सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple)

 सोमनाथ मंदिर भारत वर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में स्थित अत्यंत प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर है। सोमनाथ मन्दिर भारतीय इतिहास तथा हिंदुओं के चुनिंदा और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। सोमनाथ मंदिर को आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

यह मंदिर धर्म के उत्थान पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है।अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली होने के कारण इतिहास में इसे कई बार तोड़ा और पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत के स्वतंत्रता के पश्चात लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने करवाया। जिसके बाद साल 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर समर्पित हिंदुओं में ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया था।फिर साल 1962 में भगवान शिवजी का यह पवित्र तीर्थ धाम पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने इस पवित्र तीर्थ धाम को राष्ट्र की आम जनता को समर्पित कर दिया और अब यह मंदिर लाखों लोगों के आस्था का केंद्र बन चुका है।

 सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात 7:30 से 8:30 बजे 1 घंटे का लाइट एंड साउंड शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोक कथा के अनुसार श्री कृष्ण जी ने यहीं पर देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ जाता है।

      चैत्र, भाद्रपद और कार्तिक माह में श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीनों महीने में यहां श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है। इसके अलावा यहां 3 नदियां हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है, इस त्रिवेणी में स्नान का विशेष महत्व होता है।

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की महिमा

सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट-

सोमनाथ मंदिर के व्यवस्था व संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट करता है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन और बाग बगीचे दे कर आय का प्रबंध किया है।

सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथाएं-

प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथों के कथानक अनुसार सोम अर्थात चंद्र ने, दक्ष प्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था, लेकिन उनमें से वे रोहिणी नामक पत्नी को अधिक प्यार और सम्मान देते थे। अपेक्षित और अपमानित अन्य कन्याओं ने अपने पिता से शिकायत की तो पुत्रियों की वेदना से पीड़ित राजा दक्ष ने चंद्र देव को समझाने का प्रयास किया पर वह नहीं माने। प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को "क्षयी" होने का श्राप दे दिया ।

सभी देवता चंद्रमा की व्यथा से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर शाप निवारण का उपाय पूछने लगे। ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से शंकर जी की उपासना करना एकमात्र उपाय बताया। चंद्रमा के छह मास पूजा करने पर शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया। राजा दक्ष के अभिशाप से मुक्त होकर चंद्रदेव ने भगवान शिव से माता पार्वती के साथ गुजरात के इस स्थान पर निवास करने की आराधना किया, जिसके बाद भगवान शिव अपने प्रिय भक्त चंद्र देव की आराधना को स्वीकार किया और माता पार्वती के साथ ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां आकर रहने लगे। 

       जिसके बाद पावन प्रभास क्षेत्र में चंद्रदेव यानी सोमराज ने भगवान शिव के इस भव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया, जिसकी महिमा और प्रसिद्धि पूरे विश्व में फैली हुई है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख हिंदू धर्म के प्रसिद्ध महाकाव्य श्रीमद्भागवत, महाभारत और स्कंद पुराण आदि में भी की गई है। सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग की दर्शन और पूजा से सब पापों से निस्तार और मुक्ति की प्राप्ति होती है।

    इस स्थान को "प्रभास पट्टन" के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनके पैर के तलवे में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर अनजाने में तीर मारा था तब ही श्रीकृष्ण देह त्याग कर यहीं से वैकुंठ गमन किए। इस स्थान पर बड़ा ही सुंदर श्री कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण-

सोमनाथ मंदिर ईसा पूर्व भी अस्तित्व में था, जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में बल्लभीपुर के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जूनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईसवी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर दूर तक फैली थी। अरब यात्री 'अलबरूनी' ने अपनी "यात्रा वृतांत" में इसका विवरण लिखा, जिस से प्रभावित होकर महमूद गजनबी ने सन् 1024 में कुछ 5000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिए गए। इतिहास में गजनवी के इस बर्बरता को लोग कभी नहीं भूल पाएंगे।

  इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। सन् 1093 में सिद्ध राजा जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया । 1168 में विजयेश्वर कुमार पाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण में अपना योगदान दिया था।

   सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दोबारा तोड़ दिया और सारी धनसंपदा लूटकर ले गया ।

     मंदिर को फिर से हिंदू राजाओं ने बनवाया,लेकिन सन 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। उसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया । 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

     बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1706 में इसे फिर गिरा दिया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा, पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन् 1026 में जो महमूद गजनवी ने शिवलिंग को खंडित किया वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को सन 1300 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखा देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं, महमूद गजनवी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया, तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।

    सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम बार मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

भारत की स्वतंत्रता के बाद पुनर्निर्माण-

सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधारशिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपनी पति की स्मृति में उनके नाम से 'दिग्विजय द्वार' बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग और पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर के निर्माण में श्री पटेल जी का बड़ा योगदान रहा।

   यह मंदिर गर्भगृह, सभा मंडप और नृत्य मंडप तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इस मंदिर का शिखर 150 फीट ऊंचा है, इस के शिखर पर स्थित कलश का भार 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊंची है।

   मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है, उसके ऊपर एक तीर रखकर यह संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। इस स्तंभ को 'बाण स्तंभ' कहते हैं। 

     भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है जो कि पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बेहद अच्छे से बनाए रखती है।

     सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है  साथ ही उत्तर द्धार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित  की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक  सरोवर बना हुआ है  और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है।

      ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमनाथ मंदिर के पास स्थित नदी में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

Somnath Temple

 Somnath Temple is a very ancient and historical Shiva temple located in the state of Gujarat at the western end of India. Somnath Temple is one of the most important and important temples of Indian history and Hindus. The Somnath temple is still considered the first Jyotirlinga among the 12 Jyotirlingas of India. Located in the port of Veraval in Saurashtra region of Gujarat, this temple is said to have been built by Chandradeva himself, which is mentioned in the Rigveda.

 This temple has been a symbol of the history of the rise and fall of religion. Being extremely rich and influential, it has been broken and renovated many times in history. The reconstruction of the present building started after the independence of India by Iron Man Sardar Vallabhbhai Patel. After this, in 1951, the first President of the country, Shri Rajendra Prasad Ji, installed the Jyotirlinga among the Hindus dedicated to Somnath Temple. After this, on 1 December 1995, former President of India, Shri Shankar Dayal Sharma dedicated this holy pilgrimage to the general public of the nation and now this temple has become the center of faith of millions of people.

 Somnath Temple is a world famous religious and tourist destination. A 1 hour light and sound show runs from 7:30 am to 8:30 pm in the temple courtyard, in which the history of Somnath temple is very beautifully illustrated. According to folklore, Shri Krishna ji committed murder here. Due to this, the area becomes more important.

 Shraddha is said to have special significance in Chaitra, Bhadrapada and Kartik month. There is a special crowd of devotees here during these three months. Apart from this, there is Mahasangam of 3 rivers Deer, Kapila and Saraswati, bathing in this Triveni has special significance.

 Somnath Temple Trust-

 The Somnath Trust undertakes the work of arranging and operating the Somnath Temple. The government has managed the income by giving land and orchards to the trust.

 Mythology of Somnath Temple-

 According to the story of ancient Hindu scriptures, Som ie Chandra married 27 daughters of Daksha Prajapati Raja, but among them he gave more love and respect to his wife named Rohini. When the expected and disgraced other girls complained to their father, King Daksha, suffering from the anguish of the daughters, tried to convince Chandra Dev but he did not agree. When the attempt failed, Daksha cursed the moon to be "decaying".

 All the gods, distressed by the agony of the moon, went to Brahma Ji and started asking for a solution to curse. Brahma Ji said that worshiping Shankar Ji with the chanting of Mahamrityunjaya in Prabhas region was the only solution. On worshiping the moon for six months, Shankar appeared and he gave the moon the opportunity to destroy one art every day and grow daily in the other side. Freed from the curse of King Daksha, Chandradeva prayed to Lord Shiva to stay at this place in Gujarat with Mata Parvati, after which Lord Shiva accepted the worship of his beloved devotee Chandra Dev and accompanied Jyoti Parvati as Jyotirlinga. They came and started living here.

 After this, in the holy Prabhas region, Chandradev i.e. Somaraja built this magnificent Somnath temple of Lord Shiva, whose glory and fame is spread all over the world. Somnath Jyotirlinga is also mentioned in the famous epic of Hinduism, Shrimad Bhagavat, Mahabharata and Skanda Purana etc. The philosophy and worship of Someshwar Jyotirlinga gives relief and freedom from all sins.

 This place is also known as "Prabhas Pattan". It is believed that Shri Krishna was resting on the Bhaluka Tirtha, when a hunter had unknowingly shot an arrow at the soles of his foot as Padmachinh, the deer's eye, only then did Shri Krishna renounce his body and leave here. A very beautiful Shri Krishna temple is built at this place.

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की महिमा

 Invasion of Somnath Temple-

 The Somnath temple existed even before BC, where the temple was rebuilt for the second time in the seventh century by the Maitrak kings of Ballabhipur. In the eighth century Junaid, the Arabic governor of Sindh, sent his army to destroy it. The Gurjara Pratihara king Nagabhatta rebuilt it for the third time in 815 AD. The glory and glory of this temple spread far and wide. The Arab traveler 'Alberuni' wrote a description of it in his "travelogue", influenced by which Mahmud Ghaznabi attacked the Somnath temple in 1024 with some 5000 companions, looted and destroyed his property. 50000 people were offering prayers inside the temple with folded hands, often all were murdered. People will never forget this barbarism of Ghaznavi in ​​history.

 After this it was rebuilt by Raja Bhima of Gujarat and Bhoja of Malwa. In 1093, Siddha King Jai Singh also supported the construction of the temple. In 1168, Vijayeshwar Kumar Pal and Raja Khangar of Saurashtra also contributed to the beautification of the Somnath temple.

 In 1297, when Nusrat Khan, commander of Sultan Alauddin Khilji of the Delhi Sultanate attacked Gujarat, he broke the Somnath temple again and looted all the wealth.

