श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta || अध्याय चार अनुच्छेद 19 - 23 ||

 श्रीमद्भगवद्गीता ||अध्याय चार ~ ज्ञानकर्मसंन्यासयोग||

अथ चतुर्थोऽध्यायः ~ ज्ञानकर्मसंन्यासयोग

अध्याय चार के अनुच्छेद 19 - 23

अध्याय चार के अनुच्छेद  19-23 में "कर्म में अकर्मता-भाव, नैराश्य-सुख, यज्ञ की व्याख्या" है। 

श्रीमद्भगवद्गीता || Shrimad Bhagwat Geeta || अध्याय चार अनुच्छेद 19 - 23 ||

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पंडितं बुधाः ॥

भावार्थ : 

जिसके सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञानरूप अग्नि द्वारा भस्म हो गए हैं, उस महापुरुष को ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं॥19॥

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥
भावार्थ :
 
जो पुरुष समस्त कर्मों में और उनके फल में आसक्ति का सर्वथा त्याग करके संसार के आश्रय से रहित हो गया है और परमात्मा में नित्य तृप्त है, वह कर्मों में भलीभाँति बर्तता हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता॥20॥

निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्‌ ॥

भावार्थ : 

जिसका अंतःकरण और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है और जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है, ऐसा आशारहित पुरुष केवल शरीर-संबंधी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता॥21॥

यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वंद्वातीतो विमत्सरः ।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥

भावार्थ : 

जो बिना इच्छा के अपने-आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जिसमें ईर्ष्या का सर्वथा अभाव हो गया हो, जो हर्ष-शोक आदि द्वंद्वों से सर्वथा अतीत हो गया है- ऐसा सिद्धि और असिद्धि में सम रहने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उनसे नहीं बँधता॥22॥

गतसङ्‍गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥

भावार्थ : 

जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है, जो देहाभिमान और ममता से रहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है- ऐसा केवल यज्ञसम्पादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भलीभाँति विलीन हो जाते हैं॥23॥

8 comments:

  1. जय जय श्री राधे कृष्णा 🙏🏻

    ReplyDelete
  2. कर्म करना ही अधिकार है,फल की इच्छा में नहीं।

    ReplyDelete
  3. पवन कुमारNovember 24, 2022 at 9:50 PM

    जिसका चित परमात्मा में स्थिर हो गया
    उसका जीवन धन्य हो गया।
    🌹🙏गोविंद🙏🌹

    ReplyDelete
  4. Jai shree krishna

    ReplyDelete