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बीरबल ने खुद को धोखा दिया - Birbal ne Khud ko dhokha diya
अद्भुत संसार - 22 - अमेजन नदी (Amazon River)
अमेजन नदी (Amazon River)
साउथ अमेरिका की अमेजॉन नदी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। अमेजॉन नदी को जैव विविधता का केंद्र माना जाता है, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में जीव - जंतु और वनस्पतियां पाई जाती हैं। अमेजॉन नदी के घने जंगल धरती के पर्यावरण को संतुलित रखने में अहम् भूमिका निभाते हैं, यही कारण है कि इसे "धरती का फेफड़ा" कहा जाता है।
प्रकृति का अनोखा रूप
साउथ अमेरिका में अमेजॉन नदी के करीब प्रकृति प्रेमियों को ज्यादा मजा आता है। धरती का दिल कहे जाने वाली अमेजॉन नदी पर सबसे बड़े वर्षावन हैं। यह वन काफी घने हैं और पृथ्वी के पर्यावरण संतुलन के लिए खास भूमिका अदा करते हैं।
भूमिगत नदी (अमेजॉन नदी के नीचे एक और नदी)
ब्राजील के वैज्ञानिकों ने अमेजॉन नदी के सतह के लगभग 13000 फुट की गहराई पर एक और विशाल जलधारा का पता लगाया है। भारतीय मूल के भूगर्भ वैज्ञानिक डॉक्टर वलिया हमजा की अगुवाई में खोजी गई इस नदी का नाम उन्हीं के नाम पर "हमजा" रखा गया है।डॉक्टर हमजा ने बताया कि सरकारी तेल कंपनी 'पेट्रोब्रास' ने 1970 के दशक में इस क्षेत्र में 242 कुएं खोदे थे जिनके तापमान में काफी अंतर था। इसी के आधार पर वैज्ञानिकों ने क्षेत्र की जांच की, जिसमें अमेजॉन नदी के ठीक नीचे विशाल जलधारा का पता चला जो अनुमानतः अमेजॉन नदी के बराबर ही लंबा है।ऐसा माना जा रहा है कि इस भूमिगत नदी के कारण ही अमेजन नदी के मुहाने पर पानी अपेक्षाकृत रूप से थोड़ा कम खारा है, अभी और विस्तृत खोज वैज्ञानिकों के द्वारा की जा रही है।
झीलों की खूबसूरती
अमेजॉन नदी करीब लाखों वर्ष पहले एक विपरीत दिशा में प्रशांत महासागर की ओर बहा करती थी लेकिन अब यह नदी अटलांटिक महासागर में मिलती है। इसमें आज बड़ी संख्या में झीलें बन चुकी हैं इन झीलों के किनारे शाम के समय वक्त बिताने का एक अलग ही मजा है।
नदी के किनारे पर कई देश
अमेजॉन नदी लगभग 6400 से 7000 किलोमीटर लंबी है। इस नदी के किनारे पर ब्राजील, गयाना, फ्रेंच गयाना, बोलीविया, पेरू, इक्वेडोर, कोलंबिया, वेनेजुएला और सूरीनाम जैसे देश बसे हैं। इसलिए इस नदी की यात्रा में इसके स्थित किनारों पर अलग-अलग देश के लोग मिलते हैं।
नाव से रोमांचक यात्रा
अमेजॉन नदी की यात्रा बहुत ही आकर्षक लगती है, क्योंकि इस नदी में पुल ना होने से नाव का ही सहारा होता है। हालांकि अमेजॉन की सहायक करीब 1100 नदियों में शामिल रिओनीग्रो पर 2010 में एक पुल का निर्माण हुआ है, यह सहायक नदी पर बना पहला पुल है।
डॉल्फिन का घर अमेजॉन
अमेजॉन नदी को डॉल्फिन का घर भी कहा जाता है। डॉल्फिन इस नदी को गुलाबी रंग वाली छवि प्रदान करती हैं। यहां डॉल्फिन जैसी विभिन्न प्रजातियों के जीव पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
पानी काफी स्वादिष्ट
अमेजॉन नदी का पानी काफी स्वादिष्ट है। दुनिया के समुद्रों में जितना मीठा पानी आता है उसमें अमेजॉन का योगदान 20% है।
एनाकोंडा
दुनिया का सबसे बड़ा सांप एनाकोंडा अमेजॉन नदी में ही रहता है। एनाकोंडा अक्सर बड़े जानवरों जैसे कि बकरी समेत मनुष्य को भी निगल जाता है।
जनजातियां
अमेजॉन नदी के वर्षा वनों में लगभग 400 से 500 जनजातियों के लोग रहते हैं, जो कि दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासी हैं।माना जाता है कि इनमें से लगभग 50 जनजातियों के लोग ऐसे हैं जो कभी भी बाहरी लोगों के संपर्क में नहीं आए हैं।
उद्गम स्थान
ज्यादातर नदियों की तरह अमेजॉन नदी के उद्गम स्थान को लेकर मतभेद पाए गए हैं। अलग-अलग खोज में इस नदी के भी शुरुआती स्थान को अलग-अलग बताया गया है।
इंग्लिश विकिपीडिया के अनुसार इस नदी का शुरुआत स्थान पेरू देश में स्थित रियो मेंनटारो नदी को माना गया है।
Amazon River
The Amazon River of South America is the second largest river in the world. The Amazon River is considered a center of biodiversity, as a large number of fauna and flora are found here. The dense forests of the Amazon River play an important role in keeping the Earth's environment balanced, which is why it is called the "lung of the Earth".
Unique form of nature
Nature lovers enjoy more near the Amazon River in South America. The largest rainforest on the Amazon River, called the heart of the Earth. These forests are quite dense and play a special role for the environmental balance of the Earth.
Underground River (another river under the Amazon River)
Brazilian scientists have detected another massive stream at a depth of about 13000 feet of the surface of the Amazon River. Discovered under the leadership of Indian origin geologist Dr. Valia Hamza, the river is named after him as "Hamza". Doctor Hamza said that the state oil company 'Petrobras' dug 242 wells in the region in the 1970s. Those whose temperature differed significantly. Based on this, scientists investigated the area, which found a huge stream just below the Amazon River, which is estimated to be as long as the Amazon River. It is believed that this underground river has caused water at the mouth of the Amazon River. Relatively slightly less saline, more detailed research is being done by scientists.
Beauty of lakes
The Amazon River used to flow in an opposite direction to the Pacific Ocean about millions of years ago, but now it joins the Atlantic Ocean. Today a large number of lakes have been built in it, spending time in the evening on the banks of these lakes is a different fun.
Many countries on the banks of the river
The Amazon River is approximately 6400 to 7000 kilometers long. Countries like Brazil, Guyana, French Guiana, Bolivia, Peru, Ecuador, Colombia, Venezuela and Suriname are inhabited on the banks of this river. Therefore, people from different countries meet on the banks of this river in its journey.
Exciting journey by boat
A trip to the Amazon river looks very attractive, because the boat is supported by the lack of a bridge in this river. Although a bridge was built in 2010 on Rionigro, which comprises about 1100 tributaries of the Amazon, it is the first bridge on the tributary.
Dolphin house amazon
The Amazon River is also known as the home of the dolphin. The dolphins give this river a pink color image. Here various species of species like dolphin attract tourists.
The water is delicious
The water of the Amazon River is quite tasty. Amazon contributes 20% of the world's fresh water.
Anaconda
Anaconda, the world's largest snake, lives in the Amazon River. Anaconda often swallows humans, including large animals such as goats.
Tribes
About 400 to 500 tribes live in the rain forests of the Amazon River, which are native to South America. It is believed that about 50 of these tribes have people who have never been exposed to outsiders.
