शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024

दीपावली

शरद पूर्णिमा के साथ पवित्र कार्तिक मास शुरू हो गया। इसी के साथ सुबह गुलाबी ठंडक और शामें और अधिक सुहानी होने लगीं। वैसे इस बार तो मानो गर्मी जाने का नाम ही नहीं ले रही है, खैर जाना तो है ही। ऐसे मौसम में कुछ लोग डेंगू से परेशान हैं, तो कुछ लोग मौसम जनित बीमारियों से। लेकिन आने वाले त्योहार का संभावित उल्लास लोगों में छाया है।

शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024

जी हां दीपोत्सव दीवाली की आप सभी को बहुत बधाई एवं शुभकामना।

दीपावली का संस्कृत अर्थ है दीपावलिः = दीप + अवलिः = दीपकों की पंक्ति, या पंक्ति में रखे हुए दीपक। यह शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन सनातन त्यौहार है। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है और भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।

शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024 

दिया जलना, घर की सजावट, खरीददारी, आतिशबाज़ी, पूजा, उपहार, दावत और मिठाइयाँ इस त्योहार के प्रमुख आकर्षण हैं। यह पंच दिवसीय त्योहार है। त्योहार का आरंभ धनतेरस से होता है, उसके बाद नरक चौदस फिर दीपावली और फिर प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा के बाद अंतिम दिन भैया दूज के साथ इस त्योहार का समापन होता है। दीपावली के दिन बंगाल में काली पूजा की धूम रहती है।

शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।

शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024

माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात घर लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए थे। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। सनातन का मूल सिद्धांत है कि सत्य की सदा जीत होती है तथा झूठ का नाश होता है। दीपावली यही चरितार्थ करती है। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।

शुभ दीपावली || Shubh Dipawali 2024

आइए, प्रकाश पर्व की इस पावन वेला में हम सब भी खुशी खुशी, हर्ष उल्लास और उत्साह के साथ दीपावली मनाएं।

शुभ दीपावली 🪔🪔🪔🪔

दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?

दुर्लभ जानकारी - भगवान राम और माता सीता की पूजा क्यों नही? 

दीपावली आने वाली है। सभी के घरों में दीपावली की तैयारियाँ साफ़ सफाई जोरों पर है। ऐसे में हम हमेशा से पढ़ते चले आ रहे हैं की दीपावली क्यूँ मनाई जाती है? पर इसबार का सवाल थोड़ा अलग है। अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? भगवान राम और माता सीता की पूजा क्यों नही? दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं? लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव भगवान राम राम से जुड़ा हुआ है। आज अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें।

दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?

दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था, इसलिए इसका नाम दीपावली है। अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूसरा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है।

लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है? और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?

लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे। वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।

दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?

तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ! मैं जिसका भी नाम बताऊँगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी। अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।

दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है, शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में। इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को। इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।

दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?

यह विडंबना है कि देश और हिंदु धर्म के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है। इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलें। 

दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें। 

धनतेरस से अन्नकूट तक साल में एक बार ही दर्शन देती हैं इस मंदिर की मां अन्नपूर्णा

काशी का अन्नपूर्णा मंदिर

बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है। इन्हें तीनों लोकों में खाद्यान्न की माता माना जाता है। कहते हैं कि यहाँ माता ने स्वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवारों पर ऐसे चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं। इस मंदिर में साल में केवल एक बार अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा को सार्वजनिक रूप से एक दिन के लिऐ दर्शनार्थ निकाला जाता है। तब ही भक्त इनकी अद्भुत छटा के दर्शन कर सकते हैं।

धनतेरस से अन्नकूट तक साल में एक बार ही दर्शन देती हैं इस मंदिर की मां अन्नपूर्णा

अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में कुछ अन्य मूर्तियां स्थापित है, जिनके दर्शन सालभर किए जा सकते हैं। इन मूर्तियों में मां काली, शंकर पार्वती और नरसिंह भगवान के मंदिर में स्थापित मूर्तियां शामिल हैं। बताते हैं कि अन्नपूर्णा मंदिर में ही आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर के ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। ऐसा ही एक श्लोक है अन्नपूर्ण सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती। इस में भगवान शिव माता से भिक्षा की याचना कर रहे हैं।

धनतेरस से अन्नकूट तक साल में एक बार ही दर्शन देती हैं इस मंदिर की मां अन्नपूर्णा

इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कथा यहां बेहद चर्चित है। कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ गया था, चारों तरफ तबाही मची हुई थी और लोग भूखों मर रहे थे। उस समय महादेव को भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें। ऐसे में समस्या का हल तलाशने के लिए वे ध्यानमग्न हो गए, तब उन्हें एक राह दिखी कि मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती हैं।

इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी। उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनका खजाना पाते ही लोगों के दुख दूर हो जाएंगे। तभी से अन्नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जाता है। जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि इस खजाने का पाने वाला कभी आभाव में नहीं रहता।

धनतेरस से अन्नकूट तक साल में एक बार ही दर्शन देती हैं इस मंदिर की मां अन्नपूर्णा

धनतेरस से होगी माता अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन की शुरुआत

भगवान शिव की नगरी काशी में मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा वाला मंदिर २९ अक्टूबर, मंगलवार को धनतेरस के दिन खुलेगा। धनतेरस (29 अक्टूबर) से शुरू होने वाले ये विशेष दर्शन भैया दूज (2 नवंबर) तक जारी रहेंगे। पांच दिनों तक श्रद्धालु स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन कर मां का खजाना पा सकेंगे। धनतेरस पर होने वाले विशेष दर्शन से पूर्व मंदिर को फूल माला और विद्युल झालरों से सजाया जाता है।

धनतेरस से अन्नकूट तक साल में एक बार ही दर्शन देती हैं इस मंदिर की मां अन्नपूर्णा

धनतेरस के दिन खुलने वाला स्वर्ण प्रतिमा का मंदिर पांच सौ साल से ज्यादा पुराना है। मंदिर में अन्नदात्री की ठोस स्वर्ण प्रतिमा कमलासन पर विराजमान हैं और रजत शिल्प में ढले भगवान शिव की झोली में अन्नदान कर रही हैं। मां अन्नपूर्णा के दायीं ओर मां लक्ष्मी और बाएं भाग में भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है। सिंहासन व मूर्तियों की उंचाई लगभग साढ़े पांच फुट है। ऐसी मूर्ति व अदभुत दरबार शायद ही कहीं और देखने को मिलेगा।

जय माँ अन्नपूर्णा 🙏

हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)

हमारा तेल कैसा हो

वात को संतुलित रखने के लिए शुद्ध तेल  खाएं। रिफाइंड , डबल रिफाइंड, ट्रिपल रिफाइन माने जहर। जो तेल मीलों में निकालने के बाद मिलता है, वह शुद्ध तेल  है। तेल को रिफाइंड करते समय तेल की चिकनाई निकाल लेते हैं। चिकनाई निकालने के बाद तेल  में उसका गुण नहीं रह जाता। 
हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)

                 तेल  की चिकनाई जब एक बार निकाली जाती है तो वह रिफाइंड तेल  होता है। दो बार निकालने पर डबल और तीन बार निकालने पर ट्रिपल हो जाता है। चिकनाई खाएं लेकिन देखकर खाएं कि कौन सी खाने लायक है और कौन सी खाने लायक नहीं है। चिकनाई दो तरह की होती है एक अच्छी दूसरी बुरी।
                 अच्छी चिकनाई जरूर खाएं।अच्छी चिकनाई शरीर में HDL बढ़ाती है, जो बुरी चिकनाई है वह  LDL और VLDL बढ़ाती है, यह खतरनाक है।  अच्छी चिकनाई नहीं खाने से शरीर चूसे हुए आम की तरह हो जाता है। चिकनाई नहीं खाने से शरीर की चमक चली जाती है।

               बर्फीले इलाकों तथा पहाड़ी इलाकों में रहने बालों के लिए तिल का तेल अच्छा होता है। शुद्ध तेल में अच्छी चिकनाई मिलती है। नारियल, सरसों, मूंगफली ,तिल  को मिल में डालने के बाद जो सीधे तेल निकलता है वह शुद्ध तेल होता है। अशुद्ध तेल- रिफाइंड तेल, डबल रिफाइंड तेल, ट्रिपल रिफाइंड तेल, डालडा, वेजिटेबल तेल मत खाएं। जो आपकी तासीर को सूट करे वही तेल खाएं।

