इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"

इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

जन्म: 15 सितंबर 1861, मुद्देनहल्ली, मैसूर राज्य, ब्रिटिश भारत
मृत्यु:  14 अप्रैल 1962 (आयु: 100 वर्ष), बैंगलोर, मैसूर राज्य, भारत (वर्तमान कर्नाटक, भारत)

इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के पहले इंजीनियर थे। इन्हीं की जयंती (15 सितंबर) पर हर साल "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)" मनाया जाता है। इंजीनियर विश्वेश्वरय्या का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या था। आज 15 सितंबर को अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) उन्हीं को याद करते हुए मनाया जाता है। 
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
1911 में डैम बनाना आसान नहीं था, क्योंकि उस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था। बावजूद इसके देश के पहले इंजीनियर डाॅ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने हार नहीं मानी। उन्होंने सहयोगी इंजीनियरों के साथ मिलकर माेर्टार तैयार कर दिया, जो सीमेंट से कहीं ज्यादा मजबूत था। मोर्टार एक पेस्ट है, जो पत्थरों, ईंटों और कंक्रीट चिनाई इकाइयों जैसे बिल्डिंग ब्लॉक्स को उनके बीच अनियमित अंतराल को भरने और सील करने के काम आता है। उनके वजन को समान रूप से फैलाता है और कभी-कभी दीवारों पर सजावटी रंग या पैटर्न जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे आम तौर पर पानी के साथ चूना, रेत वगैरह से बनाया जाता है। उसी मोर्टार से कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण किया। कर्नाटक के मैसूर में उस समय बना यह बांध एशिया का सबसे बड़ा बांध था।
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
वो मैसूर के 19वें दीवान थे, जिनका कार्यकाल साल 1912 से 1918 के बीच रहा। उन्हें न सिर्फ़ 1955 में "भारत रत्न" की उपाधि से सम्मानित किया गया, बल्कि सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के “नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर (केसीआईई)” सम्मान से भी नवाज़ा। 

वो मांड्या ज़िले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं। विश्वेश्वरय्या के पिता जी संस्कृत के जानकार थे। वो 12 साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया। शुरुआती पढ़ाई चिकबल्लापुर में करने के बाद वो बैंगलोर चले गए, जहां से उन्होंने 1881 में बीए डिग्री हासिल की। इसके बाद पुणे गए, जहां कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। 

उन्होंने बॉम्बे में पीडब्ल्यूडी से साथ काम किया और उसके बाद भारतीय सिंचाई आयोग में गए। दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फ़ैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। 

इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहा जाता है। जब वो 32 साल के थे, तब उन्होंने सिंधु नदी से सक्खर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया, जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त बनाने के लिए एक समिति बनाई जिसके तहत उन्होंने एक नया ब्लॉक सिस्टम बनाया। उन्होंने स्टील के दरवाज़े बनाए जो बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे। उनके इस सिस्टम की तारीफ़ ब्रिटिश अफ़सरों ने भी की।  विश्वेश्वरय्या ने मूसी और एसी नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान बनाया। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ़ इंजीनियर नियुक्त किया गया। 
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया उद्योग को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, चंदन, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। 
उन्होंने बैंक ऑफ़ मैसूर खुलवाया और इससे मिलने वाले पैसे का उपयोग उद्योग-धंधों को बढ़ाने में किया गया।  1918 में वो दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए। 

उनके जीवन से संबंधित रेल का एक किस्सा है, जिसके बगैर यह आर्टिकल अधूरा रह जायेगा और यह क़िस्सा काफ़ी मशहूर है। ब्रिटिश भारत में एक रेलगाड़ी चली जा रही थी जिसमें ज़्यादातर अंग्रेज़ सवार थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफ़िर गंभीर मुद्रा में बैठा था, जो विश्वेश्वरैया जी थे। सांवले रंग और मंझले कद के वो मुसाफ़िर सादे कपड़ों में थे और वहां बैठे अंग्रेज़ उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझकर मज़ाक उड़ा रहे थे, पर वो किसी पर ध्यान नहीं दे रहे थे। 

लेकिन अचानक ही उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की ज़ंजीर खींच दी। तेज़ रफ्तार दौड़ती ट्रेन कुछ ही पलों में रुक गई। सभी यात्री चेन खींचने वाले को भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड आ गया और सवाल किया कि ज़ंजीर किसने खींची। उन्होंने उत्तर दिया, ''मैंने'' वजह पूछी तो उन्होंने बताया, ''मेरा अंदाज़ा है कि यहां से लगभग कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।''
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
गार्ड ने पूछा, ''आपको कैसे पता चला?'' वो बोले, ''गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और आवाज़ से मुझे ख़तरे का आभास हो रहा है।'' गार्ड उन्हें लेकर जब कुछ दूर पहुंचा तो देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। 

