संत तुकाराम महाराज

संत तुकाराम महाराज

कौन थे संत तुकाराम महाराज?

भारत की देवभूमि पर अनेक ऐसे संत महाराज हुए हैं, जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं है। आप लोगों ने संत महाराज तुकाराम जी का नाम सुना होगा। आज इन्हीं के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे। संत तुकाराम महाराज जी की भगवान पांडुरंग के प्रति अनन्‍यसाधारण भक्‍ति थी। उनका जन्‍म महाराष्‍ट्र के देहू गांव में हुआ था और ऐसा मानना है कि वे सदेह वैकुंठ गए थे अर्थात वे देहत्‍याग किए बिना अपने स्‍थूल देह के साथ भगवान श्रीविष्‍णुजी के वैकुंठधाम गए थे। उनके वैकुंठ-गमन की तिथी ‘तुकाराम बीज’ के नाम से जानी जाती है। आज हम उनके जीवन के कुछ प्रसंग यहाँ पढ़ेंगे।

संत तुकाराम महाराज

संत तुकाराम महाराजजी का परंपरा से सावकारी का व्‍यवसाय था। एक बार उनके गाँव में सुखा पड गया था। तब लोगों की दीन स्‍थिती देखकर उन्‍होंने अपने घर का सारा धन गांव के लोगों में बाट दिया। कर्ज के बदले में लिए गए लोगों की भूमि के कागज उनके पास थे। वो उन्‍होंने इंद्रायणी नदी में बहा दिए और लोगों को कर्ज से मुक्‍त किया। लोगों में धन बांटने के बाद वे विरक्‍त हो गए। उनकी घर तथा संपत्ति में से रूचि पूर्णतः नष्‍ट हो गई ।

सद़्‍गुरु बाबाजी चैतन्‍य संत तुकाराम महाराज के गुरु थे। एक दिन उन्‍होंने तुकाराम महाराजजी को स्‍वप्‍न में दृष्टांत देकर गुरुमंत्र दिया। पांडुरंग के प्रति असीम भक्‍ती के कारण उनकी वृत्ति विठ्ठल चरणों में स्‍थिर होने लगी। आगे मोक्षप्राप्‍ति की तीव्र उत्‍कंठा के कारण तुकाराम महाराज ने देहू के निकट एक पर्वत पर एकांत में ईश्‍वर साक्षात्‍कार के लिए निर्वाण प्रारंभ किया। वहां पंद्रह दिन एकाग्रता से अखंड नामजप करने पर उन्‍हें दिव्‍य अनुभव प्राप्‍त हुआ।

बाद में उन्‍हें भजन और अभंग (विट्ठल या विठोबा की स्तुति में गाये गये छन्दों को कहते हैं) स्‍फुरने लगे। उनका एक बालमित्र उनके बताए प्रवचन, अभंग लिखकर रखता था। तुकाराम महाराजजी अपने अभंगों से समाज को वेदों का अर्थ सामान्‍य भाषा में सिखाते थे। यह बात बाजू के वाघोली गाँव में रामेश्‍वर भट नामक एक व्‍यक्‍ति को चूभ रही थी। तुकाराम महाराजजी की बढती प्रसिद्धी से वह क्रोधित था। इसलिए उसने संत तुकारामजी के अभंग की गाथा इंद्रायणी नदी में डुबों दी। इससे तुकाराम महाराजजी को अत्‍यंत दु:ख हुआ। उन्‍होंने भगवान विठ्ठल को अपनी स्‍थिती बताई। अपने बालमित्र से कहा, ‘"यह तो प्रभु की इच्‍छा होगी।" ऐसे १२ दिन बीत गए। १३ वें दिन गाथा नदी के पानी से उपर आकर तैरने लगी। यह देख रामेश्‍वर शास्‍त्री को अपने कृत्‍य का पश्‍चाताप हुआ और वे संत तुकाराम महाराजजी के शिष्‍य बन गए।

तुकाराम महाराज जी भगवान पांडुरंग का नामस्‍मरण कर अखंड आनंद की अवस्‍था में रहते थे। उन्‍हें किसी वस्‍तु की कोई अभिलाषा नहीं थी। केवल लोगों के कल्‍याण के लिए ही वे जीवित थे। स्‍वयं भगवान श्रीविष्‍णु का वाहन उन्‍हे वैकुंठ ले जाने के लिए आया था। जाते समय उन्‍होंने लोगों को अंतिम उपदेश करते हुए कहां, "बंधुओ, जीवन व्‍यतीत करते समय अखंड भगवान का नामस्‍मरण करें। अखंड नामजप करना यह भगवान तक जाने का केवल एक अत्‍यंत सुलभ मार्ग है। यह मैंने स्‍वयं अनुभव किया है। नामजप करने से भगवान के प्रति श्रद्धा बढती है और मन भी शुद्ध होता है।"

तभी श्रीविष्‍णुजी का गरुड वाहन उन्‍हें लेने के लिए आता दिखाई दिया। भगवान श्रीविष्‍णुजी के अत्‍यंत सुंदर रूप का वर्णन करते हुए और उपस्‍थित लोगों को प्रणाम करते हुए तुकाराम महाराजजी भगवान के वैकुंठधाम गए। वह फाल्‍गुन कृष्‍ण पक्ष द्वितिया का दिन था। भक्‍ति सिखानेवाले संत तुकाराम महाराजजी के चरणों में हम सभी कोटी कोटी वंदन करते हैं।

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