा-पीड़ित भिक्षुक के चेहरे पर भरपेट भोजन करने के बाद नजर आता हैं।

मैंने पूछा- कहो महाराज, गोमती देवी का कुछ पता लगा, तुम तो बाहर गये थे?

गंगू ने आपे में न समाते हुए जवाब दिया- हाँ बाबूजी, आपके आशीर्वाद से ढूँढ लाया। लखनऊ के जनाने अस्पताल में मिली। यहाँ एक सहेली से कह गयी थी अगर वह बहुत घबरायें तो बतला देना। मैं सुनते ही लखनऊ भागा औऱ उसे घसीट लाया। घाते में यह बच्चा भी मिल गया

उसने बच्चे को उठाकर मेरी तरफ बढ़ाया। मानो कोई खिलाड़ी तमगा पाकर दिखा रहा हो।

मैने उपहास के भाव से पूछा- अच्छा, यह लड़का भी मिल गया? शायद इसीलिए वह यहाँ से भागी थी। हैं तो तुम्हार ही लड़का?

‘मेरा काहे को हैं बाबूजी, आपका हैं, भगवान का हैं।’

‘तो लखनऊ में पैदा हुआ?’

‘हाँ बाबूजी जी, अभी तो क एक महीने का हैं।’

‘तुम्हारे ब्याह हुए कितने दिन हुए?’

‘यह सातवां महीना चल रहा हैं।’

‘तो शादी के छठे महीने पैदा हुआ?’

‘और क्या बाबूजी ।’

‘फिर भी तुम्हारा लड़का हैं?’

‘हाँ, जी।’

‘कैसी बे-सिर की बात कर रहे हो?’

मालूम नही, वह मेरा आशय समझ रहा था, या बन रहा था। उसी निष्कपट भाव से बोला- मरते-मरते बची, बाबूजी नया जनम हुआ। तीन दिन, तीन रात छटपटाती रही। कुछ न पूछिए।

मैने अब जरा व्यंग्य-भाव से कहा- लेकिन छः महीने में लड़का होते आज ही सुना।

यह चोट निशाने पर जा बैठी।

मुसकराकर बोला- अच्छा, वह बात! मुझे तो उसका ध्यान ही नही आया। इसी भय से तो गोमती भागी थी। मैने कहा- गोमती, अगर तुम्हारा मन मुझसे नहीं मिलता, तो तुम मुझे छोड़ दो। मैं अभी चला जाऊँगा और फिर कभी तुम्हारे पास न आऊँगा । तुमको जब कुछ काम पड़े तो मुझे लिखना, मैं भरसक तुम्हारी मदद करूँगा। मुझे तुमसे कोई मलाल नहीं हैं। मेरे आँखो में तुम अब भी उतनी ही भली हो। अब भी मैं तुम्हें उतना ही चाहता हूँ । नहीं, अब मैं तुम्हें और ज्यादा चाहता हूँ ; लेकिन अगर तुम्हारा मन मुझसे फिर नहीं गया हैं, तो मेरे साथ चलो। गंगू जीते-जी तुमसे बेवफाई नहीं करेगा। मैने तुमसे इसलिए विवाह नहीं किया कि तुम देवी हो; बल्कि इसलिए कि मैं तुम्हें चाहता था औऱ सोचता था कि तुम भी मुझे चाहती हो। यह बच्चा मेरा बच्चा हैं, मेरा अपना बच्चा हैं। मैने एक बोया हुआ खेत लिया, तो क्या फसल को इसलिए छोड़ दूँगा, कि उसे दूसरे ने बोया था?

यह कहकर उसने जोर से ठट्ठा मारा।

मैं कपड़े उतारना भूल गया। कह नहीं सकता, क्यों मेरी आँखें सजल हो गयीं। न- जाने कौन-सी शक्ति थी, जिसने मेरी मनोगत घृणा को दबाकर मेरे हाथों को बढ़ा दिया। मैंने उस निष्कलंक बालक को गोद में ले लिया और इतने प्यार से उसका चुम्बन लिया कि शायद अपने बच्चों का भी न लिया होगा।

गंगू बोला- बाबूजी, आप बड़े सज्जन हैं। मै गोमती से बार-बार आपका बखान किया करता हूँ। कहता हूँ, चल, एक बार उनके दर्शन कर आ; लेकिन मारे लाज के आती ही नही।

मैं और सज्जन! अपनी सज्जनता का पर्दा आज मेरी आँखों से हटा। मैने भक्ति में डूबे हुए स्वर में कहा- नहीं जी, मेरे-जैसे कलुषित मनुष्य के पास वह क्या आयेगी। चलो, मैं उनके दर्शन करने चलता हूँ । तुम मुझे सज्जन समझते हो? मैं ऊपर से सज्जन हूँ ; पर दिल का कमीना हूँ । असली सज्जनता तुममें है और यह बालक वह फूल हैं, जिससे तुम्हारी सज्जनता की महक निकल रही हैं।

मैं बच्चे को छाती से लगाये हुए गंगू के साथ चला।

कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird

कीवी पक्षी के बारे में रोचक तथ्य

वैज्ञानिक नाम:  एपटेरिक्स मैन्टेली
सामान्य नाम:  कीवी 

कीवी फल की नहीं बल्कि आज हम कीवी पक्षी के बारे में चर्चा करेंगे, जो न्यूजीलैंड का राष्ट्रीय पक्षी भी है। कीवी 25 से 50 साल तक जीवित रह सकता है। चूजे पूरी तरह से पंख वाले होते हैं। वे लगभग पाँच दिन की उम्र में भोजन करने के लिए घोंसले से बाहर निकलते हैं और उन्हें कभी भी उनके माता-पिता द्वारा भोजन नहीं दिया जाता है। युवा धीरे-धीरे बढ़ते हैं, वयस्क आकार तक पहुँचने में तीन से पाँच साल लगते हैं।

कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird

चलिए अब जान लेते हैं कीवी पक्षी के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  1. यह एक सर्वाहारी पक्षी है, जो दाना, फल के साथ-साथ कीड़े-मकोड़े भी खाते है। 
  2. कीवी एक निशाचर प्राणी है, जो ज्यादातर रात में सक्रिय होते हैं और दिन में अपने-अपने बिलों में सोते है। 
  3. कीवी एक गुस्सैल पक्षी है और अपने निवास स्थान (बिल) को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करता है। इसके लिए यह हमला भी कर सकता है।
  4. कीवी पक्षी के पंख होते है परंतु ये उड़ नहीं सकते हैं। क्योंकि इनके पंख बहुत छोटे होते हैं, जो करीबन 3 सेमी अर्थात् 1 इंच के होते है। अपने छोटे पंखों और अविकसित वक्षस्थल के कारण, कीवी उड़ने में असमर्थ हैं और इसलिए जंगल के फर्श पर बिलों और मांदों में रहते हैं। 
  5. कीवी पक्षी सिर्फ न्यूज़ीलैंड में ही पाया जाता है, क्योंकि इस पक्षी के रहने लायक अनुकूल जलवायु विश्व में कही और नहीं है। 
  6. कीवी पक्षियों की पाँच प्रजातियाँ पाई गयीं हैं, जिनमें ग्रेट स्पॉटेड कीवी, लिटिल स्पॉटेड कीवी, ओकारिटो कीवी, रोवी और टोकोका शामिल हैं, जो न्यूजीलैंड के दो मुख्य द्वीपों उत्तरी द्वीप और दक्षिण द्वीप पर पाए जाते हैं। रोवी कीवी की सबसे दुर्लभ किस्म है, जिसकी आज न्यूज़ीलैंड में केवल 450 प्रजातियाँ ही बची हैं।
  7. इस पक्षी का नाम कीवी इसलिए रखा गया है क्योंकि यह पक्षी Kee Wee Kee Wee (कीवी-कीवी) की आवाज़ निकालता रहता है।
  8. कीवी पक्षी की आंख उसका सबसे छोटा अंग होता है। इसलिए इसका नज़र (देखने की क्षमता) काफी कमज़ोर होती है। वे दिन में महज 6 मीटर की दूरी तक देख सकते है और रात मे 18 मीटर की दूरी तक, लेकिन इनके सूंघने की क्षमता बहुत तेज़ होती है।
  9. कीवी पक्षियों की चोंच बहुत लंबी होती है। कीवी पक्षी दुनिया का एकमात्र पक्षी है, जिसके चोंच के अंत में उनके नासिका होते हैं, जिनका उपयोग वे भोजन का पता लगाने के लिए करते हैं। उनके पास बहुत मजबूत पैर और तेज पंजे भी होते हैं, जिनका उपयोग वे भोजन के लिए खोदने और शिकारियों से खुद को बचाने के लिए करते हैं।
  10. एक साधारण कीवी पक्षी का औसतन वज़न 1.5 से 4 किलोग्राम  होता है।
  11. ज़्यादातर कीवी भूरे रंग के होते हैं, हालाँकि, कुछ कीवी सफ़ेद भी हो सकते हैं! यह बहुत दुर्लभ है।कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird
  12. मादा कीवी पक्षी की तुलना में नर पक्षी छोटे होते हैं। इसकी ऊंचाई करीबन 18 से 20 इंच और वजन 1.5 से 4 किग्रा तक होता है।
  13. कीवी पक्षी अपने लंबे जीवनकाल के लिए भी विश्व में  प्रख्यात है, इनका औसतन जीवनकाल करीबन 25 से 30 वर्ष होता है लेकिन इन्हें इनके अनुकूल वातावरण मिले तो ये करीबन 38 से 40 वर्ष तक भी जीवित रह सकते हैं।
  14. मादा कीवी एक बार में एक ही अंडा देती है। कीवी के आकार की तुलना में, उनके अंडे बहुत बड़े होते हैं। एक कीवी का अंडा मादा के शरीर के आकार का लगभग 20% होता है, जो कि मादा कीवी के लगभग 15 प्रतिशत वजन के बराबर होता है। जिसका वजन करीबन 450 से 480 ग्राम होता है। 
  15. इनके अंडे से बच्चे को बाहर आने में लगभग 2.5 महीने लगते हैं और जन्म के समय अंधे होते हे। मादा कीवी प्रत्येक वर्ष 2 से 4 अंडे देती है। 
  16. अधिकांश नर कीवी पक्षी ही अंडो को सेता है। नर अंडे पर तब तक बैठे रहते हैं जब तक कि वह फूट न जाए। एक बार मादा कीवी अपना अंडा दे देती है, तो नर उसे संभाल लेता है ताकि मादा भोजन की तलाश कर सके। चूँकि अंडे ने उसके शरीर में बहुत जगह ले ली है, इसलिए उसका पेट इतना सिकुड़ गया है कि उसे खुद को फिर से भरने की सख्त ज़रूरत है।
  17. इन पक्षियों की सबसे दिलचस्प बात यह है ये इतने छोटे होने के बावजूद करीबन 50 km/h की रफ्तार से आसानी से भाग सकते हैं।
  18. कीवी पक्षी के मुंह पर बिल्लीयों के जैसी मूछ होती है, जिसका उपयोग ये पक्षी अपने रास्ते का अंदाजा लगाने में करते हैं।
  19. कीवी पक्षी के शरीर का औसत तापमान 38° C होता है, जो कि बाकी के पक्षियों और जानवरों से 2° C कम है।
  20. विश्व का सबसे छोटा कीवी पक्षी लिटिल स्पॉटेड कीवी है, जिसकी ऊंचाई 17 से 18 इंच होता है और इनका वजन करीबन 800 ग्राम से 1.5 किलो तक होता है।

कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird

दुर्भाग्य से, कीवी पक्षियों को अपने अस्तित्व के लिए कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है जैसे शिकार, जंगलों का विनाश आदि शामिल है, लेकिन कीवी पक्षियों का सबसे खतरनाक दुश्मन स्टुड है। जंगली कीवी की 50% मौतों के लिए वे जिम्मेदार हैं। कुत्ते, बिल्लियाँ, फेरेट्स, आवास की हानि और मोटर वाहन की टक्कर कीवी के लिए अगले सबसे बड़े खतरे हैं। विश्व में कीवी पक्षियों का कुल संख्या करीबन 65 से 70 हजार के बीच ही बची है। यह विलुप्त होने के कगार पर खड़ा है। विलुप्त होने से बचाने के लिए पूरे न्यूज़ीलैंड में 20 से ज़्यादा कीवी अभ्यारण्य बनाये गए हैं। 

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Interesting facts about kiwi bird


Scientific name: Apteryx mantelli
Common name: Kiwi 

Today we will discuss not about kiwi fruit but about the kiwi bird, which is also the national bird of New Zealand. Kiwi can live from 25 to 50 years. Chicks are fully feathered. They come out of the nest to eat at the age of about five days and are never fed by their parents. The young grow slowly, taking three to five years to reach adult size.

Let us now know some interesting facts about kiwi bird

कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird

  1. It is an omnivorous bird, which eats grains, fruits as well as insects.
  2. Kiwi is a nocturnal creature, which is mostly active at night and sleeps in their burrows during the day.
  3. Kiwi is an angry bird and tries everything possible to protect its habitat (burrow). For this it can also attack.
  4. Kiwi birds have wings but they cannot fly. Because their wings are very small, which are about 3 cm or 1 inch. Due to their small wings and underdeveloped chest, kiwis are unable to fly and therefore live in burrows and dens on the forest floor.
  5. Kiwi birds are found only in New Zealand, because there is no other place in the world where this bird has a suitable climate to live.
  6. Five species of kiwi birds have been found, including Great Spotted Kiwi, Little Spotted Kiwi, Okarito Kiwi, Rovi and Tokoeka, which are found on the two main islands of New Zealand, North Island and South Island. Rovi is the rarest variety of kiwi, of which only 450 species are left in New Zealand today.
  7. This bird is named kiwi because this bird keeps making the sound of Kee Wee Kee Wee (Kiwi-Kiwi).
  8. The eye of the kiwi bird is its smallest organ. Therefore, its eyesight is very weak. They can see only up to a distance of 6 meters during the day and up to 18 meters at night, but their sense of smell is very sharp.
  9. Kiwi birds have very long beaks. Kiwi birds are the only birds in the world that have nostrils at the end of their beaks, which they use to detect food. They also have very strong legs and sharp claws, which they use to dig for food and protect themselves from predators.
  10. The average weight of an ordinary kiwi bird is 1.5 to 4 kg.
  11. Most kiwifruits are brown, however, some kiwifruits can be white! This is very rare.
  12. Male birds are smaller than female kiwi birds. Its height is about 18 to 20 inches and weight is 1.5 to 4 kg.
  13. Kiwi birds are also famous in the world for their long lifespan, their average lifespan is about 25 to 30 years, but if they get a favorable environment, they can live up to 38 to 40 years.
  14. Female kiwi lays only one egg at a time. Compared to the size of the kiwi, their eggs are very large. A kiwi egg is about 20% of the female's body size, which is equal to about 15 percent of the female kiwi's weight. Which weighs about 450 to 480 grams.
  15. It takes about 2.5 months for the babies to come out of their eggs and they are blind at birth. Female kiwi lays 2 to 4 eggs every year.
  16. Most of the male kiwi birds hatch the eggs. The males sit on the eggs until they hatch. Once the female kiwi lays her egg, the male takes care of it so that the female can look for food. Since the eggs have taken up a lot of space in its body, its stomach has shrunk so much that it desperately needs to refill itself.
  17. The most interesting thing about these birds is that despite being so small, they can easily run at a speed of about 50 km/h.
  18. The kiwi bird has a cat-like whisker on its mouth, which these birds use to guess their path.
  19. The average body temperature of the kiwi bird is 38° C, which is 2° C less than the rest of the birds and animals.
  20. The smallest kiwi bird in the world is the Little Spotted Kiwi, which is 17 to 18 inches tall and weighs about 800 grams to 1.5 kg.

कीवी पक्षी के बारे में 20 रोचक तथ्य || 20 Interesting Facts About Kiwi bird

Unfortunately, kiwi birds are facing many threats to their existence including hunting, destruction of forests, etc. But the most dangerous enemy of kiwi birds is the stud. They are responsible for 50% of the deaths of wild kiwis. Dogs, cats, ferrets, habitat loss and motor vehicle collisions are the next biggest threats to the kiwi. The total number of kiwi birds left in the world is only between 65 to 70 thousand. It is on the verge of extinction. More than 20 kiwi sanctuaries have been created across New Zealand to save them from extinction.

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर || Trimbakeshwar Jyotirling Temple

त्रंबकेश्वर मंदिर (Trimbakeshwar Temple)


त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर(Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple) महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित है, जो गांव और ब्रम्हगिरी नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरी को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है। त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं, यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंग में सिर्फ भगवान शिव ही विराजित हैं।

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

त्रंबकेश्वर मंदिर(Trimbakeshwar Temple) की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिव की केवल अर्घा दिखाई देती है लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा  के अंदर 1-1 इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगो को त्रिदेव ब्रह्मा , विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चांदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिव पुराण में यह कथा वर्णित है-

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन मेंरहने वाली ब्राह्मणों की पत्नियां किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित श्री गणेश भगवान की आराधना की।

उन ब्राह्मणों की आराधना से प्रसन्न हो श्री गणेशजी प्रकट होकर उनसे कुछ वर मांगने को कहा, ब्राह्मणों ने कहा-'प्रभु यदि आप हमसे प्रसन्न हैं तो गौतम ऋषि को किसी प्रकार इस आश्रम से बाहर निकाल दें'। उनकी यह बात सुनकर गणेश जी ने उनसे ऐसा वर मांगने के लिए समझाया किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे हैं। अंततः में गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर गौतम ऋषि के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि एक तृण लेकर बड़ी नरमी से उसे हांकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही गाय वहीं गिर कर मर गई। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

सारे ब्राह्मण एकत्र होकर ऋषि गौतम की भर्त्सना कर,आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं जाने को कहने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुखी थे। विवश होकर वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहां से 1 कोस दूर जाकर रहने लगे , लेकिन इन ब्राह्मणों ने वहां भी उनका रहना दुभर कर दिया। कहने लगे -"गौ हत्या के कारण तुम्हें अब वेद पाठ और यज्ञादि करने का कोई अधिकार नहीं रह गया"। अत्यंत अनुनय के साथ ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएं।

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

 उन्होंने कहा- "गौतम,तुम अपने पाप को सर्वत्र सब को बताते हुए 3 बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो और तत्पश्चात यहां आकर 1 महीने का व्रत रखो। तत्पश्चात ब्रम्हगिरी की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो, इसके बाद पुनः गंगा जी में स्नान करके इस ब्रम्हगिरी की एक 11 बार परिक्रमा करो फिर 100 घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे कर के पत्नी अहिल्या के साथ पूर्णता तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा-ऋषि गौतम ने कहा कि मैं यह चाहता हूं कि मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दें।भगवान शिव ने कहा-" गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो , गौ हत्या का पाप तुमपर छल द्वारा लगाया गया है,छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं"!

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

गौतम ऋषि ने कहा, प्रभु!उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है, उन्हें मेरा परम हित समझकर आप उन पर क्रोध ना करें। बहुत से ऋषि यों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम ऋषि के बाद का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से वहां सदा निवास करने की प्रार्थना की। वह उनकी बात मान कर वहां त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए गौतम जी द्वारा लाई गई गंगा जी भी वहां पास में गोदावरी के नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्राप्त करने वाला है।

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Trimbakeshwar Temple

The Trimbakeshwar Temple is located in the foothills of the village and hill called Bramhagiri. This kernel is considered to be the visible form of Shiva. It is on this mountain that the sacred Godavari River originates. Brahma, Vishnu and Mahesh are all three in Trimbakeshwar Jyotirlinga, this is the biggest feature of this Jyotirlinga. In all other Jyotirlingas, only Lord Shiva is enthroned.

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

 The magnificent building of the Trimbakeshwar temple is an excellent specimen of the Indus-Aryan style. After entering the sanctum inside the temple, only the Argha of Shiva is visible, not the linga. A close look of three 1-1 inch linga is seen inside the Argha. These lingas are considered to be the incarnation of Trideva Brahma, Vishnu and Mahesh. After worshiping at the time of dawn, silver panchmukhi crown is offered on this Argha. This legend is described in the Shiva Purana about the establishment of this Jyotirlinga.

