Sunday.. इतवार ..रविवार

 इतवार (Sunday)

Sunday.. इतवार ..रविवार

"रुतबा तो खामोशियों का होता है,
अल्फाज का क्या?
वो तो बदल जाते हैं,
अक्सर हालात देखकर...❤"

तुम हमारे हो 

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया
ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते
उठा तो पर न सँभलने पाया
गिरा व रह गया आँसू पीते

ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी
नाम अभिमान का भी छोड़ दिया
देखा तो थी माया की डोर कटी
सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया

पर अहो पास छोड़ आते ही
वह सब भूत फिर सवार हु‌ए
मुझे गफलत में ज़रा पाते ही
फिर वही पहले के से वार हु‌ए

एक भी हाथ सँभाला न गया
और कमज़ोरों का बस क्या है
कहा – निर्दय, कहाँ है तेरी दया
मुझे दुख देने में जस क्या है

रात को सोते यह सपना देखा
कि वह कहते हैं तुम हमारे हो
भला अब तो मुझे अपना देखा
कौन कहता है कि तुम हारे हो।

अब अगर को‌ई भी सताये तुम्हें
तो मेरी याद वहीं कर लेना
नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें
प्रेम के भाव तुरंत भर लेना

– सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
Sunday.. इतवार ..रविवार
"धूप कितनी भी तेज हो
समुन्दर सूखा नही पड़ सकता.
उसी तरह उम्मीदों का सागर
किसी एक हार से खाली नही हो सकता...❤"

30 comments:

  1. शुभ रविवार, सुंदर सी तस्वीर के साथ अच्छी कविता

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  2. Happy Sunday 🥀🥀

    सूर्यकांत निराला जी की सुंदर पंक्तियां.. खूबसूरत तस्वीर के साथ👌👌

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  3. बहुत सुंदर लेखन। रोचक तथ्य। अति सुंदर।

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  4. निराला जी की बेहतरीन पंक्तियां।
    शुभ रविवार।

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  5. Nice poem related to life

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  6. महाकवि निराला की अनूठी रचना।शुभ रविवार।

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  7. Very nice pic & poem😍
    Happy Sunday ❣️

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  8. नहीं..बच्चे भी साथ थे।

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  9. "चाहे सूरज कितना भी गर्म क्यों न हो"
    समुद्र शुष्क नहीं हो सकता।
    आशा का वही सागर
    आप असफलता से मुक्त नहीं हो सकते। "कीमती शब्द। धन्यवाद।

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  10. अद्भुत
    खामोशी भी बहुत कुछ कहती है मोहतरमा

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