Point of origin
Like most rivers, differences have been found over the origin of the Amazon River. In different search, even the initial location of this river has been told differently.
According to the English Wikipedia the starting point of this river is the Rio Mentaro River located in the country of Peru.
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)
सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple)
सोमनाथ मंदिर भारत वर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में स्थित अत्यंत प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर है। सोमनाथ मन्दिर भारतीय इतिहास तथा हिंदुओं के चुनिंदा और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। सोमनाथ मंदिर को आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।
यह मंदिर धर्म के उत्थान पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है।अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली होने के कारण इतिहास में इसे कई बार तोड़ा और पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत के स्वतंत्रता के पश्चात लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने करवाया। जिसके बाद साल 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर समर्पित हिंदुओं में ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया था।फिर साल 1962 में भगवान शिवजी का यह पवित्र तीर्थ धाम पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने इस पवित्र तीर्थ धाम को राष्ट्र की आम जनता को समर्पित कर दिया और अब यह मंदिर लाखों लोगों के आस्था का केंद्र बन चुका है।
सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात 7:30 से 8:30 बजे 1 घंटे का लाइट एंड साउंड शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोक कथा के अनुसार श्री कृष्ण जी ने यहीं पर देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ जाता है।
चैत्र, भाद्रपद और कार्तिक माह में श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीनों महीने में यहां श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है। इसके अलावा यहां 3 नदियां हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है, इस त्रिवेणी में स्नान का विशेष महत्व होता है।
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट-
सोमनाथ मंदिर के व्यवस्था व संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट करता है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन और बाग बगीचे दे कर आय का प्रबंध किया है।
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथाएं-
प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों के कथानक अनुसार सोम अर्थात चंद्र ने, दक्ष प्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था, लेकिन उनमें से वे रोहिणी नामक पत्नी को अधिक प्यार और सम्मान देते थे। अपेक्षित और अपमानित अन्य कन्याओं ने अपने पिता से शिकायत की तो पुत्रियों की वेदना से पीड़ित राजा दक्ष ने चंद्र देव को समझाने का प्रयास किया पर वह नहीं माने। प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को "क्षयी" होने का श्राप दे दिया ।
सभी देवता चंद्रमा की व्यथा से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर शाप निवारण का उपाय पूछने लगे। ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से शंकर जी की उपासना करना एकमात्र उपाय बताया। चंद्रमा के छह मास पूजा करने पर शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया। राजा दक्ष के अभिशाप से मुक्त होकर चंद्रदेव ने भगवान शिव से माता पार्वती के साथ गुजरात के इस स्थान पर निवास करने की आराधना किया, जिसके बाद भगवान शिव अपने प्रिय भक्त चंद्र देव की आराधना को स्वीकार किया और माता पार्वती के साथ ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां आकर रहने लगे।
जिसके बाद पावन प्रभास क्षेत्र में चंद्रदेव यानी सोमराज ने भगवान शिव के इस भव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया, जिसकी महिमा और प्रसिद्धि पूरे विश्व में फैली हुई है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख हिंदू धर्म के प्रसिद्ध महाकाव्य श्रीमद्भागवत, महाभारत और स्कंद पुराण आदि में भी की गई है। सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग की दर्शन और पूजा से सब पापों से निस्तार और मुक्ति की प्राप्ति होती है।
इस स्थान को "प्रभास पट्टन" के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनके पैर के तलवे में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर अनजाने में तीर मारा था तब ही श्रीकृष्ण देह त्याग कर यहीं से वैकुंठ गमन किए। इस स्थान पर बड़ा ही सुंदर श्री कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण-
सोमनाथ मंदिर ईसा पूर्व भी अस्तित्व में था, जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में बल्लभीपुर के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जूनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईसवी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर दूर तक फैली थी। अरब यात्री 'अलबरूनी' ने अपनी "यात्रा वृतांत" में इसका विवरण लिखा, जिस से प्रभावित होकर महमूद गजनबी ने सन् 1024 में कुछ 5000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिए गए। इतिहास में गजनवी के इस बर्बरता को लोग कभी नहीं भूल पाएंगे।
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। सन् 1093 में सिद्ध राजा जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया । 1168 में विजयेश्वर कुमार पाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण में अपना योगदान दिया था।
सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दोबारा तोड़ दिया और सारी धनसंपदा लूटकर ले गया ।
मंदिर को फिर से हिंदू राजाओं ने बनवाया,लेकिन सन 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। उसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया ।
बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1706 में इसे फिर गिरा दिया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा, पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन् 1026 में जो महमूद गजनवी ने शिवलिंग को खंडित किया वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को सन 1300 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखा देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं, महमूद गजनवी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया, तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।
सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम बार मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद पुनर्निर्माण-
सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधारशिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपनी पति की स्मृति में उनके नाम से 'दिग्विजय द्वार' बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग और पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर के निर्माण में श्री पटेल जी का बड़ा योगदान रहा।
यह मंदिर गर्भगृह, सभा मंडप और नृत्य मंडप तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इस मंदिर का शिखर 150 फीट ऊंचा है, इस के शिखर पर स्थित कलश का भार 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊंची है।
मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है, उसके ऊपर एक तीर रखकर यह संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। इस स्तंभ को 'बाण स्तंभ' कहते हैं।
भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है जो कि पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बेहद अच्छे से बनाए रखती है।
सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है साथ ही उत्तर द्धार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक सरोवर बना हुआ है और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है।
ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमनाथ मंदिर के पास स्थित नदी में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।
Somnath Temple
Somnath Temple is a very ancient and historical Shiva temple located in the state of Gujarat at the western end of India. Somnath Temple is one of the most important and important temples of Indian history and Hindus. The Somnath temple is still considered the first Jyotirlinga among the 12 Jyotirlingas of India. Located in the port of Veraval in Saurashtra region of Gujarat, this temple is said to have been built by Chandradeva himself, which is mentioned in the Rigveda.
This temple has been a symbol of the history of the rise and fall of religion. Being extremely rich and influential, it has been broken and renovated many times in history. The reconstruction of the present building started after the independence of India by Iron Man Sardar Vallabhbhai Patel. After this, in 1951, the first President of the country, Shri Rajendra Prasad Ji, installed the Jyotirlinga among the Hindus dedicated to Somnath Temple. After this, on 1 December 1995, former President of India, Shri Shankar Dayal Sharma dedicated this holy pilgrimage to the general public of the nation and now this temple has become the center of faith of millions of people.
Somnath Temple is a world famous religious and tourist destination. A 1 hour light and sound show runs from 7:30 am to 8:30 pm in the temple courtyard, in which the history of Somnath temple is very beautifully illustrated. According to folklore, Shri Krishna ji committed murder here. Due to this, the area becomes more important.
Shraddha is said to have special significance in Chaitra, Bhadrapada and Kartik month. There is a special crowd of devotees here during these three months. Apart from this, there is Mahasangam of 3 rivers Deer, Kapila and Saraswati, bathing in this Triveni has special significance.
Somnath Temple Trust-
The Somnath Trust undertakes the work of arranging and operating the Somnath Temple. The government has managed the income by giving land and orchards to the trust.
Mythology of Somnath Temple-
According to the story of ancient Hindu scriptures, Som ie Chandra married 27 daughters of Daksha Prajapati Raja, but among them he gave more love and respect to his wife named Rohini. When the expected and disgraced other girls complained to their father, King Daksha, suffering from the anguish of the daughters, tried to convince Chandra Dev but he did not agree. When the attempt failed, Daksha cursed the moon to be "decaying".
