इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है - दुष्यन्त कुमार

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है

कथाकार और ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार त्यागी (27 सितंबर 1931-30 दिसंबर 1975) को कौन नहीं जानता। अपने छोटे से जीवनकाल में इन्होंने हिंदी साहित्य में ऊँचा मुकाम हासिल किया। इनकी 1975 में प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह "साये में धूप" प्रकाशित हुई थी। इसकी ग़ज़लों को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि उसके कई शेर कहावतों और मुहावरों के तौर पर लोगों द्वारा व्यवहृत होते हैं। प्रस्तुत है इनकी एक और कविता -  इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है....

Rupa Oos ki ek Boond
हारे हुए का सलाह, जीते हुए का अनुभव और 
खुद का दिमाग इंसान को कभी हारने नहीं देता है..


इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,

नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।


एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,

इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।


एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,

आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।


एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,

यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।


निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,

पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।


दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,

और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।


- दुष्यन्त कुमार

12 comments:

  1. सचमुच दुष्यंत कुमार जी की कविताएं मन को लुभाती हैं,संतोषित करती हैं और हर बार हमे बहुत कुछ सोचने को विवश करती हैं।
    आप सभी के लिए रविवार शुभ हो।

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  2. अति सुन्दर शुभ रविवार 😊

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  3. पवन कुमारDecember 4, 2022 at 11:45 AM

    अति सुंदर रचना🙏दुष्यंत कुमार की हरेक
    रचनायें जीवन को रोमांचित महसूस करा
    देती है🙏एक अलग आनन्द की अनुभूति
    करती है।🙏

    आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
    शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

    हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
    हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

    सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
    सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
    🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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  4. कितनी वास्तविक कविता है।

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