 The temple was rebuilt by the Hindu kings, but in 1395, the Sultan of Gujarat Muzaffar Shah broke the temple again and plundered all the offerings. Then in 1412 his son Ahmed Shah did the same.

 Later Mughal emperor Aurangzeb dropped it again in 1706. The temple was repeatedly refuted and renovated, but the Shivling remained unchanged. But in 1026, the Mahmud Ghaznavi ruined the Shivling was the Adi Shivling. After this, the Shivling, which was established, was disbanded in 1300 by the army of Alauddin Khilji. After this, many times the temple and Shivling were fragmented. It is said that the Devdwaras kept in the fort of Agra belong to the Somnath temple, Mahmud Ghaznavi took these gates with him during the robbery in 1026 AD. When a large part of India came under the control of the Marathas, another temple of Somnath Mahadev was built by Rani Ahilyabai of Indore in 1783 to offer prayers at a distance from the original temple.

 The new temple is built by the temple trust at the original temple site of Somnath Temple. The temple was last built at this place by Raja Kumar Pal. Saurashtra Chief Minister Uchhangarai Naval Shankar Dhebar excavated here on 19 April 1940. After this, the Archaeological Department of the Government of India installed the Jyotirlinga of Shiva on the Brahmashila obtained by excavation.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

 Reconstruction after India's independence-

 Former King of Saurashtra Digvijay Singh laid the foundation stone of the temple on 8 May 1950 and on 11 May 1951, the first President of India, Dr. Rajendra Prasad installed the Jyotirlinga in the temple. In 1970, the Rajmata of Jamnagar built a 'Digvijay Dwar' in her husband's memory in her name. This gate has a highway and a statue of former Home Minister Sardar Vallabhbhai Patel. Shri Patel ji contributed a lot in the construction of Somnath Temple.

 The temple is divided into three major parts of the sanctum sanctorum, sabha mandapa and dance pavilion. The shikhara of this temple is 150 feet high, the Kalash situated on its peak weighs 10 tons and its flag is 27 feet high.

 To the south of the temple is a pillar along the sea, with an arrow placed above it indicating that there is no earth terrain between the Somnath temple and the South Pole. This pillar is called 'arrow pillar'.

 Located in this famous temple dedicated to Lord Shiva, Shivalinga has radioactive properties which maintains its balance above the earth very well.

 A very beautiful Ganesh ji temple is situated in the premises of Somnath Temple and the statue of Aghorling has been installed outside the north dhar. This holy pilgrimage place of Hindus has a lake called Gaurikund and a Shivling is installed near the lake.

 It is believed that by simply visiting here, all the sorrows and pains of the devotees are removed and all their wishes are fulfilled. Bathing in the river situated near the Somnath temple provides relief from many diseases.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (Somnath Jyotirlinga Temple)

22 comments:

  1. आज की पोस्ट थोड़ी लंबी हो गई, पर समझ में नहीं आ रहा था क्या छोड़ू। गजब का मंदिर है, पढ़ने में थोड़ा वक्त अवश्य लगेगा परंतु उम्मीद है आप लोगों को पसंद आएगा।

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  2. Bharat ki anupam virasat ha..🙏bambhole

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  3. सोमनाथ मंदिर नाम ही पर्याप्त है, विदेशी आक्राताओं ने हमारी संस्कति को नष्ट करने के लिए सबसे ज्यादा आक्रमण इसी मंदिर पर किया। आज मंदिर का जो स्वरूप है वह निर्विवाद रूप से सरदार पटेल जी की वजह से ही है। मंदिर के विषय में विस्तृत जानकारी मिली।
    जय महाकाल

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  4. यह मंदिर अलौकिक है। सभी को यहां का दर्शन अवश्य करना चाहिए।
    बढ़िया और विस्तृत जानकारी।

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  5. आपने बहुत बढ़िया ढंग से वर्णन किया है।

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  6. Somnath temple ki vistrit jaankari...ye Mandir ha hi aisa ki iski vyakhya lambi hogi...is mandir par sabse jyada akrman huye hain...aur iski sampda luti gyi ha...fir b her baar pahle se jyada kalakriti ke saath ubhar kr khada hua....har har Mahadev🙏🙏

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  7. Somnath temple ke bare me jante to sabhi hain...pr itni vistrit jaankari nhi thi...ye mandir hamari prachin bharatiya dharohar ha...jisper videshi aakraman kariyon ki nazar thi...aapke blog ka ye ank bhi bemisal ha..good work...keep writing...

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  8. Very nice information 👏👏👏

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  9. यह मन्दिर अलौकिक है।

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  10. I have read about this temple in my last year's gk book, but it was just a short note. Now i have come to know the detailed information.....Amazing write-up!

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  11. यह हमारी तीव्र धार्मिक मनोबल ही है जो बार-बार टूटने के बाद भी मंदिर यथावत अपनी जगह है। जय शिव ओंकारा 🙏🙏

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  12. Anmol Bhartiya Virasat...Somnath mandir Ki jitni b vyakhya ho kam ha...isliye post to lamba hona hi tha...Bam Bam Bhole...

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  13. Somnath..naam hi kafi ha...Jai Shiv Shambhuu...

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  14. Alaukik...adbhut...

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