                   मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए सरसों का तेल तथा समुद्र के किनारे रहने वालों के लिए नारियल का तेल अच्छा होता है। शुद्ध तेल से वात का कोई रोग नहीं होता है।  वात के कुल 80 रोग हैं- जैसे घुटने का दर्द, कमर दर्द, गर्दन का दर्द, जोड़ों का दर्द।
 
हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)
# तेल का चिपचिपापन तेल का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। जैसा वैज्ञानिक लोग कहते हैं। जिस तेल में चिपचिपा पन नहीं होता है, वह तेल नहीं होता है।
# वात को  समभाव में रखने की सबसे अच्छी वस्तु है तेल जिसमें आप सब्जियां बनाते हैं। तेल का मतलब शुद्ध तेल यानी तेल की घानी से निकला हुआ सीधा- सीधा तेल। बिना कुछ मिलाए हुए माने रिफाइंड तेल ना खाएं।
# किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6-7 केमिकल इस्तेमाल होते हैं। डबल रिफाइन में 12- 13 केमिकल इस्तेमाल होते हैं। यह सारे केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाए हुए इन ऑर्गेनिक केमिकल हैं। इन ऑर्गेनिक केमिकल जहर बनाते हैं। आधुनिकता के नाम पर प्रयोग किए जाने वाले यह केमिकल सभी के शरीर में जहर बन कर उतर रहे हैं।
# तेल में प्रोटीन बहुत है। तेल से आने वाली महक तेल का ऑर्गेनिक घटक है। प्रोटीन के लिए कुल 5 तरह के प्रोटीन तेल में होते हैं, जो बास के साथ ही तेल से गायब हो जाते हैं। यह दोनों चीजें निकलने के बाद तेल, तेल नहीं होता है पानी हो जाता है इसलिए शुद्ध तेल खाएं।
# रिफाइंड तेल पिछले 20- 25 वर्षों  पहले से आए हैं। शुद्ध तेल खाने से लिवर में HDL बनता है, जो शरीर के लिए आवश्यक है। HDL ही वात को नियंत्रित करता है।
# मूंगफली और तेल में मिलने वाला तेल HDL बढ़ाता है। अतः इसे बिल्कुल भी डरना नहीं चाहिए। मोटापा VLDL और LDL बढ़ने से होता है अर्थात जब HDL बढ़ेगा तो LDL और VLDL कम होने लगेगा, जिसके कारण मोटापा कम होने लगेगा और पेट अंदर चला जाएगा।

हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)
खरीदते समय सावधान रहें
- कोई भी तेल की बोतल उठाने से पहले उसका लेबल गौर से देखें। अच्छे तेल में ओमेगा3 और ओमेगा6 के बीच 1:2 का रेश्यो होना चाहिए। मसलन अगर 1 ग्राम ओमेगा3 ले रहे हैं तो 2 ग्राम ओमेगा6 लेना चाहिए। तेल खरीदते हुए देखें कि ओमेगा3 ऊपर लिखा हो और ओमेगा6 नीचे यानी ओमेगा3 ज्यादा हो और ओमेगा6 कम। अगर किसी तेल में ओमेगा6 (सनफ्लार और कॉर्न) बहुत ज्यादा हो तो उसे भी अच्छा नहीं माना जाता।
- देखें कि तेल की बोतल पर जीरो ट्रांस फैट लिखा हो। साथ ही, नॉन हाइड्रोजिनेटिड और नॉन पीएचवीओ (PHVO)भी लिखा हो। लेकिन जीरो ट्रांस फैट का फायदा तभी तक है, जब तक आप उस तेल को गर्म नहीं करते। किसी भी तेल को अगर बार-बार गर्म किया जाए तो उसमें ट्रांस फैट्स बन जाते हैं।
- देखें कि बोतल पर कोल्ड कंप्रेस्ड ऑयल लिखा हो। फिजिकली रिफाइनिंग में थोड़ा-बहुत केमिकल इस्तेमाल होते हैं, जबकि सॉल्वेंट एक्स्ट्रैक्शन में भी केमिकल इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन कोल्ड कंप्रेस्ड में बिना कोई केमिकल मिलाए बेहद कम तापमान पर तेल निकाला जाता है। यह सबसे बेहतर होता है।
हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)

How our oil should be

 Eat pure oil to keep Vata balanced.  Refined, double refined, triple refined mana poison.  The oil that is obtained after extracting it in miles is pure oil.  Lubricates the oil while refining the oil.  After removing the lubricating oil, it does not retain its properties.
 The lubricating oil, once extracted, is refined oil.  Double takes out double and triple throws.  Eat smoothness, but eat what is eatable and which is not edible.  There are two types of smoothness, one good and the other bad.
 Eat good smoothness. Good lubrication increases HDL in the body, bad lubrication increases LDL and VLDL, it is dangerous.  The body becomes like sucked mango due to not eating good lubricity.  The body glows by not eating greasy.
 Sesame oil is good for hair living in icy areas and mountainous areas.  Pure oil has a good smoothness.  The oil directly extracted after adding coconut, mustard, groundnut, sesame is pure oil.  Impure oil- Do not eat refined oil, double refined oil, triple refined oil, Dalda, vegetable oil.  Eat the oil that suits your taste.
 Mustard oil is good for the people living in the plains and coconut oil is good for those living on the coast.  There is no disease of Vata with pure oil.  There are total 80 diseases of vata- such as knee pain, back pain, neck pain, joint pain.
 # The viscosity of oil is the most important component of oil.  As scientific people say.  Oil that does not have a sticky pan is not oil.
 # The best thing to keep Vata in sync is the oil in which you make vegetables.  Oil means pure oil i.e. straight oil derived from the oil condensate.  Do not eat refined oil without adding anything.
 # 6-7 chemicals are used to refine any oil.  Double refines use 12–13 chemicals.  All these chemicals are these organic chemicals made by humans.  These organic chemicals make poison.  These chemicals used in the name of modernism are becoming poison in everyone's body.
 # There is a lot of protein in oil.  Smell coming from oil is the organic component of oil.  There are a total of 5 types of protein in the oil, which disappear from the oil along with the bass.  After both these things come out, there is no oil, no oil becomes water, so eat pure oil.
 # Refined oils come from the last 20–25 years ago.  Eating pure oil produces HDL in the liver, which is essential for the body.  HDL only controls Vata.
 # Peanut and oil found in oil increases HDL.  So it should not be afraid at all.  Obesity is caused by increasing VLDL and LDL, that is, when HDL increases, LDL and VLDL will start decreasing, due to which obesity will start to decrease and go inside the stomach.

हमारा तेल कैसा हो (Best Cooking Oil for Health) ,राजीव दीक्षित (Rajiv Dixit)

 Before taking any oil bottle, check its label carefully.  Good oil should have a ratio of 1: 2 between omega 3 and omega 6.  For example, if taking 1 gram of omega 3, then 2 grams of omega 6 should be taken.  When buying oil, see that omega 3 is written above and omega 6 is below, ie omega 3 is more and omega 6 is less.  If omega 6 (sunflower and corn) is too much in any oil, it is also not considered good.
 See that the bottle of oil has zero trans fat written on it.  Also, non-hydrogenated and non-PHVO is also written.  But the advantage of zero trans fat is only until you heat that oil.  If any oil is heated again and again, trans fats are formed in it.
 - See that the bottle has cold compressed oil written on it.  Physically some little chemical is used in refining, while solvent extraction is also used chemically.  But in cold compressed oil is extracted at a very low temperature without adding any chemical.  This is the best.

ग़म में मुस्कुराने की आदत वही है..

ग़म में मुस्कुराने की आदत वही है..


Rupa Oos ki ek Boond

"दोष कांटों का कहां, हमारा है,
पैर हमने रखा, वो तो अपनी जगह पर थे.....❣️"

उन्हें पत्थर उठाने की आदत वही है,

हमे सिर उठाने की आदत वही है..


सितमगर, सितम कर, चला दिल पे खंजर,

हमे ज़ख़्म खाने की आदत वही है..


नहीं डर की दिल पर रहेगा न क़ाबू,

इसे टूट जाने की आदत वही है..


गिले-शिकवे होंठों पे आते भी कैसे?

हमें चुप लगाने की आदत वही है..


हमें आ गया संभल कर भी चलना,

मगर लड़खड़ाने की आदत वही है..


ग़मों का ये बोझ अब बढ़े भी तो क्या?

ग़म में मुस्कुराने की आदत वही है..


अभी तक बुरे हैं भले लोग बेशक़ 

हमें ज़माने की आदत वही है..