All the gods, distressed by the agony of the moon, went to Brahma Ji and started asking for a solution to curse. Brahma Ji said that worshiping Shankar Ji with the chanting of Mahamrityunjaya in Prabhas region was the only solution. On worshiping the moon for six months, Shankar appeared and he gave the moon the opportunity to destroy one art every day and grow daily in the other side. Freed from the curse of King Daksha, Chandradeva prayed to Lord Shiva to stay at this place in Gujarat with Mata Parvati, after which Lord Shiva accepted the worship of his beloved devotee Chandra Dev and accompanied Jyoti Parvati as Jyotirlinga. They came and started living here.
After this, in the holy Prabhas region, Chandradev i.e. Somaraja built this magnificent Somnath temple of Lord Shiva, whose glory and fame is spread all over the world. Somnath Jyotirlinga is also mentioned in the famous epic of Hinduism, Shrimad Bhagavat, Mahabharata and Skanda Purana etc. The philosophy and worship of Someshwar Jyotirlinga gives relief and freedom from all sins.
This place is also known as "Prabhas Pattan". It is believed that Shri Krishna was resting on the Bhaluka Tirtha, when a hunter had unknowingly shot an arrow at the soles of his foot as Padmachinh, the deer's eye, only then did Shri Krishna renounce his body and leave here. A very beautiful Shri Krishna temple is built at this place.
Invasion of Somnath Temple-
The Somnath temple existed even before BC, where the temple was rebuilt for the second time in the seventh century by the Maitrak kings of Ballabhipur. In the eighth century Junaid, the Arabic governor of Sindh, sent his army to destroy it. The Gurjara Pratihara king Nagabhatta rebuilt it for the third time in 815 AD. The glory and glory of this temple spread far and wide. The Arab traveler 'Alberuni' wrote a description of it in his "travelogue", influenced by which Mahmud Ghaznabi attacked the Somnath temple in 1024 with some 5000 companions, looted and destroyed his property. 50000 people were offering prayers inside the temple with folded hands, often all were murdered. People will never forget this barbarism of Ghaznavi in history.
After this it was rebuilt by Raja Bhima of Gujarat and Bhoja of Malwa. In 1093, Siddha King Jai Singh also supported the construction of the temple. In 1168, Vijayeshwar Kumar Pal and Raja Khangar of Saurashtra also contributed to the beautification of the Somnath temple.
In 1297, when Nusrat Khan, commander of Sultan Alauddin Khilji of the Delhi Sultanate attacked Gujarat, he broke the Somnath temple again and looted all the wealth.
The temple was rebuilt by the Hindu kings, but in 1395, the Sultan of Gujarat Muzaffar Shah broke the temple again and plundered all the offerings. Then in 1412 his son Ahmed Shah did the same.
Later Mughal emperor Aurangzeb dropped it again in 1706. The temple was repeatedly refuted and renovated, but the Shivling remained unchanged. But in 1026, the Mahmud Ghaznavi ruined the Shivling was the Adi Shivling. After this, the Shivling, which was established, was disbanded in 1300 by the army of Alauddin Khilji. After this, many times the temple and Shivling were fragmented. It is said that the Devdwaras kept in the fort of Agra belong to the Somnath temple, Mahmud Ghaznavi took these gates with him during the robbery in 1026 AD. When a large part of India came under the control of the Marathas, another temple of Somnath Mahadev was built by Rani Ahilyabai of Indore in 1783 to offer prayers at a distance from the original temple.
The new temple is built by the temple trust at the original temple site of Somnath Temple. The temple was last built at this place by Raja Kumar Pal. Saurashtra Chief Minister Uchhangarai Naval Shankar Dhebar excavated here on 19 April 1940. After this, the Archaeological Department of the Government of India installed the Jyotirlinga of Shiva on the Brahmashila obtained by excavation.
Reconstruction after India's independence-
Former King of Saurashtra Digvijay Singh laid the foundation stone of the temple on 8 May 1950 and on 11 May 1951, the first President of India, Dr. Rajendra Prasad installed the Jyotirlinga in the temple. In 1970, the Rajmata of Jamnagar built a 'Digvijay Dwar' in her husband's memory in her name. This gate has a highway and a statue of former Home Minister Sardar Vallabhbhai Patel. Shri Patel ji contributed a lot in the construction of Somnath Temple.
The temple is divided into three major parts of the sanctum sanctorum, sabha mandapa and dance pavilion. The shikhara of this temple is 150 feet high, the Kalash situated on its peak weighs 10 tons and its flag is 27 feet high.
To the south of the temple is a pillar along the sea, with an arrow placed above it indicating that there is no earth terrain between the Somnath temple and the South Pole. This pillar is called 'arrow pillar'.
Located in this famous temple dedicated to Lord Shiva, Shivalinga has radioactive properties which maintains its balance above the earth very well.
A very beautiful Ganesh ji temple is situated in the premises of Somnath Temple and the statue of Aghorling has been installed outside the north dhar. This holy pilgrimage place of Hindus has a lake called Gaurikund and a Shivling is installed near the lake.
It is believed that by simply visiting here, all the sorrows and pains of the devotees are removed and all their wishes are fulfilled. Bathing in the river situated near the Somnath temple provides relief from many diseases.
Ayurveda The Synthesis of Yoga and Natural Remedies - 81 - अमरूद (Guava)
अमरूद (Guava)
अब आज की हेडिंग "अमरुद" देखकर आप सभी इस सोच में ना पड़ जाईयेगा कि मैं अमरूद के बारे में आपको क्या बताऊंगी? जिसके बारे में सभी जानते हैं। पर ऐसा नहीं है, अमरूद के संबंध में भी कुछ बातें हैं, जो सभी लोगों को जानकारी नहीं होगी। आज के इस लेख में अमरूद के फायदे, नुकसान, औषधीय गुण और सेवन के तरीकों के बारे में जानेंगे।
अमरूद (Guava) |
अमरूद (Guava) एक साधारण फल है, जो हर जगह आसानी से उपलब्ध है। यह एक हाई एनर्जी फ्रूट है, जिसमें भरपूर मात्रा में विटामिंस और मिनरल्स पाए जाते हैं। अमरुद हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है। यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। अतः इसे घरेलू नुस्खों के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
अमरुद में मस्तिष्क को सबल करने वाला, माताओं के दूध बढ़ाने वाला, मल को रोकने वाला, पौरुष बढ़ाने वाला, प्यास को शांत करने वाला, हृदय को बल देने वाला, कृमियों का नाश करने वाला, उल्टी रोकने वाला गुण होता है। यह पेट को साफ करता है और कफ निकालता है। मुंह के छाले पर, मस्तिष्क एवं किडनी के संक्रमण, बुखार, मानसिक रोगों तथा मिर्गी आदि में अमरूद का सेवन लाभप्रद होता है
जानते हैं अमरूद के औषधीय गुणों के बारे में
अमरूद (Guava) |
# पेट दर्द
* पेट दर्द की समस्या होने पर अमरूद की कोमल पjत्तियों को पानी में पीसकर पीने से आराम मिलता है।
* अगर एसिडिटी के कारण पेट में दर्द हो या जलन हो तो अमरूद के पत्ते का काढ़ा बनाकर पीने से बहुत लाभ मिलता है।
# कब्ज
* प्रातः काल नाश्ते में अमरुद को काली मिर्च, काला नमक तथा अदरक के साथ खाने से कब्ज की समस्या दूर होती है।
* दोपहर के खाने के समय अमरुद का सेवन करने से आंत के दर्द और अतिसार में लाभ होता है।
# सर्दी जुकाम
अमरुद के नियमित सेवन से सर्दी - जुकाम जैसे समस्याओं से निजात मिलती है। सूखी खांसी होने पर और कफ ना निकलने पर, सुबह एक ताजे अमरुद को चबा चबा कर खाने से दो-तीन दिन में लाभ होता है।
# उल्टी रोकने में
अमरूद के पत्तों का काढ़ा 10 मिलीलीटर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
# हिमोग्लोबिन की कमी
अमरूद में प्रचुर मात्रा में आयरन होता है। अतः नियमित रूप से अमरूद के सेवन से हिमोग्लोबिन की कमी दूर होती है।
# त्वचा के लिए
अमरूद की पत्तियों का लेप लगाने से कील मुंहासे दूर होते हैं और त्वचा पर निखार आती है। यह त्वचा की गंदगी को दूर करता है और तैलीय त्वचा को नियंत्रित कर मुहांसों को नहीं होने देता।
# मुंह के रोग और दांत दर्द
* अमरूद के कोमल पत्तों को कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक होते हैं।
* अमरुद के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से तथा अमरूद के तीन चार पत्तों को चबाने से दांत के दर्द में राहत मिलता है।
* अमरूद के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें नमक मिलाकर मुंह में चार पांच मिनट तक रखने से मुंह के घाव तथा मुंह की दुर्गंध में लाभ मिलता है तथा दांत स्वस्थ रहते हैं।
# रोग प्रतिरोधकता
नियमित रूप से अमरूद के सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ती है।
# कोलेस्ट्रोल
अमरुद मेटाबॉलिज्म को सही रखता है, जिससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।
अमरूद (Guava) |
बहुत लोगों के मन में यह सवाल होता है कि सर्दियों के मौसम में अमरूद का सेवन करना चाहिए या नहीं?
