नरसिंह जयंती
नरसिंह चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु अपने भक्त प्रहलाद के रक्षण हेतु अर्ध सिंह व अर्ध मनुष्य रूप में प्रकट हुए, भगवान के इस रूप को नरसिंह कहा जाता है। नरसिंह जयंती हिंदुओं के बीच एक अत्यंत शुभ त्योहार माना जाता है। इस विशेष दिन पर, भगवान विष्णु अपने चौथे अवतार नरसिंह (आधा आदमी और आधा शेर रूप) के रूप में पृथ्वी पर आए थे। इसलिए इस दिन को नरसिंह जयंती के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह जीवन से किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को नकारने और बुरे कामों के साथ-साथ अन्याय से दूर रहने के लिए मनाया जाता है।
नरसिम्हा जयंती कहानी
भारत में बहुत पहले कश्यप नाम के एक ऋषि रहते थे। उनके और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र थे, जिनका नाम हिरण्याक्ष औरहिरण्यकश्यप था। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के वराह अवतार (वराह) ने हिरण्याक्ष का वध किया था। इसके चलते हिरण्यकश्यप ने अपने भाई की मौत का बदला लेने का संकल्प लिया। भगवान विष्णु को हराने के इरादे से, उन्होंने एक गहन तपस्या (तपस्या) की और भगवान ब्रह्मा को अजेय होने का वरदान प्राप्त करने के लिए प्रसन्न किया।
हिरण्यकश्यप ने इस शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। उसने अपने बुरे इरादों से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और देवताओं, ऋषियों और मुनियों को परेशान करने लगा। उसी समय, उनकी पत्नी कयाधु से प्रह्लाद नाम के एक बच्चे का जन्म हुआ। राक्षस परिवार में पैदा होने के बावजूद, प्रह्लाद भगवान विष्णु के कट्टर भक्त थे। अत्यंत भक्ति और प्रेम के साथ प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करते थे। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को मारने का इरादा कर लिया।
प्रह्लाद पर हिरण्यकश्यप के कई हमले भगवान विष्णु की कृपा से व्यर्थ गए। निराश होकर उसने अपने बेटे को जिंदा जलाने का फैसला किया। प्रह्लाद को अपनी बुआ होलिका के साथ आग में बैठने के लिए कहा गया, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। लेकिन, भगवान विष्णु की लीला कौन जाने, होलिका आग में जलकर मर गई और प्रह्लाद आग से बाहर निकल गया।
इस घटना के बाद भी हिरण्यकश्यप का अंहकार और अत्याचार कम नहीं हुआ। प्रहलाद ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि वे सही मार्ग पर चलें, लेकिन प्रहलाद की बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन उसने प्रहलाद से कहा कि तेरे भगवान अगर सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में वो क्यों नहीं दिखते। इतना कहते ही उसने उस स्तंभ पर प्रहार किया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए, जो आधा मानव आधा शेर का रूप था। उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे राजमहल की दहलीज पर ले गए। भगवान नरसिंह ने उसे अपनी जांघों पर पटका और उसके सीने को नाखूनों से चीर दिया।
नरसिंह रूप में जब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया, उस समय वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, ना दिन था और ना रात, भगवान नरसिंह ना पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु। नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को ना धरती पर मारा ना ही आकाश में बल्कि अपनी जांघों पर मारा। मारते हुए शस्त्र-अस्त्र नहीं बल्कि अपने नाखूनों का इस्तेमाल किया।
नरसिंह जयंती का लक्ष्य अधर्म को समाप्त करना और धर्म के मार्ग पर चलना है। भगवान सभी को जीवन में नकारात्मकता से बचाएं और शांति, समृद्धि और खुशी प्रदान करें। नरसिंह जयंती की शुभकामनाएं।
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ReplyDeleteजय नरसिंह भगवान
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 22 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDelete"पांच लिंकों के आनन्द में" इस पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।
DeleteHighly recommend and knowledgeable
ReplyDeleteNarsing bhagwan ki jai
ReplyDeletejai shree hari
ReplyDelete🙏🙏💐💐सुप्रभात 🕉️
ReplyDelete🙏ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🚩
🙏जय श्री हरि विष्णु 🚩
🙏आप का दिन शुभ हो 🙏
🙏आप को भी नरसिंह् चतुर्दशी की बहुत बहुत शुभकामनायें 💐💐
👍👍👍आप का बहुत बहुत धन्यवाद 💐💐
सही है, ईश्वर भक्ति का अर्थ है, जीवन में नकारात्मकता से बचें और शांति, समृद्धि और खुशी फैलायें
ReplyDeleteमनभावन आलेख!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteVery nice
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