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की महिमा

 Once the wives of Brahmins who lived in Maharishi Gautama's got angry with his wife Ahilya. He inspired his husbands to insult Sage Gautama. Those Brahmins worshiped Lord Shri Ganesh for this.

 Pleased with the worship of those Brahmins, Shri Ganeshji appeared and asked him to ask for some brides, the Brahmins said - 'Lord, if you are happy with us, then please get Gautam Rishi out of this ashram somehow'. On hearing this, Ganeshji explained to him to ask for such a boon, but he has remained firm on his request. Finally, Ganesh ji was forced to obey him. In order to keep the mind of his devotees, he took the form of a weak cow and started living in the field of Gautam Rishi. Seeing the cow grazing the crop, the sage took a trunk and rushed to humbly soften it. As soon as those trunks were touched, the cow fell there and died. Now there was a big cry.

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple)

 All the Brahmins gathered and condemned the sage Gautama and left the ashram and asked him to go elsewhere. Sage Gautama was very surprised and saddened by this incident. Being compelled, he started living with his wife Ahalya from there for a distance, but these Brahmins made their stay there also. He started saying - "Now you have no right to recite the Vedas and Yajnadi because of cow slaughter". With utmost persuasion, the sage Gautama prayed to those Brahmins to show me some measure of my atonement and salvation. He said, "Gautam, you revolve the whole earth 3 times, telling your sin to everyone everywhere and then fast for 1 month. After that you will get purified after doing 101 circumambulation of Bramhagiri or bring Ganga ji here and bathe with water and worship Shiva with one crore earthly Shivalingas. Revolve 11 times and then bathing the earthly Shivling with the holy water of 100 pitches will save you.

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की महिमा

 According to the Brahmins' statement, Maharishi Gautama, after completing all those tasks, became fully engrossed with his wife Ahalya and started worshiping Lord Shiva. Pleased by this, Lord Shiva appeared and asked him to ask for the bride - Sage Gautama said that I want to free me from the sin of killing cow. Sin has been imposed on you by deceit, I want to punish the Brahmins of your ashram who have done it fraudulently "! Gautam Rishi said, Lord, I have received your darshan for his sake, considering him as my ultimate interest. But don't be angry Many sages, sages and deities gathered there, approving after the sage Gautama and prayed to Lord Shiva to stay there forever. He obeyed them, and located there in the name of Trimbak Jyotirlinga, Ganga ji brought by Gautam ji also started to flow near there as Godavari. This Jyotirlinga is the recipient of all virtues.

14अप्रैल आर्यभट्ट (Aryabhatta) जयंती

आर्यभट्ट जयंती

आज भारत के महान गणितज्ञ और भारतीय खगोल विज्ञान में पहली खोज करने वाले आर्यभट्ट की जयंती है। आर्यभट्ट ने ही पाई  (π)  और शून्य की खोज की थी और इन्होंने ही विश्व में सबसे पहले यह या था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।

14अप्रैल आर्यभट्ट (Aryabhatta) जयंती

14 अप्रैल को महानतम गणितज्ञ, खगोलविद और ज्योतिषाचार्य आर्यभट्ट जी की जयंती मनाई जाती है। आचार्य आर्यभट्ट प्राचीन समय के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। खगोलीय विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा हैं। जब यूरोप यह मानता था कि पृथ्वी चपटी है और समुद्र के उस पार कुछ नहीं है, तब आर्यभट ने बता दिया था कि पृथ्वी गोल है और यही नहीं जब लोग मानते थे कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है तब आर्यभट्ट ने बता दिया था कि पृथ्वी एक निश्चित दूरी को बनाए रखते हुए सूर्य का चक्कर काटती है। आचार्य आर्यभट्ट के समकक्ष ज्ञान में कोई टिक नहीं सकता है, जिनके ज्ञान का लोहा समस्त विश्व मानता है। 

बीजगणित जिसको अँग्रेजी में एलजेब्रा बोलते हैं, उसका प्रथम बार उपयोग आचार्य आर्यभट्ट ने ही किया था और अपनी प्रसिद्ध रचना “आर्यभटिया” में आचार्य श्री ने बीजगणित, अंकगणित और त्रिकोणमिति के 33 नियम बताये हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ “आर्यभट्टीय” और “आर्यभट्टिक” हैं। इन कृतियों में ग्रहों की गति और अन्य खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों पर विवरण मिलता है। 

14अप्रैल आर्यभट्ट (Aryabhatta) जयंती

पृथ्वी गोल है और अपने धुरी में घूमती है जिसके कारण दिन व रात होता है, ये सिद्धांत आचार्य आर्यभट्ट ने लगभग 1500 वर्ष पहले प्रतिपादित कर दिया था। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि पृथ्वी गोल है औऱ इसकी परिधि 24853 मील है। आचार्य आर्यभट्ट ने ये भी बताया था कि चंद्रमा सूर्य की रोशनी से प्रकाशित होता है। आचार्य आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया था कि 1 वर्ष में 366 नही बल्कि 365.2951 दिन होते हैं।

आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में हुआ था। उनकी जन्मस्थली मगध (आज का बिहार) मानी जाती है। आर्यभट ने आर्यभटीय में उल्लेख करते हुए खुद को कुसुमपुर (आज का पटना) का निवासी बताया है। लेकिन, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका जन्म लल्लक (आज का गया) में हुआ था। आर्यभट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, पर उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। 

14अप्रैल आर्यभट्ट (Aryabhatta) जयंती

आर्यभट्ट का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा बहुत रोचक और प्रेरणादायक रहा। यह माना जाता है कि उन्होंने अपने पिता, जो एक गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थें, उनसे ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना में प्राप्त की थी। आर्यभट्ट ने बाद में तक्षशिला और नालंदा जैसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया, जहां उन्होंने खगोलशास्त्र, गणित और विज्ञान में विशेष ज्ञान प्राप्त किया। उनकी शिक्षा में गणित और खगोलशास्त्र का विशेष स्थान था, और इन विषयों पर उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।

पृथ्वी की परिधि और पाई का मान बताने वाले व शून्य के जनक ,महान गणितज्ञ ,खगोलशास्त्री , ज्योतिषाचार्य ,महाविद्वान शिखाधारी आर्यभट्ट जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन"


जब हो गए उदास हँसी के नहीं हुए

जब हो गए उदास हँसी के नहीं हुए


Rupa Oos ki ek Boond
"संवेदना की आंच से पत्थर पिघल गया,
यूँ देखते ही देखते मौसम बदल गया..❣️"

गमगीन हो गए तो खुशी के नहीं हुए 

वो आसमान है जो ज़मीं के नहीं हुए


इक तुम हमारे बाद ज़माने के हो गए 

इक हम तुम्हारे बाद किसी के नहीं हुए


जब तक हँसे उदासियाँ देखी नहीं गई 

जब हो गए उदास हँसी के नहीं हुए


इक घर बना लिया गया सहरा के आस पास 

दरिया को छोड़कर तो नदी के नहीं हुए


अब जाने कैसे लोग है हम लोग आज के 

भवरे तो हो गए थे कली के नहीं  हुए


ऐ हुश्ने यार तू हमें अपना कहा न कर 

हम हो गए थे जिसके उसी के नहीं हुए

Rupa Oos ki ek Boond

"साँसों का क्या है..
चलती हैं तो चलती है
कोई धड़कनों से पूछे, उलझनें कितनी है..
❣️"

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

राजस्थान का राजकीय फूल

सामान्य नाम:  रोहिड़ा
स्थानीय नाम: "मरू शोभा"
वैज्ञानिक नाम: टेकोमेला उण्डुलता (Tecomella undulata)

रोहिड़ा (Tecomella undulata) राजस्थान का राजकीय पुष्प है। रोहिड़ा का पेड़ थार में कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाता है। इसी कल्पवृक्ष पर लाल गुलाबी व केसरिया रंग के फूल खिलते हैं जिन्हें रोहिड़ा का फूल कहा जाता है। इसे "मारवाड़ सागवान" भी कहा जाता है। 21 अक्टूबर 1983 में इसे राजस्थान का राज्य पुष्प घोषित किया गया था। रोहिड़ा का वृक्ष चमकीले लाल रंग के फूल वाला सुंदर वृक्ष है,जो राजस्थान के थार मरुस्थल और पाकिस्तान में पाया जाता है। 

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

यह फूल राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित थार रेगिस्तान में एक मध्यम आकार के पेड़ से उगता है। एक तरफ तो रोहिड़ा के पुष्प मनुष्यों को अपनी खूबसूरती से आकर्षित करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ यह पशुधन व अन्य जीवों के लिए आहार भी है। इसकी लकड़ी काफी मजबूत होती है और शीशम के विकल्प के रूप में इसका उपयोग होता है।रोहिड़ा का पेड़ अच्छी गुणवत्ता वाली लकड़ी पैदा करता है। रोहिड़ा के पेड़ की लकड़ी शेखावटी और मारवाड़ अंचल में इमारती लकड़ी का मुख्य स्रोत है। इस पेड़ की लकड़ी मजबूत और सख्त होती है, जिससे यह कई उद्देश्यों के लिए टिकाऊ होती है। यह एक बेहतरीन ईंधन विकल्प के रूप में भी काम करता है और लोग इसका उपयोग जलाऊ लकड़ी या चारकोल के लिए करते हैं। 

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

राजस्थान के राजकीय प्रतीक

राज्य पशु – ऊँट
राज्य पक्षी – 
गोडावण या ग्रेट इंडियन बस्टर्ड 
राज्य वृक्ष – 
खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया)
राजकीय पुष्प – 
रोहिड़ा 
राजकीय भाषा  – राजस्थानी 

रोहिड़ा के फूल को 'मरू शोभा' और 'रेगिस्तान का सागवान' भी कहा जाता है। यह औषधीय गुणों से भरपुर होता है। रोहिडा के फूल शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक है। इससे त्वचा रोगों और फोड़े-फुंसी जैसी समस्याओं में राहत मिलती है। यह फूल लीवर को स्वस्थ रखने और उसके कार्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। आयुर्वेद में इसे हेपेटो-प्रोटेक्टिव माना जाता है। 