सर्दियों के मौसम में अमरूद खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह पाचन तंत्र को ठीक रखता है और साथ ही इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। अतः सर्दियों के दिन में रोजाना ताजे अमरूद का सेवन लाभप्रद है।
अमरूद का नुकसान
वैसे तो अमरूद का कोई भी विशेष नुकसान नहीं है, परंतु कुछ जगहों पर इसके अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए।
* शीत प्रकृति वाले लोगों को जिनका आमाशय कमजोर हो, उन्हें अमरूद के सेवन से बचना चाहिए।
* गर्भवती महिलाओं तथा विशेषकर स्तनपान कराने वाली माताओं को अमरूद के ज्यादा सेवन से बचना चाहिए। यहां यह बात स्पष्ट होनी चाहिए की गर्भवती महिला में आयरन की कमी को पूरा करने के लिए अमरूद का सेवन करना चाहिए।(अत्यधिक सेवन नहीं करना है)
* किडनी की कुछ समस्याओं में जब पोटेशियम का सेवन ना करने की सलाह दी जाती है तब अमरूद नहीं खाना चाहिए।
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Guava
Now seeing today's heading "Guava", all of you will not get into thinking that what will I tell you about guava? About which everyone knows But it is not so, there are some things regarding guava, which will not be known to all people. In today's article, we will learn about the advantages, disadvantages, medicinal properties and methods of consumption of guava.
Guava is a simple fruit, easily available everywhere. It is a high energy fruit, which is rich in vitamins and minerals. Guava also makes our immune system strong. It is also full of medicinal properties. Hence it is also used as a home remedy.
अमरूद (Guava) |
Guava has brain-strengthening, mother's milk-enhancer, stool-inhibiting, Masculine, thirst-calming, heart-strengthening, worms-destroying, vomiting-inhibiting properties. It cleanses the stomach and removes phlegm. Consuming guava on mouth ulcers, brain and kidney infections, fever, mental diseases and epilepsy etc. is beneficial.
Know about the medicinal properties of guava
# stomach pain
* In the case of stomach pain, drinking soft leaves of guava in water provides relief.
* If there is pain or burning sensation in the stomach due to acidity, drinking a decoction of guava leaves is very beneficial.
# Constipation
* Constipation is cured by eating guava with black pepper, black salt and ginger in the morning breakfast.
* Taking guava at lunch time is beneficial in intestinal pain and diarrhea.
# Cold and cough
Regular intake of guava relieves problems like colds and colds. In the case of dry cough and no phlegm, chewing a fresh guava in the morning and eating it in two to three days is beneficial.
# To stop vomiting
Vomiting stops by drinking 10 ml decoction of guava leaves.
# Himoglobin deficiency
Guava contains abundant iron. Therefore, the intake of guava regularly removes hemoglobin deficiency.
# To skin
Applying a paste of guava leaves removes pimples and improves skin. It removes the dirt of the skin and controls oily skin and does not allow acne to occur.
# Mouth diseases and toothache
* Mouth blisters are cured by mixing soft leaves of guava with catechu and chewing it like betel leaf.
* Make a decoction of guava leaves and gargle with alum and chew three to four leaves of guava to relieve toothache.
* Make a decoction of guava leaves and mix salt in it and keep it in the mouth for four to five minutes, it provides benefits in mouth sores and mouth odor and teeth remain healthy.
# Immunity
Regularly consuming guava increases immunity.
# Cholesterol
Guava maintains metabolicism, thereby controlling cholesterol levels in the body.
अमरूद (Guava) |
Many people have the question that should we consume guava in the winter season?
Eating guava in winter season is very beneficial for health. It keeps the digestive system fine and at the same time the antioxidants and vitamin C present in it enhances the body's immunity. Therefore, it is beneficial to consume fresh guava daily during winter.
Side Effects of Guava
Although there is no specific loss of guava, but in some places excessive intake should be avoided.
* People with cold nature who have weak stomach should avoid consumption of guava.
* Pregnant women and especially lactating mothers should avoid excessive consumption of guava. It should be clear here that guava should be consumed to meet iron deficiency in a pregnant woman. (Do not consume excessively)
* In some kidney problems, when it is advised not to consume potassium, then guava should not be eaten.
अमरूद (Guava) |
Sunday.. इतवार
इतवार (Sunday)
हर तकलीफ में ताकत की दवा देते हैं हैं...❤️❤️
सर्दियां
हवा में हल्की नमी सी है...
सूरज बादलों के आगोश में छुपा,
अलसाया सा मुस्कुराया सा...
चिड़िया भी चहचहा रही है,
ठिठुरी दबी आवाजों में...
सदाबहार, गुलदाउदी, गेंदा,
गुलाब संग मैदान में जमे हुए हैं...
बिजली की तार पर बैठी गिलहरी,
किट किट करती मुझे घूर रही है...
मानो, बुला रही हों मुझे,
संग खेलने खेल निराले...
आखिर गुनगुनी सर्दियां लौट रहीं हैं,
ठिठुरती ठंड दस्तक दे रही है।।
महफिल में जो लोग हमें दाद देने से कतराते हैं
सुना है, तन्हाइयों में वो हमारे शेर गुनगुनाते हैं...
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Winter
There is light humidity in the air…
The sun hid in the clouds
I feel like a smile ...
The bird is also chirping,
In chirpy voices ...
Evergreen, Chrysanthemum, Marigold,
Roses are frozen in the ground with ...
Squirrel sitting on electric wire
Staring at me and doing somevoice...
As if you are calling me,
Playing games with weird ...
Finally the lukewarm winter is returning,
The freezing cold is knocking.
