श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

श्री रामचरितमानस की महत्वपूर्ण घटनाएं

रामचरितमानस की समग्र घटनाओं को मुख्य 7 कांड में विभाजित कर सरलता से समझा जा सकता है। बालकाण्डअयोध्याकाण्डअरण्यकांड, किष्किंधा कांड के बाद सुंदरकांड आता है।  

श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

श्रीरामचरितमानस – सुंदरकांड ( Shri Ramcharitmanas – Sunderkand )

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥

हे राम मैं सत्य कहता हूं मेरे हृदय में सिर्फ आप वास करते हैं। रघुकुल शिरोमणि मुझे अपनी अमूल्य निधि वाली भक्ति प्रदान करिए ।जिसके परिणाम स्वरूप मैं राग – द्वेष  से मुक्ति पा सकू।

तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड में एक भक्त की बुद्धि और विवेक का जो वर्णन हुआ है ।उस वर्णन की प्रशंसा यदि शब्दों में की जाए तो शब्दों का अभाव हो जाएगा। लेकिन प्रशंसा कम नहीं पड़ेगी। भक्त हनुमान ने निष्काम भाव से अपने आराध्य के कार्यों को अंतिम परिणाम दिया। जिसके परिणाम स्वरूप श्री राम हनुमान जी के निष्काम भक्ति से प्रसन्न होकर हो जाते हैं । और कुछ मांगने के लिए कहते हैं ।हनुमान जी कहते हैं कि प्रभु मुझे सिर्फ आपकी भक्ति चाहिए ।इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए । आपके अमूल्य भक्ति में जो आनंद रस है ।उसके सामने हीरे -मोती और सोना चांदी का क्या महत्व है? रामचरितमानस में सातों कांडों में से सुंदरकांड प्रसिद्ध है ।क्योंकि सुंदरकांड जो भी व्यक्ति स्वच्छ मन से प्रतिदिन पड़ता है उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है। सुंदरकांड में भक्ति ,बुध्दि, शक्ति इन तीनों का अद्भुत मेल है ।उनका अनुपात भी बराबर है। अहंकार का समावेश भी नही है। इसीलिए आप निष्काम भाव से रामचरितमानस सुंदरकांड पढ़िए।

सुंदरकांड की संक्षिप्त कहानी

जामवंत के द्वारा जब हनुमान जी को अपनी शक्ति याद दिला जाती है। शक्ति याद आते ही हनुमान जी अपने शरीर को सुमेरु पर्वत की भांति विकराल कर लेते हैं। और जय श्री राम का नारा लगाते हुए आसमान में उड़ने लगते हैं। रास्ते में वीर हनुमान की थकान को दूर करने के लिए मैनाक पर्वत आता है ।हनुमान जी से निवेदन है कि आप मेरे शिखर पर बैठकर थोड़ा आराम कर लीजिए। फिर अपनी उड़ान को प्रारम्भ करिये। हनुमान जी कहते हैं कि मैं राम के कार्यों को बिना सिद्ध किए आराम नहीं कर सकता हूं ।फिर इतना कह कर हनुमान जी उड़ चलते हैं। रास्ते में देवताओं द्वारा हनुमान की जी की बुद्धि का परीक्षण करने के लिए सुरसा नामक नागकन्या को भेजा जाता है। 

सुरसा एक राक्षस का वेश बनाकर हनुमान जी को निगलना चाहती थी। लेकिन हनुमान जी कहते हैं कि मैं राम का कार्य करके आता हूं उसके बाद तुम उसे खा लेना ।सुरसा बोलती है कि इस मार्ग से जो भी गुजरता है उसे मेरे पेट में जाना होता है ।उसे मेरा भोजन बनना होता है। इसके बाद वह अपना मुख 100 योजन का बनाती है ।हनुमान जी अपने विकराल रूप से छोटे रूप में आकर सुरसा के मुंह में प्रवेश करते हैं तो सुरसा को यह आभास नही हो पाता है कि हनुमान मेरे मुख में कब गए और कब बाहर आये।  सुरसा हनुमान जी के बुद्धि से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती है और अदृश्य हो जाती है ।