English Translate

Engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya

Born: 15 September 1861, Muddenahalli, Mysore State, British India
Death: 14 April 1962 (age: 100 years), Bangalore, Mysore State, India (present Karnataka, India)

Engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya was the first engineer of India. Every year "Engineers Day" is celebrated on his birth anniversary (15 September). Engineer Visvesvaraya's full name was Mokshagundam Visvesvaraya. Today, on 15 September, Engineers Day is celebrated in his memory.
इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जयंती (15 सितंबर) || "इंजीनियर्स डे (National Engineers Day)"
Building a dam in 1911 was not easy, because at that time cement was not manufactured in the country. Despite this, the country's first engineer Dr. Mokshagundam Visvesvaraya did not give up. Along with fellow engineers, he prepared a mortar, which was much stronger than cement. Mortar is a paste used to join building blocks such as stones, bricks and concrete masonry units to fill and seal the irregular gaps between them, spread their weight evenly and is sometimes used to add decorative colours or patterns to walls. It is usually made from water with lime, sand etc. Krishna Raja Sagar Dam was constructed with the same mortar. This dam built in Mysore, Karnataka was the largest dam in Asia at that time.

He was the 19th Diwan of Mysore, whose tenure lasted from 1912 to 1918. He was not only awarded the title of "Bharat Ratna" in 1955, but King George V also awarded him the "Knight Commander of the Order of the Indian Empire (KCIE)" honour of the British Indian Empire for his contribution to public life.

He is considered to be the main pillar of the construction of the Krishnaraja Sagar Dam built in Mandya district. Visvesvaraya's father was a scholar of Sanskrit. He was 12 years old when his father died. After completing his early education in Chikballapur, he went to Bangalore, from where he obtained a BA degree in 1881. After this he went to Pune, where he studied at the College of Engineering.

He worked with PWD in Bombay and then went to the Indian Irrigation Commission. He played an important role in making Mysore in South India a developed and prosperous region. Many institutions including Krishnaraja Sagar Dam, Bhadravati Iron and Steel Works, Mysore Sandal Oil and Soap Factory, Mysore University, Bank of Mysore are the result of his efforts.

He is also called Bhagiratha of Karnataka. When he was 32 years old, he prepared a plan to send water from the Indus River to Sakkhar town, which was liked by all the engineers. The government formed a committee to improve the irrigation system under which he created a new block system. He made steel doors which helped in stopping the flow of water from the dam. His system was also praised by British officers. Visvesvaraya also made a plan to dam the water of two rivers named Musi and Asi. After this he was appointed Chief Engineer of Mysore.

Engineer Mokshagundam Visvesvaraya considered industry to be the life of the country, that is why he further developed the already existing industries like silk, sandalwood, metal, steel etc. with the help of experts from Japan and Italy.

He opened the Bank of Mysore and the money received from it was used to expand industries. In 1918, he retired from the post of Diwan.

There is a railway incident related to his life, without which this article would remain incomplete and this incident is quite famous. A train was running in British India in which most of the British were travelling. An Indian passenger was sitting in a compartment in a serious posture, who was Visvesvaraya ji. That passenger of dark complexion and medium height was in plain clothes and the Britishers sitting there were making fun of him thinking him to be a fool and illiterate, but he was not paying attention to anyone.

But suddenly that person got up and pulled the chain of the train. The fast moving train stopped in a few moments. All the passengers started abusing the person who pulled the chain. After some time the guard came and asked who pulled the chain. He replied, "I" When asked the reason, he told, "I guess that the railway track is uprooted at some distance from here."

The guard asked, "How did you know?" He said, "There has been a difference in the natural speed of the train and I am getting a feeling of danger from the sound." When the guard took them some distance, he was stunned to see that actually the joints of the railway track were open at one place and all the nuts and bolts were scattered.

6 comments:

  1. Great 🇮🇳we can proud we are indian

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  2. 🙏🙏💐💐☕️☕️
    🕉सुप्रभात🕉️
    🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🚩
    🙏जय श्री हरि विष्णु 🚩
    🙏आप का दिन शुभ हो 🙏
    🇮🇳जयहिंद🇮🇳जयभारत 🇮🇳
    👍👍👍बहुत अच्छी जानकारी 🙏
    🙏आपका बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐

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  3. Good information

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