खरदीय हिरण के वध की कथा (The story of khardiya deer )
खरदीय हिरण के वध की कथा
किसी वन में एक हिरण रहता था, जो हिरणों के सारे गुण और कलाबाजियों में अत्यंत निपुण था। एक दिन उसकी बहन अपने नन्हे हिरण खरदीय को लेकर उसके पास पहुंची और उसने उससे कहा - "भाई तुम्हारा भांजा बहुत निठल्ला है और हिरनों के गुणों से भी अनभिज्ञ है। बहुत अच्छा होगा अगर तुम अपने सारे गुण मेरेेेे खरदीय को सिखा दो।" हिरण ने अपनेे नन्हें से भांजेे को एक निश्चित समय पर प्रतिदिन आने के लिए कहा और उन लोगों का आदर सत्कार कर विदा कर दिया।
अगले दिन वह निर्धारित समय पर अपने भांजे के आने की प्रतीक्षा करता रहा, मगर वह नहीं पहुंचा। इस प्रकार 7 दिन व्यतीत हो गए और वह उसकी प्रतीक्षा करता रहा, परंतु वह नहीं आया। आठवें दिन खरदीय की मां आई जिसका रो - रो कर बुरा हाल हो रखा था। वह रो - बिलख रही थी और अपने भाई को ही दोषी ठहराते हुए भला बुरा कहते हुए यह सुना रही थी कि उसने ही अपने भतीजे को कोई गुण नहीं सिखाया था, जिससे वह शिकारियों के जाल में फंसा फस गया। वह अपने पुत्र को हर हाल में मुक्त कराना चाहती थी।
तब हिरण ने अपनी बहन को बताया कि उसका बेटा बदमाश था, उसमें सीखने की लगन ही नहीं थी। वह उसके पास कुछ भी सीखने के लिए कभी भी पहुंचा ही नहीं था और अपनी मां की आंखों में ही धूल झोंकता रहा था। वह अब अपने कर्मों के अनुरूप ही दंड का भागीदार था क्योंकि जिस जाल में वह फंसा था वहां से उसे निकाल पाना असंभव था।
दूसरे दिन शिकारियों ने खरदीय को पकड़कर पैनी छुरी से उसका वध कर दिया और उसकी खाल और मांस को अलग-अलग शहरों में बेचने ले कर चल पड़े।
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The story of khardiya deer
In a forest lived a deer, who was very proficient in all the qualities and acrobatics of deer. One day his sister came to him with his little deer Khadiyya and he said to him - "Brother, your nephew is very weak and ignorant of the qualities of deer. It would be very nice if you teach me all my qualities to Khadiyya." The deer asked his grand nephew to come every day at a certain time and gave respect to those people.
The next day he kept waiting for his nephew to arrive at the scheduled time, but he did not arrive. Thus 7 days had passed and he kept waiting for it, but he did not come. On the eighth day came Khardiya's mother, who had a bad condition after crying. She was crying and blaming her brother and telling her good and bad that she had not taught her nephew any virtues, due to which he got caught in the trap of poachers. She wanted to free her son.
Then the deer told his sister that his son was a crook, he had no passion to learn. He had never reached her to learn anything and was throwing dust in his mother's eyes. He was now a participant in punishment according to his deeds because it was impossible to get him out of the trap in which he was trapped.
The next day the poachers caught Khardiya and killed him with a sharp knife and went to sell his skin and flesh in different cities.
Ayurveda The Synthesis of Yoga and Natural Remedies - 80- मूली (Redish)
मूली (Radish)
मूली खाने के फायदे, नुकसान, स्वास्थ्य लाभ, मूली से रोगों का इलाज तथा मूली के साथ विरुद्ध आहार।
मूली से तो आप सभी परिचित होंगे, जो सर्दियों में हमारे खाने को और स्वादिष्ट बना देती है। मूली को लोग बहुत पसंद से खाते भी हैं, क्योंकि लोगों को यह पता है कि मूली के अनेक फायदे हैं। पर आज हम यहां मूली के औषधीय गुणों के बारे में जानेंगे, जिसके बारे में कुछ लोगों को ही पता होगा। आप भी अगर मूली का इस्तेमाल करते हैं तो आपको मूली से होने वाले फायदे, नुकसान, औषधीय गुण तथा मूली के साथ क्या सेवन नहीं करना चाहिए, के बारे में अवश्य जानना चाहिए।
मूली हमारे सलाद का आम हिस्सा है, जो लगभग सभी घरों में इस्तेमाल होता है। मूली को कच्चा और पका करके भी खाया जाता है। मूली के बीजों से प्राप्त तेल का उपयोग कई उत्पादों और स्वास्थ्य प्रयोग के लिए भी किया जाता है।
मूली सेहत के लिए बहुत गुणकारी है। यह सलाद, सब्जी और परांठा के रूप में हमारे भोजन में उपलब्ध होती है। अक्सर लोगों की शिकायत होती है कि मूली खाने में तो स्वादिष्ट लगती है, परंतु इसके खाने के बाद पूरा दिन खराब हो जाता है क्योंकि पेट में लगातार गैस बनती है। अगर आपको मूली खाने का सही तरीका पता हो तो यह टेस्ट के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत अच्छी है।
जानते हैं मूली के सेवन से संबंधित विषय के बारे में :-
# रात को मूली कभी नहीं खाना चाहिए
मूली आयरन का अच्छा स्रोत है। मूली के पाचन के लिए शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। अतः इसे खाने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। इस कारण रात में इसका पाचन ठीक से नहीं होता। अतः मूली का सेवन हमेशा दिन के वक्त ही करना चाहिए।
# खाली पेट मूली ना खाएं
खाली पेट अर्थात सुबह सबसे पहले कभी भी मूली ना खाएं। आयरन की अधिकता के कारण खाली पेट मूली के सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। अतः मूली का सेवन हमेशा खाने के बाद करें। कई बार पेट दर्द तथा गैस बनने की समस्या होती है।
# मूली के साथ विरुद्ध आहार
* मूली के साथ कभी भी दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। यह विरुद्ध आहार है और इससे पाचन संबंधी परेशानी हो सकती है। लंबे समय तक अगर इसका सेवन किया जाए तो स्किन डिजीज होने की संभावना बढ़ जाती है।
* मूली के साथ कभी भी मछली का सेवन नहीं करना चाहिए।
* काले चने के साथ मूली का सेवन नहीं करना चाहिए।
जानते हैं इसके औषधीय गुणों के बारे में :-
# हिचकी की समस्या में
मूली के जूस का या सूखी मूली के काढ़े का सेवन 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में, 1 - 1 घंटे के अंतराल पर करने से हिचकी की समस्या में लाभ होता है।
# पीलिया रोग में
* मूली लीवर और पेट के लिए बहुत फायदेमंद होती है। यह रक्त को शुद्ध करती है। पीलिया रोग में रोजाना कच्ची मूली का सेवन करना चाहिए। 60 मिलीलीटर मूली के पत्ते का रस व 15 ग्राम खांड मिलाकर पीने से पीलिया रोग में आराम होता है।
* मूली के ताजे पत्तों को जल में पीसकर उबाल लें। इसमें दूध की तरह झाग बनता है, इसको छानकर दिन में तीन बार पीने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
# एनीमिया के इलाज में
मूली के पूरे पत्ते के साथ मूली के रस को निकाल लें। दिन में तीन बार 20 - 20 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से एनीमिया रोग में फायदा होता है।
# पथरी की समस्या में
* मूली के पत्ते का 100 मिलीलीटर रस दिन में तीन बार 30 -30 मिलीलटर करके पीने से पथरी टूटकर यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाती है।
* मूली के बीजों को 1 से 6 ग्राम तक दिन में तीन से चार बार खाने से पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।
# किडनी रोग में
किडनी के किसी समस्या से अगर यूरिन बनना बंद हो जाए, तो 20 से 40 मिलीलीटर मूली के रस को दिन में दो-तीन बार पीने से बहुत लाभ होता है।
# बवासीर की समस्या में
* मूली के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें तथा इसमें समान मात्रा में मिश्री मिलाकर 40 दिन तक 25 से 50 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
* मूली का 20 मिलीलीटर रस निकालकर उसमें 50 ग्राम गाय का घी मिलाकर सेवन करने से बवासीर में फायदा होता है।
# पेट दर्द में
मूली के 25 मिलीलीटर रस में आवश्यकतानुसार नमक मिलाकर 3-4 काली मिर्च का चूर्ण डालें तथा इसे तीन - चार बार पिलाने से पेट का दर्द ठीक होता है।
# एसिडिटी में
मूली का मिश्री के साथ सेवन एसिडिटी से आराम दिलाता है।
# दाद खाज खुजली की समस्या में
दाद खाज खुजली की समस्या होने पर मूली के बीजों को नींबू के रस में पीसकर प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से फायदा होता है।
# त्वचा के लिए
मूली में विटामिन सी, फास्फोरस, जिंक और विटामिन बी कपलेक्स होता है, जो त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है। यह त्वचा में नमी के स्तर को बनाए रखता है। कच्ची मूली को कसकर फेस पैक के तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
English Translte
Radish
Advantages, disadvantages, health benefits of eating radish, treatment of diseases with radish and diet with radish.