तदोपरांत 40 योजन उड़ान करने के बाद छाया को पकड़ने वाली रक्षिणी का वध हनुमान  करते हैं ।उसके बाद हनुमान जी लंका पहुंचते हैं। लंका में लंकिनी से सामना होता है। लंकिनी को भी नुकसान पहुंचाते हैं। उसके बाद हनुमान जी लंका के अंदर प्रवेश करते हैं। सूक्ष्म रूप बनाकर फिर वह महल में जाकर करके देखते हैं सीता किस हाल में है। फिर वह रावण के कक्ष में जाते हैं फिर मेघनाथ फिर मंदोदरी और फिर विभीषण के कक्ष में जाते हैं । 

विभीषण के कक्ष में जब जाते हैं। तब भविषन को देखते हैं। विभीषण राम नाम का जाप कर रहा है । फिर हनुमान जी विभीषण से  परिचय करते हैं। विभीषण सीता के विषय में बताते हैं कि सीता अशोक वाटिका में है ।फिर हनुमान जी अशोक वाटिका में एक वृक्ष पर बैठकर यह देख रहे थे कि कैसे रावण सीता को प्रताड़ित कर रहा है ।उसके प्रताड़ित करने के बाद त्रिजटा उनको सांत्वना दे रही है कि बेटी धैर्य रखो तुम्हारे स्वामी आने वाले हैं। त्रिजटा के सान्त्वना देने के बाद त्रिजटा वहां चली जाती है। 

फिर सीता और हनुमान संवाद होता है। संवाद होने के उपरांत हनुमान जी अशोक वाटिका से फल खाने लगते हैं। इसके उपरांत हनुमान जी द्वारा राजकुमार अक्षय का वध होता है। फिर मेघनाथ द्वारा हनुमान जी को ब्रह्मास्त्र के माध्यम से बंदी बनाया जाता है। बंदी बनने के बाद रावण के दरबार में लाया जाता है ।हनुमान और रावण में संवाद होता है फिर इसके बाद हनुमान की पूंछ में आग लगा दी जाती है। 

हनुमान पूरे लंका में आग लगा देते है।हनुमान सीता से उनकी चूड़ामणि लेकर श्रीलंका से प्रस्थान करती हैं अपनी वानर सेना से मिलते हैं। फिर उसके बाद राम के पास ले जाते हैं और राम को सबूत के तौर पर वह चूड़ामणि देते हैं। श्री राम अपनी सेना को एकत्रित करने के बाद उस विशाल समुद्र के पास पहुंचते हैं। इसके बाद रावण द्वारा विभीषण को देशद्रोह के अपराध लगाकर लंका से निष्कासित कर दिया जाता है।फिर भविषन राम  के शरणागत हो जाये है।

सुंदरकांड की विशेषता क्या है ?

(1) वीर हनुमान का लंका पहुँचना

जामवंत के वचन को सुनकर वीर हनुमान बड़े हर्षोल्लास के साथ सीता जी की खोज के लिए समुद्र में एक पर्वत से एक लंबी छलांग लगाई । श्री राम नाम का उद्घोष करते हुए बड़े बेग के साथ उड़ चले ।रास्ते में मैनाक पर्वत हनुमान जी से यह अनुग्रह करता है कि आप मेरे शिखर पर बैठकर थोड़ी देर आराम कर लीजिए ।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं की
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
 तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

हनुमान जी ने मैनाक पर्वत के आग्रह पर कहा कि मुझे श्री राम के कार्य में विश्राम नहीं करना है। हनुमान जी के वेग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जिसको सुर ,नर और मुनि देख कर हर्षित हो रहे थे।  हनुमान जी को यह आशीर्वाद दे रहे थे कि वह श्रीराम के कार्य को सफल बनाकर आये। समुद्र के बीच में सुरसा नामक राक्षस मिलती है जो हनुमान जी को खाने के लिए कहती है

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

समुद्र में सुरसा नामक एक राक्षस के वेश में एक सर्प कन्या मिलती है। हे माता अभी मुझे जाने दो। मैं श्री राम के कार्य को पहले कर लेता हूं। उसके बाद तुम मुझे खा लेना लेकिन सुरसा बोलती है कि जो भी इस मार्ग से गुजरता है उसी मेरे पेट का आहार बनना पड़ता है। वीर हनुमान जी अपनी चतुराई से सुरसा के मुख से निकल जाते हैं। हनुमान जी की बुद्धिमानी पर सुरसा अपने वास्तविक रूप में आकर हनुमान जी की बुद्धि की प्रशंसा करती है। उन्हें आशीर्वाद देकर अदृश्य हो जाती है। फिर रास्ते में छाया नामक एक रक्षिणी मिलती है ।