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

इस पेड़ की पत्तियों और फूलों को मवेशी, भेड़, ऊँट और दूसरे जानवर खाते हैं। जानवरों के लिए भोजन का स्रोत होने के अलावा, रोहिड़ा के पेड़ में मिट्टी को बांधने की शक्ति भी होती है क्योंकि यह अपनी पार्श्व जड़ों को मिट्टी की सतह पर फैलाता है। इससे पेड़ को रेगिस्तान में खुद को बनाए रखने में मदद मिलती है। रोहिड़ा के वृक्ष पर भारी मात्रा में फूल लगते हैं और फूल का आकार बड़ा होने के कारण पूरा पेड़ वसंत में (फरवरी अंत से अप्रैल तक) फूलों से ही लदा हुआ नजर आता है। इस फूल में किसी प्रकार की सुगंध नहीं होती, जिसके कारण इसका उपयोग मंदिर में नहीं किया जाता है। बड़े आकार के इस फूल की सुन्दरता और अनुपम गुणों के साथ रोहिड़ा के वृक्ष के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार नें इसे राज्य पुष्प घोषित किया था। 

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

रोहिड़ा के फूल तीन रंग (पीले, नारंगी और लाल) के होते हैं तथा आकार घंटीनुमा या तुरही की तरह होता है। आकार बड़ा होने के कारण इसका परागण तितलियां नहीं कर पाती हैं। परागण तितली या अन्य कीट से ना होकर बड़ी चोंच के बड़े पक्षियों द्वारा होता है। पक्षी मकरंद को चुराने के लिए छिद्र करते हैं। ऐसे में यह पुष्प अन्य पुष्प से भिन्न और अनोखा है। जब यह फूल खिलता है तब लाल होता है, धीरे धीरे केशरिया होने लगता है और अंत में पीला होकर गिर जाता है। फूलों के पक जाने या परागण की प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने पर इसमें फली निकलती है, जिसमें चौकोर छोटे-छोटे चपटे (एक ग्राम भार) के बीज होते हैं।

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State flower of Rajasthan

Common name: Rohida
Local name: "Maru Shobha"
Scientific name: Tecomella undulata

Rohida (Tecomella undulata) is the state flower of Rajasthan. Rohida tree is known as Kalpvriksha in Thar. Red, pink and saffron coloured flowers bloom on this Kalpvriksha which are called Rohida flower. It is also called "Marwar Teak". On 21 October 1983, it was declared the state flower of Rajasthan. Rohida tree is a beautiful tree with bright red coloured flowers, which is found in the Thar Desert of Rajasthan and Pakistan.

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

This flower grows from a medium sized tree in the Thar Desert located in the western region of Rajasthan. On one hand, Rohida flowers attract humans with their beauty, on the other hand it is also food for livestock and other creatures. Its wood is very strong and is used as an alternative to rosewood. Rohida tree produces good quality wood. The wood of Rohida tree is the main source of timber in Shekhawati and Marwar region. The wood of this tree is strong and hard, making it durable for many purposes. It also serves as an excellent fuel option and people use it for firewood or charcoal.

State symbols of Rajasthan

State animal – Camel
State bird – Great Indian Bustard
State tree – Khejri (Prosopis cineraria)
State flower – Rohida
State language – Rajasthani

Rohida flower is also called 'Maru Shobha' and 'Desert teak'. It is full of medicinal properties. Rohida flower is helpful in removing toxic elements from the body. It provides relief in problems like skin diseases and boils. These flowers help in keeping the liver healthy and improving its function. In Ayurveda, it is considered hepato-protective.

The leaves and flowers of this tree are eaten by cattle, sheep, camels and other animals. Apart from being a source of food for animals, the Rohida tree also has soil binding power as it spreads its lateral roots on the soil surface. This helps the tree to sustain itself in the desert. The Rohida tree flowers in large quantities and due to the large size of the flower, the entire tree appears laden with flowers in spring (from February end to April). This flower does not have any fragrance, due to which it is not used in the temple. Keeping in mind the beauty of this large flower and the unique properties along with the conservation of the Rohida tree, the state government declared it as the state flower.

राजस्थान का राजकीय फूल - रोहिड़ा || State Flower of Rajasthan - Rohida (Tecomella undulata)

Rohida flowers are of three colors (yellow, orange and red) and are shaped like a bell or trumpet. Due to its large size, butterflies are unable to pollinate it. Pollination does not take place by butterflies or other insects, but by large birds with large beaks. Birds make holes to steal the nectar. In this way, this flower is different and unique from other flowers. When this flower blooms, it is red, slowly it turns saffron and finally turns yellow and falls. After the flowers ripen or the process of pollination is complete, a pod comes out, which contains small flat square seeds (weighing one gram).

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...दूध का दाम

मानसरोवर-2 ...दूध का दाम (Doodh ka Daam)

दूध का दाम - मुंशीप्रेमचंद | Doodh ka Daam - Munshi Premchand

अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयाँ, नर्से और लेडी डॉक्टर, सभी पैदा हो गयी हैं; लेकिन देहातों में जच्चेखानों पर अभी तक भंगिनों का ही प्रभुत्व हैं और निकट भविष्य में इसमें तब्दीली होने की आशा नहीं। बाबू महेशनाथ अपने गाँव के जमींदार थे, शिक्षित थे और जच्चेखानों में सुधार की आवश्यकता को मानते थे, लेकिन इसमें जो बाधाएँ थी, उन पर विजय कैसे पाते? कोई नर्स देहात जाने पर राजी न हुई औऱ बहुत कहने-सुनने से राजी भी हुई, तो इतनी लम्बी-चौड़ी फीस माँगी कि बाबू साहब को सिर झुकाकर चले आने के सिवा और कुछ न सूझा। लेडी डॉक्टर के पास जाने की उन्हें हिम्मत पड़ी। उसकी फीस अदा करने के लिए तो शायद बाबू साहब को अपनी आधी जायदाद बेचनी पड़ती; इसलिए जब तीन कन्याओं के बाद वह चौथा लड़का पैदा हुआ, तो फिर वहीं गूदड़ था और वहीं गूदड़ की बहू । बच्चे अक्सर रात ही को पैदा होते हैं। एक दिन आधीरात को चपरासी ने गूदड़ के द‌्वार पर ऐसी हाँक लगायी कि पास-पड़ोस में भी जाग पड़ गयी। लड़की न थी कि मरी आवाज से पुकारता।

मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-2 ...दूध का दाम

गूदड़ के घर में इस शुभ अवसर के लिए महीनों से तैयारी हो रही थी। भय था तो यही कि फिर बेटी न हो जाय, नहीं तो वहीं बँधा हुआ एक रुपया और एक साड़ी मिलकर रह जायगी। इस विषय में स्त्री-पुरुष में कितने ही बार झगड़ा हो चुका था, शर्त लग चुकी थी। स्त्री कहती थी- अगर अबकी बेटा न हो तो मुँह न दिखाऊँ, हाँ-हाँ, मुँह न दिखाऊँ, सारे लच्छन बेटे के हैं। और गुदड़ कहता था- देख लेना, बेटी होगी और बीच खेत बेटी होगी। बेटा निकले तो मूँछें मुँड़ा लूँ, हाँ-हाँ, मूँछें मुँड़ा लूँ। शायद गूदड़ समझता था कि इस तरह अपनी स्त्री के पुत्र-कामना को बलवान करके वह बेटे की अवार्ड के लिए रास्ता साफ कर रहा हैं।

भूँगी बोली- अब मूँछ मुँड़ा ले दाढ़ीजार! कहती थी, बेटा होगा। सुनता ही न था। अपनी रट लगाये जाता था। मैं आज तेरी मूँछें मूँडूँगी, खूँटी तक तो रखूँगी ही नहीं।

गूदड़ ने कहा- अच्छा मूँड़ लेना भलीमानस! मूँछें क्या फिर न निकलेगी ही नहीं? तीसरे दिन देख लेना, फिर ज्यों-की-त्यों हैं, मगर जो कुछ मिलेगा, उसमें आधा रखा लूँगा, कहे देता हूँ।

भूँगी ने अँगूठा दिखाया और अपने तीन महीने के बालक को गूदड़ के सुपुर्द कर सिपाही के साथ चल खड़ी हुई।

गूदड़ ने पुकारा- अरी! सुन तो, कहाँ भागी जाती हैं? मुझे भी बधाई बजाने जाना पड़ेगा। इसे कौन सँभालेगा?

भूँगी ने दूर ही से कहा- इसे वहीं धरती पर सुला लेना। मैं आके दूध पिला जाऊँगी ।

महेशनाथ के यहाँ अब भूँगी की खूब खातिरदारियाँ होने लगीं। सबेरे हरीरा मिलता, दोपहर को पूरियाँ और हलवा, तीसरे पहर को फिर और रात को फिर और गूदड़ को भी भरपूर परोसा मिलता था। भूँगी अपने बच्चे को दिन-रात में एक-दो बार से ज्यादा न पिला सकती थी। उसके लिए ऊपर के दूध का प्रबन्ध था। भूँगी का दूध बाबूसाहब का भाग्यवान बालक पीता था। और यह सिलसिला बारहवें दिन भी न बन्द हुआ। मालकिन मोटी-ताजी देवी थी; पर अब की कुछ ऐसा संयोग था कि उन्हें दूध हुआ ही नहीं। तीनों लड़कियों की बार इतने इफरात से दूध होता था कि लड़कियों को बदहजमी हो जाती थी। अब की बार एक बूँद नहीं, भूँगी दाई भी थी और दूध-पिलाई भी।

मालकिन कहती- भूँगी, हमारे बच्चे को पाल दे, फिर जब तक तू जिये, बैठी खाती रहना। पाँच बीघे माफी दिलवा दूँगी। नाती-पोते तक चैन करेंगे।

और भूँगी का लाड़ला ऊपर का दूध हजन न कर सकने के कारण बार-बार उलटी करता और दिन-दिन दुबला होता जाता था।

भूँगी कहती- बहुजी, मूँडन में चूड़े लूँगी, कहे देती हूँ।

बहूजी उत्तर देती- हाँ हाँ, चूड़े लेना भाई, धमकाती क्यों हैं? चाँदी के लेगी या सोने के।

‘वाह बहूजी! चाँदी के पहन के किसे मूँह दिखाऊँगी और किसकी हँसी होगी?’