Rupa Oos ki ek Boond

"कहते है...
नींद अगर अच्छी आ जाए तो क्या बात....
और जो गर न आए 
तो याद दिला दे हर बात....❣️"

तकलीफ में शांत रहें

तकलीफ में शांत रहें

हम अपनी कमजोरियों पर ही नहीं, बल्कि उनसे उबरने के रास्तों पर विचार करेंगे, तभी हमारी तरक्की का रास्ता खुलेगा। अंग्रेजी में 'प्रतिस्पर्द्धा' के लिए 'कॉम्पिटिशन' और ईर्ष्या के लिए 'जेलसी' शब्द का प्रयोग हुआ है। 

तकलीफ में शांत रहें

इसी ईर्ष्या के कारण कई बार हम दूसरों को जरूरत से ज्यादा परखने लगते हैं, तो कई बार छोटी-छोटी बातों से प्रभावित होकर अपने जीवन को बोझिल बना देते हैं। किसी के बारे में जल्द राय बनाने की आदत भारी असर डालती है। 

मोटिवेशनल स्पीकर राजीव विज कहते हैं, 'जो जैसा है, उसे वैसा रहने दें। आप अपनी जिंदगी जिएं। अपने कौशल पर भरोसा करते हुए आगे बढ़ें।' हर व्यक्ति को आगे बढ़ने का अधिकार है। याद रखें, जिस प्रगति में सहजता होती है, उसका परिणाम सुखद होता है। किसी को गिराकर या काटकर आगे बढ़ने का विचार कभी सुखद नहीं होता।

स्वामी रामतीर्थ ने ब्लैकबोर्ड पर एक लकीर खींची और कक्षा में उपस्थित छात्रों से बिना स्पर्श किए उसे छोटी करने का निर्देश दिया। ज्यादातर विद्यार्थी उस निर्देश का मर्म नहीं समझ सके। लेकिन एक विद्यार्थी की बुद्धि प्रखर थी। उसने उस लकीर के पास एक बड़ी लकीर खींच दी। स्वामी रामतीर्थ बहुत प्रसन्न हुए। 

अपनी योग्यता और समाधान से विकास करते हुए बड़ा बनना चाहिए। हम अपने दुःखों से नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा परेशान होते हैं। पर कई बार हम ज्यादा ही परेशान हो जाते हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, लेकिन हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं। रूमी कहते हैं, 'तूफान को शांत करने की कोशिश छोड़ दें। खुद को शांत होने दें। तूफान तो गुजर ही जाता है।'

गोवा का राजकीय फूल "लाल चमेली" || State flower of Goa - Frangipani

गोवा का राजकीय फूल "लाल चमेली"

सामान्य नाम:  लाल चमेली
स्थानीय नाम: फ्रैंगिपानी 
वैज्ञानिक नाम: प्लुमेरिया रूब्रा
गोवा का राजकीय फूल "लाल चमेली" || State flower of Goa - Frangipani

गोवा भारत का सबसे छोटा राज्य है, जो दक्षिण-पश्चिमी तट पर कोंकण क्षेत्र में अरब सागर के किनारे स्थित है। गोवा का क्षेत्रफल 3,072 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 0.11% है। फूल हमेशा से गोवा की संस्कृति का एक बहुत ही अभिन्न अंग रहे हैं। गोवा का राज्य फूल आराध्य लाल चमेली है, जिसे वैज्ञानिक रूप से प्लुमेरिया रूब्रा कहा जाता है। लाल चमेली का फूल फ्रैंगिपानी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक छोटा उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जिसकी एक विशिष्ट सुगंध है, जिसे अनदेखा करना मुश्किल है। लाल चमेली की दो अलग-अलग किस्में हैं, सदाबहार जो पूरे बारह महीने हरी रहती हैं और पर्णपाती किस्म जिसकी पत्तियाँ शरद ऋतु के समय गिर जाती हैं। इसका फूलने का समय लंबा होता है।         

गोवा के राजकीय प्रतीक

गोवा का राज्य पशु – गौर 
गोवा का राज्य पक्षी – फ्लेम-थ्रोटेड बुलबुल 
गोवा की राज्य तितली – मालाबार ट्री निम्फ 
गोवा की राज्य मछली – धारीदार ग्रे मुलेट 
गोवा का राज्य वृक्ष – भारतीय लॉरेल 
गोवा का राज्य विरासत वृक्ष – नारियल ताड़

चमेली फूल देखने में बहुत सुंदर और खुशबूदार होते हैं। ये फूल छोटे आकार के होते हैं और उच्च और उपद्रवीत मौसमों में पाए जाते हैं। इनके पेड़ पर हरे-भरे पत्ते और खूबसूरत फूल होते हैं। चमेली फूल की सुगंध मधुर होती है और हमें खुश करती है।

गोवा का राजकीय फूल "लाल चमेली" || State flower of Goa - Frangipani

चमेली फूल का उपयोग पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में किया जाता है। इसका तेल आरोमाथेरेपी के लिए भी उपयोगी होता है। चमेली फूल हमारे मन को शांत करते हैं और हमें आकर्षित करते हैं। ये फूलों का उपयोग बगीचों और उद्यानों में भी होता है। चमेली फूल हमारे जीवन में सुंदरता और प्रसन्नता का प्रतीक हैं। 

English Translate

State flower of Goa "Red Jasmine"


Common Name: Red Jasmine
Local Name: Frangipani
Scientific Name: Plumeria rubra

Goa is the smallest state in India, located along the Arabian Sea in the Konkan region on the southwestern coast. Goa has an area of ​​3,072 square kilometers, which is 0.11% of the country's geographical area. Flowers have always been a very integral part of Goan culture. The state flower of Goa is the adorable red jasmine, scientifically called Plumeria rubra. The red jasmine flower is also known as frangipani. It is a small tropical tree, which has a distinctive aroma, which is hard to ignore. There are two different varieties of red jasmine, the evergreen one which remains green all twelve months and the deciduous variety whose leaves fall off during autumn. It has a long flowering period.

State symbols of Goa

State animal of Goa – Gaur
State bird of Goa – Flame-throated bulbul
State butterfly of Goa – Malabar tree nymph
State fish of Goa – Striped grey mullet
State tree of Goa – Indian laurel
State heritage tree of Goa – Coconut palm

Jasmine flowers are very beautiful and fragrant to look at. These flowers are small in size and are found in high and low seasons. Their tree has lush green leaves and beautiful flowers. The fragrance of jasmine flower is sweet and makes us happy.

गोवा का राजकीय फूल "लाल चमेली" || State flower of Goa - Frangipani

Jasmine flower is used in worship and cultural programs. Its oil is also useful for aromatherapy. Jasmine flowers calm our mind and attract us. These flowers are also used in gardens and parks. Jasmine flowers are a symbol of beauty and happiness in our life.


फूलों से रोगों का इलाज 

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मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियाँ.. मानसरोवर-1 ..मनोवृत्ति

मानसरोवर-1 ..मनोवृत्ति

मनोवृत्ति - मुंशी प्रेमचंद | Manovritti by Munshi Premchand

एक सुन्दर युवती, प्रातःकाल गाँधी पार्क​ में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, यह चौंका देनेवाली बात है। सुन्दरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौंधों से खेलती हैं, किसी का इधर ध्यान नहीं जाता, लेकिन कोई युवती रविश के किनारेवाले बेंच पर बेखबर सोये, वह बिल्कुल गैरमामूली बात हैं, अपनी ओर बलपूर्वक आकर्षित करनेवाली। रविश पर कितने आदमी चहलकदमी कर रहे हैं, बूढ़े भी, जवान भी, सभी एक क्षण के लिए वहीं ठिठक जाते हैं, एक नज़र वह दृश्य देखते हैं और तब चले जाते हैं। युवक- वृन्द रहस्य-भाव से मुस्काते हुए, वृद्ध -जन चिन्ताभाव से सिर हिलाते हुए और युवतियाँ लज्जा में आँखें नीची किये हुए।

मनोवृत्ति - मुंशी प्रेमचंद | Manovritti by Munshi Premchand

वंसत और हाशिम निकर और बनियान पहनें नंगे पाँव दौड़ कर रहे हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में ओलिम्पियन रेस होनेवाले हैं, दोनों उसी की तैयारी कर रहे है। दोनों इस स्थल पर पहुँचकर रूक जाते हैं और दबी आँखों से युवती को देखकर आपस में ख्याल दौड़ाने लगते हैं।

वंसत ने कहा- इसे और कहीं सोने की जगह न मिली।

हाशिम ने जवाब दिया- कोई वेश्या हैं।

‘लेकिन वेश्याएँ भी तो इस तरह बेशर्मी नहीं कहती।’

‘वेश्या अगर बेशर्म न हो, तो वह वेश्या नही।’

‘बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जिनमें कुलवधु और वेश्या, दोनों एक व्यवहार करती हैं।

कोई वेश्या मामूली तौर पर सड़क पर सोना नहीं चाहती।’

‘रूप-छवि दिखाने का नया आर्ट हैं।’

‘आर्ट का सबसे सुन्दर रूप छिपाव हैं, दिखाव नही। वेश्या इस रहस्य को खूब समझती हैं।’

‘उसका छिपाव केवल आकर्षण बढ़ाने के लिए हैं।’

‘हो सकता हैं, मगर केवल यहाँ सो जाना, यह प्रमाणित नहीं करता कि यह वेश्या हैं। इसकी माँग में सिन्दूर हैं।’

‘वेश्याएँ अवसर पड़ने पर सौभाग्यवती बन जाती हैं। रात भर प्याले के दौर चले होंगे। काम-क्रीड़ाएँ हुई होंगी। अवसाद के कारण, ठंडक पाकर सो गयी होगी।’

‘मुझे तो कुल -वधु -सी लगती हैं।’

‘कुल -वधु पार्क में सोने आयेगी?’