जिसके विषय मे तुलसीदास जी लिखते है कि
निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥
छाया नामक रक्षिणी का वध करके हनुमान जी लंका पहुचते हैं।

(2) वीर हनुमान को ब्रह्मपाश में बांधना मेघनाथ के द्वारा

वीर हनुमान लंका पहुंच करके सर्वप्रथम एक पर्वत की चोटी पर खड़ा होकर के लंका को देखने लगे। लंका की भव्यता को देखकर हनुमान जी ने मन ही मन उसकी प्रशंसा की। यब किला वास्तव में अत्यंत सुंदर है। तदोपरांत सूक्ष्म रूप धारण करके लंका में प्रवेश करने लगे ।वहां पर उनका सामना लंका की पहरेदारी कर रही लंकिनी से होता है।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥

लंकिनी के दुस्साहस पर हनुमान जी लंकिनी के नाक पर एक घुसा मारते हैं। तब उसके नाक से खून निकलने लगता है ।वह उद्घोष करने लगती है कि अब लंका का विनाश होने वाला है। फिर लघु रूप धारण करके वीर हनुमान जी ने लंका के अंदर प्रवेश किया ।लंका के हर एक महल में जाकर देखा की सीता किस  महल में है। लेकिन सीता किसी भी महल में नहीं मिलती है। फिर उसके बाद उनकी मुलाकात भविषन से होती है। भविषन भी एक राम भक्त है। हनुमान जी का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें सीता जी के विषय में बताते हैं। फिर हनुमान जी बिना क्षण भर की देरी किए हुए अशोक वाटिका जाते हैं। वहां वह देखते हैं कि रावण सीता को कैसे प्रताड़ित कर रहा है।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥

रावण के द्वारा जो लोभ सीता को दिया जा रहा है। सीता जी ने कहा कि श्री राम के बिना मेरे लिए यह सारा संसार मिट्टी के ढेले के समान है। इसका मेरे जीवन में कोई महत्व नहीं है। यदि मैं जीवित हूं । श्री राम के लिए अन्यथा मैं अपने शरीर परित्याग कर देती ।फिर रावण के जाने के बाद विभीषण की बेटी त्रिजटा सीता के अंदर यह ढांढस बांधती है कि बेटी दुख के दिन सदैव नही रहते है। मनुष्य के जीवन में सुख-दुख एक रथ के पहिए की भांति है ।आज दुख का पहिया घूम रहा है। कल सुख का पहिया घूमेगा ।बेटी तुम धैर्य बनाये रखो। सीता को समझाने के बाद त्रिजटा वहां से चली जाती है। वहां से जाने के बाद हनुमान जी राम के द्वारा दी गई अंगूठी सीता के पास गिराते हैं ।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ॥

सीता जी ऊपर से गिराई गई अंगूठी को देखकर आकर्षित होती है ।यह अंगूठी तो  श्रीराम ने मुझे दिया था ।इस अंगूठी पर श्री राम नाम लिखा है सीता इस अंगूठी को देखकर रावण का माया समझती है कि रावण मेरे साथ छल – कपट कर रहा है ।तब हनुमान जी सामने आते हैं कहते हैं कि माता मैं श्री राम का सेवक हनुमान हूँ।मैं आपकी खोज करने के लिए आया हूं ।आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं कोई निशाचर नहीं हूं और ऐसे कई भेद बताते हैं जो श्रीराम सिर्फ सीता से कह होते हैं तब सीता को विश्वास हो जाता है कि हनुमान जी रावण के द्वारा भेजे गए कोई मायावी निशाचर नहीं है ।अपितु राम के दूत हैं। सीता श्री राम के विषय में पूछती है कि क्या मेरे स्वामी मुझे याद करते हैं? 