‘अच्छा सोने के लेना भाई, कह तो दिया।’

‘और ब्याह में कंठा लूँगी और चौधरी(गूदड़) के लिए हाथों के तोड़े।’

‘वह भी लेना, भगवान वह दिन तो दिखावे।’

घर की मालकिन के बाद भूँगी का राज्य था। महरियाँ, महराजिन, नौकर-चाकर सब उसका रोब मानते थे। यहाँ तक कि खुद बहूजी भी उससे दब जाती थी। एक बार तो उसने महेशनाथ को भी डाँटा था। हँसकर टाल गये। बात चली थी भंगियों की। महेशनाथ ने कहा था- दुनिया में और चाहे जो कुछ भी हो जाय, भंगी भंगी ही रहेंगे। इन्हें आदमी बनाना कठिन हैं।

इस पर भूँगी ने कहा था- मालिक, भंगी तो बड़ो-बड़ो को आदमी बनाते हैं, उन्हें कोई क्या आदमी बनाये।

यह गुस्ताखी करके किसी दूसरे अवसर पर भला भूँगी के सिर के बाल बच सकते थे? लेकिन आज बाबूसाहब उठाकर हँसे और बोले- भूँगी बात बड़े पते की कहती हैं।

भूँगी का शासनकाल साल-भर से आगे न चल सका। देवताओं ने बालक के भंगिन का दूध पीने पर आपत्ति की, मोटेराम शास्त्री तो प्रायश्चित का प्रस्ताव कर बैठे। दूध तो छुड़ा दिया गया; लेकिन प्रायश्चित की बात हँसी में उड़ गयी महेशनाथ ने फटकारकर कहा- प्रायश्चित की खूब कहीं शास्त्रीजी, कल तक तो उसी भंगिन का दूध पीकर पला, अब उससे छूत घुस गयी। वाह रे आपका धर्म।

शास्त्रीजी शिखा फटकारकर बोले- यह सत्य हैं, वह कल तक भंगिन का रक्त पीकर पला। माँस खाकर पला, यह भी सत्य हैं; लेकिन कल की बात कल थी, आज की बात आज। जगन्नाथपुरी में छूत-अछूत सब एक पंगत में खाते हैं; पर यहाँ तो नहीं खा सकते। बीमारी में तो हम भी कपड़े पहने खा लेते हैं, खिचड़ी तक खा लेते हैं बाबूजी ; लेकिन अच्छे हो जाने पर तो नेम का पालन करना ही पड़ता हैं। आपद्धर्म की बात न्यारी हैं।

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

‘तो इसका यह अर्थ हैं कि धर्म बदलता रहता हैं- कभी कुछ, कभी कुछ?’

‘और क्या! राजा का धर्म अलग, प्रजा का धर्म अलग, अमीर का धर्म अलग, गरीब का अलग, राजे-महाराजे जो चाहें खायँ, जिसके साथ चाहें खायँ, जिसके साथ चाहें शादी-ब्याह करें, उनके लिए कोई बन्धन नहीं। सर्मथ पुरुष हैं। बन्धन तो मध्यवालो के लिए हैं।‘

प्रायश्चित को न हआ; लेकिन भूँगी को गद्दी से उतरना पड़ा! हाँ, दान-दक्षिणा इतनी मिली कि वह अकेले ले न जा सकी और सोने के चूड़े भी मिले। एक की जगह दो नयी, सुन्दर साड़ियाँ- मामूली नैनसुख की नहीं, जैसी लड़कियों की बार मिली थीं।

इसी साल प्लेग ने जोर बाँधा और गूदड़ पहले ही चपेट मे आ गया। भूँगी अकेली रह गयी; पर गृहस्थी ज्यों-की-त्यों चलती रही। लोग ताक लगाये बैंठे थे कि भूँगी अब गयी। फलाँ भंगी से बातचीत हुई, फलाँ चौधरी आये, लेकिन भूँगी न कहीं आयी, न कहीं गयीं, यहाँ तक कि पाँच साल बीत गये और बालक मंगल, दब दुर्बल और सदा रोगी रहने पर भी, दौड़ने लगा। सुरेश के सामने पिद्दी-सा लगता था।

एक दिन भूँगी महेशनाथ के घर का परनाला साफ कर रही थी। महीनों से गलीज जमा हो रहा था। आँगन में पानी भरा रहने लगा था। परनाले में एक लम्बा मोटा बाँस डालकर जोर से हिला रही थी। पूरा दाहिना हाथ परनाले के अन्दर था कि एकाएक उसने चिल्लाकर हाथ बाहर निकल लिया और उसी वक़्त एक काला साँप परनाले से निकलकर भागा। लोगों ने दौड़कर उसे मार तो डाला; लेकिन भूँगी को न बचा सके। समझे; पानी का साँप हैं, विषैला न होगा, इसलिए पहले कुछ गफलत की गयी। जब विष देह में फैल गया और लहरें आने लगीं, तब पता चला कि वह पानी का साँप नहीं, गेहुँवन था।

मंगल अब अनाथ था। दिन-भर महेशबाबू के द्‌वार पर मँडराया करता। घर में जूठन इतना बचता था कि ऐसे-ऐसे दस बालक पल सकते थे। खाने की कोई कमी न थी। हाँ, उसे बुरा जरूर लगता था, जब उसे मिट्टी के कसोरों में ऊपर से खाना दिया जाता था। सब लोग अच्छे-अच्छे बरतनों मे खाते हैं, उसके लिए मिट्टी के कसोरे!

यों उसे इस भेद भाव का बिल्कुल ज्ञान न होता था; लेकिन गाँव के लड़के चिढ़ा- चिढ़ाकर उसका अपमान करते रहते थे। कोई उसे अपने साथ खेलाता भी न था। यहाँ तक कि जिस टाट पर वह सोता था, वह भी अछूत थी। मकान के सामने एक नीम का पेड़ था। इसी के नीचे मंगल का डेरा था। एक फटा-सा टाट का टुकड़ा, दो मिट्टी के कसोरे और एक धोती, जो सुरेशबाबू की उतारन थी, जाड़ा, गरमी, बरसात हरेक मौसम में वह जगह एक-सी आरामदेह थी और भाग्य का बली मंगल झुलसती हुई लू, गलते हुए जाड़े और मूसलाधार वर्षा में भी जिन्दा और पहले से कहीं स्वस्थ था। बस, उसका कोई अपना था, तो गाँव को एक कुत्ता, जो अपने सहवर्गियों के जुल्म से दख दुखी होकर मंगल की शरण आ पड़ा था। दोनों एक ही खाना खाते, एक ही टाट पर सोते, तबीअत भी दोनों की एक-सी थी और दोनों एक दूसरे के स्वभाव को जान गये थे। कभी आपस में झगड़ा न होता।

गाँव के धर्मात्मा लोग बाबूसाहब की इस उदारता पर आश्चर्य करते। ठीक द्‌वार के सामने- पचास हाथ भी न होगा – मंगल का पड़ा रहना उन्हें सोलहों आने धर्म-विरुद्ध जान पड़ता। छिः ! यहीं हाल रहा, तो थोड़े ही दिनों में धर्म का अन्त ही समझों। भंगी को भी भगवान ने ही रचना हैं, यह हम भी जानते हैं। उसके साथ हमें किसी तरह का अन्याय न करना चाहिए, यह किसे नही मालूम ? भगवान का तो नाम ही पतित-पावन हैं; लेकिन समाज की मर्यादा भी कोई वस्तु हैं! उस द्‌वार पर जाते हुए संकोच होता हैं। गाँव का मालिक हैं, जाना तो पड़ता ही हैं; लेकिन बस यहीं समझ लो कि घृणा होती हैं।

मंगल और टामी में गहरी बनती हैं। मंगल कहता – देखों भाई टामी, जरा और खिसककर सोओ। आखिर मैं कहा लेटूँ ? सारा टाट तो तुमने घेर लिया।

टामी कूँ-कूँ करता, दुम हिलाता और खिसक जाने के बदले और ऊपर चढ़ आता एवं मंगल का मुँह चाटने लगता।

शाम को वह एक बार रोज अपना घर देखने और थोड़ी देर रोने जाता। पहले साल फूस का छप्पर गिर पड़ा, दूसरे साल एक दीवार गिरी और अब केवल आधी- आधी दीवारें खड़ी थी, जिनका ऊपर का भाग नोकदार हो गया था। यही उसके स्नेह की सम्पत्ति मिली। वही स्मृति, वही आकर्षण, वही प्यार उसे एक बार उस उजड़ में खिच ले जाती थी और टामी सदैव उसके साथ होता था। मंगल नोकदार दीवार पर बैठ जाता और जीवन के बीते और आनेवाले स्वप्न देखने लगता और बार-बार उछल कर उसकी गोद में बैठने की असफल चेष्ठा करता।

एक दिन कई लड़के खेल रहे थे। मंगल भी पहुँच कर दूर खड़ा हो गया। या तो सुरेश को उस पर दया आयी, या खेलनेवालों की जोड़ी पूरी न पड़ती थी, कह नहीं सकते। जो कुछ भी हो, तजवीज की कि आज मंगल को भी खेल में शरीक कर लिया जाय। यहाँ कौन देखने आता हैं। क्यों रे मंगल, खेलेगा।

मंगल बोला- ना भैया, कहीं मालिक देख ले, तो मेरी चमड़ी उधेड़ दी जाय। तुम्हें म्हें क्या, तुम तो अलग हो जाओगे।

सुरेश ने कहा- तो यहाँ कौन आता हैं देखने बे? चल, हम लोग सवार-सवार खेलेगे। तू घोड़ा बनेगा, हम लोग तेरे ऊपर सवारी करके दौड़ायेंगे?

मंगल ने शंका की- मैं बराबर घोड़ा ही रहूँगी, कि सवारी भी करूँगा? यह बता दो।

यह प्रश्न टेढ़ा था। किसी ने इस पर विचार न किया था। सुरेश ने एक क्षण विचार करके कहा- तुझे कौन अपनी पीठ पर बिठायेगा, सोच? आखिर तू भंगी हैं कि नहीं?