‘हो सकता हैं, घर से रूठकर आयी हो।’

‘चलकर पूछ ही क्यों न लें।’

‘निरे अहमक हो! बगैर परिचय के आप किसी को जगा कैसे सकते है?’

‘अजी, चलकर परिचय कर लेंगे। उलटे और एहसास जताएँगे।’

‘और जो कहीं झिझक दे?’

‘झिझकने की कोई बात भी हो। उससे सौजन्य और सहृदयता में डूबी हुई बातें करेंगें। कोई युवती ऐसी, गतयौवनाएँ तक तो रस-भरी बातें सुनकर फूल उठती हैं। यह तो नवयौवना है। मैने रूप और यौवन का ऐसा सुन्दर संयोग नहीं देखा था।’

‘मेरे हृदय पर तो यह रूप जीवन-पर्यत के लिए अंकित हो गया। शायद कभी न भूल सकूँ ।’

‘मैं तो फिर भी यही कहता हूँ कि कोई वेश्या हैं।’

‘रूप की देवी वेश्या भी हो, उपास्य हैं।’

‘यहीं खड़े-खड़े कवियों की-सी बातें करोगे, जरा वहाँ तक चलते क्यों नहीं? केवल खड़े रहना, पाश तो मैं डालूँगा।’

‘कोई कुल -वधू हैं।’

‘कुल -वधू पार्क में आकर सोये, तो इसके सिवा कोई अर्थ नहीं कि वह आकर्षित करना चाहती हैं और यह वेश्या मनोवृत्ति हैं।’

‘आजकल की युवतियाँ भी तो फारवर्ड होने लगी हैं।’

‘फारवर्ड युवतियाँ युवकों से आँखें नहीं चुराती।’

‘हाँ, लेकिन हैं कुल -वधु । कुल -वधू से किसी तरह की बातचीत करना मैं बेहूदगी समझता हूँ ।’

सम्पूर्ण मानसरोवर कहानियाँ मुंशी प्रेमचंद्र

‘तो चलो, फिर दौड़ लगाएँ।’

‘लेकिन दिल में वह मूर्ति दौड़ रहीं हैं।’

‘तो आओ बैठें। जब वह उठकर जाने लगे, तो उसके पीछे चलें। मै कहता हूँ वेश्या हैं।’

‘और मैं कहता हूँ कुल -वधू हैं।’

‘तो दस-दस की बाजी रही।’

दो वृद्ध पुरुष धीरें-धीरें ज़मीन की ओर ताकते आ रहे हैं। मानो खोई जवानी ढूँढ रहे हों। एक की कमर की, बाल काले, शरीर स्थूल , दूसरे के बाल पके हुए, पर कमर सीधी, इकहरा शरीर। दोनों के दाँत टूटे , पर नक़ली लगाए, दोनों की आँखों पर ऐनक। मोटे महाशय वक़ील है, छरहरे महोदय डॉक्टर।

वक़ील- देखा, यह बीसवीं सदी का करामात।

डॉक्टर- जी हाँ देखा, हिन्दुस्तान दुनिया से अलग तो नहीं हैं?

‘लेकिन आप इसे शिष्टता तो नहीं कह सकते?’

‘शिष्टता की दुहाई देने का अब समय नहीं।’

‘हैं किसी भले घर की लड़की।’

‘वेश्या हैं साहब, आप इतना भी नहीं समझते।’

‘वेश्या इतनी फूहड़ नहीं होती।’

‘और भले घर की लड़की फूहड़ होती हैं।’

‘नयी आज़ादी हैं, नया नशा हैं।’

‘हम लोगों की तो बुरी-भली कट गयी। जिनके सिर आयेगी, वह झेलेंगे।’

‘ज़िन्दगी जहन्नुम से बदतर हो जायेगी।’

‘अफ़सोस! जवानी रुखसत हो गयी।’

‘मगर आँखें तो नहीं रुख़सत हो गई, वह दिल तो नहीं रुख़सत हो गया।’

‘बस, आँखों से देखा करो, दिल जलाया करो।’

‘मेरा तो फिर से जवान होने को जी चाहता हैं। सच पूछो, तो आजकल के जीवन में ही जिन्दगी की बहार हैं। हमारे वक़्तों में तो कहीं कोई सूरत ही नज़र नहीं आती थी। आज तो जिधर जोओ, हुस्न ही हुस्न के जलवे हैं।’

‘सुना, युवतियों को दुनिया में जिस चीज़ से सबसे ज्यादा नफ़रत हैं, वह बूढ़े मर्द हैं।’

‘मैं इसका कायल नहीं। पुरुष को ज़ौहर उसकी जवानी नहीं, उसका शक्ति- सम्पन्न होना हैं। कितने ही बूढ़े जवानों से ज्यादा से ज्यादा कड़ियल होते हैं। मुझे तो आये दिन इसके तज़ुरबे होते हैं। मै ही अपने को किसी जवान से कम नहीं समझता।’

‘यह सब सहीं हैं, पर बूढ़ों का दिल कमज़ोर हो जाता हैं। अगर यह बात न होती, तो इस रमणी को इस तरह देखकर हम लोग यों न चले जाते। मैं तो आँखों भर देख भी न सका। डर लग रहा था कि कहीं उसकी आँखें खुल जायें और वह मुझे ताकते देख लें, तो दिल में क्या समझे।’

‘खुश होती कि बूढ़े पर भी उसका जादू चल गया।’

‘अजी रहने भी दो।’

‘आप कुछ दिनों ‘आकोसा’ को सेवन कीजिए।’

‘चन्द्रोदय खाकर देख चुका। सब लूटने की बातें हैं।’

‘मंकी ग्लैंड लगवा लीजिए न?’

‘आप इस युवती से मेरी बात पक्की करा दें। मैं तैयार हूँ ।’

‘हाँ, यह मेरा जिम्मा, मगर हमारा भाई हिस्सा भी रहेगा।’

‘अर्थात्?’

‘अर्थात्, यह कि कभी-कभी मैं भी आपके घर आकर अपनी आँखें ठंड़ी कर लिया करूँगा।’

‘अगर आप इस इरादे से आये, तो मै आपका दुश्मन हो जाऊँगा।’

‘ओ हो, आप तो मंकी ग्लैंड का नाम सुनते ही जवान हो गये।’

‘मैं तो समझता हूँ , यह भी डॉक्टरों नें लूटने का एक लटका निकाला हैं। सच।’

‘अरे साहब, इस रमणी के स्पर्श में जवानी हैं, आप हैं किस फेर में। उसके एक- एक अंग में, एक-एक मुस्कान में, एक-एक विलास में जवानी भरी हुई। न सौ मंकी ग्लैंड़, न एक रमणी का बाहुपाश।’

‘अच्छा कदम बढाइए, मुवक्किल आकर बैठे होगे।’

‘यह सूरत याद रहेगी।’

‘फिर आपने याद दिला दी।’

‘वह इस तरह सोयी है, इसलिए कि लोग उसके रूप को, उसके अंग-विन्यास को, उसके बिखरे हुए केशों को, उसकी खुली हुई गर्दन को देखे और अपनी छाती पीटें। इस तरह चले जाना, उसके साथ अन्याय हैं। वह बुला रही हैं और आप भागे जा रहे हैं।’

‘हम जिस तरह दिल से प्रेम कर सकते हैं, जवान कभी कर सकता हैं?’