हनुमान जी ने कहा  श्रीराम आपको हर क्षण य रहते हैं ऐसा कोई भी क्षण भी नही जब श्री राम का नाम न लेते हो। हनुमान जी की श्री राम की प्रति ऐसी श्रद्धा को देखकर सीता जी हनुमान को क्या आशीर्वाद देती है कि हनुमान आठ सिद्धियों और नौ निधियों से परिपूर्ण हो जाओ।

इसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।

हनुमान जी सीता माता से यह अनुमति लेते हैं कि माता मुझे भूख लगी है मैं पहले कुछ फल खा लू। इसके बाद हनुमान जी अशोक वाटिका में फलों को तोड़कर खाने लगे ।जिसके परिणाम स्वरूप वहां के वनरक्षक इसका विरोध करने लगे ।लेकिन हनुमान जी ने उन सब को परास्त करके भेज दिया। फिर जम्मू माली आए वह भी परास्त हो गए । फिर रावण के पिता के पुत्र अक्षय कुमार आए जो भीषण युद्ध किया। 

लेकिन हनुमान जी ने ना केवल अक्षय कुमार को परास्त किया। बल्कि उनका अंत ही कर दिया ।फिर अंत में मेघनाथ आया। मेघनाथ और हनुमान जी का भीषण युध्द हुआ। मेघनाथ ने हनुमान जी के ऊपर तब अंत ने ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए हनुमान जी ब्रह्मपाश में बन्ध गए और फिर  मेघनाथ द्वारा हनुमान जी को लंका के दरबार में लाया गया।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥

(3) लंका दहन

रावण हनुमान जी के विषय में पूछता है। तब हनुमान जी अपना परिचय देते हैं कि मैं तीनों लोकों के स्वामी श्री राम का दूत हनुमान हूं ।उसके बाद हनुमान जी रावण को समझाते हैं कि सही सलामत सीता को श्री राम को लौटा दो ।अन्यथा श्री राम लंका की ईट से ईट बजा देंगे। हनुमान जी की बातों पर रावण इतना क्रोधित हो जाता है वह हनुमान जी को मृत्युदंड दे देता है। लेकिन मंत्री की सलाह पर हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी जाती है तदोपरांत हनुमान जी पूरी लंका में आग लगा देते हैं।

जिसके विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥

(4) विभीषण श्री राम के शरणागत

लंका विध्वंस के बाद हनुमान जी सीता जी से विदा मांगने आते हैं। सीता जी अपनी चूड़ामणि हनुमान को देती हैं। हनुमान जी फिर सीता माता से आशीर्वाद लेकर लंका से प्रस्थान करते हैं। फिर लंका से जाकर तुरंत जामवंत और नलनील से मिलते हैं। उसके बाद सब खुशी के साथ श्री राम के पास जाते है ।हनुमान श्री राम संवाद होता है। हनुमान जी ने श्री राम को सीता द्वारा दिए गए चूणामणि देती हैं निशानी के तौर पर। श्रीराम चूड़ामणि को देखकर भावविभोर हो जाती हैं। और उनकी आंख से आंसू निकलने लगते है और फिर हनुमान जी को गले लगा लेते हैं । किष्किंधा नरेश सुग्रीव कहते हैं प्रभु अब किस बात की देरी। अब तो पता ही चल गया है कि जानकी माता कहां है। सुग्रीव सारे वानरों को एकत्र करके श्री राम का नाम का नारा लगाते हुए चल पड़ते हैं। और समुद्र के पास पहुंच जाते हैं। इतने विशाल समुद्र को देखकर अब यह समस्या होने लगती है कि समुद्र को कैसे पार किया जाएगा। मंदोदरी रावण को समझा रही है कि सीता का मोह का त्याग कर दे। सीता लंका के लिए किसी विष से कम नहीं है। लेकिन रावण मंदोदरी की किसी बात को नहीं मानता है। फिर विभीषण रावण को समझाते हैं लेकिन रावण भविष्य के ऊपर देशद्रोह का आरोप लगाकर राज्य से निष्कासित कर देता है और राम की शरण में आ जाता है।

इस प्रसंग के विषय में तुलसीदास जी लिखते हैं कि
अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥

10 comments:

  1. 🙏🙏💐💐शुभप्रभात 🕉️
    🚩🚩जय जय सियाराम 🚩🚩
    🙏आप का दिन मंगलमय हो 🙏
    🚩🚩जय जय सियाराम 🚩🚩
    👍👍👍बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  2. जय श्री राम 🙏🏻🙏🏻

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