मंगल भी कड़ा हो गया। बोला- मैं कब कहता हूँ कि मैं भंगी नहीं हूँ, लेकिन तुम्हें मेरी ही माँ ने अपना दूध पिलाकर पाला हैं। जब तब मुझे भी सवारी करने को न मिलेगी, मैं घोड़ा न बनूँगा। तुम लोग बड़े चघड़ हो। आप तो मजे से सवारी करोगे और मैं घोड़ा ही बना रहूँ ।

सुरेश ने डाँट कर कहा, तुझे घोड़ा बनना पड़ेगा और मंगल को पकड़ने दौड़ा। मंगल भागा। सुरेश ने दौड़ाया। मंगल ने कदम और तेज किया। सुरेश ने भी जोर लगाया; मगर वह बहुत खा-खाकर थुल-थुल हो गया था और दौड़ने में उसकी साँस फूलने लगी।

आखिर उसने रूक कर कहा- आकर घोड़ा बनो मंगल, नहीं तो कभी पा जाऊँगा, तो बुरी तरह पीटूँगा।

‘तुम्हें भी घोड़ा बनना पड़ेगा।’

‘अच्छा हम भी बन जायँगे।’

‘तुम पीछे से निकल जाओगे। पहले तुम घोड़ा बन जाओ। मैं सवारी कर लूँ, फिर मैं बनूँगा।’

सुरेश ने सचमुच चकमा देना चाहा था। मंगल का यह मुतालबा सुनकर साथियों से बोला- देखते हो इसकी बदमाशी, भंगी हैं न!

तीनों ने मंगल को घेर लिया और जबरदस्ती घोड़ा बना दिया। सुरेश ने चटपट उसकी पीठ पर आसन जमा दिया और टिकटिक करके बोला- चल घोड़े, चल!

मंगल कुछ देर तर तो चला, लेकिन बोझ से उसकी कमर टूटी जाती थी। उसने धीरे से पीठ सिकोड़ी और सुरेश की रान के नीचे से सरक गया। सुरेश महोदय लद से गिर पड़े और भोंपू बजाने लगे।

माँ ने सुना, सुरेश कहीं रो रहा हैं। सुरेश कहीं रोये, तो उनके तेज कानों में जरूर भनक पड़ जाती थी और उसका रोना भी बिल्कुल निराला होता था, जैसे छोटी लाइन के इंजन की आवाज।

महरी से बोली- देख तो, सुरेश कहीं रो रहा हैं, पूछ तो किसने मारा हैं।

इतने में सुरेश खुद आँख मलता हुआ आया। उसे जब रोने का अवसर मिलता था, तो माँ के पास फरियाद लेकर जरूर आता था। माँ मिठाई या मेवे देकर आँसू पोंछ देती थी। आप थे तो आठ साल के, मगर थे बिल्कुल गावदी। हद से ज्यादा प्यार ने उसकी बुद्धि के साथ वहीं किया, जो हद से ज्यादा भोजन ने उसकी देह के साथ।

माँ ने पूछा- क्यो रोता हैं, किसने मारा?

सुरेश ने रोकर कहा- मंगल ने छू दिया।

माँ को विश्वास न आया। मंगल इतना निरीह थी कि उससे किसी तरह की शरारत की शंका न थी; लेकिन सुरेश कसमें खाने लगा, तो विश्वास करना लाजिम हो गया। मंगल को बुलाकर डाँटा- क्यों रे मंगल, अब तुझे बदमाशी सूझने लगी। मैने तुझसे कहा था, सुरेश को कभी मत छूना, याद हैं कि नहीं, बोल।

मंगल ने दबी आवाज से कहा- याद क्यों नहीं हैं।

‘तो फिर तूने उसे क्यों छुआ?’

‘मैने नहीं छुआ।’

‘तून नहीं छुआ, तो वह रोता क्यो था?’

‘गिर पड़े, इससे रोने लगे।’

चोरी और सीनाजोरी। देवीजी दाँत पीसकर रह गयी। मारती, तो उसी दम स्नान करना पड़ता। छड़ी तो हाथ में लेनी ही पड़ती और छूत का विद्‌युत-प्रवाह इस छड़ी के रास्ते उनकी देह में पैवस्त हो जाता, इसलिए जहाँ तक गालियाँ दे सकी, दी और हुक्म दिया कि अभी-अभी यहाँ से निकल जा। फिर जो इस द्‌वार पर तेरी सूरत नजर आयी, तो खून ही पी जाऊँगी । मुफ्त को रोटियाँ खा-खाकर शरारत सूझती हैं; आदि।

मंगल में गैरत तो क्या थी, हाँ, डर था। चुपके से अपने सकोरे उठाये, टाट का टुकड़ा बगल में दबाया, धोती कन्धे पर रखी और रोता हुआ वहाँ से चल पड़ा। अब वह यहाँ कभी न आयेगा। यही तो होगा कि भूखों मर जायगा। क्या हरत हैं? इस तरह जीने से फायदा ही क्या? गाँ में उसके लिए और कहाँ ठिकाना था? भंगी को कौन पनाह देता? उसी खंडहर की ओर चला, जहाँ भले दिनों की स्मृतियाँ उसके आँसू पोंछ सकती थी और खूब फूट-फूटकर रोया।

उसी क्षण टामी भी उसे ढूँढता हुआ पहुँचा और दोनों फिर अपनी व्यथा भूल गये।

लेकिन ज्यों-ज्यों दिन का प्रकाश क्षीण होता जाता था, मंगल की ग्लानि भी क्षीण होती जाती थी। बचपन को बेचैन करने वाली भूख देह का रक्त पी-पीकर और भी बलवान होती जाती थी। आँखे बार-बार कसोंरों की ओर उठ जाती। कहाँ अब तक सुरेश की जूठी मिठाईयाँ मिल गयी होती। यहाँ क्या धूल फाँके ?

उसने टामी से सलाह की- खाओगे क्या टामी? मैं तो भूखा लेट रहूँगा।

टामी ने कूँ-कूँ करके शायद कहा- इस तरह अपमान तो जिन्दगी भर सहना हैं। यों हिम्मत हारोगे, तो कैसे काम चलेगा? मुझे देखो न, कभी किसी ने डंडा मारा, चिल्ला उठा, फिर जरा देर बाद दुम हिलाता हुआ उसके पास जा पहुँचा। हम-तुम दोनो इसीलिए बने हैं भाई!

मंगल ने कहा- तो तुम जाओ, जो कुछ मिले खा लो, मेरी परवाह न करो।

टामी ने अपनी श्वास-भाषा में कहा- अकेला नहीं जाता, तुम्हें साथ लेकर चलूँगा।

‘मैं नहीं जाता।’

‘तो मैं भी नहीं जाता।’

‘भूखों मर जाओगे।’

‘तो क्या तुम जीते रहोगे?’

‘मेरा कौन बैठा हैं, जो रोयगा ’

‘यहाँ भी वही हाल हैं भाई, क्वार में जिस कुतिया से प्रेम किया था, उसने बेवफाई की और अब कल्लू के साथ हैं। खैरियत यही हुई कि अपने बच्चे लेती गयी, नहीं तो मेरी जान गाढ़े में पड़ जाती। पाँच-पाँच बच्चों को कौन पालता?’

एक क्षण के बाद भूख ने एक दूसरी युक्ति सोच निकाली।

‘मालकिन हमें खोज रहीं होगी, क्या टामी?’

‘और क्या? बाबूजी और सुरेश खा चुके होगे। कहार ने उनकी थाली से जूठन निकाल लिया होगा और हमे पुकार रहा होगा।’

‘बाबूजी और सुरेश की थालियों में घी खूब रहता हैं और वह मीठी-मीठी चीज- हाँ मलाई।’

‘सब-का-सब घूरे पर डाल दिया जायगा।’

‘देखे, हमें खोजने कोई आता हैं?’

खोजने कौन आयेगा; क्या कोई पुरोहित हो? एक बार ‘मंगल-मंगल‘ होगा और बस, थाली परनाले में उँडेल दी जायेगी।

‘अच्छा, तो चलो चले। मगर मै छिपा रहूँगा, अगर किसी ने मेरा नाम लेकर न पुकारा ; तो मैं लौट आऊँगा । यह समझ लो।’

दोनो वहाँ से निकले और आकर महेशनाथ के द्‌वार पर अँधेरे में दबकर खड़े हो गये; मगर टामी को सब्र कहाँ? वह धीरे से अन्दर घुस गया। देखा, महेशनाथ और सुरेश थाली पर बैठ गये। बरोठे में धीरे से बैठ गया, मगर डर रहा था कि कोई डंडा न मार दे।

नौकर में बातचीत हो रही था। एक ने कहा- आज मँगलवा नहीं दिखायी देता। मालकिन मे डाँटा, इससे भागा हैं साइत।

दूसरे ने जवाब दिया- अच्छा हुआ, निकाल दिया गया। सबेरे-सबेरे भंगी का मुँह देखना पड़ता था।

मंगल और अँधेरे में खिसक गया। आशा गहरे जल में डूब गयी।

महेशनाथ थाली से उठ गये। नौकर हाथ धुला रहा था। अब हुक्का पीयेंगे और सोयेंगे। सुरेश अपनी माँ के पास बैठा कोई कहानी सुनता-सुनता सो जायगा! गरीब मंगल की किसे चिन्ता? इतनी देर हो गयी, किसी ने भूल से भी न पुकारा।

कुछ देर तक वह निराश-सा खड़ा रहा, फिर एक लम्बी साँस खींचकर जाना ही चाहता था कि कहार पत्तल में थाली की जूठन ले जाता नजर आया।

मंगल अँधेरे से निकलकर प्रकाश में आ गया। अब मन को कैसे रोके ?

कहार ने कहा- अरे, तू यहाँ था? हमने समझा कि कहीं चला गया। ले, खा ले; मै फेंकने जा रहा था।

मंगल ने दीनता से कहा- मैं तो बड़ी देर से यहाँ खड़ा था।

‘तो बोला क्यो नहीं?’