‘बिल्कुल ठीक। मुझे तो ऐसी औरतों से साबिका पड़ चुका हैं, जो रसिक बूढों को खोजा करती हैं। जवान तो छिछोरे, उच्छृंखल, अस्थिर और गर्वीले होते हैं। वे प्रेम के बदले कुछ चाहते हैं। यहाँ निःस्वार्थ भाव से आत्म-समर्पण करते हैं।’

‘आपकी बातों से दिल में गुदगुदी हो गयी।’

‘मगर एक बात याद रखिए, कहीं उसका कोई जवान प्रेमी मिल गया, तो?’

‘तो मिला करे, यहाँ ऐसों से नहीं डरते।’

‘आपकी शादी की कुछ बातचीत थी तो?’

‘हाँ, थी, मगर जब अपने लड़के दुश्मनी पर कमर बाँधे, तो क्या हो? मेरा लड़का यशवंत तो बन्दूक दिखाने लगा। यह जमाने की खूबी हैं!’

अक्तूबर की धूप तेज हो चली थी। दोनो मित्र निकल गये।

दो देवियाँ- एक वृद्धा , दूसरी नवयौवना, पार्क के फाटक पर मोटर से उतरी और पार्क में हवा खाने आयी। उनकी निगाह भी उस नींद की मारी युवती पर पड़ी।

वृद्धा ने कहा- बड़ी बेशर्म है।

नवयौवना ने तिरस्कार-भाव से उसकी ओर देखकर कहा- ठाठ तो भले घर की देवियों के हैं?

‘बस, ठाठ ही देख लो। इसी से मर्द कहते है, स्त्रियों को आजादी न मिलनी चाहिए।’

‘मुझे तो वेश्या मालूम होती हैं।’

‘वेश्या ही सही, पर उसे इतनी बेशर्मी करके स्त्री-समाज को लज्जित करने का क्या अधिकार है?’

‘कैसे मजे से सो रही हैं, मानो अपने घर में हैं।’

‘बेहयाई हैं। मैं परदा नहीं चाहती, पुरुषों की गुलामी नही चाहती, लेकिन औरतों में जो गौरवशीलता और सलज्जता हैं, उसे नहीं छोड़ती। मैं किसी युवती को सड़क पर सिगरेट पीते देखती हूँ , तो मेरे बदन में आग लग जाती हैं। उसी तरह आधी का जम्फर भी मुझे नही सोहाता। क्या अपने धर्म की लाज छोड़ देने ही से साबित होगा कि हम बहुत फारवर्ड हैं? पुरुष अपनी छाती या पीठ खोले तो नहीं घूमते?’

‘इसी बात पर बाईजी, जब मैं आपको आड़े हाथों लेती हूँ , तो आप बिगड़ने लगती हैं। पुरुष स्वाधीन हैं। वह दिल में समझता है कि मै स्वाधीन हूँ । वह स्वाधीनता का स्वाँग नहीं भरता। स्त्री अपने दिल में समझती रहती है कि वह स्वाधीन नहीं हैं, इसलिए वह अपनी स्वाधीनता को ढोंग करती हैं। जो बलवान हैं, वे अकड़ते नहीं। जो दुर्बल हैं, वही अकड़ करती हैं। क्या आप उन्हें अपने आँसू पोंछने के लिए इतना अधिकार भी नही देना चाहती?’

‘मैं तो कहती हूँ , स्त्री अपने को छिपाकर पुरुष को जितना नचा सकती हैं अपने को खोलकर नहीं नचा सकती।’

‘स्त्री ही पुरुष के आकर्षण की फ्रिक़ क्यों करें? पुरुष क्यों स्त्री से पर्दा नहीं करता।’

‘अब मुँह न खुलवाओ मीनू! इस छोकरी को जगाकर कह दो- जाकर घर में सोये। इतने आदमी आ-जा रहे हैं और यह निर्लज्जा टाँग फैलाये पड़ी हैंय़ यहाँ नींद कैसे आ गयी?’

‘रात कितनी गर्मी थी बाईजी। ठंड़क पाकर बेचारी की आँखें लग गयी हैं।’

‘रात-भर यहीं रही हैं, कुछ-कुछ बदती हैं।’

मीनू युवती के पास जाकर उसका हाथ पकड़कर हिलाती हैं- यहाँ क्यों सो रही हो देवीजी, इतना दिन चढ़ आया, उठकर घर जाओ।

युवती आँखें खोल देती हैं- ओ हो, इतना दिन चढ़ आया? क्या मैं सो गयी थी? मेरे सिर में चक्कर आ जाया करता हैं। मैने समझा शायद हवा से कुछ लाभ हो। यहाँ आयी; पर ऐसा चक्कर आया कि मैं इस बेंच पर बैठ गयी, फिर मुझे होश न रहा। अब भी मैं खड़ी नहीं हो सकती। मालूम होता हैं, मैं गिर पडूँगी। बहुत दवा की; पर कोई फ़ायदा नही होता। आप डॉक्टर श्याम नाथ को आप जानती होगी, वह मेरे सुसर हैं।

युवती ने आश्चर्य से कहा- ‘अच्छा! यह तो अभी इधर ही से गये हैं।’

‘सच! लेकिन मुझे पहचान कैसे सकते हैं? अभी मेरा गौना नही हुआ हैं।’

‘तो क्या आप उसके लड़के बसंतलाल की धर्मपत्नी हैं?’

‘युवती ने शर्म से सिर झुकाकर स्वीकार किया। मीनू ने हँसकर कहा- ‘बसन्तलाल तो अभी इधर से गये है? मेरा उनसे युनिवर्सिटी का परिचय हैं।’

‘अच्छा! लेकिन मुझे उन्होंने देखा कहाँ हैं?’

‘तो मै दौड़कर डॉक्टर को ख़बर दे दूँ।’

‘जी नहीं, किसी को न बुलाइए।’

‘बसन्तलाल भी वहीं खड़ा हैं, उसे बुला दूँ ।’

‘तो चलो, अपने मोटर पर तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा दूँ ।’

‘आपकी बड़ी कृपा होगी।’

‘किस मुहल्ले में?’

‘बेगमगंज, मि. जयराम के घर?’

‘मै आज ही मि. बसन्तलाल से कहूँगी।’

‘मैं क्या जानती थी कि वह इस पार्क में आते हैं।’

‘मगर कोई आदमी साथ ले लिया होता?’

‘किसलिए? कोई जरूरत न थी।’

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

स्लिपर ऑर्किड

सामान्य नाम: स्लिपर ऑर्किड
वैज्ञानिक नाम: पैपीओपेडिलम 

ठंडे तापमान और नम मिट्टी में पनपने वाले ये पौधे वसंत के मध्य में खिलते हैं। नई टहनियाँ निकलकर हरी पत्तियों का समूह बना लेती हैं। यह फूल बहुत सुंदर होते हैं और कुछ की पत्तियाँ सुंदर रूप से धब्बेदार होती हैं।अधिकांश प्रजातियाँ स्थलीय मानी जाती हैं, यानी एक पौधा जो मिट्टी में, मिट्टी पर या मिट्टी से उगता है। हालाँकि लेडीज़ स्लिपर आम तौर पर स्थलीय होता है, लेकिन कुछ किस्में एपिफाइटिक होती हैं, जो अन्य पौधों या यहाँ तक कि चट्टानों की सतह पर उगती हैं।

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

आकार, रंग, बढ़ने की स्थिति और खिलने का मौसम और अवधि प्रजातियों के भीतर बहुत भिन्न हो सकती है। इतने सारे तरीकों से भिन्न होने के बावजूद, उन सभी में एक सामान्य चप्पल के आकार की थैली होती है। शायद इसीलिए इसका नाम स्लिपर ऑर्किड पड़ा होगा। दिखावटी, रंगीन फूल बहुरंगी होते हैं, जिसमें लेबेलम पंखुड़ियों से विपरीत रंग दिखाता है। स्लिपर ऑर्किड आम तौर पर नवंबर से मार्च तक खिलते हैं, लेकिन फूल साल के किसी भी समय दिखाई दे सकते हैं। फूल तीन महीने तक टिके रहते हैं। 