You will all be familiar with radish, which makes our food more delicious in winter. People also eat radish very much, because people know that radish has many benefits. But today we will learn about the medicinal properties of radish, about which only a few people will know. If you also use radish, then you must know about the benefits, disadvantages, medicinal properties of radish and what should not be consumed with radish.
Radish is a common part of our salad, which is used in almost all households. Radish is also eaten raw and cooked. Oil derived from radish seeds is also used in many products and for health use.
Radish is very good for health. It is available in our food in the form of salad, vegetable and paratha. Often people complain that radish tastes delicious, but after eating it spoils the whole day because there is a continuous gas in the stomach. If you know the right way to eat radish, then it is very good for health as well as test.
Know about the topic related to the consumption of radish: -
# One should never eat radish at night
Radish is a good source of iron. The body needs extra energy for digestion of radish. Therefore, one should not sleep immediately after eating it. For this reason, it is not digested properly at night. Therefore, radish should always be consumed during the day.
# Do not eat radish on an empty stomach
Never eat radish on an empty stomach, that is, first thing in the morning. Consumption of radish on an empty stomach due to excess of iron can cause digestive problems. So, always eat radish after eating. Many times there is a problem of stomach ache and gas formation.
# Diet against radish
* Milk should never be consumed with radish. It is a diet against and it can cause digestive problems. If consumed for a long time, the chances of getting skin disease increases.
* Never consume fish with radish.
* Radish should not be consumed with black gram.
Know about its medicinal properties: -
# In hiccup problem
Taking 50 to 100 ml of radish juice or decoction of dried radish at an interval of 1 - 1 hour is beneficial in the problem of hiccups.
# In jaundice disease
* Radish is very beneficial for liver and stomach. It purifies the blood. In jaundice, raw radish should be consumed daily. Drinking 60 ml juice of radish leaves and 15 grams of sugar candy is useful to cure jaundice.
* Grind fresh leaves of radish in water and boil it. It contains foam like milk, filtering it and drinking it thrice a day is beneficial in jaundice.
# In the treatment of anemia
Take out the radish juice along with the whole radish leaves. Drinking 20-20 ml three times a day is beneficial in anemia.
# In stones problem
* Drinking 100 ml juice of radish leaves 30-30 ml thrice a day breaks the stones and passes out through urine.
* Eating 1 to 6 grams of radish seeds three to four times a day breaks stones and comes out.
# In kidney disease
If any urine problem, stops making urin, then drinking 20 to 40 ml of radish juice two or three times a day is very beneficial.
# In hemorrhoids problem
Grind dried radish leaves under shade and mix equal quantity of sugar candy in it and take 25 to 50 grams for 40 days, it provides relief in piles.
* Taking 20 ml juice of radish and adding 50 grams of cow's ghee to it, taking it provides relief in piles.
# In stomach ache
Mix 3-4 black pepper powder in 25 ml juice of radish and add salt as necessary and give it three to four times, it ends stomachache.
# In acidity
Eating radish with sugar candy gives relief from acidity.
# Ringworm in itching problem
In the condition of ringworm itching, grind r.adish seeds in lemon juice and applying it on the affected area is beneficial.
# To skin
Radish contains Vitamin C, phosphorus, zinc and Vitamin B Kaplex, which is very good for the skin. It maintains the level of moisture in the skin. Raw radish can be used tightly using the face pack method.
गलत आदत का एहसास - Galat Adat ka Ehsaas
गलत आदत का एहसास
अकबर बीरबल की रोचक और मनोरंजक कहानियों से सभी परिचित हैं। अकबर बीरबल की कहानियां मनोरंजन के साधन तो हैं ही, जो हंसी- ठिठोली के साथ- साथ हमें ज्ञान भी देती हैं। तो आज अकबर- बीरबल की कहानियों को आगे बढ़ाते हुए एक ऐसी कहानी की चर्चा करते हैं, जो हमें हमारे गलत आदतों का एहसास कराएगी।
एक बार बादशाह अकबर अपने बेटे की अंगूठा चूसने की गलत आदत से बहुत परेशान थे। बादशाह अकबर ने शहजादे की इस बुरी आदत को सुधारने के लिए कई तरीके आजमाए, परंतु किसी भी तरीकों का शहजादे पर कोई असर नहीं हुआ।
तभी अकबर को एक ऐसे फकीर के बारे में पता लगा जिनकी बातें इतनी अच्छी होती थी कि टेढ़े से टेढा व्यक्ति भी सही दिशा में चलने लगता था। उस फकीर की बातों का इतना असर था कि हर कोई उसकी बात सुनता और मान लेता था।
अकबर ने बिना देर किए उस फकीर को दरबार में पेश होने का हुक्म दिया। जब फकीर दरबार में आया तब फकीर से बादशाह के बेटे की गलत आदतों के बारे में बताया गया और कोई उपाय सुझाने का आग्रह किया गया।
दरबार में सभी दरबारी, बीरबल और बादशाह अकबर के साथ-साथ उनका बेटा भी मौजूद था। फकीर ने थोड़ी देर तक सोचा और कहा कि मैं एक हफ्ते बाद आऊंगा और वह वहां से चला गया। अकबर और दरबारियों को यह बात बहुत अजीब लगी कि फकीर बिना शहजादे से मिले ही चला गया।
एक हफ्ते बाद फकीर दरबार में फिर उपस्थित हुआ और शहजादे से मिलने को कहा। फिर उन्होंने शहजादे को बहुत प्यार से मुंह में अंगूठा लेने से होने वाली तकलीफों के बारे में समझाया और शहजादे ने भी उसके बाद कभी भी अंगूठा ना चूसने का वादा किया।
अकबर ने फकीर से कहा कि - "यह काम तो आप पिछले हफ्ते भी कर सकते थे।" सभी दरबारियों ने भी नाराजगी व्यक्त की। फिर सभी दरबारी बोल पड़े की फकीर ने दरबार की तौहीन की है, अतः इसे सजा मिलनी चाहिए। महाराजा अकबर को भी यही सही लगा और उन्होंने फकीर को सजा सुनाने का तय किया।
सभी दरबारियों ने अपना - अपना सुझाव दिया, परंतु बीरबल खामोश रहे। बीरबल को खामोश देख अकबर ने कहा - "बीरबल तुम चुप क्यों हो? तुम भी बताओ कि इस गलती के लिए फकीर को क्या सजा दी जाए।"
बीरबल ने जवाब दिया - "जहांपनाह! हम सभी को इस फकीर से सीख लेनी चाहिए और इन्हें एक गुरु का दर्जा देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इनको सजा देने की बजाय इन्हें पुरस्कृत करना चाहिए।"
बीरबल की बात सुन शहंशाह अकबर गुस्से में बोले - "बीरबल! तुम हमारी और सभी दरबारियों की तौहीन कर रहे हो।"
बीरबल ने पुनः बहुत विनम्रता के साथ कहा - "गुस्ताखी माफ जहांपना! परंतु यही उचित न्याय होगा। जिस दिन यह फकीर पहली बार दरबार में आया था और जब शहजादे के बारे में उनको बताया गया था, तब आप सभी ने फकीर को बार-बार कुछ खाते देखा होगा। दरअसल फकीर को चूना खाने की गलत आदत थी।"
जब आपने शहजादे के बारे में फकीर को बताया, तब उसको खुद की गलत आदत का एहसास हुआ और उसने पहले खुद की गलत आदत को सुधारा। इस बार जब फकीर आया तब उसने एक बार भी चूने की डिबिया को हाथ नहीं लगाया।
यह सुनकर सभी दरबारियों को अपनी गलती समझ में आई और सभी ने फकीर का आदर पूर्वक सम्मान किया।
कभी भी दूसरों को ज्ञान देने से पहले खुद की कमियों को सुधारना चाहिए और सही उदाहरण पेश करना चाहिए तभी हम दूसरों को ज्ञान देने के काबिल हो सकते हैं।
Feel the wrong habit
Akbar is well acquainted with the interesting and entertaining stories of Birbal. Akbar Birbal's stories are a means of entertainment, which along with laughter and humor give us knowledge. So today Akbar discusses a story that will make us realize our wrong habits, taking forward Birbal's stories.