‘मारे डर के।’

‘अच्छा, ले खा ले।’

उसने पत्तल को ऊपर उठाकर मंगल के फैले हुए हाथों में डाल दिया। मंगल ने उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा, जिसमें दीन कृतज्ञता भरी हुई थी।

टामी भी अन्दर से निकल आया था। दोनों वहीं नीम के नीचे पत्तल में खाने लगे।

मंगल ने एक हाथ से टामी का सिर सहलाकर कहा- देखा, पेट की आग ऐसी होती हैं! यह लात की मारी रोटियाँ भी न मिलती, तो क्या करते?

टामी ने दुम हिला दी।

‘सुरेश को अम्माँ ने पाला था।’

टामी ने फिर दुम हिलायी।

‘लोग कहते हैं, दूध का दाम कोई नहीं चुका सकता और मुझे दूध का यह दाम मिल रहा हैं।’

टामी ने फिर दुम हिलायी।

चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah

चीता के बारे में रोचक तथ्य

वैज्ञानिक नाम:  'एसिनोनिक्स जुबेटस' (Acinonyx jubatus) 
सामान्य नाम:  चीता 

चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah

जैसा की हम सभी जानते हैं चीता, धरती पर दौड़ने वाला सबसे तेज़ और फुर्तीला जानवर है। चीता 75 मील प्रति घंटे (121 किलोमीटर प्रति घंटे) की रफ़्तार से दौड़ सकता है। चीता 3 सेकंड से भी कम समय में 110 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति तक पहुँचने में सक्षम होते हैं। यह बड़ी बिल्ली परिवार का एक सुंदर और फुर्तीला सदस्य है। "चीता" शब्द संस्कृत शब्द ("चिता") -इचत से आया है, जिसका अर्थ है "धब्बेदार"। एसिनोनिक्स जुबेटस चीते का लैटिन या वैज्ञानिक नाम है, जिसे 1776 में दिया गया था। एसिनोनिक्स का ग्रीक में अर्थ है “पंजा न हिलना” - यह उसके न मुड़ने वाले पंजों के संदर्भ में है।

चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah

चलिए अब जान लेते हैं चीता के बारे में कुछ रोचक तथ्य 

  1. हज़ारों सालों से चीते शानदार "घरेलू" पालतू जानवर भी रहे हैं। प्राचीन समय में राजा उन्हें धन की निशानी के रूप में रखते थे। मनुष्यों के साथ उनका इतिहास 32000 ईसा पूर्व तक का है। 
  2. चीतों का वजन आम तौर पर लगभग 125 पाउंड होता है, जो उन्हें हल्का और तेज़ गति से दौड़ने में आसान बनाता है। 
  3. उनके पास एक छोटा सिर, दुबले पैर और एक सपाट पसलियाँ होती हैं जो हवा के प्रतिरोध को कम करके उन्हें अधिक वायुगतिकीय बनाती हैं।
  4. चीते का कंकाल एक स्प्रिंग की तरह काम करता है, इसकी असामान्य रूप से लचीली रीढ़ और कूल्हे, और स्वतंत्र रूप से चलने वाले कंधे की हड्डियाँ।
  5. तेज़ दौड़ने के लिए बहुत अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, इसलिए अधिक हवा लेने में मदद करने के लिए उनके नाक के मार्ग और फेफड़े बढ़े हुए होते हैं। चीते दौड़ते समय प्रति मिनट 150 बार सांस लेने में सक्षम होते हैं, जबकि आराम करने पर वे प्रति मिनट 60 बार सांस लेते हैं।
  6. चीता बिल्ली परिवार का एकमात्र ऐसा सदस्य है जिसके पास अपने पंजों को पूरी तरह से वापस खींचने की क्षमता नहीं होती है।
  7. चीता का शरीर पतला, सुव्यवस्थित होता है, जो सुनहरे-पीले रंग के बालों और गोल काले धब्बों से ढका होता है। 
  8. चीतों के चेहरे पर लंबी, काली रेखाएँ होती हैं, जो उनकी आँखों से लेकर मुँह तक जाती हैं, जिन्हें "मैलर स्ट्राइप्स" या "मैलर मार्क्स" कहा जाता है। 
  9. चीते दिन के समय ज्यादा सक्रिय रहते हैं। चीतों को अक्सर सुबह 6:00 से 10:00 बजे और शाम को 4:00 से 6:00 बजे के बीच शिकार करते हुए देखा गया है।
  10. कुछ क्षेत्रों में चीते रात में सक्रिय रहते हैं, खास तौर पर पूर्णिमा की अतिरिक्त रोशनी के दौरान। 
  11. अधिकांश बिल्लियों की पूंछ गोल और रोएँदार होती है, जैसे कि आपकी घरेलू बिल्ली की पूंछ, चीते की पूंछ वास्तव में एक सपाट सतह वाली होती है, जैसे कि पतवार। यह चीते को तेज़ गति से तीखे मोड़ लेने में मदद करती है। पूंछ को एक तरफ से दूसरी तरफ घुमाकर, यह एक संतुलन के रूप में कार्य करता है, जिससे चीता को अपनी स्टीयरिंग को नियंत्रित करने और अपना संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
  12. शेर, बाघ, जगुआर और तेंदुए दहाड़ते हैं, पर चीते दहाड़ते नहीं, बल्कि म्याऊं, घुरघुराहट और चहचहाहट करते हैं। 
  13. औसत चीता प्रतिदिन 6-8 पाउंड भोजन खाता है। 
  14. चीतों को ज़्यादा पानी पीने की ज़रूरत नहीं होती। शुष्क वातावरण के अनुकूल होने के कारण, चीते आसानी से चार दिन बिना पानी के रह सकते हैं और 10 दिन तक बिना पानी के जीवित रह सकते हैं।
  15. चीते तैर सकते हैं, लेकिन वे आमतौर पर पानी में उतरने से बचते हैं। 
  16. दुनिया भर में चीते की 5 अलग-अलग उप-प्रजातियाँ हैं।
  17. चीते की गति के लिए एक और अनुकूलन इसकी अत्यंत लचीली रीढ़ है। अन्य बिल्लियों की रीढ़ में चीते की रीढ़ जितनी लचीलापन नहीं होता।चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah
  18. चीते में लगभग 2000 धब्बे होते हैं। 
  19. चीते अपने धब्बेदार कोट को भेष बदलने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
  20. नर चीता ही सामाजिक होते हैं। मादा चीता एकांतप्रिय प्राणी होती हैं। शावकों वाली माताएँ एक-दूसरे से थोड़ी दूरी पर ही रहती हैं।
  21. चीते की गर्भ अवधि केवल 90-95 दिन की होती है और एक माँ एक बार में 2 से 8 शावकों को जन्म दे सकती है। चीता एक बार में 2-8 शावकों को जन्म दे सकता है।
  22. औसतन शावक लगभग 12 इंच लंबे होते हैं और जन्म के समय उनका वजन केवल 0.75 पाउंड होता है। 
  23. छह सप्ताह के बाद, बच्चे शिकार में शामिल होने के लिए पर्याप्त मजबूत होते हैं और छह महीने में, वे जीवित शिकार को मारने का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं।
  24. चीतों की दृष्टि बहुत अच्छी होती है। गति के साथ-साथ चीतों में देखने की अद्भुत क्षमता होती है, जो उन्हें 3 मील दूर से शिकार को देखने और उसका पीछा करने में सक्षम बनाती है।
  25.  चीतों के चेहरे पर काले आंसू के निशान भी होते हैं जिन्हें मलर स्ट्राइप्स कहा जाता है जो उनकी आंखों से लेकर उनके चेहरे के किनारों तक फैले होते हैं। यह विशेषता वास्तव में सूर्य को आंखों से दूर खींचती है और चमकते सूरज को उनके दृश्य में बाधा डालने से रोकती है। फुटबॉल खिलाड़ी जो अपनी आंखों के नीचे काली धारियां बनाते हैं, वे भी यही रणनीति अपनाते हैं। 
  26. जंगल में चीते की उम्र लगभग 10 से 12 साल होती है, लेकिन कैद में यह 20 साल या उससे ज़्यादा तक भी हो सकती है। बर्मिंघम चिड़ियाघर में डॉली नाम की मादा चीता ने कैद में पली सबसे उम्रदराज चीता का रिकॉर्ड बनाया था। 
  27. संयुक्त राज्य अमेरिका में पालतू जानवर के रूप में चीता रखना अवैध है।
  28. चीते अमेरिका में अविश्वसनीय रूप से दुर्लभ हैं और चिड़ियाघरों में भी बहुत आम नहीं हैं क्योंकि उन्हें प्रजनन या आयात करना मुश्किल है। इसके अलावा, उन्हें पालतू जानवर के रूप में रखना संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध है।
  29. कृषि के लिए आवास परिवर्तन, साथ ही अवैध शिकार और शिकार प्रजातियों के नुकसान के कारण हाल के दशकों में चीतों की आबादी में भारी गिरावट आई है। अनुमान है कि जंगल में केवल 7,100 चीते बचे हैं। 
  30. प्राचीन मिस्र में चीते को पवित्र माना जाता था। 
चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah
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Interesting Facts About Cheetah


Scientific Name: Acinonyx jubatus
Common Name: Cheetah


As we all know, cheetah is the fastest and most agile animal on earth. Cheetahs can run at speeds of up to 75 miles per hour (121 kilometers per hour). Cheetahs are capable of reaching speeds of over 110 kilometers per hour in less than 3 seconds. It is a beautiful and agile member of the big cat family. The word "cheetah" comes from the Sanskrit word ("chita") -ichat, meaning "spotted". Acinonyx jubatus is the Latin or scientific name of the cheetah, given in 1776. Acinonyx means "claw not moving" in Greek - this is a reference to its non-retractable claws.
चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah

Let us now know some interesting facts about cheetah

  1. For thousands of years, cheetahs have also been great "house" pets. In ancient times kings kept them as a sign of wealth. Their history with humans dates back to 32000 BC.
  2. Cheetahs typically weigh about 125 pounds, making them light and easy to run at high speeds.
  3. They have a small head, lean legs, and a flat ribcage that makes them more aerodynamic by reducing wind resistance.
  4. The cheetah's skeleton acts like a spring, with its unusually flexible spine and hips, and independently moving shoulder bones.
  5. Running fast requires a lot of oxygen, so their nasal passages and lungs are enlarged to help them take in more air. Cheetahs are able to breathe up to 150 times per minute when running, while they breathe 60 times per minute when at rest.
  6. The cheetah is the only member of the cat family that does not have the ability to fully retract its claws.
  7. Cheetahs have a slender, streamlined body, covered in golden-yellow hair and round black spots.
  8. Cheetahs have long, black lines on their faces that run from their eyes to their mouths, called "malar stripes" or "malar marks."
  9. Cheetahs are most active during the day. Cheetahs are most often seen hunting between 6:00 and 10:00 a.m. and 4:00 and 6:00 p.m. In some areas, cheetahs are active at night, especially during the extra light of a full moon.
  10. While most cats have a round and hairy tail, like your house cat's, a cheetah's tail is actually flat, like a rudder. This helps the cheetah make sharp turns at high speeds. By swinging the tail from side to side, it acts as a counterweight, helping the cheetah control its steering and maintain its balance.
  11. Lions, tigers, jaguars and leopards roar, but cheetahs do not roar, but meow, grunt and chirp.
  12. The average cheetah eats 6-8 pounds of food per day.
  13. Cheetahs do not need to drink much water. Adapted to arid environments, cheetahs can easily go four days without water and can survive up to 10 days without water.
  14. Cheetahs can swim, but they usually avoid getting into water.
  15. There are 5 different subspecies of cheetah around the world.
  16. Another adaptation for the cheetah's speed is its extremely flexible spine. No other cats have spines as flexible as the cheetah's.
  17. The cheetah has about 2,000 spots.चीता के बारे में 30 रोचक तथ्य | 30 Interesting Facts About Cheetah
  18. Cheetahs use their spotted coats as a disguise.
  19. Only male cheetahs are social. Female cheetahs are solitary. Mothers with cubs stay a short distance from each other.
  20. The gestation period of a cheetah is only 90-95 days and a mother can give birth to 2 to 8 cubs at a time. Cheetahs can give birth to 2-8 cubs at a time.
  21. On average, cubs are about 12 inches long and weigh only 0.75 pounds at birth.
  22. After six weeks, the babies are strong enough to join in the hunt and at six months, they are able to practice killing live prey.
  23. Cheetahs have very good eyesight. Along with speed, cheetahs have amazing vision, which enables them to spot and chase prey from up to 3 miles away.
  24. Cheetahs also have black tear marks on their faces called malar stripes that extend from their eyes to the sides of their faces. This feature actually draws the sun away from the eyes and prevents the glaring sun from obstructing their view. 
  25. Football players who paint black stripes under their eyes also use this strategy.
  26. The lifespan of a cheetah in the wild is about 10 to 12 years, but in captivity it can be up to 20 years or more. A female cheetah named Dolly at the Birmingham Zoo held the record for the oldest cheetah raised in captivity.
  27. It is illegal to keep a cheetah as a pet in the United States.
  28. Cheetahs are incredibly rare in the US and are not very common even in zoos because they are difficult to breed or import. In addition, it is illegal to keep them as a pet in the United States.
  29. The cheetah population has declined drastically in recent decades due to habitat alteration for agriculture, as well as poaching and loss of prey species. It is estimated that there are only 7,100 cheetahs left in the wild.
  30. The cheetah was considered sacred in ancient Egypt.

हिंदू राजा सूर्यवर्मन द्वारा निर्मित अंगकोर वाट मंदिर के प्रवेश द्वार पर 7 सिर वाला नाग - कंबोडिया

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

अंगकोर वाट के महान मंदिर के प्रवेश द्वार पर पौराणिक नाग की मूर्ति, सात सिरों वाले सर्प रक्षक और संरक्षक सिंह की मूर्ति है। यह हिन्दू मन्दिर कम्बोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था।

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

यह छवि कंबोडिया के सिएम रीप में स्थित अंगकोर वाट की है। अंगकोर वाट यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है और दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक स्मारकों में से एक है। मूल रूप से 12वीं शताब्दी में राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा भगवान विष्णु को समर्पित एक हिंदू मंदिर के रूप में निर्मित, यह बाद में एक बौद्ध मंदिर बन गया। यहाँ देखा गया सात सिर वाला नाग (नाग) ब्रह्मांडीय ऊर्जा, जल और सुरक्षा का प्रतीक है, जो हिंदू और बौद्ध प्रतिमा विज्ञान का अभिन्न अंग है। अंगकोर वाट की भव्यता खमेर साम्राज्य की उल्लेखनीय कलात्मकता और आध्यात्मिक भक्ति को दर्शाती है।

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

अंगकोर वाट का मंदिर प्रांगण जो कि केवल हिन्दू धर्म नहीं, बल्कि सभी धर्मो के धार्मिक स्मारकों में सबसे बड़ा है। आज जानते है कुछ तथ्य हमारी संस्कृति के इस अनसुने अध्याय के बारे में, दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर, 800 साल से भी ज्यादा पुराना है अंगकोर वाट का मंदिर (Angkorwat Temple)

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

1 - अंगकोर वाट का मंदिर कंबोडिया देश में स्थित है, जी हां, सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर भारत में नहीं है।

2 - इसका निर्माण खमेर राजवंश के राजा सूर्यवर्मन द्वारा कराया गया था, जो कि भगवान विष्णु को समर्पित है।

3 - यह प्रांगण 402 एकड़ भूमि में फैला है, आप इसकी भव्यता का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि इस प्रांगण में 227 फुटबाल के मैदान आसानी से समा सकते है।

4 - इस मंदिर का कंबोडिया में इतना महत्व है कि आप उनके राष्ट्रीय ध्वज पर इस मंदिर को देख सकते है।

5- मंदिर दो भागो में विभाजित पहला भाग मंदिर की मुख्य इमारत तथा दूसरा भाग उसका बरामदा इस मंदिर की संरचना बाहर से अंदर की ओर जाने पर ऊपर की ओर उठती सी प्रतीत होती है, इसका कारण है कि यह हिन्दू धर्म के मेरु पर्वत का निरूपण करता है।

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

6 - कंबोज के इस मंदिर को मौलिक रूप से शिव को समर्पित किया गया था। लेकिन बाद में इसे विष्णु भगवान से जोड़ दिया गया। हालांकि यहाँ त्रिदेव –ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्तियाँ एक साथ मौजूद हैं।

7 - एक समय ऐसा आया कि ये मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका था लेकिन जनवरी 1860 में एक फ्रांसीसी रिसर्चर हेनरी महोत ने इसे फिर से दुनिया की नज़रों में लाने का काम किया। 18 वी सदी में हेनरी मौहोत ने अपने यात्रा वर्णन से पश्चिमी देशों में इस स्मारक का वर्णन कुछ इन शब्दों में किया है।

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

इतिहास को खुद में समेटे कभी गुमनाम रहा ये मंदिर आज यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल है। मंदिर वास्तुकला के अनुपम नमूना पेश करते हुए भारत की प्राचीनता और कंबोडियाई कनेक्शन को सहेजे हुए है। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बने इस मंदिर को देखने दुनियाभर से लोग आते हैं। खास बात है कि ये मंदिर 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज पर भी अंकित है। जानकर खुशी होगी कि वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर को संरक्षित करने के साथ ही संवारने का काम किया है। ये अपने आप में अपनापन को दर्शाने के लिए काफी है। जड़ों में जाएँगे तो पाएँगे कि कंबोडिया की धरती को भारत से आए शासकों ने ना केवल आबाद किया है, बल्कि इसे बनाया और सजाया भी है। 

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The world's largest temple

The entrance to the great temple of Angkor Wat features a statue of the mythical serpent, the seven-headed serpent protector and the guardian lion. This Hindu temple is located in Angkor, Cambodia, whose old name was 'Yashodharapur'.

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

This image is of Angkor Wat located in Siem Reap, Cambodia. Angkor Wat is a UNESCO World Heritage Site and one of the largest religious monuments in the world. Originally built in the 12th century as a Hindu temple dedicated to Lord Vishnu by King Suryavarman II, it later became a Buddhist temple. The seven-headed serpent (naga) seen here is a symbol of cosmic energy, water and protection, which is an integral part of Hindu and Buddhist iconography. The grandeur of Angkor Wat reflects the remarkable artistry and spiritual devotion of the Khmer Empire.

The temple courtyard of Angkor Wat is the largest of all religious monuments, not just Hinduism. Today we know some facts about this unheard chapter of our culture, the world's largest Hindu temple, Angkorwat Temple is more than 800 years old.

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

1 - Angkor Wat Temple is located in Cambodia, yes, the largest Hindu temple is not in India.

2 - It was built by King Suryavarman of the Khmer dynasty, which is dedicated to Lord Vishnu.

3 - This courtyard is spread over 402 acres of land, you can guess its grandeur from the fact that 227 football fields can easily fit in this courtyard.

4 - This temple has so much importance in Cambodia that you can see this temple on their national flag.

5- The temple is divided into two parts, the first part is the main building of the temple and the second part is its verandah. The structure of this temple seems to rise upwards when moving from outside to inside, the reason for this is that it represents the Meru mountain of Hinduism.

6- This temple of Cambodia was originally dedicated to Shiva. But later it was associated with Lord Vishnu. However, the idols of Tridev - Brahma, Vishnu, Mahesh are present here together.

7- There came a time when this temple had turned into ruins, but in January 1860, a French researcher Henry Mahot brought it to the eyes of the world again. In the 18th century, Henry Mahot described this monument in the western countries in his travelogue in these words.

विश्व का सबसे बड़ा मंदिर

This temple, which was once anonymous and contains history in itself, is today included in the UNESCO World Heritage. Presenting a unique example of temple architecture, it preserves the antiquity of India and the Cambodian connection. People from all over the world come to see this temple built in the city of Simrip on the banks of the Mekong River. The special thing is that this temple has also been inscribed on the national flag of Cambodia since 1983. You will be happy to know that from the year 1986 to the year 1993, the Archaeological Survey of India has preserved this temple as well as beautified it. This in itself is enough to show affinity. If you go to the roots, you will find that the rulers who came from India have not only inhabited the land of Cambodia, but have also built and decorated it.