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

लेडीज़ स्लिपर का सामान्य नाम इसके चप्पल के आकार के होंठ से लिया गया है जो कीटों के लिए जाल का काम करता है। पुंकेसर कीटों के लिए काफी आकर्षक होता है। यह 3 फीट तक लंबा होता है और इसमें बड़े, मजबूत शिराओं वाले पत्ते 6-8 इंच लंबे और आधे चौड़े होते हैं। इसमें तने के अंत में एक फूल होता है। कभी-कभी 2, क्रीम रंग से लेकर सुनहरे-पीले रंग के होते हैं। फूलों में 3 बाह्यदल (पंखुड़ियों, पुंकेसर और स्त्रीकेसर के चारों ओर के भाग; आमतौर पर हरे और पत्ती जैसे होते हैं। कभी-कभी वे पंखुड़ियों के समान आकार, आकृति और रंग के होते हैं। 

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

हरे-पीले से लेकर भूरा-बैंगनी रंग के होते हैं, ऊपरी बाह्यदल बड़ा, आमतौर पर सीधा और फूल के ऊपर लटकता हुआ होता है। ऊपरी बाह्यदल 1 1/4-3 1/2 इंच लंबा 2 पार्श्व पंखुड़ियाँ लंबी और संकरी, बैंगनी-भूरे से लेकर हरे-पीले रंग की और सर्पिल रूप से मुड़ी हुई होती हैं - जूते की डोरियाँ जो चप्पल की तरह होती हैं। होंठ, या जूता, क्रीमी या पीला होता है, और लगभग 2 1/2 इंच लंबा होता है और जूता बनाने के लिए कप के आकार का होता है। पुंकेसर और स्त्रीकेसर जूता के खुलने की ओर लटकते हैं।

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

 इस स्लिपर ऑर्किड को बगीचे में आसानी से उगाए जा सकते हैं, हालाँकि, इस पौधे को मानव जाति के लिए सबसे धीमी गति से बढ़ने वाला पौधा कहा जाता है। परिपक्वता और फूल उत्पादन 10 वर्षों से अधिक समय तक नहीं हो सकता है।

English Translate

Slipper Orchids

Common Name: Slipper Orchid
Scientific Name: Paphiopedilum

These plants, which thrive in cool temperatures and moist soil, bloom in mid-spring. New shoots emerge to form clusters of green leaves. The flowers are very pretty and some have leaves that are beautifully mottled.Most species are considered terrestrial, that is a plant that grows in, on or out of soil. Although the lady's slipper is generally terrestrial, some varieties are epiphytic, growing on the surface of other plants or even rocks.

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

Size, color, growing conditions and blooming season and period can vary greatly within species. Despite differing in so many ways, they all have a common slipper-shaped pouch. This is probably why it is named slipper orchid. The showy, colorful flowers are multicolored, with the labellum showing a contrasting color from the petals. Slipper orchids generally bloom from November to March, but flowers may appear at any time of year. The flowers last up to three months.

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

The common name of the lady's slipper is derived from its slipper-shaped lip which acts as a trap for insects. The stamens are quite attractive to insects. It grows up to 3 feet tall and has large, strongly veined leaves 6-8 inches long and half as wide. It has a single flower at the end of the stem. Sometimes 2, ranging from cream-colored to golden-yellow. The flowers have 3 sepals (parts surrounding the petals, stamens and pistil; usually green and leaf-like. Sometimes they are the same size, shape and color as the petals. 

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

Greenish-yellow to brownish-purple in color, the upper sepal is larger, usually erect and hanging over the flower. The upper sepal is 1 1/4-3 1/2 inches long. The 2 lateral petals are long and narrow, purple-brown to greenish-yellow in color and spirally twisted - the shoestrings that resemble the slipper. The lip, or shoe, is creamy or yellow, and about 2 1/2 inches long and cup-shaped to form a shoe. The stamens and pistil hang down toward the opening of the shoe.

स्लिपर ऑर्किड || Slipper orchids

This slipper orchid can be easily grown in the garden, however, this plant is said to be one of the slowest growing plants known to mankind. Maturation and Flower Production Cannot be for more than 10 years.

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

सबरीमाला मंदिर

800 साल पुराना है, केरल का अय्यप्पा स्वामी को समर्पित, सबरीमाला मंदिर। 

देशभर में बहुत से मंदिर हैं, जो अपने धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं। इस ब्लॉग में हर हफ्ते एक मंदिर मंदिर के बारे में पोस्ट डलता है। आज हम जिस मंदिर के बारे में पढ़ने वाले हैं, वो अपने इतिहास और मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर प्रतिबंध की वजह से चर्चा में रह चुका है। इस प्राचीन मंदिर का नाम सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) है। 

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

सबरिमलय मंदिर (Sabarimala Temple) भारत के केरल राज्य के पतनमतिट्टा ज़िले में पेरियार टाइगर अभयारण्य के भीतर सबरिमलय पहाड़ पर स्थित एक महत्वपूर्ण मंदिर परिसर है। यह विश्व के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है, और यहाँ प्रतिवर्ष 4 से 5 करोड़ श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर भगवान अय्यप्पन को समर्पित है।

कम्बन रामायण, महाभागवत के अष्टम स्कंध और स्कन्दपुराण के असुर काण्ड में जिस शिशु शास्ता का उल्लेख है, अयप्पन उसी के अवतार माने जाते हैं। कहते हैं, शास्ता का जन्म मोहिनी वेषधारी विष्णु और शिव के समागम से हुआ था। उन्हीं अयप्पन का मशहूर मंदिर पूणकवन के नाम से विख्यात 18 पहाडि़यों के बीच स्थित इस धाम में है, जिसे सबरीमला श्रीधर्मषष्ठ मंदिर कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि परशुराम ने अयप्पन पूजा के लिए सबरीमला में मूर्ति स्थापित की थी। कुछ लोग इसे रामभक्त शबरी के नाम से जोड़कर भी देखते हैं। इस मंदिर में श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। इसमें भगवान को चढ़ाई जाने वाली चीजें होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि श्रद्धालु जो भी इच्छा लेकर मंदिर आते हैं, उनकी वे इच्छाएं पूरी होती हैं। 

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

कुछ लोगों का कहना है कि करीब 700-800 साल पहले दक्षिण में शैव और वैष्णवों के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया था। तब उन मतभेदों को दूर करने के लिए श्री अयप्पन की परिकल्पना की गई। दोनों के समन्वय के लिए इस धर्मतीर्थ को विकसित किया गया। आज भी यह मंदिर समन्वय और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है। यहां किसी भी जाति-बिरादरी का और किसी भी धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति आ सकता है। 

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

सबरीमाला मंदिर में हर साल एक पर्व भी मनाया जाता है, जिसे मकरविलक्कू के नाम मनाया जाता है। मकर संक्रांति और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के संयोग के दिन, पंचमी तिथि और वृश्चिक लग्न के संयोग के समय ही श्री अयप्पन का जन्म माना जाता है। इसीलिए मकर संक्रांति के दिन भी धर्मषष्ठ मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो मंदिर में पूरे साल भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन इस उत्सव के दौरान दूर -दराज से भी श्रद्धालु भगवान अयप्पा के लिए दर्शनों के लिए आते है, जिससे इस उत्सव के दौरान मंदिर में भारी भीड़ होती है। उत्सव के दौरान भगवान अयप्पा को नए वस्त्र और आभूषण पहनाएं जाते हैं। उसके बाद श्रद्धालु विशेष पूजा-अनुष्ठान करते है। केरल के लोगों के लिए ये पर्व दिवाली के त्योहार की तरह होता है, जिसे वो हर साल बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। 

         सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

यह मंदिर स्थापत्य के नियमों के अनुसार से तो खूबसूरत है ही, यहां एक आंतरिक शांति का अनुभव भी होता है। जिस तरह यह 18 पहाडि़यों के बीच स्थित है, उसी तरह मंदिर के प्रांगण में पहुंचने के लिए भी 18 सीढि़यां पार करनी पड़ती हैं। मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं उत्सव के दौरान अयप्पन का घी से अभिषेक किया जाता है।

Sabarimala Temple


Sabarimala Temple of Kerala is 800 years old and is dedicated to Ayyappa Swami.

There are many temples across the country which are known for their religious significance. Every week a post is posted about a temple in this blog. The temple we are going to read about today has been in the news due to its history and the ban on the entry of women in the temple. The name of this ancient temple is Sabarimala Temple.

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

Sabarimala Temple is an important temple complex located on the Sabarimala hill within the Periyar Tiger Reserve in Pathanamthitta district of Kerala state of India. It is one of the largest pilgrimage sites in the world and attracts 4 to 5 crore devotees every year. This temple is dedicated to Lord Ayyappan.