Once Emperor Akbar was deeply troubled by his son's wrong habit of sucking his thumb. Emperor Akbar tried many ways to rectify this bad habit of the princess, but none of the methods had any effect on the princess.
Then Akbar came to know about a fakir whose words were so good that even a crooked person started walking in the right direction. The words of that fakir had so much effect that everyone would listen and listen to him.
Without delay, Akbar ordered the fakir to appear in the court. When the fakir came to the court, the fakir was told about the bad habits of the emperor's son and was requested to suggest a solution.
All the courtiers, Birbal and Emperor Akbar as well as his son were present in the court. The fakir thought for a while and said that I will come after a week and he left from there. Akbar and the courtiers found it strange that the fakir left without meeting Shahzade.
A week later, the fakir reappeared at the court and asked to meet Shahzade. Then he very lovingly explained to Shehzade about the problems of getting thumb in the mouth and Shehzade also promised never to suck her thumb after that.
Akbar told the fakir that - "You could have done this work even last week". All the courtiers also expressed displeasure. Then all the courtiers said that the fakir has tainted the court, so it should be punished. Maharaja Akbar felt the same right and decided to punish the fakir.
All the courtiers gave their suggestions, but Birbal remained silent. Seeing Birbal kept silent, Akbar said - "Birbal why are you silent? You also tell me what punishment should be given to the fakir for this mistake."
Birbal replied - "Jahanpanah! We should all learn from this fakir and take blessings by giving him the status of a guru. He should be rewarded rather than punished."
Hearing Birbal, Emperor Akbar said angrily - "Birbal! You are insulting us and all the courtiers."
Birbal again said very politely - "Gustaki Maaf Jahanpana! But that would be fair justice. The day this fakir first came to the court and when she was told about the princess, all of you repeated the fakir again and again. Must have seen some accounts. Actually the fakir had the wrong habit of eating lime. "
When you told the fakir about Shahzade, he realized his own wrong habit and he corrected his own wrong habit first. This time when the fakir came, he did not touch the casket of lime even once.
Hearing this, all the courtiers understood their mistake and respected all the fakirs.
Anytime, before giving knowledge to others, we must correct our own shortcomings and present the right example, only then we can be able to give knowledge to others.
अद्भुत संसार - 21 - Rainbow Mountain (रेनबो माउंटेन)
Rainbow Mountain (रेनबो माउंटेन)
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इंद्रधनुष आसमान में कभी - कभी बारिश के बाद दिखाई देता है । मगर क्या कभी किसी ने सोचा होगा कि इंद्रधनुष के जैसा या सतरंगी कोई पहाड़ भी हो सकता है। जी हां, दुनिया में ऐसी भी एक जगह है जहां पहाड़ों में इंद्रधनुष जैसे रंग दिखाई देते हैं। सूरज की किरणें पड़ने पर इनकी खूबसूरती और भी निखर कर सामने आती है। तो चलिए जानते हैं ऐसी जगह के बारे में विस्तार से - Rainbow Mountain (रेनबो माउंटेन)
"जांग्ये डेनक्जिया जिओ पार्क" - इसे औपचारिक रूप से 16 जून 2016 को भूमि और संसाधन मंत्रालय द्वारा "झांझी नेशनल जियोपार्क" के रूप में नामित किया गया। इसकी खूबसूरत रंगीन राक संरचनाओं के कारण चीनी मीडिया आउटलेट्स द्वारा चीन में सबसे खूबसूरत लैंड फॉर्म में से एक के रूप में वोट दिया गया है।
पार्क का मुख्य क्षेत्र Zhangye शहर के पश्चिम में 30 किलोमीटर लाइनस काउंटी के सीट से 20 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है । यह पार्क का सबसे विकसित और सबसे अधिक दौरा किया जाने वाला क्षेत्र है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर तक है।
इंद्रधनुष के रंगों में रंगी यह पहाड़ लाल, नींबू, हरे, मजेंटा आदि रंगों की धार धारी परत बनी हुई है। देखने में यह जगह किसी अजूबे से कम नहीं लगती है। इन पहाड़ों को देखकर किसी का भी मन खिल उठेगा। सूरज की किरणें पड़ने पर ये पहाड़ और भी खूबसूरत नजर आते हैं।
इस पर्वत के रंग लोगों के लिए अभी भी किसी पहेली से कम नहीं है। वैज्ञानिकों का दावा है कि पर्वत की इंद्रधनुषी छटा यहां मौजूद प्रचुर मात्रा में खनिज तत्वों के कारण बनती है। पर्वत का लाल रंग आयरन ऑक्साइड, पीला आयरन सल्फाइड, हरा या नीला क्लोराइड की वजह से है। इन पहाड़ों के कई रंगों में पाए जाने के पीछे बर्फ का पिघलना और उसके जल में घुलने वाले खनिजों के निक्षेप से हुआ है।
इन पहाड़ों को देखने के लिए जून से सितंबर का समय सही रहता है। इस दौरान धूप और बारिश होने की वजह से रंग बिरंगी पहाड़ियों को देखने का मजा कुछ अलग ही होगा। इसके अलावा ठंड में पहाड़ों पर बर्फ जमा हो जाती है, ऐसे में रंगीन पहाड़िया देखने को नहीं मिलेंगे और दूसरा बर्फ सेडर की पहाड़ियां खतरनाक भी हो सकती हैं।
English Translate
Rainbow Mountain
As we all know that rainbow appears in the sky after occasional rain. But has anyone ever thought that there can be a mountain like rainbow or rainbow. Yes, there is one place in the world where rainbow-like colors appear in the mountains. Their beauty comes out even more when the sun's rays fall. So let's know in detail about such place - Rainbow Mountain
"Jangye Denxia Xiao Park" - It was formally designated as "Jhanjhi National Geopark" by the Ministry of Land and Resources on 16 June 2016. It has been voted as one of the most beautiful land forms in China by Chinese media outlets due to its beautifully colored rock formations.
The main area of the park is located 30 kilometers west of the city of Zhangye, 20 kilometers south of the seat of Linus County. It is the most developed and most visited area of the park. Its elevation ranges from 1500 to 2500 meters above sea level.
This mountain colored in the colors of rainbow, red, lemon, green, magenta, etc., remains a striped layer of colors. This place does not seem less than a wonder to see. Anyone's heart will blossom after seeing these mountains. These mountains look even more beautiful when the sun's rays fall.