Ayyappan is considered to be the incarnation of the child Shastha mentioned in Kamban Ramayana, the eighth chapter of Mahabhagavat and the Asura Kand of Skanda Purana. It is said that Shastha was born from the union of Vishnu and Shiva in the guise of Mohini. The famous temple of the same Ayyappan is situated in this place situated between the 18 hills known as Poonkavan, which is called Sabarimala Sridharmashtha Temple. It is also believed that Parashuram had installed the idol in Sabarimala for Ayyappan worship. Some people also associate it with the name of Ram devotee Shabari. Devotees reach this temple with a bundle on their head. It contains things to be offered to God. It is a religious belief that whatever wish the devotees come to the temple with, their wishes are fulfilled.

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

Some people say that about 700-800 years ago, the animosity between Shaivites and Vaishnavites had increased a lot in the south. Then to overcome those differences, Shri Ayyappan was conceived. This Dharmatirtha was developed to coordinate the two. Even today, this temple is considered a symbol of coordination and harmony. A person belonging to any caste and religion can come here.

Every year a festival is also celebrated in Sabarimala temple, which is celebrated in the name of Makaravilakku. Shri Ayyappan is considered to have been born on the day of the conjunction of Makar Sankranti and Uttara Phalguni Nakshatra, at the time of the conjunction of Panchami Tithi and Scorpio Lagna. That is why a festival is also celebrated in the Dharmasashta temple on the day of Makar Sankranti. Although the temple is crowded with devotees throughout the year, but during this festival, devotees from far and wide come to have darshan of Lord Ayyappa, due to which there is a huge crowd in the temple during this festival. During the festival, Lord Ayyappa is dressed in new clothes and ornaments. After that the devotees perform special worship and rituals. For the people of Kerala, this festival is like Diwali, which they celebrate with great pomp every year.

सबरीमाला मंदिर, केरल || Sabarimala Temple, Kerala

This temple is not only beautiful according to the rules of architecture, but one also experiences inner peace here. Just as it is situated between 18 hills, in the same way, to reach the courtyard of the temple, one has to cross 18 steps. Apart from Ayappan, the temple also has idols of sub-deities like Malikapuratta Amma, Ganesha and Nagaraja. During the festival, Ayappan is anointed with ghee.

दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)

दिनचर्या 

अष्टाङ्गहृदयम् के सूत्रस्थान में दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, का वर्णन है। दिनचर्या से तात्पर्य आहार, विहार और आचरण के नियमों से है। आयुर्वेद यह मानता है कि दिनचर्या शरीर और मन का अनुशासन है और इससे प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है तथा मल पदार्थो के निष्कासन से शरीर शुद्ध होता है। प्रातः काल में सरल दिनचर्या का पालन करने से व्यक्ति के दिन की शुरुआत आनन्दपूर्वक होती है। ताजगी भरी सुबह के लिए यहाँ एक मार्गदर्शिका दी गयी है।
दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)

दिनचर्या हर व्यक्ति के अपने शरीर के हिसाब से अलग-अलग होती है। यह सभी के लिए एक समान नहीं हो सकती है। दिनचर्या की दृष्टि से हर व्यक्ति के जीवन को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है। बचपन (यानी पहले दिन से 14 साल के समय तक), जवानी (14 साल से 60 साल तक), बुढ़ापा (60 साल के बाद का समय)।

बचपन की दिनचर्या

कफ के प्रभाव वालों की दिनचर्या पहले दिन से 14 वर्ष तक

दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)
*  बचपन में कफ का प्रभाव अधिक होता है। उस समय  वात और पित्त कफ की तुलना में बहुत कम होता है । 14 वर्ष तक 8 से 10 घंटे  सोना भी अनुकूल ही माना गया है।
*   बच्चों को नींद 8 से 10 घंटे की लेनी चाहिए। यह नींद यदि दो हिस्सों में ले तो बहुत ही अच्छा। यानी रात में 8 घंटे तक सो जाएं और दिन में दो घंटे तक सो जाए।
*   पहले दिन से 4 वर्ष तक के बच्चे को कम से कम 16 घंटे की नींद लेनी चाहिए। 4 वर्ष से 8 वर्ष के बच्चों को 12 से 14 घंटे की नींद तथा 8 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 से 10 घंटे नींद लेनी चाहिये।
*   ह्रदय से ऊपर मस्तिष्क तक कफ का क्षेत्र है। हृदय के नीचे नाभि तक पित्त का क्षेत्र है। नाभि के नीचे पूरा वात का क्षेत्र है। बच्चों के ज्यादातर रोग छाती के ऊपर वाले (कफ) ही होंगे, जैसे- नाक बहेगी, जुकाम होगा, खांसी होगी यह सब कफ के रोग हैं।  कफ के प्रभाव को संतुलित करने के लिए नींद के बाद दूसरी चीज है बच्चों की तेल मालिश। अतः बच्चों की रोज तेल मालिश होनी ही चाहिए।
*   देसी गाय का घी बच्चों की आंखों में लगा सकते हैं । देसी गाय के घी की उपलब्धता नहीं होने पर आंखों में काजल लगाया जा सकता है। काजल मतलब कार्बन, कार्बन कफ को शांत करने में बड़ी भूमिका निभाता है।
 *    कफ के प्रभाव की स्थिति में खानपान में में दूध सबसे आवश्यक वस्तु है। दूसरी वस्तु है मक्खन, घी, तेल, मट्ठा तथा गुड़ है।यह सब कफ को शांत करते हैं। गुड़ के साथ बच्चों को तिल, मूंगफली आदि वस्तुएं जरूर खिलाना चाहिए। यह सारी वस्तुएं रोज के खानपान में होनी चाहिए। यह सारी वस्तु भारी है और भारी वस्तुएं कफ को संतुलित रखने में मदद करती हैं।
*    मैदा बच्चों को कभी नहीं खिलाना चाहिए। मैदा या मैदे से बनी कोई भी वस्तु बच्चों को नहीं खिलानी चाहिए क्योंकि मैदा की चीज कफ को बिगाड़ने वाली होती है।
*     शरीर की मालिश तेल से हमेशा स्नान करने के पहले होनी चाहिए और मालिश करते समय जब उनके बगल में पसीना आ जाए तो मालिश रोक दें। माथे पर पसीना आने पर भी मालिश रोक देनी चाहिए। नहाते समय कफ को कम करने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए जैसे चने का आटा, चंदन की लकड़ी का पाउडर, मसूर की दाल का आटा, कोई भी मोटा आटा, मूंग की दाल का आटा अर्थात बच्चों का स्नान इन्हीं से कराएं तथा साबुन ना लगाएं। साबुन सोडियम ऑक्साइड यानी कास्टिक सोडा से बनता है जो कि कफ को भड़काने वाली वस्तु है अतः साबुन कभी भी ना लगाएं मुल्तानी मिट्टी से भी स्नान कर सकते हैं।
*  12:00 से 4:00 के बीच में पित्त बढ़ता है। इस समय घी की बनाई हुई वस्तुएं ज्यादा खिलाना चाहिए। शाम को वात कम करने वाली वस्तुएं खिलाए।
*   कफ के प्रभाव वालों की कल्पनाशीलता सबसे ऊंची होती है। बच्चों पर कहानियों का असर बहुत पड़ता है। अतः बच्चों को जैसा बनाना हो उनको वैसी ही लोगों की कहानियां सुनानी चाहिए।
*   कफ प्रकृति में चंचलता होती है, अस्थिरता, चेहरा गोल मटोल होगा। विशेषता में सब कुछ नया नया लगता है, दूसरा दिमाग बहुत ही तीव्र होता है। यही कारण है कि सीखने की सबसे ज्यादा अनुकूल उम्र 14 वर्ष तक ही मानी गई है।

जवानी की दिनचर्या

पित्त के प्रभाव वाले लोगों की दिनचर्या 14 वर्ष से 60 वर्ष वालों की

दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)
*     14 साल से लेकर 60 सालों तक पूरा शरीर पित्त के प्रभाव में होता है। पित्त के लोगों को कफ कम हो जाता है और वात बहुत कम होता है। पित्त प्रकृति के लोगों की नींद 6 घंटे कम से कम और ज्यादा ज्यादा 8 घंटे होनी चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में पित्त प्रकृति के लोगों का जागना बहुत आवश्यक है। अर्थात सुबह 4:00 बजे जाग जाएं।
*     पित्त प्रकृति के लोगों को दांत कसाए अथवा कड़वी और तीक्त वाली वस्तुओं से साफ करना चाहिए। अथवा नीम की दातुन करें। मदार, बबूल, अर्जुन, आम, अमरूद आदि की दातुन करें।
*     सभी पेस्ट मरे हुए जानवरों की हड्डियों से बन रहे हैं। कोलगेट मरे हुए सूअर की हड्डियों से और पेप्सोडेंट बन रहा है मरे हुए गाय की हड्डियों से तथा क्लोज़अप और फॉरहंस बन रहे हैं बकरे और बकरियों की हड्डी से।  अतः पेस्ट का उपयोग ना करें ।
*     त्रिफला चूर्ण का दन्त मंजन किसी भी ऋतु में किया जा सकता है।पित्त प्रकृति के लोगों को मालिश और व्यायाम दोनों करना चाहिए। वात के रोगियों के लिए मालिश पहले व्यायाम बाद में।  पित्त की प्रधानता वाले व्यक्तियों के लिए व्यायाम पहले मालिश बाद में।
*    माताओं बहनों के लिए मालिक जरूरी है। शरीर मालिश के साथ-साथ सिर की कान की और तलवों की ज्यादा मालिश करनी चाहिए। मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। स्नान उबटन आदि से करना चाहिए। इसके बाद भोजन तथा भोजन के बाद 20 मिनट का विश्राम या 10 मिनट वज्रासन। दिन के कार्यकलाप इसके बाद शाम को 6:00 से 7:00 का भोजन। फिर 2 घंटे बाद सोना। पित्त वालों का इसी प्रकार का नियम है।

बुढ़ापे की दिनचर्या

वात के प्रभाव वाले लोगों की दिनचर्या , 60 साल के बाद वाले लोग

*  60 साल से अधिक होने की स्थिति में शरीर में वात प्रबल होता है। इन दिनों में वात की समस्या होना प्राकृतिक है। जो लोग 60 साल या अधिक के हैं उनके लिए व्यायाम निषेध है। जैसे बच्चों को निषेध है। ऐसे लोगों को मालिश बहुत जरूरी है। जैसे बच्चे वैसे ही वात वालों की। मालिश सिर, तलवे और कान की ज्यादा करनी है। यदि व्यायाम करें तो बिल्कुल हल्का करें।
*   वात के लोगों को आराम अधिक से अधिक करना चाहिए। पूजा पाठ और भगवान की भक्ति ज्यादा से ज्यादा करनी चाहिए। वात के लोगों को भागदौड़ बहुत कम करनी चाहिए और दिशा निर्देश देने का कार्य ज्यादा करना चाहिए।

Daily Routine

The routines vary from person to person.  It may not be the same for everyone.  In terms of routine, every person's life is divided into three categories.  Childhood (ie from the first day to 14 years of age), youth (from 14 years to 60 years), old age (after 60 years).

Childhood routine

 From the first day to the age of 14 for the effects of phlegm.

 * Kapha is more effective in childhood.  At that time Vata and Pitta are much less than Kapha.  Sleeping 8 to 10 hours for 14 years is also considered favorable.

 * Children should have 8 to 10 hours of sleep.  If you take this sleep in two parts, it is very good.  That is, sleep for 8 hours at night and sleep for two hours in the day.

 * Children from the first day to 4 years of age should get at least 16 hours of sleep.  Children aged 4 to 8 years should sleep 12 to 14 hours and children from 8 years to 14 years should sleep 8 to 10 hours.
दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)

 * There is a region of phlegm from the heart up to the brain.  There is a region of bile under the heart to the navel.  Below the navel is the entire vata region.  Most of the diseases of children will be on the top of the chest (phlegm), such as runny nose, cold, cough and all these are diseases of phlegm.  To balance the effects of phlegm, another thing to do after sleep is oil massage for children.  Therefore, children should have oil massage daily.

 * Desi cow's ghee can be applied in children's eyes.  If there is no availability of desi cow's ghee, kajal can be applied in the eyes.  Kajal means carbon, plays a big role in calming the carbon phlegm.

  * Milk is the most important item in catering in case of effects of phlegm.  The other thing is butter, ghee, oil, whey and jaggery. These all soothe phlegm.  Children should be fed with sesame, groundnut etc. with jaggery.  All these items should be in daily catering.  This whole item is heavy and heavy items help in keeping the phlegm balanced.

* Maida should never be fed to children.  Children should not feed any product made from refined flour or maida, because all purpose flour is spoiling the phlegm.

 * Massage of the body should always be done before bathing with oil and stop the massage when sweating beside them while doing massage.  Massage should be stopped even after sweating on the forehead.  During bathing, you should use items that reduce phlegm such as gram flour, sandalwood powder, lentil lentil flour, any thick flour, moong dal flour, that is, make the children bathe with them and do not apply soap.  .  Soap is made from sodium oxide, caustic soda, which is an irritant to the phlegm, so never apply soap. You can also bathe with multani mitti.

 * Bile increases between 12:00 and 4:00.  At this time, things made of ghee should be fed more.  In the evening, feed the items that reduce vata.

 * Kapha influences have the highest imaginability.  Stories have a great impact on children.  Therefore, children should be told stories of the same people as they want to be made.


 * Kapha is lightheaded in nature, instability, face will be chubby.  Everything in the specialty seems brand new, the second brain is very intense.  This is the reason that the most favorable age of learning has been considered up to 14 years.

Youth routine

 People with the effects of bile have a routine of 14 to 60 years.

 * From 14 years to 60 years, the entire body is under the influence of bile.  People with pitta get reduced phlegm and Vata is very less.  People of bile nature should sleep at least 6 hours and more than 8 hours.  It is very important to wake up people of Pitta nature in Brahma Muhurta.  That is to wake up at 4:00 am.

 * People of bile nature should be cleaned with gnawing teeth or bitter and hot items.  Or give neem teeth.  Date of Madar, Babool, Arjun, Mango, Guava etc.

 * All pastes are made from dead animal bones.  Colgate is being made from dead pig bones and pepsodent from dead cow bones and closeups and forenses are being made from goat and goat bones.  So do not use paste.
 * Tooth brushing of Triphala powder can be done in any season. People of the pitta nature should do both massage and exercise.  Massage for Vata patients first exercise afterwards.  Exercise for individuals with bile predominance first massage afterwards.
दिनचर्या (आयुर्वेद) || Daily Routine (Ayurved)

 * Owners are essential for mothers and sisters.  Along with body massage, head and ear soles should be massaged more.  Bath should be done after massage.  Bath should be done with boiling etc.  After this, 20 minutes rest or 10 minutes Vajrasana after meals and meals.  Day activities followed by a meal from 6:00 to 7:00 in the evening.  Then after 2 hours sleep.  A similar rule is for bile.

Old age routine 

Routines of people with the effects of Vata, people after 60 years.

 * Vata prevails in the body if it is more than 60 years.  It is natural to have the problem of Vata in these days.  Exercise is prohibited for those who are 60 years or older.  As children are prohibited.  Massage is very important for such people.  Just like the children of Vata.  Massage is to be done more than the head, sole and ear.  If you exercise then lighten up.

* People of Vata should do more and more comfort.  Pooja recitation and devotion to God should be done at most.  People of Vata should reduce Bhagodar very much and should give more work to give directions

ठहराव से भरी हुई परिपक्व स्त्री

ठहराव से भरी हुई परिपक्व स्त्री

Rupa Oos ki ek Boond

"अजीब से सिलसिले हैं तेरे मेरे दरमियान 
फासले भी बहुत हैं और महोब्बत भी बेपनाह...❣️"

ठहराव से भरी हुई परिपक्व स्त्री 

चुंबक सा सम्मोहित करती है 

चेहरे पर उकेरती है 

 उसका बीता जीवन 

अपने गर्भ में छुपाती है 

जीवन के अनेक रहस्य 

जंगल सी धारण करती हैं 

हर एक रूप और रंग की बातें 

जो जिया है उसने अपने इतिहास में 

बच्चों के प्रेम से भरी हुई आंखें उसकी 

थोड़ी थोड़ी सी बैरागी आंखें उसकी 

देह में उभरती गहरी और मोटी लकीरें 

बयां करती हैं उसके अनुभव को 

अनगिनत कविताएं रच रखी है उसने अपने मन में 

जिसकी सुगंध रिसती है कस्तूरी कुंडल सदृश 

सराबोर करती है अपने आसपास के वातावरण को 

यह सभी रहस्य की बातें 

जानता है वह पथिक 

जिसने जुटा कर साहस 

खोला है उसके मन की परतों को 

हृदय पवित्र किया है 

अपने आध्यात्मिक ज्ञान से 

सु....नीति से भरी हुई ऐसी स्त्री

प्रेम बैराग और वात्सल्य का प्रमाण है।

Rupa Oos ki ek Boond.

"शिद्दत से निभाइए अपने किरदार को,
कहानी तो एक दिन सबको होना है .....❤️❤️"