The colors of this mountain are nothing short of an enigma for the people. Scientists claim that the rainbow shade of the mountain is formed due to the abundant mineral elements present here. The red color of the mountain is due to iron oxide, yellow iron sulfide, green or blue chloride. These mountains are found in many colors due to the melting of ice and the deposition of minerals dissolving in its water.
June to September is the best time to see these mountains. During this time due to sunshine and rain, the fun of seeing colorful hills will be different. Apart from this, snow accumulates on the mountains in the cold, in such a way, colorful hills will not be seen and other snow cedar hills can also be dangerous.
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) ||
कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple)
कोणार्क सूर्य मंदिर से तो सभी परिचित होंगे। परंतु इसकी विशेषता कम लोगों को ही पता होगी। कोणार्क सूर्य मंदिर भारत में उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी से 35 किलोमीटर दूर कोणार्क नामक शहर में प्रतिष्ठित है। यह भारतवर्ष के चुनिंदा सूर्य मंदिरों में से एक है, जिसे 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दी थी। कोणार्क सूर्य मंदिर ना केवल अपनी वास्तु कलात्मकता, भव्यता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह शिल्पकला के गुंथन और बारीकी के लिए भी प्रसिद्ध है।
यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धियों को दर्शाता है, जो भव्यता, उल्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा तालमेल प्रदर्शित करता है। इस मंदिर की भावनाओं का पता यहां के पत्थरों पर किए गए उत्कृष्ट नक्काशी से ही लग जाता है। मंदिर अपनी विशालतम निर्माण, स्थापत्य तथा वास्तु और मूर्तिकला के लिए अद्वितीय है और उड़ीसा की वास्तु और मूर्तिकलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है। एक शब्द में यह भारतीय स्थापत्य की महत्तम विभूतियों में है।
यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है, जो भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक है। कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। इसे 1236 से 1264 ईशा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नरसिंहदेव द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है।
कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर में सूर्य देव को रथ के रूप में विराजमान किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। इसके संपूर्ण भाग को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुए निर्मित किया गया है। मंदिर के आधार को सुंदरता प्रदान करते यह बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं तथा सात अश्व सप्ताह के सात दिन दर्शाते हैं। इस मंदिर में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएं हैं- बाल्यावस्था यानी उदित सूर्य जिसकी ऊंचाई 8 फीट है। युवावस्था, जिसे मध्यम सूर्य करते हैं उसकी ऊंचाई 9.5 फीट है। तीसरी अवस्था प्रौढ़ावस्था, जिसे अस्त सूर्य भी कहा जाता है उसकी ऊंचाई 3.5 फीट है।
पूरे मंदिर में जहां-तहां फूल बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। मंदिर का प्रत्येक इंच अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्पाकृतियां, भगवानों, देवताओं, गंधर्व, मानव, वाद्य यंत्रों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी है। इसके बीच- बीच में पशु -पक्षियों (लगभग दो हजार हाथी केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए ) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल -बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत है। उड़ीसा शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्ट गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।
यह मंदिर दो भागों में बना है, जिसमें से पहले भाग नट मंदिर में सूर्य की किरणें पहुंचती थी और कहा जाता है कि कांच या हीरे सरीखे धातु से वह इस मंदिर की प्रतिमा पर पड़ती थी, जिससे इसकी छटा देखते ही बनती थी। वहीं मंदिर में एक कलाकृति में इंसान, हाथी और शेर से दबा है, जो कि पैसे और घमंड का द्योतक है और ज्ञानवर्धक भी है।
महान कवि और नाटककार रविंद्र नाथ टैगोर ने इस मंदिर के बारे में लिखा है कि कोणार्क, जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेयस्कर है।
मंदिर की एक पौराणिक कहानी है, जो भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। धर्म ग्रंथ के अनुसार श्री कृष्ण के बेटे साम्ब को कुष्ठ रोग का श्राप था। उसी श्राप से बचने के लिए ऋषि कटक ने सूर्य भगवान की पूजा करने की सलाह दी थी। तभी साम्ब ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के नजदीक 12 सालों तक कड़ी तपस्या की। सूर्य देव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर साम्ब के रोग का निवारण किया। तब साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मंंदिर निर्माण करवाने का निश्चय किया। अपने रोग - नाश के उपरांत चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए उसे सूर्य देव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्य देव के शरीर के ही भाग से, देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनाई थी। साम्ब ने अपने बनवाए मित्रवन में एक मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया। तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा।
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Konark Sun Temple
Everyone will be familiar with the Konark Sun Temple. But few people will know its specialty. The Konark Sun Temple is revered in a city called Konark, 35 km from Jagannath Puri in the state of Orissa in India. It is one of the few Sun temples of India, which was recognized by UNESCO as a World Heritage Site in 1984. The Konark Sun Temple is not only known for its architectural artistry, grandeur, but it is also famous for its intricacy and intricacy.
It depicts the achievements of Kalinga architecture, displaying grandeur, gaiety and a unique synergy of all aspects of life. The feelings of this temple are known only by the exquisite carvings done on the stones here. The temple is unique for its largest construction, architecture and architecture and sculpture and exhibits the climax of the architectural and sculptures of Orissa. In a word, it is among the most important figures of Indian architecture.
The temple is dedicated to the Sun God, one of the ancient heritage sites of India. The Konark Sun Temple is built of red sandstone and black granite. It was built by the then feudal king Narasimhadeva of the Ganga dynasty from 1236 to 1264 AD. This temple is one of the most famous sites in India.
Built in the Kalinga style, the Sun God is enshrined as a chariot and the stones are carved with exquisite carvings. The entire body of it is constructed by pulling seven horses with twelve pair cycles. Giving beauty to the base of the temple, these twelve cycles define the twelve months of the year and the seven horse shows the seven days of the week. There are three idols of Lord Surya in this temple - Childhood ie Udit Surya whose height is 8 feet. The height of puberty, which is moderately sunny, is 9.5 feet. The third stage of maturity, also called the setting sun, is 3.5 feet high.
The entire temple is carved with flower bells and geometric patterns. Each and every inch of the temple is filled with unique beauty and artefacts of grace. Its subjects are also seductive, full of thousands of sculptures, images of Gods, Gods, Gods, Gandharvas, human beings, musical instruments, court images, hunting and war. In between - animal birds (about two thousand elephants only touring the base of the main temple) and mythological creatures, besides fine and intricate bells - embellished and geometric specimens. The exquisite diamond-like quality of Orissa sculpture stands out throughout the complex.
This temple is made in two parts, the first part of which used to reach the rays of the sun in the Nat temple and it is said that with glass or diamond-like metal, it used to fall on the idol of this temple, which was made on seeing it. At the same time, in an artwork in the temple, humans are pressed by elephants and lions, which is a sign of money and pride and also enlightening.
The great poet and playwright Ravindra Nath Tagore has written about this temple that Konark, where the language of stones is better than the language of man.
The temple has a mythological story, which is associated with Lord Krishna. According to the scripture, Lord Krishna's son Samb was cursed with leprosy. To avoid the same curse, sage Cuttack advised to worship the Sun God. Then Samb practiced severe penance on the banks of the Chandrabhaga river near Mitravan for 12 years. Pleased with his penance, Surya Dev removed Samb's disease. Then Samb decided to build a temple of the Sun God. After bathing in the Chandrabhaga river after his illness, he found an idol of Sun God. This idol was made by Dev Shilpi Sri Vishwakarma from the same part of the body of Sun God. Samb installed this idol in a temple in Mitravan built by him. Since then this place was considered sacred.